🇮🇳 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम आते ही जेहन में मंगल पांडेय का नाम आता है। मगर उत्तर प्रदेश के #बस्ती जिले के #अमोढ़ा रियासत की रानी तलाश कुंवरि ने भी उस आंदोलन में न सिर्फ पूरी ताकत से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन को जनक्रांति का स्वरूप दे दिया। रानी की अगुवाई में ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ जंग में शामिल सैकड़ों क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने छावनी में पीपल के पेड़ पर लटका कर सरेआम फाँसी दी थी। यह पेड़ आज भी बस्ती के स्वतंत्रता आंदोलन के गौरवशाली इतिहास की गवाही देता है।
🇮🇳 महारानी तलाश कुंवरि बस्ती ही नहीं, #पूर्वांचल के लोगों के दिलों में आज भी जिंदा है। वह अमोढ़ा रियासत की अंतिम शासक थीं। एसआर डिग्री कॉलेज #दसिया के कार्यवाहक प्राचार्य व इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष #डॉ_वीरेंद्र_श्रीवास्तव बताते हैं कि सन 1852 में #महाराजा_जंगबहादुर_सिंह के निधन के बाद रानी तलाश कुंवरि को सत्ता की बागडोर सँभालनी पड़ी। उस समय अंग्रेज अपने राज्य विस्तार में पूरी ताकत झोंके हुए थे।
🇮🇳 ब्रिटिश हुकूमत की नजर एकाएक अमोढ़ा रियासत पर पड़ी। उसे हथियाने को कुचक्र रचना शुरू कर दिया। तब इर्द-गिर्द की मित्र रियासतों का संगठन बना, जिसमें अमोढ़ा भी शामिल हो गया। रियासतों ने अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफर के नेतृत्व में यह लड़ाई शुरू की।
🇮🇳 इधर, रानी की बढ़ती ताकत से तिलमिलाए अंग्रेजों ने विद्रोह को दबाने के लिए 1858 में कर्नल ह्यूज के नेतृत्व में ब्रिटिश फौज को आक्रमण के लिए भेजा। रानी और उनके सैनिक अंग्रेजों से वीरता से लड़े। अंग्रेज रानी को जिंदा पकड़ना चाहते थे, लेकिन रानी ने सौगंध ले रखी थी कि वह जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगेंगी। इसी संकल्प को आत्मसात कर वह अंग्रेजों से युद्ध करते #पखेरवा कुंवर सम्मय माता के स्थान पर पहुँच गईं।
🇮🇳 सिपहसालारों को बुलाकर कहा कि अब प्राण बचाना मुश्किल है। यहीं पर उन्होंने दो मार्च 1858 को छाती में कटार घोंप कर आत्मबलिदान दे दिया। डॉ. वीरेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि रानी ने देश में बस्ती का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज कराया। उनकी वीरता किसी मायने में रानी लक्ष्मीबाई से कम नहीं है।
🇮🇳 रानी की शहादत के बाद उनके शव को सहयोगियों ने छिपा लिया। बाद में शव को अमोढ़ा राज्य की कुल देवी #सम्मय_माता_भवानी का चौरा के पास दफना दिया गया। यह जगह रानी चौरा के टीले के नाम से प्रसिद्ध है। जबकि पखेरवा में रानी के घोड़े को दफनाया गया है। इस जगह पर एक पीपल का पेड़ आज भी मौजूद है।
🇮🇳 रानी की शहादत के बाद भी क्षेत्र के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। लेकिन तब अंग्रेजों की सेना ने गाँव-गाँव जाकर रानी के सैनिकों और उनका सहयोग करने वालों को पकड़ा। मुकदमे का हवाला देते हुए अंग्रेजों ने डेढ़ सौ सैनिकों को छावनी में पीपल के पेड़ से लटका कर मौत के घाट उतार दिया। यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा है।
🇮🇳 छावनी शहीद स्थल का निर्माण वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कराया। यहाँ 1992 से मेला लगता आ रहा है। यहाँ शिलालेख पर महारानी का जीवन परिचय लिखा है तो दूसरी तरफ शहीदों का नाम अंकित है। हालांकि शिलालेख में सिर्फ 19 बलिदानियों का ही नाम अंकित है।
Photo: Chandra Prakash Chaudhary
साभार: amarujala.com
🇮🇳 ब्रिटिश हुकूमत को नाकों चने चबाने को विवश करने वाली, 1857 के प्रथम #स्वतंत्रता संग्राम की नायिका #वीरांगना #रानी_तलाश_कुंवरि जी को उनके #आत्मबलिदान_दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि !
#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व
#आजादी_का_अमृतकाल
साभार: चन्द्र कांत (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
#Queen_Talaash_Kunwari #आजादी_का_अमृतकाल #02March #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व,
सूचना: यंहा दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की कोई गारंटी नहीं है। सूचना के लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ...
Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें