22 फ़रवरी 2024

Swami Shraddhanand ji | अमर बलिदानी स्वामी श्रद्धानंद जी | 22 फ़रवरी, 1856 - 23 दिसम्बर, 1926

 



🇮🇳🔶 अपने #धर्म, #संस्कृति और #देश के लिए दिया था स्वामी श्रद्धानंद जी ने बलिदान 🔶🇮🇳

🇮🇳🔶 भारत में अनेक दिव्य पुरुषों ने जन्म लिया। किसी ने धर्म के लिए अपने जीवन का उत्सर्ग किया, किसी ने देश के लिए, किसी ने जाति के लिए अपना जीवन लगा दिया परंतु #देश, #धर्म, #संस्कृति, #सभ्यता, #राष्ट्रीय, #शिक्षा आदि समग्र क्षेत्रों में संतुलित एवं सर्वाग्रणी किसी का स्वरूप है तो वह अमर बलिदानी स्वामी श्रद्धानंद जी का है। वह धार्मिक नेता थे और राष्ट्र नेता भी। वह सामाजिक नेता भी थे और आध्यात्मिक नेता भी।

स्वामी श्रद्धानन्द (अंग्रेज़ी: Swami Shraddhanand; जन्म- 22 फ़रवरी, 1856, जालंधर, पंजाब; मृत्यु- 23 दिसम्बर, 1926, दिल्ली) को भारत के प्रसिद्ध महापुरुषों में गिना जाता है। वे ऐसे महान् राष्ट्रभक्त संन्यासियों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपना सारा जीवन वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया था।

🇮🇳🔶 22 फरवरी 1856 को जन्मे स्वामी श्रद्धानंद ने शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने जिस #गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को स्थापित किया था उससे पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली का खोखलापन प्रकट हो गया था और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को जन्म दिया था। स्वामी श्रद्धानंद जी एक पूर्ण नेता थे। सम्पूर्ण क्रांति के प्रतीक थे। वीरता, अदम्य उत्साह, बलिदान उनके रोम-रोम में व्याप्त थे। निर्भयता की भावना, वाणी में अपूर्व ओज, दीन दुखियों के प्रति दया की भावना स्वामी श्रद्धानंद में सदा दृष्टिगोचर होती थी।

🇮🇳🔶 स्वामी श्रद्धानंद जी ने ब्रिटिश शासन काल में दिल्ली के चाँदनी चौक में क्रूर अंग्रेजी शासक के सैनिकों की संगीनों के सामने अपनी छाती तान कर देश की स्वतंत्रता के लिए अपने आपको बलि के रूप में प्रस्तुत करके देश के प्रति जनता में बलिदान करने की भावना जागृत की। साहस एवं निर्भीकता का ऐसा उदाहरण अपूर्व था। 

🇮🇳🔶 स्वामी श्रद्धानंद जी महात्मा थे, ऋषि थे, तपस्वी थे और योगी थे। उन्होंने देश का भविष्य देखा। तत्कालीन नेताओं की तुष्टीकरण की नीति और ब्रिटिश शासन की कूटनीति को अंतर्दृष्टि से देखा। भारत की राष्ट्रीयता का भविष्य खंडित प्रतीत हुआ तो भारत में एक राष्ट्रीयता के संगठन के लिए एक जाति, एक धर्म, एक भाषा के प्रचार के लिए शुद्धि आंदोलन एवं शुद्धि का कार्य प्रारंभ किया। 

🇮🇳🔶 भारत की राष्ट्रीय भावना की रक्षा के लिए महर्षि स्वामी दयानंद जी ने एक धर्म, एक भाषा, एक जाति, ऊंच-नीच भाव, गरीब-अमीर भेद शून्य समभाव की जो महती रूपरेखा प्रसारित की थी उसी को विशेष रूप से स्वामी श्रद्धानंद जी ने शुद्धि कार्य के द्वारा क्रियान्वित किया था। स्वामी श्रद्धानंद जी का बलिदान शुद्धि कार्य के कारण हुआ। यह राष्ट्र कार्य के लिए बलिदान था और धर्म कार्य के लिए भी था। अत: यह बलिदान इतिहास में अपूर्व था। 

🇮🇳🔶 स्वामी श्रद्धानंद जी ने राष्ट्रीयता के निर्माण के लिए  स्वधर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपने प्राचीन इतिहास की रक्षा एवं प्रचार के लिए भारतीयों को सच्चे अर्थों में भारतीय बनाने के लिए तथा जन्म जातिगत भेदभाव गरीब और अमीर का भेदभाव मिटाकर सबको समान स्तर पर लाने के लिए जिस आदर्श गुरुकुल को जन्म दिया था, उसने मैकाले की शिक्षा पद्धति का प्रखरता से बिना शासन से सहायता लिए प्रबल सामना किया।

🇮🇳🔶 हर वर्ष 23 दिसम्बर आर्य जगत को उस महान बलिदानी स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज का बलिदान स्मरण करवाता है जिसने अपने धर्म, संस्कृति और देश के लिए अपना बलिदान दिया था। स्वामी श्रद्धानंद जी ने देश, धर्म और जाति के लिए अपना बलिदान दिया था। उन्होंने अपने हित को त्याग कर राष्ट्रहित को अपनाया। मुंशी राम से महात्मा मुंशीराम और महात्मा मुंशीराम से स्वामी श्रद्धानंद तक का उनका सफर बहुत ही प्रेरणादायक है।

साभार: punjabkesari.in

🇮🇳 स्वराज, शिक्षा और वैदिक धर्म के निमित्त अपने प्राणों की आहुति देने वाले, आर्य समाज के प्रख्यात संत श्रद्धेय #स्वामी_श्रद्धानंद जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

#Swami Shraddhanand ji #आजादी_का_अमृतकाल  #22February  #independence #movement #देशभक्त

First Freedom Fighter | Uyyalawada Narasimha Reddy | प्रथम_स्वतंत्रता सेनानी | उय्यलावडा नरसिम्हा रेड्डी | Born- November 24, 1806; Death- February 22, 1847




First Freedom Fighter | Uyyalawada Narasimha Reddy  प्रथम_स्वतंत्रता सेनानी | उय्यलावडा नरसिम्हा रेड्डी | Born- November 24, 1806; Death- February 22, 1847

#प्रथम_स्वतंत्रता सेनानी | उय्यलावडा नरसिम्हा रेड्डी | जन्म- 24 नवंबर, 1806; मृत्यु- 22 फ़रवरी, 1847

🇮🇳 उन्हें सार्वजनिक रूप से जुर्रेती बैंक, कोइलकुंटला, जिला कुर्नूल में सुबह 7 बजे, सोमवार, 22 फ़रवरी, 1847 को फाँसी दी गई। उनकी फाँसी को देखने के लिए करीब दो हजार लोग उपस्थित थे। 🇮🇳

🇮🇳 #कोइलकुंतला #Koilkuntla में उनके पकड़े जाने के बाद उन्हें बुरी तरह से पीटा गया, उनको मोटी-मोटी जंजीरों से बाँधा गया था और कोइलकुंतला की सड़कों पर खून से सने हुए कपड़े में ले जाया गया ताकि किसी अन्य व्यक्ति को #ब्रिटिश के खिलाफ #विद्रोह करने की हिम्मत ना हो सके। 🇮🇳


🇮🇳 नरसिम्हा रेड्डी का जन्म 24 नवंबर, 1806 में #उय्यालवडा, जिला #कुर्नूल, #आंध्र_प्रदेश के एक सैन्य परिवार में हुआ था। उनके दादा का नाम #जयारामी_रेड्डी, पिता का नाम #उय्यलावडा_पेडडामल्ला_रेड्डी था। नरसिम्हा रेड्डी सेना में गवर्नर थे। #कदपा, #अनंतपुर, #बेल्लारी और #कुर्नूल जैसे 66 गाँवों की कमान उनके हाथ में रहती थी। वह 2000 की सेना को नियंत्रित किया करते थे।


🇮🇳उय्यलावडा नरसिम्हा रेड्डी पहले #देशभक्त थे, जिन्होंने #ब्रिटिश_शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह किया। नरसिम्हा रेड्डी ने वर्ष 1847 में किसानों पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाई और अंग्रेज़ों से लोहा लिया। उन्हें #अल्लागड्डा क्षेत्र से अपने दादा से कर वसूलने की जिम्मेदारी मिली थी। किसानों पर अंग्रेज़ों के जुल्म बढ़ते जा रहे थे। इन्हीं जुल्मों और अत्याचारों के विरुद्ध नरसिम्हा रेड्डी उठ खड़े हुए थे।

🇮🇳 नरसिम्हा रेड्डी का जन्म 24 नवंबर, 1806 में #उय्यालवडा, जिला #कुर्नूल, #आंध्र_प्रदेश के एक सैन्य परिवार में हुआ था। उनके दादा का नाम #जयारामी_रेड्डी, पिता का नाम #उय्यलावडा_पेडडामल्ला_रेड्डी था। नरसिम्हा रेड्डी सेना में गवर्नर थे। #कदपा, #अनंतपुर, #बेल्लारी और #कुर्नूल जैसे 66 गाँवों की कमान उनके हाथ में रहती थी। वह 2000 की सेना को नियंत्रित किया करते थे।

🇮🇳 रायलसीमा के क्षेत्र पर ब्रिटिशों के अधिकार करने के बाद नरसिम्हा रेड्डी ने अंग्रेजों के साथ इस क्षेत्र की आय को साझा करने से इनकार कर दिया था। वह एक सशस्त्र विद्रोह के पक्ष में थे। वह युद्ध में गोरिल्ला रणनीति का इस्तेमाल किया करते थे। 10 जून, 1846 को उन्होंने #कोइलकुंटला में खजाने पर हमला किया और #कंबम (जिला प्रकाशम्) की तरफ प्रस्थान किया। उन्होंने वन रेंजर रूद्राराम को मारकर विद्रोह किया। जिला कलेक्टर ने विद्रोह को बड़ी गंभीरता से लिया और कैप्टन नॉट और वाटसन को नरसिम्हा रेड्डी को पकड़ने का आदेश दिया। वह अपने प्रयास में असफल रहे।

🇮🇳 ब्रिटिश सरकार ने नरसिम्हा रेड्डी की सूचना देने वाले को 5000 रुपये और उनके सिर के लिए 10000 रुपये देने की घोषणा की, जो उन दिनों में एक बड़ी रकम थी। 23 जुलाई, 1846 को नरसिम्हा रेड्डी ने अपनी सेना के साथ #गिद्दलूर में ब्रिटिश सेना के ऊपर आक्रमण कर दिया और उन्हें हरा दिया। नरसिम्हा रेड्डी को पकड़ने के लिए ब्रिटिश सेना ने उनके परिवार को कदपा में बन्दी बना लिया। अपने परिवार को मुक्त करने के प्रयास में वह #नल्लामला वन चले गए। जब अंग्रेजों को पता लगा कि वह नल्लामला वन में छिपे हैं, तब अंग्रेजों ने अपनी गतिविधियों को और ज्यादा मजबूत कर दिया, जिसके बाद नरसिम्हा रेड्डी #कोइलकुंतला क्षेत्र में वापस आ गए और गाँव #रामबाधुनीपल्ले के पास #जगन्नाथ_कोंडा में मौके का इंतजार करने लगे।

🇮🇳 ब्रिटिश अधिकारियों को उनके कोइलकुंतला के ठिकाने की जानकारी मिली, जिसके बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने वह क्षेत्र रातों-रात घेर लिया। 6 अक्टूबर, 1846 को आधी रात के समय उन्हें गिरफ़्तार करके बन्दी बना लिया गया। कोइलकुंतला में उनके पकड़े जाने के बाद उन्हें बुरी तरह से पीटा गया, उनको मोटी-मोटी जंजीरों से बाँधा गया था और कोइलकुंतला की सड़कों पर खून से सने हुए कपड़े में ले जाया गया ताकि किसी अन्य व्यक्ति को ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह करने की हिम्मत ना हो सके।

🇮🇳 नरसिम्हा रेड्डी के साथ विद्रोह करने लिए 901 लोगों पर भी आरोप लगाया गया। बाद में उनमें से 412 लोगों को बरी कर दिया गया और 273 लोगों को जमानत पर रिहा किया गया। 112 लोगों को दोषी ठहराया गया। उन्हें 5 से 14 साल के लिए कारावास की सजा सुनाई गई। कुछ को तो #अंडमान द्वीप समूह की एक जेल में भेज दिया गया। नरसिम्हा रेड्डी पर हत्या और राजद्रोह करने का आरोप लगाया गया और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। छ: सप्ताह बाद उन्हें सार्वजनिक रूप से #जुर्रेती बैंक,#Jurreti_Bank #कोइलकुंटला,#Koilkuntla जिला #कुर्नूल #District_Kurnool में सुबह 7 बजे, सोमवार, 22 फ़रवरी, 1847 को फाँसी दी गई। उनकी फाँसी को देखने के लिए करीब दो हजार लोग उपस्थित थे।  #District_Kurnool

🇮🇳 नरसिम्हा रेड्डी द्वारा बनाए गए किले आज भी उय्यलावडा, रूपनगुड़ी, वेल्ड्रथी और गिद्दलुर जैसे स्थानों पर मौजूद हैं। प्रथम स्वतंत्रता सेनानी उय्यालवडा नरसिम्हा रेड्डी की 170वीं पुण्यतिथि मनाने के लिए 22 फ़रवरी, 2017 को उय्यालवडा में एक विशेष आवरण जारी किया गया था।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 वर्ष 1847 में आंध्र प्रदेश के किसानों पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठा कर ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह करने वाले भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी देशभक्त #उय्यलावडा_नरसिम्हा_रेड्डी जी को उनके #बलिदान_दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

#Jurreti_Bank #Koilkuntla #District_Kurnool #आजादी_का_अमृतकाल #Uyyalawada_Narasimha_Reddy #22February #First_Freedom_Fighter   #independence #movement #देशभक्त

Mukund Das | मुकुन्द दास | 22 February, 1878-18 May, 1934 | Bengali Language Poet, Lyricist, Musician and Patriot

 



Mukund Das (22 February, 1878-18 May, 1934) Bengali Language Poet, Lyricist, Musician and Patriot.

🇮🇳 मुकुन्द दास ने अपनी उत्कृष्ट कृति #मातृपूजा #Matripuja की रचना की। उनके नाटक का प्राथमिक विषय देशभक्ति और #स्वतंत्रता_आंदोलन था। स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य भारतमाता को #ब्रिटिश साम्राज्यवाद के जुए से मुक्त कराना था। 🇮🇳

🇮🇳 मुकुन्द दास (जन्म- 22 फ़रवरी, 1878; मृत्यु- 18 मई, 1934) भारतीय बांग्ला भाषा के #कवि, #गीतकार, #संगीतकार और #देशभक्त थे। उन्होने ग्रामीण स्वदेशी आंदोलन के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

#Mukunda_Das (#Bengali: মুকুন্দদাস; #22_February 1878 – 18 May 1934) was a #Bengali #poet, #ballad #singer, #composer and #patriot, who contributed to the spread of #Swadeshi #movement in #rural #Bengal

🇮🇳 सन 1905 में #अश्विनी_कुमार_दत्त ने #बंगाल के प्रस्तावित विभाजन के खिलाफ #बारीसाल टाउन हॉल में एक प्रेरक भाषण दिया था। संदेश को दूर-दूर तक फैलाने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कामना की कि नाटकों और नाटकों के माध्यम से नेताओं के संदेश को गाँवों तक पहुँचाया जा सके। तब मुकुन्द दास अश्विनी कुमार दत्त के भाषण से बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने महान देशभक्त की इच्छा को पूरा करने का संकल्प लिया।

🇮🇳 तीन महीने के भीतर मुकुन्द दास ने अपनी उत्कृष्ट कृति 'मातृपूजा' की रचना की। उनके नाटक का प्राथमिक विषय देशभक्ति और स्वतंत्रता आंदोलन था। स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य #भारतमाता को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के जुए से मुक्त कराना था।

🇮🇳 भारतमाता के बच्चों ने आजादी पाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उन्होंने बंगाल के गाँवों में नाटकों का मंचन करने के लिए एक स्वदेशी थिएटर समूह बनाया।

🇮🇳 सन 1906 में मुकुन्द दास ने बारीसाल के विभिन्न स्थानों पर अपने नाटकों का मंचन किया और फिर #नोआखली और #त्रिपुरा की यात्रा की और मानसून से पहले बारीसाल लौट आए।

🇮🇳 जून 1906 में उन्होंने बारीसाल में स्वदेशी उत्सव में अपने नाटक का मंचन किया, जहाँ उनके नाटक की राष्ट्रीय नेतृत्व ने बहुत प्रशंसा की। 

🇮🇳 अक्टूबर में उन्होंने अपने समूह के साथ #फरीदपुर जिले के #मदारीपुर की यात्रा की और वहाँ से कई स्थानों पर। अंततः अप्रैल 1907 में बारीसाल लौट आए। 

🇮🇳 16 अप्रैल को उन्होंने राय बहादुर के महल में नाटक का मंचन किया।

🇮🇳 दो साल की दौड़ के बाद 'मातृपूजा' बंगाल की जनता की देशभक्ति की भावनाओं को जगाने में सफल रही। नाटक को प्रेस द्वारा और अधिक लोकप्रिय बनाया गया। 

🇮🇳 #बंदे_मातरम, #युगान्तर, #संध्या, #नवशक्ति, #प्रबासी और #आधुनिक_समीक्षा, उनमें से प्रत्येक ने नाटक को लोकप्रिय बनाने में भूमिका निभाई।

🇮🇳 सन 1908 में मुकुन्द दास ने #खुलना जिले में कुछ स्थानों पर, फिर छोटे-छोटे #बंगाल में नाटक का मंचन किया, लेकिन जब उन्होंने #बागेरहाट में नाटक का मंचन करने की कोशिश की तो उन्हें पुलिस ने रोक दिया।

🇮🇳 अक्टूबर 1908 में नाटक ने चौथे सीज़न में कदम रखा। 1908 में मुकुन्द दास को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया और तीन साल के लिए जेल में डाल दिया गया।

🇮🇳 1921 में #मोहनदास_गाँधी ने #असहयोग_आंदोलन का आह्वान किया। मुकुन्द दास नाटक के अपने सिद्ध प्रदर्शनों की सूची के साथ आंदोलन में शामिल हुए। 

🇮🇳 1923 के आसपास आंदोलन को बंद कर दिया गया और मुकुन्द दास #कोलकाता में अपने समूह के साथ बस गए। उस समय सरकार ने 'मातृपूजा' पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्रतिबंधित होने से बचने के लिए उन्होंने सामाजिक नाटकों की रचना करना शुरू कर दिया। 

🇮🇳 1932 में सरकार ने उनके सभी नाटकों पर प्रतिबंध लगा दिया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 भारतीय #बांग्ला भाषा के #कवि, #गीतकार, #संगीतकार और #देशभक्त #मुकुन्द_दास जी (जन्म- 22 फ़रवरी, 1878; मृत्यु- 18 मई, 1934) को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 🇮🇳💐🙏

🇮🇳 वंदे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 🇮🇳🌹🙏

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

#आजादी_का_अमृतकाल #Mukund_Das #22February #Bengali #Language #Poet #Lyricist #Musician  #Patriot #independence #movement #देशभक्त



21 फ़रवरी 2024

International Mother Language Day | अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस | 21 फरवरी



#मातृभाषा दिवस 21फरवरी को मनाया जाता है। 17 नवंबर, 1999 को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषायी एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले

यूनेस्को द्वारा अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तरराष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन 1952  से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है।

2008  को अन्तरराष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्त्व को फिर दोहराया है।
#International #Mother #Language 3Day is a #worldwide annual observance held on #21_February to promote awareness of linguistic and #cultural #diversity and to promote #multilingualism


एक जनगणना के नवीनतम विश्लेषण के अनुसार, भारत में 19,500 या बोलियाँ मातृभाषा के रूप में बोली जाती हैं। यह 121 भाषाएँ हैं जो भारत में 10,000 या अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं, जिनकी जनसंख्या 121 करोड़ है।

According to the latest analysis of a census, 19,500 languages or dialects are spoken as #mother_tongue in India. These are 121 #languages that are #spoken by 10,000 or more people in #India, which has a #population of 121 crores. 
प्रथम भाव - मातृभाव ! प्रथम भाषा - मातृभाषा !! #मातृभाषा का प्रयोग गर्व के साथ करें। 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 आप सभी मित्रों को #अन्तर्राष्ट्रीय_मातृभाषा_दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ! 🇮🇳🌹🙏 जय मातृभूमि 🇮🇳
साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

Suryakant Tripathi Nirala | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | 21 फ़रवरी 1896-15 अक्टूबर 1961

 



Suryakant Tripathi Nirala  | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |  21 फ़रवरी 1896-15 अक्टूबर 1961 

🇮🇳 सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 21 फ़रवरी 1896 को बंगाल की #महिषादल रियासत (ज़िला #मेदिनीपुर) में हुआ। इस जन्मतिथि को लेकर अनेक मत हैं, लेकिन इस पर विद्वतजन एकमत हैं कि 1930 से निराला वसंत पंचमी के दिन अपना जन्मदिन मनाया करते थे। ‘महाप्राण’ नाम से विख्यात निराला छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक हैं। उनकी कीर्ति का आधार ‘सरोज-स्मृति’, ‘राम की शक्ति-पूजा’ और ‘कुकुरमुत्ता’ सरीखी लंबी कविताएँ हैं; जो उनके प्रसिद्ध गीतों और प्रयोगशील कवि-कर्म के साथ-साथ रची जाती रहीं। उन्होंने पर्याप्त कथा और कथेतर-लेखन भी किया। बतौर अनुवादक भी वह सक्रिय रहे। वह हिंदी में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। वह मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति के पक्षधर हैं। वर्ष 1930 में प्रकाशित अपने कविता-संग्रह ‘परिमल’ की भूमिका में उन्होंने लिखा : ‘‘मनुष्यों की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंदों के शासन से अलग हो जाना है।’’

🇮🇳 निराला के बचपन में उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया। उनके पिता #पंडित_रामसहाय_तिवारी #उन्नाव (#बैसवाड़ा) ज़िले #गढ़ाकोला गाँव के रहने वाले थे। वह महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। हिंदी, संस्कृत और बांग्ला भाषा और साहित्य का ज्ञान उन्होंने स्वाध्याय से  अर्जित किया। 

🇮🇳 उनका जीवन उनके ही शब्दों में कहें तो दुःख की कथा-सा है। तीन वर्ष की आयु में उनकी माँ का और बीस वर्ष के होते-होते उनके पिता का देहांत हो गया। बेहद अभावों में संयुक्त परिवार की ज़िम्मेदारी उठाते हुए निराला पर एक और आघात तब हुआ, जब पहले महायुद्ध के बाद फैली महामारी में उनकी पत्नी मनोहरा देवी का भी निधन हो गया। इस महामारी में उनके चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। इसके बाद की उनकी जीवन-स्थिति को उनकी काव्य-पंक्तियों से समझा जा सकता है :

‘‘धन्ये, मैं पिता निरर्थक का,

कुछ भी तेरे हित न कर सका!

जाना तो अर्थागमोपाय,

पर रहा सदा संकुचित-काय

लख कर अनर्थ आर्थिक पथ पर

हारता रहा मैं स्वार्थ-समर।’’  

ये पंक्तियाँ निराला की कालजयी कविता ‘सरोज-स्मृति’ से हैं। यह कविता उन्होंने मात्र उन्नीस वर्ष आयु में मृत्यु को प्राप्त हुई अपनी बेटी सरोज की स्मृति में लिखी।

🇮🇳 निराला का व्यक्तित्व घनघोर सिद्धांतवादी और साहसी था। वह सतत संघर्ष-पथ के पथिक थे। यह रास्ता उन्हें विक्षिप्तता तक भी ले गया। उन्होंने जीवन और रचना अनेक संस्तरों पर जिया, इसका ही निष्कर्ष है कि उनका रचना-संसार इतनी विविधता और समृद्धता लिए हुए है। हिंदी साहित्य संसार में उनके आक्रोश और विद्रोह, उनकी करुणा और प्रतिबद्धता की कई मिसालें और कहानियाँ प्रचलित हैं। 

🇮🇳 सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के जीवन का अंतिम समय अस्वस्थता के कारण प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में एक छोटे से कमरे में बीता तथा इसी कमरे में 15 अक्टूबर 1961 को कवि निराला जी की मृत्यु हुई।

🇮🇳 कृतियाँ--

‘अनामिका’ (1923), ‘परिमल’ (1930), ‘गीतिका’ (1936), ‘तुलसीदास’ (1939), ‘कुकुरमुत्ता’ (1942), ‘अणिमा’ (1943), ‘बेला’ (1946), ‘नए पत्ते’ (1946), ‘अर्चना’ (1950), ‘आराधना’ (1953), ‘गीत कुंज’ (1954), ‘सांध्य काकली’

और ‘अपरा’ निराला की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। ‘लिली’, ‘सखी’, ‘सुकुल की बीवी’ उनके प्रमुख कहानी-संग्रह और ‘कुल्ली भाट’, ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ उनके चर्चित उपन्यास हैं। ‘चाबुक’ शीर्षक से उनके निबंधों की एक पुस्तक भी प्रसिद्ध है।


🇮🇳 वर्ष 1976 में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला पर भारत सरकार द्वारा डाक टिकट जारी किया जा चुका है।

साभार: hindwi.org

🇮🇳 प्रसिद्ध छायावादी #हिंदी #कवि, #उपन्यासकार, #निबन्धकार और #कहानीकार #सूर्यकान्त_त्रिपाठी_निराला जी की जयंती पर उन्हें साहित्यप्रेमियों की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 🇮🇳💐🙏

🇮🇳 वंदे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 🇮🇳🌹🙏

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

#कवि, #उपन्यासकार, #निबन्धकार  #कहानीकार #सूर्यकान्त_त्रिपाठी_निराला #Poet, #Novelist, #Essayist  #Storyteller #Suryakant_Tripathi_Nirala

First Female Freedom Fighter of Bharat | Kittur Rani Chennamma | कित्तूर की रानी, वीरांगना रानी चेन्नम्मा | 23 अक्टूबर, 1778 -21 फरवरी 1829

 



Queen of Kittur, #Veerangana Rani Chennamma कित्तूर की रानी, वीरांगना  रानी चेन्नम्मा

#First_Female_Freedom_Fighter of #Bharat |  #Kittur #Rani #Chennamma

🇮🇳 19वीं सदी की शुरुआत में देश के बहुत से शासक अंग्रेजों की बदनीयत को समझ नहीं पाए थे। लेकिन उस समय भी कित्तूर की रानी, रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी थी। 🇮🇳

🇮🇳 रानी चेन्नम्मा की कहानी लगभग झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की तरह है। इसलिए उनको 'कर्नाटक की लक्ष्मीबाई' भी कहा जाता है। वह पहली भारतीय शासक थीं जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया। भले ही अंग्रेजों की सेना के मुकाबले उनके सैनिकों की संख्या कम थी और उनको गिरफ्तार किया गया लेकिन ब्रिटिश शासन के खिलाफ बगावत का नेतृत्व करने के लिए उनको अब तक याद किया जाता है।

🇮🇳 चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर, 1778 को #ककाती में हुआ था। यह #कर्नाटक के #बेलगावी जिले में एक छोटा सा गॉंव है। उनकी शादी देसाई वंश के राजा #मल्लासारजा से हुई जिसके बाद वह कित्तूर की रानी बन गईं। कित्तूर अभी कर्नाटक में है। उनको एक बेटा हुआ था जिनकी 1824 में मौत हो गई थी। अपने बेटे की मौत के बाद उन्होंने एक अन्य बच्चे #शिवलिंगप्पा को गोद ले लिया और अपनी गद्दी का वारिस घोषित किया। लेकिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी 'हड़प नीति' के तहत उसको स्वीकार नहीं किया। हालांकि उस समय तक हड़प नीति लागू नहीं हुई थी फिर भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1824 में कित्तूर पर कब्जा कर लिया।

🇮🇳 ब्रिटिश शासन ने शिवलिंगप्पा को निर्वासित करने का आदेश दिया। लेकिन चेन्नम्मा ने अंग्रेजों का आदेश नहीं माना। उन्होंने बॉम्बे प्रेसिडेंसी के लेफ्टिनेंट गवर्नर लॉर्ड एलफिंस्टन को एक पत्र भेजा। उन्होंने कित्तूर के मामले में हड़प नीति नहीं लागू करने का आग्रह किया। लेकिन उनके आग्रह को अंग्रेजों ने ठुकरा दिया। इस तरह से ब्रिटिश और कित्तूर के बीच लड़ाई शुरू हो गई। अंग्रेजों ने कित्तूर के खजाने और आभूषणों के जखीरे को जब्त करने की कोशिश की जिसका मूल्य करीब 15 लाख रुपये था। लेकिन वे सफल नहीं हुए।

🇮🇳 अंग्रेजों ने 20,000 सिपाहियों और 400 बंदूकों के साथ कित्तूर पर हमला कर दिया। अक्टूबर 1824 में उनके बीच पहली लड़ाई हुई। उस लड़ाई में ब्रिटिश सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा। कलेक्टर और अंग्रेजों का एजेंट सेंट जॉन ठाकरे कित्तूर की सेना के हाथों मारा गया। चेन्नम्मा के सहयोगी #अमातूरबेलप्पा ने उसे मार गिराया था और ब्रिटिश सेना को भारी नुकसान पहुँचाया था। दो ब्रिटिश अधिकारियों सर वॉल्टर एलियट और स्टीवेंसन को बंधक बना लिया गया। अंग्रेजों ने वादा किया कि अब युद्ध नहीं करेंगे तो रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश अधिकारियों को रिहा कर दिया। लेकिन अंग्रेजों ने धोखा दिया और फिर से युद्ध छेड़ दिया। इस बार ब्रिटिश अफसर चैपलिन ने पहले से भी ज्यादा सिपाहियों के साथ हमला किया। सर थॉमस मुनरो का भतीजा और सोलापुर का सब कलेक्टर मुनरो मारा गया। रानी चेन्नम्मा अपने सहयोगियों #संगोल्ली_रयन्ना और #गुरुसिदप्पा के साथ जोरदार तरीके से लड़ीं। लेकिन अंग्रेजों के मुकाबले कम सैनिक होने के कारण वह हार गईं। उनको #बेलहोंगल के किले में कैद कर दिया गया। वहीं 21 फरवरी 1829 को उनकी मौत हो गई।

🇮🇳 भले ही चेन्नम्मा आखिरी लड़ाई में हार गईं लेकिन उनकी वीरता को हमेशा याद किया जाएगा। उनकी पहली जीत और विरासत का जश्न अब भी मनाया जाता है। हर साल कित्तूर में 22 से 24 अक्टूबर तक कित्तूर उत्सव लगता है जिसमें उनकी जीत का जश्न मनाया जाता है। रानी चेन्नम्मा को बेलहोंगल तालुका में दफनाया गया है। उनकी समाधि एक छोटे से पार्क में है जिसकी देखरेख सरकार के जिम्मे है।

🇮🇳 उनकी एक प्रतिमा नई दिल्ली के पार्लियामेंट कांप्लेक्स में लगी है। कित्तूर की रानी चेन्नम्मा की उस प्रतिमा का अनावरण 11 सितंबर, 2007 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने किया था। प्रतिमा को कित्तूर रानी चेन्नम्मा स्मारक कमिटी ने दान दिया था जिसे विजय गौड़ ने तैयार किया था।

साभार: navbharattimes.indiatimes.com

🇮🇳 झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के समान #कित्तूर_की_रानी, कर्नाटक की स्वतंत्रता सेनानी वीरांगना #रानी_चेन्नम्मा जी को उनके बलिदान दिवस पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि !

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🇮🇳 वंदे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 🇮🇳🌹🙏

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#आजादी_का_अमृतकाल #veerangana #queen_chennamma_of_kittur  #वीरांगना #कित्तूर_की_रानी_चेन्नम्मा 

Scientist Dr. Shanti Swaroop Bhatnagar | वैज्ञानिक डॉ. शांति स्वरूप भटनागर | 21 फरवरी 1894 – 1 जनवरी 1955





 🇮🇳 Dr. Shanti Swarup Bhatnagar डॉ. शांति स्वरूप भटनागर वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के संस्थापक निदेशक (और बाद में पहले महानिदेशक) थे, जिन्हें कई वर्षों में बारह राष्ट्रीय प्रयोगशालाएँ स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। डॉ. भटनागर ने स्वतंत्र होने के बाद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी बुनियादी ढाँचे के निर्माण और भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

 🇮🇳  शांति स्वरूप भटनागर, (21 फरवरी 1894 – 1 जनवरी 1955) जाने माने भारतीय वैज्ञानिक थे। इनका जन्म शाहपुर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। इनके पिता परमेश्वरी सहाय भटनागर की मृत्यु तब हो गयी थी, जब ये केवल आठ महीने के ही थे। इनका बचपन अपने ननिहाल में ही बीता।

🇮🇳 डॉ. भटनागर ने सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। 

वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पहले अध्यक्ष थे। वह शिक्षा मंत्रालय के सचिव और सरकार के शैक्षिक सलाहकार थे। वह प्राकृतिक संसाधन और वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय के पहले सचिव और परमाणु ऊर्जा आयोग के सचिव भी थे। उन्होंने भारत के राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मैग्नेटो रसायन विज्ञान और इमल्शन के भौतिक रसायन विज्ञान के क्षेत्र में उनके शोध योगदान को व्यापक रूप से मान्यता मिली।

🇮🇳 1936 में, डॉ. भटनागर को ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर (ओबीई) से सम्मानित किया गया था। 1941 में उन्हें नाइट की उपाधि दी गई और 1943 में उन्हें रॉयल सोसाइटी, लंदन का फेलो चुना गया। उन्हें 1954 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 डॉ. भटनागर ने 1913 में पंजाब विश्वविद्यालय की इंटरमीडिएट परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और बीएससी की डिग्री के लिए फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिला लिया। 1916 में स्नातक की डिग्री लेने के बाद उन्होंने फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज के भौतिकी और रसायन विज्ञान विभाग में प्रदर्शक के रूप में अपना पहला औपचारिक रोजगार करने का फैसला किया। बाद में वे दयाल सिंह कॉलेज में सीनियर डिमॉन्स्ट्रेटर बन गये। हालाँकि, रोजगार ने भटनागर के उच्च अध्ययन के प्रयासों में बाधा नहीं डाली। उन्होंने फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज में रसायन विज्ञान में एमएससी पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया।

🇮🇳 अपनी मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद वह 1921 में लंदन विश्वविद्यालय से डीएससी पूरा करने के लिए इंग्लैंड चले गए। भटनागर उसी वर्ष भारत लौट आए और 1928 में बीएचयू और बाद में पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर में शामिल हो गए, भटनागर ने डॉ. एन. माथुर के साथ संयुक्त रूप से एक उपकरण का आविष्कार किया जिसका नाम है बीएच-एमआईबी, जिसे लंदन की एक कंपनी द्वारा रॉयल सोसाइटी में प्रदर्शित किया गया था।

🇮🇳 डॉ. भटनागर ने कई औद्योगिक समस्याओं का नवीन समाधान प्रदान किया और विश्वविद्यालयों में व्यक्तिगत मौद्रिक लाभ अनुसंधान सुविधाओं को लगातार अस्वीकार कर दिया। 1 जनवरी 1955 को दिल का दौरा पड़ने से डॉ. भटनागर की मृत्यु हो गई।

🇮🇳 उनके सम्मान में प्रतिष्ठित पुरस्कार "शांति स्वरूप भटनागर (एसएसबी) विज्ञान और प्रौद्योगिकी पुरस्कार" की स्थापना की गई थी।


साभार: ssbprize.gov.in

🇮🇳 #पद्मभूषण से सम्मानित; प्रयोगशालाओं के पितामह प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक #डॉ_शान्ति_स्वरूप_भटनागर जी को उनकी जयंती पर हार्दिक श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 🇮🇳🌹🙏

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

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Makar Sankranti मकर संक्रांति

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