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14 जनवरी 2025

Makar Sankranti मकर संक्रांति

 



#मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti


मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में सूर्य यानि सूरज को प्रमुखता दी जाती है। जिसकी वजह से हिंदू धर्म में सूर्य की दिशा परिवर्तन के मुताबिक त्यौहारों और मांगलिक कार्यों की तिथि का निर्धारण किया जाता है।


 हिन्दू शास्त्रों में हर महीने को दो भागों में बांटा गया है - #कृष्ण पक्ष और #शुक्ल पक्ष।


 इसी तरह साल को भी दो हिस्सों में बांटा गया है।अयन दो तरह के होते हैं #उत्तरायण और #दक्षिणायन। सूर्य के उत्तर दिशा में अयन (गमन) को उत्तरायण कहा जाता है। 


साल को उत्तरायण और दक्षिणायन के रूप में बांटने के पीछे सूर्य की दिशा परिवर्तन को मुख्य वजह होती है। पौष माह यानि जनवरी के महीने में मकर संक्रांति' के समय सूर्य अपनी दिशा में (सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए) की दिशा में परिवर्तन करते हुए दक्षिण से उत्तर दिशा की तरफ आ जाता है। जिसकी वजह से इस काल को उत्तरायण भी कहा जाता है।


जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं तो बेहद शुभ समय होता है, क्योंकि पृथ्वी प्रकाशमय रहती है इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। जबकि सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है।


इसके साथ ही इस समय सूर्य की किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं।सब कुछ प्रकृति के नियम के तहत है, इसलिए सभी कुछ प्रकृति से बद्ध है। जिस तरह पौधा प्रकाश में अच्छे से खिलता है, अंधकार में सिकुड़ जाता है। उसी तरह मानव जीवन और प्रकृति भी इस दौरान अपने स्वरूप को बदलने की प्रक्रिया की शुरूआत करती है और बसंत के आने पर अपना पूरा रूप बदल लेती है।


पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। हालांकि ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल संभव नहीं, लेकिन इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र के संबंधों में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।

कालगणना के अनुसार जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है, तब तक के समय को उत्तरायण कहते हैं।

यह समय छ: माह का होता है. तत्पश्चात जब सूर्य कर्क राशि से सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, और धनु राशि में विचरण करता है तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं. इस प्रकार यह दोनो अयन 6-6 माह के होते हैं।

इसलिए शास्त्रों में इस त्यौहार का विशेष महत्व माना गया है।


मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है। मकर संक्रांति का महत्व हिंदू धर्मावलंबियों के लिए वैसा ही है जैसे वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय।


स्वयं भगवान #श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत #सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है।


महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था, कारण कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएँ या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है। दक्षिणायन में देह छोड़ने पर बहुत काल तक आत्मा को अंधकार का सामना करना पड़ सकता है। 


इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं ,सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं।


सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही #हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।


प्रयाग में प्रथम अमृत ( शाही ) स्नान के दिन देश के कोने कोने से साधू तथा श्रद्धालु आते हैं तथा माता गंगा , यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान करके अपने जीवन को धन्य करते हैं। 


मकर संक्रांति के दिन ही पवित्र गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। इसी दिन माता गंगा भगीरथ के पीछे चलकर गंगासागर में मिली थीं ।

गंगासागर बंगाल की खाड़ी के Continental shelf (महाद्वीपीय मग्नतट) में कोलकाता से 150 कि॰मी॰ (80 मील) दक्षिण में एक द्वीप है। यहीं गंगा नदी का सागर से संगम माना जाता है; जहां गंगा-सागर का मेला लगता है । गंगा के बंगाल की खाड़ी में पूर्ण विलय (संगम) के बिंदु पर गंगा-सागर का मेला लगता है, व प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर लाखों हिन्दू श्रद्धालुओं का तांता लगता है ; जो गंगा नदी के सागर से संगम पर नदी में स्नान करने के इच्छुक होते हैं।


यहाँ एक मंदिर भी है जो कपिल मुनि के प्राचीन आश्रम स्थल पर बना है। ये लोग कपिल मुनि के मंदिर में पूजा अर्चना भी करते हैं। पुराणों के अनुसार कपिल मुनि के श्राप के कारण ही राजा सगर के ६० हज़ार पुत्रों की इसी स्थान पर तत्काल मृत्यु हो गई थी। उनके मोक्ष के लिए राजा सगर के वंश के राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे और गंगा यहीं सागर से मिली थीं। 


राजा भगीरथ सूर्यवंशी थे, जिन्होंने भगीरथ तप साधना के परिणामस्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है। पितामह भीष्म का श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है। 


इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।उत्तर भारत में यह पर्व 'मकर सक्रान्ति के नाम से और गुजरात में 'उत्तरायण' नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति को पंजाब में लोहडी पर्व, उतराखंड में उतरायणी, गुजरात में उत्तरायण, केरल में पोंगल, गढवाल में खिचडी संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है।मकर संक्रांति का पर्व संपूर्ण भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में आयोजित होता है।


पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति का पर्व पंचशक्ति की साधना से ग्रहों को अपने अनुकूल बनाने का पर्व है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है। यह तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है। संकल्प शक्ति बढ़ती है। ज्ञान तंतु विकसित होते हैं। मकर संक्रांति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है।


लोक आस्था, समरसता और जगत पिता भगवान सूर्य की उपासना के पावन पर्व 'मकर संक्रांति' (#खिचड़ी) की  हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं!


लोक-कल्याण और सांस्कृतिक उत्थान का प्रतीक यह महापर्व सभी के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि एवं आरोग्यता का संचार करे, भगवान भास्कर से यही प्रार्थना है।

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Source: Social Media

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

30 नवंबर 2024

ईश्वर से क्या मांगे ?* *भगवान महान है ! | What should I ask from God? God is great!!

 



ईश्वर से क्या मांगे ?* *भगवान महान है !! हमें अमूल्य शरीर दिया है*

हे प्रभु !! हमने कोई भी आवेदन नहीं किया। किसी की भी सिफारिश नहीं थी,ऐसा कोई मेरी उपलब्धि भी नहीं है,फिर भी

सिर के *बालों से* लेकर पैर के *अंगूठे तक* 24 घंटे भगवान, तू *रक्त* प्रवाहित करता है !!

*जीभ पर* नियमित लार से अभिषेक कर रहा है !! निरंतर तू मेरा ये *हृदय* चलाता है !!

चलने वाला कौन सा *यंत्र* तुमने फिट कर दिया है *हे भगवान !! पैर के नाखून से लेकर सिर के बालों तक बिना रुकावट संदेशवाहन करने वाली प्रणाली* किस *अदृश्य शक्ति* से चल रही है,कुछ समझ नहीं आता।

*हड्डियों और मांस में* बनने वाला *रक्त* कौन सा अद्वितीय *आर्किटेक्चर* है। इसका हमें कोई अंदाजा नहीं है। आंखे !! *हजार-हजार मेगापिक्सल वाले दो-दो कैमरे* दिन-रात सारी दृश्यें कैद कर रहे हैं।

*दस-दस हजार* टेस्ट करने वाली और तुरंत रिजल्ट देने वाली *जीभ* नाम की टेस्टर,

अनगिनत *संवेदनाओं* का अनुभव कराने वाली *त्वचा* नाम की *सेंसर प्रणाली*

और अलग-अलग *फ्रीक्वेंसी की* आवाज पैदा करने वाली *स्वर प्रणाली* और उन फ्रीक्वेंसी का *कोडिंग-डीकोडिंग* करने वाले *कान* नाम का यंत्र !!

*पचहत्तर प्रतिशत पानी से भरा शरीर रूपी टैंकर हजारों छेद होने के बावजूद कहीं से भी लीक नहीं होता।*

*स्टैंड के बिना* मैं खड़ा रह सकता हूँ...गाड़ी के *टायर* घिसते हैं, पर पैर के *तलवे* कभी नहीं घिसते। हे प्रभु !!

*अद्भुत* आपकी ऐसी रचना है।

*देखभाल,स्मृति,शक्ति,शांति ये सब भगवान तू देता है।* तू ही अंदर बैठ कर *शरीर* चला रहा है। *अद्भुत* है यह सब, *अविश्वसनीय,*

*असमझनीय।*

*अकल्पनीय।*

ऐसे *शरीर रूपी* मशीन में हमेशा तुम *आत्मा* के रूप में शरीर के अंदर विराजमान हो, और क्या मांगूं तुझसे???

तेरे इस *जीवा-शिवा* के खेल का निश्छल, *निस्वार्थ आनंद* का हिस्सा रहूँ!ऐसी *सद्बुद्धि* मुझे दे प्रभु !! तू ही यह सब संभालता है इसका *अनुभव* मुझे हमेशा रहे!!! रोज पल-पल कृतज्ञता से तेरा ऋणी होने का स्मरण,चिंतन होता रहे। *यही आप परमपिता परमेश्वर के चरणों में प्रार्थना है !!*

🙏🙇🏻‍♂️🙏🌹

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साभार :  विक्रम हिंदू

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12 अक्टूबर 2024

Happy Dussehra दशहरा विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं






#दशहरा, जिसे #विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख #हिंदू त्यौहार है। यह #त्यौहार नवरात्रि के अंत का प्रतीक है, जो #देवी #दुर्गा को समर्पित नौ रातों का उत्सव है। दशहरा आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में मनाया जाता है। यह भगवान #राम की राक्षस राजा #रावण पर जीत का जश्न मनाता है | 

विजयादशमी का त्यौहार पूरे भारत में बुराई पर अच्छाई की जीत, असत्य पर सत्य, अनैतिकता पर नैतिकता की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे 'दशहरा' के रूप में मनाया जाता है और रावण पर भगवान राम की जीत को 'रावण दहन' के माध्यम से दर्शाया जाता है

मैसूर का दशहरा प्रसिद्ध है क्योकि मैसूर के वोडेयार ने विजयनगर साम्राज्य के दक्षिणी भाग में एक राज्य का गठन किया और महानवमी (दशहरा) उत्सव का उत्सव जारी रखा, यह परंपरा राजा वोडेयार प्रथम (1578-1617 ई.) द्वारा सितंबर 1610 के मध्य में श्रीरंगपट्टनम में शुरू की गई थी।


 शासकों के संरक्षण के कारण मैसूर में इसे शाही रंग प्राप्त हुआ तथा नलवाड़ी कृष्णराज वाडियार के शासनकाल में इसकी भव्यता चरम पर पहुंच गई, जिनका शासन काल 1902 से 1940 तक था।

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11 अक्टूबर 2024

ऊँ महा लक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात !!

 


ॐ नमो ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्लीं क्लीं श्रीं लक्ष्मी मम गृहे धनं देही चिन्तां दूरं करोति स्वाहा ॥


ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥


ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये, धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥


ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः 


लक्ष्मी गायत्री"  ऊँ महा लक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च  धीमहि तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात !! 


शुक्र गायत्री

ऊँ भृगुसुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि, तन्न शुक्र: प्रचोदयात् !! 


शुक्रकृपामय हो आपका आज का दिन । 

ऊँ  श्री महालक्ष्म्यै नमः ऊँ श्री शुक्राय नम: 


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।


सभी सुखी होवें,सभी रोगमुक्त रहें,सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।


यौवनं जीवनं वित्तं

छाया लक्ष्मीश्च स्वामिता।

चञ्चलानि षडेतानि

ज्ञात्वा धर्मरतो भवेत्।।


यौवन, जीवन, धन, छाया, लक्ष्मी और प्रभुत्व - ये छः चंचल होते हैं, यह जानकर मनुष्य को धर्माचारी होना चाहिए।


धन की देवी माता श्री लक्ष्मी रिद्धि सिद्धि के दाता प्रथम पुज्य श्री गणेश एवं धन धान्य के देवता (स्वामी) श्री कुबेर महाराज हम सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें मै यही प्रर्थना करता हूँ!  🙏

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03 अक्टूबर 2024

Navratri नवरात्रि



शरद ऋतु की शुरुआत में पड़ने वाला त्यौहार, जिसे शरद #नवरात्रि भी कहा जाता है, सबसे महत्वपूर्ण है।


#नवरात्रि से वातावरण के तमस का अंत होता है और सात्विकता की शुरुआत होती है. मन में उल्लास, उमंग और उत्साह की वृद्धि होती है. दुनिया में सारी #शक्ति, #नारी या #स्त्री स्वरूप के पास ही है. इसलिए इसमें देवी की उपासना ही की जाती है।


यह त्यौहार देवी दुर्गा को समर्पित है, जिनके नौ रूपों की नौ दिनों तक पूजा की जाती है । प्रतिपदा से लेकर #नवमी तक माता चंडी को प्रसन्न करने के लिए प्रभु श्री राम ने अन्न जल कुछ भी ग्रहण नहीं किया. नौ दिनों तक माता #दुर्गा के स्वरूप #चंडी देवी की उपासना करने के बाद भगवान #राम को #रावण पर विजय प्राप्त हुई थी. ऐसा माना जाता है कि तभी से नवरात्रि मनाने और 9 दिनों तक व्रत रखने की शुरुआत हुई |


#नवरात्रि_व्रत रख रहे हैं, तो इस व्रत में आपको पूरी तरह से शुद्ध और पवित्र होना चाहिए। आप तन, मन और विचार से शुद्ध रहें। ...


नौ दिनों  के व्रत में मन को शांत रखते हुए क्रोध न करें। दिन भर मां के नामों का जाप करें और किसी भी महिला या कन्या का अपमान न करें।


दुर्गा के नौ रूप और नौ दिनों तक चलने वाला उत्सव जीवन के महत्वपूर्ण सबक सिखाता है? जी हाँ, यह सच है कि दुर्गा के नौ रूप जीवन के सबक जैसे शक्ति, विकास, बुराई का नाश, खुशी, शांति, जोश, स्वास्थ्य और मर्यादा और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं।


इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है। मनुष्य की संपूर्ण विपत्तियां दूर हो जाती हैं और घर में समृद्धि की वृद्धि होती है, बन्ध्या को पुत्र प्राप्त होता है। समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है और मन का मनोरथ सिद्ध हो जाता है।


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11 सितंबर 2024

Radhashtami .... राधाष्टमी ....जय श्री राधे......


 

राधा रानी के बगैर भगवान श्री कृष्ण अधूरे माने जाते हैं, 

'भाद्र मास में शुक्ल पक्ष की #अष्टमी' को #कृष्ण प्रिया #राधा जी का जन्म हुआ था,अत: यह दिन #राधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। 

राधाष्टमी के अवसर पर उत्तर प्रदेश के बरसाना में हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं. राधा रानी जी की जन्म स्थली रावल गाँव है.और राधा रानी जी की लीला स्थली बरसाना है. 

#बरसाना मथुरा से 50 कि.मी. दूर उत्तर-पश्चिम में और गोवर्धन से 21 कि.मी. दूर उत्तर में स्थित है. 

Radhashtami is a Hindu religious day commemorating the birth anniversary of the goddess Radha, the chief consort of the god Krishna. It is celebrated in her birthplace Barsana and the entire Braj region on the eighth day of the bright half of the lunar month of Bhadrapada.

यह भगवान #श्रीकृष्ण की प्यारी राधा जी की जन्म स्थली है.

इस दिन राधा जी का जन्म हुआ था.अष्टमी के दिन महाराज वृषभानु  की पत्नी कीर्ति के यहां #भगवती राधा अवतरित हुई. 

तब से भाद्रपद शुक्ल अष्टमी 'राधाष्टमी' के नाम से विख्यात हो गई.यह व्रत भाद्रपद के #शुक्ल_पक्ष की अष्टमी को किया जाता है.

यह #कृष्ण_जन्माष्टमी के पन्द्रह दिन बाद अष्टमी को ही राधा जी का जन्मदिन मनाया जाता हैं. 

इस दिन राधा जी का विशेष पूजन और व्रत किया जाता है.नारदपुराण के अनुसार 'राधाष्टमी' का व्रत करने वाला भक्त ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेता है. 

श्रीकृष्ण की भक्ति, प्रेम और रस की त्रिवेणी जब हृदय में प्रवाहित होती है, तब मन तीर्थ बन जाता है। 'सत्यम शिवम सुंदरम' का यह महाभाव ही 'राधाभाव' कहलाता है। 

श्रीकृष्ण वैष्णो के लिए परम आराध्य हैं. वैष्णव श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानते हैं. आनंद ही उनका स्वरूप है. श्रीकृष्ण ही आनंद का मूर्तिमान स्वरूप हैं. कृष्ण प्रेम की सर्वोच्च अवस्था ही 'राधाभाव ' है. 

इस दिन राधा जी को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर उनका श्रृंगार करते है. स्नानादि से शरीर शुद्ध करके मण्डप के भीतर मण्डल बनाकर उसके बीच में मिट्टी या तांबे का शुद्ध बर्तन रखकर उस पर दो वस्त्रों से ढकी हुई राधा जी की स्वर्ण या किसी अन्य धातु की बनी हुई सुंदर मूर्ति स्थापित करते है, 

इसके बाद मध्याह्न के समय श्रद्धा, भक्तिपूर्वक राधा जी की पूजा करते है, भोग लगाकर #धूप, #दीप, #पुष्प आदि से #राधाजी कि आरती की जाती है. 

यदि संभव हो तो उस दिन #उपवास करना चाहिए. फिर दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर और मूर्ति को दान करने का बाद स्वयं भोजन करना चाहिए, इस प्रकार इस व्रत की समाप्ति करें. 

इस प्रकार विधिपूर्वक व श्रद्धा से यह व्रत करने पर मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है व इस लोक और परलोक के सुख भोगता है. मनुष्य ब्रज का रहस्य जान लेता है तथा राधा परिकरों में निवास करता है. 

#जय_श्री_राधे......

साभार: श्री राधा रानी बरसाना 

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28 जून 2024

हमेशा अच्छे लोगों के साथ ही बुरा क्यों होता है? | Why do bad things always happen to good people?



हमेशा अच्छे लोगों के साथ ही बुरा क्यों होता है?     

Why do bad things always happen to good people?


दुनिया अनहोनी और अनिश्तिता से भरी हुई हैं | यही जीवन हैं |

The world is full of uncertainty and unpredictability. That is life.


आप कितने आध्यात्मिक या अच्छे है, इसका इस बात से कोई संबंध नहीं हैं की आपको कितना कष्ट सहना होगा | किसी के आध्यात्मिक विकास का मतलब यह नहीं है कि वह प्रकृति के नियमों के दायरे से बाहर है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन क्या है , जीवन में कोई गारंटी नहीं है। और शायद, यह अनिश्चितता ही हमारे जीवन को साहसिक बनाती है।

How spiritual or good you are has nothing to do with how much suffering you have to endure. One's spiritual growth does not mean that one is beyond the laws of nature. No matter who one is, there are no guarantees in life. And perhaps, this uncertainty is what makes our lives adventurous.


अच्छा या महान होना आपको शारीरिक या मानसिक रोगों से बचा नहीं सकता है।

Being good or great does not protect you from physical or mental diseases.


अच्छा होने का मतलब यह नहीं है कि आप सड़क दुर्घटना का शिकार नहीं हो सकते।

Being good does not mean that you cannot be a victim of a road accident.


अच्छा होने से आपके शेयर की कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ता है |

Being good does not affect the price of your shares.


अच्छा होने मात्र से आप किसी प्रतियोगी परीक्षा में सफल नहीं हो सकते |

Just being good cannot make you successful in any competitive exam.


यदि आप किसी से बहुत प्यार करते हैं और वफादार हैं तो भी इसकी कोई गारंटी नहीं की आपका साथी आपको धोखा नहीं दे सकता |

If you love someone very much and are loyal, there is no guarantee that your partner will not betray you.


फिर सवाल तो यही उठता हैं कि क्या हमें बुरा होना चाहिए ? जी बिलकुल नहीं | 

Then the question arises whether we should be bad? No, not at all.


अच्छाई हमें चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करने की ताकत देती है | हमारी चुनौतियां हमें परखती हैं और उससे हमारा एक दृष्टिकोण निर्धारित होता हैं। बेशक हमारी अच्छाई हमें जीवन के कष्टों से नहीं बचा सकती परन्तु हमारा दृषिकोण हमे उस कष्ट की अवस्था में भी सम्बल प्रदान कर सकता हैं | 

Goodness gives us the strength to face challenges and difficulties. Our challenges test us and that determines our perspective. Of course our goodness cannot save us from the hardships of life but our attitude can give us strength even in that state of hardship.


एक उचित दृष्टिकोण के होने से आप कष्ट की अवस्था में भी दुःख का अनुभव नहीं करेंगे, आपको परेशान करने की कोशिश अवश्य की जा सकती हैं परन्तु कोई आपको कुचल नहीं पायेगा |

With a right attitude, you will not feel sad even in hardships. Attempts may be made to trouble you but no one will be able to crush you.


अच्छाई प्रार्थना हैं, ध्यान हैं, एक तप हैं | अच्छाई ही साक्षात् ईश्वर हैं, अतः हर परिस्थिति में अच्छा बने रहना ही उचित हैं |

Goodness is prayer, meditation, a penance. Goodness is God himself, so it is appropriate to remain good in every situation.


#Goodness_is_prayer, #meditation,  #penance, #Goodness_is_God, #himself, #appropriate, #good, #situation, #Being_good, #great #protect, #physical, #mental

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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07 जून 2024

Navagraha Deepam | नवग्रह दीपम




नवग्रह दीपम नवग्रह या नौ ग्रह हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण देवता हैं। हमें जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा प्राप्त होती है, उसमें इन खगोलीय पिंडों से आने वाली अलग-अलग ऊर्जाएँ शामिल होती हैं। #Navagraha #Deepam Navagrahas, or the Nine #Planets, are important deities of the #Hindu #religion. The cosmic energy we receive contains different energies coming from these celestial bodies. 

#नवग्रह दीपम (#दीपक) हमारे #घर के #पूजा कक्ष में सकारात्मक कंपन को प्रेरित करने के लिए जलाया जाता है। इस दीपक में, #भगवान #सूर्य (संस्कृत: सूर्य, सूर्य), #सूर्य, केंद्र स्थान पर होते हैं। भगवान सूर्य हमारे सौर मंडल में जीवन का स्रोत हैं और ज्ञान के प्रकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं जो हमारे अंधकार को दूर करता है। नवग्रह दीपम में, भगवान सूर्य अन्य ग्रहों (ग्रहों) से घिरे होते हैं।

The #Navagraha #Deepam (lamp) is lit in the #puja room of our house to inspire positive vibrations. In this lamp, Lord Surya (#Sanskrit: #सुर्य, surya), the #Sun, occupies the center place. #Lord #Surya is the source of #life in our #Solar_System and represents the #Light of #Wisdom who #dispels our #darkness. In the #Navagraha Deepam, Lord Surya is surrounded by the other Grahas (planets). 

दीपक के नौ मुख नवग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। शनि देव (संस्कृत: शनि, शनि) को प्रसन्न करने के लिए शनि का मुख लोहे या स्टील से बना है, जो सत्य पर आधारित आंतरिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। दीपक को इस तरह से रखना चाहिए कि शनि का मुख पश्चिम दिशा की ओर हो।

The nine faces of the lamp represent the Navagrahas. The face of #Saturn is made of #iron, or #steel, to please #Shani_Dev (#Sanskrit: शनि, #sani), who represents the inner strength that is founded in #Truth. The lamp is to be placed is such a way so that the face of #Saturn #points in the West direction. 

शनि देव के मुख के ठीक विपरीत #शुक्र (संस्कृत: शुक्र, शुक्र) का मुख है। शुक्र, जो शुक्र #ग्रह है, #प्रेम और #लगाव का प्रतीक है। शुक्र असुरों (द्वैत की शक्तियों) के #गुरु हैं, और हमें इंद्रियों में लिप्त होने की कला सिखाते हैं। सफलता और खुशी का स्वागत करने के लिए इस दीपक के सभी मुखों को प्रतिदिन जलाया जा सकता है। वैकल्पिक रूप से, शनिवार को भी दीपक जलाया जा सकता है।

#Diametrically opposite to the face of Shani Dev, is the face for Shukra (Sanskrit: शुक्र, śukra). Shukra, which is the planet Venus, is the emblem of love and attachment. #Shukra is the Guru of the asuras (forces of duality), and teaches us the art of indulging in the senses. All of the faces in this l#amp can be lit daily to welcome success and happiness. Alternately, the #lamp can be lit on Saturdays. 

शनिवार को जब कोई दीपक जलाता है, तो उसे तीन मुखों में से प्रत्येक को जलाने का सुझाव दिया जाता है। एक मुख शुक्र के लिए, जो पिछले दिन का प्रतिनिधित्व करता है, एक शनि देव के लिए, और एक अगले दिन के लिए भगवान सूर्य के लिए। घर में इस नवग्रह दीप को जलाने से समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य, मन की शांति और साहस मिलता है।

When one lights the lamp on Saturday, it is suggested that each of three faces be lit. One face for Shukra, which represents the prior day, one for Shani Dev, and one for Lord Surya for the following day. Lighting this Navagraha Deepam in the house brings prosperity, good health, peace of mind, and courage. 

दीप जलाते समय लाभकारी प्रभाव के लिए निम्नलिखित श्लोक का जाप करना चाहिए: शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धन संपदां मम बुद्धि प्रकाशाय दीप ज्योतिर् नमोस्तुते

While lighting the Deepam the following verse should be chanted for beneficial effects: SUBHAM KAROTHI KALYANAM AAROGYAM DHANA SAMPADHAM MAMA BUDDHI PRAKASHAYA DEEPA JYOTHIR NAMOSTUTHE . 

हर दिन अलग-अलग दीप जलाने के लाभ

Benefits of Lighting the Respective Deepa's on the Corresponding Days

सोमवार: अनावश्यक भय दूर होगा। त्वचा रोग ठीक होंगे। चिंता के कारण मन अशांत रहने की स्थिति दूर होगी। हीन भावना दूर होगी।


Monday: Unnecessary fears will get eliminated. Skin diseases will be cured. State of being without peace of mind due to worries will vanish. Inferiority complex will go away. 


मंगलवार: विवाह में बाधाएँ, जैसे कि विवाह का अनावश्यक रूप से स्थगित होना, दूर हो जाएगा। चेवई दोषम (प्रतिकूल ग्रहों के प्रभाव) या केतु के कारण विवाह में अन्य समस्याएँ, जो बाधाएँ प्रस्तुत करती हैं, समाप्त हो जाएँगी। यह दिन देवी के लिए शुभ है।

Tuesday: Obstacles for marriage, such as marriage getting unduly postponed, will be removed. Other problems in marriage due to Chevvai Dosham (unfavourable planetary influences), or problem due to Ketu, He who presents obstacles, will be eliminated. This day is auspicious for Devi.

बुधवार: बीमारी का समय रहते पता चल जाएगा। स्मरण शक्ति बढ़ेगी। पढ़ाई में रुकावट नहीं आएगी। अच्छे दोस्त मिलेंगे।

Wednesday: Proper diagnosis of a sickness or disease will be discovered in time. Memory power will increase. There will be no break in studies. You will get good friends. 

गुरुवार: संतान से जुड़ी परेशानियां दूर होंगी। परिवार में खुशियां बनी रहेंगी। विवाह में आ रही रुकावटें दूर होंगी और अनुकूल समाधान निकलेंगे। परिवार में संतान सुख की प्राप्ति होगी।

Thursday: Problems created by children will be removed. Happiness will prevail in the family. Obstacles to marriages will be eliminated and favorable solutions will emerge. Family will be blessed with children. 

शुक्रवार: यह दिन पति-पत्नी के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध लाता है। अनावश्यक खर्च, कर्ज की समस्या और परिवार की महिलाओं को होने वाली मानसिक पीड़ा, सब समाप्त हो जाएगी।

Friday: It brings home cordial relationship between husband and wife. Unnecessary expenditures, problems with loans, and the mental agony faced by the ladies in the family, will all come to an end. 

शनिवार: काले जादू की आशंका से डर दूर होगा। नौकरी पक्की होने की अनिश्चितता दूर होगी। व्यापार में परेशानियाँ दूर होंगी। अच्छी सेहत के साथ लंबी उम्र की गारंटी होगी। साथ ही, "राहु दोषम" या राहु (जो मन के बाहरी प्रक्षेपण को नियंत्रित करता है) के प्रतिकूल पहलू दूर होंगे। इस प्रकार, शनिवार को दीप जलाने से कई लाभ होंगे!

Saturday: Fear over apprehension of black magic will go away. Uncertainty over confirmation of a job will be removed. Problems in the business will be solved. Long life with good health will be assured. Also, "Rahu Dosham", or the unfavorable aspects of Rahu, (He Who Controls the Outward Projection of the Mind), will be removed. Thus, many benefits will accrue by lighting Deepam on Saturdays! 

रविवार: सूर्य विश्व को प्राकृतिक प्रकाश देता है। जब हम रविवार को अपने घर में घी का दीप जलाएंगे तो हमारी सभी समस्याओं के लिए भगवान को दोष देने की प्रवृत्ति दूर हो जाएगी। साथ ही, हमारे पूर्वजों के लिए अनुष्ठान और पूजा न करने के कारण होने वाली कठिनाइयों को भी समाप्त किया जाएगा। दीप की रोशनी से हमारी नसें और हृदय मजबूत होंगे। पेट की समस्याएं ठीक होंगी।

Sunday: The Sun gives the natural light for the world. When we light Deepam with ghee in our house on Sunday, our tendency to blame God for all of our problems will go away. Also, difficulties due to the non-performance of ceremonies and pujas to our ancestors be eliminated. By the light of the Deepam our nerves and heart will be strengthened. Stomach problems will be cured. 

  "नमस्कार  भानु" (सूर्य देव को साष्टांग प्रणाम पसंद है) कह सकते हैं। ऐसा कहने से हमें सूर्य नमस्कार करना याद रहेगा। साथ ही, आदित्य हृदयम (जिसे आदित्यहृदयम भी कहते हैं) का जाप करना या सुनना लाभदायक है, जो आदित्य, सूर्य देव से जुड़ा एक महान भजन है। ~ यह लेख पूज्यश्री मथिओली सरस्वती, चेन्नई, भारत द्वारा प्रेमपूर्वक प्रस्तुत किया गया है।


We can say "Namaskara Piriyar Bhanu" (The Sun God Likes Prostration). By saying this, we will remember to do Surya Namaskaram. Also, it is beneficial to chant or listen to the Aadithya Hrudayam (also spelled Ādityahṛdayam) which is a great hymn associated with Āditya, the Sun God. ~ This article is lovingly offered by Pujyashri Mathioli Saraswathy, Chennai India.


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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23 अप्रैल 2024

Hanuman Jayanti | जय श्री राम हनुमान जन्मोत्सव

 



#Hanuman_Jayanti | #जय_श्री_राम  | #हनुमान_जन्मोत्सव 

हनुमान जन्मोत्सव एक हिंदू त्योहार है जो हिंदू देवता और रामायण के नायक हनुमान के जन्मोत्सव  को मनाता है। हनुमान जन्मोत्सव का उत्सव भारत के प्रत्येक राज्य में समय और परंपरा के अनुसार अलग-अलग होता है। भारत के अधिकांश उत्तरी राज्यों में, हिंदू पंचांग के अनुसार, हनुमान जन्मोत्सव चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता  है।

जयंती और जन्मोत्सव का अर्थ भले ही जन्मदिन से होता है। लेकिन जयंती का प्रयोग ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है, जो संसार में जीवित नहीं है और किसी विशेष तिथि में उसका जन्मदिन है। लेकिन जब बात हो भगवान हनुमान की तो इन्हें कलयुग संसार का जीवित या जागृत देवता माना गया  हैं।

बजरंगबली को लड्डू, पंचमेवा, जलेबी या इमरती और बूंदी भोग के रूप में अर्पित कर सकते हैं। कहते हैं कि ये चीजें उन्हें अति प्रिय है। वहीं इसके अलावा आप बजरंगबली को गुड़-चने और पान का बीड़ा भी अर्पित कर सकते हैं।

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17 अप्रैल 2024

Happy Ram Navami | Jai Shri Ram | "राम नवमी" की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ! जय श्री राम

 


"भगवान राम" के दिव्य आशीर्वाद से आप आनंद और समृद्धि से परिपूर्ण रहें। आपको "राम नवमी" की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

हिंदू धर्म में राम नवमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पूजा-आराधना बड़ा महत्व है। हर साल चैत्र माह शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रामनवमी मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि में भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री राम का जन्म हुआ था. इस दिन  'मर्यादा पुरूषोत्तम' भगवान श्री राम को सदाचार, धार्मिकता और आदर्श इंसान के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है.


#Happy_Ram_Navami, #Jai_Shri_Ram #राम_नवमी #जय_श्री_राम 


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09 अप्रैल 2024

Gudhi Padwa | Hindu_NewYear | गुढी पाडवा | हिन्दु नववर्ष | विक्रम संवत् 2081




Gudhi Padwa |  Hindu_NewYear | गुढी पाडवा |  हिन्दु नववर्ष 

गुढी पाडवा के दिन #हिन्दू #नव #संवत्सरारम्भ माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को #गुढी_पाडवा या #वर्ष_प्रतिपदा या #उगादि कहा जाता है। इस दिन #हिन्दु_नववर्ष का आरम्भ होता है। 'गुढी' का अर्थ '#विजय_पताका' होता है। कहते हैं की #मराठी राजा #शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं का पराभव किया।

#Gudi_Padwa is a spring #festival marking the start of the #lunisolar new year for #Hindus, #primarily those of the #Marathi and #Konkani #heritage. It is #celebrated in and around #Maharashtra, #Goa & #Daman at the start of #Chaitra, the first month of the #lunisolar #Hindu_calendar. 

दक्षिण भारत क्षेत्र में मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ही वो दिन था जब भगवान श्री राम ने बालि का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को मुक्त करवाया. गुड़ी पड़वा से ही हिंदू नववर्ष शुरू होता है . इस नववर्ष के प्रथम दिन के स्वामी को पूरे साल का स्वामी माना जाता है.

It is believed in #South_India region that it was the day of Chaitra Shukla Pratipada when Lord #Shri_Ram killed #Bali and freed the people of South India. Hindu New Year starts from Gudi Padwa. The lord of the first day of this #new_year is considered the lord of the entire year.


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04 अप्रैल 2024

Indian names of months in calendar | कैलेंडर में महीने के भारतीय नाम | हिंदू नववर्ष और हिंदी में 12 महीनों के नाम

 



Indian names of months in calendar | कैलेंडर में महीने के भारतीय नाम 

कब शुरू होता है हिंदू नववर्ष, हिंदी में 12 महीनों के नाम

भारतीय उपमहाद्वीप में संस्कृति, प्रकृति और देवत्व के बीच गहरे संबंध को दर्शाता है।

हिंदी कैलेंडर में चैत्र साल का पहला और फाल्गुन साल का आखिरी महीना होता है। हिंदू धर्म में आने वाले सभी महीनों के नाम इस प्रकार हैं- चैत्र, बैसाखी, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।

१. चैत्र (मार्च-अप्रैल) :- कई क्षेत्रों में हिंदू नव वर्ष की शुरुआत होती है, जिसे दक्षिण में उगादि और कश्मीर में नवरेह के रूप में मनाया जाता है। भगवान राम के जन्मोत्सव राम नवमी का त्योहार इसी महीने में आता है।

२. वैशाख (अप्रैल-मई) :- यह महीना विवाह के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस महीने में मनाई जाने वाली अक्षय तृतीया को हिंदू मान्यताओं के अनुसार सबसे शुभ दिनों में से एक माना जाता है।

३. ज्येष्ठ (मई-जून) :- वट पूर्णिमा के त्योहार के लिए जाना जाता है, जहां विवाहित महिलाएं अपने पतियों की दीर्घायु के लिए दिन भर का उपवास रखती हैं। यह भारत के कई हिस्सों में गर्म, शुष्क मौसम की शुरुआत भी है।

४. आषाढ़ (जून-जुलाई) :- मानसून के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। आध्यात्मिक और शैक्षणिक शिक्षकों का सम्मान करने वाला गुरु पूर्णिमा का त्योहार इसी महीने में आता है।

५. श्रावण (जुलाई-अगस्त) :- अत्यधिक शुभ, रक्षा बंधन जैसे कई त्योहारों से भरा, भाई-बहन के बीच के बंधन का पर्व और भगवान कृष्ण के जन्म का प्रतीक जन्माष्टमी।

६. भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) :- भगवान श्री गणेश के जन्म का पर्व मनाने वाले गणेश चतुर्थी उत्सव के लिए जाना जाता है। गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन उत्सव के समापन का प्रतीक है।

७. अश्विन (सितंबर-अक्टूबर) :- नवरात्रि उत्सव मनाया जाता है, जिसका समापन दशहरा में होता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया जाता है और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।

८. कार्तिका (अक्टूबर-नवंबर):- प्रकाश के त्योहार दिवाली जो अंधेरे पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह अनुष्ठानिक स्नान, कार्तिक स्नान के लिए भी जाना जाता है।

९. मार्गशीर्ष (नवंबर-दिसंबर) :- भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित एक पवित्र महीना माना जाता है। यह आध्यात्मिक चिंतन और भक्ति का समय है।

१०. पौष (दिसंबर-जनवरी) :- उत्तर भारत में लोहड़ी त्योहार के लिए जाना जाता है, जो सर्दियों के अंत और रबी फसलों की कटाई का प्रतीक है।

११. माघ (जनवरी-फरवरी) :- बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है, जो ज्ञान और विद्या की देवी सरस्वती को समर्पित है। यह नदियों में अनुष्ठानिक स्नान का भी समय है।

१२. फाल्गुन (फरवरी-मार्च) :- रंगों के त्योहार होली के लिए मनाया जाता है, जो बसंत के आगमन और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

इनमें से प्रत्येक महीने का अपना महत्व है, 

जो ऋतुओं की चक्रीय प्रकृति, कृषि पद्धतियों और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में संस्कृति, प्रकृति और देवत्व के बीच गहरे संबंध को दर्शाता है।


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03 अप्रैल 2024

Kaliyuga is the time in which we are living | कलियुग वह समय है जिसमें हम जी रहे हैं । Kalki Avatar | कल्कि अवतार




#भविष्य #पुराण के अंतिम अध्यायों में कहा गया है कि कलियुग वह समय है जिसमें हम वर्तमान में जी रहे हैं। इस समय को स्पष्ट रूप से बुराई के युग के रूप में वर्णित किया गया है, जब लोग केवल पीड़ित होने के लिए पैदा होते हैं। #कलियुग #Kaliyuga अंधकार, पीड़ा, दुख, संघर्षों का युग है। यह #स्वर्ण #युग का उल्टा प्रतिबिंब है, और इसे लौह युग या कब्जे का युग भी कहा जाता है।

#कल्कि #पुराण #Kalki #Puran में इस प्रकार अंधकार के युग की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है:




समय के अंत में, ब्रह्माण्ड निर्माता, ब्रह्मा ने खुद से उत्पन्न पापों को अपनी पीठ पर गिरने दिया। इस प्रकार अधर्म अस्तित्व में आता है। अधर्म की पत्नी, सुंदर मिथ्या (झूठ) जंगली बिल्ली की आँखों के साथ, अपने घृणित पुत्र शाम्ब (धोखे) को जन्म देती है। उनकी बहन #माया  #Maya (भ्रम) लोभे (इच्छा) को जन्म देगी, जबकि उनकी विकृति (रोग) नाम की बेटी क्रोध (क्रोध) को जन्म देगी, जिसकी बहन हिमसा (हिंसा) कलियुग को जन्म देगी। भयानक कलियुग पवित्र सुगंध, झूठ, शराब, स्त्री और सोने की शक्ति पर टिका हुआ है। उसकी बहन दुर्कृति (बुरे कर्म) भया (डरावनी) नाम के एक लड़के और मृत्यु (मृत्यु) नाम की एक लड़की को जन्म देगी जो निरया (नरक) का निर्माण करेगी।


लिंग पुराण में एक और विस्तृत विवरण है:


कलियुग के लोग दिखावा करेंगे कि वे जाति और विवाह के पवित्र अर्थ के बीच के अंतर के बारे में नहीं जानते हैं, अपने गुरु के प्रति शिष्य के रवैये और कर्मकांड के महत्व के बारे में नहीं जानते हैं। लोग केवल अधिक धन अर्जित करने का प्रयास करेंगे, और सबसे अमीर लोगों के पास सबसे अधिक शक्ति होगी। जीवन एकरूप हो जाएगा, भ्रम और बेईमानी हर चीज में राज करेगी। लिंगों के बीच एकमात्र संबंध आनंद होगा, सफलता प्राप्त करने का एकमात्र तरीका प्रतिस्पर्धा और झूठ होगा।


उसी कल्कि पुराण के अनुसार, "पृथ्वी माता के नेतृत्व में उदास और दुखी देवता", ब्रह्मा के निवास के लिए रवाना होंगे। अपनी बारी में, ब्रह्मा विष्णु से अपील करेंगे, और विष्णु पृथ्वी पर उतरने का वादा करेंगे। धर्म को पुनर्स्थापित करने और कलियुग को नष्ट करने के लिए, विष्णु एक अवतार के रूप में शम्भाला शहर में प्रकट होंगे।


कलियुग युग के और भी अभिलेख हैं, जो वर्तमान की सामान्य तस्वीर के पूरक हैं। विशेष रूप से:


विष्णु पुराण: "पृथ्वी पर अस्थायी सम्राट होंगे, झगड़ालू और क्रूर राजा, झूठ और बुराई का पालन करने वाले। वे महिलाओं और बच्चों को मार डालेंगे... वे अपनी संपत्ति से प्रजा को वंचित करेंगे। उनका जीवन छोटा होगा और लालची इच्छाएं होंगी। अलग अलग देशों के लोग उनके साथ जुड़ेंगे... दौलत कम हो जाएगी जब तक कि पूरी दुनिया नाश न हो जाए। संपत्ति ही पैमाना होगी। दौलत पूजा का कारण होगी। कामवासना ही लिंगों का मिलन होगा। झूठ ही जरिया होगा अदालतों में सफलता का। महिलाएं वासना की वस्तु बन जाएंगी। एक अमीर व्यक्ति को शुद्ध माना जाएगा। शानदार कपड़े गरिमा का संकेत होंगे... इस प्रकार, कलियुग में स्थायी पतन होगा... और फिर, पर कल्कि अवतार होगा #कल्कि_अवतार #Kalki_Avatar का अंत... वह पृथ्वी पर न्याय बहाल करेगा... जब सूर्य, चंद्रमा, तिष्य और बृहस्पति एक साथ आएंगे, तो श्वेत सत्य युग वापस आ जाएगा।


"पाँच हज़ार साल पहले ऋषि व्यासदेव बद्रीनाथ में सरस्वती नदी के तट पर बैठे थे और उन्होंने अपने ध्यान में देखा कि कैसे कलियुग के युग में जो अभी शुरू हुआ है लोग आध्यात्मिक ज्ञान को और नीचे गिरा देंगे और भूल जाएंगे। उसने पहले ही देख लिया था कि मानव जीवन की अवधि कम हो जाएगी (बाइबल यह भी कहती है कि परमेश्वर ने लोगों के जीवन को छोटा कर दिया है...), और लोग अधिक से अधिक लालची, कामुक और दुखी हो जाएंगे। वैदिक ज्ञान पृथ्वी के चेहरे से गायब हो जाएगा और विस्मरण के लिए समर्पित हो जाएगा।


पद्म पुराण (7.26.15-17) में उल्लेख है कि कलियुग पाप का घर है, जब हर कोई पापमय गतिविधियों में व्यस्त है। लोग आध्यात्मिक सत्य को अस्वीकार करते हैं और खेल और चोरी में संलग्न रहते हैं। हर कोई सेक्स और नशीले पेय से जुड़ा हुआ है। विधर्मियों और नास्तिकों को सबसे आगे रखा गया है।


श्रीमद्भागवतम् (12.3.39-40) कलियुग के युग में मानव मन स्थायी रूप से उत्तेजित रहेगा। लोग भय और उच्च करों से पीड़ित होंगे, भूख और सूखे से थके हुए होंगे...


ब्रह्माण्ड पुराण (1.2.31.31-35) में कहा गया है कि कलियुग की प्रमुख विशेषताएं क्रूरता, ईर्ष्या, झूठ, कपट और छल, धार्मिक और नैतिक सिद्धांतों की बर्बादी, घातक रोग, भुखमरी और भय हैं।


और यह #हिंदू शास्त्रों में उपलब्ध जानकारी का केवल एक हिस्सा है। कलियुग के अंत और सभी धर्मों में वर्णित निर्णय के दिन के लिए (और इसी तरह की वार्ता आज तक कम नहीं होती है), भविष्य पुराण सहित वेद स्पष्ट समझ प्रदान करते हैं: कलियुग का अंत और दुनिया का अंत अपरिहार्य। इसके अलावा, हिंदू शास्त्रों में वास्तव में उद्धारकर्ता, दिलासा देने वाले के आगमन के बारे में शब्द हैं, जिन्हें कल्कि अवतार कहा जाता है।


साभार : Er. Raghav

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. , 

27 मार्च 2024

Chaunsath Yogini | चौंसठ योगिनी आदिशक्ति मां काली का अवतार





#Chaunsath_Yogini |  #चौंसठ_योगिनी #आदिशक्ति #मां #काली का #अवतार

चौसठ योगिनी मंदिर या चौंसठ योगिनियां प्रायः आदिशक्ति मां काली का अवतार या अंश होती है। घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने उक्त चौंसठ चौंसठ अवतार लिए थे । यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पार्वती  की सखियां हैं। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं  की भी गणना की जाती है। ये सभी प्रायः आद्य शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं। भारत में आठ या 9 प्रमुख चौसठ-योगिनी मंदिर का उल्लेख मिलता है । इसमें केवल पांच के लिखित साक्ष्य उपलब्ध होते हैं-दो ओडिशा में तथा तीन मध्य प्रदेश में। समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं तथा इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं। प्रमुख रूप से आठ योगिनियों के नाम इस प्रकार हैं:- 1.सुर-सुंदरी योगिनी, 2.मनोहरा योगिनी, 3. कनकवती योगिनी, 4.कामेश्वरी योगिनी, 5. रति सुंदरी योगिनी, 6. पद्मिनी योगिनी, 7. नतिनी योगिनी और 8. मधुमती योगिनी।

चौंसठ #योगिनियों के नाम :- 

1.बहुरूप, 3.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वालाकामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी. 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा,28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा,  57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।  

1. चौसठ योगिनी मंदिर, #मुरैना:- 

मध्य प्रदेश के मुरैना स्थित चौसठ योगिनी मंदिर का विशेष महत्व है। इस मंदिर को गुजरे ज़माने में तांत्रिक विश्वविद्यालय कहा जाता था। उस दौर में इस मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान करके तांत्रिक सिद्धियाँ हासिल करने के लिए तांत्रिकों का जमावड़ा  लगा रहता था I

2. चौंसठ योगिनी मंदिर, #जबलपुर:- 

चौंसठ योगिनी मंदिर जबलपुर, मध्य प्रदेश का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह मंदिर जबलपुर की ऐतिहासिक संपन्नता में एक और अध्याय जोड़ता है। प्रसिद्ध संगमरमर चट्टान के पास स्थित इस मंदिर में देवी दुर्गा की 64 अनुषंगिकों की प्रतिमा है।

3. चौंसठ योगिनी मंदिर, #खजुराहो:-

 शिवसागर झील के दक्षिण पश्चिम में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर चंदेल कला की प्रथम कृति है। यह मंदिर भारत के सभी योगिनी मंदिरों में उत्तम है तथा यह निर्माण की दृष्टि से सबसे अधिक प्राचीन है। 

4. चौंसठ योगिनी मंदिर #हीरापुर उडीसा :- 

हीरापुर भुवनेश्‍वर से 20 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है। इसी गांव में भारत की सबसे छोटी योगिनी मंदिर 'चौसठ योगिनी' स्थित है।

5.#रानीपुर-

झरिया बलांनगिर उडीसा का चौंसठ योगिनी मन्दिर:-

ईटों से निर्मित यह एतिहासिक मन्दिर उड़ीसा के बलांगिर जिले के तितिलागढ़ तहसील रानीपुर झरिया नामक जुड़वे गांव में स्थित है।

जय मां जय जगत जननी 🙏🏻❤️🙏🏻

साभार: श्री कांत शर्मा  

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24 मार्च 2024

Happy Holi | होली वसंत ऋतु का प्रतिनिधित्व करने वाला एक आनंदमय त्योहार है | होली को 'फगुआ', 'धुलेंडी', 'दोल' के नाम से जाना जाता है।

 



#होली #वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण #भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह #पर्व #हिंदू #पंचांग के अनुसार #फाल्गुन मास की #पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली #रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह #भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध #त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है| 


होली को 'फगुआ', 'धुलेंडी', 'दोल' के नाम से जाना जाता है।


#Holi is a popular and significant #Hindu #festival #celebrated as the Festival of #Colours, #Love, and #Spring. It celebrates the eternal and divine love of the deities #Radha and #Krishna. Additionally, the day signifies the triumph of good over evil, as it commemorates the victory of #Vishnu as #Narasimha over #Hiranyakaship


Holi is still known as '#Fagua', '#Dhulendi', '#Dol'.


#भगवान #विष्णु के प्रति प्रहलाद की अटूट भक्ति के कारण उसके पिता #हिरणाकश्यप को क्रोध आया, जिसके कारण होलिका ने एक विश्वासघाती योजना बनाई. हालांकि, दैवीय हस्तक्षेप ने बुराई को विफल कर दिया, जिससे #होलिका दहन की शुरुआत हुई और अंधकार पर अच्छाई की जीत का स्थायी उत्सव मनाया गया | 


#Prahlad's unwavering devotion towards #Lord #Vishnu angered his father #Hiranyakashipu, due to which Holika hatched a treacherous plan. However, divine intervention thwarted the evil, leading to the beginning of #Holika Dahan and the enduring #celebration of the victory of good over darkness.


होली की रात को सिद्धि रात्रि भी कहा जाता है यानी इस रात को किए गए तंत्र उपाय जल्दी ही सिद्ध हो जाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलिका दहन से आसपास की नकारात्मक शक्तियां नष्ट होती हैं और जीवन में खुशियां आती हैं. ऐसा कहा जाता है कि होलिका दहन की राख से कई सारे दुखों से मुक्ति मिल जाती है | 


The night of Holi is also called #Siddhi_Ratri, that is, the #Tantra remedies done on this night get proved soon. According to religious beliefs, Holika Dahan destroys the negative powers around and brings happiness in life. It is said that the ashes of #Holika_Dahan provide relief from many sorrows.


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19 मार्च 2024

Mahamantra | महामन्त्र श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ।Shri Krishna Govind Hare Murari He Nath Narayan Vasudeva

 



"महामन्त्रार्थ" Mahamantratha

Shri Krishna Govind Hare Murari He Nath Narayan Vasudeva 

श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ।

यह महामन्त्र है। अन्तर्निहित अर्थ (भावार्थ) के ज्ञान सहित इसका जप करें । 

भावार्थ :

श्रीकृष्ण – हे प्रभो ! आप सभी के मनको आकर्षित करनेवाले है। अतः आप मेरा मन भी अपनी

ओर आकर्षित कर अपनी भक्ति-सेवाकी दिशामें सुदृढ़ कीजिये ।

गोविन्द – गौओंतथा इन्द्रियोंकी रक्षा करनेवाले भगवन् ! आप मेरी इन्द्रियोंको स्वयंमें लीन करें ।

हरे - हे दोखहर्ता ! मेरे दुःखोंका भी हरण करें ।

मुरारे - हे मुर राक्षसके शत्रु ! मुझमें बसे हुए काम-क्रोधादिरूपी राक्षसोंका नाश कीजिये ।

हे नाथ - आप नाथ है। और मैं अनाथ हूँ । (मुझ अनाथका भाव आप नाथके साथ जुड़ा रहे ।)

नरायण - मैं नर हूँ और आप नारायण हैं । (आपको प्राप्त करनेके लिये आपके आदर्शपर मैं तपस्यामें रत रहूँ ।)

वासुदेव – वसुका अर्थ है

प्राण । मेरे प्राणोंकी रक्षा करें । मैंने अपना मन आपके चरणोंमें अर्पित कर दिया है ।

साभार : #गीताप्रेस, #गोरखपुर द्वारा प्रकाशित "#कल्याण - संकीर्तानांक"

#जय_श्री_कृष्णा, #हरे_राम, #भक्ति, #Jai_Shri_Krishna, #Hare_Ram, #Bhakti, #Geeta_Press, #Gorakhpur, #Kalyan

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08 मार्च 2024

Maha Shivaratri | महाशिवरात्रि



महाशिवरात्रि भारतीयों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह #भगवान #शिव का प्रमुख पर्व है। #माघ फागुन फाल्गुन #कृष्ण पक्ष #चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ था। #पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग के उदय से हुआ।

Maha Shivaratri is a #Hindu #festival #celebrated annually in honour of the deity #Shiva, between February and March. According to the #Hindu_calendar, the festival is observed on the fourteenth day of the dark half of the #lunar month of Phalguna or #Magha.

मान्यता है कि महाशिवरात्रि  के दिन भगवान शिव का मां पार्वती से विवाह संपन्न हुआ था।

It is believed that on the day of Mahashivratri, Lord Shiva's marriage with Mother Parvati took place.

#महाशिवरात्रि_मंत्र  | #Mahashivratri_Mantra 

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।

ॐ नमः शिवाय

ॐ हौं जूं स:

चंद्र बीज मंत्र- 'ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:'

चंद्र मूल मंत्र- 'ॐ चं चंद्रमसे नम:'

महामृत्युंजय मंत्र को #भगवान #शिव को प्रसन्न करने वाला #मंत्र माना जाता है. #महाशिवरात्रि के दिन इस मंत्र के जाप से रोग और #अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है.  इस दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को लंबी आयु प्राप्त होती है. यह मंत्र #मांगलिक_दोष, #नाड़ी_दोष, #कालसर्प_दोष और #भूत_प्रेत_दोष से भी छुटकारा दिलाता है.

महामृत्युंजय मंत्र- 'ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||' 

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं | Happy Maha Shivratri

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07 मार्च 2024

Shri Shri Paramahansa Yogananda | श्री श्री परमहंस योगानन्द | 5 जनवरी 1893 - 7 मार्च 1952

 


🇮🇳🔶#अध्यात्म_और_योग #spirituality_and_yoga 🔶🇮🇳

🇮🇳🔶 श्री श्री परमहंस योगानन्द #Shri_Shri_Paramahansa_Yogananda  का जन्म, 5 जनवरी 1893 को, उत्तर प्रदेश के शहर #गोरखपुर में एक धर्म-परायण व समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। माता-पिता ने उनका नाम #मुकुन्द_लाल_घोष रखा। उनके सगे-संबंधियों को यह स्पष्ट दिखता था कि बचपन से ही उनकी चेतना की गहराई एवं आध्यात्म का अनुभव साधारण से कहीं अधिक था।

🇮🇳🔶 #योगानन्दजी के माता-पिता प्रसिद्ध गुरु, #लाहिड़ी_महाशय, के शिष्य थे जिन्होंने आधुनिक भारत में क्रियायोग के पुनरुत्थान में प्रमुख भूमिका निभायी थी। जब योगानन्दजी अपनी माँ की गोद में ही थे, तब लाहिड़ी महाशय ने उन्हें आशीर्वाद दिया था और भविष्यवाणी की थी, “छोटी माँ, तुम्हारा पुत्र एक योगी बनेगा। एक आध्यात्मिक इंजन की भाँति, वह कई आत्माओं को ईश्वर के साम्राज्य में ले जाएगा।”

🇮🇳🔶 अपनी युवावस्था में मुकुन्द ने एक ईश्वर-प्राप्त गुरु को पाने की आशा से, भारत के कई साधुओं और सन्तों से भेंट की। सन् 1910 में, सत्रह वर्ष की आयु में वे पूजनीय सन्त, श्री श्री #स्वामी_श्रीयुक्तेश्वर_गिरि के शिष्य बने। इस महान गुरु के आश्रम में उन्होंने अपने जीवन के अगले दस वर्ष बिताए, और उनसे कठोर परन्तु प्रेमपूर्ण आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की।

🇮🇳🔶 पहली भेंट पर ही, और उसके पश्चात कई बार, श्रीयुक्तेश्वरजी ने अपने युवा शिष्य को बताया कि उसे ही प्राचीन क्रियायोग के विज्ञान को अमेरिका तथा पूरे विश्व भर में प्रसार करने के लिए चुना गया था।

🇮🇳🔶 मुकुन्द द्वारा कोलकाता विश्वविद्यालय से सन् 1915 में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद, उनके गुरु ने उन्हें गरिमामय संन्यास परंपरा के अनुसार संन्यास की दीक्षा दी, और तब उन्हें #योगानन्द नाम दिया गया (जिसका अर्थ है दिव्य योग के द्वारा परमानन्द की प्राप्ति)। अपने जीवन को ईश्वर-प्रेम तथा सेवा के लिए समर्पित करने की उनकी इच्छा इस प्रकार पूर्ण हुई।

🇮🇳🔶 योगानन्दजी ने 1917 में, लड़कों के लिए एक “जीवन कैसे जियें” स्कूल की स्थापना के साथ अपना जीवन कार्य आरंभ किया। इस स्कूल में आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ योग एवं आध्यात्मिक आदर्शों में प्रशिक्षण भी दिया जाता था। कासिमबाज़ार के महाराजा ने स्कूल को चलाने के लिए रांची (जो कि कोलकाता से लगभग 250 मील दूर है) में स्थित अपना ग्रीष्मकालीन महल उपलब्ध कराया था। कुछ साल बाद स्कूल को देखने आए महात्मा गाँधी ने लिखा: “इस संस्था ने मेरे मन को गहराई से प्रभावित किया है।”

🇮🇳🔶 सन् 1920 में एक दिन, रांची स्कूल में ध्यान करते हुए, योगानन्दजी को एक दिव्य अनुभव हुआ जिस से उन्होंने समझा कि अब पश्चिम में उनका कार्य आरंभ करने का समय आ गया है। वे तुरंत कोलकाता के लिए रवाना हो गए, जहां अगले दिन उन्हें बोस्टन में उस साल आयोजित होने वाले धार्मिक नेताओं के एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए निमन्त्रण मिल गया। श्री युक्तेश्वरजी ने योगानन्दजी के इस संकल्प की पुष्टि करते हुए कहा कि वह सही समय था, और आगे कहा: “सभी दरवाज़े तुम्हारे लिए खुले हैं। अभी नहीं तो कभी नहीं जा सकोगे।”

🇮🇳🔶 अमेरिका प्रस्थान करने से कुछ समय पहले, योगानन्दजी को #महावतार_बाबाजी के दर्शन प्राप्त हुए। महावतार बाबाजी क्रिया योग को इस युग में पुनःजीवित करने वाले मृत्युंजय परमगुरु हैं। बाबाजी ने योगानन्दजी से कहा, “तुम ही वह हो जिसे मैंने पाश्चात्य जगत में क्रिया योग का प्रसार करने के लिए चुना है। बहुत वर्ष पहले मैं तुम्हारे गुरु युक्तेश्वर से कुंभ मेले में मिला था और तभी मैंने उनसे कह दिया था कि मैं तुम्हें उनके पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजूंगा। ईश्वर-साक्षात्कार की वैज्ञानिक प्रणाली, क्रिया योग, का अंततः सभी देशों में प्रसार हो जायेगा और मनुष्य को अनंत परमपिता का व्यक्तिगत इन्द्रियातीत अनुभव कराने के द्वारा यह राष्ट्रों के बीच सौहार्द्र स्थापित करने में सहायक होगा।”

🇮🇳🔶 युवा स्वामी सितंबर 1920 में बोस्टन पहुँचे। उन्होंने अपना पहला व्याख्यान, धार्मिक उदारतावादियों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में “#धर्म-विज्ञान” पर दिया, जिसे उत्साहपूर्वक सुना गया। उसी वर्ष उन्होंने भारत के योग के प्राचीन विज्ञान और दर्शन एवं इसकी कालजयी ध्यान की परंपरा पर अपनी शिक्षाओं का प्रसार करने के लिए सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ़) की स्थापना की। पहला एसआरएफ़ ध्यान केंद्र बोस्टन में #डॉ_एम_डब्लयू_लुईस और #श्रीमती_एलिस_हैसी (जो परवर्ती काल में सिस्टर योगमाता बनी) की मदद से शुरू किया गया था, जो आगे चलकर योगानन्दजी के आजीवन शिष्य बने।

🇮🇳🔶 अगले कई वर्षों तक, वे अमेरिका के पूर्वतटीय क्षेत्रों में रहे जहाँ पर उन्होंने व्याख्यान दिये और योग सिखाया; सन 1924 में उन्होंने पूरे अमेरिका का दौरा किया और कई शहरों में योग पर व्याख्यान दिये । सन 1925 की शुरूआत में लॉस एंजेलिस पहुँचकर उन्होंने माउंट वाशिंगटन के ऊपर सेल्फ़-रियलाइजेशन फ़ेलोशिप के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की, जो कि आगे चल कर उनके बढ़ते काम का आध्यात्मिक और प्रशासनिक केंद्र बन गया।

🇮🇳🔶 सन् 1924 से 1935 तक योगानन्दजी ने व्यापक रूप से भ्रमण किया और व्याख्यान दिए। इस दौरान उन्होंने अमेरिका के कई सबसे बड़े सभागारों – न्यूयॉर्क के कार्नेगी हॉल से लेकर लॉस एंजिलिस के फिल्हार्मोनिक सभागृह तक – में व्याख्यान दिये, जो श्रोताओं  की भीड़ से खचाखच भर जाते थे। लॉस एंजिलिस टाइम्स ने लिखाः “फिल्हार्मोनिक सभागृह में एक अद्भुत दृश्य देखने को मिला जब हज़ारों लोगों को व्याख्यान शुरू होने से एक घण्टा पहले वापिस जाने को बोल दिया गया क्योंकि 3000 सीट का वह हॉल पूरी तरह भर गया था।”

🇮🇳🔶 योगानन्दजी ने दुनिया के महान धर्मों की अंतर्निहित एकता पर ज़ोर दिया, और भगवान के प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुभव को प्राप्त करने के लिए सार्वभौमिक रूप से उपयुक्त तरीकों को सिखाया। जो शिष्य साधना में गहरी रुचि दिखाते थे, उनहें वे आत्म-जागृति प्रदान करने वाली क्रियायोग की तकनीक सिखाते थे, और इस तरह पश्चिम में तीस वर्षों के दौरान उन्होंने 1,00,000 से भी अधिक पुरुषों और महिलाओं को क्रिया योग की दीक्षा दी।

🇮🇳🔶 जो उनके शिष्य बने, उनमें विज्ञान, व्यवसाय और कला के कई प्रमुख व्यक्ति थे, जैसे बागवानी विशेषज्ञ लूथर बरबैंक, ओपेरा गायिका अमेलिता गली कुर्चि, जॉर्ज ईस्टमैन (कोडक कैमरा के आविष्कारक), कवि एडविन मार्खम, और ऑर्केस्ट्रा निर्देशक लियोपोल्ड स्टोकोव्स्की। सन 1927 में अमेरिका के राष्ट्रपति केल्विन कूलिज ने उन्हें औपचारिक रूप से व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया।वे समाचार पत्रों में योगानन्दजी की गतिविधियों के बारे में पढ़कर, उनमें रुचि लेने लगे थे।

🇮🇳🔶 सन् 1929 में, मैक्सिको की दो महीने की यात्रा के दौरान, उन्होंने लैटिन अमेरिका में अपने कार्य के भविष्य के बीज बोए। मेक्सिको के राष्ट्रपति, डॉ एमिलियो पोरटेस गिल ने उनका स्वागत किया। वे योगानन्दजी की शिक्षाओं के आजीवन प्रशंसक बन गए।

🇮🇳🔶 1930 के दशक के मध्य तक, #परमहंसजी के वे आरंभिक शिष्य उनके संपर्क में आ चुके थे, जो आगे चलकर उन्हें सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप कार्य का विस्तार करने और उनके जीवनकाल समाप्त होने के बाद क्रिया योग मिशन को आगे बढ़ाने में मदद करने वाले थे। इन शिष्यों में वे दो भी शामिल थे, जिन्हें उन्होंने अपने आध्यात्मिक उत्तराधिकारी के रूप में सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के अध्यक्ष के पद के लिए नियुक्त किया था: #राजर्षि_जनकानंद (जेम्स जे लिन), जो 1932 में कंसास शहर में गुरुजी से मिले; और #श्री_दया_माता, जिन्होंने एक वर्ष पूर्व साल्ट लेक सिटी में उनकी कक्षाओं में भाग लिया था।

🇮🇳🔶 अन्य शिष्य जिन्होंने 1920 और 1930 के दशकों के दौरान उनके व्याख्यान कार्यक्रमों में भाग लिया और एसआरएफ़ के कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए आगे आये, वे थे डॉ और श्रीमती एम डब्ल्यू लुईस, जिन्होंने 1920 में बोस्टन में उनसे मुलाकात की; ज्ञानमाता (सिएटल, 1924); तारा माता (सैन फ्रांसिस्को, 1924); दुर्गा माता (डेट्रॉइट, 1929); आनंद माता (साल्ट लेक सिटी, 1931); श्रद्धा माता (टैकोमा, 1933); और शैलसुता माता (सांता बारबरा, 1933)।

🇮🇳🔶 इस प्रकार, योगानन्दजी के शरीर छोड़ने के कई वर्षों बाद तक भी सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप को उन शिष्यों का निर्देशन प्राप्त होता रहा जिन्होंने परमहंस योगानन्दजी से व्यक्तिगत आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था।

🇮🇳🔶 उनके कार्य के शुरुआती वर्षों में योगानन्दजी के कुछ ही व्याख्यान और कक्षाएं अभिलेखित की गईं। लेकिन, 1931 में जब #श्री_दया_माता (जो बाद में उनके विश्वव्यापी संगठन की अध्यक्षा बनीं) उनके आश्रम में शामिल हुईं, उन्होंने योगानन्द जी के सैकड़ों व्याख्यानों, कक्षाओं और अनौपचारिक बातचीतों को ईमानदारी से अभिलेखित करने का पवित्र कार्य किया, ताकि उनके ज्ञान और प्रेरणा को उनकी मूल शक्ति और पवित्रता के साथ संरक्षित रखा जा सके और आने वाली पीढ़ियों के लिए सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप द्वारा प्रकाशित किया जा सके।

🇮🇳🔶 सन् 1935 में, योगानन्दजी अपने महान गुरु के अंतिम दर्शन के लिए भारत लौटे (बायें)। श्री युक्तेश्वर जी ने 9 मार्च, 1936 को अपना शरीर छोड़ा।) यूरोप, फिलिस्तीन और मिस्र के रास्ते जहाज़ और कार से यात्रा करते हुए, वे 1935 की गर्मियों में मुंबई पहुंचे।

🇮🇳🔶 अपनी जन्मभूमि के साल भर की यात्रा के दौरान योगानन्दजी ने भारत के अनेक शहरों में व्याख्यान दिये और क्रियायोग की दीक्षा दी। उन्हें कई महापुरुषों से मिलने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ, जैसे : महात्मा गाँधी, जिन्होंने क्रियायोग की दीक्षा लेने का अनुरोध किया; नोबेल पुरस्कार विजेता, भौतिक-शास्त्री सर #सी_वी_रमन; और भारत की कुछ सुविख्यात आध्यात्मिक विभूतियाँ, जैसे #रमण_महर्षि और #आनन्दमयी_माँ।

🇮🇳🔶 उसी वर्ष श्री युक्तेश्वर जी ने उन्हें भारत की सर्वोच्च आध्यात्मिक उपाधि, परमहंस से विभूषित किया। परमहंस का शाब्दिक अर्थ “सर्वोत्तम हंस” है। (हंस आध्यात्मिक प्रज्ञा का प्रतीक माना जाता है)। यह उपाधि उसे दी जाती है जो परमात्मा के साथ एकत्व की चरम अवस्था में स्थापित हो चुका है।

🇮🇳🔶 भारत में बिताए समय के दौरान, योगानन्दजी ने इस देश में उनके द्वारा स्थापित संस्था, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया, के लिए एक सुदृढ़ आर्थिक नींव बनाई। संस्था का कार्य क्षिणेश्वर में स्थित मुख्यालय और रांची में स्थित मूल आश्रम के द्वारा आज भी वृद्धि पर है, और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में इसके कई सारे स्कूल, आश्रम, और ध्यान केंद्र हैं, और कई सारे धर्मार्थ कार्य आयोजित किए जाते हैं।

🇮🇳🔶 सन् 1936 के अंतिम भाग में वे अमेरिका वापिस लौट गए, जहाँ वे जीवनपर्यंत रहे।

🇮🇳🔶 1930 के दशक में, परमहंस योगानंदजी ने देश भर में दिए जा रहे अपने सार्वजनिक व्याख्यानों को कम कर दिया ताकि वे अपना अधिकतर समय भावी पीढ़ियों तक अपना सन्देश पहुँचाने के लिए लेख लिखने में, और योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के आध्यात्मिक तथा लोकोपकारी कार्य की एक सुदृढ़ नींव रखने में बिता सकें।

🇮🇳🔶 जो व्यक्तिगत मार्गदर्शन और निर्देश उन्होंने अपनी कक्षाओं के छात्रों को दिया था, उसे उनके निर्देशन में योगदा सत्संग पाठमाला की एक व्यापक श्रृंखला में व्यवस्थित किया गया था।

🇮🇳🔶 जब वे भारत की यात्रा पर थे, उस दौरान उनके प्रिय शिष्य श्री श्री राजर्षि जनकानंद ने अपने गुरु के लिए कैलिफ़ोर्निया के एन्सिनीटस में प्रशांत महासागर के साथ सटा हुआ एक सुंदर आश्रम बनवाया था। यहाँ गुरुदेव ने अपनी आत्मकथा और अन्य लेखन पर काम करते हुए कई साल बिताए, और रिट्रीट कार्यक्रम शुरू किया जो आज भी जारी है।

🇮🇳🔶 उन्होंने कई सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप मंदिरों (एन्सिनीटस, हॉलीवुड और सैन डिएगो) की भी स्थापना की, जहाँ वे नियमित रूप से बहुविविध आध्यात्मिक विषयों पर एसआरएफ़ के श्रद्धालु सदस्यों और मित्रों के समूहों कों प्रवचन देते थे। बाद में इनमें से कई प्रवचन, जिन्हें श्री श्री दया माता ने स्टेनोग्राफी शैली में दर्ज किया था, योगानन्दजी के तीन खंडों में “संकलित प्रवचन एवं आलेख” के रूप में तथा योगदा सत्संग पत्रिका में वाइएसएस/एसआरएफ़ द्वारा प्रकाशित किये गए हैं।

🇮🇳🔶 योगानन्दजी की जीवन कथा, योगी कथामृत, 1946 में प्रकाशित हुई थी (और बाद के संस्करणों में उनके द्वारा इसका विस्तार किया गया था)। अपने प्रथम प्रकाशन के समय से, यह पुस्तक एक सदाबहार सर्वश्रेष्ठ पाठकगण की प्रिय बनकर, निरंतर प्रकाशन में रही है और इसका 50 भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इसे व्यापक रूप से आधुनिक आध्यात्मिक गौरव ग्रन्थ माना जाता है।

🇮🇳🔶 1950 में, परमहंसजी ने लॉस एंजिल्स में अपने अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय में पहला सेल्फ़-रियलाइज़शन फ़ेलोशिप विश्व सम्मेलन आयोजित किया। यह एक सप्ताह का कार्यक्रम आज भी हर साल दुनिया भर से हज़ारों लोगों को आकर्षित करता है। उन्होंने उसी वर्ष पैसिफ़िक पैलिसैड्स, लॉस एंजिल्स में एसआरएफ़ लेक श्राइन आश्रम का लोकार्पण भी किया, जो एक झील के किनारे दस एकड़ के ध्यान के उद्यानों में बनाया गया एक सुंदर आश्रम है जहाँ #महात्मा_गाँधी की अस्थिओं का एक भाग भी संजो कर रखा गया है। आज एसआरएफ़ लेक श्राइन कैलिफ़ोर्निया के सबसे प्रमुख आध्यात्मिक स्थलों में से एक बन गया है।

🇮🇳🔶 परमहंस योगानन्द जी के अंतिम वर्ष काफी हद तक एकांत में बिताए गए थे, क्योंकि उन्होंने अपने लेखन को पूरा करने के लिए गहनता से काम किया — जिसमें #भगवद्गीता तथा जीसस क्राइस्ट के चार गोस्पेल्स में दी गयी शिक्षाओं पर उनकी विस्तृत टीका शामिल हैं, और पहले के कार्यों जैसे कि Whispers from Eternity और योगदा सत्संग पाठमाला का पुनःअवलोकन। उन्होंने श्री श्री दया माता, #श्री_श्री_मृणालिनी_माता, और उनके कुछ अन्य घनिष्टतम शिष्यों को आध्यात्मिक और संगठनात्मक मार्गदर्शन प्रदान करने का काम भी किया, जो उनके चले जाने के बाद दुनिया भर में उनका काम करने में सक्षम होंगे ।

🇮🇳🔶 गुरूजी ने उनसे कहा:

“मेरा शरीर नहीं रहेगा, लेकिन मेरा काम चलता रहेगा। और मेरी आत्मा जीवित रहेगी। यहां तक कि मेरे यहाँ से चले जाने के बाद भी मैं आप सभी के साथ मिलकर भगवान के संदेश की सहायता से संसार के उद्धार के लिए काम करूंगा।

“जो लोग सेल्फ़-रियलाइजे़शन फे़लोशिप में वास्तव में आन्तरिक आध्यात्मिक सहायता हेतु आये हैं वह उसे प्राप्त करेंगे जो वो ईश्वर से चाहते हैं। चाहे वे मेरे शरीर में रहते हुए आयें, या बाद में, एस आर एफ् गुरुओं के माध्यम से भगवान की शक्ति उसी भांति उन भक्तों में प्रवाहित होगी, और उनके उद्धार का कारण बनेगी …. अमरगुरु बाबाजी ने सभी सच्चे एस आर एफ भक्तों की प्रगति की रक्षा और मार्गदर्शन करने का वचन दिया है। लाहिड़ी महाशय और श्रीयुक्तेश्वरजी, जिन्होंने अपने शरीरों को त्याग दिया है, और मैं स्वयं, अपना शरीर छोड़ने के बाद भी —सभी वाई एस एस-एस आर एफ के सच्चे सदस्यों की सदा रक्षा और निर्देशन करेंगे। “

🇮🇳🔶 7 मार्च, सन् 1952, को परमहंस जी ने महासमाधि में प्रवेश किया, एक ईश्वर प्राप्त गुरु का मृत्यु के समय शरीर से सचेतन प्रस्थान। उन्होंने लॉस एंजेलिस के बिल्टमोर होटल में संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के राजदूत डॉ बिनय आर सेन के सम्मान में एक भोज में एक लघु भाषण देना समाप्त ही किया था।

🇮🇳🔶 उनके शरीर छोड़ने के समय एक असाधारण घटना हुई । फारेस्ट लॉन मेमोरियल-पार्क के निदेशक द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रमाणित पत्र के अनुसार : “उनकी मृत्यु के बीस दिन बाद भी उनके शरीर में किसी प्रकार की विक्रिया नहीं दिखाई पड़ी….शवागार के वृत्ति-इतिहास से हमें जहाँ तक विदित है, पार्थिव शरीर के ऐसे परिपूर्ण संरक्षण की अवस्था अद्वितीय है …. योगानन्दजी की देह निर्विकारता की अद्भुत अवस्था में थी। ”

🇮🇳🔶 वर्षों पूर्व, परमहंस योगानन्दजी के गुरु, स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी ने उन्हें दिव्य प्रेम के अवतार के रूप में संदर्भित किया था। बाद में, उनके शिष्य और पहले आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, राजर्षि जनकानंद ने उन्हें प्रेमावतार या “दिव्य प्रेम का अवतार” की उपाधि दी।

🇮🇳🔶 परमहंस योगानन्दजी की महासमाधि की पच्चीसवीं वर्षगाँठ के अवसर पर, मानवता के आध्यात्मिक उत्थान में उनके दूरगामी योगदान को भारत सरकार द्वारा औपचारिक मान्यता दी गई। उनके सम्मान में एक विशेष स्मारक डाक टिकट जारी किया गया था, साथ में एक श्रद्धांजलि जिसमें यह भी लिखा था:

🇮🇳🔶 “ईश्वर प्रेम तथा मानव-सेवा के आदर्श ने परमहंस योगानन्द के जीवन में सम्पूर्ण अभिव्यक्ति पाई….यद्यपि उनके जीवन का अधिकतर भाग भारत से बाहर व्यतीत हुआ, फिर भी उनका स्थान हमारे महान् सन्तों में है। उनका कार्य हर जगह परमात्मा प्राप्ति के मार्ग पर लोगों को आकर्षित करता हुआ, निरन्तर वृद्धि एवं अधिकाधिक दीप्तिमान हो रहा है।”

साभार: yssofindia.org

🇮🇳 विश्वप्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत #परमहंस_योगानन्द जी के महासमाधि दिवस की वर्षगाँठ के अवसर पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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