02 मार्च 2024

Prof. Manoranjan Sahu | प्रो. मनोरंजन साहू | क्षारसूत्र चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञ

 



Prof. Manoranjan Sahu | प्रो. मनोरंजन साहू | क्षारसूत्र चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञ

🇮🇳 प्रो. मनोरंजन साहू बीएचयू आयुर्वेद संकाय के डीन रहे। उन्होंने अपने कार्यकाल में बीएचयू में वर्ष 2013 में देश का पहला क्षार सूत्र केंद्र बनवाया था। 🇮🇳

🇮🇳 मनोरंजन साहू (जन्म- 2 मार्च, 1953, मिदनापुर, पश्चिम बंगाल) बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय के पूर्व प्रमुख, शल्य चिकित्सा विभाग के पूर्व अध्यक्ष और क्षारसूत्र चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञ हैं। प्रो. मनोरंजन साहू को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में पद्म श्री, 2023 से सम्मानित किया है। प्रो. मनोरंजन साहू शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में यह सम्मान पाने वाले पहले प्रोफेसर हैं।

🇮🇳 प्रोफेसर साहू का जन्म 2 मार्च, 1953 को #पश्चिम_बंगाल के #मिदनापुर जिले में हुआ था। सन 1977 में उन्होंने स्टेट आयुर्वेदिक कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद एमडी और पीएचडी की उपाधि काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1982 व 1986 में प्राप्त की। इसके बाद बी.एच.यू. में उन्होंने बतौर शिक्षक 34 वर्षों तक कार्य किया।

🇮🇳 प्रो. मनोरंजन साहू बीएचयू आयुर्वेद संकाय के डीन रहे। उन्होंने अपने कार्यकाल में बीएचयू में वर्ष 2013 में देश का पहला क्षार सूत्र केंद्र बनवाया था।

🇮🇳 वह सामाजिक संस्थाओं में भी बवासीर का मुफ्त इलाज किया करते थे।

🇮🇳 मूल रूप से पश्चिम बंगाल के मिदनापुर निवासी प्रो. मनोरंजन साहू ने कोलकाता के जेबी रॉय स्टेट आयुर्वेदिक कॉलेज से वर्ष 1977 में स्नातक किया ।

🇮🇳 सन 1982 और 1986 में बीएचयू में आयुर्वेद में एमडी और शोध करने के बाद काठमांडू चिकित्सा संस्थान में लेक्चरर नियुक्त हुए।

🇮🇳 वर्ष 1993 में बीएचयू आयुर्वेद फैकल्टी के शल्य तंत्र विभाग में रीडर नियुक्त हुए। इसके बाद वे 2003 में प्रोफेसर बने।

🇮🇳 प्रो. मनोरंजन साहू को आयुष विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 2008 में सम्मान, 2014 में वैद्य सुंदरलाल जोशी मेमोरियल अवार्ड सहित अन्य पुरस्कार मिल चुका है।

🇮🇳 दो शोध का पेटेंट और 32 अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन भी प्रो. साहू ने किया है।

🇮🇳 दुनिया के कई देशों में आयोजित मनोरंजन साहू आयुर्वेद सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके है।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #पद्मश्री और वैद्य सुंदरलाल जोशी मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित; बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के #आयुर्वेद संकाय के पूर्व प्रमुख, #शल्य_चिकित्सा विभाग के पूर्व अध्यक्ष और #क्षारसूत्र_चिकित्सा_पद्धति के विशेषज्ञ #प्रोफेसर_मनोरंजन_साहू जी को जन्मदिन की ढेरों बधाई एवं शुभकामनाएँ !

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 #Prof._Manoranjan_Sahu #आजादी_का_अमृतकाल  #02March #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व,  


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,

Queen Talaash Kunwari | पूर्वांचल की लक्ष्मीबाई थीं रानी तलाश कुंवरि




🇮🇳 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम आते ही जेहन में मंगल पांडेय का नाम आता है। मगर उत्तर प्रदेश के #बस्ती जिले के #अमोढ़ा रियासत की रानी तलाश कुंवरि ने भी उस आंदोलन में न सिर्फ पूरी ताकत से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन को जनक्रांति का स्वरूप दे दिया। रानी की अगुवाई में ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ जंग में शामिल सैकड़ों क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने छावनी में पीपल के पेड़ पर लटका कर सरेआम फाँसी दी थी। यह पेड़ आज भी बस्ती के स्वतंत्रता आंदोलन के गौरवशाली इतिहास की गवाही देता है।

🇮🇳 महारानी तलाश कुंवरि बस्ती ही नहीं, #पूर्वांचल के लोगों के दिलों में आज भी जिंदा है। वह अमोढ़ा रियासत की अंतिम शासक थीं। एसआर डिग्री कॉलेज #दसिया के कार्यवाहक प्राचार्य व इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष #डॉ_वीरेंद्र_श्रीवास्तव बताते हैं कि सन 1852 में #महाराजा_जंगबहादुर_सिंह के निधन के बाद रानी तलाश कुंवरि को सत्ता की बागडोर सँभालनी पड़ी। उस समय अंग्रेज अपने राज्य विस्तार में पूरी ताकत झोंके हुए थे।

🇮🇳 ब्रिटिश हुकूमत की नजर एकाएक अमोढ़ा रियासत पर पड़ी। उसे हथियाने को कुचक्र रचना शुरू कर दिया। तब इर्द-गिर्द की मित्र रियासतों का संगठन बना, जिसमें अमोढ़ा भी शामिल हो गया। रियासतों ने अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफर के नेतृत्व में यह लड़ाई शुरू की।

🇮🇳 इधर, रानी की बढ़ती ताकत से तिलमिलाए अंग्रेजों ने विद्रोह को दबाने के लिए 1858 में कर्नल ह्यूज के नेतृत्व में ब्रिटिश फौज को आक्रमण के लिए भेजा। रानी और उनके सैनिक अंग्रेजों से वीरता से लड़े। अंग्रेज रानी को जिंदा पकड़ना चाहते थे, लेकिन रानी ने सौगंध ले रखी थी कि वह जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगेंगी। इसी संकल्प को आत्मसात कर वह अंग्रेजों से युद्ध करते #पखेरवा कुंवर सम्मय माता के स्थान पर पहुँच गईं।

🇮🇳 सिपहसालारों को बुलाकर कहा कि अब प्राण बचाना मुश्किल है। यहीं पर उन्होंने दो मार्च 1858 को छाती में कटार घोंप कर आत्मबलिदान दे दिया। डॉ. वीरेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि रानी ने देश में बस्ती का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज कराया। उनकी वीरता किसी मायने में रानी लक्ष्मीबाई से कम नहीं है।

🇮🇳 रानी की शहादत के बाद उनके शव को सहयोगियों ने छिपा लिया। बाद में शव को अमोढ़ा राज्य की कुल देवी #सम्मय_माता_भवानी का चौरा के पास दफना दिया गया। यह जगह रानी चौरा के टीले के नाम से प्रसिद्ध है। जबकि पखेरवा में रानी के घोड़े को दफनाया गया है। इस जगह पर एक पीपल का पेड़ आज भी मौजूद है।

🇮🇳 रानी की शहादत के बाद भी क्षेत्र के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। लेकिन तब अंग्रेजों की सेना ने गाँव-गाँव जाकर रानी के सैनिकों और उनका सहयोग करने वालों को पकड़ा। मुकदमे का हवाला देते हुए अंग्रेजों ने डेढ़ सौ सैनिकों को छावनी में पीपल के पेड़ से लटका कर मौत के घाट उतार दिया। यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा है।



🇮🇳 छावनी शहीद स्थल का निर्माण वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कराया। यहाँ 1992 से मेला लगता आ रहा है। यहाँ शिलालेख पर महारानी का जीवन परिचय लिखा है तो दूसरी तरफ शहीदों का नाम अंकित है। हालांकि शिलालेख में सिर्फ 19 बलिदानियों का ही नाम अंकित है।

Photo: Chandra Prakash Chaudhary

साभार: amarujala.com

🇮🇳 ब्रिटिश हुकूमत को नाकों चने चबाने को विवश करने वाली, 1857 के प्रथम #स्वतंत्रता संग्राम की नायिका #वीरांगना #रानी_तलाश_कुंवरि जी को उनके #आत्मबलिदान_दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि !

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 #Queen_Talaash_Kunwari #आजादी_का_अमृतकाल  #02March #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व,  


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01 मार्च 2024

God Sent Traveler's | ऊपर वाले ने मुसाफ़िर भेजे | मुसाफ़िरों ने सराय को ठौर मान लिया । Good Thought | Quote | सुविचार

 



ऊपर वाले ने मुसाफ़िर भेजे। मुसाफ़िरों  ने सराय को ठौर मान लिया ।

ऊपर वाले ने मंच पर कठपुतलियाँ  उतारी। कठपुतलियों ने गति को अपनी ताकत माना । भूल गई कि डोर खींचते ही कभी भी खेल खत्म किया जा सकता है ।

 ऊपर वाले ने मल्लाहों को दरिया में उतारा । मल्लाह भूल गए कश्ती का लंगर किसी और के हाथ है । 


गजब ये है कि हर रोज कठपुतलियाँ डोर टूटती देख रही है , मल्लाह कश्ती डूबती देख रहे है , मुसाफ़िर सरायखाने से लोगों को जाते देख रहे मगर वे भूल जाते है कि किसी भी समय उनके खेल समाप्ति की घण्टी बज सकती है ।


हम सब एक दूसरे से हँसकर मिलते है ,बातें करते है ,पिक्स खिंचवाते है।

मगर ये बात कोई नही जान पाता है कि भीड़ में किसी के भीतर कितना अकेलापन है । किस बेमनी से कोई   कितना झूठा मुस्कुरा रहा है । ईश्वर की दी जिंदगी में दर्द, बिछोह , सपनों और रिश्तों के टूटने का दर्द जीवन के आखरी दिनों तक हमें मिलता रहेगा । 


सबके जीवन में बुरा समय आता है ...बीत भी जाता है.। नई खुशियों पर लोग फिर से धीरे धीरे मुस्काना सीखते है । जिंदगी है.. आगे बढ़ेगी ही । लंबे चले उस बुरे समय की मोबाइल की गैलरी में अपनी ही किसी पिक को देख खुद के लिए करुणा उपजेगी । पिक में अपनी वो छद्म हँसी आज भी आपको उदास कर देगी । कोई नही समझ पाया था कि मुझ पर क्या गुजर रही थी ।


कैसे मैंने काट लिए महीनों के लंबे रतजगे, 

वो ज़लज़ला काफ़ी था जान लेने की खातिर ।


ऊपर वाला जब जब अंधेरा करता है तब तब चिराग टटोलने में व्यस्त रहने वाला अवसाद में नही जाता है । चिराग हाथ ना भी लगे , तब भी ढूँढने की कोशिश में कम से कम अंधेरा समय बीत जाता है ।


कभी कभी हमारा कोई दुःख इतना निजी होता है कि हमें ढांढस देने वाला  गले भी लगाए तो उसके आलिंगन में सिर्फ बदन जाता है। हमारी कोरी रूह तो दूर कही अकेली मातम मना रही होती है । कभी कभी लगता है जीने का एक मौका और मिलता तो सही तरीके से खेलते। मगर ऊपर वाले के यहाँ रीस्टार्ट का ऑप्शन नही होता । जिंदगी को जितनी गम्भीरता से लो उतनी पीड़ा होगी। इसे तो कुछ इस तरह जियो कि उम्र एक सड़क है और सिर्फ चलना है ....दुनिया एक चित्र है और देखना है ...।


लोग इंतज़ार करते है कि एक दिन जब सब कुछ ठीक हो जाएगा तो जी लेंगे । अभी तो उम्र पड़ी है । असल में सब कुछ ठीक कभी नही होता । ख्वाहिशें पूरी होते ही चार दिन में मोल खो देती है । भीतर वही खालीपन । चाँद भी गर झोली में आ जाए तो राई का दाना हो जाएगा । लोग मिलेंगे बिछड़ेंगे , आस बनेगी टूटेगी , ख्वाब बिखरते संवरते रहेंगे ।


जीवन बहुत छोटा है ।जीवन को व्यस्थित करने की अत्यधिक चाक चौबन्ध व्यवस्था करने वालों को अंत में समझ आता है कि सफर का सबसे हसीन हिस्सा परफेक्शन में गुजर गया ।


जीवन में हर वक्त कुछ ना कुछ मिसिंग होगा ही ...। जीवन की पूर्णता को अपूर्णताओं के बीच ही तलाशना है । सांसारिक सफलता पद , पैसे , प्रतिष्ठा से घर भरने के साधन जरूर खरीद सकते है । इनसे लोग खरीदे जा सकते है ... रिश्तें नही । असल कामयाबी बुरे समय को भी संयत तरीके से गुजार देने में है .... यदि आपके पास चंद ऐसे रिश्तें है जो बदन नही रूह को गले लगाते है और अपनी नजदीकियों से पलके नम कर दे तो आपका जीवन सुंदर और सफल है । कुछ लोग आपके लिए है जो आपसे मिलने लम्बा सफर तय करके , समय निकाल कर आते है तो आप कामयाब है ।यदि अपनी अपूर्णताओं के साथ मुस्कुरा रहे है तो आप पूर्ण है ।


दौड़ता सबसे पहले परचम फहराने पहुँचा वो जहाँ अंत है  ,

तेज़ी में रहा बेखबर पीछे छूट गए कितने अनदेखे बसंत है ।

साभार: Madhu -writerat film writer's association Mumbai

(पोस्ट शेयर करने मेरी अनुमति लेने की आवश्यकता नही है ।)



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Leave it | छोड़ दीजिए | सुविचार | Good Thought | Quote





😊 Leave it 😊 😊 छोड़ दीजिए 😊 


एक दो बार समझाने से कोई नही समझ रहा है तो सामने वाले को समझाना

छोड़ दीजिए 


बच्चे बड़े होने पर वो खुद के निर्णय लेने लगे तो उनके पीछे लगना

छोड़ दीजिए 


गिने चुने लोगो से अपने विचार मिलते है, 

एक दो से नही जुड़े तो उन्हें

छोड़ दीजिए 


एक उम्र के बाद कोई आपको ना पूछे या कोई पीठ पीछे आपके बारे में गलत कह रहा है तो दिल पे लेना 

छोड़ दीजिए 


अपने हाथ कुछ नही, ये अनुभव आने पर भविष्य की चिंता करना

छोड़ दीजिए 


इच्छा और क्षमता में बहोत फर्क पड़ रहा है तो खुद से अपेक्षा करना

छोड़ दीजिए 


हर किसीका जीवन अलग, 

कद, रंग सब अलग है इसलिए तुलना करना

छोड़ दीजिए


बढ़ती उम्र में जीवन का आनंद लीजिए, रोज जमा खर्च की चिंता करना

छोड़ दीजिए 


अच्छा लगे तो ठीक ना लगे तो हल्के में लेकर


छोड़ दीजिए... 😇

👍👌👌👌👌


 #Leave_it,  #छोड़ दीजिए,  #सुविचार, #Good, #Thought, #Quote,




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29 फ़रवरी 2024

Illegal Construction | Good Order from the Supreme Court | अच्छा आदेश है सुप्रीम कोर्ट का | हर जगह लागू होना चाहिए | लेखक : सुभाष चन्द्र

 



Illegal construction Good Order from the Supreme Court | अच्छा आदेश है सुप्रीम कोर्ट का  |  हर जगह लागू होना चाहिए,


अच्छा आदेश है सुप्रीम कोर्ट का, 

लेकिन यह हर जगह लागू होना चाहिए,

सुप्रीम कोर्ट हर राज्य सरकार से 

समयबद्ध सीमा में अवैध निर्माण 

गिराने के आदेश दे -


सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने चेन्नई में बनाई गई मस्जिद और मदरसे को गिराने के मद्रास हाई कोर्ट के देश को बरक़रार रखते हुए 26 फरवरी को कहा कि वह निर्माण पूरी तरह अवैध था - मस्जिद व दरगाह समिति की अपील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा सार्वजनिक स्थानों पर अवैध कब्ज़ा कर बनाए गए धार्मिक स्थलों को हटाना ही उचित है जैसा हम पूर्व आदेशों में भी कह चुके हैं -


मस्जिद और दरगाह समिति ने कहा था कि वह जमीन लंबे समय से खाली पड़ी थी जिसका मतलब है कि सरकार को जनहित में उसकी जरूरत नहीं थी - पीठ ने इस पर कहा कि क्या इसका मतलब है कि आप जमीन पर कब्ज़ा कर लेंगे, जमीन सरकार की है, वह उसे प्रयोग करे या न करे, लेकिन आपको उस पर कब्ज़ा करने का कोई अधिकार नहीं है - अदालत ने बिल्डिंग हटाने के लिए 31 मई तक का समय दिया है -


कहने को यह आदेश बहुत अच्छा है लेकिन इसका पालन हर जगह होना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के हर आदेश में होना चाहिए - जमीन सरकार की खाली पड़ी भी तो भी उस पर किसी को कब्ज़ा कर उपयोग करने का अधिकार नहीं है, यह सुप्रीम कोर्ट स्वयं कह रहा है -


यह बात भी याद रखनी चाहिए कि रेलवे और सेना की लाखों एकड़ भूमि पर लोग अवैध कब्ज़ा कर बैठे हैं, झुग्गियां बसा लेते हैं लेकिन जब प्रशासन उस अवैध कब्जे से जमीन को मुक्त कराने की कोशिश करता है तो सुप्रीम कोर्ट ही विगत में ऐसे प्रयासों पर रोक लगाता रहा - यहां तक वहां बसे लोगों के पुनर्वास की पहले व्यवस्था करने के आदेश देता रहा है और इस तरह अदालत स्वयं ऐसे कब्जे को कानूनी जामा पहनाने की कोशिश करता है -


आपको याद होगा हल्द्वानी की रेलवे की भूमि को खाली कराने से सुप्रीम कोर्ट ने ही रोका था और यहां तक मुस्लिम होने का भी वास्ता देकर पहले उनके पुनर्वास की बात की थी जिससे उन्हें इतना बल मिला कि ठीक एक साल बाद उन लोगों ने पुलिस पर हमला कर करोड़ो की संपत्ति बर्बाद कर दी - ऐसा #secularism आड़े नहीं आना चाहिए -


मज़ार का मतलब होता है - “समाधि स्थल, दरगाह, किसी सूफ़ी बुज़ुर्ग की क़ब्र · कोई दर्शनीय स्थल, श्राइन, बड़ों का तीर्थ, दरगाह, आस्ताना, तीर्थ”

लेकिन यह देखा जा सकता है कि हर खाली जमीन पर मज़ारें बना दी जाती है जिनमे कोई सूफी या कोई व्यक्ति नहीं  होता - दिल्ली भर में अनेक सड़कें है जिनके बनते ही “मज़ारें” बन जाती हैं, भला सड़कें बनने के बाद कोई वहीँ कैसे मरता है जिसकी मज़ार बन जाती है - जबकि जाकिर नाइक के अनुसार इस्लाम में मज़ार बनाना वर्जित है और इसलिए ऐसे सब निर्माण अवैध हैं जिन्हे हटाने के लिए हर राज सरकार को समयबद्ध सीमा में कार्रवाई के आदेश देने चाहिए -


इलाहाबाद हाई कोर्ट परिसर में खड़ी अवैध मस्जिद को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 5 साल लगा दिए और तब मार्च, 2023 में हटाने के आदेश दिए - पता चला है वह मस्जिद अंततः अप्रैल/मई 2023 में हटा दी गई -


पटना हाई कोर्ट के नजदीक बनाए गए “वक्फ भवन” को हटाने के आदेश हाई कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने  4 -1 से  19 अगस्त, 2021 को देते हुए कहा था कि “The Structure has been constructed in utter and brazen violation of provisions of law –and it must be held to be illegal and non - est from the word go “


लेकिन इस फैसले में जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह का इस्लाम बीच में आ गया और उन्होंने 4 जजों के विरोध में मत दिया -

इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर, 2021 को रोक लगा दी और मामला बरफ में जम गया जिस पर अभी तक सुनवाई नहीं हुई है - 


इसलिए मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के अवैध निर्माण को हटाने के लिए आदेश सब जगह लागू किए जाएं, ये आदेश specific नहीं होने चाहिए -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 29/02/2024 

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Prof. Conjeevaram Srirangachari Seshadri | Famous Mathematician | कांजिवरम श्रीरंगचारी शेषाद्रि | 29 फ़रवरी, 1932-17 जुलाई, 2020

 



Prof. Conjeevaram Srirangachari Seshadri | कांजिवरम श्रीरंगचारी शेषाद्रि | 29 फ़रवरी, 1932-17 जुलाई, 2020 

🇮🇳 #कांजिवरम #श्रीरंगचारी #शेषाद्रि (जन्म- 29 फ़रवरी, 1932; मृत्यु- 17 जुलाई, 2020, #चेन्नई) भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ थे। उन्हें सन 2009 में भारत सरकार द्वारा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था। सी. एस. शेषाद्रि स्वातंत्र्योत्तर काल में भारतीय गणित के नेताओं में से एक थे। वह संगीत और कर्नाटक संगीत के एक कुशल गायक भी थे, जो बड़ी बारीकियों में सक्षम थे।

🇮🇳 #भारतीय #गणितज्ञ सी. एस. #शेषाद्रि का जन्म 29 फ़रवरी, 1932 को हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में स्नातक छात्रों के पहले बैच के रूप में की थी। शानदार सहयोगियों के साथ-साथ एम.एस. नरसिम्हन, एस. रामकरण और एम.एस. रघुनाथन, उन्होंने टीआईएफआर में स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स को दुनिया में गणित अनुसंधान के प्रमुख केंद्रों के रूप में स्थापित करने में मदद की।

🇮🇳 वह 1985 में गणितीय विज्ञान संस्थान में चेन्नई चले गए। 1989 में, उन्हें एसपीआईसी साइंस फाउंडेशन के हिस्से के रूप में स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स शुरू करने का मौका मिला, जो चेन्नई गणित संस्थान में विकसित हुआ है।

🇮🇳 बीजगणितीय ज्यामिति क्षेत्र के नेता सी. एस. शेषाद्रि ने ऐसी सफलताओं को बनाया जो इस गहन अनुशासन की कई शाखाओं के आधार पर हैं। उनमें पूरे या पर्याप्त भाग में खोजे जा सकने वाले विषयों में बहुपद के छल्ले, ज्यामितीय अपरिवर्तनीय सिद्धांत, प्रतिरूप सिद्धांत, वक्रों पर वेक्टर बंडलों, नरसिम्हन-शेषाद्रि प्रमेय, परवलयिक बंडल, मानक मोनोमियल सिद्धांत और शुबर्ट किस्मों के ज्यामिति पर अनुमानित मॉड्यूल शामिल हैं। वह अंत तक सूक्ष्म गणित में लगे रहे, इसका अधिकांश हिस्सा युवा सहकर्मी वी. बालाजी के साथ लंबे समय से चल रहा था।

🇮🇳 सीएमआई भारत में एक अनूठी संस्था है जो अनुसंधान के साथ स्नातक शिक्षा को एकीकृत करने का प्रयास करती है। शेषाद्रि की दृष्टि में यह वृद्धि हुई कि उच्च शिक्षा केवल विषय में परास्नातक की उपस्थिति के बीच सक्रिय अनुसंधान के वातावरण में हो सकती है। अपने करीबी दोस्तों और शुभचिंतकों से भी असाधारण विरोध और संदेह के कारण यह एक बहादुर उद्यम था। शिक्षा के एक केंद्र का निर्माण करना उनका सपना था जो दुनिया के महान अनुसंधान विश्वविद्यालयों के साथ खुद की तुलना कर सकता है। यह भारत में एक अद्वितीय शैक्षणिक माहौल में सीखने के लिए प्रतिभाशाली छात्रों के लिए अवसरों को खोलता है और सक्रिय शोधकर्ताओं को इस प्रयोग में भाग लेने की संभावनाएं देता है, जो यह मानता है कि भारत में गणित के विकास पर हमेशा के लिए प्रभाव छोड़ देगा।

🇮🇳 यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सीएमआई अब गणित और सैद्धांतिक कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक अध्ययन के लिए दुनिया के सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में से एक के रूप में आँका गया है।

🇮🇳 गणित में सी. एस. शेषाद्रि की उपलब्धियों को कई सम्मानों के माध्यम से मान्यता दी गई थी। उन्हें 1988 में रॉयल सोसाइटी का फेलो और 2010 में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, यू.एस. का एक विदेशी एसोसिएट चुना गया था। उन्हें 2009 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था।

🇮🇳 सी. एस. शेषाद्रि का निधन 17 जुलाई, 2020 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार और #पद्मभूषण से सम्मानित; सुप्रसिद्ध भारतीय #गणितज्ञ #कांजिवरम_श्रीरंगचारी_शेषाद्रि जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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28 फ़रवरी 2024

Jagadguru Shri Jayendra Saraswati Shankaracharya | जगद्गुरु श्री जयेन्द्र सरस्वती शंकराचार्य | 18 July, 1935-28 February, 2018


 

🇮🇳 #Jagadguru Shri #Jayendra #Saraswati #Shankaracharya #जगद्गुरु श्री #जयेन्द्र #सरस्वती #शंकराचार्य (18 July, 1935-28 February, 2018)

जगद्गुरु श्री जयेन्द्र सरस्वती शंकराचार्य (जन्म- 18 जुलाई, 1935; मृत्यु- 28 फ़रवरी, 2018) कामकोटि पीठ, #कांचीपुरम, तमिलनाडु के शंकराचार्य थे। स्वामी जी ने रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ा और #मठ की गतिवधियों का विस्तार समाज कल्याण, ख़ासकर दलितों के शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कार्यों तक किया। उन्हें 22 मार्च, 1954 को चंद्रशेखरानंद सरस्वती स्वामीगल ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, जिसके बाद वह 69वें मठ प्रमुख बने थे। जयेन्द्र सरस्वती ने अयोध्या विवाद के हल के लिए भी पहल की थी। इसके लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी काफी प्रशंसा की थी।

🇮🇳 जयेन्द्र सरस्वती ने हिंदुओं के प्रमुख केंद्र कामकोटि मठ को और ताकतवर बनाया। उनके समय में यहाँ एनआरआई और राजनीतिक शख्सियतों की गतिविधियां बढ़ीं। कांची मठ कई स्कूल और अस्पताल भी चलाता है। इसके साथ ही प्रसिद्ध शंकर नेत्रालय मठ की तरफ से चलाया जाता है।

🇮🇳 परिचय--

जयेन्द्र सरवस्ती का जन्म 18 जुलाई, 1935 को #तंजावुर, #तमिलनाडु में हुआ था। उन्हें पहले 'सुब्रमण्यम महादेव अय्यर' के नाम से जाना जाता था, क्योंकि उनके पिता का नाम #महादेव_अय्यर था। पिता ने उन्हें नौ वर्ष की अवस्था में वेदों के अध्ययन के लिए कांची कामकोटि मठ में भेज दिया। वहाँ उन्होंने छह वर्ष तक ऋग्वेद व अन्य ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया। मठ के 68वें #आचार्य_चंद्रशेखरानंद_सरस्वती ने उनकी प्रतिभा देखकर उन्हें उपनिषद पढ़ने को कहा। सम्भवतः वे सुब्रह्मण्यम में अपने भावी उत्तराधिकारी को देख रहे थे, जो बाद में आगे चलकर सही भी साबित हुआ।

🇮🇳 संन्यास--

आगे चलकर जयेन्द्र सरवस्ती ने अपने पिता के साथ अनेक तीर्थों की यात्रा की। वे भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन के लिए तिरुमला गये और वहाँ उन्होंने सिर मुण्डवा लिया। 22 मार्च, 1954 उनके जीवन का महत्वपूर्ण दिन था, जब उन्होंने संन्यास ग्रहण किया। सर्वतीर्थ तालाब में कमर तक जल में खड़े होकर उन्होंने प्रश्नोच्चारण मन्त्र का जाप किया और यज्ञोपवीत उतार कर स्वयं को सांसारिक जीवन से अलग कर लिया। इसके बाद वे अपने गुरु स्वामी चन्द्रशेखरानंद सरस्वती द्वारा प्रदत्त भगवा वस्त्र पहन कर तालाब से बाहर आये। इस देशाटन से वह भारत में धर्म पर वार कर रही कुसंस्कृतियों को भी जान और पहिचान चुके थे। इसके बाद 15 वर्ष तक उन्होंने वेद, व्याकरण मीमांसा तथा न्यायशास्त्र का गहन अध्ययन किया। उनकी प्रखर साधना देखकर कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरानंद सरस्वती ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर उनका नाम जयेन्द्र सरस्वती रखा। अब उनका अधिकांश समय पूजा-पाठ में बीतने लगा।

🇮🇳 शंकराचार्य--

जयेन्द्र सरस्वती 19 साल की उम्र में शंकराचार्य बने थे। उन्होंने 65 साल तक कांची कामकोटि की गद्दी संभाली। 22 मार्च 1954 को चंद्रशेखरानंद सरस्वती के बाद उन्हें 69वां शंकराचार्य बनाया गया था। कांची पीठ हिंदू धर्म का अनुसरण करने वालों के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह तमिलनाडु राज्य में कांचीपुरम नगर में स्थित है। स्वामी जी ने रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ा और मठ की गतिवधियों का विस्तार समाज कल्याण, ख़ासकर दलितों के शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कार्यों तक किया। उन्हें 22 मार्च 1954 को चंद्रशेखरानंद सरस्वती स्वामीगल ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, जिसके बाद वह 69वें मठप्रमुख बने थे।

🇮🇳 उन्होंने मठ को एक नई दिशा दी। पहले मठ सिर्फ आध्यात्मिक कार्यों तक सीमित होता था। उन्होंने धार्मिक संस्थानों को सामाजिक कार्यों से जोड़ा। यही कारण है कि वह देशभर में लोकप्रिय हुए। जयेन्द्र सरस्वती का आंदोलन समाज के सबसे निचले स्तर पर खड़े लोगों को मदद पहुंचाने के लिए था। पहले मठ कांचीपुरम और राज्य के भीतर तक सीमित था। वह इसे उत्तर-पूर्वी राज्यों तक ले गए। वहां उन्होंने स्कूल और अस्पताल शुरू किए। उन्होंने मठ को समाज से जोड़ा, सार्वजनिक मामलों में रुचि ली और दूसरे धर्मों के नेताओं से भी अच्छे संबंध स्थापित किए।

🇮🇳 #अयोध्या विवाद हल हेतु प्रयासरत--

स्वामी जयेन्द्र सरस्वती अयोध्या विवाद को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे। एक समय वह अयोध्या विवाद के हल के लिए काफी सक्रिय थे। भूतपूर्व प्रधानमंत्री #अटल #बिहारी#वाजपेयी ने भी अयोध्या मसले के समाधान के लिए शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती की सराहना की थी। जयेन्द्र सरस्वती ने 2010 में ये दावा किया था कि वाजपेयी सरकार अयोध्या विवाद के समाधान के करीब पहुंच गई थी। वह संसद में कानून बनाना चाहती थी।

🇮🇳 मठ स्थापना--

आदि शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में मठ स्थापित किए थे-

🇮🇳 शृंगेरी मठ--

शृंगेरी शारदा पीठ कर्नाटक के चिकमंगलुर में है। यहां दीक्षा लेने वाले संयासियों के नाम के बाद 'सरस्वती', 'भारती', 'पुरी' लगाया जाता है।

🇮🇳 गोवर्धन मठ--

गोवर्धन मठ ओडिशा के पुरी में है। इसका संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से है। इसमें बिहार से ओडिशा व अरुणाचल प्रदेश तक का भाग आता है।

🇮🇳 शारदा मठ--

द्वारका मठ को शारदा मठ कहा जाता है। यह गुजरात में द्वारकाधाम में है। यहां दीक्षा लेने वाले के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' लिखा जाता है।

🇮🇳 ज्योतिर्मठ--

ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रीनाथ में है। यहां दीक्षा लेने वाले के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' और 'सागर' का विशेषण लगाया जाता है।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 कामकोटि पीठ, कांचीपुरम, तमिलनाडु के #शंकराचार्य #जगद्गुरु_श्री_जयेन्द्र_सरस्वती शंकराचार्य जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...