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22 मार्च 2024

Ragini Trivedi | रागिनी त्रिवेदी | विचित्र वीणा, सितार और जल तरंग | 22 मार्च, 1960

 



रागिनी त्रिवेदी (जन्म- 22 मार्च, 1960) भारतीय शास्त्रीय संगीतकार हैं। वह विचित्रवीणा, सितार और जल तरंग पर प्रस्तुति देती हैं।

🇮🇳 रागिनी त्रिवेदी विचित्र वीणा वादक और संगीतज्ञ #लालमणि_मिश्र की पुत्री हैं।

🇮🇳 वह डिजिटल संगीत संकेतन प्रणाली की निर्माता हैं, जिसे 'ओमे स्वारलिपि' कहा जाता है।

🇮🇳 उनके पिता प्रसिद्ध संगीतकार लालमणि मिश्र, माता #पद्मा ने रागिनी और भाई #गोपाल_शंकर में संगीत के प्रति प्रेम पैदा किया।

🇮🇳 #वाराणसी में परिवार रीवा कोठी में दूसरी मंजिल पर रहता था। वहीं गायक #ओंकारनाथ_ठाकुर भूतल पर रहते थे।

🇮🇳 रागिनी त्रिवेदी ने 9 अप्रैल, 1977 को अपनी माँ को खो दिया और 17 जुलाई, 1979 को उनके पिता भी चल बसे। उन्होंने और उनके भाई गोपाल ने संगीत का अभ्यास जारी रखा।

🇮🇳 कुछ समय के लिए उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाया और बाद में #होशंगाबाद, #रीवा और #इंदौर के सरकारी कॉलेजों में सितार पढ़ाया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #विचित्रवीणा, #सितार और #जलतरंग पर प्रस्तुति देने वाली भारतीय #शास्त्रीय  #संगीतकार #रागिनी_त्रिवेदी जी को जन्मदिवस की ढेरों बधाई एवं अनंत शुभकामनाएँ!

#Ragini_Trivedi

#Vichitra_Veena, #Sitar and #Jaltarang

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


21 मार्च 2024

World puppet day | विश्व कठपुतली दिवस

 



#विश्व_कठपुतली_दिवस

#world_puppet_day

भारत में पारंपरिक पुतली नाटकों की कथावस्तु में पौराणिक साहित्य, लोककथाएँ और किवदंतियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। पहले अमर सिंह राठौड़, पृथ्वीराज, हीर-रांझा, लैला-मजनूं और शीरीं-फ़रहाद की कथाएँ ही कठपुतली खेल में दिखाई जाती थीं।

🇮🇳 विश्व कठपुतली दिवस प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है। 'कठपुतली' का खेल अत्यंत प्राचीन नाटकीय खेल है, जो समस्त सभ्य संसार में प्रशांत महासागर के पश्चिमी तट से पूर्वी तट तक-व्यापक रूप प्रचलित रहा है। यह खेल गुड़ियों अथवा पुतलियों (पुत्तलिकाओं) द्वारा खेला जाता है। गुड़ियों के नर मादा रूपों द्वारा जीवन के अनेक प्रसंगों की, विभिन्न विधियों से, इसमें अभिव्यक्ति की जाती है और जीवन को नाटकीय विधि से मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। कठपुतलियाँ या तो लकड़ी की होती हैं या पेरिस-प्लास्टर की या काग़ज़ की लुग्दी की। उसके शरीर के भाग इस प्रकार जोड़े जाते हैं कि उनसे बँधी डोर खींचने पर वे अलग-अलग हिल सकें।

साभार: bharatdiscovery.org

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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11 मार्च 2024

Vinod Dua | विनोद दुआ

  



🇮🇳 #पद्मश्री से सम्मानित; प्रसिद्ध भारतीय समाचार वक्ता, हिंदी टेलीविजन पत्रकार एवं कार्यक्रम निर्देशक #विनोद_दुआ  #vinod_dua जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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26 फ़रवरी 2024

Pankaj Udhas | Indian Ghazal and Playback Singer | पंकज उधास - गज़ल गायक | 17 May 1951 – 26 February 2024





Pankaj Udhas (17 May 1951 – 26 February 2024) was an Indian ghazal and playback singer known for his works in Hindi cinema, and Indian pop. He started his career with a release of a ghazal album titled Aahat in 1980 and subsequently recorded many hits like Mukarar in 1981, Tarrannum in 1982, Mehfil in 1983, Pankaj Udhas Live at Royal Albert Hall in 1984, Nayaab in 1985 and Aafreen in 1986


पंकज उधास भारत के एक गज़ल गायक थे। भारतीय संगीत उद्योग में उनको तलत अज़ीज़ और जगजीत सिंह जैसे अन्य संगीतकारों के साथ इस शैली को लोकप्रिय संगीत के दायरे में लाने का श्रेय दिया जाता है। उदास को फिल्म नाम में गायकी से प्रसिद्धि मिली, जिसमें उनका एक गीत "चिठ्ठी आई है" काफी लोकप्रिय हुआ था जो तुरंत हिट हो गया। इसके बाद उन्होंने कई हिंदी फिल्मों के लिए पार्श्वगायन किया। दुनिया भर में एल्बम और लाइव कॉन्सर्ट ने उन्हें एक गायक के रूप में प्रसिद्धि दिलाई। 2006 में, पंकज उधास को भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया। उनके भाई निर्मल उदास  और मनहर  उदास भी गायक हैं।


पंकज  का जन्म गुजरात के जेतपुर में हुआ था। वह तीन भाइयों में सबसे छोटे हैं। उनके माता-पिता केशुभाई उधास और जितुबेन उधास हैं। उनके सबसे बड़े भाई मनहर उधास ने बॉलीवुड फिल्मों में हिंदी पार्श्व गायक के रूप में कुछ सफलता हासिल की । उनके दूसरे बड़े भाई निर्मल उधास भी एक प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक हैं और परिवार में गायन शुरू करने वाले तीन भाइयों में से वह पहले थे। उन्होंने सर बीपीटीआई भावनगर से पढ़ाई की थी. उनका परिवार मुंबई चला गया और पंकज ने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में दाखिला लिया । [ प्रशस्ति - पत्र आवश्यक ]


उधास का परिवार राजकोट के पास चरखड़ी नामक कस्बे का रहने वाला था और जमींदारथा। उनके दादा गाँव के पहले स्नातक थे और भावनगर राज्य के दीवान बने । उनके पिता, केशुभाई उधास, एक सरकारी कर्मचारी थे और उनकी मुलाकात प्रसिद्ध वीणा वादक अब्दुल करीम खान से हुई थी, जिन्होंने उन्हें दिलरुबा बजाना सिखाया था ।  जब उधास बच्चे थे, तो उनके पिता दिलरुबा , एक तार वाला वाद्ययंत्र बजाते थे। उनकी और उनके भाइयों की संगीत में रुचि देखकर उनके पिता ने उनका दाखिला राजकोट की संगीत अकादमी में करा दिया । उधास ने शुरुआत में तबला सीखने के लिए खुद को नामांकित किया लेकिन बाद में गुलाम कादिर खान साहब से हिंदुस्तानी गायन शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया। इसके बाद उधास ग्वालियर घराने के गायक नवरंग नागपुरकर के संरक्षण में प्रशिक्षण लेने के लिए मुंबई चले गए। 


चाँदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल  नामक गीत पंकज उधास द्वारा गाया गया था। पंकज उधास के बड़े भाई, मनहर उधास एक मंच कलाकार थे, जिन्होंने पंकज को संगीत प्रदर्शन से परिचित कराने में सहायता की। उनका पहला मंच प्रदर्शन चीन-भारत युद्ध के दौरान था , जब उन्होंने " ऐ मेरे वतन के लोगो " गाया था और उन्हें रु। 51 एक दर्शक सदस्य द्वारा पुरस्कार के रूप में। [


उधास का पहला गाना फिल्म "कामना" में था, जो उषा खन्ना द्वारा संगीतबद्ध और नक्श लायलपुरी द्वारा लिखा गया था, यह फिल्म फ्लॉप रही लेकिन उनके गायन को बहुत सराहा गया। इसके बाद, उधास ने ग़ज़लों में रुचि विकसित की और ग़ज़ल गायक के रूप में अपना करियर बनाने के लिए उर्दू सीखी। उन्होंने कनाडा और अमेरिका में ग़ज़ल संगीत कार्यक्रम करते हुए दस महीने बिताए और नए जोश और आत्मविश्वास के साथ भारत लौट आए। उनका पहला ग़ज़ल एल्बम, आहट , 1980 में रिलीज़ हुआ था। यहीं से उन्हें सफलता मिलनी शुरू हुई और 2011 तक उन्होंने पचास से अधिक एल्बम और सैकड़ों संकलन एल्बम जारी किए हैं। 1986 में, उधास को फिल्म नाम में अभिनय करने का एक और मौका मिला , जिससे उन्हें प्रसिद्धि मिली। 1990 में, उन्होंने फिल्म घायल के लिए लता मंगेशकर के साथ मधुर युगल गीत "महिया तेरी कसम" गाया ।


 इस गाने ने जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की. 1994 में, उधास ने साधना सरगम ​​के साथ फिल्म मोहरा का उल्लेखनीय गीत, "ना कजरे की धार" गाया, जो बहुत लोकप्रिय भी हुआ। उन्होंने पार्श्व गायक के रूप में काम करना जारी रखा और साजन , ये दिल्लगी , नाम और फिर तेरी कहानी याद आयी जैसी फिल्मों में कुछ ऑन-स्क्रीन उपस्थिति दर्ज की । दिसंबर 1987 में म्यूजिक इंडिया द्वारा लॉन्च किया गया उनका एल्बम शगुफ्ता भारत में कॉम्पैक्ट डिस्क पर रिलीज़ होने वाला पहला एल्बम था। बाद में, उधास ने सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर आदाब आरज़ है नामक एक प्रतिभा खोज टेलीविजन कार्यक्रम शुरू किया । 26 फरवरी 2024 को पंकज का निधन हो गया। हुआ था

23 फ़रवरी 2024

Film Actress | Madhubala | मधुबाला | 14 February 1933- 23 February 1969



 Film Actress | Madhubala | मधुबाला | 14 February 1933- 23 February 1969 


मधुबाला (जन्म: 14 फ़रवरी 1933, दिल्ली - निधन: 23 फ़रवरी 1969, मुंबई) भारतीय हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री थी उनके अभिनय में एक आदर्श भारतीय नारी को देखा जा सकता है| 


मधुबाला का जन्म 14 फ़रवरी 1933 को दिल्ली में एक मुस्लिम पठान परिवार में हुआ था. उनका नाम रखा गया था मुमताज़ बेगम जहाँ देहलवी.


मधुबाला अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जानी जाती थीं, और उन्होंने कभी भी भारी मेकअप या कॉस्मेटिक सर्जरी के साथ अपनी विशेषताओं को बदलने की कोशिश नहीं की। उन्होंने अपनी प्राकृतिक सुंदरता को अपनाया और इसने उन्हें उद्योग में अलग पहचान दिलाई।


मधुबाला का करियर उनके समकालीनों में सबसे छोटा था, लेकिन जब तक उन्होंने अभिनय छोड़ दिया, तब तक उन्होंने 70 से अधिक फिल्मों में सफलतापूर्वक अभिनय किया था।


मधुबाला का जन्म वेंट्रिकुलर सेप्टल दोष के साथ हुआ था, जो एक जन्मजात हृदय विकार था जिसका उस समय कोई इलाज नहीं था। मधुबाला ने अपना अधिकांश बचपन दिल्ली में बिताया और बिना किसी स्वास्थ्य समस्या के बड़ी हुईं।


मुगल-ए-आज़म में उनका अभिनय विशेष उल्लेखनीय है। इस फ़िल्म मे सिर्फ़ उनका अभिनय ही नही बल्कि 'कला के प्रति समर्पण' भी देखने को मिलता है। इसमें 'अनारकली' की भूमिका उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनका लगातार गिरता हुआ स्वास्थ्य उन्हें अभिनय करने से रोक रहा था लेकिन वो नहींं रूकीं। उन्होने इस फ़िल्म को पूरा करने का दृढ निश्चय कर लिया था।


अगस्त 1960  को जब #मुगले-ए-आज़म प्रदर्शित हुई तो फ़िल्म समीक्षकों तथा दर्शकों को भी ये मेहनत और लगन साफ़-साफ़ दिखाई पड़ी। असल मे यह मधुबाला की मेहनत ही थी जिसने इस फ़िल्म को सफ़लता के चरम तक पँहुचाया। इस फ़िल्म के लिये उन्हें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार के लिये नामित किया गया था। हालांकि यह #पुरस्कार उन्हें नहीं मिल पाया।


इस फ़िल्म की लोकप्रियता के वजह से ही इस फ़िल्म को 2004 मे पुनः रंग भर के पूरी दुनिया मे प्रदर्शित किया गया।


महज 36 साल की उम्र में इस दुनिया से विदा लेने वाली मधुबाला ने 16 अक्टूबर 1960 को किशोर कुमार से  से अदालत में शादी की,  लेकिन अपना अधिकांश समय अपने पिता के घर में बिताया। धार्मिक मतभेदों के कारण अपने ससुराल वालों की कड़वाहट से बचने के लिए, मधुबाला बाद में बांद्रा के क्वार्टर डेक में किशोर के नए खरीदे गए फ्लैट में चली गईं। इसके 9 साल बाद 23 फरवरी 1969 को वह चल बसीं।


उनके मृत्यु के २ साल बाद यानि 1971  मे उनकी एक #फ़िल्म जिसका नाम ज्वाला था प्रदर्शित हो पायी थी।

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था  #Film #Actress  #Madhubala  #मधुबाला | #14_February  #23February 

21 फ़रवरी 2024

Nutan Samarth Bahl | Famous Actresses| Born June 4, 1936; Died February 21, 1991| नूतन समर्थ बहल | मशहूर अभिनेत्री

 




Nutan Samarth Bahl (Born June 4, 1936; Died February 21, 1991) नूतन समर्थ बहल (जन्म- 4 जून, 1936; मृत्यु: 21 फ़रवरी, 1991) #हिन्दी #सिनेमा की सबसे प्रसिद्ध अभिनेत्रियों में से एक रही हैं। भारतीय सिनेमा जगत में नूतन को एक ऐसी अभिनेत्री के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने फ़िल्मों में अभिनेत्रियों के महज शोपीस के तौर पर इस्तेमाल किए जाने की परंपरागत विचार धारा को बदलकर उन्हें अलग पहचान दिलाई। सुजाता, बंदिनी, मैं तुलसी तेरे आंगन की, सीमा, #सरस्वती चंद्र, और मिलन जैसी कई फ़िल्मों में अपने उत्कृष्ट अभिनय से नूतन ने यह साबित किया कि नायिकाओं में भी अभिनय क्षमता है और अपने अभिनय की बदौलत वे दर्शकों को #सिनेमा हॉल तक लाने में सक्षम हैं।

🇮🇳 जीवन परिचय--

नूतन का जन्म 4 जून, 1936 को एक पढ़े लिखे परिवार में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती #शोभना_समर्थ और पिता का नाम श्री #कुमारसेन_समर्थ था। घर में #फ़िल्मी माहौल रहने के कारण नूतन अक्सर अपनी माँ के साथ शूटिंग देखने जाया करती थी। इस वजह से उनका भी रुझान #फ़िल्मों की ओर हो गया और वह भी अभिनेत्री बनने के ख्वाब देखने लगी।

🇮🇳 सिने कैरियर की शुरूआत--

नूतन ने बतौर बाल कलाकार फ़िल्म 'नल दमयंती' से अपने सिने कैरियर की शुरूआत की। इस बीच नूतन ने अखिल भारतीय सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लिया जिसमें वह प्रथम चुनी गई लेकिन बॉलीवुड के किसी निर्माता का ध्यान उनकी ओर नहीं गया। बाद में अपनी #माँ और उनके मित्र मोतीलाल की सिफारिश की वजह से नूतन को वर्ष 1950 में प्रदर्शित फ़िल्म 'हमारी बेटी' में अभिनय करने का मौका मिला। इस फ़िल्म का निर्देशन उनकी माँ शोभना समर्थ ने किया। इसके बाद नूतन ने 'हमलोग', 'शीशम', 'नगीना' और 'शवाब' जैसी कुछ फ़िल्मों में अभिनय किया लेकिन इन फ़िल्मों से वह कुछ ख़ास पहचान नहीं बना सकी।

🇮🇳 'सीमा' से मिली पहचान--

वर्ष 1955 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सीमा' से नूतन ने विद्रोहिणी नायिका के सशक्त किरदार को रूपहले पर्दे पर साकार किया। इस फ़िल्म में नूतन ने सुधार गृह में बंद कैदी की भूमिका निभायी जो चोरी के झूठे इल्जाम में जेल में अपने दिन काट रही थी। फ़िल्म 'सीमा' में #बलराज_साहनी सुधार गृह के अधिकारी की भूमिका में थे। बलराज साहनी जैसे दिग्गज कलाकार की उपस्थित में भी नूतन ने अपने सशक्त अभिनय से उन्हें कड़ी टक्कर दी। इसके साथ ही फ़िल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये नूतन को अपने सिने कैरियर का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म अभिनेत्री का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।

🇮🇳 बहुआयामी प्रतिभा--

नूतन ने देवानंद के साथ 'पेइंग गेस्ट' और 'तेरे घर के सामने' में नूतन ने हल्के-फुल्के रोल कर अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया। वर्ष 1958 में प्रदर्शित फ़िल्म सोने की चिडि़या के हिट होने के बाद फ़िल्म इंडस्ट्री में #नूतन के नाम के डंके बजने लगे और बाद में एक के बाद एक कठिन भूमिकाओं को निभाकर वह फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गई। वर्ष 1958 में प्रदर्शित फ़िल्म 'दिल्ली का ठग' में नूतन ने स्विमिंग कॉस्टयूम पहनकर उस समय के समाज को चौंका दिया। फ़िल्म बारिश में नूतन काफ़ी बोल्ड दृश्य दिए जिसके लिए उनकी काफ़ी आलोचना भी हुई लेकिन बाद में विमल राय की फ़िल्म 'सुजाता' एवं 'बंदिनी' में नूतन ने अत्यंत मर्मस्पर्शी अभिनय कर अपनी बोल्ड अभिनेत्री की छवि को बदल दिया। सुजाता, बंदिनी और दिल ने फिर याद किया जैसी फ़िल्मों की कामयाबी के बाद नूतन ट्रेजडी क्वीन कही जाने लगी। अब उनपर यह आरोप लगने लगा कि वह केवल दर्द भरे अभिनय कर सकती हैं लेकिन छलिया और सूरत जैसी फ़िल्मों में अपने कॉमिक अभिनय कर नूतन ने अपने आलोचकों का मुँह एक बार फिर से बंद कर दिया। वर्ष 1965 से 1969 तक नूतन ने दक्षिण भारत के निर्माताओं की फ़िल्मों के लिए काम किया। इसमें ज्यादातर सामाजिक और पारिवारिक फ़िल्में थी। इनमें गौरी, मेहरबान, खानदान, मिलन और भाई बहन जैसी #सुपरहिट फ़िल्में शामिल है।

🇮🇳 फ़िल्म 'सुजाता' और 'बंदिनी'--

विमल राय की फ़िल्म 'सुजाता' एवं 'बंदिनी' नूतन की यादगार फ़िल्में रही। वर्ष 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म सुजाता नूतन के सिने कैरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई। फ़िल्म में नूतन ने अछूत कन्या के किरदार को रूपहले पर्दे पर साकार किया1 इसके साथ ही फ़िल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये वह अपने सिने कैरियर में दूसरी बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित की गई। वर्ष 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म 'बंदिनी 'भारतीय सिनेमा जगत् में अपनी संपूर्णता के लिए सदा याद की जाएगी। फ़िल्म में नूतन के अभिनय को देखकर ऐसा लगा कि केवल उनका चेहरा ही नहीं बल्कि हाथ पैर की उंगलियां भी अभिनय कर सकती है। इस फ़िल्म में अपने जीवंत अभिनय के लिये नूतन को एक बार फिर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। इस फ़िल्म से जुड़ा एक रोचक पहलू यह भी है फ़िल्म के निर्माण के पहले फ़िल्म अभिनेता अशोक कुमार की निर्माता विमल राय से अनबन हो गई थी और वह किसी भी कीमत पर उनके साथ काम नहीं करना चाहते थे लेकिन वह नूतन ही थी जो हर कीमत में अशोक कुमार को अपना नायक बनाना चाहती थी। नूतन के जोर देने पर अशोक कुमार ने फ़िल्म 'बंदिनी' में काम करना स्वीकार किया था।

🇮🇳 नूतन और उनके नायक--

नूतन ने अपने सिने कैरियर में उस दौर के सभी दिग्गज और नवोदित अभिनेताओं के साथ अभिनय किया। राजकपूर के साथ फ़िल्म 'अनाड़ी' में भोला-भाला प्यार हो या फिर अशोक कुमार के साथ फ़िल्म 'बंदिनी' में संजीदा अभिनय या फिर पेइंग गेस्ट में देवानंद के साथ छैल छबीला रोमांस हो नूतन हर अभिनेता के साथ उसी के रंग में रंग जाती थी। वर्ष 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सरस्वती चंद्र' की अपार सफलता के बाद नूतन #फ़िल्म_इंडस्ट्री की नंबर वन नायिका के रूप मे स्थापित हो गई। वर्ष 1973 में फ़िल्म 'सौदागार' में अमिताभ बच्चन जैसे नवोदित अभिनेता के साथ काम करके नूतन ने एक बार फिर से अपना अविस्मरणीय अभिनय किया। अस्सी के दशक में नूतन ने चरित्र भूमिकाएँ निभानी शुरू कर दी और कई फ़िल्मों में माँ के किरदार को रुपहले पर्दे पर साकार किया। इन फ़िल्मों में 'मेरी जंग', 'नाम' और 'कर्मा' जैसी ख़ास तौर पर उल्लेखनीय है। फ़िल्म 'मेरी जंग' के लिए अपने सशक्त अभिनय के लिए नूतन सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित की गई। फ़िल्म 'कर्मा' में नूतन ने अभिनय सम्राट #दिलीप_कुमार के साथ काम किया। इस फ़िल्म में नूतन पर फ़िल्माया यह गाना दिल दिया है जाँ भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए.. श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ।

🇮🇳 सम्मान और पुरस्कार--

नूतन की प्रतिभा केवल अभिनय तक ही नहीं सीमित थी वह गीत और ग़ज़ल लिखने में भी काफ़ी दिलचस्पी लिया करती थीं। हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सर्वाधिक फ़िल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त करने का कीर्तिमान नूतन के नाम दर्ज है। नूतन को अपने सिने कैरियर में पाँच बार (सुजाता, बंदिनी, मैं तुलसी तेरे आँगन की, सीमा, मिलन) फ़िल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नूतन को वर्ष 1974 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 निधन--

लगभग चार दशक तक अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों के बीच ख़ास पहचान बनाने वाली यह महान् अभिनेत्री 21 फ़रवरी, 1991 को इस दुनिया से अलविदा कह गई।

साभार: bharatdiscovery.org

सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए सर्वाधिक पाँच बार (सुजाता, बंदिनी, मैं तुलसी तेरे आँगन की, सीमा, मिलन) फ़िल्म फेयर पुरस्कार एवं #पद्मश्री से सम्मानित; हिन्दी सिनेमा की #सुप्रसिद्ध अभिनेत्री #नूतन जी की पुण्यतिथि पर उन्हें सिनेप्रेमियों की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 🇮🇳🌹🙏

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

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Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...