16 मार्च 2024

Freedom fighter | Jugal Kishore Saxena | स्वतंत्रता सेनानी | जुगल किशोर सक्सेना

 


Freedom fighter | Jugal Kishore Saxena | स्वतंत्रता सेनानी | जुगल किशोर सक्सेना

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🇮🇳 हम पर वतन का कर्ज था, हमने चुका दिया 🇮🇳

🇮🇳 बस्ती की टीन की जेल। मई-जून का तपता महीना और 24 घंटे में सिर्फ एक तसला पानी। हर पल की घुटन। बावजूद इसके आजादी के इस दीवाने ने हौसला नहीं छोड़ा। वंदेमातरम ने नारों में जोश कायम रखा। 

🇮🇳 हम यहाँ बात कर रहे हैं स्वतंत्रता सेनानी #जुगल_किशोर_सक्सेना की। उन्हें याद करके उनके बेटे कहते हैं कि 'पिता उन घटनाओं को सुनाते हुए भावुक हो जाते थे। कहते थे, ऐसे ही नहीं मिली है आजादी। इसके लिए देश के सपूतों ने बड़े जुल्म सहे है।'

🇮🇳 आजादी की लड़ाई में इलाके के सूरमाओं ने गोरों को कभी पीठ नहीं दिखाई। ऐसे ही थे जुगल किशोर सक्सेना। पिता #बटेश्वरदयाल और माँ #धनु_कुंवर के यहाँ जून 1924 में उनका जन्म #डड़ौना गाँव में हुआ। जन्म के ढाई साल बाद ही माँ चल बसीं। उनकी तेरहवीं भी नहीं हो पाई थी कि पिता भी साथ छोड़ गए। कोई भाई-बहन नहीं थे। परिवार के अन्य घरों में इनका पालन हुआ। वह मिडिल तक ही पढ़ पाए। अनाथ होने के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए। 16 साल की उम्र में वह सत्याग्रह आंदोलन में कूद पड़े। दिल्ली जाते समय पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 

🇮🇳 जुगल किशोर सक्सेना छापामार लड़ाई में माहिर थे। सरकारी डाक लूटकर नष्ट कर देते थे। अंग्रेजों ने उनके खिलाफ वारंट जारी किया तो काफी समय जंगल में रहे। 1941 में सत्याग्रह आंदोलन शुरू होने पर वह दिल्ली की ओर बढ़े, लेकिन पकड़े गए। जेल में क्रांतिकारियों पर अत्याचार देख थाली बजाकर प्रदर्शन किया। जेल से छूटने के बाद वह फिर आजादी के लिए संघर्ष करते रहे। 

🇮🇳 इन्हें #मैनपुरी जेल ले जाया गया। वहाँ कैदियों को जली रोटियाँ खाने के लिए मिलती थीं। ऐसे में वह विरोध के अगुआ बने तो अन्य कैदी भी साथ हो लिए। नाराज जेलर ने #बस्ती जेल भेज दिया। यह जेल टीन की थी। मई-जून की भीषण गर्मी में इन्हें 24 घंटे में एक तसला पानी दिया जाता था। इसमें सभी जरूरतें पूरी करनी होती थीं। हालत खराब होने लगी, शरीर में दाने निकल आए। गोरों ने लिखित माफी माँगने पर सजा माफ करने का प्रलोभन दिया। मगर जुल्म सहते रहे और हार नहीं मानी। छह माह की सजा काटने के बाद भी उनके तेवरों में कमी नहीं आई। आजादी की लड़ाई लड़ते रहे। 77 वर्ष की उम्र में कैंसर से जूझते हुए 22 मई 2001 को चिरनिद्रा में लीन हो गए।

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🇮🇳 माँ भारती को परतंत्रता की बेडियों से मुक्ति दिलाने के लिए क्रूर ब्रिटिश शासकों द्वारा अमानवीय यातनायें सहकर अपने प्राणों की आहुति देने वाले अमर क्रांतिकारी को कोटि-कोटि नमन !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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