11 फ़रवरी 2024

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर क्रांतिकारी तिलका मांझी | First Freedom Fighter Veer Tilka Manjhi


 


🇮🇳#तिलका_माँझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को गुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी,  वीर क्रांतिकारी तिलका माँझी_की_शौर्यगाथा

🇮🇳अंग्रेजों और वनवासियों के बीच लगातार हो रहे संघर्ष ने तिलका माँझी को क्रांतिकारी बनाया| 

🇮🇳 जन्म: 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में #तिलकपुर नामक गाँव में एक #संथाल परिवार में

🇮🇳बलिदान: 13 जनवरी, 1785 को उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी गई थी। 🇮🇳

🇮🇳 राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए भागलपुर में स्थानीय लोगों को  जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोगों को देश के लिए एकजुट होने के लिए प्रेरित करते थे तिलका माँझी । 🇮🇳

🇮🇳 साल 1857 में मंगल पांडे की बन्दूक से निकली गोली ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ विद्रोह का आगाज़ किया। इस विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला विद्रोह माना जाता है और #मंगल_पांडे को प्रथम क्रांतिकारी।

🇮🇳 हालांकि, 1857 की क्रांति से लगभग 80 साल पहले बिहार के जंगलों से अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ़ जंग छिड़ चुकी थी। इस जंग की चिंगारी फूँकी थी एक आदिवासी नायक, #तिलका_माँझी ने, जो असल मायनों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले क्रांतिकारी थे।

🇮🇳 भले ही आपको हमारे इतिहास में तिलका माँझी के योगदान का कोई ख़ास उल्लेख न मिले, पर समय-समय पर कई लेखकों और इतिहासकारों ने उन्हें ‘प्रथम स्वतंत्रता सेनानी’ होने का सम्मान दिया है। महान लेखिका #महाश्वेता_देवी ने तिलका माँझी के जीवन और विद्रोह पर बांग्ला भाषा में एक उपन्यास ‘शालगिरर डाके’ की रचना की। एक और हिंदी उपन्यासकार #राकेश_कुमार_सिंह ने अपने उपन्यास ‘हुल पहाड़िया’ में तिलका माँझी के संघर्ष को बताया है।

🇮🇳 आज द बेटर इंडिया के साथ पढ़िये तिलका माँझी उर्फ़ #जबरा_पहाड़िया के विद्रोह और बलिदान की अनसुनी कहानी!

🇮🇳 तिलका माँझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में #तिलकपुर नामक गाँव में एक #संथाल परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम #सुंदरा_मुर्मू था। वैसे उनका वास्तविक नाम #जबरा_पहाड़िया ही था। तिलका माँझी नाम तो उन्हें ब्रिटिश सरकार ने दिया था।

🇮🇳 पहाड़िया भाषा में ‘तिलका’ का अर्थ है गुस्सैल और लाल-लाल आँखों वाला व्यक्ति। साथ ही वे ग्राम प्रधान थे और पहाड़िया समुदाय में ग्राम प्रधान को माँझी कहकर पुकारने की प्रथा है। तिलका नाम उन्हें अंग्रेज़ों ने दिया। अंग्रेज़ों ने जबरा पहाड़िया को खूंखार डाकू और गुस्सैल (तिलका) माँझी (समुदाय प्रमुख) कहा। ब्रिटिशकालीन दस्तावेज़ों में भी ‘जबरा पहाड़िया’ का नाम मौजूद है पर ‘तिलका’ का कहीं उल्लेख नहीं है।

🇮🇳 तिलका ने हमेशा से ही अपने जंगलों को लुटते और अपने लोगों पर अत्याचार होते हुए देखा था। गरीब आदिवासियों की भूमि, खेती, जंगली वृक्षों पर अंग्रेज़ी शासकों ने कब्ज़ा कर रखा था। आदिवासियों और पर्वतीय सरदारों की लड़ाई अक्सर अंग्रेज़ी सत्ता से रहती थी, लेकिन पर्वतीय जमींदार वर्ग अंग्रेज़ी सत्ता का साथ देता था।

🇮🇳 धीरे-धीरे इसके विरुद्ध तिलका आवाज़ उठाने लगे। उन्होंने अन्याय और गुलामी के खिलाफ़ जंग छेड़ी। तिलका माँझी #राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए भागलपुर में स्थानीय लोगों को सभाओं में संबोधित करते थे। #जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोगों को देश के लिए एकजुट होने के लिए प्रेरित करते थे।

🇮🇳 साल 1770 में जब भीषण अकाल पड़ा, तो तिलका ने अंग्रेज़ी शासन का खज़ाना लूटकर आम गरीब लोगों में बाँट दिया। उनके इन नेक कार्यों और विद्रोह की ज्वाला से और भी आदिवासी उनसे जुड़ गये। इसी के साथ शुरू हुआ उनका #संथाल_हुल यानी कि आदिवासियों का विद्रोह। उन्होंने अंग्रेज़ों और उनके चापलूस सामंतों पर लगातार हमले किए और हर बार तिलका माँझी की जीत हुई।

🇮🇳 साल 1784 में उन्होंने भागलपुर पर हमला किया और 13 जनवरी 1784 में ताड़ के पेड़ पर चढ़कर घोड़े पर सवार अंग्रेज़ कलेक्टर ‘अगस्टस क्लीवलैंड’ को अपने जहरीले तीर का निशाना बनाया और मार गिराया। कलेक्टर की मौत से पूरी ब्रिटिश सरकार सदमे में थी। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जंगलों में रहने वाला कोई आम-सा आदिवासी ऐसी हिमाकत कर सकता है।

🇮🇳 साल 1771 से 1784 तक जंगल के इस बेटे ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबा संघर्ष किया। उन्होंने कभी भी समर्पण नहीं किया, न कभी झुके और न ही डरे।

🇮🇳 अंग्रेज़ी सेना ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया, लेकिन वे तिलका को नहीं पकड़ पाए। ऐसे में, उन्होंने अपनी सबसे पुरानी नीति, ‘फूट डालो और राज करो’ से काम लिया। ब्रिटिश हुक्मरानों ने उनके अपने समुदाय के लोगों को भड़काना और ललचाना शुरू कर दिया। उनका यह फ़रेब रंग लाया और तिलका के समुदाय से ही एक गद्दार ने उनके बारे में सूचना अंग्रेज़ों तक पहुंचाई।

🇮🇳 सूचना मिलते ही, रात के अँधेरे में अंग्रेज़ सेनापति आयरकूट ने तिलका के ठिकाने पर हमला कर दिया। लेकिन किसी तरह वे बच निकले और उन्होंने पहाड़ियों में शरण लेकर अंग्रेज़ों के खिलाफ़ छापेमारी जारी रखी। ऐसे में अंग्रेज़ों ने पहाड़ों की घेराबंदी करके उन तक पहुँचने वाली तमाम सहायता रोक दी।

🇮🇳 इसकी वजह से तिलका माँझी को अन्न और पानी के अभाव में पहाड़ों से निकल कर लड़ना पड़ा और एक दिन वह पकड़े गए। कहा जाता है कि तिलका माँझी को चार घोड़ों से घसीट कर भागलपुर ले जाया गया। 13 जनवरी 1785 को उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी गई थी।

🇮🇳 जिस समय तिलका माँझी ने अपने प्राणों की आहुति दी, उस समय मंगल पांडे का जन्म भी नहीं हुआ था। ब्रिटिश सरकार को लगा कि तिलका का ऐसा हाल देखकर कोई भी भारतीय फिर से उनके खिलाफ़ आवाज़ उठाने की कोशिश भी नहीं करेगा। पर उन्हें यह कहाँ पता था कि बिहार-झारखंड के पहाड़ों और जंगलों से शुरू हुआ यह संग्राम, ब्रिटिश राज को देश से उखाड़ कर ही थमेगा।

🇮🇳 तिलका के बाद भी न जाने कितने आज़ादी के दीवाने हँसते-हँसते अपनी भारत माँ के लिए अपनी जान न्योछावर कर गये। आज़ादी की इस लड़ाई में अनगिनत शहीद हुए, पर इन सब शहीदों की गिनती जबरा पहाड़िया उर्फ़ तिलका माँझी से ही शुरू होती है।

🇮🇳 तिलका माँझी आदिवासियों की स्मृतियों और उनके गीतों में हमेशा ज़िंदा रहे। न जाने कितने ही आदिवासी लड़ाके तिलका के गीत गाते हुए फाँसी के फंदे पर चढ़ गए। अनेक गीतों तथा कविताओं में तिलका माँझी को विभिन्न रूपों में याद किया जाता है-

तुम पर कोडों की बरसात हुई, तुम घोड़ों में बाँधकर घसीटे गए

फिर भी तुम्हें मारा नहीं जा सका, तुम भागलपुर में सरेआम

फाँसी पर लटका दिए गए, फिर भी डरते रहे ज़मींदार और अंग्रेज़

तुम्हारी तिलका (गुस्सैल) आँखों से, मर कर भी तुम मारे नहीं जा सके

तिलका माँझी, मंगल पांडेय नहीं,

तुम आधुनिक भारत के पहले विद्रोही थे

भारत माँ के इस सपूत को सादर नमन!

🇮🇳 भारतीय स्वाधीनता संग्राम के पहले बलिदानी आदिविद्रोही #बाबा_तिलका_माँझी (जबरा पहाड़िया) जी की जयंती पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं हार्दिक श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏 🇮🇳 जय_मातृभूमि 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व #आजादी_का_अमृतकाल #वन्दे_मातरम् 🇮🇳

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

Source: thebetterindia

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व  #आजादी_का_अमृतकाल #स्वतंत्रता सेनानी #क्रांतिकारी #Freedom_Fighter #tilkamanjhi

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Dark Oxygen | Deep Sea Ecosystems | Polymetallic Nodules

  Dark Oxygen | Deep Sea Ecosystems | Polymetallic Nodules वैज्ञानिकों ने उस बहुधात्विक पिंड की खोज की है गहरे समुद्र का तल पूर्ण रूप से ऑक्...