05 मार्च 2024

Revolutionary Sushila Didi | भगत सिंह की 'दीदी' क्रांतिकारी सुशीला दीदी

 




भारत के #स्वतंत्रता संग्राम के #क्रांतिकारी वीरों के बलिदान से हम ज़्यादातर भारतीय परिचित हैं। शहीद- ए- आजम #भगत_सिंह की कुर्बानी की गाथाएं हर गली-मोहल्ले में सुनाई जाती हैं। लेकिन उनका साथ देने वाली महिला क्रांतिकारियों के बारे में लोगों को बहुत ही कम जानकारी है। आज हम आपको उनकी टोली की एक और महिला क्रांतिकारी, सुशीला मोहन यानी कि भगत सिंह की #सुशीला_दीदी #Sushila_Didiके बारे में बता रहे हैं।

🇮🇳 5 मार्च 1905 को पंजाब के #दत्तोचूहड़ (अब पाकिस्तान) में जन्मीं दीदी की शिक्षा जालंधर के आर्य कन्या महाविद्यालय में हुई। उनके पिता अंग्रेजी सेना में नौकरी करते थे। पढ़ाई के दौरान सुशीला क्रांतिकारी दलों से जुड़े छात्र-छात्राओं के संपर्क में आईं। उनका मन भी #देशभक्ति में रमने लगा और देखते ही देखते, वह खुद क्रांति का हिस्सा बन गईं। 

🇮🇳 लोगों को जुलूस के लिए इकट्ठा करना, गुप्त सूचनाएं पहुँचाना और क्रांति के लिए चंदा इकट्ठा करना उनका काम हुआ करता था। यहाँ पर उनका मिलना-जुलना भगत सिंह और उनके साथियों से भी हुआ। यहाँ पर उनकी मुलाक़ात #भगवती_चरण और उनकी पत्नी #दुर्गा_देवी_वोहरा से हुई।

🇮🇳 यह सुशीला दीदी ही थीं जिन्होंने दुर्गा देवी को #दुर्गा_भाभी बना दिया। उन्होंने ही सबसे पहले यह संबोधन उन्हें दिया और फिर हर कोई क्रांतिकारी उन्हें सम्मान से दुर्गा भाभी कहने लगा और सुशीला को सुशीला दीदी।

🇮🇳 कहते हैं कि भगत सिंह भी सुशीला दीदी को बड़ी बहन की तरह सम्मान करते थे। ब्रिटिश सरकार की बहुत सी योजनाओं के खिलाफ सुशीला दीदी ने उनकी मदद की थी।

🇮🇳 #काकोरी_क्रांति #Kakori_Krantiमें जब #राम_प्रसाद_बिस्मिल और उनके साथी पकड़े गए तो उन पर मुकदमा चला। मुकदमे की पैरवी को आगे बढ़ाने के लिए धन की ज़रूरत थी। ऐसे में, सुशीला दीदी ने दस तोला #सोना दिया। बताया जाता है कि यह सोना उनकी माँ ने उनकी शादी के लिए रखा था। पर इस वीरांगना ने इसे अपने देश की आज़ादी के लिए दे दिया क्योंकि उन्हें किसी भी दौलत से ज्यादा आज़ादी से प्यार था। लेकिन यह देश की बदकिस्मती थी कि काकोरी ट्रेन को लूटकर अंग्रेजों की नींद उड़ाने वाले क्रांतिकारियों में से 4 को फाँसी की सजा सुना दी गई।

🇮🇳 इस खबर ने सुशीला दीदी और उनके जैसे बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों को झकझोर दिया था। पर उनके कदम नहीं डगमगाए बल्कि सुशीला दीदी तो अपने घरवालों के खिलाफ चली गईं। उनके पिता ने जब उन्हें राजनीति और क्रांति से दूर रहने के लिए समझाया तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि घर छूटे तो छूटे लेकिन उनके #कदम देश को आज़ादी दिलाये बिना नहीं रुकेंगे।

🇮🇳 पढ़ाई पूरी करने के बाद, सुशीला दीदी कोलकाता में शिक्षिका की नौकरी करने लगीं। यहाँ पर रहते हुए भी वह लगातार क्रांतिकारियों की मदद कर रही थीं। साल था 1928, जब साइमन कमीशन का विरोध करते समय #लाला_लाजपतराय पर लाठियाँ बरसाने वाले ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स को मारने के बाद भगतसिंह, दुर्गा भाभी के साथ छद्म वेश में कलकत्ता पहुँचे।

🇮🇳 उस समय भगवती चरण भी कलकत्ता में ही थे। लखनऊ स्टेशन से ही भगत सिंह ने भगवती और सुशीला दीदी को पत्र लिख दिया था। कलकत्ता स्टेशन पर सुशीला दीदी और भगवती उन्हें लेने के लिए पहुंचे।

🇮🇳 कलकत्ता में सुशीला दीदी ने भगत सिंह को वहीं ठहराया, जहाँ वह खुद रह रहीं थी ताकि ब्रिटिश सरकार को पता न चल सके। सुशीला दीदी की मदद से भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारी ने अपनी अगली योजना पर काम किया।

🇮🇳 8 अप्रैल 1929 को #भगतसिंह और #बटुकेश्वर_दत्त को केन्द्रीय असेम्बली में बम विस्फोट करने के लिए भेजना तय किया गया और उस समय #सुशीला_दीदी, #दुर्गा_भाभी और भगवती चरण के साथ लाहौर में ही थीं। अपने मिशन पर निकलने से पहले भगत सिंह उनसे मिलने भी आए थे।

🇮🇳 लेकिन जैसा कि हम सब जानते हैं कि इस हमले में भगत सिंह की गिरफ्तारी हो गई। भगतसिंह और उनके साथियों पर जब ‘लाहौर षड्यन्त्र केस’ चला तो दीदी भगतसिंह के बचाव के लिए चंदा जमा करने कलकत्ता पहुँचीं। भवानीपुर में सभा का आयोजन हुआ और जनता से ‘भगतसिंह डिफेन्स फंड’ के लिए धन देने की अपील की गई। कलकत्ता में दीदी ने अपने इस अभियान के लिए अपनी महिला टोली के साथ एक नाटक का मंचन करके भी 12 हजार रूपए जमा किए थे। यहाँ तक कि उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और पूरा समय क्रांतिकारी दल को देने लगीं।

🇮🇳 अन्य क्रांतिकारियों के साथ-साथ सुशीला भी अंग्रेजों की नज़र में आने लगीं थीं। उनके खिलाफ गिरफ्तारी का आदेश जारी हो चुका था। लेकिन इसकी परवाह किए बिना भी उन्होंने #जतिंद्र_नाथ की मृत्यु के बाद, दुर्गा भाभी के साथ मिलकर भारी जुलूस निकाला। जन-जन के दिल में क्रांति की आग को भड़काया। उन्हें साल 1932 में गिरफ्तार भी किया गया। छह महीने की सजा के बाद उन्हें छोड़ा गया और उन्हें अपने घर पंजाब लौटने की हिदायत मिली।

🇮🇳 साल 1933 में उन्होंने अपने एक सहयोगी वकील #श्याम_मोहन से विवाह किया, जो खुद स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए थे। साल 1942 के आंदोलन में दोनों पति-पत्नी जेल भी गए। श्याम मोहन को दिल्ली में रखा गया और दीदी को लाहौर में। इतनी यातनाएं सहने के बाद भी उनके मन से देश को आज़ाद कराने का जज्बा बिल्कुल भी कम नहीं हुआ। आखिरकार, महान वीर-वीरांगनाओं की मेहनत रंग लायी और साल 1947 में देश को आज़ादी मिली।

🇮🇳 आज़ादी के बाद की ज़िंदगी, सुशीला दीदी ने दिल्ली में #गुमनामी में ही गुजारी। उन्होंने कभी भी अपने बलिदानों के बदले सरकार से किसी भी तरह की मदद या इनाम की अपेक्षा नहीं रखी। 

🇮🇳 3 जनवरी 1963 को भारत की इस बेटी ने दुनिया को अलविदा कहा। दिल्ली के चाँदनी चौक में एक सड़क का नाम ’सुशीला मोहन मार्ग’ रखा गया था, पर शायद ही कोई इस नाम के पीछे की कहानी से परिचित हो।

🇮🇳 अक्सर यही होता आया है… हमारा इतिहास महिलाओं के बलिदान और उनकी बहादुरी को अक्सर भूल जाता है। बहुत सी ऐसी नायिकाएं हमेशा छिपी ही रह जाती हैं। सुशीला मोहन भी उन्हीं नायिकाओं में से एक हैं!

🇮🇳 देश की आज़ादी के लिए मर-मिटने वाली ऐसी वीरांगनाओं को कोटि कोटि प्रणाम!

~ निशा डागर 

साभार: thebetterindia.com

🇮🇳 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना जीवन समर्पित करने वाली; त्याग, साहस और देशप्रेम की प्रतिमूर्ति अमर #वीरांगना #सुशीला_मोहन जी को उनकी जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 जय मातृभूमि 🇮🇳

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

#Revolutionary  #Sushila_Didi #05March

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Gangu Bai Hangal | Indian singer | गंगूबाई हंगल शास्त्रीय संगीत की प्रख्यात गायिका




#Gangu_Bai_Hangal | #गंगूबाई_हंगल

 उन्होंने आर्थिक संकट, पड़ोसियों द्वारा जातीय आधार पर उड़ाई गई खिल्ली और भूख से लगातार लड़ाई करते हुए भी उच्च स्तर का संगीत दिया। 🇮🇳

🇮🇳 #भारतीय_शास्त्रीय_संगीत  #Indian_Classical_Music की नब्ज पकड़ कर और किराना घराना की विरासत को बरकरार रखते हुए परंपरा की आवाज का प्रतिनिधित्व करने वाली गंगूबाई हंगल ने लिंग और जातीय बाधाओं को पार कर संगीत क्षेत्र में आधे से अधिक सदी तक अपना योगदान दिया। 

🇮🇳 गंगूबाई का जन्म 5 मार्च 1913 को एक केवट परिवार में हुआ था। उनके संगीत कॅरियर के शिखर तक पहुँचने के बारे में एक #अतुल्य_संघर्ष की कहानी है। उन्होंने आर्थिक संकट, पड़ोसियों द्वारा जातीय आधार पर उड़ाई गई खिल्ली और भूख से लगातार लड़ाई करते हुए भी उच्च स्तर का संगीत दिया। कर्नाटक के एक गॉंव हंगल की रहने वाली गंगूबाई को बचपन में अक्सर जातीय टिप्पणी का सामना करना पड़ा और उन्होंने जब गायकी शुरू की तब उन्हें उन लोगों ने गाने वाली कह कर पुकारा जो इसे एक अच्छे पेशे के रूप में नहीं देखते थे।

🇮🇳 गंगूबाई हंगल ने कई बाधाओं को पार कर अपनी गायिकी को एक मुकाम तक पहुँचाया और उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण, तानसेन पुरस्कार, कर्नाटक संगीत नृत्य अकादमी पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी जैसे पुरस्कारों से नवाजा गया। 

🇮🇳 पुरानी पीढ़ी की एक नेतृत्वकर्ता गंगूबाई ने गुरु शिष्य परंपरा को बरकरार रखा। उनमें संगीत के प्रति जन्मजात लगाव था और यह उस वक्त दिखाई पड़ता था जब अपने बचपन के दिनों में वह ग्रामोफोन सुनने के लिए सड़क पर दौड़ पड़ती थीं और उस आवाज की नकल करने की कोशिश करती थीं। 

🇮🇳 अपनी बेटी में संगीत की प्रतिभा को देखकर गंगूबाई की संगीतज्ञ माँ ने कर्नाटक संगीत के प्रति अपने लगाव को दूर रख दिया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी बेटी संगीत क्षेत्र के #एच_कृष्णाचार्य जैसे दिग्गज और किराना उस्ताद #सवाई_गंधर्व से सर्वश्रेष्ठ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखे। 

🇮🇳 गंगूबाई ने अपने गुरु सवाई गंधर्व की शिक्षाओं के बारे में एक बार कहा था कि मेरे गुरुजी ने यह सिखाया कि जिस तरह से एक कंजूस अपने पैसों के साथ व्यवहार करता है। उसी तरह सुर का इस्तेमाल करो ताकि श्रोता राग की हर बारीकी के महत्व को समझ सके।

🇮🇳 संगीत के प्रति गंगूबाई का इतना लगाव था कि #कंदगोल स्थित अपने गुरु के घर तक पहुँचने के लिए वह 30 किलोमीटर की यात्रा ट्रेन से पूरी करती थीं और इसके आगे पैदल ही जाती थीं। यहाँ उन्होंने भारत रत्न से सम्मानित #पंडित_भीमसेन_जोशी के साथ संगीत की शिक्षा ली। किराना घराने की परंपरा को बरकरार रखने वाली गंगूबाई इस घराने और इससे जुड़ी शैली की शुद्धता के साथ किसी तरह का समझौता किए जाने के पक्ष में नहीं थीं। गंगूबाई को भैरव, असावरी, तोडी, भीमपलासी, पुरिया, धनश्री, मारवा, केदार और चंद्रकौंस रागों की गायकी के लिए सबसे अधिक वाहवाही मिली। 

🇮🇳 उन्होंने एक बार कहा था कि मैं रागों को धीरे−धीरे आगे बढ़ाने और इसे धीरे−धीरे खोलने की हिमायती हूँ ताकि श्रोता उत्सुकता से अगले चरण का इंतजार करे।

🇮🇳 21 जुलाई 2009 को उनके निधन के साथ संगीत जगत ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के उस युग को दूर जाते हुए देखा जिसने शुद्धता के साथ अपना संबंध बनाया था और यह मान्यता है कि संगीत ईश्वर के साथ अंतरसंवाद है जो हर बाधा को पार कर जाती है।

साभार: prabhasakshi.com

🇮🇳 #पद्मभूषण #PadmaVibhushan #पद्मविभूषण #PadmaVibhushan , तानसेन पुरस्कार, कर्नाटक संगीत नृत्य अकादमी पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी जैसे पुरस्कारों से अलंकृत; भारतीय #शास्त्रीय #संगीत की प्रसिद्ध #गायिका #गंगूबाई_हंगल #Gangubai_Hangal जी को उनकी जयंती पर हार्दिक श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Neera Arya Nagin | वीरांगना नीरा आर्य नागिन जी | 5 मार्च 1902 -26 जुलाई 1998

 



  🇮🇳 #वीरांगना_नीरा_आर्य  #Neera_Arya_Nagin  ने #नेताजी_सुभाष_चंद्र_बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी |

🇮🇳5 मार्च 1902 को तत्कालीन संयुक्त प्रांत के #खेकड़ा नगर में एक प्रतिष्ठित व्यापारी #सेठ_छज्जूमल  #Seth_Chhajjumal के घर जन्मी नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज में रानी झाँसी रेजिमेंट की सिपाही थीं, जिन पर अंग्रेजी सरकार ने गुप्तचर होने का आरोप भी लगाया था।

🇮🇳 इन्हें नीरा ​नागिनी के नाम से भी जाना जाता है। इनके भाई #बसंत_कुमार भी आजाद हिन्द फौज में थे। इनके पिता #सेठ_छज्जूमल #Basant_Kumar अपने समय के एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे, जिनका व्यापार देशभर में फैला हुआ था। खासकर कलकत्ता में इनके पिताजी के व्यापार का मुख्य केंद्र था, इसलिए इनकी शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता में ही हुई ।

🇮🇳 नीरा आर्य का विवाह ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ हुआ था | नीरा ने #नेताजी_सुभाष_चंद्र_बोस  #Netaji_Subhash_Chandra_Bose की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी |

🇮🇳 आजाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब लाल किले में मुकदमा चला तो सभी बंदी सैनिकों को छोड़ दिया गया, लेकिन इन्हें पति की हत्या के आरोप में #काले_पानी #Kale_Pani की सजा हुई थी, जहाँ इन्हें घोर यातनाएँ दी गई।

🇮🇳 आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।

🇮🇳 नीरा ने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी है | इस आत्म कथा का एक हृदयद्रावक अंश प्रस्तुत हैं–

🔴 ‘‘मैं जब कोलकाता जेल से #अंडमान पहुँची, तो हमारे रहने का स्थान वे ही कोठरियाँ थीं, जिनमें अन्य महिला राजनैतिक अपराधी रही थी अथवा रहती थी। 🔴

🔴 हमें रात के 10 बजे कोठरियों में बंद कर दिया गया और चटाई, कंबल आदि का नाम भी नहीं सुनाई पड़ा। मन में चिंता होती थी कि इस गहरे समुद्र में अज्ञात द्वीप में रहते स्वतंत्रता कैसे मिलेगी, जहाँ अभी तो ओढ़ने बिछाने का ध्यान छोड़ने की आवश्यकता आ पड़ी है? 🔴

🔴 जैसे-तैसे जमीन पर ही लोट लगाई और नींद भी आ गई। लगभग 12 बजे एक पहरेदार दो कम्बल लेकर आया और बिना बोले-चाले ही ऊपर फेंककर चला गया। कंबलों का गिरना और नींद का टूटना भी एक साथ ही हुआ। बुरा तो लगा, परंतु कंबलों को पाकर संतोष भी आ ही गया। 🔴

🔴 अब केवल वही एक लोहे के बंधन का कष्ट और रह-रहकर भारत माता से जुदा होने का ध्यान साथ में था। 🔴

🔴 ‘‘सूर्य निकलते ही मुझको खिचड़ी मिली और लुहार भी आ गया। हाथ की सांकल काटते समय थोड़ा-सा चमड़ा भी काटा, परंतु पैरों में से आड़ी बेड़ी काटते समय, केवल दो-तीन बार हथौड़ी से पैरों की हड्डी को जाँचा कि कितनी पुष्ट है। 🔴

🔴 मैंने एक बार दुःखी होकर कहा, ‘‘क्या अंधा है, जो पैर में मारता है?’’ ‘‘पैर क्या हम तो दिल में भी मार देंगे, क्या कर लोगी?’’ उसने मुझे कहा था। 🔴

🔴 ‘‘बंधन में हूँ तुम्हारे कर भी क्या सकती हूँ…’’ फिर मैंने उनके ऊपर थूक दिया था, ‘‘औरतों की इज्जत करना सीखो?’’ 🔴

🔴 जेलर भी साथ थे, तो उसने कड़क आवाज में कहा, ‘‘तुम्हें छोड़ दिया जाएगा, यदि तुम बता दोगी कि तुम्हारे नेताजी सुभाष कहाँ हैं?’’ 🔴

🔴 ‘‘वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे,’’ मैंने जवाब दिया, ‘‘सारी दुनिया जानती है।’’ 🔴

🔴 ‘‘नेताजी जिंदा हैं….झूठ बोलती हो तुम कि वे हवाई दुर्घटना में मर गए?’’ जेलर ने कहा। 🔴

🔴 ‘‘हाँ नेताजी जिंदा हैं।’’ 🔴

🔴 ‘‘तो कहाँ हैं…।’’ 🔴

🔴 ‘‘मेरे दिल में जिंदा हैं वे।’’ 🔴

🔴 जैसे ही मैंने कहा तो जेलर को गुस्सा आ गया था और बोले, ‘‘तो तुम्हारे दिल से हम नेताजी को निकाल देंगे।’’ और फिर उन्होंने मेरे आँचल पर ही हाथ डाल दिया और मेरी आँगी को फाड़ते हुए फिर लुहार की ओर संकेत किया…लुहार ने एक बड़ा सा जंबूड़ औजार जैसा फुलवारी में इधर-उधर बढ़ी हुई पत्तियाँ काटने के काम आता है, उस ब्रेस्ट रिपर को उठा लिया और मेरे दाएँ स्तन को उसमें दबाकर काटने चला था…लेकिन उसमें धार नहीं थी, ठूँठा था और उरोजों (स्तनों) को दबाकर असहनीय पीड़ा देते हुए दूसरी तरफ से जेलर ने मेरी गर्दन पकड़ते हुए कहा, ‘‘अगर फिर जबान लड़ाई तो तुम्हारे ये दोनों गुब्बारे छाती से अलग कर दिए जाएँगे…’’ 🔴

🔴 उसने फिर चिमटानुमा हथियार मेरी नाक पर मारते हुए कहा, ‘‘शुक्र मानो महारानी विक्टोरिया का कि इसे आग से नहीं तपाया, आग से तपाया होता तो तुम्हारे दोनों स्तन पूरी तरह उखड़ जाते।’’ 🔴

🇮🇳 सलाम हैं ऐसे देश भक्त को। आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।

जय हिन्द, जय माँ भारती, वन्देमातरम !!!

🇮🇳 पढ़ने के बाद ही रूह काँप जाती है जिन पर बीती होगी उसका दर्द वही जानते होंगे नमन हैं ऐसे क्रांतिवीरों को!

~ राजन पाण्डेय

साभार: kreately.in

नीरा आर्य जी के जीवन के विषय में अधिक जानने के लिए...

www.neeraaryamemorial.com

🇮🇳 #आजाद_हिन्द_फौज #Azad_Hind_Army's में रानी झाँसी रेजिमेंट की सिपाही, देशप्रेम की अद्भुत मिसाल #वीरांगना #नीरा_आर्य_नागिनी जी #Neera_Arya_Nagini की जयंती पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 जय मातृभूमि 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 


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Amar Shaheed Dal Bahadur Thapa Azad Hind Fauj | आजाद हिंद फौज के अमर शहीद दल बहादुर थापा





 #दल बहादुर थापा #Dal Bahadur Thapa का जन्म 04 मार्च, 1907 को #Himachal में #Kangra के #Barkot में हुआ था। तब इनके पिता ब्रिटिश अधिकारियों के साथ उनके निजी स्टाफ में काम करते थे। पराक्रम और शौर्य के नैसर्गिक गुणों से पूर्ण दल बहादुर 1924 में ब्रिटिश इण्डियन आर्मी के गोरखा राइफल्स में भर्ती हो गए थे। 

🇮🇳 ब्रिटिश आर्मी की तरफ से #Waziristan (पाकिस्तान, अफगानिस्तान सीमा) में अपने अद्भुत शौर्य प्रदर्शन दिखाने के लिए इन्हें मैन्शन इन डिस्पैच के सैन्य पदक से सम्मानित किया गया। 

🇮🇳 द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना ने इन्हें मलाया भेजा। अपनी सैन्य परम्परा का निर्वहन करते हुए उन्होंने जापानी सेना का डट कर मुकाबला किया। किन्तु 23 अगस्त, 1941 को इन्हें युद्व मोर्चे पर बन्दी बना लिया गया। 

🇮🇳 #Netaji_Subhash_Chand_Bose के प्रभाव और देशभक्ति की भावना से प्रेरित हो कर इन्होंने 1942 में आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने का निश्चय किया। 

🇮🇳 कैप्टेन पद पर कार्य करते हुए पूर्वोत्तर सीमा पर 1944 में इन्हें बन्दी बना लिया गया। फरवरी 1945 में #दिल्ली की #लालकिला जेल में इन पर मुकदमा चलाया गया। ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों द्वारा इनके परिवार की सेवाओं को देखते हुए इन्हें माफीनामा देने पर सहमति प्रदान की किन्तु इन्होंने माफीनामा पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया। 

🇮🇳 इस तरह 12 फरवरी, 1945 को इन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई और 03 मई, 1945 को वीर कैप्टेन दल बहादुर को दिल्ली के केन्द्रीय कारागार में फाँसी दे दी गई।

साभार: amritmahotsav.in

🇮🇳 पराक्रम और शौर्य के नैसर्गिक गुणों से पूर्ण आजाद हिन्द फौज के सैनिक #Captain_Dal_Bahadur_Thapaजी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

🇮🇳🌹🙏

🇮🇳 जय हिन्द, जय हिन्द की सेना 🇮🇳



साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

  #दल बहादुर थापा #Dal Bahadur Thapa ,    #आजादी_का_अमृतकाल,  #04March. 


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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INS Vikrant | INS विक्रांत | इतिहास के पन्नों से

  




इतिहास के पन्नों से...INS Vikrant |  INS विक्रांत

🇮🇳 बात दूसरे विश्व युद्ध के दौरान की है। ब्रिटेन की रॉयल नेवी ने HMS हरक्यूलिस नाम का एक विमानवाहक पोत तैयार किया। इसे सेना में शामिल किए जाने की तैयारी चल रही थी। इसी बीच युद्ध खत्म हो गया। 12 साल बाद, यानी 1957 में इस HMS हरक्यूलिस को रॉयल नेवी ने भारत को बेच दिया। 4 मार्च 1961 को ये पोत भारतीय #नौसेना में शामिल हुआ।

🇮🇳 भारतीय नौसेना में शामिल होने वाला ये पहला विमानवाहक पोत था। विकर्स-आर्मस्ट्रॉन्ग शिपयार्ड पर बने मैजेस्टिक क्लास के इस पोत को हम सब INS विक्रांत के नाम से जानते हैं। 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में INS विक्रांत पाकिस्तान की नौसेना के लिए बड़ी मुसीबत साबित हुआ था।

🇮🇳 1965 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने दावा किया कि उसने INS विक्रांत को डुबो दिया है, जबकि उस वक्त वह कुछ तब्दीलियों के लिए मुंबई में नौसेना के शिपयार्ड में खड़ा था। 

🇮🇳 1971 के युद्ध में विक्रांत से जुड़े अधिकारियों को दो महावीर चक्र और 12 वीर चक्र मिले थे। इसी बात से 1971 के युद्ध में इसकी भूमिका का अंदाजा लगाया जा सकता है। 

साभार: bhaskar.com

🇮🇳 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले #युद्धपोत #INS_विक्रांत को 4 मार्च 1961 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था और 31 जनवरी 1997 को INS विक्रांत को दीर्घकालीन अविस्मरणीय योगदान के बाद सेवामुक्त कर दिया गया।

🇮🇳🌹🙏

🇮🇳 जय हिन्द, जय हिन्द की सेना 🇮🇳


#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 #INS Vikrant,  #INS विक्रांत,    #आजादी_का_अमृतकाल,  #04March. 


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

04 मार्च 2024

Darban Singh Negi | दरबान सिंह नेगी | March 4, 1883-June 24, 1950 | प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 'विक्टोरिया क्रॉस' सम्मान से अलंकृत पहले भारतीय सैनिक



Darban Singh Negi ( Darwan Singh Negi) | दरबान सिंह नेगी ( दरवान सिंह नेगी ) प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 'विक्टोरिया क्रॉस' सम्मान से अलंकृत पहले भारतीय सैनिक

🇮🇳 जब अंग्रेजी प्रशासन ने दरबान सिंह नेगी से कुछ माँगने को कहा, तो उन्होंने गढ़वाल मंडल के कर्णप्रयाग में एक इंग्लिश मीडियम स्कूल की स्थापना करने और ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछवाने की इच्छा जताई। 🇮🇳

🇮🇳 दरबान सिंह नेगी (जन्म- 4 मार्च, 1883; मृत्यु- 24 जून, 1950) प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उन चंद भारतीय सैनिकों में से एक थे, जिन्हें ब्रिटिश राज का सबसे बड़ा युद्ध पुरस्कार "विक्टोरिया क्रॉस" मिला था। दरबान सिंह नेगी करीब 33 साल के थे और 39th गढ़वाल राइफल्स की पहली बटालियन में नायक के पद पर तैनात थे। 23-24 नवंबर, 1914 को उनकी रेजिमेंट ने दुश्मन से फेस्टुबर्ट के करीब ब्रिटिश खदंकों पर फिर से क़ब्ज़ा करने की कोशिश की। इस युद्ध के दौरान उनकी भूमिका के लिए उनको 'विक्टोरिया क्रॉस' से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 दरबान सिंह नेगी का जन्म 4 मार्च, 1883 को #गढ़वाल के #करबारतीर गाँव में हुआ था। प्रथम विश्वयुद्ध को समाप्त हुए कई वर्ष हो गए हैं। इस युद्ध में दुनिया भर की फौजें शामिल थीं, लेकिन इनमें भारतीय सैनिकों के साहस और वीरता ने पूरी दुनिया में एक अलग छाप छोड़ी। यही वजह थी कि जब फ्रांस में ब्रिटिश सैन्य टुकड़ियों के बीच दीवार बनी जर्मन सेना को कोई हिला नहीं पा रहा था, तब गढ़वाल के नायक दरबान सिंह नेगी के नेतृत्व वाली ब्रिटिश-भारतीय सेना ने रातों-रात इस दीवार को ढहा दिया। इस अप्रतिम विजय के लिए ब्रिटेन के किंग जॉर्ज ने स्वयं रणभूमि में जाकर दरबान सिंह नेगी को 'विक्टोरिया क्रॉस' दिया था। वह इस वीरता पुरस्कार को पाने वाले पहले भारतीय थे।

🇮🇳 अगस्त 1914 में भारत से 1/39 गढ़वाल और 2/49 गढ़वाल राइफल्स की दो बटालियन को प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लेने भेजा गया। अक्टूबर 1914 में दोनो बटालियन फ्रांस पहुँची। वहाँ भीषण ठंड में दोनों बटालियन को जर्मनी के कब्जे वाले फ्रांस के हिस्से को खाली कराने का लक्ष्य दिया गया। इस इलाके में जर्मन सेनाओं के कब्जे के चलते ग्रेट ब्रिटेन के नेतृत्व वाली दो सैन्य टुकड़ियां आपस में नहीं मिल पा रही थीं।

🇮🇳 नायक दरबान सिंह नेगी के नेतृत्व में 1/39 गढ़वाल राइफल्स ने 23 और 24 नवंबर 1914 की मध्य रात्रि हमला कर जर्मनी से सुबह होने तक पूरा इलाका मुक्त करा लिया। इस युद्ध में दरबान सिंह नेगी के अदम्य साहस से प्रभावित होकर किंग जार्ज पंचम ने 7 दिसंबर 1914 को जारी हुए गजट से दो दिन पहले 5 दिसंबर 1914 को ही युद्ध के मैदान में पहुँचकर नायक दरबान सिंह नेगी को 'विक्टोरिया क्रॉस' प्रदान किया था। नायक दरबान सिंह नेगी की वीरता के चलते गढ़वाल राइफल्स को बैटल आफ फेस्टूवर्ट इन फ्रांस का खिताब दिया गया। इसकी याद में उत्तराखंड के लैंसडाउन में स्थापित मुख्यालय में एक संग्रहालय बनाया गया है। इसके बाद नायक दरबान सिंह 1915 में आफिसर बनाए गए। उनको जमादार पद मिला। साथ ही उनके कमीशंड होने का प्रमाणपत्र भी जारी किया गया। 1924 में उन्होंने समय से पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी।

🇮🇳 दरबान सिंह नेगी की मृत्यु 24 जून, 1950 को 70 वर्ष की आयु में हुई। उनके तीन बेटे थे। उनके बड़े बेटे पृथ्वी सिंह नेगी उत्तराखंड में एडीएम पद पर थे। उनका देहांत हो चुका है। जबकि, दूसरे बेटे डॉ. दलबीर सिंह नेगी अमेरिका के स्टेनफर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट में हैं। जबकि छोटे बेटे कर्नल बीएस नेगी हैं। कर्नल नेगी को गढ़वाल राइफल्स में 1964 में कमीशन मिला था, जिसमें दरबान सिंह नेगी थे। वर्तमान में दरबान सिंह नेगी के पौत्र कर्नल नितिन नेगी को भी 1994 में गढ़वाल रेजीमेंट में कमीशंड किया गया।

🇮🇳 'विक्टोरिया क्रॉस' सम्मान मिलने के बाद जब अंग्रेजी प्रशासन ने दरबान सिंह नेगी से कुछ माँगने को कहा, तो उन्होंने गढ़वाल मंडल के कर्णप्रयाग में एक इंग्लिश मीडियम स्कूल की स्थापना करने और ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछवाने की इच्छा जताई। उस वक्त गढ़वाल राइफल्स की दोनों बटालियन की 87 फीसद आबादी इन इलाकों से आती थी। इसके बाद 1918 में अंग्रेजों ने कर्णप्रयाग मिडल स्कूल की स्थापना की। उत्तराखंड सरकार ने अब इसे इंटर तक कर दिया है। इसका नाम वीरचक्र दरबान सिंह राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज रखा गया। वहीं, 1918 से 1924 तक रेलवे लाइन बिछाने का सर्वे भी अंग्रेजों द्वारा किया गया। हालांकि तब जमीन की कमी के कारण यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका।

साभार : bharatdiscovery.org

🇮🇳 प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 'विक्टोरिया क्रॉस' सम्मान से अलंकृत पहले भारतीय सैनिक #दरबान_सिंह_नेगी जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 #Darban_Singh_Negi,  #दरवान_सिंह_नेगी,  #Darwan_Singh_Negi,  #आजादी_का_अमृतकाल,  #04March, #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व,  


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,

JMM Bribery Case | JMM रिश्वत कांड सुप्रीम कोर्ट 1998 के 25 साल पुराने फैसले को पलटा | लेखक : सुभाष चन्द्र




Cash For Vote Case: वोट के बदले नोट 

“पर उपदेश कुशल बहुतेरे  जे आचरहिं ते नर न घनेरे”

सांसदों के लिए फैसला अच्छा है मीलार्ड का लेकिन जजों को भ्रष्टाचार पर छूट क्यों 

और क्यों नहीं अपनी संपत्ति  घोषित करते -

आज #सुप्रीम_कोर्ट ने अपने ही 1998 के 25 साल पुराने 5 जजों की संविधान पीठ के 3 - 2 के  #पीवी_नरसिम्हा_राव के #JMM रिश्वत कांड के फैसले को पलटते हुए कहा कि सांसदों और विधायकों को रिश्वत लेकर विचार व्यक्त करने या वोट देने के मामले में आपराधिक कार्रवाई से संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के अंतर्गत छूट उपलब्ध नहीं है - अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और वोट देना किसी भी #Lawmaker का स्वतंत्र अधिकार है जिसका हनन पैसे के बल पर नहीं हो सकता -

यह फैसला #CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंद्रेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने दिया - 1998 के 5 में से 3 जजों ने ( जस्टिस #SP_Bharucha समेत 3 जजों ने) फैसले में कहा था कि “रिश्वत लेकर वोट देने पर सांसदों पर मुकदमा नहीं चल सकता लेकिन यदि रिश्वत लेकर वोट नहीं करते तो उन पर आपराधिक मुकदमा चल सकता है”

2012 में हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन पर #राज्यसभा में किसी के पक्ष में वोट देने के लिए रिश्वत लेने का मुकदमा दर्ज हुआ जो हाई कोर्ट ने बरक़रार रखा और उसी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई - 1998 का फैसला भी #JMM के सांसदों #Suraj_Mandal, #Shibu Soren, #Simon_Marandi, and #Shailendra_Mahto  के 1993 में रिश्वत लेकर नरसिम्हा राव सरकार को बचाने के लिए शुरू हुआ था जो सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया था -

अब सोचिए आज के फैसले के बाद उपरोक्त सांसदों पर मुकदमा चलाना क्या संभव होगा अगर वो जीवित भी हुए - और 25 साल तक अपराध के न्याय न होने के लिए जिम्मेदार कौन होगा - वैसे भी सुप्रीम कोर्ट तो अपराधियों को संरक्षण देने में अग्रणी रहता है - #लालू_यादव को #CBI के अथक प्रयासों से साढ़े 32 साल की सजा हो रखी है लेकिन झारखंड हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की मेहरबानी से वो राजनीति के बाज़ार में खुले  घूमता फिरता है और प्रधानमंत्री मोदी की “गर्दन पर चढ़ने को तैयार रहता है” - ऐसे में आज के फैसले की क्या अहमियत है -

आज के फैसले को मैं दूसरे दृष्टिकोण से भी देखता हूं - #सुप्रीम_कोर्ट ने #Lawmakers के लिए तो कानून की व्याख्या कर दी - इसे कहते हैं “पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं ते नर न घनेरे”-

आप सबको कानून में बांधना चाहते हो मगर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों पर कोई कानून लागू नहीं होने देते -

आप Lawmakers को किसी हाल में भ्रष्टाचार के लिए आपराधिक कार्रवाई से छूट नहीं देना चाहते लेकिन यह फिर यह छूट आपने जजों को कैसे दी हुई है - क्या सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज भ्रष्ट नहीं हो सकते - लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्वघोषित नियम बनाए हुए हैं कि किसी जज पर आपराधिक मामले की जांच शुरू करने के लिए चीफ जस्टिस की अनुमति लेना आवश्यक है - मतलब सभी जजों को किसी भी कार्रवाई से मुक्त कर दिया -

सरकारी कर्मचारी (किसी भी #Public_Servant) के लिए वार्षिक #Assets & #Liability #Return  जमा करना आवश्यक होता - लेकिन यहां भी सुप्रीम कोर्ट ने यह कानून जजों पर लागू नहीं किया और इस Return को जमा करना “स्वैच्छिक” रखा है 

अभी हाल ही में सरकार से आपने यह भी पूछा है कि प्राइवेट अस्पतालों में फीस आदि लिए दिशा निर्देश 2010 के कानून के मुताबिक तय क्यों नहीं किए - जरूर पूछिए मगर यह सवाल 2014 तक #मनमोहन_सिंह_सरकार से क्यों नहीं किया और क्या सुप्रीम कोर्ट ने नियम बनाए हैं कि एक वकील #हाई_कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ने के लिए अधिक से अधिक कितनी फीस ले सकता है -

जो नियम आप दूसरों पर लागू करना चाहते हो, वे स्वयं पर पहले लागू कीजिए तब ही न्याय होगा 

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 04/03/2024 

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सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,

Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...