राधाचरण गोस्वामी (Radhacharan Goswami, जन्म- 25 फरवरी, 1859, मृत्यु- 12 दिसंबर, 1925) ब्रज के निवासी एक साहित्यकार, नाटककार और संस्कृत के उच्च कोटि के विद्वान थे। आपने ब्रज भाषा का समर्थन किया। राधाचरण गोस्वामी खड़ी बोली पद्य के विरोधी थे। उनको यह आशंका थी कि खड़ी बोली के बहाने उर्दू का प्रचार हो जाएगा।
🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी का जन्म 25 फरवरी 1859 ई० को उत्तर प्रदेश के #वृंदावन (#मथुरा) में हुआ था। राधाचरण गोस्वामी के पिता का नाम #गल्लू_जी_महाराज (गुणमंजरी दास जी) था। गल्लू जी महाराज सन 1827 ईस्वी से 1890 ईसवी तक भक्त कवि रहे थे। आपके पिता धार्मिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति नहीं थे, आपके पिता के भाव राष्ट्रीयता, सामाजिक चेतना, प्रगतिशीलता तथा सामाजिक क्रांतिवादी की प्रज्वलित चिंगारियां थी। गोस्वामी जी भारतेंदु युग के कवि थे।
🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी जी 1885 ई० में वृंदावन (मथुरा) नगर पालिका के सदस्य पहली बार निर्वाचित हुए थे। तथा दूसरी बार भी आप ही निर्वाचित हुए। वर्ष 1897 ई० को गोस्वामी जी तीसरी बार नगर पालिका सदस्य निर्वाचित हुए। अपने कार्यकाल में आपने वृंदावन की सड़कों में छह पक्की सड़कों का निर्माण कराया था। गोस्वामी जी कांग्रेस के आजीवन सदस्य तथा प्रमुख कार्यकारिणी सदस्य थे।
🇮🇳 वर्ष 1888 ई० से 1894 ई० तक गोस्वामी जी वृंदावन की कांग्रेस समिति के सचिव रहे। गोस्वामी जी द्वारा रचित ग्रंथ में लिखा है, देश की उन्नति, नेशनल कांग्रेस, समाज संशोधन, स्त्री स्वतंत्रता, यह मेरी प्राण प्रिय वस्तुएं हैं। आपके अन्दर राजनीतिक चेतना भरी हुई थी। आपने राजनीतिक विषयों पर पत्रिकाएं भी लिखनी शुरू कर दी थी। गोस्वामी जी के प्रयासों से मथुरा रेल का संचालन हुआ था।
🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी की रचनाएं– सती चंद्रावती, सुदामा, अमर सिंह राठौर, तन मन धन श्री गोसाई जी को अर्पण आदि।
पत्रिका– भारतेंदु (मासिक पत्रिका)
उपन्यास– बाल विधवा, विधवा विपत्ति, सर्वनाश, जावित्र, अलकचंद, वीरबाला, दीप निर्वाण, कल्पलता, सौदामिनी, विरजा आदि।
🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी जी ने समस्या प्रधान उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास, मौलिक सामाजिक उपन्यास आदि लिखे हैं। आप हिंदी के प्रथम समस्या मूलक उपन्यासकार थे।
🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी जी हिंदी के भारतेंदु मंडल के साहित्यकार थे। आपके अंदर राष्ट्रवादी राजनीति की प्रखर चेतना थी। गोस्वामी जी की भारतीय राजनीतिक और राष्ट्रीय चेतना की पकड़ मजबूत थी। नवजागरण की मुख्यधारा में आपकी सक्रिय नीति तथा प्रमुख भूमिका थी। वर्ष 1883 ई० को गोस्वामी जी ने पश्चिमोत्तर तथा अवध में आत्म शासन की माँग की। 22 मई 1883 ई० में आपकी मासिक पत्रिका भारतेंदु में ‘पश्चिमोत्तर और अवध में आत्म शासन’ शीर्षक में संपादकीय अग्रलेख लिखा।
🇮🇳 गोस्वामी जी भारत वासियों की सहायता से मातृभाषा हिंदी की उन्नति करना चाहते थे। वर्ष 1882 ई० में देश की मातृभाषा की उन्नति के लिए #अलीगढ़ में भाषा वर्धिनी सभा को आपने अपना समर्थन प्रदान करते हुए कहा, यदि हमारे देशवासियों की सहायता मिले तो इस सभा से भी हमारी देश भाषा की उन्नति होगी।
🇮🇳 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में वाराणसी, इलाहाबाद, पटना, कोलकाता तथा वृंदावन (मथुरा) नवजागरण के पाँच प्रमुख केंद्र थे। गोस्वामी जी वृंदावन के एकमात्र प्रतिनिधि थे गोस्वामी जी सामाजिक रूढ़िवादियों के उग्र किन्तु अहिंसक विरोधी थे। आप सदा सामाजिक बुराइयों का कड़ा विरोध करते थे।
🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी जी का क्रांतिकारियों के प्रति आस्था और विश्वास था। आपके उनसे बहुत अच्छे संबंध भी रहे। जब पंजाब केसरी #लाला_लाजपत_राय का आगमन दो बार वृंदावन (मथुरा) में हुआ था। तब दोनों बार गोस्वामी जी ने लाला लाजपत राय का शानदार स्वागत किया था। ब्रज माधव गौड़ीय संप्रदाय के श्रेष्ठ आचार्य होने के बावजूद उनकी बग्गी के घोड़ों के स्थान पर स्वयं ही उनकी बग्गी खींचकर आपने भारत के क्रांतिकारियों तथा राष्ट्र नेताओं के प्रति अपने उदांत भावना को सार्वजनिक परिचय से अवगत कराया। 22 नवंबर 1911 ईस्वी को महान क्रांतिकारी #रासबिहारी_बोस और #योगेश_चक्रवर्ती आपसे मिलने आपके घर पर आए थे। आपने उनका गर्मजोशी तथा प्रेम पूर्ण स्वागत किया था।
🇮🇳 राधाचरण गोस्वामी जी का निधन 12 दिसंबर 1925 को हुआ था।
साभार: gyanlight.com
🇮🇳 ब्रज माधव गौड़ीय संप्रदाय के श्रेष्ठ आचार्य, संस्कृत भाषा के उच्च कोटि के विद्वान, #समाजसुधारक, #देशप्रेमी तथा ब्रजभाषा समर्थक #कवि रहे, भारतेंदु युग के हिंदी #साहित्यकार, #उपन्यासकार, #निबंधकार, #पत्रकार, #नाटककार तथा #लेखक #राधाचरण_गोस्वामी जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !
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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व
#आजादी_का_अमृतकाल
साभार: चन्द्र कांत (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था #Radhacharan #Goswami #Radhacharan_Goswami #राधाचरण_गोस्वामी_जी #25_February
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