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20 मार्च 2024

Jaipal Singh Munda | जयपाल सिंह मुंडा

 



हर साल 20 मार्च को झारखंड के महान नेता, शिक्षाविद और हॉकी के अभूतपूर्व खिलाड़ी रहे 'मरांग गोमके' जयपाल सिंह मुंडा को उनकी परिनिर्वाण दिवस के मौके पर याद किया जाता है। मरांग गोमके एक उपाधि है, आदिवासी परंपरा में इसे सबसे बड़ा नेता कहा जाता है। यह उनकी प्रासंगिकता आज भी आदिवासी जीवन में जल, जंगल, जमीन के संघर्ष ‘आबुआ दिसुम आबुआ राज’ से जुड़ा है।

🇮🇳 जयपाल सिंह मुंडा का जन्म #झारखंड (सन् 2000 के पूर्व बिहार) की राजधानी #रांची से करीब 18 किलोमीटर दक्षिण, #खूंटी जिले के #टकरा_पाहनटोली में हुआ था। खूंटी से मात्र पाँच मील अर्थात आठ किलोमीटर दूरी पर अवस्थित टकरा पाहनटोली (सरना धर्म के पुजारियों का टोला) है, जो अब लगभग ईसाई गाँव में तब्दील हो गया है। यहाँ एक चर्च और प्राइमरी स्कूल है। जयपाल सिंह मुंडा का प्रारम्भिक नाम #प्रमोद_पाहन था। जयपाल सिंह ने अपनी जीवनी में लिखा है– “मेरा नाम किसने और कब बदला, मुझे नहीं मालूम। वह 1911 की 3 जनवरी थी, जिस दिन मेरा नाम बदल गया होगा। तब मैं 8-10 साल का रहा होउँगा। घर के लोग मुझे प्रमोद कहते थे और 3 जनवरी के पहले तक यही नाम था। लेकिन, 3 जनवरी, 1911 को जब मैं अपने बाबा (पिता) #अमरू_पाहन की उंगली थामे, सकुचाते हुए रांची के संत पॉल स्कूल पहुँचा तो न सिर्फ मेरी पैदाइश की तारीख बदल गयी, बल्कि मेरा नाम ही बदल गया।”

🇮🇳 संत पॉल स्कूल नाम लिखाने से पहले ही टकरा के प्राइमरी स्कूल के शिक्षक लूकस सर से हिंदी और गणित की शिक्षा प्राप्त कर चुके थे। संत पॉल स्कूल के तत्कालीन प्रधानाध्यपक कैनन कॉसग्रोव थे। उन्होंने अपनी पारखी नजरों से जयपाल सिंह की प्रतिभा को परख लिया था। छात्र जयपाल पढ़ाई में जितने तेज थे, उतने ही खेलकूद और अन्य गतिविधियों में अग्रणी थे। कॉसग्रोव उनकी इस बहुमुखी प्रतिभा से प्रभावित थे, बल्कि उन्हें अपना सर्वप्रिय छात्र बना लिया था। जयपाल सिंह को संत पॉल में पढ़ते हुए छह साल हो गए थे कि 1918 में कॉसग्रोव सेवानिवृत होकर इंग्लैंड चले गए।

🇮🇳 कॉसग्रोव लौटते वक्त अपने साथ छात्र जयपाल सिंह को भी इंग्लैंड ले जा रहे थे। “जब चारों ओर खबर फैल गई कि कॉसग्रोव भारत छोड़कर इंग्लैंड अपने देश वापस जा रहे हैं… लेकिन, जिस बात की चर्चा ज्यादा थी और जिस बात से लोग हैरत में थे, वह यह थी कि कॉसग्रोव अपने संग मुझे ले जा रहे थे।”

🇮🇳 रांची में रहते हुए जयपाल सिंह को सबसे ज्यादा अपनी माँ की याद आती थी। वह अक्सर अपनी माँ को यादकर भावुक हो जाते थे। माँ को याद करते हुए वे लिखते हैं– “मैं माँ का बहुत प्यारा था।… माँ एक साधारण आदिवासी औरत थी। ममत्व और दयालुता से भरी-पूरी बहुत ही सुंदर, पर एक रूढ़िवादी स्त्री थी। दस-पन्द्रह दिनों के भीतर वह एक बार जरूर रांची आती थी, मुझसे मिलने। आने पर मुर्गा बनाती। वह कॉसग्रोव को बहुत पसंद नहीं करती थी। इस बात से हमेशा सशंकित रहती थी कि कॉसग्रोव मुझे ईसाई बना देगा। शायद इसलिए कॉसग्रोव भी दूरी बरतते थे। लेकिन, मैं माँ की इच्छा का सम्मान नहीं रख सका। मेरी नजदीकियां कॉसग्रोव के साथ लगातार बढ़ती गईं और उसने मुझे ईसाई बना ही दिया।”

🇮🇳 #तारा_बनर्जी राजनीतिक रूप से अत्यंत प्रतिष्ठित बंगाली परिवार की बेटी थीं। तारा के नाना #ओमेश_चंद्र_बनर्जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सह-संस्थापक और पहले अध्यक्ष थे। माँ #एग्नेस_मजूमदार और पिता #जी_के_मजूमदार की बंगाली समाज में काफी प्रतिष्ठा थी। जयपाल सिंह ने तारा को शादी के लिए प्रस्ताव दिया और तारा तथा उसके परिवार से सहमति मिलते ही #दार्जिलिंग में दोनों का विवाह 1932 में ईसाई रीति से हो गया।

🇮🇳 जयपाल सिंह कुछ दिनों तक पारिवारिक जीवन का आनंद ले ही रहे थे कि ऑयल कंपनी ने उनकी नौकरी के कॉन्ट्रैक्ट का नवीनीकरण करने से मना कर दिया। आजीविका की तलाश में उन्हें अफ्रीका जाकर एक कॉलेज में शिक्षक की नौकरी करनी पड़ी। तारा कुछ दिन साथ रहकर दार्जिलिंग वापस लौट आईं। इसी बीच जयपाल सिंह एक अफ्रीकी महिला ग्रेस के मोहपाश में पड़ गए। यह बात 1934-36 की है।

सन् 1937 में वे रायपुर के राजकुमार कॉलेज में रहे। लेकिन, कॉलेज के प्रिंसिपल स्मिथ पीयर्स से ठन जाने के कारण जयपाल सिंह को कॉलेज की नौकरी त्यागनी पड़ी। जल्द ही उन्हें बीकानेर राज्य में नौकरी मिल गई। लेकिन, ईमानदारी के कारण वहाँ भी नौकरी छोड़नी पड़ी और फिर वे #कश्मीर #राजा_हरि_सिंह के बेटे #कर्ण_सिंह को पढ़ाने के लिए चले गए। कश्मीर की आबोहवा तारा को रास नहीं आई और वह बीमार हो गईं। अतः जयपाल सिंह को कश्मीर छोड़ना पड़ा।

🇮🇳 अफसोस है कि जयपाल सिंह मुंडा का मूल्यांकन निर्मम रूप से एकपक्षीय है। उनका सही मूल्यांकन समग्रता में होना चाहिए। एक महान आदिवासी नेता, झारखंड आंदोलन को बेहतर नेतृत्व देने वाला नेता और एक महान खिलाड़ी जिसके नेतृत्व में गुलाम भारत ने पहली दफा गोल्ड मेडल जीता। आईसीएस जैसी नौकरी को त्यागकर आंदोलन के लिए सब कुछ न्यौछावर कर देने वाला व्यक्ति और एक सरल, सहज आदिवासी, जो कांग्रेसियों के छल-कपट को समझ नहीं पाया। जैसे कि छल से एकलव्य से अँगूठा माँग लिया गया था।

🇮🇳 बहरहाल, आदिवासियों के लिए उनका संघर्ष संविधान सभा में उनके भाषण में साफ झलकता है। यही उन्हें मारंग गोमके यानी सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित करता है। इसके बावजूद वर्ष 2000 में झारखंड के अलग बनने के बाद उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पाया है।

प्रस्तुति: देवेंद्र शरण

(संपादन : समीक्षा सहनी/नवल/अनिल)

संदर्भ : मरङ गोमके जयपाल सिंह मुंडा, अश्विनी कुमार पंकज, प्रभात प्रकाशन, 2020 

साभार: forwardpress.in

#Dr_Jaipal_Singh_Munda

#death anniversary

🇮🇳 1928 में एम्सटर्डम (नेदरलैंड्स) में हुए #ओलिंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय #हॉकी टीम के कप्तान, संविधान बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले महान आदिवासी नेता, शिक्षाविद 'मरांग गोमके' #डॉ_जयपाल_सिंह_मुंडा जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Nisha millet | निशा मिलेट | Swimmer

 



निशा मिलेट (जन्म- 20 मार्च, 1982) भारत की जानी-मानी महिला #तैराक #swimmer हैं। वह भारत के लिए 2000 सिडनी ओलंपिक तैराकी टीम में अर्जुन पुरस्कार जीतने वाली एकमात्र महिला थीं। राष्ट्रीय खेलों की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के लिए प्रधानमंत्री का पुरस्कार उन्होंने 1997 और 1999 में प्राप्त किया।

🇮🇳 निशा मिलेट को पाँच साल की उम्र में डूबने का अनुभव था, जिसके बाद उनके पिता ने उन्हें अपने डर से उबरने के लिए तैराकी सीखने के लिए मनाया।

🇮🇳 1991 में निशा ने अपने पिता के मार्गदर्शन में, ऑबरे शेनयायनगर क्लब, चेन्नई से तैरने का तरीका सीखा और 1992 में चेन्नई में 50 मीटर फ्री स्टाइल में अपना पहला राज्य स्तर का पदक जीता।

🇮🇳 1994 में निशा मिलेट ने हांगकांग के एशियाई आयु समूह चैंपियनशिप में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पदक जीता। यह उनके शासन काल की शुरुआत थी।

🇮🇳 वह 1999 में राष्ट्रीय खेलों में 14 स्वर्ण पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय एथलीट थीं।

🇮🇳 निशा मिलेट ने अपने कॅरियर की ऊँचाई पर 200 सी फ्री स्टाइल में 2000 सिडनी ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था, जहाँ उन्होंने शुरुआत में अच्छा किया; परन्तु सेमी फाइनल तक ना पहुँच पाई।

🇮🇳 निशा ने 100 मीटर फ्री स्टाइल में एक मिनट के बाधा को तोड़ने वाला पहला भारतीय तैराक होने का गौरव भी हासिल किया था।

🇮🇳 उन्होंने बहुत-से सम्मान भी हासिल किए-

★ 2003 में एफ्रो-एशियन गेम्स, महिला बैकस्ट्रोक रजत पदक भी प्राप्त किया।

★ 2002 में कर्नाटक राज्य एकलव्य पुरस्कार प्राप्त किया।

★ 1999 में मणिपुर राष्ट्रीय खेलों में खेल में सर्वोच्च स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

★ राष्ट्रीय खेलों की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के लिए प्रधानमंत्री का पुरस्कार 1997 और 1999 में प्राप्त किया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #अर्जुन_पुरस्कार जीतने वाली एकमात्र महिला; भारत की जानी-मानी तैराक #निशा_मिलेट जी को जन्मदिन की ढेरों बधाई एवं अनंत शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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15 मार्च 2024

Guru hanuman | vijay pal | wrestler | गुरु हनुमान | विजय पाल | पहलवान

 



भारतीय कुश्‍ती के पितामह माने जाने वाले #गुरु_हनुमान यानी #विजय_पाल गुरुओं के गुरु थे. उन्‍होंने इंटरनेशनल कुश्‍ती मानकों के साथ आधुनिक भारतीय कुश्‍ती और पारंपरिक भारतीय कुश्‍ती शैली यानी पहलवानी को मिलाकर एक खाका तैयार किया था. समय के साथ उन्‍होंने लगभग सभी फ्री स्‍टाइल इंटरनेशनल पहलवानों को कोचिंग दी और जो गुरु हनुमान के शिष्‍य थे, वें आज खुद गुरु बनकर भारतीय कुश्‍ती को अधिक ऊंचाईयों तक लेकर जा रहे हैं. बतौर खिलाड़ी और कोच गुरु हनुमान दिग्‍गज थे. भारतीय कुश्‍ती में उनके योगदान के कारण उन्‍हें पितामाह कहा जाता है. दो बार के ओलिंपिक मेडलिस्‍ट #सुशील_कुमार के गुरु #सतपाल_सिंह उनके शिष्‍य थे.

🇮🇳 15 मार्च 1901 को राजस्‍थान के #चिड़ावा में जन्‍मे गुरु हनुमान का सपना शुरुआत से ही एक अच्‍छा पहलवान बनने का था, उन्‍होंने स्‍कूल छोड़कर कम उम्र में ही गांव के अखाड़े में पहलवानी करनी शुरू कर दी. 1919 में वह बिरला मिल्‍स के पास सब्‍जी मंडी में अपनी दुकान जमाने के लिए दिल्‍ली आ गए. मगर दुकानदार की बजाय वह पहलवान बन गए और इस फील्‍ड में उन्‍होंने जल्‍दी लोकप्रियता हासिल कर ली. गुरु हनुमान का पहलवानी के प्रति लग्‍न को देखते हुए मशहूर उद्योगपति कृष्‍णकुमार बिडला ने उन्‍हें अखाड़ा स्‍थापित करने के लिए जमीन दे दी और आजादी के बाद तो यह अखाड़ा दिल्‍ली के पहलवानों के लिए मंदिर समान हो गया. उनके तीन में से दो शिष्‍य #सुदेश_कुमार और #प्रेम_नाथ ने 1958 कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स में गोल्‍ड मेडल जीता था. जबकि बाकी शिष्‍य #सतपाल_सिंह और #करतार_सिंह ने 1982 और 1986 में एशियन गेम्‍स में गोल्‍ड मेडल जीता. गुरु हनुमान के 8 शिष्‍यों में सर्वोच्च भारतीय खेल सम्मान अजुर्न अवॉर्ड से भी नवाजा गया.

🇮🇳 गुरु हनुमान के पास 1970 तक भी मॉर्डन मैट नहीं था. वह सिर्फ नेचुरल टैलेंट पर काम करते थे. गुरु हनुमान गांव के युवा लड़कों के साथ काम करते थे, जो भारतीय स्‍टाइल में फाइट के आदी थे. जो ज्‍यादा से ज्‍यादा 40 मिनट तक लड़ सकते थे. गुरु हनुमान ने उन पर काम किया.

1974 कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के गोल्‍ड मेडलिस्‍ट प्रेमनाथ ने अपने गुरु के बारे में बताया था कि बीमारी में भी उनके गुरु अभ्‍यास करवाते थे. वो मेहनत से कभी पीछे नहीं भागते थे. अभ्‍यास में सुबह 4 बजे उठकर सबसे पहले दौड़, फिर इसके बाद बाउट का अभ्‍यास, किसी के गिरने से पहले पहले कम से कम 30 मिनट तक मुकाबला, इसके अलावा रस्सियों पर चढ़ना, 100 पुशअप ये सब तब करना होता अभ्‍यास में शामिल थे. और ये सब गुरुजी के दोपहर के खाने के फैसले तक करना होता था.

🇮🇳 गुरु हनुमान की 1999 में दर्दनाक हादसे में मौत हो गई थी. 24 मई को वे हरिद्वार जा रहे थे और कार दुर्घटना में उन्‍होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. जो खेल जगत और खासकर कुश्‍ती के लिए बहुत बड़ी हानि थी.

साभार: news18.com

🇮🇳 भारत के महान कुश्ती प्रशिक्षक व विश्वप्रसिद्ध #पहलवान #गुरु_हनुमान #wrestler #guru_hanuman जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Pooja Gehlot | पूजा गहलोत | wrestler | पहलवान

 


राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अनेक पदक अपने नाम करने वाली, सोनीपत (हरियाणा) में जन्मी भारतीय महिला फ्रीस्टाइल #पहलवान #पूजा_गहलोत #wrestler #pooja_gehlot जी को #जन्मोत्सव #birthday celebration के शुभ अवसर पर मेरी ओर से भी ढेरों बधाई एवं सफल जीवन की अनंत शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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11 मार्च 2024

Vijay Hazare | Cricketer

 



🇮🇳 #Padmashree honored; Humble tribute to India's renowned cricketer #Vijay_Hazare ji on his birth anniversary!

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व


#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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10 मार्च 2024

Priyanka Goswami | प्रियंका गोस्वामी | महिला एथलीट | Female Athlete | जन्म- 10 मार्च, 1996

 



प्रियंका गोस्वामी (जन्म- 10 मार्च, 1996) भारतीय #महिला_एथलीट  #female_ athleteहैं। उन्होंने बर्मिघम, इंग्लैंड में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स, 2022 में कमाल का प्रदर्शन करते हुए महिलाओं की 10 हजार मीटर रेस वॉक (पैदल चाल) में भारत के लिये रजत पदक जीता है। इस खिलाड़ी ने अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए देश को पदक दिलाया। प्रियंका गोस्वामी ने 43:38.82 समय में रेस पूरी की। इस जीत के साथ ही प्रियंका गोस्वामी ने इतिहास रच दिया है। वह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं, जिसने कॉमनवेल्थ गेम्स में पैदल चाल में पदक हासिल किया है। प्रियंका गोस्वामी ने टोक्यो ओलिंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था, लेकिन तब वह 17वें स्थान पर रही थीं।

🇮🇳 #प्रियंका गोस्वामी भारतीय रेलवे में कार्यरत हैं। वह मूल रूप से #मेरठ, #उत्तर_प्रदेश की रहने वाली हैं। उन्होंने 20 किलोमीटर वॉक रेस में देश के लिए कई पदक जीते हैं। उन्होंने 2021 में टोक्यो ओलिंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था। प्रियंका गोस्वामी के पिता #मदनपाल_गोस्वामी यूपी रोडवेज में कंडक्टर की नौकरी करते थे, पर किसी कारण से उनकी नौकरी चली गई। जिसके बाद घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई।

🇮🇳 प्रियंका गोस्वामी ने मेरठ के गर्ल्स स्कूल और बीके माहेश्वरी से स्कूली शिक्षा पूरी की। बीए की पढ़ाई पटियाला में की। इस दौरान पिता टैक्सी चलाकर, आटा चक्की और छोटे-मोटे कामकर जैसे-तैसे चार से पाँच हजार रुपये भेजते थे।

🇮🇳 प्रियंका गोस्वामी ने कॉमनवेल्थ गेम्स, 2022 की 10000 मीटर पैदल चाल स्पर्धा में रजत पदक जीता। उन्होंने अपना निजी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और इस लंबी दूरी को 49 मिनट 38 सेकंड में पूरा किया। इसी के साथ उन्होंने #मुरली_श्रीशंकर (लम्बी कूद में रजत) और #तेजस्विन_शंकर (ऊँची कूद में कांस्य) की लिस्ट में अपना नाम शामिल करा लिया, जिन्होंने इन खेलों की ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं में पदक जीते।

🇮🇳 टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकीं प्रियंका गोस्वामी ने वॉक के पहले चरण में बहुत तेजी से बढ़त बना ली और खुद को 4000 मीटर (4 कि.मी.) के निशान के बाद पहले स्थान पर बनाए रखा। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया की जेमिमा मोंटाग और केन्या की एमिली वामुसी एनजी से वह पीछे रह गईं। 8 कि.मी. के बाद प्रियंका गोस्वामी तीसरे स्थान पर खिसक गई थीं, लेकिन अंतिम मिनट में 2 कि.मी. की दूरी तय करने के बाद भारतीय एथलीट को फायदा हुआ।

🇮🇳 #जेमिमा_मोंटाग ने 42:38 का समय लेकर स्वर्ण पदक जीता, जबकि प्रियंका गोस्वामी दूसरे स्थान पर रहीं। प्रतियोगिता में शामिल अन्य भारतीय #भावना_जाट 8वें स्थान पर रहीं। इसके साथ ही प्रियंका गोस्वामी कॉमनवेल्थ गेम्स की रेस-वॉक स्पर्धा में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं। वह कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक जीतने वाली दूसरी रेसवॉकर भी हैं। उनसे पहले #हरमिंदर_सिंह ने 2010 खेलों में 20 मीटर रेसवॉक में कांस्य पदक जीता था।

🇮🇳 वर्ष 2007 में प्रियंका गोस्वामी ने जिमनास्टिक में भाग लेना शुरू कर दिया था। उनके माता-पिता और शिक्षकों ने उनका काफी सपोर्ट किया।

🇮🇳 जिमनास्टिक की ट्रेनिंग के लिए प्रियंका को राज्य सरकार द्वारा संचालित छात्रावास लखनऊ भेजा जा रहा था लेकिन उन्होंने मेरठ के ही स्टेडियम में प्रशिक्षण प्राप्त करने का फैसला लिया। कुछ समय तक जिमनास्टिक की ट्रेनिंग लेने के बाद जिमनास्टिक से उनकी रूचि खत्म हो गई और उन्होंने मेरठ छात्रावास छोड़ दिया।

🇮🇳 उन्होंने खेलों से 3-4 साल का ब्रेक लिया। हालांकि उन्होंने अपना साहस सँभाला और स्टेडियम में दोबारा से लौटने का फैसला किया। लगातार दो महीने तक कोच से कठोर शारीरिक प्रशिक्षण प्राप्त किया।

🇮🇳 पटियाला से ग्रेजुएशन करने के बाद प्रियंका गोस्वामी को बेंगलूरू साईं सेंटर में निःशुल्क प्रशिक्षण मिलना शुरू हुआ।

🇮🇳 प्रियंका गोस्वामी ने रेस के शुरुआती दिनों में 800 और 1500 मीटर रेस प्रतियोगिता में भाग लिया लेकिन इन प्रतियोगिताओं में सफल नहीं हुई। जिसके बाद उन्होंने वर्ष 2011 में जिला स्तर के रेस प्रतियोगिता में भाग लिया और तीसरा स्थान प्राप्त किया। इस प्रतियोगिता में तीसरा स्थान प्राप्त करने पर उन्हें इनाम स्वरूप स्कूल बैग भेंट किया गया।

🇮🇳 वर्ष 2011 में पहला पदक हासिल करने के बाद प्रियंका ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक रेस प्रतियोगिताओं में भाग लिया।

🇮🇳 वर्ष 2015 में उन्होंने तिरुअनंतपुरम में आयोजित नेशनल चैंपियनशिप रेस प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता।

🇮🇳 वर्ष 2017 में दिल्ली में आयोजित नेशनल रेस वॉकिंग चैंपियनशिप में करतब दिखाते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया।

🇮🇳 वर्ष 2018 में स्पोर्ट कोटा के माध्यम से रेलवे विभाग में क्लर्क का पद हासिल किया।

🇮🇳 13 फरवरी, 2021 को उन्होंने रांची में 8वीं ओपन नेशनल और इंटरनेशनल रेस वॉकिंग चैंपियनशिप में राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया।

🇮🇳 नेशनल और इंटरनेशनल दौड़ जीतने के बाद प्रियंका गोस्वामी ने टोक्यो ओलंपिक, 2020 और अमेरिका के ओरेगन में होने वाले विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के लिए क्वालीफाई किया।

🇮🇳 प्रियंका गोस्वामी ने जूनियर, सीनियर और नेशनल लेवल पर अब तक 60 पदक भारत के नाम किये हैं, जिसमें से दो रजत पदक राष्ट्रीय स्तर पर और एक स्वर्ण पदक अखिल भारतीय रेलवे प्रतियोगिता स्तर पर प्राप्त किया है। इसके अलावा उन्होंने इटली में आयोजित वर्ल्ड वॉक चैंपियनशिप और जापान में आयोजित एशियन वॉक चैंपियनशिप में भी भाग लिया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 बर्मिघम, इंग्लैंड में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स, 2022 में रजत पदक जीतकर इस खेल में पहली पदक विजेता बनी भारतीय महिला #एथलीट #रेसवॉकर (पैदल चालक) #प्रियंका_गोस्वामी जी को जन्मदिवस की वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर ढेरों बधाई एवं शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...