शिवाजी के पुत्र के रूप में विख्यात संभाजी महाराज का जीवन भी अपने पिता छत्रपति #शिवाजी_महाराज के समान ही #देश और #हिंदुत्व को समर्पित रहा. सम्भाजी ने अपने बाल्यपन से ही राज्य की राजनीतिक समस्याओं का निवारण किया था. और इन दिनों में मिले संघर्ष के साथ शिक्षा-दीक्षा के कारण ही बाल शम्भुजी राजे कालान्तर में वीर संभाजी राजे बन सके थे.
🇮🇳 छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 1657 में 14 मई को #पुरंदर किले में हुआ था. लेकिन संभाजी के 2 वर्ष के होने तक #साईबाई का देहांत हो गया था, इसलिए संभाजी का पालन-पोषण शिवाजी की माँ #जीजाबाई ने किया था. संभाजी महाराज को #छवा कहकर भी बुलाया जाता था, जिसका मराठी में मतलब होता हैं शावक अर्थात शेर का बच्चा. संभाजी महाराज संस्कृत और 8 अन्य भाषाओं के ज्ञाता थे.
🇮🇳 सम्भाजी राजा वीर छत्रपति शिवाजी के पुत्र थे, संभाजी की माता का नाम सईबाई था. ये छत्रपति शिवाजी की दूसरी पत्नी थी. सम्भाजी राजे के परिवार में पिता शिवाजी और माता साईबाई के अलावा दादा #शाहजी_राजे, दादी जीजाबाई और भाई-बहन थे. शिवाजी के 3 पत्नियाँ थी – #साईंबाई, #सोयराबाई और #पुतलाबाई.
🇮🇳 साईबाई के पुत्र संभाजी राजे थे. सम्भाजी के एक भाई #राजाराम छत्रपति भी थे, जो कि सोयराबाई के पुत्र थे. इसके अलावा संभाजी के शकुबाई, अम्बिकाबाई, रणुबाई जाधव, दीपा बाई, कमलाबाई पलकर, राज्कुंवार्बाई शिरके नाम की बहनें थी. सम्भाजी का विवाह #येसूबाई से हुआ था और इनके पुत्र का नाम छत्रपति #साहू था.
🇮🇳 सम्भाजी का बचपन बहुत कठिनाईयों और विषम परिस्थितियों से गुजरा था. संभाजी की सौतेली माता सोयराबाई की मंशा अपने पुत्र राजाराम को शिवाजी का उत्तराधिकारी बनाने की थी. सोयराबाई के कारण संभाजी और छत्रपति शिवाजी के मध्य सम्बन्ध ख़राब होने लगे थे. संभाजी ने कई मौकों पर अपनी बहादुरी भी दिखाई, लेकिन शिवाजी और उनके परिवार को संभाजी पर विश्वास नहीं हो पा रहा था. ऐसे में एक बार शिवाजी ने संभाजी को सजा भी दी, लेकिन संभाजी भाग निकले और जाकर मुगलों से मिल गए. यह समय शिवाजी के लिए सबसे मुश्किल समय था. संभाजी ने बाद में जब मुगलों की हिन्दुओं के प्रति नृशंसता देखी, तो उन्होंने मुगलों का साथ छोड़ दिया, उन्हे अपनी गलती का अहसास हुआ और शिवाजी के पास वापिस माफ़ी माँगने लौट आये.
बचपन में संभाजी जब मुग़ल शासक औरंगजेब की कैद से बचकर भागे थे, तब वो अज्ञातवास के दौरान शिवाजी के दूर के मंत्री रघुनाथ कोर्डे के दूर के रिश्तेदार के यहाँ कुछ समय के लिए रुके थे. वहाँ संभाजी लगभग 1 से डेढ़ वर्ष के लिए रुके थे, तब संभाजी ने कुछ समय के लिए ब्राह्मण बालक के रूप में जीवन यापन किया था. इसके लिए मथुरा में उनका उपनयन संस्कार भी किया गया और उन्हें संस्कृत भी सिखाई गयी. इसी दौरान संभाजी का परिचय #कवि_कलश से हुआ. संभाजी का उग्र और विद्रोही स्वभाव को सिर्फ कवि कलश ही सँभाल सकते थे.
🇮🇳 कलश के सम्पर्क और मार्गदर्शन से संभाजी की साहित्य की तरफ रूचि बढ़ने लगी. संभाजी ने अपने पिता शिवाजी के सम्मान में संस्कृत में बुधाचरित्र भी लिखा था.इसके अलावा मध्य काल के संस्कृत का उपयोग करते हुए संभाजी ने #श्रृंगारिका भी लिखा था.
🇮🇳 11 जून 1665 को पुरन्दर की संधि में शिवाजी ने यह सहमति दी थी, कि उनका पुत्र मुगल सेना को अपनी सेवाएं देगा, जिस कारण मात्र 8 साल के संभाजी ने अपने पिता के साथ बीजापुर सरकार के खिलाफ औरंगजेब का साथ दिया था. शिवाजी और संभाजी ने खुद को औरंगजेब के दरबार में प्रस्तुत किया, जहाँ उन्हें नजरबंद करने का आदेश दे दिया गया, लेकिन वो वहां से किसी तरह बचकर भाग निकलने में सफल हुए.
🇮🇳 30 जुलाई 1680 को संभाजी और उनके अन्य सहयोगियों को सत्ता सौपी गयी. सम्भाजी को अपने पिता के सहयोगियों पर भरोसा नहीं था, इसलिए उन्होंने कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया. जो कि हिन्दी और संस्कृत के विद्वान थे और गैर-मराठी होने के कारण भी उन्हें मराठा अधिकारियों ने पसंद नहीं किया, इस तरह संभाजी के खिलाफ माहौल बनता चला गया और उनके शासन काल में कोई बड़ी उपलब्धि भी हासिल नहीं की जा सकी.
🇮🇳 सम्भाजी महाराज ने अपने छोटे से जीवन काल में हिन्दू समाज के हित में बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल की थी. जिसके प्रत्येक हिन्दू आभारी हैं. उन्होंने औरंगजेब की 8 लाख की सेना का सामना किया और कई युद्धों में मुगलों को पराजित भी किया. औरंगजेब जब महाराष्ट्र में युद्धों में व्यस्त था, तब उत्तर भारत में हिन्दू शासकों को अपना राज्य पुन: प्राप्त करने और शांति स्थापित करने के लिए काफी समय मिल गया. इस कारण ही वीर मराठाओं के लिए सिर्फ दक्षिण ही नहीं, बल्कि पूरे #राष्ट्र के हिन्दू उनके ऋणी हैं. क्यूंकि उस समय यदि संभाजी औरंगजेब के सामने समर्पण कर लेते या कोई संधि कर लेते, तो औरगंजेब अगले 2-3 वर्षों में उत्तर भारत के राज्यों को वापिस हासिल कर लेता,और वहां की आम प्रजा और राजाओं की समस्या बढ़ जाती है,यह संभाजी के सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिना जा सकता हैं. हालांकि सिर्फ संभाजी ही नहीं अन्य राजाओं के कारण भी औरगंजेब दक्षिण में 27 सालों तक विभिन्न लड़ाईयों में उलझा रहा, जिसके कारण उत्तर में बुंदेलखंड,पंजाब और राजस्थान में हिन्दू राज्यों में हिंदुत्व को सुरक्षित रखा जा सका.
संभाजी ने कई वर्षों तक मुगलों को महाराष्ट्र में उलझाए रखा. देश के पश्चिमी घाट पर मराठा सैनिक और मुगल कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था. संभाजी वास्तव में सिर्फ बाहरी आक्रामकों से हीं नहीं बल्कि अपने राज्य के भीतर भी अपने दुश्मनों से घिरे हुए थे. इन दोनों मोर्चों पर मिलने वाली छोटी छोटी सफलताओं के कारण ही संभाजी प्रजा के एक बड़े वर्ग के दिलों में अपनी जगह बना पा रहे थे.
🇮🇳 वो समय कुछ ऐसा था कि लगातार काफी समय तक पहाड़ और धरती वीर मराठों और मुगलों के खून से सनी रहती थी. फिर एक समय ऐसा आया जब सभी मराठा पहाड़ी से नीचे आ गए और इस तरह से मुगलों और मराठों के सेनापति अपनी सेनाओं के साथ आमने-सामने हो गए. लेकिन ये किसी मैदान में आमने-सामने होने जैसी स्थिति नहीं थी. इसमें मराठाओं का स्थान पहाड़ के निचले हिस्से से लेकर चोटी तक था, जबकि पहाड़ों के पास के मैदानों में मुगल सैनिकों ने अपना डेरा जमा रखा था. ऐसे में लगभग 7 वर्षों तक आघात और प्रतिघात का क्रम चला. जिसमें मुगलों द्वारा गढ़ को जीतना और मराठाओं द्वारा वापिस हासिल करना लगातार कठिन हो रहा था. हालात ये थे कि उत्तर भारत में कुछ राज्य सोचने लगे थे कि औरंगजेब कभी लौटकर दिल्ली नहीं आएगा और अंतत: हिंदुत्व के साथ जंग में हार जायेगा. इस बीच संभाजी ने 1682 में औरंगजेब के पुत्र अकबर को शरण देने की पेशकश भी की, जिसे राजपूत राजाओं ने बचा लिया.
🇮🇳 शिवाजी महाराज के समय ही मुगलों के दबाव में हिन्दू से मुस्लिम बने भाइयों की घर वापिसी शुरू हो गयी थी. शिवाजी महाराज ने सबसे पहले #नेताजी_पल्लकर को पुन: हिन्दू बनाया था, जिन्हें कि जबरन मृत्यु का भय दिखाकर इस्लाम अपनाने पर मजबूर किया गया था. संभाजी ने अपने पिता के सपने को साकर करने के लिए, इसे आगे ले जाते हुए इस दिशा में कई सराहनीय कदम उठाये. संभाजी महाराज ने इसके लिए अलग से विभाग ही बना दिया था, जो कि पुन: #धर्मान्तरण का कार्य देखता था. इस विभाग के अंतर्गत उन समस्याओं को देखा जाता था, जिसमें किसी व्यक्ति या परिवार को मुगलों ने जबरन इस्लाम बना दिया हो, लेकिन वे अपने हिन्दू धर्म को छोड़ना नहीं चाहते हो और वापिस हिन्दू बनने की मंशा रखते हो. इसके बारे में एक प्रसिद्ध किस्सा हैं कि हसुल गाँव में “कुलकर्णी नाम का ब्राह्मण हुआ करता था ,जिसे मुगलों ने जबरदस्ती मुसलमान बना दिया था. और उसने वापिस हिन्दू धर्म में आने की कोशिश की, लेकिन गाँव के ब्राह्मणों ने इसके लिए मना कर दिया, क्यूंकि उन्हें लगता था कि कुलकर्णी अब वेद-विरुद्ध पद्धति को अपनाकर अशुद्ध हो गया हैं. लेकिन अंत में वह जाकर संभाजी महाराज से मिला और उन्होंने कुलकर्णी के लिए पुन: धरमांतरण की विधि और अनुष्ठान का आयोजन किया. संभाजी द्वारा किए गए इस नेक प्रयास से उस समय जैसे कोई परिवर्तन की लहर उठी. और इस तरह से बहुत से हिन्दू से मुस्लिम बने लोग अपने धर्म में लौट आये.
#आजादी_का_अमृतकाल
साभार: चन्द्र कांत (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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