ऊपर वाले ने मुसाफ़िर भेजे। मुसाफ़िरों ने सराय को ठौर मान लिया ।
ऊपर वाले ने मंच पर कठपुतलियाँ उतारी। कठपुतलियों ने गति को अपनी ताकत माना । भूल गई कि डोर खींचते ही कभी भी खेल खत्म किया जा सकता है ।
ऊपर वाले ने मल्लाहों को दरिया में उतारा । मल्लाह भूल गए कश्ती का लंगर किसी और के हाथ है ।
गजब ये है कि हर रोज कठपुतलियाँ डोर टूटती देख रही है , मल्लाह कश्ती डूबती देख रहे है , मुसाफ़िर सरायखाने से लोगों को जाते देख रहे मगर वे भूल जाते है कि किसी भी समय उनके खेल समाप्ति की घण्टी बज सकती है ।
हम सब एक दूसरे से हँसकर मिलते है ,बातें करते है ,पिक्स खिंचवाते है।
मगर ये बात कोई नही जान पाता है कि भीड़ में किसी के भीतर कितना अकेलापन है । किस बेमनी से कोई कितना झूठा मुस्कुरा रहा है । ईश्वर की दी जिंदगी में दर्द, बिछोह , सपनों और रिश्तों के टूटने का दर्द जीवन के आखरी दिनों तक हमें मिलता रहेगा ।
सबके जीवन में बुरा समय आता है ...बीत भी जाता है.। नई खुशियों पर लोग फिर से धीरे धीरे मुस्काना सीखते है । जिंदगी है.. आगे बढ़ेगी ही । लंबे चले उस बुरे समय की मोबाइल की गैलरी में अपनी ही किसी पिक को देख खुद के लिए करुणा उपजेगी । पिक में अपनी वो छद्म हँसी आज भी आपको उदास कर देगी । कोई नही समझ पाया था कि मुझ पर क्या गुजर रही थी ।
कैसे मैंने काट लिए महीनों के लंबे रतजगे,
वो ज़लज़ला काफ़ी था जान लेने की खातिर ।
ऊपर वाला जब जब अंधेरा करता है तब तब चिराग टटोलने में व्यस्त रहने वाला अवसाद में नही जाता है । चिराग हाथ ना भी लगे , तब भी ढूँढने की कोशिश में कम से कम अंधेरा समय बीत जाता है ।
कभी कभी हमारा कोई दुःख इतना निजी होता है कि हमें ढांढस देने वाला गले भी लगाए तो उसके आलिंगन में सिर्फ बदन जाता है। हमारी कोरी रूह तो दूर कही अकेली मातम मना रही होती है । कभी कभी लगता है जीने का एक मौका और मिलता तो सही तरीके से खेलते। मगर ऊपर वाले के यहाँ रीस्टार्ट का ऑप्शन नही होता । जिंदगी को जितनी गम्भीरता से लो उतनी पीड़ा होगी। इसे तो कुछ इस तरह जियो कि उम्र एक सड़क है और सिर्फ चलना है ....दुनिया एक चित्र है और देखना है ...।
लोग इंतज़ार करते है कि एक दिन जब सब कुछ ठीक हो जाएगा तो जी लेंगे । अभी तो उम्र पड़ी है । असल में सब कुछ ठीक कभी नही होता । ख्वाहिशें पूरी होते ही चार दिन में मोल खो देती है । भीतर वही खालीपन । चाँद भी गर झोली में आ जाए तो राई का दाना हो जाएगा । लोग मिलेंगे बिछड़ेंगे , आस बनेगी टूटेगी , ख्वाब बिखरते संवरते रहेंगे ।
जीवन बहुत छोटा है ।जीवन को व्यस्थित करने की अत्यधिक चाक चौबन्ध व्यवस्था करने वालों को अंत में समझ आता है कि सफर का सबसे हसीन हिस्सा परफेक्शन में गुजर गया ।
जीवन में हर वक्त कुछ ना कुछ मिसिंग होगा ही ...। जीवन की पूर्णता को अपूर्णताओं के बीच ही तलाशना है । सांसारिक सफलता पद , पैसे , प्रतिष्ठा से घर भरने के साधन जरूर खरीद सकते है । इनसे लोग खरीदे जा सकते है ... रिश्तें नही । असल कामयाबी बुरे समय को भी संयत तरीके से गुजार देने में है .... यदि आपके पास चंद ऐसे रिश्तें है जो बदन नही रूह को गले लगाते है और अपनी नजदीकियों से पलके नम कर दे तो आपका जीवन सुंदर और सफल है । कुछ लोग आपके लिए है जो आपसे मिलने लम्बा सफर तय करके , समय निकाल कर आते है तो आप कामयाब है ।यदि अपनी अपूर्णताओं के साथ मुस्कुरा रहे है तो आप पूर्ण है ।
दौड़ता सबसे पहले परचम फहराने पहुँचा वो जहाँ अंत है ,
तेज़ी में रहा बेखबर पीछे छूट गए कितने अनदेखे बसंत है ।
साभार: Madhu -writerat film writer's association Mumbai
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