26 फ़रवरी 2024

Pankaj Udhas | Indian Ghazal and Playback Singer | पंकज उधास - गज़ल गायक | 17 May 1951 – 26 February 2024





Pankaj Udhas (17 May 1951 – 26 February 2024) was an Indian ghazal and playback singer known for his works in Hindi cinema, and Indian pop. He started his career with a release of a ghazal album titled Aahat in 1980 and subsequently recorded many hits like Mukarar in 1981, Tarrannum in 1982, Mehfil in 1983, Pankaj Udhas Live at Royal Albert Hall in 1984, Nayaab in 1985 and Aafreen in 1986


पंकज उधास भारत के एक गज़ल गायक थे। भारतीय संगीत उद्योग में उनको तलत अज़ीज़ और जगजीत सिंह जैसे अन्य संगीतकारों के साथ इस शैली को लोकप्रिय संगीत के दायरे में लाने का श्रेय दिया जाता है। उदास को फिल्म नाम में गायकी से प्रसिद्धि मिली, जिसमें उनका एक गीत "चिठ्ठी आई है" काफी लोकप्रिय हुआ था जो तुरंत हिट हो गया। इसके बाद उन्होंने कई हिंदी फिल्मों के लिए पार्श्वगायन किया। दुनिया भर में एल्बम और लाइव कॉन्सर्ट ने उन्हें एक गायक के रूप में प्रसिद्धि दिलाई। 2006 में, पंकज उधास को भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया। उनके भाई निर्मल उदास  और मनहर  उदास भी गायक हैं।


पंकज  का जन्म गुजरात के जेतपुर में हुआ था। वह तीन भाइयों में सबसे छोटे हैं। उनके माता-पिता केशुभाई उधास और जितुबेन उधास हैं। उनके सबसे बड़े भाई मनहर उधास ने बॉलीवुड फिल्मों में हिंदी पार्श्व गायक के रूप में कुछ सफलता हासिल की । उनके दूसरे बड़े भाई निर्मल उधास भी एक प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक हैं और परिवार में गायन शुरू करने वाले तीन भाइयों में से वह पहले थे। उन्होंने सर बीपीटीआई भावनगर से पढ़ाई की थी. उनका परिवार मुंबई चला गया और पंकज ने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में दाखिला लिया । [ प्रशस्ति - पत्र आवश्यक ]


उधास का परिवार राजकोट के पास चरखड़ी नामक कस्बे का रहने वाला था और जमींदारथा। उनके दादा गाँव के पहले स्नातक थे और भावनगर राज्य के दीवान बने । उनके पिता, केशुभाई उधास, एक सरकारी कर्मचारी थे और उनकी मुलाकात प्रसिद्ध वीणा वादक अब्दुल करीम खान से हुई थी, जिन्होंने उन्हें दिलरुबा बजाना सिखाया था ।  जब उधास बच्चे थे, तो उनके पिता दिलरुबा , एक तार वाला वाद्ययंत्र बजाते थे। उनकी और उनके भाइयों की संगीत में रुचि देखकर उनके पिता ने उनका दाखिला राजकोट की संगीत अकादमी में करा दिया । उधास ने शुरुआत में तबला सीखने के लिए खुद को नामांकित किया लेकिन बाद में गुलाम कादिर खान साहब से हिंदुस्तानी गायन शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया। इसके बाद उधास ग्वालियर घराने के गायक नवरंग नागपुरकर के संरक्षण में प्रशिक्षण लेने के लिए मुंबई चले गए। 


चाँदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल  नामक गीत पंकज उधास द्वारा गाया गया था। पंकज उधास के बड़े भाई, मनहर उधास एक मंच कलाकार थे, जिन्होंने पंकज को संगीत प्रदर्शन से परिचित कराने में सहायता की। उनका पहला मंच प्रदर्शन चीन-भारत युद्ध के दौरान था , जब उन्होंने " ऐ मेरे वतन के लोगो " गाया था और उन्हें रु। 51 एक दर्शक सदस्य द्वारा पुरस्कार के रूप में। [


उधास का पहला गाना फिल्म "कामना" में था, जो उषा खन्ना द्वारा संगीतबद्ध और नक्श लायलपुरी द्वारा लिखा गया था, यह फिल्म फ्लॉप रही लेकिन उनके गायन को बहुत सराहा गया। इसके बाद, उधास ने ग़ज़लों में रुचि विकसित की और ग़ज़ल गायक के रूप में अपना करियर बनाने के लिए उर्दू सीखी। उन्होंने कनाडा और अमेरिका में ग़ज़ल संगीत कार्यक्रम करते हुए दस महीने बिताए और नए जोश और आत्मविश्वास के साथ भारत लौट आए। उनका पहला ग़ज़ल एल्बम, आहट , 1980 में रिलीज़ हुआ था। यहीं से उन्हें सफलता मिलनी शुरू हुई और 2011 तक उन्होंने पचास से अधिक एल्बम और सैकड़ों संकलन एल्बम जारी किए हैं। 1986 में, उधास को फिल्म नाम में अभिनय करने का एक और मौका मिला , जिससे उन्हें प्रसिद्धि मिली। 1990 में, उन्होंने फिल्म घायल के लिए लता मंगेशकर के साथ मधुर युगल गीत "महिया तेरी कसम" गाया ।


 इस गाने ने जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की. 1994 में, उधास ने साधना सरगम ​​के साथ फिल्म मोहरा का उल्लेखनीय गीत, "ना कजरे की धार" गाया, जो बहुत लोकप्रिय भी हुआ। उन्होंने पार्श्व गायक के रूप में काम करना जारी रखा और साजन , ये दिल्लगी , नाम और फिर तेरी कहानी याद आयी जैसी फिल्मों में कुछ ऑन-स्क्रीन उपस्थिति दर्ज की । दिसंबर 1987 में म्यूजिक इंडिया द्वारा लॉन्च किया गया उनका एल्बम शगुफ्ता भारत में कॉम्पैक्ट डिस्क पर रिलीज़ होने वाला पहला एल्बम था। बाद में, उधास ने सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर आदाब आरज़ है नामक एक प्रतिभा खोज टेलीविजन कार्यक्रम शुरू किया । 26 फरवरी 2024 को पंकज का निधन हो गया। हुआ था

India's First Woman Doctor | Anandi Gopal Joshi | भारत की पहली महिला डॉक्टर | आनंदी_गोपाल_जोशी | 31 मार्च 1865-26 फरवरी 1887

 



India's first woman doctor #Anandi_Gopal_Joshi on her death anniversary!

भारत की पहली महिला डॉक्टर #आनंदी_गोपाल_जोशी की पुण्य तिथि पर!

🇮🇳 मात्र 22 वर्ष की अल्पायु में दुनिया के इतिहास में अमर हुई #भारत_की_बेटी की जीवन-गाथा 🇮🇳

🇮🇳 महज 14 दिनों में उनकी खुशियां छिन गईं. उन्होंने बेटे को जन्म दिया था लेकिन किसी बीमारी से ग्रसित होने की वजह से उनका बच्चा दस दिनों के भीतर ही मर गया. बच्चे की मौत से भीतर ही भीतर टूट टुकी आनंदी ने यह तय किया था कि अब वह किसी भी बच्चे को इलाज के अभाव में मरने नहीं देंगी. 🇮🇳

🇮🇳 पढ़ना लिखना तो महिलाओं के लिए भारत में कभी आसान नहीं था. हाँ अपनी रूचि के अनुसार राजा-महाराजा और बड़े परिवार वाले बेटियों को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया करते थे. लेकिन आज हम बताएंगे कि उस जमाने में जब महिलाओं को बचपन में ही ब्याह दिया जाता था #आनंदीबेन_जोशी को कैसे गर्व प्राप्त हुआ देश की #पहली महिला डॉक्टर बनने का और कैसे वह अपनी पढ़ाई को पूरा करने सात समंदर पार भी पहुँची. और उनके इस सपने में साथ था भारतीय समाज.

🇮🇳 आज महिलाओं की गिनती आधी आबादी के रूप में की जाती है…पर्दे और घर की चारदिवारी से बाहर निकलकर महिलाएं अंतरिक्ष तक पहुंच चुकी हैं..विज्ञान का क्षेत्र हो या शासन का महिलाएं हर जगह अपना परचम लहरा रही हैं. वैसे आंकड़े जो भी कहते हों लेकिन भारत में महिलाओं की स्थिति पहले से बेहतर हो चुकी है. महिलाएं अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं लेकिन 18 वीं शताब्दी में शायद ही महिलाएं घर से बाहर निकलती थीं, या शिक्षा थी भी तो कुछ गिने चुने परिवारों तक ही सिमित थी. आठ और नौ साल की बच्चियों की शादी कर दी जाती थी. ऐसी परिस्थिति में इक्का दुक्का ही नाम सामने आता है जिसने न केवल देश में पढ़ाई की हो बल्कि विदेश जाकर भी पढ़ाई की हो. ऐसी ही एक भारतीय महिला हैं आनंदीबाई गोपाल जोशी. 14 साल की उम्र में अपने नवजात को खो चुकी इस #किशोरी बाला ने तय किया था कि वह डॉक्टर बनेगी और वह सात समंदर पार जाकर डॉक्टर बनी लेकिन 22 साल की उम्र में ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

🇮🇳 आनंदीबाई जोशी का जन्म 31 मार्च 1865 को #पुणे में हुआ था. फिलहाल पुणे का वो हिस्सा #कल्याण महाराष्ट्र के #थाणे का हिस्सा है. जमींदार परिवार में जन्मी आनंदी का मायके का नाम #यमुना था. उनका परिवार एक रुढ़िवादी परिवार था जो सिर्फ संस्कृत पढ़ना जानता था. बताते हैं कि ब्रिटिश शासकों ने महाराष्ट्र में जमींदारी प्रथा समाप्त कर दी जिसके बाद उनके परिवार की स्थिति खराब होती चली गई, परिवार का गुजर-बसर भी मुश्किल हो गया. परिवार को वित्तीय संकट से गुजरना पड़ रहा था. इसी दौरान महज़ नौ साल की उम्र में यमुना (आनंदी ) की शादी अपने से 20 साल बड़े #गोपालराव_जोशी से हुई. गोपालराव की आयु उस समय 30 वर्ष थी और उनकी पत्नी की मौत हो चुकी थी. पहले जमाने में जब महिला की शादी हो जाती थी तो उनका सिर्फ सरनेम ही नहीं बल्कि उनका नाम भी बदल दिया जाता था अब यमुना आनंदी बेन गोपालराव जोशी हो चुकी थीं.

🇮🇳 14 साल की उम्र में माँ बनी

किशोरी उम्र में आनंदी जब माँ बनीं तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा लेकिन महज 14 दिनों में उनकी खुशियां छिन गईं. उन्होंने बेटे को जन्म दिया था लेकिन किसी बीमारी से ग्रसित होने की वजह से उनका बच्चा दस दिनों के भीतर ही मर गया. बच्चे की मौत से उन्हें गहरा सदमा लगा और यही उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट था. बच्चे की मौत से भीतर ही भीतर टूट टुकी आनंदी असल में मजबूत हो चुकी थीं और उन्होंने यह तय किया था कि अब वह किसी भी बच्चे को इलाज के अभाव में मरने नहीं देंगी. उन्होंने अपनी यह इच्छा अपने पति को बताई.. पति गोपालराव ने उनकी इस इच्छा का साथ दिया और उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए उनका साथ दिया और जब उन्होंने डॉक्टर बनने का निश्चय लिया तब भारत में एलोपैथिक डॉक्टरी की पढ़ाई नहीं होती थी इसलिए गोपालराव जोशी ने उन्हें पढ़ने के लिए विदेश जाने की तैयारी शुरू कर दी.

🇮🇳 विरोध के बीच पहुँची अमेरिका

आनंदी की पढ़ाई के लिए गए फैसले पर परिवार से लेकर समाज तक में खूब चूं-चूं हुई लेकिन दोनों पति-पत्नी के दृढ़ निश्चय के आगे एक न चली. समाज मानने को तैयार नहीं था कि एक हिंदू शादी-शुदा महिला विदेश जाकर पढ़ाई करे. आनंदी के जीवनकाल और संघर्ष को दूरदर्शन और जी स्टूडियो ने भी फिल्म का आकार दिया है. समाज में बढ़ते विरोध के बाद आनंदी ने कहा मैं सिर्फ डॉक्टरी की शिक्षा के लिए अमेरिका जा रही हूँ, मेरी इच्छा नौकरी करने की नहीं बल्कि लोगों की जान बचाने की है. मेरा मकसद भारत की सेवा करना और भारतीयों को असमय हो रही मौत से बचाना है.

🇮🇳 आनंदी के भाषण का उनके समाज पर बहुत बड़ा असर हुआ और फिर पूरा समाज एकजुट होकर आनंदी को पढ़ाई में मदद करने के लिए आगे आया. आनंदी जोशी ने कोलकाता से पानी की जहाज के माध्यम से न्यूयॉर्क की यात्रा की थी. न्यूयॉर्क में थियोडिसिया काप्रेंटर ने उनकी जून 1883 में आगवानी की. आनंदी ने पेंसिल्वेनिया की वूमन मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई की. अपनी पढ़ाई के लिए आनंदी ने केवल अपने सारे गहने बेच दिए बल्कि उन्हें समाज ने भी सहायता दी. इसमें वाइसराय भी शामिल हैं जिन्होंने 200 रुपये की सहायता राशि दी.

🇮🇳 आनंदी तीक्ष्ण बुद्धि वाली महिला थीं और वह देश की रूढिवादी परंपरा के बीच अमेरिका पहुंची थीं इसे देखते हुए कॉलेज के सुपरीटेंडेंट और सेक्रेटरी एस बात से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने तीन साल की पढ़ाई के लिए 600 डॉलर की स्कॉलरशिप भी मंजूर की. लेकिन आनंदी की परेशानी सिर्फ अपने समाज से लड़ना नहीं था बल्कि अजनबी शहर में खुद को स्थापित करना भी था. भाषा रहन-सहन और खान पान…वह सभी से जूझती रहीं इसमें उनकी मदद दी कॉलेज के डीन की पत्नी मिसेज कारपेंटर ने.

🇮🇳 ठंडे देश में आनंदी की मुश्किलें बढ़ती गईं. महाराष्ट्रियन साड़ी पहनने वाली की तबियत बिगड़ी और उन्हें तपेदिक (टीबी) हो गया था फिर भी उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और 1885 में एमडी से स्नातक किया. उन्होंने अपने थीसिस का चयन किया ‘आर्यन हिंदुओं के बीच प्रसूती.’ आनंदी को रानी विक्टोरिया ने भी उनकी पढ़ाई के लिए बधाई दी. 1886 के अंत में आनंदी डॉ. आनंदी बन कर भारत लौटीं जहां उनका भव्य स्वागत हुआ. कोल्हापुर की रियासत ने उन्हें स्थानीय अल्बर्ड एडवर्ड अस्पताल में महिला वार्ड की चिकित्सक प्रभारी का प्रभार सौंपा. लेकिन देश की पहली महिला एकबार फिर तपेदिक की शिकार हुईं और महज 22 साल की उम्र में उसने दुनिया को अलविदा कह दिया. जिस दिन उन्होंने दुनिया को विदा कहा वह दिन था 26 फरवरी 1887 .

साभार: hindi.theprint.in

🇮🇳 भारत की प्रथम महिला डॉक्टर #आनंदी_गोपाल_जोशी जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

#India's_First_Woman_Doctora #आजादी_का_अमृतकाल  #26February #First_Woman_Doctora   #independence #Anandi_Gopal_Joshi  #देशभक्त

Iran is bombing and India has cut off Pakistan's water supply | ईरान बम मार रहा है और भारत ने पाकिस्तान का पानी बंद कर दिया | चुनाव में फिर मामला गोल हो गया - लेखक : सुभाष चन्द्र



ईरान  बम मार रहा है और 

भारत ने पाकिस्तान का पानी बंद कर दिया,

चुनाव में फिर मामला गोल हो गया -

एटम बम कहां गए ?


#दारुल #उलूम #देवबंद #फतवा दे रहा है भारत को #गज़वा-ए -हिंद  बनाने का जबकि यह नहीं देखते कि 75 साल पहले गज़वा-ए-पाकिस्तान लेकर क्या कर लिया, आज लोगों को खाने के लाले पड़े हैं और पूरा मुल्क पाकिस्तान “कटोरा” हाथ में लिए भीख मांगता फिर रहा है - यही हालत भारत की भी करना चाहते हैं यहां के  #मुसलमान जो सब कुछ सुविधाएं मिलने पर भी कह रहे है कि बस किसी तरह #मोदी को हराना है -

पाकिस्तान पर  फिर ईरान ने #सर्जिकल_स्ट्राइक कर दी और जैश - ए -अदल के वरिष्ठ कमांडर इस्माइल शाहबख्श को पाकिस्तान के क्षेत्र में ही हमला कर उसके कई साथियों समेत 72 हूरों के पास भेज दिया - इसके पहले भी ईरान ने जनवरी में ऐसा ही हमला किया था - उधर #अफगानिस्तान का #TTP जब मर्जी पाकिस्तान को पेल देता है -

लेकिन पाकिस्तान की फितरत थी कि भारत को धमकी दिया करता था कि “हमारे पास एटम बम है” और वो किसी शबे बारात के लिए नहीं हैं लेकिन कभी भारत पर एटम बम चलाने की सोच भी नहीं सका पाकिस्तान क्योंकि बम फटने से पहले भारत का बम पाकिस्तान का नामोनिशान मिटा देता -

लेकिन सवाल यह उठता है कि आज #पाकिस्तान #ईरान को #एटम_बम की धमकी क्यों नहीं दे रहा - अरे रोज रोज के कलेश झेलने से बेहतर है एक बम मार दे ईरान पर और कहानी ख़त्म कर दे क्योंकि ईरान से तो किसी एटम बम पेलने की उम्मीद भी नहीं है जैसी भारत से है -

दरअसल केंद्र सरकार के सहयोग से बन रहे शाहपुर कंडी बांध बनकर तैयार हो गया है। इस बांध के बनने के बाद रावी नदी का जो पानी बहकर पाकिस्तान जाता था वो अब हमारी जमीनों को उपजाऊ बनाएगा। इस पानी का उपयोग किसान सिंचाई के लिए करेंगे।

एक तरफ ईरान ने रगड़ा तो दूसरी तरफ #भारत ने #पाकिस्तान को रावी नदी का जाने वाला पानी पंजाब के शाहपुर कंडी बांध के गेट बंद करके रोक दिया और इसका फायदा अब #जम्मू कश्मीर की 32 हज़ार हेक्टेयर और पंजाब की 5000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई में होगा क्योंकि जम्मू कश्मीर को 1150 और पंजाब को 200 क्यूसेक पानी मिलेगा - यह है भारत की तरफ से छोड़ा हुआ “पानी बम” - लोग पानी पिला पिला के मारते हैं लेकिन हम प्यासा रख के मार देंगे - 

जिसे भारत में पाकिस्तान से हमदर्दी है वो पाकिस्तान चला जाए - वैसे भी ऐसे लोगों को भारत में उत्पात मचाने से बेहतर है पाकिस्तान के लिए जाकर ईरान और #अफगानिस्तान और #बलूच_विद्रोहियों से लड़ना चाहिए -

पाकिस्तान की एक और मुसीबत खड़ी हो गई जो चुनाव के बाद भी सरकार का गठन नहीं हो पा रहा - #नवाज़ शरीफ उछलता कूदता आया था लेकिन #प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा होता नहीं लग रहा और अब उसका भाई #शाहबाज़ शरीफ की प्रधानमंत्री बनेगा लेकिन कब तक #सत्ता में रहेगा पता नहीं क्योंकि #PPP कब तक साथ देगी कह नहीं सकते और बिलावल भुट्टो भी तो अपनी किस्म का #पप्पू है - मजे की बात है शाहबाज़ शरीफ अपने पहले कार्यकाल में दुनिया भर के मुल्कों से “भीख” ही मांगता रहा था -

भारत में जो मुसलमान मोदी को हराने के लिए पागल हुए जा रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि मोदी विदेशों से मिले सभी उपहार नीलामी में बेच कर पैसा “नमामि गंगे प्रोजेक्ट” में लगा देता है जबकि इमरान खान को ऐसे ही उपहारों को चोरी से बेच खाने के आरोप में 14 साल की सजा हुई है - इतना फर्क भी न दिखाई दे तो आपसे बड़े अंधे कोई हो नहीं सकते - "लेखक के निजी विचार हैं "


 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 26/02/2024 

#Iran #bombing  #India  #Pakistan's #water_supply #Kejriwal  #judiciary #ed #cbi #delhi #sharabghotala #Rouse_Avenue_court #liquor_scam #aap  #FarmerProtest2024  #KisanAndolan2024  #SupremeCourtofIndia #Congress_Party  #political_party #India #movement #indi #gathbandhan #Farmers_Protest  #kishan #Prime Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court



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Vinayak Damodar Savarkar | Freedom Fighter | स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर | विनायक दामोदर सावरकर | 28 मई 1883 - 26 फरवरी 1966

 



🇮🇳विनायक दामोदर सावरकर (जन्म: 28 मई 1883 - मृत्यु: 26 फरवरी 1966) भारत के क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसुधारक, इतिहासकार, राजनेता तथा विचारक थे। उनके समर्थक उन्हें वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित करते हैं।। हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा 'हिन्दुत्व' को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है।

🇮🇳 विनायक दामोदर सावरकर यानी स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर एक विचारधारा विशेष के लोग आरोप लगाते रहे हैं। उनका आरोप है कि वीर सावरकर ने तत्कालीन ब्रितानी हुकूमत से माफ़ी माँगी थी और उनकी शान में क़सीदे पढ़े थे। यद्यपि राजनीतिक क्षेत्र में आरोप लगाओ और भाग जाओ की प्रवृत्ति प्रचलित रही है। उसके लिए आवश्यक प्रमाण प्रस्तुत करने का दृष्टांत कोई सामने नहीं रखता। परंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या उन आरोपों से उनका महात्म्य कम हो जाता है? आइए, उन पर लगे आरोपों के आईने में उनका अवलोकन-मूल्यांकन करें।

🇮🇳 उनकी माफ़ी उनकी रणनीतिक योजना का हिस्सा भी तो हो सकती है! क्या शिवाजी द्वारा औरंगज़ेब से माफ़ी माँग लेने से उनका महत्त्व कम हो जाता है? कालेपानी की सज़ा भोगते हुए गुमनाम अँधेरी कोठरी में तिल-तिलकर मरने की प्रतीक्षा करने से बेहतर तो यही होता कि बाहर आ सक्रिय-सार्थक-सोद्देश्य जीवन जिया जाय| कोरोना-काल में हम सबने यह अनुभव किया है कि सभी सुविधाओं के मध्य भी घर में बंद रहना यातनाप्रद है, फिर वीर सावरकर को तो भयावह यातनाओं के अंतहीन दौर से गुजरना पड़ा था।

🇮🇳 जहाँ तक ब्रितानी हुकूमत की तारीफ़ की बात है तो अधिकांश स्वतंत्रता-सेनानियों ने अलग-अलग समयों पर किसी-न-किसी मुद्दे पर ब्रिटिश शासन की तारीफ़ में वक्तव्य ज़ारी किए हैं। इन तारीफों को उनकी राजनीतिक समझ का हिस्सा या तत्कालीन परिस्थितियों का परिणाम माना गया। फिर सावरकर जी के साथ यह अन्याय क्यों? गाँधी जी ने समय-समय पर ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर उनके प्रति आभार प्रदर्शित किया है, उनके प्रति निष्ठा जताई है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से ऐसे पत्र लिखे हैं, जिसमें भारतीयों को अंग्रेजों का वफ़ादार बनने की नसीहत दी है, ब्रिटिशर्स द्वारा शासित होने को भारतीयों का सौभाग्य बताया है। वे अंग्रेजों के अनेक उपकारों का ज़िक्र करते हुए भाव-विभोर हए हैं। बल्कि गाँधी ऐसे चिंतक रहे हैं जिनका चिंतन काल-प्रवाह के साथ सबसे ज़्यादा परिवर्तित हुआ है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गाँधी द्वारा तत्कालीन वायसराय को लिखे पत्रों को पढ़िए। आप जानेंगे कि गाँधी वहाँ अंग्रेजों की चापलूसी-सी करते प्रतीत होते हैं। वे अंग्रेजों की ओर से भारतीय सैनिकों की भागीदारी को उनका फ़र्ज़ बताते नहीं थकते! तो क्या इन सबसे स्वतंत्रता-संग्राम में उनका महत्त्व कम हो जाता है? क्या यह सत्य नहीं कि किसी एक पत्र, माफ़ीनामे या स्वीकारोक्ति से किसी राष्ट्रनायक का महत्त्व या योगदान कम नहीं होता?

🇮🇳 एक ओर जहाँ गाँधी जी स्वतंत्रता-पश्चात की धार्मिक-सामुदायिक एकता का काल्पनिक-वायवीय स्वप्न संजोते रहे और मज़हबी कट्टरता से आसन्न संकट को भाँप नहीं पाए, वहीं सावरकर जी यथार्थ का परत-दर-परत उघाड़कर देख सके कि इस्लाम का मूल चरित्र ही हिंसक, आक्रामक, विस्तारवादी और अन्यों के प्रति अस्वीकार्य-बोध से भरा है। गाँधी राजनीतिज्ञ की तुलना में एक भावुक संत अधिक नज़र आते हैं, जो स्वयं को और अपनों को दंड देकर भी महान बने रहना चाहते हैं, जबकि पूज्य सावरकर इतिहास का विद्यार्थी होने के कारण सभ्यताओं के संघर्ष और उसके त्रासद परिणामों को देख पा रहे थे| इसीलिए वे विभाजन के पश्चात किसी भी एकपकक्षीय, बनावटी, लिजलिजी, पिलपिली एकता को सिरे से ख़ारिज कर रहे थे।

🇮🇳 मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले जैसे काँग्रेसी नेताओं या राजा राममोहन राय जैसे अनेकानेक समाज सुधारकों ने खुलकर ब्रिटिश शासन और उनकी जीवन-शैली की पैरवी की, यदि इस आधार पर उनके योगदान को कम करके नहीं देखा जाता तो इनके बरक्स राष्ट्र के लिए तिल-तिल जीने वाले पूज्य सावरकर जी पर सवाल उठाने वालों की मानसिकता समझी जा सकती है। आंबेडकर भी अनेक अवसरों पर ब्रिटिशर्स की पैरवी कर चुके थे, यहाँ तक कि स्वतंत्रता-पश्चात दलित समाज को वांछित अधिकार दिलाने को लेकर वे स्वतंत्रता का तात्कालिक विरोध कर चुके थे। तो क्या इससे उनका महत्त्व और योगदान कम हो जाता है? उन्होंने भी इस्लाम के आक्रामक, असहिष्णु, विघटनकारी, विस्तारवादी प्रवृत्तियों से तत्कालीन नेताओं को सावधान और सचेत किया था। वे विभाजन के पश्चात ऐसी किसी भी कृत्रिम-काल्पनिक-लिजलिजी-पिलपिली एकता के मुखर आलोचक थे, जो थोड़े से दबाव या चोट से बिखर जाय, रक्तरंजित हो उठे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि इस्लाम का भाईचारा केवल उसके मतानुयायियों तक सीमित है। मुसलमान कभी भारत को अपनी मातृभूमि नहीं मानेगा, क्योंकि वह स्वयं को आक्रांताओं के साथ अधिक जोड़कर देखता है। उनका मानना था कि मुसलमान कभी स्थानीय स्वशासन को नहीं आत्मसात करता, क्योंकि वह कुरान और शरीयत से निर्देशित होता है और उसकी सर्वोच्च आस्था इस्लामिक मान्यता एवं प्रतीकों-स्थलों के प्रति रहती है, जो उसे शेष सबसे पृथक करती है। आंबेडकर इस्लाम की विभाजनकारी प्रवृत्तियों से भली-भाँति परिचित थे।

🇮🇳 पूज्य सावरकर जी की मातृभूमि-पुण्यभूमि वाली अवधारणा पर प्रश्न उछालने वाले क्षद्म बुद्धिजीवी क्या आंबेडकर को भी कटघरे में खड़े करेंगें? सच यह है कि ये दोनों राजनेता यथार्थ के ठोस धरातल पर खड़े होकर वस्तुपरक दृष्टि से अतीत, वर्तमान और भविष्य का आकलन कर पा रहे थे। यह उनकी दूरदृष्टि थी, न कि संकीर्णता। पूज्य सावरकर जी मानते थे कि जब तक भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं, तभी तक भारत का मूल चरित्र धर्मनिरपेक्ष रहने वाला है। कोरी व भावुक धर्मनिरपेक्षता की पैरवी करने वाले कृपया बताएँ कि भारत से पृथक हुआ पाकिस्तान या बांग्लादेश क्या गैर इस्लामिक तंत्र दे पाया? वहाँ की मिट्टी, आबो-हवा, लबो-लहज़ा, तहज़ीब- कुछ भी तो हमसे बहुत भिन्न न थी? छोड़िए इन दोनों मुल्कों को, क्या कोई  ऐसा राष्ट्र है जो इस्लामिक होते हुए भी धर्मनिरपेक्ष शासन दे पाने में पूरी तरह कामयाब रहा हो? तुर्की का उदाहरण हमारे सामने है, जिसकी बुनियाद में धर्मनिरपेक्षता थी, पर आज मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे संगठन या वहाबी विचारधारा वहाँ केंद्रीय धुरी है।

🇮🇳 सच तो यह है कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर का महत्त्व न तो उन पर लगाए गए आरोपों से कम होता है, न उनके हिंदू-हितों की पैरोकारी से। उनका रोम-रोम राष्ट्र को समर्पित था। उनकी राष्ट्रभक्ति अक्षुण्ण और अनुकरणीय थी। राष्ट्र की बलिवेदी पर उन्होंने तिल-तिल होम कर दिया। वे अखंड भारत के पैरोकार व पक्षधर थे। उन्होंने अपनी प्रखर मेधा शक्ति के बल पर 1857 के विद्रोह को 'ग़दर' के स्थान पर 'प्रथम स्वतंत्रता संग्राम'' की संज्ञा दिलवाई। उनका समग्र व वस्तुपरक इतिहास-बोध व विवेचना उन्हें किसी भी इतिहासकार से अभूतपूर्व इतिहासकार सिद्ध करता है। उन्होंने मुंबई में पतित पावन मंदिर की स्थापना कर एक अनूठी पहल की। वे छुआछूत के घोर विरोधी रहे। उन्होंने धर्मांतरित जनों के मूल धर्म में लौटने का पुरज़ोर अभियान चलाया। समाज-सुधार के लिए वे आजीवन प्रयत्नशील रहे| तत्कालीन सभी बड़े राजनेताओं में उनका बड़ा सम्मान था। गाँधी-हत्या के मिथ्या आरोपों से भी न्यायालय ने उन्हें अंततः ससम्मान बरी किया। राष्ट्र उन्हें सदैव एक सच्चे देशभक्त, प्रखर चिंतक, दृष्टिसंपन्न इतिहासकार, समावेशी संगठक और कुशल राजनेता के रूप में याद रखेगा। आज आवश्यकता अपने राष्ट्रनायकों के प्रति कृतज्ञता के भाव व्यक्त करने की है, न कि उनके प्रति अविश्वास और अनास्था के बीज बोने की।

(प्रणय कुमार)

साभार: punjabkesari.in

🇮🇳 महान चिंतक, विचारक, विपुल लेखक, ओजस्वी वक्ता, प्रसिद्ध समाज सुधारक, प्रखर राष्ट्रवादी और प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी #स्वातंत्र्यवीर #विनायक_दामोदर_सावरकर जी की पुण्यतिथि पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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Rajnarayan Mishra | Freedom Fighter | क्रांतिवीर राजनारायण मिश्र

 



🇮🇳 राजनारायण मिश्र - आज़ादी के आंदोलन का सशक्त क्रांतिवीर जिसके नाम हुई ब्रिटिश साम्राज्य की आखिरी फाँसी 🇮🇳

🇮🇳 राजनारायण मिश्र ने कहा था कि हमें दस आदमी ही चाहिए, जो त्यागी हों और देश की ख़ातिर अपनी जान की बाज़ी लगा सकें. कई सौ आदमी नहीं चाहिए जो लंबी-चौड़ी हाँकते हों और अवसरवादी हों। 🇮🇳

🇮🇳 चाहे जितनी तरह से कही जाए, और जितनी बार, भारत की आज़ादी की कहानी से कुछ छूट ही जाता है। हमारे देश की आज़ादी के किस्सों में कितने ही उत्सर्ग ऐसे हैं जिनकी ध्वनि लोगों तक नहीं पहुँची, कितने ही पन्ने अधखुले हैं, कितने बलिदान अकथ रह गये हैं। 9 दिसंबर, 1944 को लखनऊ में ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ का उद्घोष करते हुए वीरगति का वरण करने वाले क्रांतिकारी राजनारायण मिश्र को उनकी बलिदान का सिला मिला होता तो आज आप उन्हें जानते होते। ब्रिटिश साम्राज्य में सबसे नौजवान फाँसी थी खुदीराम बोस की और विराम लगा राजनारायण मिश्र जी की फाँसी से।

🇮🇳 आईये जानते हैं राजनारायण मिश्र किन अवधारणाओं और अंग्रेज़ शासन के हाथों किन शोषित परिस्थतियों में बड़े हुए होंगे कि 24 वर्ष की छोटी उम्र में ही उन्हें अपने प्राणों की बलि चढ़ानी पढ़ी।

🇮🇳 #लखनऊ में बलिवेदी पर चढे राजनारायण मिश्र का जन्म #लखीमपुर_खीरी जिले के #कठिना नदी के तटवर्ती #भीषमपुर गाँव में साल 1919 की #बसंत_पंचमी को हुआ था। #बलदेवप्रसाद_मिश्र के इस पुत्र ने दो साल के होते-होते अपनी माँ #तुलसी_देवी को खो दिया था और होश सँभाला तो पाया कि पूरा देश ही दुर्दशाग्रस्त है और इसका सबसे बड़ा कारण गुलामी है।

🇮🇳 फिर, 23 मार्च, 1931 को #सरदार_भगत_सिंह की शहादत के बाद राजनारायण ने उनको अपना आदर्श मानकर जो सशस्त्र साम्राज्यवाद विरोधी प्रतिरोध संगठित करना शुरू किया तो फाँसी पर चढ़ने तक लगे रहे, बिना थके और बिना पराजित हुए। 

🇮🇳 पाँच भाइयों में सबसे छोटे, उन्होंने केवल 22 साल की उम्र में हथियार इकट्ठा करके अंग्रेजों को भगाने की कोशिश की। उनके आंतरिक उत्साह ने उन्हें आश्वस्त किया कि औपनिवेशिक ब्रिटिश साम्राज्य से लड़ने के लिए सशस्त्र प्रतिरोध की आवश्यकता है।

🇮🇳 राजनारायण मिश्र ने कहा था कि हमें दस आदमी ही चाहिए, जो त्यागी हों और देश की ख़ातिर अपनी जान की बाज़ी लगा सकें. कई सौ आदमी नहीं चाहिए जो लंबी-चौड़ी हाँकते हों और अवसरवादी हों।

🇮🇳 पर मेरी तो यह अभिलाष, चिता-नि‍कट भी पहुँच सकूँ मैं अपने पैरों-पैरों चलकर 🇮🇳

🇮🇳 1942 में हथियार लूटने की कोशिश में, लखीमपुर खीरी के उपायुक्त फायरिंग में मारे गए, जिसके बाद उन्होंने गाँव छोड़ दिया। इस घटना के बाद अंग्रेजों ने उनके परिवार को प्रताड़ित किया। घर गिराकर हल चलवा दिया। घर में रखे सारे सामानों को भी लूट लिया। आखिरकार, औपनिवेशिक अधिकारियों ने मिश्रा को स्वतंत्रता कार्यकर्ता #नसीरुद्दीन_मौज़ी के साथ गोली मारने के आरोप में पकड़ लिया। मिश्रा को अक्टूबर 1943 में #मेरठ के गाँधी आश्रम से गिरफ्तार किया गया और 27 जून 1944 को महज़ 24 साल के राजनारायण मिश्र को मौत की सजा सुनाई गई। पहली जुलाई को उन्हें लखनऊ जेल भेज दिया गया और बाद में चीफ कोर्ट ने भी उनकी सजा पर मोहर लगा दी।

🇮🇳 "शीघ्र ही आप लोगों के बीच से जा रहा । मेरे हृदय में किसी प्रकार का दु:ख नहीं है। आजादी के लिए मरने वाले किसी के प्रति द्वेष-भाव नहीं रखते हैं। हॅंसते-हँसते बलिवेदी पर चढ़ जाते हैं। किसी के प्रति कोई कटु वाक्य नहीं कहते हैं। जाने वाले का कौन साथ देता है। आप लोग किसी तरह की चिंता न करें। माँ ने मुझे हँसने के लिए ही पैदा किया था। अंतिम समय में भी हँसता ही रहूँगा।"

-- राजनारायण मिश्र ने जेल से झारखंडे राय को लिखे पत्र की चंद पंक्तियाँ

🇮🇳 बेशक, उन्हें प्रिवी कौंसिल में अपील की मोहलत मिली, लेकिन परिवार की गरीबी और समाज की कृतघ्नता के कारण वह अपील हो ही नहीं पाई। तब माफी माँग लेने की गोरों के प्रस्ताव का जवाब, उन्होंने अपनी इस अंतिम इच्छा से दिया था - एक यह कि वह स्वयं अपने गले में फंदा लटकाएंगे और फाँसी पर लटक जाने के बाद उनके पार्थिव शरीर को उनके जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी ही फंदे से मुक्त करेंगे।

~ आस्था सिंह

साभार: knocksense.com

ब्रिटिश साम्राज्य की आखिरी फाँसी पाने वाले राजनारायण मिश्र का जन्म वर्ष 1919 में बसंत पंचमी के दिन हुआ था और 9 दिसम्बर 1944 को प्रातः 4 बजे उन्होंने हँसते-हँसते फाँसी का फंदा चूम लिया था।

माँ भारती के अमर सपूत क्रांतिवीर को कोटि-कोटि नमन !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

#Rajnarayan_Mishra #आजादी_का_अमृतकाल  #26February #First_Freedom_Fighter   #independence #movement #देशभक्त

25 फ़रवरी 2024

Radhacharan Goswami | राधाचरण गोस्वामी जी | 25 फरवरी 1859-12 दिसंबर 1925




राधाचरण गोस्वामी (Radhacharan Goswami, जन्म- 25 फरवरी, 1859, मृत्यु- 12 दिसंबर, 1925) ब्रज के निवासी एक साहित्यकार, नाटककार और संस्कृत के उच्च कोटि के विद्वान थे। आपने ब्रज भाषा का समर्थन किया। राधाचरण गोस्वामी खड़ी बोली पद्य के विरोधी थे। उनको यह आशंका थी कि खड़ी बोली के बहाने उर्दू का प्रचार हो जाएगा।

 🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी का जन्म 25 फरवरी 1859 ई० को उत्तर प्रदेश के #वृंदावन (#मथुरा) में हुआ था। राधाचरण गोस्वामी के पिता का नाम #गल्लू_जी_महाराज (गुणमंजरी दास जी) था। गल्लू जी महाराज सन 1827 ईस्वी से 1890 ईसवी तक भक्त कवि रहे थे। आपके पिता धार्मिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति नहीं थे, आपके पिता के भाव राष्ट्रीयता, सामाजिक चेतना, प्रगतिशीलता तथा सामाजिक क्रांतिवादी की प्रज्वलित चिंगारियां थी। गोस्वामी जी भारतेंदु युग के कवि थे।


🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी जी 1885 ई० में वृंदावन (मथुरा) नगर पालिका के सदस्य पहली बार निर्वाचित हुए थे। तथा दूसरी बार भी आप ही निर्वाचित हुए। वर्ष 1897 ई० को गोस्वामी जी तीसरी बार नगर पालिका सदस्य निर्वाचित हुए। अपने कार्यकाल में आपने वृंदावन की सड़कों में छह पक्की सड़कों का निर्माण कराया था। गोस्वामी जी कांग्रेस के आजीवन सदस्य तथा प्रमुख कार्यकारिणी सदस्य थे। 

🇮🇳 वर्ष 1888 ई० से 1894 ई० तक गोस्वामी जी वृंदावन की कांग्रेस समिति के सचिव रहे। गोस्वामी जी द्वारा रचित ग्रंथ में लिखा है, देश की उन्नति, नेशनल कांग्रेस, समाज संशोधन, स्त्री स्वतंत्रता, यह मेरी प्राण प्रिय वस्तुएं हैं। आपके अन्दर राजनीतिक चेतना भरी हुई थी। आपने राजनीतिक विषयों पर पत्रिकाएं भी लिखनी शुरू कर दी थी। गोस्वामी जी के प्रयासों से मथुरा रेल का संचालन हुआ था।

🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी की रचनाएं– सती चंद्रावती, सुदामा, अमर सिंह राठौर, तन मन धन श्री गोसाई जी को अर्पण आदि।

पत्रिका– भारतेंदु (मासिक पत्रिका)

उपन्यास– बाल विधवा, विधवा विपत्ति, सर्वनाश, जावित्र, अलकचंद, वीरबाला, दीप निर्वाण, कल्पलता, सौदामिनी, विरजा आदि।

🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी जी ने समस्या प्रधान उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास, मौलिक सामाजिक उपन्यास आदि लिखे हैं। आप हिंदी के प्रथम समस्या मूलक उपन्यासकार थे।

🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी जी हिंदी के भारतेंदु मंडल के साहित्यकार थे। आपके अंदर राष्ट्रवादी राजनीति की प्रखर चेतना थी। गोस्वामी जी की भारतीय राजनीतिक और राष्ट्रीय चेतना की पकड़ मजबूत थी। नवजागरण की मुख्यधारा में आपकी सक्रिय नीति तथा प्रमुख भूमिका थी। वर्ष 1883 ई० को गोस्वामी जी ने पश्चिमोत्तर तथा अवध में आत्म शासन की माँग की। 22 मई 1883 ई० में आपकी मासिक पत्रिका भारतेंदु में ‘पश्चिमोत्तर और अवध में आत्म शासन’ शीर्षक में संपादकीय अग्रलेख लिखा। 

🇮🇳 गोस्वामी जी भारत वासियों की सहायता से मातृभाषा हिंदी की उन्नति करना चाहते थे। वर्ष 1882 ई० में देश की मातृभाषा की उन्नति के लिए #अलीगढ़ में भाषा वर्धिनी सभा को आपने अपना समर्थन प्रदान करते हुए कहा, यदि हमारे देशवासियों की सहायता मिले तो इस सभा से भी हमारी देश भाषा की उन्नति होगी। 

🇮🇳 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में वाराणसी, इलाहाबाद, पटना, कोलकाता तथा वृंदावन (मथुरा) नवजागरण के पाँच प्रमुख केंद्र थे। गोस्वामी जी वृंदावन के एकमात्र प्रतिनिधि थे गोस्वामी जी सामाजिक रूढ़िवादियों के उग्र किन्तु अहिंसक विरोधी थे‌‌। आप सदा सामाजिक बुराइयों का कड़ा विरोध करते थे।

🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी जी का क्रांतिकारियों के प्रति आस्था और विश्वास था। आपके उनसे बहुत अच्छे संबंध भी रहे। जब पंजाब केसरी #लाला_लाजपत_राय का आगमन दो बार वृंदावन (मथुरा) में हुआ था। तब दोनों बार गोस्वामी जी ने लाला लाजपत राय का शानदार स्वागत किया था। ब्रज माधव गौड़ीय संप्रदाय के श्रेष्ठ आचार्य होने के बावजूद उनकी बग्गी के घोड़ों के स्थान पर स्वयं ही उनकी बग्गी खींचकर आपने भारत के क्रांतिकारियों तथा राष्ट्र नेताओं के प्रति अपने उदांत भावना को सार्वजनिक परिचय से अवगत कराया। 22 नवंबर 1911 ईस्वी को महान क्रांतिकारी #रासबिहारी_बोस और #योगेश_चक्रवर्ती आपसे मिलने आपके घर पर आए थे। आपने उनका गर्मजोशी तथा प्रेम पूर्ण स्वागत किया था।

🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी जी का निधन 12 दिसंबर 1925 को हुआ था।

साभार: gyanlight.com

🇮🇳 ब्रज माधव गौड़ीय संप्रदाय के श्रेष्ठ आचार्य, संस्कृत भाषा के उच्च कोटि के विद्वान, #समाजसुधारक, #देशप्रेमी तथा ब्रजभाषा समर्थक #कवि रहे, भारतेंदु युग के हिंदी #साहित्यकार, #उपन्यासकार, #निबंधकार, #पत्रकार, #नाटककार तथा #लेखक #राधाचरण_गोस्वामी जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था  #Radhacharan #Goswami  #Radhacharan_Goswami  #राधाचरण_गोस्वामी_जी  #25_February  


Modi Govt vs Supreme Court | मोदी से टकराने वाले का बर्बाद होना तय होता है | लेखक : सुभाष चन्द्र




CJI चंद्रचूड़ सत्ता के नशे में मत भूलना, #मोदी से टकराने वाले का  बर्बाद होना तय होता है और आप सब सीधे मोदी से टकरा रहे हो -

ये कोई नई बात नहीं है जब #CJI #चंद्रचूड़ के ऐसे बयान और आचरण सामने आते  हैं जिनसे पता चलता है वह प्रधानमंत्री मोदी को सहन ही नहीं कर पा रहे और वक्त वक्त पर जलील करने की कोशिश करते हैं लेकिन ऐसा करते हुए चंद्रचूड़ भूल जाते हैं कि मोदी से टकराने वाले का बर्बाद होना तय होता है क्योंकि मोदी ठंडी करके खाते हैं और आप उबलती खिचड़ी में मुंह मारते हो - 


पूर्व सैनिकों के #OROP केस में CJI चंद्रचूड़ ने #प्रधानमंत्री_मोदी को जलील करने की कोशिश की जब सरकार गोपनीय जानकारी #Sealed_Cover में देना चाहती थी लेकिन चंद्रचूड़ ने जलील करते हुए कहा कि सब कुछ खुला होना चाहिए - मणिपुर मामले में तो मोदी को सीधी धमकी दे दी थी कि सरकार कुछ नहीं करेगी तो हम करेंगे जबकि सरकार सब कुछ कर रही थी परंतु लक्ष्य मोदी को नीचा दिखाना था -


अब देखिए, 18 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अधिवेशन का समापन करते हुए विस्तार से बताया कि महिला उत्थान के लिए पिछले 10 वर्ष में क्या किया गया - लेकिन अगले दिन 19 फरवरी को #Costal_Guards_Services में महिलाओं को #Permanent #Commission देने के लिए एक महिला अधिकारी प्रियंका त्यागी की याचिका सुनते हुए CJI चंद्रचूड़ ने सीधा प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देते हुए कहा 


“आप बहुत नारी शक्ति नारी शक्ति, अब यहां दिखाओ नारी शक्ति” 

"You speak of '#NariShakti Nari Shakti,' now show it here. You are at the deep end of the sea here. I don't think the Coast Guard can say they can fall out of line when the #Army and #Navy have done it all.


चंद्रचूड़ ने पहले भी सरकार, सेना और सेना प्रमुख को अवमानना की धमकी देकर #आर्मी में कुछ महिला अधिकारियों के Permanent Commission दिलाने का काम किया था और सच्चाई यह है कि देश की रक्षा करने वाली सेना का घोर अपमान किया था -


चंद्रचूड़ की मंशा जितनी Coastal Guard Services में महिलाओं को Permanent Commission दिलाने की थी उससे ज्यादा मक्कार नीयत प्रधानमंत्री मोदी को “बेइज़्ज़त” करने की थी - 

"You speak of 'Nari Shakti Nari Shakti,' now show it here - यह वाक्य कह कर चंद्रचूड़ ने मोदी को प्रमाणपत्र दे दिया कि उसने नारी शक्ति के लिए कुछ नहीं किया 


यह कह कर चंद्रचूड़ ने किसी विपक्षी दल के नेता से बदतर भूमिका निभाने का काम किया है और मोदी को सीधे ललकारा है - इससे बड़ी निर्लज्जता #चंद्रचूड़ और उसके साथी #जज बेंच में बैठ कर नहीं दिखा सकते -


इतना ही नहीं, चंद्रचूड़ की बेंच ने संदेशखाली मामले में सांसद सुकान्त मजूमदार के अपमान के मामले में संसद की अवमानना कार्रवाई पर रोक लगा दी वह भी #कपिल_सिब्बल की दलील पर जिसमे उसने कहा कि यह विषय #संसद के काम से सम्बंधित नहीं है और इसलिए #Privilege_Issue नहीं बनता क्योंकि सांसद ने अपनी शक्ति का अतिक्रमण किया है - 


चंद्रचूड़, उनके साथी जजों, #सिब्बल और #सिंघवी को पता नहीं कि इसका मतलब यह भी निकलता है कि जजों के खिलाफ सड़कों पर कुछ भी बोला जा सकता है जिस पर अदालत की अवमानना केस नहीं बनेगा क्योंकि वह केवल #अदालत में कुछ करने पर ही बन सकता है 


यही चंद्रचूड़ #मणिपुर के लिए उबाल खा रहे थे और यहां #संदेशखाली में महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार पर इन्हें सांप सूंघ गया है क्योंकि #जस्टिस #नागरत्ना ने दूसरी बेंच में कहा है कि #संदेशखाली और #मणिपुर में कोई समानता नहीं है -


सच्च यही है चंद्रचूड़ प्रधानमंत्री मोदी से सीधे टकराने की कोशिश कर रहे हैं - ये सत्ता में बैठ कर कुछ भी बोल सकते हैं चाहे भाषा की मर्यादा ही क्यों न टूट जाए जबकि मोदी इनसे बड़ी सत्ता में होते हुए भी मर्यादा नहीं लांघ सकते - लेकिन यह निश्चित है मोदी से “नाहक” टकराने वाले की दुर्गति होना तय है - कैसे हुई है लोगों की विगत में, चंद्रचूड़ को उस पर ध्यान देना चाहिए - "लेखक के निजी विचार हैं "


 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 25/02/2024 

#Kejriwal  #judiciary #ed #cbi #delhi #sharabghotala #Rouse_Avenue_court #liquor_scam #aap  #FarmerProtest2024  #KisanAndolan2024  #SupremeCourtofIndia #Congress_Party  #political_party #India #movement #indi #gathbandhan #Farmers_Protest  #kishan #Prime Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...