16 मार्च 2024

RSS Co-Founder Ganesh Damodar Savarkar (Babarao) | गणेश दामोदर सावरकर-बाबाराव | 13 June 1879-16 March 1945

 


#RSS Co-Founder #Ganesh_Damodar_Savarkar (#Babarao) | गणेश दामोदर सावरकर-बाबाराव | 13 June 1879-16 March 1945

🇮🇳 #आरएसएस के सह-संस्थापक रहे #गणेश_दामोदर_सावरकर (#बाबाराव) भी पूरे 20 साल तक #अंडमान की #सेल्युलर_जेल में बंद रहे. वर्ष 1921 में उन्हें गुजरात लाया गया. यहाँ साबरमती जेल में वे एक साल तक बंद रहे. 🇮🇳

🇮🇳 गणेश दामोदर सावरकर को लोग बाबाराव नाम से भी जानते थे. साल 1909 में नासिक से बाबाराव को गिरफ्तार किया गया और उन पर देशद्रोह का मुकदमा चला. इन्हें भी #काला_पानी की सजा सुनाई गई.

🇮🇳 आपने वीर सावरकर का नाम तो कई बार सुना होगा, लेकिन इनके बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर के बारे में शायद ही ज्यादा कुछ जानते होंगे. गणेश दामोदर सावरकर एक ऐसा नाम हैं जिनका आरएसएस में काफी योगदान है. इन्हें लोग #बाबाराव नाम से भी जानते थे. बाबाराव ने आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया था. हालांकि वह वीर सावरकर की तरह मशहूर नहीं हुए.

🇮🇳 गणेश दामोदर सावरकर का निधन 16 मार्च 1945 को हुआ था. गणेश दामोदर सावरकर को आरएसएस के पाँच संस्थापकों में से एक माना जाता है. उन्होंने इसकी अवधारणा को अपने एक निबंध के जरिये भी स्पष्ट किया था. आज हम आपको बताएँगे गणेश दामोदर सावरकर से जुड़ी कुछ ऐसी ही अनसुनी कहानियां.

🇮🇳 बाबाराव का जन्म 13 जून 1879 को #महाराष्ट्र के #नासिक के पास #भागपुर नामक गाँव में चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. शुरुआती शिक्षा के दौरान इनका मन; धर्म, योग और जप-तप में ज्यादा लगता था. वह संन्यासी बनने की सोचने लगे थे. इस बीच इनके पिता का प्लेग महामारी में निधन हो गया. पिता की मौत से 7 साल पहले #माँ #राधाबाई का भी निधन हो चुका था. बाबाराव घर में सबसे बड़े थे, ऐसे में इनके ऊपर अपने दो छोटे भाइयों और बहन की जिम्मेदारी आ गई. वह इस जिम्मेदारी के साथ-साथ धर्म के प्रति भी अपना कर्तव्य निभाते रहे. वह #अभिनव_भारत_सोसायटी नामक क्रांतिकारी दल से जुड़ गए और जल्द ही उसके सक्रिय सदस्य हो गए. बाद में इनके छोटे भाई वीर सावरकर भी इसी दल से जुड़े. कहा जाता है कि इस दल की स्थापना बाबाराव ने ही की थी. 

🇮🇳 बाबाराव अच्छे लेखक भी थे. काफी शोध के बाद उन्होंने अंग्रेजी में ‘इंडिया एज ए नेशन’ नाम से एक किताब लिखी. किताब जब्त न हो इसके लिए किताब छद्म नाम #दुर्गानंद नाम से लिखी गई. हालांकि अंग्रेजों को इसका पता चल गया और किताब पर प्रतिबंध लग गया. साल 1909 में नासिक से बाबाराव को गिरफ्तार किया गया और उनपर देशद्रोह का मुकदमा चला. इन्हें भी काला पानी की सजा सुनाई गई. बाबाराव भी पूरे 20 साल तक #अंडमान की #सेल्युलर_जेल में बंद रहे. वर्ष 1921 में उन्हें गुजरात लाया गया. यहाँ साबरमती जेल में एक साल तक बंद रहे. इसके बाद अंग्रेजों ने इन्हें छोड़ दिया.

🇮🇳 जेल से छूटने के बाद भी बाबाराव शांत नहीं बैठे. उन्होंने बहुसंख्यकों को एकजुट करने का काम शुरू किया. अपने इसी मकसद को लेकर वह #डॉ_केशव_बलिराम_हेडगेवार से मिले. उनसे मिलकर #राष्ट्रीय_स्वयंसेवक_संघ यानी आरएसएस की रूप-रेखा तैयार हुई थी. बाबाराव ने इस दौरान मराठी में 'राष्ट्र मीमांसा' नाम से एक निबंध लिखा था. यह अंग्रेजी में #गोलवलकर के नाम से 'We or our Nationhood Defined' शीर्षक से छपा था. बाबाराव लिखित इस निबंध ने ही एक तरह से आरएसएस की मूलभूत अवधारणा को स्पष्ट किया था. यही कारण है कि उन्हें आरएसएस के पाँच संस्थापकों में से एक माना जाता है. 

साभार: abplive.com

🇮🇳 गणेश सावरकर यह बात समझते थे कि बलशाली ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध क्रांति करना एक-दो व्यक्तियों का काम नहीं है, उसके लिए प्रबल एवं कट्टर संगठन की आवश्यकता होगी। इस हेतु #मित्रमेला नामक संगठन की स्थापना की गई । उन्होंने आमसभा आयोजित कर #राष्ट्रगुरु_रामदास_स्वामी, #छत्रपति_शिवाजी_महाराज, #नाना_फडणवीस आदि महान पुरुषों की जयंतियां मनाना आरंभ किया, जिसने युवाओं में देशभक्ति जागृत करने में बहुत मदद की।

🇮🇳 महाराष्ट्र में उस समय ‘अभिनव भारत’ नामक क्रांतिकारी दल काम कर रहा था। विनायक सावरकर इस दल से संबद्ध थे। वे जब इंग्लैण्ड चले गए तो उनका काम बाबा सावरकर ने अपने हाथों में ले लिया। वे विनायक की देशभक्ति की रचनाएं और उनकी इंग्लैंड से भेजी सामग्री मुद्रित कराते, उसका वितरण करते और ‘अभिनव भारत’ के लिए धन एकत्र करते। यह कार्य ब्रिटिश सरकार को रास नहीं आ रहा था।

🇮🇳 1909 में नासिक के कलेक्टर एएमटी जैक्सन को #अनंत_कान्हेरे नामक क्रांतिकारी ने मौत के घाट उतार दिया था। इसे #नासिक_षडयंत्र के नाम से जाना गया और जांच के बाद अंग्रेजी अदालत ने माना कि इस कांड के पीछे बाबाराव सहित सावरकर बंधुओं का दिमाग था। 1909 में वे गिरफ्तार किए गए। देशद्रोह का मुकदमा चला और आजीवन कारावास की सजा देकर अंडमान भेज दिए गए। 1921 में वहाँ से भारत लाए गए और एक वर्ष साबरमती जेल में बंद रह कर 1922 में रिहा हो सके।

🇮🇳 गणेश सावरकर, डॉ. #हेडगेवार के संपर्क में रहे रहे, जिन्होंने 1925 में गणेश #सावरकर ; #मुंजे, #परांजपे और #तोलकर के साथ मिलकर आरएसएस की नींव रखी। गणेश सावरकर ने अपने पुराने संगठनों का इसमें विलय कर दिया था। यही नहीं, हेडगेवार के संगठन के तौर पर आरएसएस की ख्याति होने के बावजूद गणेश सावरकर ने हेडगेवार के संपर्कों को मजबूत करवाने में योगदान दिया। इसी का नतीजा है कि पश्चिम महाराष्ट्र में पुणे आरएसएस का मठ, गणेश की ही जी-तोड़ मेहनत से बना सका था।

🇮🇳 हिन्दू राष्ट्रवाद की अवधारणा देने वाले #हिन्दू_महासभा और #आरएसएस के सह-संस्थापक रहे #गणेश_दामोदर_सावरकर जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳🕉️🚩🔱💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

General Bipin Rawat | जनरल बिपिन रावत | First CDS of India | 16 March 1958 – 8 December 2021



🇮🇳 #जनरल_बिपिन_रावत , जिन्हें 30 दिसंबर 2019 को भारत के पहले सीडीएस के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने 1 जनवरी 2020 को पदभार ग्रहण किया।

🇮🇳 सीडीएस बिपिन रावत के बारे में---

• जन्म: 16 मार्च 1958 (पौड़ी, उत्तराखंड)

• मृत्यु: 8 दिसंबर 2021 (कुन्नूर, तमिलनाडु)

• आयु: 63 वर्ष

✍️ शिक्षा

• राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (बीएससी)

आई.एम.ए. रक्षा

• सर्विसेज स्टाफ कॉलेज (एमफिल)

• अमेरिकी सेना कमान और जनरल स्टाफ कॉलेज (ILE)

• चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (पीएचडी)

🇮🇳 सेवा के वर्ष: 16 दिसंबर 1978 - 8 नवंबर 2021

🇮🇳 नियुक्ति की रैंक: तिथि---

• सेकंड लेफ्टिनेंट: 16 दिसंबर 1978

• लेफ्टिनेंट: 16 दिसंबर 1980

• कप्तान: 31 जुलाई 1984

• मेजर: 16 दिसंबर 1989

• लेफ्टिनेंट कर्नल: 1 जून 1998

• कर्नल: 1 अगस्त 2003

• ब्रिगेडियर: 1 अक्टूबर 2007

• मेजर जनरल: 20 अक्टूबर 2011

• लेफ्टिनेंट जनरल: 1 जून 2014

• जनरल (सीओएएस): 1 जनवरी 2017

• सामान्य (सीडीएस): 30 दिसंबर 2019

🇮🇳 पुरस्कार

• परम विशिष्ट सेवा मेडल

• उत्तम युद्ध सेवा मेडल

• अति विशिष्ट सेवा मेडल

• युद्ध सेवा पदक

• सेना पदक

• विशिष्ट सेवा पदक

🇮🇳 जन्म और परिवार: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत का जन्म #उत्तराखंड के #पौड़ी में हुआ था। उनके पिता, #लक्ष्मण_सिंह_रावत ने भारतीय सेना की सेवा की और लेफ्टिनेंट-जनरल के पद तक पहुँचे। उनकी माँ उत्तराखंड के उत्तरकाशी के एक पूर्व विधायक की बेटी थीं।

🇮🇳 बिपिन रावत की शिक्षा: उन्होंने अपनी औपचारिक शिक्षा #देहरादून के कैम्ब्रियन हॉल स्कूल और सेंट एडवर्ड स्कूल, #शिमला में प्राप्त की और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, #खडकवासला और भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में शामिल हो गए, जहाँ उन्हें 'स्वॉर्ड ऑफ़ ऑनर' से सम्मानित किया गया।

★ वह डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज (डीएसएससी), #वेलिंगटन और यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी कमांड में हायर कमांड कोर्स और फोर्ट लीवेनवर्थ, #कंसास में जनरल स्टाफ कॉलेज से भी स्नातक थे।

★ उन्होंने एम.फिल. भी किया। रक्षा अध्ययन में डिग्री के साथ-साथ #मद्रास विश्वविद्यालय से प्रबंधन और कंप्यूटर अध्ययन में डिप्लोमा। सैन्य मीडिया सामरिक अध्ययन पर उनके शोध के लिए, उन्हें चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, #मेरठ द्वारा डॉक्टरेट ऑफ फिलॉसफी से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 सीडीएस बिपिन रावत का सैन्य कैरियर---

• 16 दिसंबर 1978 को, सीडीएस बिपिन रावत को 11 गोरखा राइफल्स की 5वीं बटालियन में नियुक्त किया गया था, जो उनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत की इकाई थी। उन्होंने आतंकवाद रोधी अभियानों का संचालन करते हुए 10 साल बिताए और मेजर से लेकर वर्तमान सीडीएस तक विभिन्न सेवाओं में काम किया।

★ मेजर के पद पर रहते हुए सीडीएस बिपिन रावत ने जम्मू-कश्मीर के उरी में एक कंपनी की कमान संभाली। उन्होंने कर्नल के रूप में किबिथू में एलएसी के साथ अपनी बटालियन की कमान सँभाली। ब्रिगेडियर के पद पर पदोन्नत होने के बाद, उन्होंने सोपोर में राष्ट्रीय राइफल्स के 5 सेक्टर और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (MONUSCO) में एक अध्याय VII मिशन में बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड की कमान सँभाली, जहाँ उन्हें दो बार फोर्स कमांडर की प्रशस्ति से सम्मानित किया गया।

★ बिपिन रावत ने #उरी में 19वीं इन्फैंट्री डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग के रूप में पदभार सँभाला जब उन्हें मेजर जनरल के पद पर पदोन्नत किया गया। एक लेफ्टिनेंट जनरल के रूप में, उन्होंने पुणे में दक्षिणी सेना को संभालने से पहले #दीमापुर में मुख्यालय वाली III कोर की कमान संभाली।

★ सेना कमांडर ग्रेड में पदोन्नत होने के बाद उन्होंने दक्षिणी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (जीओसी-इन-सी) का पद ग्रहण किया। थोड़े समय के कार्यकाल के बाद, उन्हें वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के पद पर पदोन्नत किया गया।

★ उन्हें 17 दिसंबर 2016 को भारत सरकार द्वारा 27 वें सेनाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था और 31 दिसंबर 2016 को पदभार ग्रहण किया था। उन्होंने भारतीय सेना के चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के 57 वें और अंतिम अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। उन्हें 30 दिसंबर 2019 को पहले सीडीएस के रूप में नियुक्त किया गया था और 1 जनवरी 2020 को पदभार ग्रहण किया था।

★ सीडीएस बिपिन रावत पुरस्कार

सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने अपने 40 वर्षों के करियर के दौरान वीरता और विशिष्ट सेवा के लिए कई पदक और सम्मान प्राप्त किए। इनका उल्लेख नीचे किया गया है:

1- परम विशिष्ट सेवा मेडल

2- उत्तम युद्ध सेवा मेडल

3- अति विशिष्ट सेवा पदक

4- युद्ध सेवा पदक

5- सेना मेडल

6- विशिष्ट सेवा पदक

7- घाव पदक

8- सामान्य सेवा मेडल

9- विशेष सेवा पदक

10- ऑपरेशन पराक्रम मेडल

11- सैन्य सेवा मेडल

12- उच्च ऊँचाई सेवा पदक

13- विदेश सेवा मेडल

14- स्वतंत्रता पदक की 50वीं वर्षगाँठ

15- 30 वर्ष लंबी सेवा पदक

16- 20 साल लंबी सेवा पदक

17- 9 साल लंबी सेवा पदक

18- मोनुस्को

साभार: careerindia.com

🇮🇳 #पद्मविभूषण से सम्मानित; भारत के पहले 'चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ' #सीडीएस एवं सेना प्रमुख रहे #जनरल_बिपिन_रावत जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 जय हिन्द, जय हिन्द की सेना 🇮🇳

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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15 मार्च 2024

Rahi Masoom Raza | राही मासूम रज़ा | Writer | साहित्यकार

 



🇮🇳🔶 #महाभारत #Mahabharata सीरियल शुरू हुआ मेरी पैदाइश के साल. सन 1988 में. और मेरे समझदार होने से पहले चुक गया. हम समझदार हुए शक्तिमान के जमाने में. जिसमें मुकेश खन्ना थे. मुकेश महाभारत में बने थे भीष्म पितामह. तो शक्तिमान का वह रूप देखने के लिए हमने महाभारत देखा. उसके भी बहुत साल बाद पढ़ रहे थे टोपी शुक्ला. उसमें और महाभारत में एक कनेक्शन मिला. महाभारत की स्क्रिप्ट लिखी थी #राही_मासूम_रज़ा ने. जिन्होंने टोपी शुक्ला को हमारे बुक शेल्फ में इंस्टाल किया. राही मासूम रज़ा को पढ़ते हुए सोचना. एक शिया मुसलमान. सोचो कि उसने कितनी बाउंड्री कलम से खोद कर गिरा दी होगी. मजहब, रीति रिवाज, भारत माता की जय टाइप पब्लिसिटी स्टंट सबकी हवा निकाल दी उसने. और फिर उनकी लिखी किताबों के नाम चुनो. उनकी लिस्ट प्रिंट कराओ. और लाकर पढ़ डालो. इंसान बन जाओगे भाईसाहब. बाउंड्री गिर जाएंगी ढेर सारी.

🇮🇳🔶 राही मासूम रज़ा 1 सितम्बर को आए थे दुनिया में

🇮🇳🔶 हम उनके फैन हो गए थे टोपी शुक्ला पढ़ते हुए. टोपी से बड़ा अपनापा सा हो गया था. काहे? काहे कि वह भी बीच वाला था. मने एक भाई बड़ा एक छोटा. बीच में पिसता था हमेशा. शकल भी सबसे अलग टाइप की थी. जितनी दुश्वारियां उसकी थी करीब वैसी ही मेरी भी. अपनी कंडीशन भी बिल्कुल उसी तरह थी. बड़ा अच्छा लगा कि किसी ने हम जैसे बीच वालों की हालत समझी, लिखी थी.

🇮🇳🔶 1968 में मुंबई पहुंच गए थे. रोजी रोटी का मसला भी था और लिखने का भी. फिल्मों में लिख कर नाम और पैसा कमाया. लेकिन सुकून तो साहब इसी में मिलता है. जो मन में जमी सीमेंट तोड़ कर बाहर उफन पड़ता है. उसको लिखा जाए. ऐसा बहुत लिखा है. आधा गांव, कटरा बी आरजू, सीन 75, ओस की बूंद, दिल एक सादा कागज. नीम का पेड़ तो याद ही होगा. सीरियल आता था इसका. जगजीत सिंह इसका टाइटल सांग गाते थे “मुंह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन. आवाजों के बाजारों में खामोशी पहचाने कौन.” और पंकज कपूर थे मेन रोल में. ये राही की लिखी आखिरी चीज थी. मैं एक फेरीवाला, शीशे के मकां वाले और ग़रीबे शहर. इनमें लिखी हैं उर्दू नज़्म और शायरी.

🇮🇳🔶 कविता पढ़ो उनकी लिखी. मैं एक फेरी वाला का हिस्सा है ये.

मेरा नाम मुसलमानों जैसा है

मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो.

मेरे उस कमरे को लूटो

जिस में मेरी बयाज़ें जाग रही हैं

और मैं जिस में तुलसी की रामायण से सरगोशी कर के

कालिदास के मेघदूत से ये कहता हूँ

मेरा भी एक सन्देशा है

🇮🇳🔶 शुरुआत में जब इलाहाबाद रहे. तो 10-15 उपन्यास लिख डाले दूसरों के नाम से. घोस्ट राइटर. जब मुंबई पहुंचे तो नाम पैदा हो गया. उसके बाद सब कुछ लिखते रहे. करीब 300 फिल्में और 100 के आस पास सीरियल लिखे. सबसे लंबा काम है उनका महाकाव्य ‘अट्ठारह सौ सत्तावन.’ आधा गांव उपन्यास आया 1966 में. उसके बारे में लिख गए हैं-

🔰 “वह उपन्यास वास्तव में मेरा एक सफर था. मैं ग़ाज़ीपुर की तलाश में निकला हूं लेकिन पहले मैं अपनी गंगोली में ठहरूंगा. अगर गंगोली की हक़ीक़त पकड़ में आ गयी तो मैं ग़ाज़ीपुर का एपिक लिखने का साहस करूंगा”

🇮🇳🔶 उनको याद करते हुए ये नज्म पढ़ लेना. सुन लेना. गुन लेना.

🔰 "हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चाँद

अपनी रात की छत पर, कितना तनहा होगा चाँद

जिन आँखों में काजल बनकर, तैरी काली रात

उन आँखों में आँसू का इक, कतरा होगा चाँद

रात ने ऐसा पेंच लगाया, टूटी हाथ से डोर

आँगन वाले नीम में जाकर, अटका होगा चाँद

चाँद बिना हर दिन यूँ बीता, जैसे युग बीते

मेरे बिना किस हाल में होगा, कैसा होगा चाँद"

~ आशुतोष चचा

साभार: thelallantop.com

#Literature #Rahi_Masoom_Raza

🇮🇳 बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी और प्रसिद्ध #साहित्यकार #राही_मासूम_रज़ा जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !  

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Sarla Thakral | सरला ठकराल | First female aircraft pilot | प्रथम महिला विमान चालक

 



हमारे समाज में महिलाओं के लिए बंदिशें बहुत ज्यादा होती हैं। हांलाकि अब इन बंदिशों को तोड़कर लड़कियों को आगे आने का मौका मिलने लगा है। पर,आज से करीब सत्तर-अस्सी साल पहले ऐसा नहीं था। उस जमाने में महिलाओं को बहुद ज्यादा आजादी नहीं थी और न हीं उनको अपनी मर्जी का काम करने की इजाजत थी। ऐसे में अपने सपनों को साकार कर आकाश में उड़ने वाली पहली महिला बनीं सरला ठकराल। चलिए जानें उनके बारे में कुछ बातें...

🇮🇳 सरला ठकराल का जन्म #दिल्ली में हुआ था। उन्होंने साल 1929 में पहली बार दिल्ली में खोले गए फ्लाइंग क्लब में विमान चालन का प्रशिक्षण लिया था और एक हजार घंटे का अनुभव भी लिया था। दिल्ली के ही फ्लाइंग क्लब में उनकी भेंट #पी_डी_शर्मा से हुई जो उस क्लब में खुद एक व्यावसायिक विमान चालक थे। विवाह के बाद उनके पति ने उन्हें व्यावसायिक विमान चालक बनने का प्रोत्साहन दिया।

🇮🇳 पति से प्रोत्साहन पाकर सरला ठकराल ने जोधपुर फ्लाइंग क्लब में ट्रेनिंग ली। 1936 में लाहौर का हवाईअड्डा उस ऐतिहासिक पल का गवाह बना जब 21 वर्षीया सरला ठकराल ने जिप्सी मॉथ नामक दो सीट वाले विमान को उड़ाया था। 

🇮🇳 साल 1939 सरला के लिए बहुत दुख भरा रहा। जब वह कमर्शियल पायलेट लाइसेंस लेने के लिए कड़ी मेहनत कर रही तीं तब दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया। फ्लाइट क्लब बंद हो गया और फिर सरला ठकराल को अपनी ट्रेनिंग भी बीच में ही रोकनी पड़ी। इससे भी ज्यादा दुख की बात यह रही कि इसी साल एक विमान दुर्घटना में उनके पति का देहांत हो गया। जिसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई। 

🇮🇳 पति की मौत के समय वह लाहौर में थी तब उनकी उम्र 24 साल थी। वहां से सरला वापस आ गईं और मेयो स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला ले लिया। जहां उन्होंने बंगाल स्कूल ऑफ से पेंटिंग सीखी और फाइन आर्ट में डिप्लोमा भी किया। भारत के विभाजन के बाद सरला अपनी दो बेटियों के साथ दिल्ली आ गई और यहाँ उनकी मुलाकात #पी_पी_ठकराल के साथ हुई। ठकराल ने उनके साथ साल 1948 में शादी कर ली। जिंदगी की दूसरी पारी में वो सफल उद्यमी और पेंटर बनीं। 15 मार्च 2008 को सरला ठकराल की मौत हो गई। 

साभार: amarujala.com

#First_female_aircraft_pilot #Sarla_Thakral

🇮🇳 भारत की प्रथम महिला विमान चालक #सरला_ठकराल जी को उनकी पुण्यतिथि पर हार्दिक श्रद्धांजलि !  

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Guru hanuman | vijay pal | wrestler | गुरु हनुमान | विजय पाल | पहलवान

 



भारतीय कुश्‍ती के पितामह माने जाने वाले #गुरु_हनुमान यानी #विजय_पाल गुरुओं के गुरु थे. उन्‍होंने इंटरनेशनल कुश्‍ती मानकों के साथ आधुनिक भारतीय कुश्‍ती और पारंपरिक भारतीय कुश्‍ती शैली यानी पहलवानी को मिलाकर एक खाका तैयार किया था. समय के साथ उन्‍होंने लगभग सभी फ्री स्‍टाइल इंटरनेशनल पहलवानों को कोचिंग दी और जो गुरु हनुमान के शिष्‍य थे, वें आज खुद गुरु बनकर भारतीय कुश्‍ती को अधिक ऊंचाईयों तक लेकर जा रहे हैं. बतौर खिलाड़ी और कोच गुरु हनुमान दिग्‍गज थे. भारतीय कुश्‍ती में उनके योगदान के कारण उन्‍हें पितामाह कहा जाता है. दो बार के ओलिंपिक मेडलिस्‍ट #सुशील_कुमार के गुरु #सतपाल_सिंह उनके शिष्‍य थे.

🇮🇳 15 मार्च 1901 को राजस्‍थान के #चिड़ावा में जन्‍मे गुरु हनुमान का सपना शुरुआत से ही एक अच्‍छा पहलवान बनने का था, उन्‍होंने स्‍कूल छोड़कर कम उम्र में ही गांव के अखाड़े में पहलवानी करनी शुरू कर दी. 1919 में वह बिरला मिल्‍स के पास सब्‍जी मंडी में अपनी दुकान जमाने के लिए दिल्‍ली आ गए. मगर दुकानदार की बजाय वह पहलवान बन गए और इस फील्‍ड में उन्‍होंने जल्‍दी लोकप्रियता हासिल कर ली. गुरु हनुमान का पहलवानी के प्रति लग्‍न को देखते हुए मशहूर उद्योगपति कृष्‍णकुमार बिडला ने उन्‍हें अखाड़ा स्‍थापित करने के लिए जमीन दे दी और आजादी के बाद तो यह अखाड़ा दिल्‍ली के पहलवानों के लिए मंदिर समान हो गया. उनके तीन में से दो शिष्‍य #सुदेश_कुमार और #प्रेम_नाथ ने 1958 कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स में गोल्‍ड मेडल जीता था. जबकि बाकी शिष्‍य #सतपाल_सिंह और #करतार_सिंह ने 1982 और 1986 में एशियन गेम्‍स में गोल्‍ड मेडल जीता. गुरु हनुमान के 8 शिष्‍यों में सर्वोच्च भारतीय खेल सम्मान अजुर्न अवॉर्ड से भी नवाजा गया.

🇮🇳 गुरु हनुमान के पास 1970 तक भी मॉर्डन मैट नहीं था. वह सिर्फ नेचुरल टैलेंट पर काम करते थे. गुरु हनुमान गांव के युवा लड़कों के साथ काम करते थे, जो भारतीय स्‍टाइल में फाइट के आदी थे. जो ज्‍यादा से ज्‍यादा 40 मिनट तक लड़ सकते थे. गुरु हनुमान ने उन पर काम किया.

1974 कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के गोल्‍ड मेडलिस्‍ट प्रेमनाथ ने अपने गुरु के बारे में बताया था कि बीमारी में भी उनके गुरु अभ्‍यास करवाते थे. वो मेहनत से कभी पीछे नहीं भागते थे. अभ्‍यास में सुबह 4 बजे उठकर सबसे पहले दौड़, फिर इसके बाद बाउट का अभ्‍यास, किसी के गिरने से पहले पहले कम से कम 30 मिनट तक मुकाबला, इसके अलावा रस्सियों पर चढ़ना, 100 पुशअप ये सब तब करना होता अभ्‍यास में शामिल थे. और ये सब गुरुजी के दोपहर के खाने के फैसले तक करना होता था.

🇮🇳 गुरु हनुमान की 1999 में दर्दनाक हादसे में मौत हो गई थी. 24 मई को वे हरिद्वार जा रहे थे और कार दुर्घटना में उन्‍होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. जो खेल जगत और खासकर कुश्‍ती के लिए बहुत बड़ी हानि थी.

साभार: news18.com

🇮🇳 भारत के महान कुश्ती प्रशिक्षक व विश्वप्रसिद्ध #पहलवान #गुरु_हनुमान #wrestler #guru_hanuman जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 



Major Sandeep Unnikrishnan | मेजर संदीप उन्नीकृष्णन | Soldier

 



15 मार्च 1977 को जन्मे संदीप उन्नीकृष्णन #बेंगलुरु में रहने वाले एक मलयाली परिवार से आते थे। उनका परिवार केरल के कोझिकोड जिले के चेरुवन्नूर से बेंगलुरु शिफ्ट हुआ था। उनके पिता #के_उन्नीकृष्णन इसरो के अधिकारी रह चुके हैं। उनकी माता का नाम #धनलक्ष्मी_उन्नीकृष्णन है। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। उन्होंने बेंगलुरु के फ्रैंक एंथनी पब्लिक स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की। 1995 में साइंस स्ट्रीम से आईएससी की।

🇮🇳 साल 1995 में उन्होंने एनडीए में प्रवेश लिया। चार सालों के बाद उनको वह करने का मौका मिला जिसका सपना हर सैनिक देखता है यानी 1999 में कारगिल युद्ध में उनको लड़ने का मौका मिला। फिर साल 2007 में उनको राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के स्पेशल ऐक्शन ग्रुप (एसएजी) में शामिल किया गया। वह निडर और बहादुर थे। मुश्किल हालात का सामना करने से पीछे नहीं हटते थे।

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🇮🇳 ‘ऊपर मत आना, मैं इन सबको देख लूंगा.’

🇮🇳 अपने एक घायल साथी को बचाने के बाद अपने साथियों से कहे गए ये आखिरी शब्द थे शहीद उन्नीकृष्णन के. मुंबई में हुए बम धमाकों के बाद ताज होटल में आतंकियों का सफाया करने के लिए 27 नवंबर 2008 को एनएसजी टीम को लाया गया था. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन कमांडो इस ऑपरेशन को लीड कर रहे थे.

🇮🇳 क्या हुआ था 27 नवंबर 2008 को---

10 कमांडो की टीम ने जब ताज होटल में मोर्चा संभाला. तो संदीप की टीम को तीसरी मंजिल पर आतंकियों के होने का शक हुआ. यहां एक कमरे में कुछ औरतों को आतंकियों ने बंधक बनाया हुआ था. कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उसे तोड़ने पर संदीप की टीम पर अचानक से गोलीबारी शुरू हो गई. जवाबी कार्रवाई में संदीप की टीम को इस बात का भी ध्यान रखना था कि किसी बंधक को गोली न लग जाए. इस गोलीबारी में संदीप के एक साथी कमांडो सुनील यादव घायल हो गए.  संदीप ने अपने घायल साथी को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया.

🇮🇳 इसी दौरान उनके दाएं हाथ में गोली लग गई. फिर भी संदीप ने आतंकियों का पीछा किया. और गोली चला रहे आतंकियों को ढूंढकर मार गिराया. जब वो आगे बढ़े तो आतंकी कमरे में लोगों को बंद करके मार रहे थे. संदीप ने वहां से 14 लोगों को बाहर निकाला. लेकिन पीछे से हुई गोलीबारी में संदीप बुरी तरह से जख्मी हो गए. वो लड़ते रहे, लेकिन उनकी सांसों ने उनका साथ नहीं दिया. अपने ऑपरेशन को कामयाब बनाते हुए वो शहीद हो गए.

🇮🇳 मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की अंतिम विदाई---

संदीप की अंतिम यात्रा के समय आसमान भी उदास था. 29 नवंबर को जिस दिन संदीप उन्नीकृष्णन की अंतिम यात्रा जा रही थी, वास्तव में उस दिन बैंगलुरू में गहरे काले बादल छाए हुए थे. इससे ठीक 3 दिन पहले संदीप की बातचीत घर के लोगों से हुई थी. वो कोई 15 दिन बाद अपने दोस्त की शादी में बैंगलुरू आने वाले थे.

🇮🇳 उन्नीकृष्णन 7वीं बिहार रेजीमेंट के जवान थे और एनएसजी में संदीप की यह दूसरी डेप्यूटेशन थी. अपनी ऑरकुट प्रोफाइल पर संदीप ने जो भाषाएं आती हैं उनमें बिहारी का भी ज़िक्र किया है. क्रिकेट और फिल्मों के दीवाने संदीप 5 भाषाएं बोल लेते थे और इन भाषाओं के मज़ाकिया शब्दों से इन्हें खास लगाव था.

🇮🇳 संदीप के पिता इसरो में वैज्ञानिक थे. लेकिन संदीप ने अपने ही ढंग से एक गैर-मामूली ज़िंदगी जीने के लिए सेना में जाने का फैसला किया.

साभार: thelallantop.com

🇮🇳 भारतीय सेना के शूरवीर अदम्य साहसी एवं निर्भीक सैनिक #मेजर_संदीप_उन्नीकृष्णन #Major_Sandeep_Unnikrishnan जी को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

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🇮🇳 जय हिन्द, जय हिन्द की सेना 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Malti Devi Chaudhary | मालती देवी चौधरी | Freedom fighter | Social worker

 


मालती देवी चौधरी (जन्म- 26 जुलाई, 1904, पूर्वी बंगाल; मृत्यु- 15 मार्च, 1998) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी तथा गाँधीवादी थीं। सन 1921 में, सोलह साल की उम्र में मालती चौधरी को शांति निकेतन भेजा गया, जहाँ उन्हें विश्व भारती में भर्ती कराया गया। उन्होंने #नबाकृष्णा_चौधरी से विवाह किया था, जो बाद में ओडिशा के मुख्यमंत्री बने। नमक सत्याग्रह के दौरान मालती चौधरी और उनके पति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने सत्याग्रह के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए लोगों के साथ संवाद किया।

🇮🇳 मालती चौधरी का जन्म 26 जुलाई, 1904 में हुआ था। वह एक ब्राह्मण परिवार से थीं। उनके पिता बैरिस्टर #कुमुद_नाथ_सेन की मृत्यु तब हुई जब वह केवल ढाई साल कीं थीं। उनकी मां #स्नेहलता_सेन एक अच्छी लेखिका थीं, जिन्होंने 'जुगलंजलि' लिखी और #रवींद्रनाथ_टैगोर की कुछ कृतियों का अनुवाद किया। मालती चौधरी की पृष्ठभूमि अच्छी थी। उनके नाना बहरीलाल गुप्ता एक आईसीएस अधिकारी थे। उनके दो चचेरे भाई रंजीत गुप्ता पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव थे और इंद्रजीत गुप्ता पूर्व गृहमंत्री थे। उनके दो भाई पी. के. सेन पूर्व आयकर आयुक्त थे और के. पी. सेन भारतीय डाक सेवा के पूर्व अधिकारी थे।

🇮🇳 16 साल की उम्र में मालती चौधरी को शांति निकेतन भेजा गया, जहां उन्हें टैगोर द्वारा स्थापित 'विश्वभारती' में भर्ती कराया गया। वह बहुत भाग्यशाली थीं कि उन्हें शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर से सीधे ज्ञान प्राप्त करने का मौका मिला। शांति निकेतन में मालती ने न केवल डिग्री प्राप्त की, बल्कि विभिन्न प्रकार की कला और संस्कृति में भी विशाल ज्ञान प्राप्त किया। मालती चौधरी टैगोर के सिद्धांतों, शिक्षा और विकास और देशभक्ति के विचारों से बेहद प्रभावित थीं। गुरुदेव ने प्यार से उन्हें ‘मीनू’ कहा।

🇮🇳 मालती चौधरी नबाकृष्णा चौधरी के निकट संपर्क में आईं, जो साबरमती आश्रम से शांतिनिकेतन में पढ़ाई करने आये थे। उन्होंने 1927 में नबाकृष्णा चौधरी से शादी की। शादी के बाद वे #उड़ीसा में बस गईं और #ग्रामीण_विकास के बारे में कई तरह की सामाजिक गतिविधियाँ शुरू कीं। उन्होंने गन्ने की खेती को बेहतर बनाने में गरीब किसान की मदद की। उन्होंने आसपास के गांवों में भी वयस्क शिक्षा शुरू की।

🇮🇳 नमक सत्याग्रह के समय मालती चौधरी और उनके पति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेलों में उन्होंने साथी कैदियों को पढ़ाया और गांधीजी के विचारों और विचारों का प्रचार किया।

🇮🇳 1933 में उन्होंने अपने पति के साथ 'उत्कल कांग्रेस समाजवादी कर्म संघ' का गठन किया। बाद में इस संगठन को 'अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' की उड़ीसा प्रांतीय शाखा के रूप में जाना जाने लगा।

🇮🇳 1934 में मालती चौधरी उड़ीसा में अपनी प्रसिद्ध पदयात्रा में गांधीजी के साथ शामिल हुईं।

🇮🇳 1946 में मालती चौधरी ने उड़ीसा के अंगुल में 'बाजीरावत छत्रवास' और 1948 में 'उत्कल नवजीवन मंडल' की स्थापना की।

बाजीराव छत्रवास का गठन स्वतंत्रता सेनानियों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों और समाज के विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों के बच्चों के बीच शिक्षा का प्रसार करने के लिए किया गया था।

🇮🇳 उत्कल नवजीवन मंडल ने मुख्य रूप से उड़ीसा में ग्रामीण विकास और आदिवासी कल्याण के लिए काम किया। मालती चौधरी ने चंपतिमुंडा में पोस्ट बेसिक स्कूल की स्थापना भी की।

🇮🇳 शिक्षा और ग्रामीण क्षेत्र में अपनी महान भूमिका के लिए उन्होंने खुद को एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्थापित किया।

🇮🇳 मालती चौधरी भूदान आंदोलन के दौरान विनोबा भावे के साथ थीं। 

🇮🇳 वह अपनी नोआखली यात्रा के दौरान गांधीजी से जुड़ीं। गांधीजी ने उन्हें प्यार से ‘तूफानी’ कहा। उन्होंने 'कृसक आंदोलन' का नेतृत्व किया जिससे गरीब किसानों को भूस्वामियों और साहूकारों की पकड़ से बचाया जा सके।

🇮🇳 सन 1946 में मालती चौधरी को भारत की संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया। वह उत्कल प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष के रूप में भी चुनी गई थी6। आजादी के बाद उन्होंने पिछड़े वर्गों के लिए संघर्ष करना जारी रखा। जब उनके पति ने ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, तो उन्होंने उड़ीसा में विभिन्न ग्रामीण पुनर्निर्माण योजना शुरू की। जब आपात काल का वादा किया गया था, तब मालती चौधरी ने इंदिरा गांधी सरकार की नीति का विरोध किया। उन्हें जेल में डाल दिया गया था।

🇮🇳 मालती चौधरी को राष्ट्र के प्रति समर्पण के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें बाल कल्याण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार (1987), जमनालाल बजाज पुरस्कार (1988), उत्कल सेवा सम्मान (1994), टैगोर लिटरेसी अवार्ड (1995), लोकसभा और राज्य सभा द्वारा संविधान सभा (1997) की पहली बैठक की 50 वीं वर्षगांठ के अवसर पर सम्मान, राज्य समाज कल्याण सलाहकार बोर्ड (1997) द्वारा सम्मान, राज्य महिला आयोग द्वारा सम्मान (1997) आदि हैं।

🇮🇳 सन 1998 में मालती चौधरी का निधन हुआ।

साभार : bharatdiscovery.org

🇮🇳 प्रमुख #स्वतंत्रतासेनानी और #समाजसेविका #Freedom_fighter and #social_worker #मालती_चौधरी  #Malati_Chaudhary जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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