🇮🇳 बैसवाड़े का क्रांतिकारी रणबांकुरा राणा बेनी माधव
🇮🇳 आओ बनाएँ उन क्रांतिकारियों के #सपनों_का_भारत, जिनके #संघर्ष और #बलिदान का ऋण आज तक हम पर है 🇮🇳
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🇮🇳 आजादी का वो सिपाही जिसके डर से अंग्रंजों ने उनके नाम का गाना ही बना डाला था. बात है 1857 के गदर की #बहराइच में जंग हारने के बाद अंग्रेजों ने राणा बेनी माधव के नाम का गाना तक बना डाला था.और गोरे अंग्रेज जंगलों में मौत के डर से जोर जोर से वो गाना गाया करते थे. हॉउ आई वॉन द विक्टोरिया क्रॉस डॉट टीएच डॉट कावानघ के पेज नंबर 216 पर उस गाने को छापा गया...'where have you been to all the day beni madho beni madho' राणा बेनी माधव ने 18 महीने तक #रायबरेली को अंग्रेजों से स्वाधीन रखा था.
🇮🇳 रायबरेली जिला अंग्रेजों द्वारा 1858 में बनाया गया था अपने मुख्यालय शहर के बाद नामित किया था। परंपरा यह है कि शहर भरो द्वारा स्थापित किया गया था जो #भरौली या #बरौली के नाम से जानी जाती थी जो कालांतर में परिवर्तित होकर बरेली हो गयी ।उपसर्ग ‘राय’ का सम्बन्ध कायस्थ जो समय के एक अवधि के लिए शहर के स्वामी थे उपाधि के तौर पर ‘राय’ शीर्षक का प्रतिनिधित्व करता है।
🇮🇳 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुवात थी और जिला किसी भी अन्य स्थान के लोगों से पीछे नहीं था। फिर यहाँ जन गिरफ्तारी, सामूहिक जुर्माना, लाठी भांजना और पुलिस फायरिंग की गई थी। सरेनी में उत्तेजित भीड़ पर पुलिस ने गोलीबारी की जिसमे कई लोग शहीद हो गए और कई अपंग हो गए। इस जिले के लोग उत्साहपूर्वक व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया और बड़े पैमाने में गिरफ्तारी दीं जिसने विदेशी जड़ों को हिलाकर रख दिया।
🇮🇳 13वीं सदी के प्रारंभ में रायबरेली पर भरो का शासन था जिनको राजपूतों और कुछ मामलों में कुछ मुस्लिम उपनिवेशवादियों द्वारा विस्थापित कर दिया गया था| जिले के दक्षिण पश्चिमी भाग पर बैस राजपूतों द्वारा कब्जा किया गया था। कानपुर और अमेठी वाले, एवं अन्य राजपूत कुलों ने खुद को क्रमशः उत्तर पूर्व और पूर्व में स्थापित किया था | दिल्ली के सुल्तानों के शासन के दौरान लगभग पूरा पथ नाममात्र उनके राज्य का एक हिस्सा था।
🇮🇳 अकबर के शासनकाल के दौरान जिले द्वारा कवर क्षेत्र अवध और लखनऊ के सिरकार्स के बीच इलाहाबाद के सूबे जो जिले का बड़ा हिस्सा के रूप में शामिल किया गया। मानिकपुर के सिरकार्स का छेत्र जनपद के बड़े भाग में जो की वर्तमान में लखनऊ जिले के मोहनलाल गंज परगना उत्तर पश्चिम पर दक्षिण में गंगा और उत्तर पूर्व पर परगना इन्हौना लखनऊ. इन्हौना के परगना अवध के सिरकार्स में उस नाम के एक महल के लिए समतुल्य था । सरेनी, खिरो परगना और रायबरेली के परगना के पश्चिमी भाग को लखनऊ के सिरकार्स का हिस्सा बनाया। 1762 में, मानिकपुर के सिरकार्स अवध के क्षेत्र में शामिल किया गया था और चकल्दार के तहत रखा गया था।
🇮🇳 रायबरेली में आजादी की अनेकों गाथाएँ हैं। #उन्नाव के बैसवारा ताल्लुक के राजा राना बेनी माधव सिंह ने रायबरेली के एक बड़े हिस्से में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ क्रांति की मशाल जलाई थी। अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले राजा बेनी माधव रायबरेली जिले के लिए महानायक बने। सन् 1857 की क्रांति के दौरान जनपद रायबरेली में बेनी माधव ने 18 महीने तक जिले को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराया था।
🇮🇳 रायबरेली, उन्नाव और लखनऊ में अंग्रेजों की दरिंदगी का सामना करने के लिए बैसवाडा के राणा बेनीमाधव ने हजारों किसानों, मजदूरों को जोड़ कर क्रांति की जो मशाल जलाई उससे अंग्रेजों के दंभ को चूरचूर कर दिया गया। अनेक घेराबंदी के बाद भी फिंरगी बेनी माधव को नहीं पा सके। #शंकरपुर के शासक राजा बेनी माधव प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख योद्धाओं में से एक बने। अवध क्षेत्र के ह्रदय स्थल रायबरेली में 18 महीने तक अपनी सत्ता बनाने वाले बेनी माधव ने अंग्रेजों के खिलाफ जो गुरिल्ला युद्ध छेड़ा वह किसी मिशाल से कम नही है।
🇮🇳 कंपनी सरकार को हमेशा चकमा देने वाले राणा को अंग्रेज कभी पकड़ नहीं सके। उनके निधन को लेकर भी मतभेद है। इतिहास में कई प्रसंगों से पता चलता है कि राणा नेपाल चले गए थे और वहां उनका सामना अंग्रेजों के साथी राणा जंग बहादुर से भयंकर युद्ध हुआ। माना जाता है कि इस युद्ध में राणा शहीद हो गए।इस घटना का उल्लेख इतिहासकार रॉबर्ट मार्टिन ने किया है और इसकी पुष्टि हावर्ड रसेल के 21 जनवरी 1860 में लिखे एक पत्र से भी होती है।
🇮🇳 ‘बैसवाड़ा - एक ऐतिहासिक अनुशीलन’ में लाल अमरेंद्र सिंह ने लिखा है, ‘राणा 223 गांवों के मालिक थे। 1856 में अंग्रेज़ों ने 116 गांव छीन लिए थे। वह लखनऊ के युद्ध में तीन बार लड़े। राणा ने 22 महीने में 20 युद्धों में हिस्सा लिया। 30 हज़ार की सेना दो साल तक अपने खर्चे पर चलाई। 24 नवंबर के अंतिम युद्ध के बाद राणा बेनी नेपाल चले गए थे। वहां हथियार बेचकर पेट भरा ओर चार युद्ध भी लड़े। अंतिम युद्ध लड़ने पहले पांच-छह दिन तक भूखे रहे थे। राणा के भाई जुगराज सिंह को पकड़ लिया गया था और चारों किले ध्वस्त कर दिए गए थे। बैसवाड़े के लोग मानते हैं कि राणा ने एक संन्यासी के रूप मं 123 साल की उम्र में गंगा तट पर अंतिम सांस ली थी।’
लेकिन आज भी वह लोककला, संस्कृति और लोक गायन के माध्यम से लोगों के मन मस्तिष्क में जीवंत हैं।
राणा बेनी माधव सिंह जी जैसे अनगिनत परिचित-अपरिचित क्रांतिकारियों को कोटि-कोटि नमन !
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वन्दे मातरम् 🇮🇳
साभार: चन्द्र कांत (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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