22 फ़रवरी 2024

Kamala Choudhary | कमला चौधरी | Born- February 22, 1908 | Indian writer and Member of Parliament (1908–1970)

 



🇮🇳🔰 कमला चौधरी (जन्म- 22 फ़रवरी, 1908, #लखनऊ; मृत्यु- 1970, #मेरठ) उन महिला समाज-सुधारकों और लेखिकाओं में से एक थीं, जिन्होंने महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए सामाजिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक स्तर पर प्रयास किया। शाही सरकार के लिए अपने परिवार की निष्ठा से दूर जाने से कमला चौधरी राष्ट्रवादियों में शामिल हो गईं और साल 1930 में #गॉंधीजी द्वारा शुरू किये गए 'नागरिक अवज्ञा आंदोलन' में उन्होंने सक्रियता से हिस्सा लिया। वह अपने 50वें सत्र में 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' की उपाध्यक्ष थीं और सत्तर के उत्तरार्ध में लोकसभा के सदस्य के रूप में चुनी गयी थीं। कमला चौधरी एक प्रसिद्ध कथा लेखिका भी थीं। उनकी कहानियां आमतौर पर महिलाओं की आंतरिक दुनिया या आधुनिक राष्ट्र के रूप में भारत के उद्भव से निपटाती थीं।

🇮🇳🔰 उत्तर प्रदेश के #लखनऊ में 22 फ़रवरी, 1908 को डिप्टी कलेक्टर पिता #राय_मनमोहन_दयाल के घर कमला चौधरी का जन्म हुआ। लड़की होने के कारण पढ़ाई-लिखाई करने के लिए उनको परिवार में काफी संघर्ष करना पड़ा। अलग-अलग शहरों में पली-बढ़ी कमला चौधरी ने पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में रत्न और प्रभाकर की उपाधि हासिल की। साहित्य के प्रति उनकी रूचि स्कूली जीवन के समय से ही थी। महिलाओं के सामाजिक स्थिति के बारे में लेखन भी उन्होंने स्कूली जीवन के समय शुरु कर दिया था। 1927 को कमला चौधरी का विवाह #जे_एम_चौधरी से हुआ और वह कमला चौधरी हो गईं।

🇮🇳🔰 कमला चौधरी का राजनीतिक सफर 1930 से शुरू हुआ, अपनी पारिवारिक परंपरा को तोड़ने हुए वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गईं। महात्मा गांधी के शुरू किए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन से देश के आजादी मिलने तक कमला चौधरी ने देश के स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में कारावास तक का सफर किया।

🇮🇳🔰 सन 1947 के बाद कमला चौधरी ने भारत के #संविधान_बोर्ड के एक निर्वाचित सदस्य के रूप भारत के संविधान को प्रारूपित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका गठन 1950 में हुआ। बाद में 1952 में उन्होंने भारत की प्रांतीय सरकार के सदस्य के रूप में कार्य किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पचासवें सत्र में वह वरिष्ठ उपाध्यक्ष थीं।

🇮🇳🔰 अपने पूरे राजनीतिक कॅरियर के दौरान कमला चौधरी उत्तर प्रदेश राज्य समाज कल्याण सलाहकार बोर्ड की सदस्य होने के अलावा ज़िला काँग्रेस कमेटी, शहर काँग्रेस कमेटी से लेकर प्रांतीय महिला काँग्रेस कमेटी के विभिन्न पदों पर काम करती रहीं। 1962 में वह हापुड़ से आम चुनाव जीतीं और तीसरी लोकसभा की सदस्य बनीं, उस दौर में हापुड़ लोकसभा में गाजियाबाद के क्षेत्र आते थे। एक सांसद के तौर कमला चौधरी पाँच साल लोकसभा में काफी मुखर रहीं। एक समाज सुधारक के रूप में, दिल के बहुत करीब होने का कारण महिलाओं का उत्थान था। कमला चौधरी ने लड़कियों की शिक्षा के लिए सक्रिय रूप से काम किया।

🇮🇳🔰 हिंदी साहित्य से अपने प्यार को लेकर कमला चौधरी ने महिलाओं के आंतरिक दुनिया के चारों तरह घूमने वाली कहानियों पर लिखना शुरू किया। उनके विषय विशिष्ट रूप से नारीवादी रहे और उन्हें आकर्षक और बोल्ड माना जाता था। उनके लेखन में उनके दौर की महिलाओं के सामाजिक-सांस्कृतिक स्थितियों का पता चलता है जिसका प्रभाव बचपन से ही उनके जीवन पर भी पड़ता रहा। लैंगिक भेदभाव, विधवापन, महिला इच्छाओं, महिला मजदूरों के शोषण और महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव जैसे विषयों पर कमला चौधरी का लेखन देखने को मिलता है। उनके लेखन में महिलाओं के जीवन से जुड़ी वह सच्चाई देखने को मिलती है। हालांकि विषयों की संवेदनशीलता के बाद भी उनके लेखन साहित्य को उस दौर में अधिक प्रमुखता नहीं मिली। 'उन्माद' (1934), 'पिकनिक' (1936) 'यात्रा' (1947), 'बेल पत्र' और 'प्रसादी कमंडल' उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। फिर भी उन्होंने महिलाओं के जीवन में सुधार के लिए एक सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में कार्य करना जारी रखा।

🇮🇳🔰 सन 1970 में कमला चौधरी का निधन मेरठ में हुआ। एक लेखिका और राजनीतिक कार्यकर्त्ता रूप में उनका जीवन बेमिसाल रहा। फिर भी उनकी साहित्यिक उपेक्षा ही नहीं, राजनीतिक उपेक्षा भी निराशा पैदा करती है।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 महिला उत्थान को समर्पित; सुप्रसिद्ध #लेखिका, #स्वतंत्रतासेनानी और #समाजसुधारक #कमला_चौधरी जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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