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How our Gurukuls were closed | हमारे गुरुकुल कैसे बन्द हुए | लेखक : नलीन चंद्र

  इंग्लैंड में पहला स्कूल school 1811 में खुला उस समय भारत में 7,32,000 #गुरुकुल #Gurukul  थे, आइए जानते हैं हमारे गुरुकुल #Gurukul कैसे बन्द हुए। हमारे #सनातन #Sanatan #संस्कृति #cultural #परम्परा #tradition   के गुरुकुल में क्या क्या पढाई होती थी, ये जान लेना पहले जरूरी है। 01 अग्नि विद्या (#Metallurgy)  02 वायु विद्या (#Flight)  03 जल विद्या (#Navigation)  04 अंतरिक्ष विद्या (#Space_Science)  05 पृथ्वी विद्या (#Environment)  06 सूर्य विद्या (#Solar_Study)  07 चन्द्र व लोक विद्या (#Lunar_Study)  08 मेघ विद्या (#Weather_Forecast)  09 पदार्थ विद्युत विद्या (#Battery)  10 सौर ऊर्जा विद्या (#Solar_Energy)  11 दिन रात्रि विद्या  12 सृष्टि विद्या (#Space Research)  13 खगोल विद्या (#Astronomy)  14 भूगोल विद्या (#Geography)  15 काल विद्या (#Time)  16 भूगर्भ विद्या (#Geology #Mining)  17 रत्न व धातु विद्या (#Gems & #Metals)  18 आकर्षण विद्या (#Gravity)  19 प्रकाश विद्या (...

| पंडित हरिभाऊ उपाध्याय | साहित्यकार तथा स्वतंत्रता आंदोलन के राष्ट्रसेवी | 24 मार्च, 1892 - 25 अगस्त, 1972

  हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म 24 मार्च, 1892 को मध्य प्रदेश में #उज्जैन ज़िले के #भौंरोसा नामक गाँव में हुआ था। विद्यार्थी जीवन से ही उनके मन में साहित्य के प्रति चेतना जाग्रत हो गई थी। संस्कृत के नाटकों तथा अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध उपन्यासों के अध्ययन के बाद वे उपन्यास लेखन की  और अग्रसर हुए। 🇮🇳 हरिभाऊ उपाध्याय ने हिन्दी सेवा से सार्वजनिक जीवन शुरू किया और  सबसे पहले  ‘औदुम्बर’ मासिक पत्र के प्रकाशन द्वारा हिन्दी पत्रकारिता जगत में पर्दापण किया। सबसे पहले  1911 में वे ‘औदुम्बर’ के सम्पादक बने। पढ़ते-पढ़ते ही इन्होंने इसके सम्पादन का कार्य भी आरम्भ किया। ‘औदुम्बर’ में कई विद्वानों के विविध विषयों से सम्बद्ध पहली बार लेखमाला निकली, जिससे हिन्दी भाषा की स्वाभाविक प्रगति हुई। इसका श्रेय हरिभाऊ के उत्साह और लगन को ही जाता है। 1915  में हरिभाऊ उपाध्याय #महावीर_प्रसाद_द्विवेदी के सान्निध्य में आये। हरिभाऊ जी खुद लिखते हैं कि- “औदुम्बर की सेवाओं ने मुझे आचार्य द्विवेदी जी की सेवा में पहुँचाया।” द्विवेदी जी के साथ ‘सरस्वती’ में कार्य करने के बाद हरिभाऊ उपाध्याय ने ‘प्रत...

Radhikaraman Prasad Singh | राधिकारमण प्रसाद सिंह | पद्मभूषण तथा साहित्य वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत साहित्यकार |

 जब वक्त्त गुजर जाता है तो याद बनती है. किसी बाग की खुशबू निकल जाए तो फूल खिलने की फरियाद आती है. इसी तरह आज साहित्य नगरी #सूर्यपुरा का स्वर्णिम अतीत सिर्फ यादों में सिमटकर रह गया है. साहित्याकाश के दीप्तिमान नक्षत्र राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह का किला आज भले ही रख रखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील होने लगा हो परंतु लाहौरी ईट से बना यह किला आज भी राजा साहब की याद को ताजा करता है. 🇮🇳🔰 राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह का जन्म 10 सितम्बर 1890 को तत्कालीन #शाहाबाद जिला के #बिक्रमगंज के #सूर्यपुरा ग्राम के एक कायस्थ परिवार में हुआ था. बड़े जमींदार होने की वजह से अपने नाम के साथ सिंह लगाते थे. इनके पिता #राज_राजेश्वरी_प्रसाद_सिंह हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, बंग्ला, फ़ारसी तथा पश्तो के विद्वान होने के साथ ब्रज भाषा के एक बड़े कवि भी थे. राधिका रमण प्रसाद के पितामह #दीवान_राम_कुमार_सिंह साहित्यक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और कुमार उपनाम से ब्रज भाषा मे कविताएं लिखा करते थे. ये कहना गलत नही होगा कि राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह को साहित्य विरासत में मिला था. 🇮🇳🔰 उनकी प्राम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई...

Basanti Devi | स्वतंत्रता आंदोलन की अमर सेनानी बसंती देवी | 23 मार्च 1880 - 7 मई 1974

  1925 में अपने पति #देशबंधु_चित्तरंजन_दास के देहांत के बाद भी #बसंती_देवी बराबर राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेती रहीं। 🇮🇳 🇮🇳 बसंती देवी (जन्म: 23 मार्च, 1880, कोलकाता; मृत्यु: 7 मई 1974) भारत की स्वतंत्रता सेनानी और बंगाल के प्रसिद्ध नेता #चित्तरंजन_दास की पत्नी थीं। राष्ट्रपिता #महात्मा_गाँधी द्वारा आरंभ किए गये #असहयोग_आंदोलन में भी ये सम्मिलित हुईं। लोगों में #खादी का प्रचार करने के अभियोग में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। 🇮🇳 बंगाल के प्रसिद्ध नेता चित्तरंजन दास की पत्नी बसंती देवी का जन्म 23 मार्च, 1880 ई. को #कोलकाता (पूर्व नाम कलकत्ता) में हुआ। बचपन में ये अपने पिता के साथ #असम में रहती थीं तथा आगे की शिक्षा के लिए कोलकाता आ गईं। यहीं 1897 में इनका बैरिस्टर चित्तरंजन दास के साथ विवाह हुआ। 🇮🇳 बसंती देवी भी स्वतंत्रता सेनानी थीं, जब 1917 में चित्तरंजन दास राजनीति में कूद पड़े तो बसंती देवी ने भी पूरी तरह से उनका साथ दिया। गाँधी जी द्वारा आरंभ किए गये 'असहयोग आंदोलन' में ये सम्मिलित हुईं। इनके द्वारा लोगों में खादी का प्रचार करने के अभियोग में इन्हें गिरफ्तार कर लिया...

Dr. Ram Manohar Lohia | डॉ. राम मनोहर लोहिया | 23 March 1910 – 12 October 1967

  किसी देश का उत्थान जनता की चेतना और राजनीतिक जागरूकता पर निर्भर करता है। 🇮🇳  🇮🇳 आज देश के महानायक भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और डॉ. राम मनोहर लोहिया को एक साथ याद करने का दिन है। 23 मार्च को जहाँ भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के बलिदान का दिन है तो वहीं महान समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया की जयंती भी है। 🇮🇳 डॉ. लोहिया एक ऐसे चिंतक और नेता थे, जिन्होंने अपने जन्मदिन को बलिदान दिवस (शहीदी दिवस) को समर्पित कर दिया। वे कहते थे कि यह जन्मदिन से अधिक अपने महानायकों को याद करने का दिन है, जो बहुत कम उम्र में बलिदान देकर समाज को एक बड़ा सपना दे गया। ऐसे बलिदान समाज में एक नई सोच और सपने देखने के नजरिए को प्रतिफलित करती हैं, उस सपने को आगे बढ़ाने का दिन है। 🇮🇳 उन्होंने भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदानों के बाद खुद का जन्मदिन मनाने से इनकार कर दिया और अपने समाजवादी साथियों से यह अपील की कि वह भी उसे न मनाएं । अगर कोई उनसे जन्मदिन मनाने का आग्रह करता तो वह स्पष्ट रूप से कहते थे कि भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदानों को याद करना चाहिए और इस दिन को हमें बलिदान दिवस के रूप में ...

| स्वतंत्रता सेनानी सुहासिनी गांगुली | जन्म- 3 फ़रवरी, 1909; मृत्यु- 23 मार्च, 1965

 #क्रांतिकारी_वीरांगना भारत की लड़ाई में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी कंधे से कंधा मिलाकर अपना योगदान दिया। इसमें से कई महिलाओं ने जहाँ #महात्मा_गाँधी के अहिंसा का मार्ग अपनाया तो वहीं कई महिलाओं ने #चंद्रशेखर_आजाद और #भगत_सिंह जैसे क्रांतिकारियों के मार्ग को अपनाया। ऐसे ही महान महिला स्वतंत्रता सेनानियों में #सुहासिनी गांगुली का नाम प्रमुख है जिन्होंने बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियों में अपना सक्रिय योगदान दिया । 🇮🇳 सुहासिनी गांगुली का जन्म 3 फरवरी 1909 को तत्कालीन बंगाल के #खुलना में हुआ था। 🇮🇳 अपनी शिक्षा पूरी करने के उपरांत उन्होंने #कोलकाता में एक मूक बधिर बच्चों के स्कूल में नौकरी करना शुरू किया जहाँ पर वह क्रांतिकारियों के संपर्क में आई। 🇮🇳 उल्लेखनीय है कि उन दिनों बंगाल में ‘छात्री संघा’ नाम का एक महिला क्रांतिकारी संगठन कार्यरत था जिसकी कमान #कमला_दासगुप्ता के हाथों में थी। उल्लेखनीय है कि इसी संगठन से #प्रीति_लता_वादेदार और #बीना_दास जैसी वीरांगनायें जुड़ी हुई थी। 🇮🇳 खुलना के क्रांतिकारी #रसिक_लाल_दास और क्रांतिकारी #हेमंत_तरफदार के संपर्क में आने से सुहासिनी...

Lala Ram Thakur | VICTORIA CROSS WINNER | लांस नायक लाला राम | जन्म- 20 अप्रैल, 1876, हिमाचल प्रदेश; मृत्यु- 23 मार्च, 1927

  #भारतीयता_की_पहचान_को_कायम_रखने_वाले_नायक लांस नायक लाला राम (जन्म- 20 अप्रैल, 1876, हिमाचल प्रदेश; मृत्यु- 23 मार्च, 1927) भारतीय थल सेना के 41वें डोगरा में लांस नाईक थे। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने मेसोपोटामिया (मौजूदा इराक) में हन्ना के युद्ध में 21 जनवरी, 1916 को बहादुरी की मिसाल कायम की, जिसके लिए उनको "विक्टोरिया क्रॉस" से सम्मानित किया गया। 🇮🇳 लांस नायक लाला राम ने एक ब्रिटिश ऑफिसर को दुश्मन के करीब जमीन पर बेसुध पाया। वह ऑफिसर दूसरी रेजिमेंट का था। लाला राम उस ऑफिसर को एक अस्थायी शरण में ले आए, जिसे उन्होंने खुद बनाया था। उसमें वह पहले भी चार लोगों की मरहम-पट्टी कर चुके थे। 🇮🇳 जब उस अधिकारी के जख्म की मरहम-पट्टी कर दी तो उनको अपनी रेजिमेंट के एजुटेंट की आवाज सुनाई दी। एजुटेंट बुरी तरह जख्मी थे और जमीन पर पड़े थे। लाला राम ने एजुटेंट को अकेले नहीं छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने अपने पीठ पर लादकर एजुटेंट को ले जाना चाहा, लेकिन एजुटेंट ने मना कर दिया। 🇮🇳 उसके बाद वह शेल्टर में आ गए और अपने कपड़े उतारकर जख्मी अधिकारी को गर्म र...

Brigadier Rai Singh Yadav | ब्रिगेडियर राय सिंह यादव | टाइगर ऑफ नाथू ला | 17 मार्च 1925 -23 मार्च, 2017

  #नाथू_ला_का_बाघ लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह यादव को भारतीय सेना में 'टाइगर ऑफ नाथू ला' के नाम से याद किया जाता है। उन्होंने संगीनों और राइफल बटों के साथ आमने-सामने की लड़ाई में आगे रहकर अपने लोगों का नेतृत्व किया। 🇮🇳 🇮🇳 राय सिंह यादव का जन्म 17 मार्च 1925 को पंजाब प्रांत (अब हरियाणा के रेवाड़ी जिले) के #गुड़गाँव जिले के #कोसली गाँव में हुआ था। उनके पिता #रायसाहब_गणपत_सिंह थे जिन्होंने 1920 के दशक में ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा की थी। राय सिंह ने अपनी सीनियर कैम्ब्रिज किंग जॉर्ज मिलिट्री स्कूल, जुलुंदुर से उत्तीर्ण की। वह 1944 में एक सिपाही के रूप में सेना में शामिल हुए। उन्हें 10 दिसंबर 1950 को 2 ग्रेनेडियर्स में नियुक्त किया गया था। उनका दिमाग विश्लेषणात्मक था और सेवा के आरंभ में ही वे सैन्य रणनीति और रणनीति में निपुण हो गए थे। उन्हें यूके के कैम्बरली में प्रतिष्ठित डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज में भाग लेने के लिए नामांकित किया गया था।    🇮🇳 1962 में झटके के बाद, किसी भी चीनी हमले के खिलाफ भारत की उत्तरी सीमाओं की रक्षा के लिए सात पर्वतीय डिवीजनों को खड़ा किया गया...

Sardar Bhagat Singh | स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी | सरदार भगत सिंह | जन्म: 28 सितम्बर 1907 , वीरगति: 23 मार्च 1931

#क्रांतिकारी_बलिदानियों_का_देश_के_लिए_स्वप्न_कब_पूरा_होगा ??? भगत सिंह (जन्म: 28 सितम्बर 1907 , वीरगति: 23 मार्च 1931) भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। 28 सितंबर 1907 को लायलपुर, पश्चिमी पंजाब, भारत (वर्तमान पाकिस्तान) में एक सिख परिवार में जन्मे भगत सिंह, किशन सिंह संधू और विद्या वती के बेटे थे। सात भाई-बहनों में भगत सिंह दूसरे नंबर पर थे उनके दादा अर्जन सिंह, पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे। भगत सिंह ने अपनी 5वीं तक की पढाई गांव में की और उसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर में उनका दाखिला करवाया। बहुत ही छोटी उम्र में भगत सिंह, #महात्मा गांधी जी के असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए और बहुत ही बहादुरी से उन्होंने ब्रिटिश सेना को ललकारा। महज़ 24 साल की उम्र में #ब्रिटिश सरकार ने सरदार भगत सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया था. उन पर #लाहौर षडयंत्र केस में शामिल होने का आरोप था. #भगत सिंह के साथ #राजगुरु और #सुखदेव #Bhagat_Singh, #Rajguru and #Sukhdev को भी सज़ा-ए-मौत दी गई थी भगत सिंह जिस तस्वी...

Balidan diwas | बलिदान-दिवस | भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू | 23 मार्च, 1931

#बलिदान_दिवस सरदार भगत सिंह 🇮🇳 🇮🇳 अमर हुतात्मा #सरदार_भगतसिंह का जन्म- 27 सितंबर, 1907 को बंगा, लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में) हुआ था व 23 मार्च, 1931 को इन्हें दो अन्य साथियों सुखदेव व राजगुरू के साथ फाँसी दे दी गई। भगतसिंह का नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय है। भगतसिंह देश के लिये जीये और देश ही के लिए बलिदान भी हो गए। 🇮🇳 राजगुरु 🇮🇳 🇮🇳 24 अगस्त, 1908 को पुणे ज़िले के खेड़ा गाँव (जिसका नाम अब 'राजगुरु नगर' हो गया है) में पैदा हुए अमर हुतात्मा #राजगुरु का पूरा नाम 'शिवराम हरि राजगुरु' था। आपके पिता का नाम 'श्री हरि नारायण' और माता का नाम 'पार्वती बाई' था। भगत सिंह और सुखदेव के साथ ही राजगुरु को भी 23 मार्च 1931 को फाँसी दी गई थी। राजगुरु 'स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे हासिल करके रहूँगा' का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे। 🇮🇳 सुखदेव 🇮🇳 🇮🇳 अमर हुतात्मा #सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907, पंजाब में हुआ था। 23 मार्च, 1931 को सेंट्रल जेल, लाहौर में भगतसिंह व राजगुरू के...

Sardar Bhagat Singh | क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह | Sardar Kultar Singh | क्रांतिकारी सरदार कुलतार सिंह

  वर्ष 1975 में अपने विद्यालय #गीता_विद्या_मंदिर, #सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) के #वार्षिकोत्सव में मुझे शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह के अनुज #सरदार_कुलतार_सिंह (जो समारोह के मुख्य अतिथि थे) का स्वागत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था ! ~ चन्द्र कांत  🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 अपने छोटे भाई कुलतार के नाम सरदार भगत सिंह का अन्तिम पत्र : सेंट्रल जेल, लाहौर, 3 मार्च, 1931 अजीज कुलतार, आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दुख हुआ। आज तुम्हारी बातों में बहुत दर्द था, तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते। बरखुर्दार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का ख्याल रखना। हौसला रखना और क्या कहूँ! उसे यह फ़िक्र है हरदम नया तर्ज़े-ज़फा क्या है, हमे यह शौक़ है देखें सितम की इन्तहा क्या है। दहर से क्यों खफ़ा रहें, चर्ख़ का क्यों गिला करें, सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें। कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहले-महफ़िल, चराग़े-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ। हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली, ये मुश्ते-ख़ाक है फानी, रहे रहे न रहे। अच्छा रुख़सत। खुश रहो अहले-वतन; हम तो सफ़र करते हैं। हिम्मत से ...

Suryasen | सूर्यसेन | Revolutionary | द हीरो ऑफ चटगांव क्रांति | 22 मार्च, 1894 -12 जनवरी, 1934

  फाँसी के ऐन वक्त पहले उनके हाथों के नाखून उखाड़ लिए गए। उनके दाँतों को तोड़ दिया गया, ताकि अपनी अंतिम साँस तक वे वंदेमातरम् का उद्घोष न कर सकें। 🇮🇳 🇮🇳 ब्रितानी हुकूमत की क्रूरता और अपमान की पराकाष्ठा यह थी कि उनकी मृत देह को भी धातु के बक्से में बंद करके बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया। 🇮🇳 🇮🇳 मेरे लिए यह वह पल है, जब मैं मृत्यु को अपने परम मित्र के रूप में अंगीकार करूँ। इस सौभाग्यशील, पवित्र और निर्णायक पल में, मैं तुम सबके लिए क्या छोड़ कर जा रहा हूँ? सिर्फ एक चीज - मेरा स्वप्न, मेरा सुनहरा स्वप्न, #स्वतंत्र #भारत का स्वप्न। 🇮🇳 🇮🇳 हमारे देश को आजादी यों ही नसीब नहीं हुई है। भारत की स्वाधीनता की पृष्ठभूमि में कई महान क्रांतिकारियों ने अपने देश की आजादी की खातिर खून के कड़वे घूँट पीये हैं। ऐसे ही एक महान देशभक्त क्रांतिकारी थे सूर्यसेन। जिन्हें अंग्रेजों ने #मरते दम तक असहनीय यातनाएं दी थीं। अविभाजित बंगाल के #चटगॉंव (चिट्टागोंग, अब बांग्लादेश में) में स्वाधीनता आंदोलन के अमर नायक बने सूर्यसेन उर्फ सुरज्या सेन का जन्म 22 मार्च, 1894 को हुआ था। क्रांतिकारी एवं स्वतंत्र...

Hanuman Prasad Poddar | हनुमान प्रसाद पोद्दार | जन्म:1892 - मृत्यु- 22 मार्च 1971

  #अलौकिक_संत हनुमान प्रसाद पोद्दार (जन्म:1892 - मृत्यु- 22 मार्च 1971) का नाम #गीता_प्रेस #Geeta_Press स्थापित करने के लिये भारत व विश्व में प्रसिद्ध है। भारतीय अध्यात्मिक जगत पर हनुमान पसाद पोद्दार नाम का एक ऐसा सूरज उदय हुआ, जिसकी वजह से देश के घर-घर में गीता, #रामायण, #वेद और #पुराण जैसे ग्रंथ पहुँचे सके। आज #गीता_प्रेस_गोरखपुर का नाम किसी भी भारतीय के लिए अनजाना नहीं है। सनातन हिंदू संस्कृति में आस्था रखने वाला दुनिया में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा, जो गीता प्रेस गोरखपुर के नाम से परिचित नहीं होगा। इस देश में और दुनिया के हर कोने में रामायण, #गीता, वेद, पुराण और #उपनिषद से लेकर प्राचीन भारत के ऋषियों -मुनियों की कथाओं को पहुँचाने का एक मात्र श्रेय गीता प्रेस गोरखपुर के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार को है। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर एक अकिंचन सेवक और निष्काम कर्मयोगी की तरह पोद्दार जी ने हिंदू संस्कृति की मान्यताओं को घर-घर तक पहुँचाने में जो योगदान दिया है, इतिहास में उसकी मिसाल मिलना ही मुश्किल है। 🇮🇳🔶 भारतीय पंचांग के अनुसार विक्रम संवत के वर्ष 1949 में अश्विन कृष्ण...

Ramchandra Chatterjee | राम चंद्र चटर्जी | गुब्बारे की सवारी

  #राम_चंद्र_चटर्जी और उनकी बैलोन सवारी जिसने भारत का इतिहास बदल दिया। 🇮🇳 एक समय की बात है, आश्चर्य और साहसी कारनामे से भरी दुनिया में, एक ट्रैपेज़ कलाकार रहता था जो सितारों तक पहुँचने का सपना देखता था। अपने कलाबाजी कौशल और महत्वाकांक्षा से भरे दिल के साथ, उन्होंने ऊँची उड़ान भरने की एक साहसी योजना तैयार की। 🇮🇳 यह 19वीं सदी का उत्तरार्ध था और वह व्यक्ति राम चंद्र चटर्जी थे; #कलकत्ता का रहने वाला एक ट्रैपेज़ खिलाड़ी, जो नेशनल सर्कस कंपनी के लिए काम करता था। वह भारत के शुरुआती जिमनास्ट और ट्रैपेज़ कलाकारों में से एक थे। लेकिन उन्हें अचानक एक नई घटना का पता चला। 🇮🇳 18वीं सदी के यूरोप में हॉट-एयर बैलूनिंग का चलन था, लेकिन भारत को डी. रॉबर्टसन की पहली उड़ान देखने में 1836 तक का समय लग गया। लेकिन असली गुब्बारा बुखार तब भड़का जब 1880 के दशक के अंत में प्रसिद्ध गुब्बारा वादक पर्सिवल स्पेंसर भारत पहुँचे। 🇮🇳 19 मार्च, 1889 को, स्पेंसर ने कलकत्ता रेस कोर्स से उड़ान भरी और एक महीने बाद, 10 अप्रैल, 1889 को, निडर राम चंद्र चटर्जी उनके साथ शामिल हो गए। 🇮🇳 स्पेंसर के साथ अपनी संयुक्त चढ़...

Major Mohit Sharma | मेजर मोहित शर्मा

  ‘शक है तो गोली मार दो’: इफ्तिखार भट्ट बन जब मेजर मोहित शर्मा ने आतंकियों के बीच बनाई पैठ, फिर ठोक दिया 🇮🇳 🇮🇳 हरियाणा के रोहतक में आज भी पैरा स्पेशल फोर्स के ऑफिसर मेजर मोहित शर्मा को उनकी बहादुरी के लिए घर-घर में याद किया जाता है। मरणोपतरांत अशोक चक्र से सम्मानित इस हुतात्मा ने साल 2009 में उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में एक सैन्य ऑपरेशन के दौरान अंतिम साँस ली थी। लेकिन, साल 2004 में इनके द्वारा किया गया एक ऑपरेशन आज भी कइयों के लिए प्रेरणा है। 🇮🇳 शिव अरूर और राहुल सिंह की किताब ‘इंडिया मोस्ट फीयरलेस 2’ में  इस बात का जिक्र है कि कैसे मेजर मोहित शर्मा ने इस्लामी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन में घुसपैठ करके दो खूँखार आतंकियों को मारा।  🇮🇳 दक्षिण कश्मीर से 50 किमी दूर शोपियाँ में मेजर ने अपने ऑपरेशन को अंजाम दिया था। मेजर ने इस काम के लिए सबसे पहले अपना नाम और हुलिया बदला। उन्होंने लम्बी दाढ़ी-मूँछ रख कर आतंकियों की तरह अपने हाव-भाव बनाए। फिर इफ्तिखार भट्ट नाम के जरिए वह अबू तोरारा और अबू सबजार के संपर्क में आए। 🇮🇳 इसके बाद मेजर ने बतौर इफ्तिखार भट्ट दोनों हिजबुल ...