15 मार्च 2024

Major Sandeep Unnikrishnan | मेजर संदीप उन्नीकृष्णन | Soldier

 



15 मार्च 1977 को जन्मे संदीप उन्नीकृष्णन #बेंगलुरु में रहने वाले एक मलयाली परिवार से आते थे। उनका परिवार केरल के कोझिकोड जिले के चेरुवन्नूर से बेंगलुरु शिफ्ट हुआ था। उनके पिता #के_उन्नीकृष्णन इसरो के अधिकारी रह चुके हैं। उनकी माता का नाम #धनलक्ष्मी_उन्नीकृष्णन है। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। उन्होंने बेंगलुरु के फ्रैंक एंथनी पब्लिक स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की। 1995 में साइंस स्ट्रीम से आईएससी की।

🇮🇳 साल 1995 में उन्होंने एनडीए में प्रवेश लिया। चार सालों के बाद उनको वह करने का मौका मिला जिसका सपना हर सैनिक देखता है यानी 1999 में कारगिल युद्ध में उनको लड़ने का मौका मिला। फिर साल 2007 में उनको राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के स्पेशल ऐक्शन ग्रुप (एसएजी) में शामिल किया गया। वह निडर और बहादुर थे। मुश्किल हालात का सामना करने से पीछे नहीं हटते थे।

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🇮🇳 ‘ऊपर मत आना, मैं इन सबको देख लूंगा.’

🇮🇳 अपने एक घायल साथी को बचाने के बाद अपने साथियों से कहे गए ये आखिरी शब्द थे शहीद उन्नीकृष्णन के. मुंबई में हुए बम धमाकों के बाद ताज होटल में आतंकियों का सफाया करने के लिए 27 नवंबर 2008 को एनएसजी टीम को लाया गया था. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन कमांडो इस ऑपरेशन को लीड कर रहे थे.

🇮🇳 क्या हुआ था 27 नवंबर 2008 को---

10 कमांडो की टीम ने जब ताज होटल में मोर्चा संभाला. तो संदीप की टीम को तीसरी मंजिल पर आतंकियों के होने का शक हुआ. यहां एक कमरे में कुछ औरतों को आतंकियों ने बंधक बनाया हुआ था. कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उसे तोड़ने पर संदीप की टीम पर अचानक से गोलीबारी शुरू हो गई. जवाबी कार्रवाई में संदीप की टीम को इस बात का भी ध्यान रखना था कि किसी बंधक को गोली न लग जाए. इस गोलीबारी में संदीप के एक साथी कमांडो सुनील यादव घायल हो गए.  संदीप ने अपने घायल साथी को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया.

🇮🇳 इसी दौरान उनके दाएं हाथ में गोली लग गई. फिर भी संदीप ने आतंकियों का पीछा किया. और गोली चला रहे आतंकियों को ढूंढकर मार गिराया. जब वो आगे बढ़े तो आतंकी कमरे में लोगों को बंद करके मार रहे थे. संदीप ने वहां से 14 लोगों को बाहर निकाला. लेकिन पीछे से हुई गोलीबारी में संदीप बुरी तरह से जख्मी हो गए. वो लड़ते रहे, लेकिन उनकी सांसों ने उनका साथ नहीं दिया. अपने ऑपरेशन को कामयाब बनाते हुए वो शहीद हो गए.

🇮🇳 मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की अंतिम विदाई---

संदीप की अंतिम यात्रा के समय आसमान भी उदास था. 29 नवंबर को जिस दिन संदीप उन्नीकृष्णन की अंतिम यात्रा जा रही थी, वास्तव में उस दिन बैंगलुरू में गहरे काले बादल छाए हुए थे. इससे ठीक 3 दिन पहले संदीप की बातचीत घर के लोगों से हुई थी. वो कोई 15 दिन बाद अपने दोस्त की शादी में बैंगलुरू आने वाले थे.

🇮🇳 उन्नीकृष्णन 7वीं बिहार रेजीमेंट के जवान थे और एनएसजी में संदीप की यह दूसरी डेप्यूटेशन थी. अपनी ऑरकुट प्रोफाइल पर संदीप ने जो भाषाएं आती हैं उनमें बिहारी का भी ज़िक्र किया है. क्रिकेट और फिल्मों के दीवाने संदीप 5 भाषाएं बोल लेते थे और इन भाषाओं के मज़ाकिया शब्दों से इन्हें खास लगाव था.

🇮🇳 संदीप के पिता इसरो में वैज्ञानिक थे. लेकिन संदीप ने अपने ही ढंग से एक गैर-मामूली ज़िंदगी जीने के लिए सेना में जाने का फैसला किया.

साभार: thelallantop.com

🇮🇳 भारतीय सेना के शूरवीर अदम्य साहसी एवं निर्भीक सैनिक #मेजर_संदीप_उन्नीकृष्णन #Major_Sandeep_Unnikrishnan जी को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

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🇮🇳 जय हिन्द, जय हिन्द की सेना 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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