11 मार्च 2024

Vijay Hazare | Cricketer

 



🇮🇳 #Padmashree honored; Humble tribute to India's renowned cricketer #Vijay_Hazare ji on his birth anniversary!

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व


#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Vinod Dua | विनोद दुआ

  



🇮🇳 #पद्मश्री से सम्मानित; प्रसिद्ध भारतीय समाचार वक्ता, हिंदी टेलीविजन पत्रकार एवं कार्यक्रम निर्देशक #विनोद_दुआ  #vinod_dua जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Sudarshan Sahu | सुदर्शन साहू | Famous Indian Sculptors | प्रसिद्ध भारतीय मूर्तिकार

 


सुदर्शन साहू (जन्म- 11 मार्च, 1939, पुरी, उड़ीसा) प्रसिद्ध भारतीय मूर्तिकार हैं। उनको बेजान पत्थरों को उकेरकर पौराणिक कथाओं को सजीव सी दिखने वाली मूर्तियां गढ़ने में महारत हासिल है। अपनी कला के लिए 1988 में पद्म श्री से नवाजे जा चुके सुदर्शन साहू ने 1977 में पुरी में क्राफ्ट म्यूजियम स्थापित किया था। इसके बाद उन्होंने 1991 में भुवनेश्वर में ओडिशा सरकार के साथ मिलकर एक आर्ट्स एंड क्राफ्ट कॉलेज स्थापित किया था, जहाँ वे पत्थरों, लकड़ियों और फाइबर ग्लास को जानदार लगने वाली मूर्तियों में बदलने की कला सिखाते हैं।

🇮🇳 ओड़िशा के जाने माने मूर्तिकार सुदर्शन साहू का जन्म 11 मार्च, 1939 को #पुरी में हुआ था।

🇮🇳 वह शुरू से ही अपने पैतृक घर में पत्थर और लकड़ी से पारंपरिक मूर्तियों की कला का अभ्यास किया करते थे। जब उनके कला की चर्चा विश्व स्तर तक होने लगी तो उन्होंने अपनी कला से जुड़े एक नया संस्था खोलने की सोची।

🇮🇳 सुदर्शन साहू चाहते थे कि काबिल कलाकारों की सुविधाओं के लिए एक उचित कार्यशाला खोला जाए ताकि पर्यटक यहाँ आए और पारंपरिक विरासत और भारतीय कला में निरंतर विकास को देख सकें व मूर्तियों को महसूस कर सकें।

🇮🇳 उन्होंने अपने सपने को साकार करते हुए पुरी में सन 1977 में क्राफ्ट म्यूजियम स्थापित किया।

🇮🇳 कहते हैं कि उनके हाथों में कुछ तो ऐसा जादू था जो बेजान पत्थरों की बनी मूर्तियां भी बोल उठती हैं। 

🇮🇳 पौराणिक कथाओं को सजीवता प्रदान करने की कला अगर किसी में है, तो जाने माने मूर्तिकार सुदर्शन साहू में है।

🇮🇳 सुदर्शन साहू की गिनती 'ओड़िशा के विश्वकर्मा' कहे जाने वाले मूर्तिकारों में की जाती हैं।

🇮🇳 पत्थरों पर नक्काशी में महारत हासिल करने वाले सुदर्शन साहू को भारत सरकार ने 25 जनवरी, 2021 को पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #पद्मश्री और #पद्मविभूषण से सम्मानित; 'ओड़िशा के विश्वकर्मा' कहे जाने वाले प्रसिद्ध भारतीय #मूर्तिकार #Famous Indian Sculptors #सुदर्शन_साहू #Sudarshan_Sahu जी को जन्मदिन की ढेरों बधाई एवं शुभकामनाएँ !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


Dr.Viswanathan Shanta | डॉ.विश्वनाथन शांता | Indian female doctor | भारतीय महिला चिकित्सक

 


हमने 12 पलंग, दो डॉक्टर्स, दो नर्स, दो टेक्निशियन्स, दो सेक्रेटेरिएट स्टाफ के साथ एक कॉटेज अस्पताल के तौर पर शुरुआत की थी. आज मुझे गर्व है कि हम देश के अच्छे इंस्टीट्यूट में शामिल हैं. 30 फीसद मरीज़ों का हम एकदम मुफ्त में इलाज करते हैं. 40 फीसद मरीज़ों से हम पैसे लेते हैं. बाकी बचे 30 फीसद मरीज़ों से पैसे तो लेते हैं, लेकिन काफी कम. 🔴

🇮🇳 कौन थीं डॉक्टर वी शांता ?

वो महिला, जिन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी कैंसर के मरीज़ों की सेवा में लगा दी. वो महिला, जिसने भारत में कैंसर के इलाज को बेहतर बनाने के लिए दिन-रात मेहनत की. जिनका एक ही मकसद था, ये कि भारत में कैंसर को लेकर लोग जागरूक हों और लोगों को बेहतर और किफायती इलाज मिल सके. शुरू से शुरुआत करते हैं.

🇮🇳 आज़ादी के पहले का भारत. साल था 1927. चेन्नई में 11 मार्च के दिन एक बच्ची का जन्म हुआ. नाम रखा गया #विश्वनाथन_शांता, यानी वी शांता. जिस परिवार में इनका जन्म हुआ, उस परिवार के दो महान वैज्ञानिक आगे चलकर नोबेल प्राइज़ विजेता भी बने. हम बात कर रहे हैं #डॉक्टर_सी_वी_रमन और #एस_चंद्रशेखर की. सीवी रमन शांता के ग्रैंडअंकल थे, तो एस चंद्रशेखर अंकल थे. यानी समझ जाइए कि वी शांता का परिवार शिक्षा को तवज्जो देना वाला था. इसलिए शांता की पढ़ाई को लेकर भी कोई बड़ी अड़चन नहीं आई. पैरेंट्स ने सपोर्ट किया. ‘द हिंदू’ के आर्टिकल के मुताबिक, शांता ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बचपन से ही वो मेडिकल फील्ड में करियर बनाना चाहती थीं, परिवार वालों ने साथ दिया, लेकिन कहीं न कहीं पैरेंट्स को इस बात की चिंता भी थी कि क्या वो मेडिसिन जैसी कठोर और डिमांडिंग फील्ड में पैर जमा पाएंगी भी या नहीं. खैर, शांता के पैरेंट्स को उनकी शंका का जवाब जल्द ही मिल गया था.

🇮🇳 शांता ने 1949 में MBBS की डिग्री ली. 1952 में DGO यानी डिप्लोमा इन गायनोलॉजी एंड ऑब्सटेट्रिक्स पूरा किया. और इसी फील्ड में 1955 में MD की डिग्री ली. शांता पढ़ाई कर ही रही थीं कि दूसरी तरफ एक नई पहल शुरू हो रही थी. चेन्नई के अद्यार में कैंसर इंस्टीट्यूट  की नींव रखी जा रही थी. ये काम कर रही थीं #डॉक्टर_मुथुलक्ष्मी_रेड्डी. उनका नाम भारत में मेडिसिन की फील्ड में ग्रेजुएट होने वाली पहली महिलाओं में शामिल है. #अद्यार_इंस्टीट्यूट की आधिकारिक वेबसाइट की मानें तो डॉक्टर मुथुलक्ष्मी 1912 में ग्रेजुएट हुईं, यानी डॉक्टर बनीं. फिर दो यूरोपियन्स के साथ मिलकर विमन इंडिया एसोसिएशन (WIA) की शुरुआत की 1918 में. 1922 में उन्हें पता चला कि उनकी बहन को कैंसर है. इसी बीमारी ने 1923 में मुथुलक्ष्मी की बहन की जान ले ली. इस घटना ने मुथुलक्ष्मी को इतना झकझोर दिया कि उन्होंने कैंसर की फील्ड में काम करने की ठानी. भारत में कैंसर अस्पताल खोलने का फैसला किया. WIA के सपोर्ट से 1949 में कैंसर रिलीफ फंड खोला और फिर अद्यार में छोटी सी झोपड़ी में कैंसर इंस्टीट्यूट की शुरुआत की. इसी इंस्टीट्यूट से वी शांता जुड़ीं अप्रैल 1955 में. जॉइनिंग रेसिडेंट मेडिकल ऑफिसर के तौर पर हुई. तब से लेकर आखिरी सांस तक वी शांता इस इंस्टीट्यूट से जुड़ी रहीं. निधन के वक्त वो अद्यार कैंसर इंस्टीट्यूट की अध्यक्ष थीं.

क्या-क्या किया वी शांता ने ?

अद्यार एक पब्लिक चैरिटेबल इंस्टीट्यूट है. सरकारी इंस्टीट्यूट नहीं है. जब वी शांता इससे जुड़ी थीं, तब यहां केवल 12 बेड्स थे. लेकिन आज यहां 535 मरीज़ों के लिए बेड्स है. यहां गरीब कैंसर पेशेंट्स का मुफ्त में इलाज किया जाता है. 2013 में NDTV को दिए एक इंटरव्यू में शांता ने बताया कि उन्होंने अस्पताल को दो भागों में बांटा हुआ है. एक जनरल वॉर्ड, दूसरा प्राइवेट वॉर्ड. #प्राइवेट वॉर्ड में भर्ती होने वाले कैंसर पेशेंट से इलाज के पैसे चार्ज किए जाते हैं, और इन पैसों से जनरल वॉर्ड में भर्ती हुए गरीब कैंसर मरीज़ों का इलाज होता है. अद्यार इंस्टीट्यूट की शुरुआत एक झोपड़ी से हुई थी, लेकिन आज इसका नाम बड़े अस्पतालों में शामिल है. ये सब कुछ वी शांता की 65 बरस की कड़ी मेहनत का ही नतीजा है. उन्होंने कैंसर को लेकर जागरूकता लाने के लिए, इलाज की क्वालिटी बेहतर करने के लिए लगातार काम किया. वी शांता ने 2019 में दिए एक इंटरव्यू में कहा था,

“हमने 12 पलंग, दो डॉक्टर्स, दो नर्स, दो टेक्निशियन्स, दो सेक्रेटेरिएट स्टाफ के साथ एक कॉटेज अस्पताल के तौर पर शुरुआत की थी. आज मुझे गर्व है कि हम देश के अच्छे इंस्टीट्यूट में शामिल हैं. 30 फीसद मरीज़ों का हम एकदम मुफ्त में इलाज करते हैं. 40 फीसद मरीज़ों से हम पैसे लेते हैं. बाकी बचे 30 फीसद मरीज़ों से पैसे तो लेते हैं, लेकिन काफी कम.”

🇮🇳 डॉक्टर शांता चाहती थीं कि कैंसर को लेकर ज्यादा से ज्यादा रिसर्च की जाए. डॉक्टर शांता ने जिस समय मेडिकल की पढ़ाई की, डॉक्टर बनीं, उस दौरान लड़कियों को लेकर लोगों की एक ही सोच थी, ये कि इन्हें पढ़ाकर क्या करेंगे, इन्हें तो शादी करके घर संभालना है. शांता के पास भी ये ऑप्शन था, लेकिन उन्होंने इसे नहीं चुना. डॉक्टर शांता का कहना था कि आपका काम बोलता है. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था,

“शुरुआत में लोगों का सपोर्ट मिलना और डोनेशन मिलना आसान था. क्योंकि हमारे पास डॉक्टर मुथुलक्ष्मी का साथ था. लेकिन जैसे-जैसे हम आगे बढ़े, मैंने सीखा कि आपकी पारदर्शिता और कोशिश आपकी मदद करती है. आपकी कमाई मरीज़ की संतुष्टि से मापी जानी चाहिए, न कि पैसों से.”

🇮🇳 एक इंटरव्यू में डॉक्टर शांता से सवाल किया गया कि वो खाली समय में क्या करती हैं. जवाब में उन्होंने कहा,

“इंस्टीट्यूट की बेहतरी के लिए बहुत कुछ सोचना-करना होता है, ऐसे में मुझे कुछ और सोचने का वक्त ही नहीं मिलता. मेरे पास कोई ‘व्यक्तिगत’ वक्त नहीं है. लेकिन जब भी थोड़ा वक्त मिलता है, मैं किताबें पढ़ती हूं. कभी-कभी गानें सुनती हूं, खासतौर पर क्लासिकल म्यूज़िक.”

🇮🇳 डॉक्टर शांता ने उस वक्त कैंसर के इलाज की दुनिया में कदम रखा था, जब भारत में इसे लेकर अच्छा इलाज क्या, ठीक-ठाक जानकारी ही नहीं थी. लोगों को लगता था कि कैंसर हुआ, मतलब इलाज मौत ही है. वी शांता का मानना था कि कैंसर को लेकर ज्यादा से ज्यादा रिसर्च होनी चाहिए. 2015 में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था,

“कैंसर के बचाव पर ज़ोर दिया जाना चाहिए. कैंसर को लेकर इंश्योरेंस होना चाहिए. फिजिशियन्स की ट्रेनिंग होनी चाहिए. रिसर्च ज्यादा से ज्यादा होनी चाहिए. ये चार चीज़ें होनी ही चाहिए. लोगों को समय-समय पर अपना चेकअप करवाना चाहिए, ताकि कैंसर का पता शुरुआती स्टेज में ही लग जाए. ऐसे में मरीज़ को ठीक करना ज्यादा मुमकिन रहता है.”

🇮🇳 वी शांता को पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण और मैग्सेसे अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था. उनका कहना था कि अवॉर्ड आपके कामों को मान्यता देने का एक ज़रिया है, इसका ये मतलब नहीं कि आपका काम खत्म हो गया. ये एक इंस्पीरेशन है, जो हमसे कहती है कि अभी तो और आगे जाना है.

🇮🇳 डॉक्टर शांता से और उनके इंस्टीट्यूट में इलाज करवाने के लिए देश के कोने-कोने के लोग जाते हैं. 19 जनवरी की सुबह वाकई उन मरीज़ों के लिए पीड़ादायक रही होगी, जो इस उम्मीद में कि डॉक्टर शांता उनका इलाज करेंगी, दूर घर से अस्पताल आए थे.

~ लालिमा

साभार: thelallantop.com

🇮🇳 #पद्मश्री, #पद्मभूषण, #पद्मविभूषण #Padmashree, #PadmaBhushan, #PadmaVibhushanऔर रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता; भारतीय महिला #चिकित्सक #डॉ_विश्वनाथन_शांता जी को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Sambhaji | Maharajसंभाजी महाराज | Maratha Emperor | मराठा सम्राट

 


शिवाजी के पुत्र के रूप में विख्यात संभाजी महाराज का जीवन भी अपने पिता छत्रपति #शिवाजी_महाराज के समान ही #देश और #हिंदुत्व को समर्पित रहा. सम्भाजी ने अपने बाल्यपन से ही राज्य  की राजनीतिक समस्याओं का निवारण किया था. और इन दिनों में मिले संघर्ष के साथ शिक्षा-दीक्षा के कारण ही बाल शम्भुजी राजे कालान्तर में वीर संभाजी राजे बन सके थे.

🇮🇳 छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 1657 में 14 मई को #पुरंदर किले में हुआ था. लेकिन संभाजी के 2 वर्ष के होने तक #साईबाई का देहांत हो गया था, इसलिए संभाजी का पालन-पोषण शिवाजी की माँ #जीजाबाई ने किया था. संभाजी महाराज को #छवा कहकर भी बुलाया जाता था, जिसका मराठी में मतलब होता हैं शावक अर्थात शेर का बच्चा. संभाजी महाराज संस्कृत और 8 अन्य भाषाओं के ज्ञाता थे.

🇮🇳 सम्भाजी राजा वीर छत्रपति शिवाजी के पुत्र थे, संभाजी की माता का नाम सईबाई था. ये छत्रपति शिवाजी की दूसरी पत्नी थी. सम्भाजी राजे के परिवार में पिता शिवाजी और माता साईबाई के अलावा दादा #शाहजी_राजे, दादी जीजाबाई और  भाई-बहन थे. शिवाजी के 3 पत्नियाँ थी – #साईंबाई, #सोयराबाई और #पुतलाबाई.

🇮🇳 साईबाई के पुत्र संभाजी राजे थे. सम्भाजी के एक भाई #राजाराम छत्रपति भी थे, जो कि सोयराबाई के पुत्र थे. इसके अलावा संभाजी के शकुबाई, अम्बिकाबाई, रणुबाई जाधव, दीपा बाई, कमलाबाई पलकर, राज्कुंवार्बाई शिरके नाम की बहनें थी. सम्भाजी का विवाह #येसूबाई से हुआ था और इनके पुत्र का नाम छत्रपति #साहू था.

🇮🇳 सम्भाजी का बचपन बहुत कठिनाईयों और विषम परिस्थितियों से गुजरा था. संभाजी की सौतेली माता सोयराबाई की मंशा अपने पुत्र राजाराम को शिवाजी का उत्तराधिकारी बनाने की थी. सोयराबाई के कारण संभाजी और छत्रपति शिवाजी के मध्य सम्बन्ध ख़राब होने लगे थे. संभाजी ने कई मौकों पर अपनी बहादुरी भी दिखाई, लेकिन शिवाजी और उनके परिवार को संभाजी पर विश्वास नहीं हो पा रहा था. ऐसे में एक बार शिवाजी ने संभाजी को सजा भी दी, लेकिन संभाजी भाग निकले और जाकर मुगलों से मिल गए. यह समय शिवाजी के लिए सबसे मुश्किल समय था. संभाजी ने बाद में जब मुगलों की हिन्दुओं के प्रति नृशंसता देखी, तो उन्होंने मुगलों का साथ  छोड़ दिया, उन्हे अपनी गलती का अहसास हुआ और शिवाजी के पास वापिस माफ़ी माँगने लौट आये.

बचपन में संभाजी जब मुग़ल शासक औरंगजेब की कैद से बचकर भागे थे, तब वो अज्ञातवास के दौरान शिवाजी के दूर के मंत्री रघुनाथ कोर्डे के दूर के रिश्तेदार के यहाँ कुछ समय के लिए रुके थे. वहाँ संभाजी लगभग 1 से डेढ़ वर्ष के लिए रुके थे, तब संभाजी ने कुछ समय के लिए ब्राह्मण बालक के रूप में जीवन यापन किया था. इसके लिए मथुरा में उनका उपनयन संस्कार भी किया गया और उन्हें संस्कृत भी सिखाई गयी. इसी दौरान संभाजी का परिचय #कवि_कलश से हुआ. संभाजी का उग्र और विद्रोही स्वभाव को सिर्फ कवि कलश ही सँभाल सकते थे.

🇮🇳 कलश के सम्पर्क और मार्गदर्शन से संभाजी की साहित्य की तरफ रूचि बढ़ने लगी. संभाजी ने अपने पिता शिवाजी के सम्मान में संस्कृत में  बुधाचरित्र भी लिखा था.इसके अलावा मध्य काल के संस्कृत का उपयोग करते हुए संभाजी ने #श्रृंगारिका भी लिखा था.

🇮🇳 11 जून 1665 को पुरन्दर की संधि में शिवाजी ने यह सहमति दी थी, कि उनका पुत्र मुगल सेना को अपनी सेवाएं देगा, जिस कारण मात्र 8 साल के संभाजी ने अपने पिता के साथ बीजापुर सरकार के खिलाफ औरंगजेब का साथ दिया था. शिवाजी और संभाजी ने खुद को औरंगजेब के दरबार में प्रस्तुत किया, जहाँ उन्हें नजरबंद करने का आदेश दे दिया गया, लेकिन वो वहां से किसी तरह बचकर भाग निकलने में सफल हुए.

🇮🇳 30 जुलाई 1680 को संभाजी और उनके अन्य सहयोगियों को सत्ता सौपी गयी. सम्भाजी को अपने पिता के सहयोगियों पर भरोसा नहीं था, इसलिए उन्होंने कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया. जो कि हिन्दी और संस्कृत के विद्वान थे और गैर-मराठी होने के कारण भी उन्हें मराठा अधिकारियों ने पसंद नहीं किया, इस तरह संभाजी के खिलाफ माहौल बनता चला गया और उनके शासन काल में कोई बड़ी उपलब्धि भी हासिल नहीं की जा सकी.

🇮🇳 सम्भाजी महाराज ने अपने छोटे से जीवन काल में हिन्दू समाज के हित में बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल की थी. जिसके प्रत्येक हिन्दू आभारी हैं. उन्होंने औरंगजेब की 8 लाख की सेना का सामना किया और कई युद्धों में मुगलों को पराजित भी किया. औरंगजेब जब महाराष्ट्र में युद्धों में व्यस्त था, तब उत्तर भारत में हिन्दू शासकों को अपना राज्य पुन: प्राप्त करने और शांति स्थापित करने के लिए काफी समय मिल गया. इस कारण ही वीर मराठाओं के लिए सिर्फ दक्षिण ही नहीं, बल्कि पूरे #राष्ट्र के हिन्दू उनके ऋणी हैं. क्यूंकि उस समय यदि संभाजी औरंगजेब के सामने समर्पण कर लेते या कोई संधि कर लेते, तो औरगंजेब अगले 2-3 वर्षों में उत्तर भारत के राज्यों को वापिस हासिल कर लेता,और वहां की आम प्रजा और राजाओं की समस्या बढ़ जाती है,यह संभाजी के सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिना जा सकता हैं. हालांकि सिर्फ संभाजी ही नहीं अन्य राजाओं के कारण भी औरगंजेब दक्षिण में 27 सालों तक विभिन्न लड़ाईयों में उलझा रहा, जिसके कारण उत्तर में बुंदेलखंड,पंजाब और राजस्थान में हिन्दू राज्यों में हिंदुत्व को सुरक्षित रखा जा सका.

संभाजी ने कई वर्षों तक मुगलों को महाराष्ट्र में उलझाए रखा. देश के पश्चिमी घाट पर मराठा सैनिक और मुगल कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था. संभाजी वास्तव में सिर्फ बाहरी आक्रामकों से हीं नहीं बल्कि अपने राज्य के भीतर भी अपने दुश्मनों से घिरे हुए थे. इन दोनों मोर्चों पर मिलने वाली छोटी छोटी सफलताओं के कारण ही संभाजी प्रजा के एक बड़े वर्ग के दिलों में अपनी जगह बना पा रहे थे.

🇮🇳 वो समय कुछ ऐसा था कि लगातार काफी समय तक पहाड़ और धरती वीर मराठों और मुगलों के खून से सनी रहती थी. फिर एक समय ऐसा आया जब सभी मराठा पहाड़ी से नीचे आ गए और इस तरह से मुगलों और मराठों के सेनापति अपनी सेनाओं के साथ आमने-सामने हो गए. लेकिन ये किसी मैदान में आमने-सामने होने जैसी स्थिति नहीं थी. इसमें मराठाओं का स्थान पहाड़ के निचले हिस्से से लेकर चोटी तक था, जबकि पहाड़ों के पास के मैदानों में मुगल सैनिकों ने अपना डेरा जमा रखा था. ऐसे में लगभग 7 वर्षों तक आघात और प्रतिघात का क्रम चला. जिसमें मुगलों द्वारा गढ़ को जीतना और मराठाओं द्वारा वापिस हासिल करना लगातार कठिन हो रहा था. हालात ये थे कि उत्तर भारत में कुछ राज्य सोचने लगे थे कि औरंगजेब कभी लौटकर दिल्ली नहीं आएगा और अंतत: हिंदुत्व के साथ जंग में हार जायेगा. इस बीच संभाजी ने 1682 में औरंगजेब के पुत्र अकबर को शरण देने की पेशकश भी की, जिसे राजपूत राजाओं ने बचा लिया.

🇮🇳 शिवाजी महाराज के समय ही मुगलों के दबाव में हिन्दू से मुस्लिम बने भाइयों की घर वापिसी शुरू हो गयी थी. शिवाजी महाराज ने सबसे पहले #नेताजी_पल्लकर को पुन: हिन्दू बनाया था, जिन्हें कि जबरन मृत्यु का भय दिखाकर इस्लाम अपनाने पर मजबूर किया गया था. संभाजी ने अपने पिता के सपने को साकर करने के लिए, इसे आगे ले जाते हुए इस दिशा में कई सराहनीय कदम उठाये. संभाजी महाराज ने इसके लिए अलग से विभाग ही बना दिया था, जो कि पुन: #धर्मान्तरण का कार्य देखता था. इस विभाग के अंतर्गत उन समस्याओं को देखा जाता था, जिसमें किसी व्यक्ति या परिवार को मुगलों ने जबरन इस्लाम बना दिया हो, लेकिन वे अपने हिन्दू धर्म को छोड़ना नहीं चाहते हो और वापिस हिन्दू बनने की मंशा रखते हो. इसके बारे में एक प्रसिद्ध किस्सा हैं कि हसुल गाँव में “कुलकर्णी नाम का ब्राह्मण हुआ करता था ,जिसे मुगलों ने जबरदस्ती मुसलमान बना दिया था. और उसने वापिस हिन्दू धर्म में आने की कोशिश की, लेकिन गाँव के ब्राह्मणों ने इसके लिए मना कर दिया, क्यूंकि उन्हें लगता था कि कुलकर्णी अब वेद-विरुद्ध पद्धति को अपनाकर  अशुद्ध हो गया हैं. लेकिन अंत में वह जाकर संभाजी महाराज से मिला और उन्होंने कुलकर्णी के लिए पुन: धरमांतरण की विधि और अनुष्ठान का आयोजन किया. संभाजी द्वारा किए गए इस नेक प्रयास से उस समय जैसे कोई परिवर्तन की लहर  उठी. और इस तरह से बहुत से हिन्दू से मुस्लिम बने लोग अपने धर्म में लौट आये.

संभाजी भगवान #शिव के परम भक्त थे, जो अपने अंतिम समय तक मुगलों के सामने भी हिन्दू देव भगवान शिव का अनुसरण करते रहे. संभाजी का एक नाम शम्भूजी था, जो कि महादेव का ही एक नाम हैं. संभाजी को जब शिवाजी के साथ औरगंजेब की शरण में जाना पड़ा था, तब उन्होंने महाराष्ट्र से लेकर काशी विश्वनाथ से होते हुए दिल्ली तक की कठोर यात्रा की थी, जिसमें उनके जीवन के कई प्रारम्भिक वर्ष निकल गए. इसी दौरान बाल शम्भु को महादेव में अपने इष्ट दिखने लगे और शम्भु राजे ने शिव-शम्भू की आराधना शुरू कर दी.
🇮🇳 वास्तव में महान शिवाजी के देहांत के बाद 1680 में मराठों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. औरंगजेब को लगा था कि शिवाजी के बाद उनका पुत्र संभाजी ज्यादा समय तक टिक नहीं सकेगा, इसलिए शिवाजी की मृत्यु के बाद 1680 में औरगंजेब दक्षिण की पठार की तरफ आया, उसके साथ 400,000 जानवर और 50 लाख की सेना थी. औरंगजेब ने बीजापुर की सल्तनत के आदिलशाह और गोलकोंडा की सल्तनत के कुतुबशाही को परस्त किया और वहां अपने सेनापति क्रमश: मुबारक खान और शार्जखन को नियुक्त किया. इसके बाद औरंगजेब ने मराठा राज्य का रुख किया और वहां संभाजी की सेना का सामना किया. 1682 में मुगलों ने मराठों के #रामसेई दुर्ग को घेरने की कोशिश की लेकिन 5 महीने के प्रयासों के बाद भी वो सफल ना हो सके. फिर 1687 में वाई के युद्ध में मराठा सैनिक मुगलों के सामने कमजोर पड़ने लगे. वीर मराठाओं के सेनापति हम्बिराव मोहिते शहिद हो गए और सैनिक सेना छोडकर भागने लगे. संभाजी इसी दौरान #संघमेश्वर में 1689 फरवरी को मुगलों के हाथ लग गए.
🇮🇳 1689 तक स्थितियां बदल चुकी थी. मराठा राज संगमेश्वर में शत्रुओं के आगमन से अनभिज्ञ था. ऐसे में मुक़र्राब खान के अचानक आक्रमण से मुग़ल सेना महल तक पहुँच गयी और संभाजी के साथ कवि कलश को बंदी बना लिया. उन दोनों को कारागार में डाला गया और उन्हें वेद-विरुद्ध इस्लाम अपनाने को विवश किया गया.
🇮🇳 औरंगजेब के शासन काल के आधिकारिक इतिहासकार मसिर प्रथम अम्बारी और कुछ मराठा सूत्रों के अनुसार कैदियों को चैनों से जकडकर हाथी के हौदे से बांधकर औरंगजेब के कैंप तक ले जाया जाता था जो कि अकलूज में था. मुगल शासक तक ये खबर पहले ही पहुँच चुकी थी और उन्होंने इसके लिए एक बड़े महोत्सव के आयोजन की घोषणा की. मुगलों ने पूरे मार्ग में विजयी सेनापतियों के लिए उत्सव का आयोजन और स्वागत किया. मुगलों की जीत के जश्न के लिए शेख निज़ाम का चित्र बनवाया गया. मुगल पुरुष सड़कों पर और झरोखों से झाँकती महिलाएँ बुरखे के भीतर से हारे हुए मराठा को देखने को उत्सुक थी, जबकि राह में पड़ने वाले हर मुगल उनकी हँसी उड़ा रहे थे और कोई तो अपमान में मुँह पर थूक भी रहा था. मुगलों में मिले हुए राजपूत सैनिकों को संभाजी के लिए बहुत सहानुभूति थी. संभाजी ने उन्होंने ललकारते हुए कहा था, कि या तो वे उन्हें खुला छोड़कर सन्मुख युद्ध कर ले या फिर उन्हें मारकर इस अपमान से मुक्ति दे, लेकिन मुगलों के डर से वो सैनिक खामोश थे. इस तरह 5 दिन तक चलने के बाद वो लोग औरंगजेब के दरबार में पहुँचे.
औरंगजेब संभाजी को देखकर अपने सिंहासन से नीचे उतरकर आया और उसने कहा कि मराठाओं का आतंक कुछ ज्यादा ही हो गया था, वीर शिवाजी के पुत्र का मेरे सामने खड़े होना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, ऐसा कहकर औरंगजेब ने अपने अल्लाह को याद करने के लिए घुटने टेके. कवि कलश उस समय चैनों से बँधे हुए एक तरफ खड़े थे, लेकिन उन्होंने संभाजी की तरफ देखा और कहा कि हे मराठा राजे! देखिये आलमगीर खुद अपने सिंहासन से उठकर आपके आगे श्रद्धा से नतमस्तक होने आये हैं. कलश ने उन विपरीत परिस्थियों में भी वीरता दिखाते हुए कहा, कि औरंगजेब अपने दुश्मन संभाजी राजे के सामने घुटने टेक रहे हैं. 🇮🇳 इससे औरंगजेब आग बबूला हो गया और उसने उन दोनों को तहखाने में डालने का आदेश दे दिया.औरंगजेब ने शेख निजाम को फ़तेह जंग खान-ए-आजम की उपाधि देने की घोषणा की, साथ ही 50,000 रूपये,एक घोडा,एक हाथी, और 6000 सैनिकों की टुकड़ी देने की घोषणा की. इसके अलावा उसके पुत्र इकलास और भतीजे को भी उपहार और सेना में उच्च पद देने की घोषणा की. 🇮🇳 मुगल नायकों ने संभाजी को सुझाव दिया, कि वे यदि अपना पूरा राज्य और सभी किले औरंगजेब को सौंप दे, तो औरंगजेब संभाजी की जान बख्श देगा. संभाजी ने इस बात से मना कर दिया. इसके बाद मुगल अपने उस उद्देश्य पर लौट आये, जिसके लिए उन्होंने भारत पर आक्रमण किया था. जिसमें गैर-मुस्लिम को मुस्लिम बनाना और जनता को लूटना और महिलाओं का शील भंग मुख्य कार्य था. संभाजी ये सब देखकर बहुत आहत हो रहे थे. ऐसे में संभाजी की हालत देख उन्हें फिर से औरंगजेब का ये सन्देश आया, कि वो यदि इस्लाम अपना लेते हैं, तो उन्हें ऐशो-आराम की जिंदगी दी जायेगी. लेकीन संभाजी ने साफ़ कह दिया, कि आलमगीर देश का सबसे बड़ा शत्रु हैं और वो ऐसी कोई संधि नहीं कर सकते, जो उनके राष्ट्र के सम्मान के विपरीत हो. 🇮🇳 कठोर यातनाओं के बाद भी ना झुकने पर संभाजी और कलश को कैद से निकालकर घंटी वाली टोपी पहना दी. उनके हाथ में झुनझुना बाँध कर उन्हें ऊँटो से बाँध दिया गया और तुलापुर के बाज़ार में घसीटा जाने लगा, मुगल लगातार उनका अपमान कर रहे थे और उन पर थूक रहे थे. उन्हें जबरदस्ती घसीटा जा रहा था, जिसके कारण झुनझुने की आवाज़ को साफ़ सुना जा सकता था. मुगल अपनी असलियत का परिचय देते हुए, ये सब देखकर क्रूरता से हँस रहे थे और उपहास कर रहे थे. मंत्री कलश भी ऐसे में हार मानने वालो में से नहीं थे, वो लगातार भगवान का जाप कर रहे थे, जब उनके बाल खींच कर उन्हें इस्लाम कबूलने के लिए कहा जा रहा था, तब भी उन्होंने साफ़ तौर पर इससे ना कह दिया और कहा, कि #हिंदुत्व सभी धर्मो से ऊपर सच्चा और शान्ति प्रिय धर्म हैं. मराठाओं के लिए अपने राजा के अपमान को देखना बहुत बड़ी बाध्यता थी.
औरंगजेब ने कई बार कहा कि वो संभाजी को क्षमा कर देगा, लेकिन वो यदि अब भी इस्लाम कबूल ले. संभाजी ने मुगलों का उपहास उड़ाते हुए कहा, कि वह मुस्लिमों के समान मूर्ख नहीं है, जो ऐसे मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति (मोहम्मद) के सामने घुटने टेके. फिर संभाजी ने अपने हिन्दू आराध्य महादेव को याद किया और कहा कि धर्म-अधर्म के भेद को देखने और समझने के बाद  वो अपना जीवन हज़ारों बार हिंदुत्व और राष्ट्र को समर्पित करने को तैयार हैं. और इस तरह संभाजी म्लेच्छ औरंगजेब के आगे नहीं झुके, इससे पहले तक किसी ने भी अल्लाह, मोहम्मद, इस्लाम के खिलाफ खुलकर इतना कुछ नहीं बोला था. औरंगजेब ने इससे क्रोधित होकर आदेश दिया, की संभाजी के घावों पर नमक छिड़का जाए. और उन्हें घसीटकर औरंगजेब के सिंहासन के नीचे लाया जाए. फिर भी संभाजी लगातार भगवान् शिव का नाम जपे चले जा रहे थे. फिर उनकी जीभ काट दी गई और आलमगीर के पैरों में राखी गयी, जिसने इसे कुत्तों को खिलाने का आदेश दे दिया. लेकिन औरंगजेब भूल गया था, कि वो जीभ काटकर भी संभाजी के दिल और दिमाग से कभी देशभक्ति और भगवद भक्ति को अलग नहीं कर सकता.
🇮🇳 संभाजी अब भी मुस्कुराते हुए भगवान् शिव की आरधना कर रहे थे और मुगलों की तरफ गर्व भरी दृष्टि से देख रहे थे. इस पर उनकी आँखे निकाल दी गयी और फिर उनके दोनों हाथ भी एक-एक कर काट दिए गए. और ये सब धीरे-धीरे हर दिन संभाजी को प्रताड़ित करने के लिए किया जाने लगा. संभाजी के दिमाग में तब भी अपने पिताजी वीर शिवाजी की यादें ही थी, जो उन्हें प्रतिक्षण इन विपरीत परिस्थिति का सामना करने के लिए प्रेरित कर रही थी. हाथ काटने के भी लगभग 2 सप्ताह के बाद 11 मार्च 1689 को उनका सर भी धड से अलग किया गया. उनका कटा हुआ सर महाराष्ट्र के कस्बों में जनता के सामने  चौराहों पर रखा गया, जिससे कि मराठाओं में मुगलों का भी व्याप्त हो सके. जबकि उनके शरीर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर तुलापुर के कुत्तों को खिलाया गया. लेकिन ये सब वीर मराठा पर अपना प्रभाव नहीं जमा सके. अंतिम क्षणों तक भगवान शिव का जाप करने वाले बहादुर राजा के इस बलिदान से हिन्दू मराठाओ में अपने राजा के प्रति सम्मान  मुगलों के प्रति आक्रोश और बढ़ गया. एक अन्य किवदंती के अनुसार संभाजी का वध “वाघ नाखले” मतलब चीते के नाखूनों से किया गया था,उन्हें दो हिस्सों में चीरकर फाड़ा गया था और कुल्हाड़ी से सर काटकर पुणे के पास तुलापुर में भीमा नदी के किनारे पर फेंका गया था.
साभार: deepawali.co.in
🇮🇳 मराठा सम्राट और छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी #संभाजी_राजे #Sambhaji_Rajeजी को उनके बलिदान दिवस पर कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !
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#भगवान_शिव_के_परम_भक्त_सम्भाजी
#Sambhaji, a great devotee of Lord Shiva
🔱 हर हर महादेव 🔱
#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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10 मार्च 2024

Professor Udipi Ramachandra Rao | प्रोफेसर उडिपी रामचंद्र राव | Scientist |10 March 1932 - 24 July 2017

 



प्रोफेसर राव को साल 2017 में देश के दूसरे सर्वोच्च सम्मान 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया. भारत आज अंतरिक्ष की ऊंचाइयां छू रहा है तो इसमें प्रोफेसर उडुपी रामचंद्र राव का सबसे बड़ा योगदान है. साल 1975 में भारत ने अपना सैटेलाइट आर्यभट्ट लॉन्च किया था, तो इसके कर्ता-धर्ता थे प्रोफेसर उडुपी रामचंद्र राव थे | उन्हें " भारत का सैटेलाइट मैन " कहा जाता है।

 भारत के एक अन्तरिक्ष वैज्ञानिक तथा भारतीय उपग्रह कार्यक्रम के वास्तुकार थेजन्म:10 मार्च 1932, निधन: 24 जुलाई 2017

निधन से पूर्व वे तिरुवनंतपुरम में स्थित भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान के कुलपति के रूप में कार्यरत थे। उनको भारत सरकार द्वारा सन 1976 में विज्ञान एवं अभियान्त्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण से तथा वर्ष 2017 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

भारत के पहले #उपग्रह_आर्यभट्ट के अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपण के नेतृत्वकर्ता, #पद्मभूषण तथा #पद्मविभूषण से सम्मानित #अंतरिक्ष #space #वैज्ञानिक #Scientist और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (#इसरो (#ISRO)) के भूतपूर्व अध्यक्ष #उडुपी_रामचन्द्र_राव जी को उनकी जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र का नमन !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Suruj Bai Khande | सुरुज बाई खांडे | छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध भरथरी गायिका | June 12, 1949-March 10, 2018

 



सुरुज बाई खांडे (जन्म- 12 जून, 1949; मृत्यु- 10 मार्च, 2018) छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध भरथरी #गायिका थीं। उन्हें 1986-1987 में सोवियत रूस में हुए 'भारत महोत्सव' का हिस्सा बनने का मौका मिला था। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा उन्हें 'दाऊ रामचंद्र देशमुख' और 'स्व. देवदास बंजारे स्मृति पुरस्कार' भी मिला।

🇮🇳 सुरुज बाई खांडे का जन्म 12 जून, 1949 में #बिलासपुर जिले के एक सामान्य ग्रामीण परिवार में हुआ था। उन्होंने महज सात साल की उम्र में अपने नाना #रामसाय_धृतलहरे से #भरथरी, #ढोला_मारू, #चंदैनी जैसी लोक कथाओं को सीखना शुरू कर दिया था।

🇮🇳 इन्हें सबसे पहले #रतनपुर मेले में गायन का मौका मिला। इसके बाद 'मध्य प्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद' ने उनके इस हुनर को पहचाना और उन्हें 1986-1987 में सोवियत रूस में हुए 'भारत महोत्सव' का हिस्सा बनने का मौका मिला।

🇮🇳 सुरुज बाई खांडे को एसईसीएल में आर्गनाइजर की नौकरी मिली थी, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व मोटर साइकिल से दुर्घटना होने की वजह से नौकरी कर पाना संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने 2009 में ही रिटायरमेंट ले लिया।

🇮🇳 10 मार्च, 2018 को बिलासपुर के एक निजी अस्पताल में 69 वर्ष की उम्र में सुरुज बाई खांडे की मृत्यु हो गई।

🇮🇳 2000-2001 में सुरुज बाई खांडे को मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 'देवी अहिल्या बाई सम्मान' से नवाजा था। इसके अलावा छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा 'दाऊ रामचंद्र देशमुख' और 'स्व. देवदास बंजारे स्मृति पुरस्कार' भी मिले।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 दाऊ रामचंद्र देशमुख पुरस्कार, स्व. देवदास बंजारे स्मृति पुरस्कार और देवी अहिल्या बाई सम्मान से विभूषित; 1986-1987 में सोवियत रूस में हुए 'भारत महोत्सव' का हिस्सा बनीं, #छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध #भरथरी #गायिका #bharthari #singer #सुरुज_बाई_खांडे जी #suruj_bai_khande को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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