11 फ़रवरी 2024

Haldwani - हल्द्वानी : गांधी नेहरू के सपनों का भारत दिखाई दे रहा आज


 

गांधी नेहरू के सपनों का भारत  दिखाई दे रहा आज -हल्द्वानी के असली अपराधी तो 

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश हैं -एक बार फिर चंद्रचूड़ & Co खड़ी हुई  दंगाइयों के साथ -

जो हल्द्वानी में हुआ वह गांधी नेहरू के सपने थे क्योंकि ऐसे ही दिन भारत में लाने के लिए दोनों ने पाकिस्तान बनने के बाद भी मुसलमानों को जबरन भारत में रखा था - जो मुस्लिमों ने हल्द्वानी में दिखाया वह कोई नई बात नहीं है और ऐसा कुछ दिन पहले हरियाणा के मेवात में भी हुआ, उसके कुछ दिन पहले लखनऊ और दिल्ली में किया गया जब CAA के विरोध में आग लगाई गई - 

यह सब कांग्रेस की मोहब्बत की दुकान के व्यापार का हिस्सा है जब देश के किसी भी भाग में देश के खिलाफ युद्ध छेड़ा जा रहा है - कुछ दिन पहले मणिपुर को भी कांग्रेस ने आग लगाईं थी - 

गांधी नेहरू दोनों की खुराफाती खोपड़ी ने देश के आज़ाद होते ही दूसरे विभाजन की तैयारी की भूमिका बना दी थी और इसलिए मुसलमानों को पाकिस्तान जाने से रोक दिया - आज वे ही देश की सत्ता को चुनौती दे रहे हैं 

लेकिन ऐसे आतताइयों को हिम्मत देने वाला तो सुप्रीम कोर्ट है जिसके न्यायाधीश उनके साथ खड़े रहते हैं - सिब्बल, प्रशांत भूषण और अन्य फर्जी सेकुलर वकील सुप्रीम कोर्ट के जजों के हैंडल चलाते हैं जिसकी वजह से आज देश में हर जगह सरकारी जमीन पर कब्जे हो रखे हैं - लखनऊ के CAA दंगों के 274 आरोपियों से नुक़सान की भरपाई के नोटिस चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश चुनाव के दूसरे चरण के दिन वापस करने के आदेश दिए थे और एक तरह से दंगाइयों के सरकारी संपत्ति को आग लगाने को सही बता दिया था -

पिछले वर्ष हल्द्वानी के बनफूलपुरा में दिसंबर, 2022 के अवैध कब्जे को हटाने के आदेश पर प्रशांत भूषण के Mention करने पर CJI चंद्रचूड़, जस्टिस SA Nazeer और जस्टिस PS Narsimha की बेंच ने 5 जनवरी, 2023 को स्टे कर दिया और 7 फरवरी, 2023  की तारीख लगा दी - 

उसी दिन की खबर में बताया गया था कि जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जे को हटाने के नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा है कि हाई कोर्ट का आदेश पर जिस तरह लोगों को प्रशासन हटाने की कोशिश कर रहा है, वह गलत है, उनके पुनर्वास की व्यवस्था होनी चाहिए - मानवता के आधार पर यह जरूरी है क्योंकि दावा किया गया है कि वे लोग वहां 60 - 70 वर्ष से रह रहे हैं –

अब अंजाम देख लीजिए मीलार्ड के लचर आदेशों का - इन आदेशों ने क्षेत्र के मुसलमानों को एक वर्ष में इतना सशक्त होने का मौका दे दिया कि ठीक एक साल बाद 8 फरवरी, 2024 को पूरे क्षेत्र को आग के हवाले कर दिया - जजों के केवल यह देखा कि जो लोग हटाए जाने हैं वे अधिकांश मुस्लिम हैं मगर उन नेत्रहीन जजों ने यह नहीं देखा कि वे लोग कहां से आए हैं  क्योंकि इनमें अधिकांश बांग्लादेशी और रोहिंग्या थे -

पुलिस बल पर इतना भयंकर हमला करने वाले देश के खिलाफ युद्ध छेड़ रहे हैं  लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट के बेशर्म जज तुरंत स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई की जरूरत नहीं समझ रहे और हाई कोर्ट भी 14 फरवरी तय किए बैठा है तो उसके पहले सोता ही रहेगा -

मीलॉर्ड कभी अपराध के शिकार नहीं होते, कभी उनके रिश्तेदार आतंकी हमले में नहीं मारे गए और इसलिए आतंकियों की फांसी की सजा रोक देते हैं, कभी इनकी बच्चियों का बलात्कार नहीं होता और इसलिए every sinner has a future कह कर अपराधी की सजा कम कर देते हैं - देश भर में जमीनों पर बलात कब्जे होते हैं लेकिन मीलॉर्ड अपने महलों में मस्त रहते हैं और इसलिए वे उन्हें हटाने के लिए “मानवीय दृष्टिकोण” देखते हैं 

दर्द के अहसास के लिए एक दिन मीलॉर्ड और उनके परिवार को  भी कुदरत की आग में झुलसना जरूरी है | 

"लेखक के निजी विचार हैं "



लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 11/02/2024 

#haldwani_violence  #prime_ministers  #Nazool_land #dispute  #demolition #gandhi  #nehru #pm_modi #caa #nrc #CJI #court 


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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर क्रांतिकारी तिलका मांझी | First Freedom Fighter Veer Tilka Manjhi


 


🇮🇳#तिलका_माँझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को गुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी,  वीर क्रांतिकारी तिलका माँझी_की_शौर्यगाथा

🇮🇳अंग्रेजों और वनवासियों के बीच लगातार हो रहे संघर्ष ने तिलका माँझी को क्रांतिकारी बनाया| 

🇮🇳 जन्म: 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में #तिलकपुर नामक गाँव में एक #संथाल परिवार में

🇮🇳बलिदान: 13 जनवरी, 1785 को उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी गई थी। 🇮🇳

🇮🇳 राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए भागलपुर में स्थानीय लोगों को  जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोगों को देश के लिए एकजुट होने के लिए प्रेरित करते थे तिलका माँझी । 🇮🇳

🇮🇳 साल 1857 में मंगल पांडे की बन्दूक से निकली गोली ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ विद्रोह का आगाज़ किया। इस विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला विद्रोह माना जाता है और #मंगल_पांडे को प्रथम क्रांतिकारी।

🇮🇳 हालांकि, 1857 की क्रांति से लगभग 80 साल पहले बिहार के जंगलों से अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ़ जंग छिड़ चुकी थी। इस जंग की चिंगारी फूँकी थी एक आदिवासी नायक, #तिलका_माँझी ने, जो असल मायनों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले क्रांतिकारी थे।

🇮🇳 भले ही आपको हमारे इतिहास में तिलका माँझी के योगदान का कोई ख़ास उल्लेख न मिले, पर समय-समय पर कई लेखकों और इतिहासकारों ने उन्हें ‘प्रथम स्वतंत्रता सेनानी’ होने का सम्मान दिया है। महान लेखिका #महाश्वेता_देवी ने तिलका माँझी के जीवन और विद्रोह पर बांग्ला भाषा में एक उपन्यास ‘शालगिरर डाके’ की रचना की। एक और हिंदी उपन्यासकार #राकेश_कुमार_सिंह ने अपने उपन्यास ‘हुल पहाड़िया’ में तिलका माँझी के संघर्ष को बताया है।

🇮🇳 आज द बेटर इंडिया के साथ पढ़िये तिलका माँझी उर्फ़ #जबरा_पहाड़िया के विद्रोह और बलिदान की अनसुनी कहानी!

🇮🇳 तिलका माँझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में #तिलकपुर नामक गाँव में एक #संथाल परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम #सुंदरा_मुर्मू था। वैसे उनका वास्तविक नाम #जबरा_पहाड़िया ही था। तिलका माँझी नाम तो उन्हें ब्रिटिश सरकार ने दिया था।

🇮🇳 पहाड़िया भाषा में ‘तिलका’ का अर्थ है गुस्सैल और लाल-लाल आँखों वाला व्यक्ति। साथ ही वे ग्राम प्रधान थे और पहाड़िया समुदाय में ग्राम प्रधान को माँझी कहकर पुकारने की प्रथा है। तिलका नाम उन्हें अंग्रेज़ों ने दिया। अंग्रेज़ों ने जबरा पहाड़िया को खूंखार डाकू और गुस्सैल (तिलका) माँझी (समुदाय प्रमुख) कहा। ब्रिटिशकालीन दस्तावेज़ों में भी ‘जबरा पहाड़िया’ का नाम मौजूद है पर ‘तिलका’ का कहीं उल्लेख नहीं है।

🇮🇳 तिलका ने हमेशा से ही अपने जंगलों को लुटते और अपने लोगों पर अत्याचार होते हुए देखा था। गरीब आदिवासियों की भूमि, खेती, जंगली वृक्षों पर अंग्रेज़ी शासकों ने कब्ज़ा कर रखा था। आदिवासियों और पर्वतीय सरदारों की लड़ाई अक्सर अंग्रेज़ी सत्ता से रहती थी, लेकिन पर्वतीय जमींदार वर्ग अंग्रेज़ी सत्ता का साथ देता था।

🇮🇳 धीरे-धीरे इसके विरुद्ध तिलका आवाज़ उठाने लगे। उन्होंने अन्याय और गुलामी के खिलाफ़ जंग छेड़ी। तिलका माँझी #राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए भागलपुर में स्थानीय लोगों को सभाओं में संबोधित करते थे। #जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोगों को देश के लिए एकजुट होने के लिए प्रेरित करते थे।

🇮🇳 साल 1770 में जब भीषण अकाल पड़ा, तो तिलका ने अंग्रेज़ी शासन का खज़ाना लूटकर आम गरीब लोगों में बाँट दिया। उनके इन नेक कार्यों और विद्रोह की ज्वाला से और भी आदिवासी उनसे जुड़ गये। इसी के साथ शुरू हुआ उनका #संथाल_हुल यानी कि आदिवासियों का विद्रोह। उन्होंने अंग्रेज़ों और उनके चापलूस सामंतों पर लगातार हमले किए और हर बार तिलका माँझी की जीत हुई।

🇮🇳 साल 1784 में उन्होंने भागलपुर पर हमला किया और 13 जनवरी 1784 में ताड़ के पेड़ पर चढ़कर घोड़े पर सवार अंग्रेज़ कलेक्टर ‘अगस्टस क्लीवलैंड’ को अपने जहरीले तीर का निशाना बनाया और मार गिराया। कलेक्टर की मौत से पूरी ब्रिटिश सरकार सदमे में थी। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जंगलों में रहने वाला कोई आम-सा आदिवासी ऐसी हिमाकत कर सकता है।

🇮🇳 साल 1771 से 1784 तक जंगल के इस बेटे ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबा संघर्ष किया। उन्होंने कभी भी समर्पण नहीं किया, न कभी झुके और न ही डरे।

🇮🇳 अंग्रेज़ी सेना ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया, लेकिन वे तिलका को नहीं पकड़ पाए। ऐसे में, उन्होंने अपनी सबसे पुरानी नीति, ‘फूट डालो और राज करो’ से काम लिया। ब्रिटिश हुक्मरानों ने उनके अपने समुदाय के लोगों को भड़काना और ललचाना शुरू कर दिया। उनका यह फ़रेब रंग लाया और तिलका के समुदाय से ही एक गद्दार ने उनके बारे में सूचना अंग्रेज़ों तक पहुंचाई।

🇮🇳 सूचना मिलते ही, रात के अँधेरे में अंग्रेज़ सेनापति आयरकूट ने तिलका के ठिकाने पर हमला कर दिया। लेकिन किसी तरह वे बच निकले और उन्होंने पहाड़ियों में शरण लेकर अंग्रेज़ों के खिलाफ़ छापेमारी जारी रखी। ऐसे में अंग्रेज़ों ने पहाड़ों की घेराबंदी करके उन तक पहुँचने वाली तमाम सहायता रोक दी।

🇮🇳 इसकी वजह से तिलका माँझी को अन्न और पानी के अभाव में पहाड़ों से निकल कर लड़ना पड़ा और एक दिन वह पकड़े गए। कहा जाता है कि तिलका माँझी को चार घोड़ों से घसीट कर भागलपुर ले जाया गया। 13 जनवरी 1785 को उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी गई थी।

🇮🇳 जिस समय तिलका माँझी ने अपने प्राणों की आहुति दी, उस समय मंगल पांडे का जन्म भी नहीं हुआ था। ब्रिटिश सरकार को लगा कि तिलका का ऐसा हाल देखकर कोई भी भारतीय फिर से उनके खिलाफ़ आवाज़ उठाने की कोशिश भी नहीं करेगा। पर उन्हें यह कहाँ पता था कि बिहार-झारखंड के पहाड़ों और जंगलों से शुरू हुआ यह संग्राम, ब्रिटिश राज को देश से उखाड़ कर ही थमेगा।

🇮🇳 तिलका के बाद भी न जाने कितने आज़ादी के दीवाने हँसते-हँसते अपनी भारत माँ के लिए अपनी जान न्योछावर कर गये। आज़ादी की इस लड़ाई में अनगिनत शहीद हुए, पर इन सब शहीदों की गिनती जबरा पहाड़िया उर्फ़ तिलका माँझी से ही शुरू होती है।

🇮🇳 तिलका माँझी आदिवासियों की स्मृतियों और उनके गीतों में हमेशा ज़िंदा रहे। न जाने कितने ही आदिवासी लड़ाके तिलका के गीत गाते हुए फाँसी के फंदे पर चढ़ गए। अनेक गीतों तथा कविताओं में तिलका माँझी को विभिन्न रूपों में याद किया जाता है-

तुम पर कोडों की बरसात हुई, तुम घोड़ों में बाँधकर घसीटे गए

फिर भी तुम्हें मारा नहीं जा सका, तुम भागलपुर में सरेआम

फाँसी पर लटका दिए गए, फिर भी डरते रहे ज़मींदार और अंग्रेज़

तुम्हारी तिलका (गुस्सैल) आँखों से, मर कर भी तुम मारे नहीं जा सके

तिलका माँझी, मंगल पांडेय नहीं,

तुम आधुनिक भारत के पहले विद्रोही थे

भारत माँ के इस सपूत को सादर नमन!

🇮🇳 भारतीय स्वाधीनता संग्राम के पहले बलिदानी आदिविद्रोही #बाबा_तिलका_माँझी (जबरा पहाड़िया) जी की जयंती पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं हार्दिक श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏 🇮🇳 जय_मातृभूमि 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व #आजादी_का_अमृतकाल #वन्दे_मातरम् 🇮🇳

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

Source: thebetterindia

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व  #आजादी_का_अमृतकाल #स्वतंत्रता सेनानी #क्रांतिकारी #Freedom_Fighter #tilkamanjhi

10 फ़रवरी 2024

यूपी के महाराणा प्रताप | क्रांतिकारी राणा बेनी माधव सिंह | Rana Beni Madhav Singh




🇮🇳 बैसवाड़े का क्रांतिकारी रणबांकुरा राणा बेनी माधव 

🇮🇳 आओ बनाएँ उन क्रांतिकारियों के #सपनों_का_भारत, जिनके #संघर्ष और #बलिदान का ऋण आज तक हम पर है 🇮🇳

🇮🇳🌹🙏

🇮🇳 आजादी का वो सिपाही जिसके डर से अंग्रंजों ने उनके नाम का गाना ही बना डाला था. बात है 1857 के गदर की #बहराइच में जंग हारने के बाद अंग्रेजों ने राणा बेनी माधव के नाम का गाना तक बना डाला था.और गोरे अंग्रेज जंगलों में मौत के डर से जोर जोर से वो गाना गाया करते थे. हॉउ आई वॉन द विक्टोरिया क्रॉस डॉट टीएच डॉट कावानघ के पेज नंबर 216 पर उस गाने को छापा  गया...'where have you been to all the day beni madho beni madho' राणा बेनी माधव ने 18 महीने तक #रायबरेली को अंग्रेजों से स्वाधीन रखा था.

🇮🇳 रायबरेली जिला अंग्रेजों द्वारा 1858 में बनाया गया था अपने मुख्यालय शहर के बाद नामित किया था। परंपरा यह है कि शहर भरो द्वारा स्थापित किया गया था जो #भरौली या #बरौली के नाम से जानी जाती थी जो कालांतर में परिवर्तित होकर बरेली हो गयी ।उपसर्ग ‘राय’ का सम्बन्ध कायस्थ जो समय के एक अवधि के लिए शहर के स्वामी थे उपाधि के तौर पर ‘राय’ शीर्षक का प्रतिनिधित्व करता है।

🇮🇳 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुवात थी और जिला किसी भी अन्य स्थान के लोगों से पीछे नहीं था। फिर यहाँ जन गिरफ्तारी, सामूहिक जुर्माना, लाठी भांजना और पुलिस फायरिंग की गई थी। सरेनी में उत्तेजित भीड़ पर पुलिस ने गोलीबारी की जिसमे कई लोग शहीद हो गए और कई अपंग हो गए। इस जिले के लोग उत्साहपूर्वक व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया और बड़े पैमाने में गिरफ्तारी दीं जिसने विदेशी जड़ों को हिलाकर रख दिया।

🇮🇳 13वीं सदी के प्रारंभ में रायबरेली पर भरो का शासन था जिनको राजपूतों और कुछ मामलों में कुछ मुस्लिम उपनिवेशवादियों द्वारा विस्थापित कर दिया गया था| जिले के दक्षिण पश्चिमी भाग पर बैस राजपूतों द्वारा कब्जा किया गया था। कानपुर और अमेठी वाले, एवं अन्य राजपूत कुलों ने खुद को क्रमशः उत्तर पूर्व और पूर्व में स्थापित किया था | दिल्ली के सुल्तानों के शासन के दौरान लगभग पूरा पथ नाममात्र उनके राज्य का एक हिस्सा था।

🇮🇳 अकबर के शासनकाल के दौरान जिले द्वारा कवर क्षेत्र अवध और लखनऊ के सिरकार्स के बीच इलाहाबाद के सूबे जो जिले का बड़ा हिस्सा के रूप में शामिल किया गया। मानिकपुर के सिरकार्स का छेत्र जनपद के बड़े भाग में जो की वर्तमान में लखनऊ जिले के मोहनलाल गंज परगना उत्तर पश्चिम पर दक्षिण में गंगा और उत्तर पूर्व पर परगना इन्हौना लखनऊ. इन्हौना के परगना अवध के सिरकार्स में उस नाम के एक महल के लिए समतुल्य था । सरेनी, खिरो परगना और रायबरेली के परगना के पश्चिमी भाग को लखनऊ के सिरकार्स का हिस्सा बनाया। 1762 में, मानिकपुर के सिरकार्स अवध के क्षेत्र में शामिल किया गया था और चकल्दार के तहत रखा गया था।

🇮🇳 रायबरेली में आजादी की अनेकों गाथाएँ हैं। #उन्नाव के बैसवारा ताल्लुक के राजा राना बेनी माधव सिंह ने रायबरेली के एक बड़े हिस्से में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ क्रांति की मशाल जलाई थी। अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले राजा बेनी माधव रायबरेली जिले के लिए महानायक बने। सन् 1857 की क्रांति  के दौरान जनपद रायबरेली में बेनी माधव ने 18 महीने तक जिले को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराया था।

🇮🇳 रायबरेली, उन्नाव और लखनऊ में अंग्रेजों की दरिंदगी का सामना करने के लिए बैसवाडा के राणा बेनीमाधव ने हजारों किसानों, मजदूरों को जोड़ कर क्रांति की जो मशाल जलाई उससे अंग्रेजों के दंभ को चूरचूर कर दिया गया। अनेक घेराबंदी के बाद भी फिंरगी बेनी माधव को नहीं पा सके। #शंकरपुर के शासक राजा बेनी माधव प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख योद्धाओं में से एक बने। अवध क्षेत्र के ह्रदय स्थल रायबरेली में 18 महीने तक अपनी सत्ता बनाने वाले बेनी माधव ने अंग्रेजों के खिलाफ जो गुरिल्ला युद्ध छेड़ा वह किसी मिशाल से कम नही है।

🇮🇳 कंपनी सरकार को हमेशा चकमा देने वाले राणा को अंग्रेज कभी पकड़ नहीं सके। उनके निधन को लेकर भी मतभेद है। इतिहास में कई प्रसंगों से पता चलता है कि राणा नेपाल चले गए थे और वहां उनका सामना अंग्रेजों के साथी राणा जंग बहादुर से भयंकर युद्ध हुआ। माना जाता है कि इस युद्ध में राणा शहीद हो गए।इस घटना का उल्लेख इतिहासकार रॉबर्ट मार्टिन ने किया है और इसकी पुष्टि हावर्ड रसेल के 21 जनवरी 1860 में लिखे एक पत्र से भी होती है। 

🇮🇳 ‘बैसवाड़ा - एक ऐतिहासिक अनुशीलन’ में लाल अमरेंद्र सिंह ने लिखा है, ‘राणा 223 गांवों के मालिक थे। 1856 में अंग्रेज़ों ने 116 गांव छीन लिए थे। वह लखनऊ के युद्ध में तीन बार लड़े। राणा ने 22 महीने में 20 युद्धों में हिस्सा लिया। 30 हज़ार की सेना दो साल तक अपने खर्चे पर चलाई। 24 नवंबर के अंतिम युद्ध के बाद राणा बेनी नेपाल चले गए थे। वहां हथियार बेचकर पेट भरा ओर चार युद्ध भी लड़े। अंतिम युद्ध लड़ने पहले पांच-छह दिन तक भूखे रहे थे। राणा के भाई जुगराज सिंह को पकड़ लिया गया था और चारों किले ध्वस्त कर दिए गए थे। बैसवाड़े के लोग मानते हैं कि राणा ने एक संन्यासी के रूप मं 123 साल की उम्र में गंगा तट पर अंतिम सांस ली थी।’

लेकिन आज भी वह लोककला, संस्कृति और लोक गायन के माध्यम से लोगों के मन मस्तिष्क में जीवंत हैं।


राणा बेनी माधव सिंह जी जैसे अनगिनत परिचित-अपरिचित क्रांतिकारियों को कोटि-कोटि नमन !

🇮🇳💐🙏

वन्दे मातरम् 🇮🇳

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व  #आजादी_का_अमृतकाल #स्वतंत्रता सेनानी #क्रांतिकारी #Freedom_Fighter #Rana_Beni_Madhav_Singh

क्रांतिकारी डॉ. गयाप्रसाद कटियार (Freedom Fighter Dr. Gaya Prasad Katiyar ) (20 जून 1900 -10 फरवरी 1993)

 



क्रांतिकारी डॉ. गयाप्रसाद कटियार (Freedom Fighter Dr. Gaya Prasad Katiyar ) (20 जून 1900 -10 फरवरी 1993) भारत के प्रखर क्रांतिकारी थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर की बिल्हौर तहसील के खजुरी ख़ुर्द गाँव में 20 जून सन् 1900 को हुआ था। 

डॉ. गया प्रसाद कटियार के दादा #महादीन_कटियार ने 1857 की क्रांति में हिस्सा लिया था। दादा की कहानियां सुनकर डॉ. गयाप्रसाद के अंदर भी अंग्रेजों के प्रति नफरत भर गई थी।

 उन्होंने 1921 के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया लेकिन बाद में गणेशशंकर विद्यार्थी के संपर्क में आये जिनके अख़बार 'प्रताप' में भगत सिंह भी छिपकर काम करते थे | इसके साथ ही वे  हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन (H.S.R.A.) में सम्मिलित हो गये। 

इस प्रकार वे चन्द्रशेखर आजाद और सरदार भगत सिंह आदि देश के शीर्षस्थ क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आ गये | 

🇮🇳 शहीद-ए-आजम भगत सिंह और #बटुकेश्वर_दत्त ने भरी असेंबली में बम फेंक कर अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी थीं लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं उन्हें ये बम अपने क्रांतिकारी साथी डॉ. गया प्रसाद कटियार की देखरेख में बनाए थे।

🇮🇳 #लाला_लाजपत_राय की हत्या के जिम्मेदार अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स  वध की योजना, सिक्ख भगतसिंह के केश व दाढी काटने, H.S.R.A. के गुप्त केंद्रीय कार्यालयों का संचालन करने सहित दिल्ली की पार्लियामेंट में फेंके गए बम निर्माण आदि कार्यों में अपना सक्रिय रुप से योगदान देते हुए अंततः 15 मई 1929 को सहारनपुर बम फैक्ट्री का संचालन करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया। और उन्हें देश के सुप्रसिद्ध लाहौर षड्यंत्र केस में दिनांक 7 अकटूबर 1930 को आजीवन कारावास की सजा दी गई | 

लाहौर की जेल में उन्होंने अन्य बन्दियों के साथ 63 दिन की भूख हड़ताल की। बाद में उन्हें अण्डमान की सेल्यूलर जेल [ काला पानी ] ले जाया गया। वहाँ भी उन्होने 46 दिन भूख हड़ताल की। अन्तत: लगातार 17 वर्षों के लंबे जेल जीवन में कई अमानवीय यातनाओं को सहने के बाद वे बिना शर्त जेल से  21 फरवरी 1946 को रिहा किए गए। स्वतंत्र भारत में भी उन्हें शोषित-पीड़ित जनता के लिए संघर्षरत होने के कारण 2 वर्षों तक जेल में रहना पड़ा| 

10 फरवरी 1993 को वे इस दुनिया से विदा हो गए।

उनकी याद में केंद्र सरकार ने 26 अप्रैल 2016 को पाँच रुपये का डाक टिकट भी जारी किया था।

🇮🇳 पराधीन भारत में #कालेपानी की सज़ा सहित कुल 17 वर्ष क़ैद तथा स्वाधीन भारत में 2 वर्ष का जेल जीवन व्यतीत करने वाले, क्रांतिकारी भगत सिंह जी एवं महावीर सिंह राठौर जी के क्रांतिकारी साथी #डॉ_गया_प्रसाद_कटियार जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व  #आजादी_का_अमृतकाल #स्वतंत्रता सेनानी #क्रांतिकारी #Freedom_Fighter #Dr_Gaya_Prasad_Katiyar 


गैरों को सम्मान केवल मोदी जैसा राजनेता (Statesman) ही दे सकता है | Bharat Ratna | PM Modi |

 



कांग्रेस ने जिन अपनों को गैर” बनाया, उन्हें मोदी ने “अपनाया” 

जो जन्म से भारतीय नहीं,  वो मोदी की जन्म की जाति बता रहा 


पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और नरसिम्हा राव को आज भारत रत्न दे कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साबित कर दिया कि वह सही मायने में आज की राजनीति में सच्चे राजनेता (Statesman) हैं क्योंकि एक सच्चा राजनेता ही “गैरों” को सम्मान दे सकता है खासकर उन्हें जिन्हें कांग्रेस ने अपना होते हुए भी “गैर” बना दिया |


वर्ष 2019 में नरेंद्र मोदी ने प्रणब मुख़र्जी को भारत रत्न दिया था और यह सबको पता है कांग्रेस प्रणब दा को कुछ खास पसंद नहीं करती थी - ऐसा उनकी बेटी की किताब में भी उजागर हुआ है, अपना पूरा जीवन कांग्रेस को देने वाले प्रणब मुख़र्जी को सही सम्मान देने का काम किया नरेंद्र मोदी ने |


डॉ आंबेडकर को कांग्रेस ने 1956 में मृत्यु के बाद भारत रत्न देने की जरूरत नहीं समझी और यह वी पी सिंह सरकार के समय में 1990 में दिया गया सरदार पटेल को 1950 में उनकी मृत्यु के बाद नरसिम्हा राव सरकार ने 1991 में भारत रत्न राजीव गांधी के साथ दिया जो शायद सोनिया गांधी को पसंद नहीं आया था और इसी वजह से राव को कभी कांग्रेस ने सम्मान नहीं दिया |


आज उसी नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने का काम नरेंद्र मोदी ने किया है जिसके राजनीतिक मायने अलग हो सकते हैं - आंध्र प्रदेश तेलंगाना और दक्षिण के अन्य राज्यों में इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है लेकिन कांग्रेस द्वारा अपमानित नेता को सम्मान देने का काम मोदी ने किया है |


इसी तरह चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर कांग्रेस को याद कराया गया है कि किसी तरह उन्हें धोखा देकर कर उनकी सरकार गिराने का काम किया गया था कांग्रेस ने - चरण सिंह को सम्मान देकर कई राज्यों में जाट समुदाय को साधने में मदद मिलेगी |


सबसे बड़ी बात तो यह देखने को मिली कि मोदी सरकार ने Dr. MS. Swaminathan जैसे महान वैज्ञानिक की सेवाओं को सम्मान दिया है - हरित क्रांति के जनक और किसानों के कल्याण के काम करने वाले स्वामीनाथन जी को सम्मान सराहनीय कदम है - हो सकता है तमिलनाडु की जनता इस फैसले से कुछ हद तक खुश हो |


कुछ दिन पहले मोदी सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर पिछड़े और गरीब वर्ग के साथ देने का प्रयास किया था, अलबत्ता कुछ लोगों को आडवाणी जी को भारत रत्न देना रास नहीं आया था लेकिन वह उनके द्वारा देश में सांस्कृतिक उत्थान को जाग्रत करने के लिए जरूरी था |


कल ही प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की प्रशंसा करते हुए कहा था कि लोकतंत्र के प्रति मनमोहन सिंह की प्रतिबद्धता और निष्ठा प्रेरणादायी है और कहा कि देश में जब भी लोकतंत्र की चर्चा होगी, तब लोकतंत्र में उनके योगदान को याद किया जाएगा |


मोदी तीर कहां चलाते हैं और निशाना कहां होता है यह बाद में पता चलता है -  मोदी उनके कार्यकाल में हुए कामों की भी सराहना कर रहे हों, यह जरूरी नहीं, क्योंकि उसी दिन मोदी सरकार कांग्रेस के कामकाज पर “श्वेत पत्र” लेकर आई थी - खड़गे जी, इसलिए इस ग़लतफ़हमी में न रहें कि मोदी जी मनमोहन सिंह के समय के घोटालों और आर्थिक कुप्रबन्धन की भी तारीफ कर रहे हैं |

मजे की बात तो यह है कि कांग्रेस का युवराज जो खुद जन्म से भारतीय नहीं है वह ढोल पीट रहा है कि मोदी जन्म से OBC नहीं हैं - राहुल गांधी को पता होना चाहिए कि वो दोनों भाई बहन जन्म के समय इटालियन नागरिक सोनिया गांधी के बच्चे थे जिन्हें जन्म से भारतीय नहीं माना जा सकता |


आज के हालात ऐसे हो गए कि नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस और उसके “इंडी” ठगबंधन को कहीं का नहीं छोड़ा - बड़े बड़े चाणक्य फेल कर दिए |


सुभाष चन्द्र  | Subhash Chandra  |  “मैं वंशज श्री राम का”  |  09/02/2024

#Bharat_Ratna  #PM_Modi  #prime_ministers  #PVNarasimhaRao #award_Bharat_Ratna #Chaudhary_Charan_Singh #green_revolution_pioneer #MS_Swaminathan #civilianaward #Lal_Krishna_Advani #Karpoori_Thakur


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09 फ़रवरी 2024

चापेकर बंधु स्वतंत्रता सेनानी | Chhapekar Brothers Freedom Fighters



#चापेकर बंधु भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। 

🇮🇳 #चापेकर बंधु  महाराष्ट्र के पुणे के पास चिंचवड़ नामक गाँव के निवासी थे। दामोदर पंत चापेकर उनके दो छोटे भाई क्रमशः बालकृष्ण चापेकर एवं वसुदेव चापेकर थे।उनके पिता प्रसिद्ध कीर्तनकार #हरिपंत_चापेकर थे वे अनेक स्थानों पर जाकर कीर्तन एवं पौराणिक कथाएँ लोगों को सुनाते थे। 

# चापेकर बंधुओ ने  प्लेग-विरोधी अभियान कार्यान्वित किया था।

1896 में प्लेग की खतरनाक  बीमारी ने पुरे पुणे को अपनी चपेट में ले लिया था और 1897 की शुरुआत तक, यह बीमारी बहुत ही गंभीर रूप से फैल गई । अकेले फरवरी 1897 में, प्लेग के कारण वहां पर लगभग 657 मौतें हुईं। शहर की लगभग आधी आबादी शहर को छोड़ कर जा चुकी थी | 

अंग्रेज सरकार ने इस बीमारी और इसके खतरे से निपटने के लिए उस वर्ष मार्च में एक विशेष प्लेग समिति की स्थापना की। जिसका अध्यक्ष  वाल्टर चार्ल्स रैंड  उस वक्त के भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) अधिकारी को बनाया गया था ।

सरकार ने आदेश दिए थे  की  निरीक्षण और उपाय करते समय लोगों की धार्मिक भावनाओं का ध्यान रखा जाना चाहिए और लोगों को इस कार्य के सम्बन्ध में समुचित जानकारी और इस बीमारी से बचने और सावधानी के लिए  सूचित किया जाना चाहिए।

लेकिन वाल्टर चार्ल्स रैंड की  प्लेग समिति  ने उपायों को लागू करने  में कई अनियमितता की  बीमारी से निपटने लिए कई अधिकारियों और सैनिकों को  भी ड्यूटी पर नियुक्त कर दिया।

इन लोगो ने उपायों के नाम पर  घरों में जबरदस्ती प्रवेश किया, महिलाओं सहित वहां रहने वालों की जांच की , उन्हें अलग अलग शिविरों में जबरदस्ती ले जाना और प्लेग से प्रभावित लोगों को पुणे छोड़ने या प्रवेश करने पर प्रतिबंद लगा दिया था ।

उस समय की जानकारी के अनुसार महामारी को नियंत्रित करने के नाम पर अधिकारियों और सैनिकों ने धार्मिक और निजी संपत्ति की बर्बरता से लूटपाट भी की | 

लोगों को अंतिम संस्कार करने की अनुमति भी नहीं दी गई  मृतकों का अंतिम संस्कार सरकार द्वारा विशेष आधार पर किया जाना था।

जिन लोगों ने इन नियमों को तोड़ा या इसका विरोध किया तो  उनके साथ बर्बरता  की गई  और उन पर आपराधिक कार्यवाही की गई।

गोपाल कृष्ण गोखले ने कहा की मझे विश्वसनीय लोगो से पता चला है  कि बीमारी को नियंत्रित करने के नाम पर  पुरे शहर को  ब्रिटिश सैनिकों  के हवाले कर दिया गया है सैनिकों द्वारा महिलाओं के साथ बलात्कार किया और लूटपाट  भी की गई है । 

वाल्टर चार्ल्स रैंड ने इस बात से इनकार कर दिया कि सैनिकों द्वारा महिलाओं के साथ छेड़छाड़ का कोई मामला सामने नहीं आया है।

बाल गंगाधर तिलक ने चिंता जताई की अंग्रजी हुकूमत को  भारत के लोगों पर अत्याचार करने के आदेश जारी नहीं करने चाहिए थे।

महामारी से निपटने में ब्रिटिश अधिकारियों  और सैनिकों की मनमानी के कारण लोगों में बहुत निराशा और सरकार विरोधी भावनाएँ पैदा हुईं।

चापेकर बंधु इन घटनाओं से बहुत दुखी थे वे अंग्रजो से इसका बदला लेना चाहते थे  चापेकर बंधुओं दामोदर हरि, बालकृष्ण हरि और वासुदेव हरि ने वाल्टर चार्ल्स रैंड की हत्या करने की योजना बनाई, इसमें क्रांतिकारी महादेव विनायक रानाडे भी सहयोगी थे।

🇮🇳  22 जून 1897 ई.  को पुणे, महाराष्ट्र में में महारानी विक्टोरिया के 'हीरक जयन्ती' समारोह के अवसर आयोजन स्थल के पास गणेशखिंड रोड पर बालकृष्ण हरि तथा दामोदर हरि चापेकर बंधू    रैंड की गाड़ी का इंतजार कर रहे थे। गवर्नमेंट हाउस  समारोह से लौटते समय बालकृष्ण ने रैंड पर गोली चलाकर उसे घायल कर दिया और  रैंड के सैन्य अनुरक्षण लेफ्टिनेंट आयर्स्ट को भी गोली मार दी । आयर्स्ट की मौके पर ही मौत हो गई | रैंड को अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां 3 जुलाई को उसकी मौत हुई ।  

🇮🇳 पुलिस मुखबिर द्रविड़ बंधुओं की सूचना के बाद दामोदर को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सैनिकों द्वारा पवित्र स्थानों को प्रदूषित करने और मूर्तियों के अपमान का बदला लेना चाहते थे। उन पर मुकदमा चला और 18 अप्रैल 1898 को  उन्हें फाँसी दे दी गई।

🇮🇳 तीसरे भाई वासुदेव और उनके सहयोगी  खंडो विष्णु साठे और महादेव विनायक रानाडे ने पुलिस मुखबिर करने वाले द्रविड़ बंधुओं की हत्या कर दी थी ।वासुदेव को 8 मई 1899 को फाँसी दे दी गई। महादेव विनायक रानाडे को 10 मई को फाँसी दे दी गई | साठे और एक स्कूली छात्र जो सहयोगी थे उनको 10 साल के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गई।

🇮🇳 बालकृष्ण को भी पुलिस ने पकड़ लिया उन पर मुक़दमा चला और  12 मई 1899 को उन्हें फाँसी दे दी गई।

🇮🇳 चापेकर बंधु ,

 🇮🇳 दामोदर हरि चापेकर (25 जून 1869 - 18 अप्रैल 1898), 

🇮🇳 बालकृष्ण हरि चापेकर (1873 - 12 मई 1899, जिन्हें बापुराव भी कहा जाता है) और 

🇮🇳 वासुदेव हरि चापेकर (1880 - 8 मई 1899), जिन्हें वासुदेव भी कहा जाता है | 

🇮🇳 चापेकर बंधुओ  और क्रांतिकारी महादेव विनायक रानाडे को देश के लिए बलिदान देने पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन !

चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

आपने यंहा तक पड़ा इसके लिए आपका आभार | 

ये सभी जानकारी अलग अलग स्त्रोत्रों से ली गई है | 

अगर किसी तरह की कोई त्रुटि हो तो क्षमा करें | 

कोई सुझाव हो तो अवश्य सूचित करें | 

अगर कोई सहयोग आप करना चाहें  तो सम्पर्क करें | 

#स्वतंत्रता सेनानी #क्रांतिकारी #damodar_hari_chapekar #Balakrishna_Hari_Chapekar #vasudev_hari_chapekar #Mahadev_Vinayak_Ranade!

07 फ़रवरी 2024

मणिकर्णिका घाट बनारस Manikarnika Ghat Banaras

मुझे नहीं पता कि तुम किस शहर में रहते हो, किसी दिन बैग में एक-काद कपड़े रख के निकल पड़ो बनारस : एक पवित्र नगर
कहतें हैं कि मुम्बई मायानगरी है जहाँ छोटे-छोटे इंसानों के बड़े बड़े सपने पूरे हुए हैं!
ये वो जगह है जहाँ पर इंसान बड़े से बड़े सपने को जलते हुए, मिट्टी में खाक होते हुए देखता है...
एक चद्दर रख लेना साथ में या फिर बनारस सिटी स्टेशन के बाहर से 10 रुपये में बिकने वाली पन्नी ले लेना और पहुँच पड़ना सीधे मणिकर्णिका।



ये वो जगह है जहां इंसानी लाशों के जलते हुए उजाले में सिर्फ और सिर्फ सच्चाई दिखाई देती है।
एक रात के लिए भूल जाना कि तुम्हारे क्रेडिट कार्ड के लिमिट कितनी है, तुम्हारे डेबिट कार्ड में कितने पैसे पड़े हैं जिन्हें तुम अभी निकाल के 5 स्टार होटल बुक कर सकते हो, भूल जाना अपने पैरों में पड़े हुए जूते की कीमत या कलाई में टिक-टिक करती हुई घड़ी की कीमत और पन्नी बिछाकर बैठ जाना एक कोने में और देखना चुप चाप वहाँ का तमाशा। तुम्हें सिर्फ और सिर्फ सच दिखाई देगा। तुम देखोगे की कैसे वो लोग जिन्होनें अपनी जिंदगी सब कुछ भूलकर अपने सपनों को पूरा करने में बिता दी कैसे यहाँ औंधे मुँह पड़े हैं। वो लोग जो जिनके पास कभी समय नही रहा लोगों के लिए उन्हें कैसे लोग जलते हुए ही छोड़ कर चला जाया करते हैं, वो लोग जिन्होंने अपने ईगो में आकर किसी के सामने झुकना नहीं स्वीकारा वो कैसे अभी गिरे हुए हैं, और इस कदर गिरे हुए हैं कि बिना चार लोगों के उन्हें उठाया भी नही जा सकता।
वो लोग जिन्हें गुमान था अपने हुस्न अपनी हर एक चीज़ पर आज कैसे कुछ घंटों के बाद उनका यहाँ कुछ भी अपना नहीं रहेगा।
हमेशा हमेशा के लिए, वो लोग जिन्होंने ठोकर मार दी उनको जिन्होंने उन्हें सबसे ज्यादा चाहा और आज उनके पास कोई आखिरी लौ बुझने तक साथ बैठने वाला तक नहीं , वो लोग जिन्होनें पहनी महंगी घड़ियाँ पर आज पता चला कि समय क्या है, वो लोग जिन्होंने पूरी जिंदगी दूसरों को दुःख दिया उनकी आवाज आज उनकी चटकती हड्डियों से कैसे निकल रही हैं, तुम देखोगे की यहाँ जो हो रहा है वही सच है बाकी सब झूठ
तो सुनो न यार!
कभी भी किसी को दुःख मत दो!
हाँ पता है कि दुनिया के सबको खुश नही रखा जा सकता पर हर कोई आपसे दुखी भी नही हो सकता, अभी मैं कुछ भी कर दूँ, कितना भी बुरा उससे दुनिया के बड़े-बड़े सेलेब्रिटी को कोई फर्क पड़ने वाला है क्या?
नही!
तो वही तुमसे दुःखी होगा जो तुमसे प्यार करता हो, जो तुमसे जुड़ा हुआ है, तो अगर तुम किसी को खुशी नही दे सकते तो पहले ही बोल दो और उसे भी उन्ही बाकी के सेलिब्रिटी वाले कैटेगरी में डाल दो, वरना एक बार जुड़ जाने के बाद कभी भी किसी को मत रुलाओ अपनी वजह से, अपनों की वजह से!
पता नहीं किस पिक्चर का डायलॉग है पर सच है ''हमारी दादी" कहती थीं कि कभी किसी की ''आह'' नही लेनी चाहिए'' वरना ये आह चीखती हैं, चिल्लाती हैं, जलती हुई हड्डियों से इसकी आवाज दूर तक शमसान पर गूँजती है! और उस वक्त कोई सुनने वाला नही होता, एक दिन तो इस शरीर को अकड़ ही जाना है तब तक के लिए अपनी अकड़ थोड़ा किनारे रख लो।
बस एक रात की बात है जाओ कभी मणिकर्णिका, सब सीख जाओगे बिना किसी के सिखाए, यकीन करो अगली सुबह अपना बैग, घड़ी, और जूते और शायद खुद को भी साथ लेकर वापस आने का भी मन नही करेगा क्योंकि जलती हुई हड्डियों की चीखें बहुत सन्नाटा भर देंगी तुम्हारे अंदर जो किसी का दर्द, दुःख हँसते हुए ले लेने के लिए काफी रहेगा हमेशा के लिए

Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...