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27 मार्च 2024

World Theatre Day | विश्व रंगमंच दिवस


 #World_Theatre_Day #विश्व_रंगमंच_दिवस #Theatre

🇮🇳 रंगमंच और इसके कलाकार एक प्रकार से हमारे सांस्कृतिक प्रतिनिधि और परम्पराओं के वाहक-प्रचारक होते हैं। 🇮🇳

🇮🇳 रंगमंच से लोगों का पुराना नाता रहा है। जिसने भी रंगमंच के तिलिस्म में कदम रखा, रंगमंच उसकी रग-रग में उतर गया। वो दूर जाकर भी कभी रंगमंच से दूर नहीं हो सका। ठीक वैसे ही, जैसे किसी मयकश के हलक से उतरकर कोई मय, उसकी रग-रग में फैली और दिल-ओ दिमाग़ पर तारी हो गई। ठीक वैसे ही, जैसे ज़िंदगी के किसी मोड़ पर एक मासूम इश्क़ किसी लैला, किसी शीरीं या किसी सोहणी की शक्ल में किसी क़ैस, किसी फ़रहाद या किसी महिवाल से मिला और उनकी जिंदगी बन गया।

🇮🇳 दरअसल, रंगमंच को जीने वाले, इसे जिंदगी जीने का सलीक़ा कहते हैं। इसका सम्मोहन अद्भुत है। एक रंगकर्मी होने के नाते मेरा यह मानना है कि रंगमंच ज़िंदगी को ज़िंदगी की तरह जीने और समझने का मौका देता है। रंगकर्मी अज़हर अली ने बताया कि रंगमंच के पथ पर चलकर जीवन को जानने, समझने और जीने का हुनर आता है। एक रंगकर्मी के रूप में दूर खड़े होकर ख़ुद को भी एक विश्लेषक की नजर से देख सकते हैं। अभिनेता अजय सिंह के अनुसार, थिएटर से जुड़ा शख्स अपने जीवन को बहुकोणीय स्तर पर जाकर देख सकता है। रंगकर्म से जुड़े लेखक, निर्देशक और दूरदर्शन केंद्र लखनऊ में कार्यक्रम अधिशासी, शिशिर सिंह के अनुसार, एक मंच हमारे अंदर भी है। जिस पर सदा ही रंग बिखरे रहते हैं बाहरी संसार के। उन्हीं रंगों को जब हम बाहर संजो कर सजाते हैं तो जीवंत हो उठता है रंगमंच, खिल उठते है चमत्कारी आयाम। अभिनेता और निर्देशक जिया अहमद खान कहते हैं, आज रंगमंच वृहद स्वरुप में आ चुका है। वैश्विक स्तर पर भाषा और सीमाओं का बैरियर खत्म हो गया है। वरिष्ठ रंगकर्मी नरेंद्र पंजवानी ने कहा कि, पूरा संसार ही एक रंगकर्म है, जहां हम ईश्वर के निर्देशन के जीवन के विभन्न रंगों में डूबे रहते हैं। हमें अपनी मर्यादा में रहकर अपने किरदार निभाने चाहिए।

🇮🇳 विश्व रंगमंच दिवस का शुभारम्भ 27  मार्च 1961 को इंटरनेशनल थियेटर इंस्टिट्यूट द्वारा किया गया था। तब से प्रतिवर्ष 27 मार्च को विश्व थिएटर समुदाय इस दिन कई अंतर्राष्ट्रीय रंगमंचीय कार्यक्रम आयोजित करता है। रंगमंच से जुडी हस्तियों के संदेश पढ़े जाते हैं। मुख्य कार्यक्रम इंटरनेशनल थियेटर इंस्टिट्यूट के मंच पर आयोजित किये जाते हैं। इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना यूनेस्को द्वारा सन 1948 में प्राग चेक गणराज्य में की गयी थी।

🇮🇳 ऐसा माना जाता है कि नाट्य कला का विकास सर्वप्रथम भारत में ही हुआ। ऋग्वेद के कतिपय सूत्रों में यम और यमी, पुरुरवा और उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं । इन संवादों में लोग नाटक के विकास का चिह्न पाते हैं। इन्हीं संवादों से प्रेरणा ग्रहण कर नाटक की रचना की गयी और नाट्यकला का विकास हुआ। यथासमय #भरतमुनि ने उसे शास्त्रीय रूप दिया। भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में नाटकों के विकास की प्रक्रिया को इस प्रकार व्यक्त किया है: नाट्यकला की उत्पत्ति दैवी है, अर्थात् दुःख रहित सतयुग बीत जाने पर त्रेता युग के आरंभ में देवताओं ने सृष्टा ब्रह्मा से मनोरंजन का कोई ऐसा साधन उत्पन्न करने की प्रार्थना की जिससे देवता लोग अपना दु:ख भूल सकें और आनंद प्राप्त कर सकें। फलत: उन्होंने ऋग्वेद से कथोपकथन, सामवेद से गायन, यजुर्वेद से अभिनय और अथर्ववेद से रस लेकर, नाटक का निर्माण किया। विश्वकर्मा ने रंगमंच बनाया  इत्यादि।

🇮🇳 ख़ैर नाटक का विकास जैसे भी हुआ हो, पूरे विश्व में रंगमंच हमेशा से अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। रंगमंच के कलाकार विभिन्न ज्वलंत समस्याओं को नाटकों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाते हैं, पौराणिक प्रस्तुतियों से रूबरू कराते हैं, हमारी लोक संस्कृति को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाते हैं। रंगमंच और इसके कलाकार एक प्रकार से हमारे सांस्कृतिक प्रतिनिधि और परम्पराओं के वाहक-प्रचारक होते हैं।

~ डाॅ. नीरज सचान

साभार: rionews24.com

🇮🇳 #रंगमंच (#थियेटर) से जुड़े सभी मित्रों को #विश्व_रंगमंच_दिवस की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


24 मार्च 2024

| पंडित हरिभाऊ उपाध्याय | साहित्यकार तथा स्वतंत्रता आंदोलन के राष्ट्रसेवी | 24 मार्च, 1892 - 25 अगस्त, 1972

 


हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म 24 मार्च, 1892 को मध्य प्रदेश में #उज्जैन ज़िले के #भौंरोसा नामक गाँव में हुआ था। विद्यार्थी जीवन से ही उनके मन में साहित्य के प्रति चेतना जाग्रत हो गई थी। संस्कृत के नाटकों तथा अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध उपन्यासों के अध्ययन के बाद वे उपन्यास लेखन की  और अग्रसर हुए।

🇮🇳 हरिभाऊ उपाध्याय ने हिन्दी सेवा से सार्वजनिक जीवन शुरू किया और  सबसे पहले  ‘औदुम्बर’ मासिक पत्र के प्रकाशन द्वारा हिन्दी पत्रकारिता जगत में पर्दापण किया। सबसे पहले  1911 में वे ‘औदुम्बर’ के सम्पादक बने। पढ़ते-पढ़ते ही इन्होंने इसके सम्पादन का कार्य भी आरम्भ किया। ‘औदुम्बर’ में कई विद्वानों के विविध विषयों से सम्बद्ध पहली बार लेखमाला निकली, जिससे हिन्दी भाषा की स्वाभाविक प्रगति हुई। इसका श्रेय हरिभाऊ के उत्साह और लगन को ही जाता है। 1915  में हरिभाऊ उपाध्याय #महावीर_प्रसाद_द्विवेदी के सान्निध्य में आये। हरिभाऊ जी खुद लिखते हैं कि- “औदुम्बर की सेवाओं ने मुझे आचार्य द्विवेदी जी की सेवा में पहुँचाया।” द्विवेदी जी के साथ ‘सरस्वती’ में कार्य करने के बाद हरिभाऊ उपाध्याय ने ‘प्रताप’, ‘हिन्दी नवजीवन’ और ‘प्रभा’ के सम्पादन में योगदान दिया और स्वयं ‘मालव मयूर’ नामक पत्र निकालने की योजना बनायी। लेकिन यह पत्र अधिक दिन नहीं चल सका।

🇮🇳 हरिभाऊ उपाध्याय की हिन्दी साहित्य को विशेष देन उनके द्वारा बहुमूल्य पुस्तकों का रूपांतरण है। कई मौलिक रचनाओं के अलावा उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की ‘मेरी कहानी’ और पट्टाभि सीतारमैया द्वारा लिखित ‘कांग्रेस का इतिहास’ का हिन्दी में अनुवाद किया। हरिभाऊ जी का प्रयास हमें भारतेन्दु काल की याद दिलाता है, जब प्राय: सभी हिन्दी लेखक बंगला से हिन्दी में अनुवाद करके साहित्य की अभिवृद्धि करते थे। अनुवाद करने में भी उन्होंने इस बात का सदा ध्यान रखा कि पुस्तक की भाषा लेखक की भाषा और उसके व्यक्तित्व के अनुरूप हो। अनुवाद पढ़ने से यह अनुभव नहीं होता कि अनुवाद पढ़ रहे हैं। यही अनुभव होता है कि मानो स्वयं मूल लेखक की ही वाणी और विचारधारा अविरल रूप से उसी मूल स्त्रोत से बह रही है। इस प्रकार हरिभाऊ जी ने अपने साथी जननायकों के ग्रंथों का अनुवाद करके हिन्दी साहित्य को व्यापकता प्रदान की।

🇮🇳 हरिभाऊ उपाध्याय की अनेक पुस्तकें आज हिन्दी साहित्य जगत को प्राप्त हो चुकी हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-

• ‘बापू के आश्रम में’

• ‘स्वतंत्रता की ओर’

• ‘सर्वोदय की बुनियाद’

• ‘श्रेयार्थी जमनालाल जी’

• ‘साधना के पथ पर’

• ‘भागवत धर्म’

• ‘मनन’

• ‘विश्व की विभूतियाँ’

• ‘पुण्य स्मरण’

• 'प्रियदर्शी अशोक’

• ‘हिंसा का मुकाबला कैसे करें’

• ‘दूर्वादल’ (कविता संग्रह)

• ‘स्वामी जी का बलिदान’

• ‘हमारा कर्त्तव्य और युगधर्म’

🇮🇳 ☝️इन सभी रचनाओं से हिन्दी साहित्य निश्चित ही समृद्ध हुआ है। हरिभाऊ जी की रचनाएँ भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से बड़ी आकर्षक हैं। इनमें रस है, मधुरता और उज्ज्वलता है। इनमें सत्य और अहिंसा की शुभ्रता है, धर्म की समंवयबुद्धि है और लेखनी की सतत साधना और प्रेरणा है।

🇮🇳 #महात्मा_गाँधी से प्रभावित होकर हरिभाऊ उपाध्याय ‘भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन’ में कूद पड़े थे। पुरानी अजमेर रियासत में इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे अजमेर के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए थे। हरिभाऊ जी हृदय से ये अत्यंत कोमल थे, लेकिन सिद्धांतों के साथ कोई समझौता नहीं करते थे। राजस्थान की सब रियासतों को मिलाकर राजस्थान राज्य बना और इसके कई वर्षों बाद मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने अत्यंत आग्रहपूर्वक हरिभाऊ उपाध्याय को पहले वित्त फिर शिक्षामंत्री बनाया था। बहुत दिनों तक वे इस पद पर रहे, लेकिन स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण त्यागपत्र दे दिया। हरिभाऊ उपाध्याय कई वर्षों तक राजस्थान की ‘शासकीय साहित्य अकादमी’ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने ‘महिला शिक्षा सदन’, हटूँडी (अजमेर) और ‘सस्ता साहित्य मंडल’ की स्थापना की थी।

🇮🇳 हरिभाऊ उपाध्याय  25 अगस्त, 1972 को मृत्यु हो गई ।

🇮🇳 #भारत के प्रसिद्ध #साहित्यकार तथा #स्वतंत्रता आंदोलन के राष्ट्रसेवी #पंडित_हरिभाऊ_उपाध्याय जी को उनकी जयंती पर हार्दिक श्रद्धांजलि !

#Pandit_Haribhau_Upadhyay ji

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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22 मार्च 2024

Ragini Trivedi | रागिनी त्रिवेदी | विचित्र वीणा, सितार और जल तरंग | 22 मार्च, 1960

 



रागिनी त्रिवेदी (जन्म- 22 मार्च, 1960) भारतीय शास्त्रीय संगीतकार हैं। वह विचित्रवीणा, सितार और जल तरंग पर प्रस्तुति देती हैं।

🇮🇳 रागिनी त्रिवेदी विचित्र वीणा वादक और संगीतज्ञ #लालमणि_मिश्र की पुत्री हैं।

🇮🇳 वह डिजिटल संगीत संकेतन प्रणाली की निर्माता हैं, जिसे 'ओमे स्वारलिपि' कहा जाता है।

🇮🇳 उनके पिता प्रसिद्ध संगीतकार लालमणि मिश्र, माता #पद्मा ने रागिनी और भाई #गोपाल_शंकर में संगीत के प्रति प्रेम पैदा किया।

🇮🇳 #वाराणसी में परिवार रीवा कोठी में दूसरी मंजिल पर रहता था। वहीं गायक #ओंकारनाथ_ठाकुर भूतल पर रहते थे।

🇮🇳 रागिनी त्रिवेदी ने 9 अप्रैल, 1977 को अपनी माँ को खो दिया और 17 जुलाई, 1979 को उनके पिता भी चल बसे। उन्होंने और उनके भाई गोपाल ने संगीत का अभ्यास जारी रखा।

🇮🇳 कुछ समय के लिए उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाया और बाद में #होशंगाबाद, #रीवा और #इंदौर के सरकारी कॉलेजों में सितार पढ़ाया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #विचित्रवीणा, #सितार और #जलतरंग पर प्रस्तुति देने वाली भारतीय #शास्त्रीय  #संगीतकार #रागिनी_त्रिवेदी जी को जन्मदिवस की ढेरों बधाई एवं अनंत शुभकामनाएँ!

#Ragini_Trivedi

#Vichitra_Veena, #Sitar and #Jaltarang

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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21 मार्च 2024

Nataraja Ramakrishna | नटराज रामकृष्ण | Dance master | Kuchipudi | Traditional dance |

 



नटराज रामकृष्ण को 700 साल पुराने नृत्य रूप #पेरिनी_शिवतांडवम को पुनर्जीवित करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने #कुचिपुड़ी को पारंपरिक #नृत्य रूप के साथ अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई। 🇮🇳

🇮🇳 नटराज रामकृष्ण (जन्म- 21 मार्च, 1923; मृत्यु- 7 जून, 2011) भारत के एक नृत्य गुरु थे। वे आंध्र प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष रहे थे। वह एक विद्वान और संगीतज्ञ भी थे, जिन्होंने आंध्र प्रदेश और दुनिया भर में शास्त्रीय नृत्य को बढ़ावा दिया। उन्होंने 40 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें से कई को अत्यधिक सम्मानित किया गया। नृत्य की कला में नटराज रामकृष्ण के योगदान को व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है।

🇮🇳 मात्र 18 साल की उम्र में ही नटराज रामकृष्ण को मराठा के तत्कालीन शासक द्वारा नागपुर में 'नटराज' की उपाधि दी गई थी।

🇮🇳 नटराज रामकृष्ण को 700 साल पुराने नृत्य रूप 'पेरिनी शिवतांडवम' को पुनर्जीवित करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने कुचिपुड़ी को पारंपरिक नृत्य रूप के साथ अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई।

🇮🇳 आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीलम संजीव रेड्डी के अनुरोध पर नटराज रामकृष्ण ने हैदराबाद में 'नृत्य निकेतन' नामक नृत्य विद्यालय की स्थापना की थी।

🇮🇳 सन 1991 में उन्हें 'राजा-लक्ष्मी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।

🇮🇳 अपने लंबे करियर में नटराज रामकृष्ण ने कई नर्तकियों को प्रशिक्षित किया और अत्यधिक प्रशंसित नृत्य नाटकों को लिखा और कोरियोग्राफ किया।

🇮🇳 उन्होंने 'चिंदू यक्षगानम' का प्रचार करने में बहुत मदद की, जो तेलंगाना का एक प्राचीन लोक रूप है। उन्होंने श्रीकाकुलम और विजयनगरम जिलों के टपेटागल्लू, पूर्व और पश्चिम गोदावरी जिलों के वीरा नाट्यम और गरगालु, देवदासी जैसी अन्य लोक कलाओं को भी पुनर्जीवित किया।

🇮🇳 नटराज रामकृष्ण ने #डोमारस, #गुरवाययालु, #उरुमुलु और #वेदी_भगवतुलु जैसे नृत्य कलाकारों की भी मदद की और उन्हें प्रोत्साहित किया।

🇮🇳 उन्होंने भगवान वेंकटेश्वर के जीवन की रचना "नृत्य नाटक" (#बैले) के रूप में की थी।

🇮🇳 भारत सरकार द्वारा प्रायोजित एक शोध छात्र के रूप में नटराज रामकृष्ण ने तत्कालीन यूएसएसआर (अब रूस) और फ्रांस में भारतीय नृत्य कला का प्रचार करने के लिए काम किया, जिससे भारतीय और पश्चिमी शास्त्रीय और लोक नृत्यों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया।

🇮🇳 उन्हें 21 जनवरी 2011 को संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप से सम्मानित किया गया था।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप से सम्मानित; भारत के सुप्रसिद्ध #नृत्यगुरु #पद्मश्री #नटराज_रामकृष्ण जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

#danceguru  #padmashree  #Natraj_Ramakrishna 

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Ustad Bismillah Khan | उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ | Shehnai Player | शहनाई वादक

 



वर्ष 1947 में #आजादी की पूर्व संध्या पर जब लालकिले पर देश का झंडा फहरा रहा था, तब बिस्मिल्लाह ख़ाँ की शहनाई भी वहाँ आज़ादी का संदेश बाँट रही थी। तब से लगभग हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के भाषण के बाद बिस्मिल्लाह ख़ाँ का #शहनाई वादन एक प्रथा बन गयी। 🇮🇳

🇮🇳 हिन्दी फ़िल्म #स्वदेश के गीत #ये_जो_देश_है_तेरा में शहनाई की मधुर तान बिखेरी थी। 🇮🇳

🇮🇳 उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ (जन्म- 21 मार्च, 1916, बिहार; मृत्यु- 21 अगस्त, 2006) 'भारत रत्न' से सम्मानित प्रख्यात शहनाई वादक थे। सन 1969 में 'एशियाई संगीत सम्मेलन' के 'रोस्टम पुरस्कार' तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित बिस्मिल्लाह खाँ ने शहनाई को भारत के बाहर एक विशिष्ट पहचान दिलवाने में मुख्य योगदान दिया। 

🇮🇳 बिस्मिल्लाह ख़ाँ का जन्म 21 मार्च, 1916 को #बिहार के #डुमरांव नामक स्थान पर हुआ था। उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ विश्व के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक माने जाते थे। उनके परदादा शहनाई नवाज़ #उस्ताद_सालार_हुसैन_ख़ाँ से शुरू यह परिवार पिछली पाँच पीढ़ियों से शहनाई वादन का प्रतिपादक रहा है। बिस्मिल्लाह ख़ाँ को उनके चाचा #अली_बक्श_विलायतु ने संगीत की शिक्षा दी, जो #बनारस के पवित्र #विश्वनाथ_मन्दिर में अधिकृत शहनाई वादक थे।

🇮🇳 उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ के नाम के साथ एक दिलचस्प वाकया भी जुड़ा हुआ है। उनका जन्म होने पर उनके दादा #रसूल_बख्श_ख़ाँ ने उनकी तरफ़ देखते हुए 'बिस्मिल्ला' कहा। इसके बाद उनका नाम 'बिस्मिल्ला' ही रख दिया गया। उनका एक और नाम 'कमरूद्दीन' था। उनके पूर्वज बिहार के भोजपुर रजवाड़े में दरबारी संगीतकार थे। उनके पिता #पैंगबर_ख़ाँ इसी प्रथा से जुड़ते हुए डुमराव रियासत के #महाराजा_केशव_प्रसाद_सिंह के दरबार में शहनाई वादन का काम करने लगे। छह साल की उम्र में बिस्मिल्ला को बनारस ले जाया गया। यहाँ उनका संगीत प्रशिक्षण भी शुरू हुआ और #गंगा के साथ उनका जुड़ाव भी। ख़ाँ साहब 'काशी विश्वनाथ मंदिर' से जुड़े अपने चाचा अली बख्श ‘विलायतु’ से शहनाई वादन सीखने लगे।

🇮🇳 बिस्मिल्लाह ख़ाँ ने जटिल संगीत की रचना, जिसे तब तक शहनाई के विस्तार से बाहर माना जाता था, में परिवर्द्धन करके अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया और शीघ्र ही उन्हें इस वाद्य से ऐसे जोड़ा जाने लगा, जैसा किसी अन्य वादक के साथ नहीं हुआ। उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ ने भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह की पूर्व संध्या पर नई दिल्ली में लाल क़िले से अत्यधिक मर्मस्पर्शी शहनाई वादक प्रस्तुत किया।

🇮🇳 बिस्मिल्ला ख़ाँ ने 'बजरी', 'चैती' और 'झूला' जैसी लोकधुनों में बाजे को अपनी तपस्या और रियाज़ से ख़ूब सँवारा और क्लासिकल मौसिक़ी में शहनाई को सम्मानजनक स्थान दिलाया। इस बात का भी उल्लेख करना आवश्यक है कि जिस ज़माने में बालक बिस्मिल्लाह ने शहनाई की तालीम लेना शुरू की थी, तब गाने बजाने के काम को इ़ज़्जत की नज़रों से नहीं देखा जाता था। ख़ाँ साहब की माता जी शहनाई वादक के रूप में अपने बच्चे को कदापि नहीं देखना चाहती थीं। वे अपने पति से कहती थीं कि- "क्यों आप इस बच्चे को इस हल्के काम में झोक रहे हैं"।

🇮🇳 उल्लेखनीय है कि शहनाई वादकों को तब विवाह आदि में बुलवाया जाता था और बुलाने वाले घर के आँगन या ओटले के आगे इन कलाकारों को आने नहीं देते थे। लेकिन बिस्मिल्लाह ख़ाँ साहब के पिता और मामू अडिग थे कि इस बच्चे को तो शहनाई वादक बनाना ही है। उसके बाद की बातें अब इतिहास हैं।

अफ़ग़ानिस्तान, यूरोप, ईरान, इराक, कनाडा, पश्चिम अफ़्रीका, अमेरिका, भूतपूर्व सोवियत संघ, जापान, हांगकांग और विश्व भर की लगभग सभी राजधानियों में बिस्मिल्लाह ख़ाँ ने शहनाई का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। मज़हबी शिया होने के बावज़ूद ख़ाँ साहब विद्या की हिन्दू #देवी_सरस्वती के परम उपासक थे। 'बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय' और 'शांतिनिकेतन' ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान करके सम्मानित किया था। उनकी शहनाई की गूँज आज भी लोगों के कानों में गूँजती है।

🇮🇳 'भारतीय शास्त्रीय संगीत' और संस्कृति की फिजा में शहनाई के मधुर स्वर घोलने वाले प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्ला ख़ाँ शहनाई को अपनी बेगम कहते थे और संगीत उनके लिए उनका पूरा जीवन था। पत्नी के इंतकाल के बाद शहनाई ही उनकी बेगम और संगी-साथी दोनों थी, वहीं संगीत हमेशा ही उनका पूरा जीवन रहा। उनके ऊपर लिखी एक किताब ‘सुर की बारादरी’ में लेखक यतीन्द्र मिश्र ने लिखा है- "ख़ाँ साहब कहते थे कि संगीत वह चीज है, जिसमें जात-पात कुछ नहीं है। संगीत किसी मजहब का बुरा नहीं चाहता।" किताब में मिश्र ने बनारस से बिस्मिल्लाह ख़ाँ के जुड़ाव के बारे में भी लिखा है। उन्होंने लिखा है कि- "ख़ाँ साहब कहते थे कि उनकी शहनाई बनारस का हिस्सा है। वह ज़िंदगी भर #मंगलागौरी और पक्का महल में रियाज करते हुए जवान हुए हैं तो कहीं ना कहीं बनारस का रस उनकी शहनाई में टपकेगा ही।"

🇮🇳 बिस्मिल्ला ख़ाँ ने मंदिरों, राजे-जरवाड़ों के मुख्य द्वारों और शादी-ब्याह के अवसर पर बजने वाले लोकवाद्य शहनाई को अपने मामू #उस्ताद_मरहूम_अलीबख़्श के निर्देश पर 'शास्त्रीय संगीत' का वाद्य बनाने में जो अथक परिश्रम किया, उसकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती। #उस्ताद_विलायत_ख़ाँ के सितार और #पण्डित_वी_जी_जोग के वायलिन के साथ ख़ाँ साहब की शहनाई जुगलबंदी के एल. पी. रिकॉडर्स ने बिक्री के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। इन्हीं एलबम्स के बाद जुगलबंदियों का दौर चला। संगीत-सुर और नमाज़ इन तीन बातों के अलावा बिस्मिल्लाह ख़ाँ के लिए सारे इनाम-इक़राम, सम्मान बेमानी थे। उन्होंने एकाधिक बार कहा कि- "सिर्फ़ संगीत ही है, जो इस देश की विरासत और तहज़ीब को एकाकार करने की ताक़त रखता है"। बरसों पहले कुछ कट्टरपंथियों ने बिस्मिल्ला ख़ाँ के शहनाई वादन पर आपत्ति की। उन्होंने आँखें बद कीं और उस पर "अल्लाह हू" बजाते रहे। थोड़ी देर बाद उन्होंने मौलवियों से पूछा- "मैं अल्लाह को पुकार रहा हूँ, मैं उसकी खोज कर रहा हूँ। क्या मेरी ये जिज्ञासा हराम है"। निश्चित ही सब बेज़ुबान हो गए। सादे पहनावे में रहने वाले बिस्मिल्ला ख़ाँ के बाजे में पहले वह आकर्षण और वजन नहीं आता था। उन्हें अपने उस्ताद से हिदायत मिली कि व्यायाम किए बिना साँस के इस बाजे से प्रभाव नहीं पैदा किया जा सकेगा। इस पर बिस्मिल्ला ख़ाँ उस्ताद की बात मानकर सुबह-सुबह गंगा के घाट पहुँच जाते और व्यायाम से अपने शरीर को गठीला बनाते। यही वजह है कि वे बरसों पूरे भारत में घूमते रहे और शहनाई का तिलिस्म फैलाते रहे।

🇮🇳 भारत की आजादी और ख़ाँ की शहनाई का भी ख़ास रिश्ता रहा है। 1947 में आजादी की पूर्व संध्या पर जब लालकिले पर देश का झंडा फहरा रहा था तब उनकी शहनाई भी वहाँ आजादी का संदेश बाँट रही थी। तब से लगभग हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के भाषण के बाद बिस्मिल्लाह का शहनाई वादन एक प्रथा बन गयी। ख़ाँ ने देश और दुनिया के अलग अलग हिस्सों में अपनी शहनाई की गूँज से लोगों को मोहित किया। अपने जीवन काल में उन्होंने ईरान, इराक, अफ़ग़ानिस्तान, जापान, अमेरिका, कनाडा और रूस जैसे अलग-अलग मुल्कों में अपनी शहनाई की जादुई धुनें बिखेरीं।

बिस्मिल्ला ख़ाँ ने कई फ़िल्मों में भी संगीत दिया। उन्होंने कन्नड़ फ़िल्म ‘सन्नादी अपन्ना’, हिंदी फ़िल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ और सत्यजीत रे की फ़िल्म ‘जलसाघर’ के लिए शहनाई की धुनें छेड़ी। आखिरी बार उन्होंने आशुतोष गोवारिकर की हिन्दी फ़िल्म ‘स्वदेश’ के गीत ‘ये जो देश है तेरा' में शहनाई की मधुर तान बिखेरी थी।

🇮🇳 संगीतकारों का मानना है कि उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान साहब की बदौलत ही शहनाई को पहचान मिली है और आज उसके विदेशों तक में दीवाने हैं। वो ऐसे इंसान और संगीतकार थे कि उनकी प्रशंसा में संगीतकारों के पास भी शब्दों की कमी नज़र आई। पंडित जसराज हों या हरिप्रसाद चौरसिया सभी का मानना है कि वो एक संत संगीतकार थे।

🇮🇳 #पंडित_जसराज का मानना है- उनके जैसा महान् संगीतकार न पैदा हुआ है और न कभी होगा। मैं सन् 1946 से उनसे मिलता रहा हूँ। पहली बार उनका संगीत सुनकर मैं पागल सा हो गया था। मुझे पता नहीं था कि संगीत इतना अच्छा भी हो सकता है। उनके संगीत में मदमस्त करने की कला थी, वह मिठास थी जो बहुत ही कम लोगों के संगीत में सुनने को मिलती है। मैं उनके बारे में जितना भी कहूँगा बहुत कम होगा क्योंकि वो एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने कभी दिखावे में यकीन नहीं किया। वो हमेशा सबको अच्छी राह दिखाते थे और बताते थे। वो ऑल इंडिया रेडियो को बहुत मानते थे और हमेशा कहा करते कि मुझे ऑल इंडिया रेडियो ने ही बनाया है। वो एक ऐसे फरिश्ते थे जो धरती पर बार-बार जन्म नहीं लेते हैं और जब जन्म लेते हैं तो अपनी अमिट छाप छोड़ जाते है।

🇮🇳 बाँसुरी वादक #हरिप्रसाद_चौरसिया का कहना है- बिस्मिल्ला ख़ाँ साहब भारत की एक महान् विभूति थे, अगर हम किसी संत संगीतकार को जानते है तो वो हैं बिस्मिल्ला खा़न साहब। बचपन से ही उनको सुनता और देखता आ रहा हूं और उनका आशीर्वाद सदा हमारे साथ रहा। वो हमें दिशा दिखाकर चले गए, लेकिन वो कभी हमसे अलग नहीं हो सकते हैं। उनका संगीत हमेशा हमारे साथ रहेगा। उनके मार्गदर्शन पर अनेक कलाकार चल रहे हैं। शहनाई को उन्होंने एक नई पहचान दी। शास्त्रीय संगीत में उन्होंने शहनाई को जगह दिलाई इससे बड़ी बात क्या हो सकती है। यह उनकी मेहनत और शहनाई के प्रति समर्पण ही था कि आज शहनाई को भारत ही नहीं बल्कि पूरे संसार में सुना और सराहा जा रहा है। उनकी कमी तो हमेशा ही रहेगी। मेरा मानना है कि उनका निधन नहीं हो सकता क्योंकि वो हमारी आत्मा में इस कदर रचे बसे हुए हैं कि उनको अलग करना नामुमकिन है।

🇮🇳 सन 1956 में बिस्मिल्लाह ख़ाँ को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 सन 1961 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 सन 1968 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 सन 1980 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 2001 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 मध्य प्रदेश में उन्हें सरकार द्वारा तानसेन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

🇮🇳 बिस्मिल्ला ख़ान ने एक संगीतज्ञ के रूप में जो कुछ कमाया था वो या तो लोगों की मदद में ख़र्च हो गया या अपने बड़े परिवार के भरण-पोषण में। एक समय ऐसा आया जब वो आर्थिक रूप से मुश्किल में आ गए थे, तब सरकार को उनकी मदद के लिए आगे आना पड़ा था। उन्होंने अपने अंतिम दिनों में दिल्ली के इंडिया गेट पर शहनाई बजाने की इच्छा व्यक्त की थी लेकिन उस्ताद की यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई और 21 अगस्त, 2006 को 90 वर्ष की आयु में इनका देहावसान हो गया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #भारतरत्न, 'रोस्टम पुरस्कार', #पद्मश्री, #पद्मभूषण, #पद्मविभूषण और 'तानसेन पुरस्कार' से सम्मानित; विश्वविख्यात सर्वश्रेष्ठ #शहनाई_वादक #उस्ताद_बिस्मिल्लाह_ख़ाँ जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

#शहनाई_वादक #उस्ताद_बिस्मिल्लाह_ख़ाँ 

#Shehnai_Player #Ustad_Bismillah_Khan

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 



World puppet day | विश्व कठपुतली दिवस

 



#विश्व_कठपुतली_दिवस

#world_puppet_day

भारत में पारंपरिक पुतली नाटकों की कथावस्तु में पौराणिक साहित्य, लोककथाएँ और किवदंतियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। पहले अमर सिंह राठौड़, पृथ्वीराज, हीर-रांझा, लैला-मजनूं और शीरीं-फ़रहाद की कथाएँ ही कठपुतली खेल में दिखाई जाती थीं।

🇮🇳 विश्व कठपुतली दिवस प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है। 'कठपुतली' का खेल अत्यंत प्राचीन नाटकीय खेल है, जो समस्त सभ्य संसार में प्रशांत महासागर के पश्चिमी तट से पूर्वी तट तक-व्यापक रूप प्रचलित रहा है। यह खेल गुड़ियों अथवा पुतलियों (पुत्तलिकाओं) द्वारा खेला जाता है। गुड़ियों के नर मादा रूपों द्वारा जीवन के अनेक प्रसंगों की, विभिन्न विधियों से, इसमें अभिव्यक्ति की जाती है और जीवन को नाटकीय विधि से मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। कठपुतलियाँ या तो लकड़ी की होती हैं या पेरिस-प्लास्टर की या काग़ज़ की लुग्दी की। उसके शरीर के भाग इस प्रकार जोड़े जाते हैं कि उनसे बँधी डोर खींचने पर वे अलग-अलग हिल सकें।

साभार: bharatdiscovery.org

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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20 मार्च 2024

Rohit Mehta | रोहित मेहता

 



रोहित मेहता (जन्म- 3 अगस्त, 1908, सूरत; मृत्यु- 20 मार्च, 1995, वाराणसी) प्रसिद्ध साहित्यकार, विचारक, लेखक‍, दार्शनिक, भाष्यकार और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे निरंतर प्रयत्नशील जीवन में आस्था रखने वाले इंसान थे। कई बार जेल भी गये। उन्होंने यूरोप, एशिया, अफ्रीका, अमेरिका आदि देशों का भ्रमण किया और दर्शन पर प्रभावशाली व्याख्यान दिए।

🇮🇳 प्रसिद्ध विचारक, लेखक और स्वतंत्रता सेनानी रोहित मेहता का जन्म 3 अगस्त, 1908 ईस्वी को #सूरत (#गुजरात) में हुआ था। सूरत, #अहमदाबाद और #मुंबई में उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। विद्यार्थी जीवन से ही वे सार्वजनिक कार्यों में भाग लेने लगे थे। 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने गुजरात कॉलेज, अहमदाबाद की 3 महीने तक चली हड़ताल का नेतृत्व किया था। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्होंने 5 बार जेल की सजा काटी। वे कांग्रेस में समाजवादी विचारों के समर्थक थे। 

🇮🇳 रोहित मेहता योग्य व्यक्ति थे। उनमें क्षमताएं थीं, वे विचारक थे, दार्शनिक थे, भाष्यकार थे, लेखक थे और विख्यात वक्ता थे। उन्होंने यूरोप, एशिया, अफ्रीका, अमेरिका आदि देशों का भ्रमण किया और दर्शन पर प्रभावशाली व्याख्यान दिये। मेहता का मानना था कि वास्तविक रहस्य कभी न समाप्त होने वाली यात्रा में ही है। वे 1941 में #अडयार, #तमिलनाडु गए। मेहता ने 3 वर्षों तक #थियोसोफिकल_सोसाइटी में अंतर्राष्ट्रीय सेक्रेटरी का काम किया और 15 वर्षों तक इस संस्था की भारतीय शाखा के महामंत्री रहे।

🇮🇳 रोहित मेहता बहुत ही प्रखर लेखक‍ थे। उन्होंने दर्शन पर 25 से अधिक पुस्तकें लिखीं।

🇮🇳 प्रसिद्ध विचारक लेखक और स्वतंत्रता सेनानी रोहित मेहता का 20 मार्च, 1995 को #वाराणसी में निधन हो गया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 प्रसिद्ध साहित्यकार, विचारक, लेखक‍, दार्शनिक, भाष्यकार और स्वतंत्रता सेनानी #रोहित_मेहता  #Rohit_Mehta जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि ! 

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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15 मार्च 2024

Rahi Masoom Raza | राही मासूम रज़ा | Writer | साहित्यकार

 



🇮🇳🔶 #महाभारत #Mahabharata सीरियल शुरू हुआ मेरी पैदाइश के साल. सन 1988 में. और मेरे समझदार होने से पहले चुक गया. हम समझदार हुए शक्तिमान के जमाने में. जिसमें मुकेश खन्ना थे. मुकेश महाभारत में बने थे भीष्म पितामह. तो शक्तिमान का वह रूप देखने के लिए हमने महाभारत देखा. उसके भी बहुत साल बाद पढ़ रहे थे टोपी शुक्ला. उसमें और महाभारत में एक कनेक्शन मिला. महाभारत की स्क्रिप्ट लिखी थी #राही_मासूम_रज़ा ने. जिन्होंने टोपी शुक्ला को हमारे बुक शेल्फ में इंस्टाल किया. राही मासूम रज़ा को पढ़ते हुए सोचना. एक शिया मुसलमान. सोचो कि उसने कितनी बाउंड्री कलम से खोद कर गिरा दी होगी. मजहब, रीति रिवाज, भारत माता की जय टाइप पब्लिसिटी स्टंट सबकी हवा निकाल दी उसने. और फिर उनकी लिखी किताबों के नाम चुनो. उनकी लिस्ट प्रिंट कराओ. और लाकर पढ़ डालो. इंसान बन जाओगे भाईसाहब. बाउंड्री गिर जाएंगी ढेर सारी.

🇮🇳🔶 राही मासूम रज़ा 1 सितम्बर को आए थे दुनिया में

🇮🇳🔶 हम उनके फैन हो गए थे टोपी शुक्ला पढ़ते हुए. टोपी से बड़ा अपनापा सा हो गया था. काहे? काहे कि वह भी बीच वाला था. मने एक भाई बड़ा एक छोटा. बीच में पिसता था हमेशा. शकल भी सबसे अलग टाइप की थी. जितनी दुश्वारियां उसकी थी करीब वैसी ही मेरी भी. अपनी कंडीशन भी बिल्कुल उसी तरह थी. बड़ा अच्छा लगा कि किसी ने हम जैसे बीच वालों की हालत समझी, लिखी थी.

🇮🇳🔶 1968 में मुंबई पहुंच गए थे. रोजी रोटी का मसला भी था और लिखने का भी. फिल्मों में लिख कर नाम और पैसा कमाया. लेकिन सुकून तो साहब इसी में मिलता है. जो मन में जमी सीमेंट तोड़ कर बाहर उफन पड़ता है. उसको लिखा जाए. ऐसा बहुत लिखा है. आधा गांव, कटरा बी आरजू, सीन 75, ओस की बूंद, दिल एक सादा कागज. नीम का पेड़ तो याद ही होगा. सीरियल आता था इसका. जगजीत सिंह इसका टाइटल सांग गाते थे “मुंह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन. आवाजों के बाजारों में खामोशी पहचाने कौन.” और पंकज कपूर थे मेन रोल में. ये राही की लिखी आखिरी चीज थी. मैं एक फेरीवाला, शीशे के मकां वाले और ग़रीबे शहर. इनमें लिखी हैं उर्दू नज़्म और शायरी.

🇮🇳🔶 कविता पढ़ो उनकी लिखी. मैं एक फेरी वाला का हिस्सा है ये.

मेरा नाम मुसलमानों जैसा है

मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो.

मेरे उस कमरे को लूटो

जिस में मेरी बयाज़ें जाग रही हैं

और मैं जिस में तुलसी की रामायण से सरगोशी कर के

कालिदास के मेघदूत से ये कहता हूँ

मेरा भी एक सन्देशा है

🇮🇳🔶 शुरुआत में जब इलाहाबाद रहे. तो 10-15 उपन्यास लिख डाले दूसरों के नाम से. घोस्ट राइटर. जब मुंबई पहुंचे तो नाम पैदा हो गया. उसके बाद सब कुछ लिखते रहे. करीब 300 फिल्में और 100 के आस पास सीरियल लिखे. सबसे लंबा काम है उनका महाकाव्य ‘अट्ठारह सौ सत्तावन.’ आधा गांव उपन्यास आया 1966 में. उसके बारे में लिख गए हैं-

🔰 “वह उपन्यास वास्तव में मेरा एक सफर था. मैं ग़ाज़ीपुर की तलाश में निकला हूं लेकिन पहले मैं अपनी गंगोली में ठहरूंगा. अगर गंगोली की हक़ीक़त पकड़ में आ गयी तो मैं ग़ाज़ीपुर का एपिक लिखने का साहस करूंगा”

🇮🇳🔶 उनको याद करते हुए ये नज्म पढ़ लेना. सुन लेना. गुन लेना.

🔰 "हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चाँद

अपनी रात की छत पर, कितना तनहा होगा चाँद

जिन आँखों में काजल बनकर, तैरी काली रात

उन आँखों में आँसू का इक, कतरा होगा चाँद

रात ने ऐसा पेंच लगाया, टूटी हाथ से डोर

आँगन वाले नीम में जाकर, अटका होगा चाँद

चाँद बिना हर दिन यूँ बीता, जैसे युग बीते

मेरे बिना किस हाल में होगा, कैसा होगा चाँद"

~ आशुतोष चचा

साभार: thelallantop.com

#Literature #Rahi_Masoom_Raza

🇮🇳 बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी और प्रसिद्ध #साहित्यकार #राही_मासूम_रज़ा जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !  

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

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13 मार्च 2024

Aatma Ranjan | आत्मा रंजन | कवि

 


डिगे भी हैं

लड़खड़ाए भी

चोटें भी खाईं कितनी ही

पगडंडियां गवाह हैं

कुदालियों, गैंतियों

खुदाई मशीन ने नहीं

कदमों ने ही बनाए हैं

रास्ते।"

🇮🇳🔰 कवि आत्मा रंजन का कहना है कि #हिंदी मेरे लिए भावुकता से आगे #आत्मीयता, #व्यवहारिकता और #आवश्यकता का मामला है। आत्मीय संवाद से लेकर कविता, कहानी और वैचारिकता की तमाम भंगिमाएं मेरे लिए हिंदी में ही सहजता से आकार पाती हैं। हिंदी से इस स्नेह या अनुराग का मतलब अन्य भाषाओं का विरोध नहीं। हिंदी मुझे पहचान देती है और अंग्रेजी या अन्य भाषाएं विस्तार देती हैं। हिंदी की स्थिति के संदर्भ में वे कहते हैं कि शासक और शासित की, शास्त्र और लोक की भाषा हमेशा से अलग रही है। यहाँ तक कि न्याय की भी।

🇮🇳🔰 इसलिए न्याय तक भी प्रभुवर्ग और बिचौलियों की गिरफ्त में अधिक रहा है। भाषा का यह अलगाव या यह दूरी शासक और प्रभु वर्ग के लिए शासन और वर्चस्व बनाएं रखने में अत्यंत सहायक और सुविधाजनक रहती है। अफसोस कि आजादी के बाद, लोकतंत्र की आमद के बाद भी यह अलगाव या भेद बहुत चालाकी से जारी रखा गया है। हिंदी को उसका अपेक्षित स्थान तभी मिल पाएगा जब वह शासन, न्याय और रोजगार की भाषा बन पाएगी। आत्मा रंजन वर्तमान में प्रवक्ता हिंदी के पद पर कार्यरत हैं। उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाजा गया है।

🇮🇳 हिंदी साहित्यजगत के प्रसिद्ध #कवि #Poet #आत्मा_रंजन #Aatma_Ranjanजी को जन्मदिन की ढेरों बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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11 मार्च 2024

Sudarshan Sahu | सुदर्शन साहू | Famous Indian Sculptors | प्रसिद्ध भारतीय मूर्तिकार

 


सुदर्शन साहू (जन्म- 11 मार्च, 1939, पुरी, उड़ीसा) प्रसिद्ध भारतीय मूर्तिकार हैं। उनको बेजान पत्थरों को उकेरकर पौराणिक कथाओं को सजीव सी दिखने वाली मूर्तियां गढ़ने में महारत हासिल है। अपनी कला के लिए 1988 में पद्म श्री से नवाजे जा चुके सुदर्शन साहू ने 1977 में पुरी में क्राफ्ट म्यूजियम स्थापित किया था। इसके बाद उन्होंने 1991 में भुवनेश्वर में ओडिशा सरकार के साथ मिलकर एक आर्ट्स एंड क्राफ्ट कॉलेज स्थापित किया था, जहाँ वे पत्थरों, लकड़ियों और फाइबर ग्लास को जानदार लगने वाली मूर्तियों में बदलने की कला सिखाते हैं।

🇮🇳 ओड़िशा के जाने माने मूर्तिकार सुदर्शन साहू का जन्म 11 मार्च, 1939 को #पुरी में हुआ था।

🇮🇳 वह शुरू से ही अपने पैतृक घर में पत्थर और लकड़ी से पारंपरिक मूर्तियों की कला का अभ्यास किया करते थे। जब उनके कला की चर्चा विश्व स्तर तक होने लगी तो उन्होंने अपनी कला से जुड़े एक नया संस्था खोलने की सोची।

🇮🇳 सुदर्शन साहू चाहते थे कि काबिल कलाकारों की सुविधाओं के लिए एक उचित कार्यशाला खोला जाए ताकि पर्यटक यहाँ आए और पारंपरिक विरासत और भारतीय कला में निरंतर विकास को देख सकें व मूर्तियों को महसूस कर सकें।

🇮🇳 उन्होंने अपने सपने को साकार करते हुए पुरी में सन 1977 में क्राफ्ट म्यूजियम स्थापित किया।

🇮🇳 कहते हैं कि उनके हाथों में कुछ तो ऐसा जादू था जो बेजान पत्थरों की बनी मूर्तियां भी बोल उठती हैं। 

🇮🇳 पौराणिक कथाओं को सजीवता प्रदान करने की कला अगर किसी में है, तो जाने माने मूर्तिकार सुदर्शन साहू में है।

🇮🇳 सुदर्शन साहू की गिनती 'ओड़िशा के विश्वकर्मा' कहे जाने वाले मूर्तिकारों में की जाती हैं।

🇮🇳 पत्थरों पर नक्काशी में महारत हासिल करने वाले सुदर्शन साहू को भारत सरकार ने 25 जनवरी, 2021 को पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #पद्मश्री और #पद्मविभूषण से सम्मानित; 'ओड़िशा के विश्वकर्मा' कहे जाने वाले प्रसिद्ध भारतीय #मूर्तिकार #Famous Indian Sculptors #सुदर्शन_साहू #Sudarshan_Sahu जी को जन्मदिन की ढेरों बधाई एवं शुभकामनाएँ !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


10 मार्च 2024

Suruj Bai Khande | सुरुज बाई खांडे | छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध भरथरी गायिका | June 12, 1949-March 10, 2018

 



सुरुज बाई खांडे (जन्म- 12 जून, 1949; मृत्यु- 10 मार्च, 2018) छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध भरथरी #गायिका थीं। उन्हें 1986-1987 में सोवियत रूस में हुए 'भारत महोत्सव' का हिस्सा बनने का मौका मिला था। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा उन्हें 'दाऊ रामचंद्र देशमुख' और 'स्व. देवदास बंजारे स्मृति पुरस्कार' भी मिला।

🇮🇳 सुरुज बाई खांडे का जन्म 12 जून, 1949 में #बिलासपुर जिले के एक सामान्य ग्रामीण परिवार में हुआ था। उन्होंने महज सात साल की उम्र में अपने नाना #रामसाय_धृतलहरे से #भरथरी, #ढोला_मारू, #चंदैनी जैसी लोक कथाओं को सीखना शुरू कर दिया था।

🇮🇳 इन्हें सबसे पहले #रतनपुर मेले में गायन का मौका मिला। इसके बाद 'मध्य प्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद' ने उनके इस हुनर को पहचाना और उन्हें 1986-1987 में सोवियत रूस में हुए 'भारत महोत्सव' का हिस्सा बनने का मौका मिला।

🇮🇳 सुरुज बाई खांडे को एसईसीएल में आर्गनाइजर की नौकरी मिली थी, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व मोटर साइकिल से दुर्घटना होने की वजह से नौकरी कर पाना संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने 2009 में ही रिटायरमेंट ले लिया।

🇮🇳 10 मार्च, 2018 को बिलासपुर के एक निजी अस्पताल में 69 वर्ष की उम्र में सुरुज बाई खांडे की मृत्यु हो गई।

🇮🇳 2000-2001 में सुरुज बाई खांडे को मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 'देवी अहिल्या बाई सम्मान' से नवाजा था। इसके अलावा छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा 'दाऊ रामचंद्र देशमुख' और 'स्व. देवदास बंजारे स्मृति पुरस्कार' भी मिले।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 दाऊ रामचंद्र देशमुख पुरस्कार, स्व. देवदास बंजारे स्मृति पुरस्कार और देवी अहिल्या बाई सम्मान से विभूषित; 1986-1987 में सोवियत रूस में हुए 'भारत महोत्सव' का हिस्सा बनीं, #छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध #भरथरी #गायिका #bharthari #singer #सुरुज_बाई_खांडे जी #suruj_bai_khande को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Wajid khan | वाजिद ख़ान |आयरन नेल आर्टिस्ट | Iron Nail Artist | 10 मार्च, 1981, मंदसौर, मध्य प्रदेश




विलक्षण प्रतिभाशाली वाजिद ख़ान का नाम 

'गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स', 

'गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स', 

'लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स', 

'इंडिया बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स', 

'एशिया बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स' में दर्ज हो चुका है। 🇮🇳

🇮🇳 वाजिद ख़ान (जन्म- 10 मार्च, 1981, मंदसौर, मध्य प्रदेश) भारत के प्रसिद्ध #चित्रकार और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त #आयरन_नेल_आर्टिस्ट #iron_nail_artist, पेटेंट धारक तथा आविष्कारक हैं। नेल आर्ट को पूरी दुनिया में पहुँचाने वाले वाजिद ख़ान ने इस कला का इस्तेमाल करते हुए मशहूर हस्तियों, जैसे- फ़िल्म अभिनेता सलमान ख़ान, महात्मा गाँधी, पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम और धीरूभाई अंबानी जैसी बड़ी हस्तियों के पोर्ट्रेट बनाये हैं। इसके इलावा वह औद्योगिक कचरे और गोलियों से भी कला पीस बनाते हैं। उन्होंने अपनी इस कला को पेटेंट भी करवाया है, जिस कारण उनकी इस कला की उनकी इजाज़त के बिना कोई भी नकल नहीं कर सकता है।

🇮🇳 वाजिद ख़ान का जन्म 10 मार्च, 1981 को #मध्य_प्रदेश के ज़िले #मंदसौर के बेहद छोटे से गाँव #सोनगिरी में हुआ था। सुदूर अंचल में बसे इस गॉंव के लोग खेती और मजदूरी से अपना जीवन यापन करते हैं। कला के क्षेत्र में नाम कमाने से पहले वाजिद इसी गॉंव में रहा करते थे। पाँच भाईयों और दो बहनों के साथ शुरुआती जीवन आम बच्चों की तरह ही बीता। लेकिन मन चंचल और सोच कलात्मक थी। साधारण वस्तुओं से वे असाधारण प्रस्तुति देने की कोशिश करते थे। थोड़े और बड़े हुए तो कुछ अलग करने की चाह ने कला के क्षेत्र में कदम रखवाया।

🇮🇳 पढ़ाई के मामले में वाजिद ख़ान पाँचवीं फेल हैं, जिसके बाद उन्होंने कुछ घर के हालातों और पढ़ाई में ध्यान न होने की वजह से पढ़ाई से नाता तोड़ लिया। वाजिद ख़ान के अनुसार, पैसों की तंगी और पढ़ाई में ध्यान न होने की वजह से उन्होंने फेल होने के बाद पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया था। 

🇮🇳 उनकी माँ ने उन्हें 1300 रुपये देकर अपना नाम बनाने के लिए घर से विदा कर दिया था, क्योंकि उस गाँव में जहाँ वे रहते थे, वहाँ वह सहूलियतें नहीं थीं जो उनकी सोच को असलियत में उतार सकें। घर छोड़ने के बाद वाजिद ख़ान #अहमदाबाद पहुँच गये और पेंटिंग और इनोवेशन के काम में जुट गए। वहाँ वे रोबोट बनाते थे। यहीं पर उनके हुनर को पहचाना आई.आई.एम. अहमदाबाद के #प्रोफेसर_अनिल_गुप्ता ने। अनिल गुप्ता को वाजिद ख़ान अपना गुरु मानते हैं और बताते हैं कि "उन्होंने मेरा काम देखकर मुझे 17500 रुपये दिए और कहा कि तुम्हारी जगह यहाँ नहीं है। तुम कला के क्षेत्र में जाओ, वही तुम्हारे लिए सही राह है।" इस बात को मानकर वाजिद ख़ान आगे बढ़े और फिर बुलंदियां छूने से उन्हें कोई नहीं रोक पाया।



🇮🇳 वाजिद ख़ान ने 14 वर्ष की आयु तक आते-आते पानी में चलने वाला सबसे छोटा जहाज़ बना दिया। ज़मीन, पानी के बाद आसमान नापने की बारी थी और कलाकृति में बनाया हैलीकॉप्टर। जब इन कलाकृतियों पर तारीफें मिलीं तो उनके सपनों को भी पंख लगने लगे और युवावस्था तक आते-आते पानी चोरी रोकने की मशीन सहित 200 आविष्कार कर दिए। इन आविष्कारों को जिसने भी देखा, वह हैरान था। लेकिन मार्गदर्शन न मिल पाने से इन आविष्कारों को वह स्थान नहीं मिला, जिसके वाजिद ख़ान हकदार थे। वर्ष 2003 में उन्होंने एक प्रकाश संवेदक और गियर लॉक का आविष्कार किया। वाजिद ख़ान को 140 अविष्कारों के लिए श्रेय प्राप्त है।

🇮🇳 नेल आर्ट को पूरे विश्व में पहुँचाने का श्रेय वाजिद ख़ान को दिया जा सकता है। उनके द्वारा निर्मित माँ-बेटे का प्यार दिखाती नेल आर्ट की एक कलाकृति में उमड़ी भावनाओं ने दर्शकों को भावुक किया था। कीलों से बने इन चेहरों की कशिश दिनोंदिन बढ़ती गई। इसकी प्रसिद्धि ने रफ्तार पकड़ ली और प्रदर्शनी का दौर शुरू हुआ। हालांकि जब किसी कलाकार की कला मुकम्मल कहलाने लगती है तो कलाकार को नया प्रयोग करने का खतरा उठाना ही पड़ता है। वाजिद ख़ान यह खतरा बहुत जल्द उठाने को तैयार हो गए और युवावस्था में ही उन्होंने नेल आर्टिस्ट के जमे हुए ओहदे से खुद को बाहर निकालकर 2012 में ऑटोमोबाइल आर्ट लांच कर दिया। बी.एम.डब्ल्यू., मर्सिडीज़ और बुलेट के पार्ट्स से यह ऑटोमोबाइल आर्ट तैयार किया गया था। इन्हें मिलाकर दीवार पर एक घोड़ा बनाया गया था, जो दूर से देखने पर जॉकी के साथ दौड़ता हुआ नजर आता है। इसके थ्री डी इफेक्ट्स आज भी इंदौर शहर के एक मशहूर बंगले की दीवार पर कायम हैं।

🇮🇳 इन सभी के बीच मुंबई से लेकर दुबई और लंदन में कला प्रदर्शित होते रहे। वाजिद ख़ान ने अपनी कला को सिर्फ लोगों को खुशी देने या अपने जज्बात जाहिर करने का जरिया नहीं बनाया बल्कि समाज को जागरुक करने में भी अहम भूमिका निभाई। 2014 में 'बेटी बचाओ आंदोलन' में शामिल हुए और चिकित्सा क्षेत्र में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों से रोती हुई एक मासूम बच्ची की कलाकृति बनाई। यह बताती है कि जो कैंची लोगों के जख्मों को सिलने के काम आती है, जो स्टेथेस्कोप दिल की धड़कने नापता है, अकसर वही किसी मासूम को दुनिया में आने से पहले मौत के मुँह में पहुँचा देती है। मेडिकल उपकरणों के इस्तेमाल से इसी हकीकत को वाजिद ख़ान ने निडरता से दिखाया और भ्रूण हत्या रोकने का संदेश दिया। श्रीलंका के आर्किटेक्ट बाबा का गिट्टी से फोटो बनाकर अपना हुनर दिखाया।

🇮🇳 वाजिद ख़ान ने ‘नेल आर्ट’ से महात्मा गाँधी का चित्र भी बनाया। इस चित्र की चर्चा होने पर मुंबई से ‘गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स’ के विशेषज्ञों का एक दल इंदौर पहुंचा तथा बारीकी से उसकी कला का अध्ययन करने के उपरांत उसे वर्ष 2012 में ‘गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ बनाने वालों में शामिल किया।

🇮🇳 इसके अतिरिक्त वाजिद ख़ान ने नेल आर्ट से मदर मैरी, ईसा मसीह, काबा शरीफ़, साईं बाबा, रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक उद्योगपति धीरूभाई अंबानी, मशहूर फ़िल्म अभिनेता सलमान ख़ान, राहुल गाँधी, संयुक्त अरब अमीरात के वज़ीर-ए-आलम मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम और उनके पुत्र हामदान बिन मोहमे बिन राशिद अल मकतूम का चित्र बनाया।

🇮🇳 वे भारत के पहले ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें आयरन नेल आर्ट और मेडिकल इक्विपमेंट आर्ट हेतु पेटेंट प्राप्त हैं।

🇮🇳 उन्हें जहाज़ के आर्ट के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया था। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम से प्रशंसा एवं प्रोत्साहन व राष्ट्रीय नवप्रवर्तन संस्थान में डॉ. कलाम के साथ समय व्यतीत करने का गौरव व सौभाग्य उन्हें मिला था।

साभार : bharatdiscovery.org

140 से अधिक अविष्कारों के लिए श्रेय प्राप्त, विश्वकीर्तिमान धारक प्रसिद्ध #चित्रकार और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त #आयरन_नेल_आर्टिस्ट, पेटेंट धारक तथा #आविष्कारक #वाजिद_ख़ान जी को जन्मदिवस की वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर ढेरों बधाई एवं शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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09 मार्च 2024

Zakir Hussain | जाकिर हुसैन | Tabla Player and Composer

 





आज प्रसिद्ध तबला वादक और संगीतकार ज़ाकिर हुसैन का जन्मदिन है. जाकिर हुसैन का जन्म 09 मार्च 1951 को हुआ था. जाकिर हुसैन मशहूर तबला वादक क़ुरैशी अल्ला रखा ख़ान के पुत्र हैं. अल्ला खान भी तबला बजाने में माहिर माने जाते थे. जाकिर हुसैन का बचपन मुंबई में ही बीता. प्रारंभिक शिक्षा और कॉलेज के बाद जाकिर हुसैन ने कला के क्षेत्र में अपने आप को स्थापित करना शुरु कर दिया.

🇮🇳 बारह साल की उम्र से ही जाकिर हुसैन ने संगीत की दुनिया में अपने तबले की आवाज को बिखेरना शुरु कर दिया था. 1973 में उनका पहला एलबम “लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड” आया था. उसके बाद तो जैसे जाकिर हुसैन ने ठान लिया कि अपने तबले की आवाज को दुनिया भर में बिखेरेंगे. 1973 से लेकर 2007 तक ज़ाकिर हुसैन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समारोहों और एलबमों में अपने तबले का दम दिखाते रहे. ज़ाकिर हुसैन भारत में तो बहुत ही प्रसिद्ध हैं ही साथ ही विश्व के विभिन्न हिस्सों में भी समान रुप से लोकप्रिय हैं.

🇮🇳 अपने इस हुनर के लिए ज़ाकिर हुसैन को कई सम्मान और पुरस्कार भी मिले हैं. 1988 में जब उन्हें पद्म श्री का पुरस्कार मिला था तब वह महज 37 वर्ष के थे और इस उम्र में यह पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति भी. इसी तरह 2002 में संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण का पुरस्कार दिया गया था.

🇮🇳 ज़ाकिर हुसैन को 1992 और 2009 में संगीत का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ग्रैमी अवार्ड भी मिला है.

🇮🇳 आज भी जाकिर हुसैन के तबले का जादू बरकरार है और वक्त के साथ उम्मीद है आगे भी जारी रहेगा.

साभार: jagran.com

🇮🇳 #पद्मश्री, #पद्मभूषण और #पद्मविभूषण से सम्मानित Awarded with #Padmashree, #PadmaBhushan and #PadmaVibhushan.; मशहूर #तबलावादक उस्ताद #जाकिर_हुसैन जी #Tabla player Ustad #Zakir_Hussain को जन्मदिन की हार्दिक बधाई !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...