Sardar Ajit Singh (February 23, 1881- August 15, 1947)
🇮🇳 #भारत के #स्वतंत्रता संघर्ष में #अतुलनीय योगदान है #Freedom_Fighter #सरदार_अजीत_सिंह का। 🇮🇳
🇮🇳 देश निकाले का दण्ड के बाद लगभग 40 वर्षों तक विदेश में रहकर 40 भाषाओं पर अधिकार; ईरान के रास्ते तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, स्विट्जरलैंड, इटली, जापान आदि देशों में रहकर क्रांति का बीजारोपण करते रहे। 🇮🇳
🇮🇳 14 अगस्त 1947 की शाम भारत की #आजादी की खबर सुनकर हुए खुश और भारत विभाजन की खबर से व्यथित होकर 15 अगस्त 1947 को सुबह 4 बजे त्याग दिया शरीर 🇮🇳
🇮🇳 सरदार अजीत सिंह (जन्म- 23 फ़रवरी, 1881, जालंधर ज़िला, पंजाब; मृत्यु- 15 अगस्त, 1947) भारत के सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त एवं क्रांतिकारी थे। ये प्रख्यात शहीद सरदार भगत सिंह के चाचा थे।
🇮🇳 सरदार अजीत सिंह का जन्म पंजाब के #जालंधर ज़िले के एक गॉंव #खटकड़_कलां में 23 फ़रवरी, सन 1881 को हुआ था। उन्होंने जालंधर और #लाहौर से शिक्षा ग्रहण की। 40 साल तक एकाकी और तपस्वी जीवन बिताने वाली सरदार अजीत सिंह की पत्नी श्रीमती #हरनाम_कौर भी वैसे ही जीवंत व्यक्तित्व वाली महिला थीं।
🇮🇳 सरदार अजीत सिंह को राजनीतिक 'विद्रोही' घोषित कर दिया गया था। उनका अधिकांश जीवन जेल में बीता। 1906 ई. में #लाला_लाजपत_राय जी के साथ ही साथ उन्हें भी देश निकाले का दण्ड दिया गया था। सरदार अजीत सिंह ने 1907 के भू-संबंधी आन्दोलन में हिस्सा लिया तथा इन्हें गिरफ्तार कर #बर्मा की #माण्डले जेल में भेज दिया गया।
🇮🇳 इन्होंने कुछ पत्रिकाएं निकाली तथा भारतीय स्वाधीनता के अग्रिम कारणों पर अनेक पुस्तकें लिखी। सरदार अजीत सिंह ने हिटलर और मुसोलिनी से मुलाकात की। मुसोलिनी तो उनके व्यक्तित्व के मुरीद थे। इन दिनों में सरदार अजीत सिंह ने 40 भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर लिया था।
🇮🇳 अजीत सिंह के बारे में कभी श्री #बाल_गंगाधर_तिलक ने कहा था ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं। जब तिलक ने ये कहा था तब सरदार अजीत सिंह की उम्र केवल 25 वर्ष थी।
🇮🇳 1909 में सरदार अपना घर बार छोड़ कर देश सेवा के लिए विदेश यात्रा पर निकल चुके थे, उस समय उनकी उम्र 27 वर्ष की थी। ईरान के रास्ते तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, स्विट्जरलैंड, इटली, जापान आदि देशों में रहकर उन्होंने क्रांति का बीज बोया और आजाद हिन्द फौज की स्थापना की। अजीत सिंह ने भारत और विदेशों में होने वाली क्रांतिकारी गतिविधियों में पूर्ण रूप से सहयोग दिया। उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को चुनौती दी तथा भारत के औपनिवेशिक शासन की आलोचना की और खुलकर विरोध भी किया। रोम रेडियो को तो अजीत सिंह ने नया नाम दे दिया था, '#आजाद_हिन्द_रेडियो' तथा इसके मध्यम से क्रांति का प्रचार प्रसार किया। अजीत सिंह परसिया, रोम तथा दक्षिणी अफ्रीका में रहे तथा सन 1947 को भारत वापिस लौट आए। भारत लौटने पर पत्नी ने पहचान के लिए कई सवाल पूछे, जिनका सही जवाब मिलने के बाद भी उनकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ। अजीत सिंह इतनी भाषाओं के ज्ञानी हो चुके थे कि उन्हें पहचानना बहुत ही मुश्किल था।
🇮🇳 जिस दिन भारत आजाद हुआ उस दिन सरदार अजीत सिंह की आत्मा भी शरीर से मुक्त हो गई। भारत के विभाजन से वे इतने व्यथित थे कि 15 अगस्त, 1947 के सुबह 4 बजे उन्होंने अपने पूरे परिवार को जगाया, और जय हिन्द कह कर दुनिया से विदा ले ली।
साभार : bharatdiscovery.org
🇮🇳 शहीद-ए-आजम भगत सिंह के चाचा #देशभक्त सरदार अजीत सिंह का #डलहौजी से गहरा नाता रहा है। वर्ष 1947 में अजीत सिंह डलहौजी में गाँधी चौक के समीप स्थित #बसंत_कोठी में रहते थे। 14 अगस्त को जब उन्होंने डलहौजीवासियों के साथ रेडियो पर भारत के आजाद होने का समाचार सुना तो अन्य लोगों के साथ खुशी से झूम उठे थे, परंतु साथ ही देश के विभाजन की खबर सुनने के बाद उन्हें बहुत दु:ख हुआ और वह चुपचाप बसंत कोठी में चले गए। #15_अगस्त की सुबह जब वह कमरे से बाहर नहीं निकले तो लोगों ने कमरा खोला। देखा कि अजीत सिंह मृत पड़े थे। 15 अगस्त को #डलहौजी के #पंजपुला में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया था। अजीत सिंह के अंतिम संस्कार में मानो पूरा पंजाब उमड़ आया था। पंजपुला से डलहौजी के बस स्टैंड तक करीब पाँच किलोमीटर तक हजारों लोगों की भीड़ जुट गई थी।
🇮🇳 अमर बलिदानी #सरदार #भगत_सिंह के चाचा, भारत के सुप्रसिद्ध #राष्ट्रभक्त एवं #क्रांतिकारी #सरदार_अजीत_सिंह जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !
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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व
#आजादी_का_अमृतकाल
साभार: चन्द्र कांत (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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