21 फ़रवरी 2024

First Female Freedom Fighter of Bharat | Kittur Rani Chennamma | कित्तूर की रानी, वीरांगना रानी चेन्नम्मा | 23 अक्टूबर, 1778 -21 फरवरी 1829

 



Queen of Kittur, #Veerangana Rani Chennamma कित्तूर की रानी, वीरांगना  रानी चेन्नम्मा

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🇮🇳 19वीं सदी की शुरुआत में देश के बहुत से शासक अंग्रेजों की बदनीयत को समझ नहीं पाए थे। लेकिन उस समय भी कित्तूर की रानी, रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी थी। 🇮🇳

🇮🇳 रानी चेन्नम्मा की कहानी लगभग झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की तरह है। इसलिए उनको 'कर्नाटक की लक्ष्मीबाई' भी कहा जाता है। वह पहली भारतीय शासक थीं जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया। भले ही अंग्रेजों की सेना के मुकाबले उनके सैनिकों की संख्या कम थी और उनको गिरफ्तार किया गया लेकिन ब्रिटिश शासन के खिलाफ बगावत का नेतृत्व करने के लिए उनको अब तक याद किया जाता है।

🇮🇳 चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर, 1778 को #ककाती में हुआ था। यह #कर्नाटक के #बेलगावी जिले में एक छोटा सा गॉंव है। उनकी शादी देसाई वंश के राजा #मल्लासारजा से हुई जिसके बाद वह कित्तूर की रानी बन गईं। कित्तूर अभी कर्नाटक में है। उनको एक बेटा हुआ था जिनकी 1824 में मौत हो गई थी। अपने बेटे की मौत के बाद उन्होंने एक अन्य बच्चे #शिवलिंगप्पा को गोद ले लिया और अपनी गद्दी का वारिस घोषित किया। लेकिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी 'हड़प नीति' के तहत उसको स्वीकार नहीं किया। हालांकि उस समय तक हड़प नीति लागू नहीं हुई थी फिर भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1824 में कित्तूर पर कब्जा कर लिया।

🇮🇳 ब्रिटिश शासन ने शिवलिंगप्पा को निर्वासित करने का आदेश दिया। लेकिन चेन्नम्मा ने अंग्रेजों का आदेश नहीं माना। उन्होंने बॉम्बे प्रेसिडेंसी के लेफ्टिनेंट गवर्नर लॉर्ड एलफिंस्टन को एक पत्र भेजा। उन्होंने कित्तूर के मामले में हड़प नीति नहीं लागू करने का आग्रह किया। लेकिन उनके आग्रह को अंग्रेजों ने ठुकरा दिया। इस तरह से ब्रिटिश और कित्तूर के बीच लड़ाई शुरू हो गई। अंग्रेजों ने कित्तूर के खजाने और आभूषणों के जखीरे को जब्त करने की कोशिश की जिसका मूल्य करीब 15 लाख रुपये था। लेकिन वे सफल नहीं हुए।

🇮🇳 अंग्रेजों ने 20,000 सिपाहियों और 400 बंदूकों के साथ कित्तूर पर हमला कर दिया। अक्टूबर 1824 में उनके बीच पहली लड़ाई हुई। उस लड़ाई में ब्रिटिश सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा। कलेक्टर और अंग्रेजों का एजेंट सेंट जॉन ठाकरे कित्तूर की सेना के हाथों मारा गया। चेन्नम्मा के सहयोगी #अमातूरबेलप्पा ने उसे मार गिराया था और ब्रिटिश सेना को भारी नुकसान पहुँचाया था। दो ब्रिटिश अधिकारियों सर वॉल्टर एलियट और स्टीवेंसन को बंधक बना लिया गया। अंग्रेजों ने वादा किया कि अब युद्ध नहीं करेंगे तो रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश अधिकारियों को रिहा कर दिया। लेकिन अंग्रेजों ने धोखा दिया और फिर से युद्ध छेड़ दिया। इस बार ब्रिटिश अफसर चैपलिन ने पहले से भी ज्यादा सिपाहियों के साथ हमला किया। सर थॉमस मुनरो का भतीजा और सोलापुर का सब कलेक्टर मुनरो मारा गया। रानी चेन्नम्मा अपने सहयोगियों #संगोल्ली_रयन्ना और #गुरुसिदप्पा के साथ जोरदार तरीके से लड़ीं। लेकिन अंग्रेजों के मुकाबले कम सैनिक होने के कारण वह हार गईं। उनको #बेलहोंगल के किले में कैद कर दिया गया। वहीं 21 फरवरी 1829 को उनकी मौत हो गई।

🇮🇳 भले ही चेन्नम्मा आखिरी लड़ाई में हार गईं लेकिन उनकी वीरता को हमेशा याद किया जाएगा। उनकी पहली जीत और विरासत का जश्न अब भी मनाया जाता है। हर साल कित्तूर में 22 से 24 अक्टूबर तक कित्तूर उत्सव लगता है जिसमें उनकी जीत का जश्न मनाया जाता है। रानी चेन्नम्मा को बेलहोंगल तालुका में दफनाया गया है। उनकी समाधि एक छोटे से पार्क में है जिसकी देखरेख सरकार के जिम्मे है।

🇮🇳 उनकी एक प्रतिमा नई दिल्ली के पार्लियामेंट कांप्लेक्स में लगी है। कित्तूर की रानी चेन्नम्मा की उस प्रतिमा का अनावरण 11 सितंबर, 2007 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने किया था। प्रतिमा को कित्तूर रानी चेन्नम्मा स्मारक कमिटी ने दान दिया था जिसे विजय गौड़ ने तैयार किया था।

साभार: navbharattimes.indiatimes.com

🇮🇳 झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के समान #कित्तूर_की_रानी, कर्नाटक की स्वतंत्रता सेनानी वीरांगना #रानी_चेन्नम्मा जी को उनके बलिदान दिवस पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 वंदे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 🇮🇳🌹🙏

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

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