18 फ़रवरी 2024

Chaitanya Mahaprabhu | सांस्कृतिक इतिहास में एक चमकता रत्न चैतन्य महाप्रभु | भक्ति आंदोलन

 



🇮🇳🔶 मध्यकालीन भारत के #सांस्कृतिक इतिहास में भक्ति आंदोलन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भक्ति आंदोलन के #क्रांतिधर्मी संतों की सुदीर्घ शृंखला का एक चमकता रत्न थे- चैतन्य महाप्रभु।

🇮🇳🔶 मानवमात्र के हित के लिए किए गए महाप्रभु के महान कार्यों को अगर एक शब्द में व्यक्त करना हो तो वह शब्द है- प्रेम! महाप्रभु का समूचा जीवन #कृष्णमय रहा। वे श्रीकृष्ण के #प्रेमावतार माने जाते थे।

🇮🇳🔶 15वीं सदी में फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को #पश्चिम_बंगाल के #नवद्वीप गॉंव (अब मायापुर) में जन्मे चैतन्य महाप्रभु ने हरिनाम संकीर्तन की रसधार बहा कर उस युग की पीड़ित व क्षुधित मानवता को प्रभु प्रेम की जो संजीवनी सुधा पिलाई, वैष्णव कृष्ण भक्तों के हृदय में उसकी गमक आज भी है। ऐसे अंधकार युग में जब हिन्दू समाज अस्पृश्यता, आडम्बर जैसी सामाजिक कुरीतियों में उलझा हुआ था चैतन्य महाप्रभु देवदूत की तरह अवतरित हुए। 

🇮🇳🔶 राजनीतिक व सामाजिक अस्थिरता के उस युग में उन्होंने हरि संकीर्तन की अनूठी शैली से समाज में एकता व सद्भावना का संचार किया। इस आंदोलन का मूल लक्ष्य था ‘सर्व-धर्म समभाव, प्रेम, शांति व अहिंसा’ की भावना को जन-जन के हृदय में संचारित कर उनका हृदय परिवर्तन करना। माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु ने द्वापर युगीन विलुप्त #वृन्दावन को फिर से आबाद किया। वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय के संस्थापक महाप्रभु ने अपने छह प्रमुख अनुयायियों (गोपालभट्ट गोस्वामी, रघुनाथभट्ट गोस्वामी, रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, जीव गोस्वामी और रघुनाथदास गोस्वामी) को वृंदावन भेजकर सप्त देवालयों की नींव रखवाई। ये अनुयायी षड्गोस्वामियों के नाम से विख्यात हैं और गौड़ीय संप्रदाय की स्थापना में इनकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। इन्होंने वृंदावन में सात वैष्णव मंदिरों यथा गोविंददेव मंदिर, गोपीनाथ मंदिर, मदनमोहन मंदिर, राधारमण मंदिर, राधा दामोदर मंदिर, राधा श्यामसुंदर मंदिर और गोकुलानंद मंदिर की स्थापना की।

🇮🇳🔶 ‘प्रेम’ को सर्वोत्तम पुरुषार्थ घोषित करने वाले इस महान कृष्ण भक्त का बचपन विलक्षणताओं से भरा था। वे माता #शचीदेवी के गर्भ में तेरह मास रहे। कहा जाता है कि शैशवावस्था में एक दिन महाप्रभु खटोले में जोर-जोर से रो रहे थे। जैसे ही उनकी माता ने ‘हरि बोल, हरि बोल, मुकुन्द माधव गोविन्द बोल’ पद गाकर उन्हें थपकी दी, वे सो गए। वे जब भी रोते, माता यही पद गाकर उन्हें चुप करा देतीं। महाप्रभु का जन्म नीम के पेड़ के नीचे हुआ था, इसलिए इनका नाम #निमाई भी पड़ा। इसी तरह, गौर वर्ण होने के कारण वे गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर भी कहलाए।

🇮🇳🔶 बचपन की एक और घटना से उनकी अलौकिकता का पता चलता है। एक दिन उनके घर एक ब्राह्मण अतिथि आया। जब अतिथि भोजन करने से पहले अपने इष्ट का ध्यान कर रहे थे तो बालक निमाई ने झट से आकर भोजन का एक निवाला उठाकर खा लिया। यह देखकर माता-पिता ने गुस्से में उन्हें घर से बाहर कर दिया और अतिथि को दोबारा भोजन परोसा, पर निमाई ने इस बार भी वही किया। अंत में उन्होंने माता-पिता और अतिथि को गोपाल रूप का दर्शन कराया। 

🇮🇳🔶 जब वे 15 साल के हुए तो उन्होंने न्यायशास्त्र पर एक ग्रंथ लिखा। इसे देखकर उनके एक मित्र को ईर्ष्या हुई। उन्हें डर था कि इस ग्रंथ के आने के बाद उनके द्वारा लिखित ग्रंथ का आदर कम हो जाएगा। निमाई को जब यह बात पता चली तो उन्होंने अपना ग्रंथ गंगा में बहा दिया। 

🇮🇳🔶 निमाई 16 वर्ष के हुए तो उनका विवाह #लक्ष्मी_देवी के साथ हुआ, लेकिन कुछ ही समय बाद ही सर्पदंश से पत्नी की अकाल मृत्यु हो गई। निमाई का दूसरा विवाह नवद्वीप के राज पंडित सनातन की पुत्री #विष्णुप्रिया के साथ हुआ। 24 साल की आयु में निमाई ने जब घर छोड़ा तो वह क्षण बंगभूमि के लिए ऐतिहासिक बन गया। कहते हैं कि युवा निमाई पिता का श्राद्ध करने गया तीर्थ गए। वहीं उनकी भेंट #ईश्वरपुरी नामक वैष्णव संत से हुई। उन्होंने निमाई के कान में कृष्ण भक्ति का मंत्र फूँक दिया और उनका पूरा जीवन ही बदल गया। बाद में उन्होंने वैष्णव संत #केशव_भारती से संन्यास की दीक्षा ली और चैतन्य महाप्रभु बन गए।

🇮🇳🔶 #संन्यास लेने के बाद महाप्रभु पहली बार जब जगन्नाथ मंदिर पहुँचे तो भगवान की प्रतिमा देखकर भाव-विभोर होकर नृत्य करते-करते मूर्च्छित हो गए। प्रकांड पंडित #सार्वभौम_भट्टाचार्य महाप्रभु की भक्ति से प्रभावित होकर उन्हें अपने घर ले गए। घर पर शास्त्र-चर्चा आरंभ हुई और सार्वभौम अपनी विद्वता का प्रदर्शन करने लगे तो महाप्रभु ने भकित का महत्त्व ज्ञान से ऊपर बताते हुए उन्हें अपने षड्भुजरूप का दर्शन कराया। महाप्रभु का वह दिव्य रूप देख सार्वभौम नतमस्तक हो उनके चरणों में गिर पड़े। महाप्रभु के शिष्य बन वह आखिरी समय तक उनके साथ रहे। 

🇮🇳🔶 पंडित सार्वभौम भट्टाचार्य ने #चैतन्य_महाप्रभु की शत-श्लोकी स्तुति की रचना की, जिसे चैतन्य शतक नाम से जाना जाता है। ओडिशा के सूर्यवंशी सम्राट गजपति महाराज प्रताप रुद्रदेव भी महाप्रभु के अनन्य भक्त थे। चैतन्य देव ने देश के कोने-कोने की पदयात्रा कर में हरिनाम की महत्ता का प्रचार किया। पुरी के अलावा वे दक्षिण भारत के श्रीरंग क्षेत्र व सेतुबंध आदि स्थानों पर भी रहे। 

🇮🇳🔶 वृन्दावन से लौटने के बाद जीवन के अंतिम 18 वर्ष तक चैतन्य महाप्रभु पुरी के नीलांचल धाम में ही रहे। इस दौरान उनका श्रीकृष्ण प्रेम पराकाष्ठा पर था। वे #श्रीजगन्नाथ_मंदिर के गरुड़ स्तंभ के सहारे खड़े-खड़े घंटों प्रभु को निहारा करते थे। उनके नेत्रों से अश्रुधाराएं बहती रहती थीं। एक दिन उड़ीसा की एक वृद्धा आरती के दौरान गरुड़ स्तंभ पर चढ़ गई और महाप्रभु के कंधे पर पैर रखकर जगन्नाथजी का दर्शन करने लगी। यह देखकर महाप्रभु के भक्त गोविन्द ने वृद्धा को डाँटा तो वे हँसते हुए बोले, ‘‘इसके दर्शनसुख में विघ्न मत डालो, यह आदि शक्ति महामाया है।’’ यह सुनते ही वृद्धा उनके चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगी। प्रभु बोले, ‘‘मातेश्वरी! तुम्हारे अंदर जगन्नाथजी के दर्शन की जैसी विकलता है, वैसी मुझमें नहीं है। तुम्हारी एकाग्रता को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम!’’ इतना कह कर महाप्रभु जोर-जोर से रोने लगे।

🇮🇳🔶 एक दिन महाप्रभु रोज की तरह गरुड़ स्तंभ के पास रुकने की बजाय सीधे मंदिर के गर्भगृह में पहुँच गए। अचानक ही मंदिर के सारे कपाट बंद हो गए। कहते हैं कि #गुंजाभवन में पूजा कर रहे एक पुजारी ने उनकी अंतिम लीला देखी। पुजारी के अनुसार, जगन्नाथ स्वामी के सम्मुख हाथ जोड़े महाप्रभु प्रार्थना कर रहे थे, ‘‘हे दीन वत्सल प्रभो! आप जीवों पर ऐसी दया कीजिए कि वे निरंतर आपके सुमधुर नामों का सदा कीर्तन करते रहें। घोर कलियुग में जीवों के लिए आपके चरणों के सिवा दूसरा आश्रय नहीं। इन अनाश्रित जीवों पर कृपा कर अपने चरणकमलों का आश्रय दीजिए। कहते हैं, इसके बाद उन्होंने श्रीजगन्नाथजी के श्रीविग्रह को आलिंगन किया और 48 वर्ष की अल्पायु में उन्हीं में विलीन हो गए।

- पूनम नेगी

साभार: panchjanya.com

🇮🇳 भक्तिकाल के प्रमुख संत #चैतन्य_महाप्रभु जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व  🇮🇳💐🙏 वन्दे मातरम् 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
#Chaitanya_Mahaprabhu #Social_Reformer  #inspirational_personality

Sri Ramakrishna Paramhansa | Social Reformer | समाज सुधारक | श्री रामकृष्ण परमहंस |18 फरवरी 1836-16 अगस्त 1886

 



🇮🇳🔶 भारत की #रत्नगर्भा #वसुंधरा माटी में कई संत और महान व्यक्ति हुए हैं जिन्हें उनके कर्म, ज्ञान और महानता के लिए आज भी याद किया जाता है। जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और कर्तृत्व से न सिर्फ स्वयं को प्रतिष्ठित किया वरन् उनके अवतरण से समग्र विश्व मानवता धन्य हुई है। इसी संतपुरुषों, गुरुओं एवं महामनीषियों की श्रृंखला में एक महामानव एवं सिद्धपुरुष हैं श्री रामकृष्ण परमहंस।

🇮🇳🔶 वे एक महान संत, शक्ति साधक तथा समाज सुधारक थे। इन्होंने अपना सारा जीवन निःस्वार्थ भाव से मानव सेवा के लिये व्यतीत किया, इनके विचारों का न केवल #कोलकाता बल्कि समूचे राष्ट्र के बुद्धिजीवियों पर गहरा सकारात्मक असर पड़ा तथा वे सभी इन्हीं की राह पर चल पड़े।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को #बंगाल प्रांत के #हुगली जिले के #कामारपुकुर ग्राम में हुआ था। इनके पिताजी का नाम #खुदीराम_चट्टोपाध्याय तथा माता का नाम #चंद्रमणि_देवी था। #गदाधर के जन्म के पहले ही उनके माता-पिता को कुछ अलौकिक लक्षणों का अनुभव होने लगा था, जिसके अनुसार वे यह समझ गए थे कि कुछ शुभ होने वाला हैं।

🇮🇳🔶 इनके पिता ने सपने में भगवान विष्णु को अपने घर में जन्म लेते हुए देखा तथा माता को शिव मंदिर में ऐसा प्रतीत हुआ कि एक तीव्र प्रकाश इनके गर्भ में प्रवेश कर रहा हैं। बाल्यकाल, यानी 7 वर्ष की अल्पायु में इनके पिता का देहांत हो गया तथा परिवार के सम्मुख आर्थिक संकट प्रकट हुआ, परन्तु इन्होंने कभी हार नहीं मानी।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस का जीवन साधनामय था और जन-जन को वे साधना की पगडंडी पर ले चले, प्रकाश स्तंभ की तरह उन्हें जीवन पथ का निर्देशन दिया एवं प्रेरणास्रोत बने। जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और कर्तृत्व से न सिर्फ स्वयं को प्रतिष्ठित किया वरन् उनके अवतरण से समग्र विश्व मानवता धन्य हुई है।

🇮🇳🔶 भारत का जन-जन श्री रामकृष्ण परमहंस की परमहंसी साधना का साक्षी है, उनकी गहन तपस्या के परमाणुओं से अभिषिक्त है यहां की माटी और धन्य है यहां की हवाएं जो इस भक्ति और साधना के शिखरपुरुष के योग से आप्लावित है। संसार के पूर्णत्व को जो महापुरुष प्राप्त हुए हैं, उन इने-गिने व्यक्तियों में वे एक थे। उनका जीवन ज्ञानयोग, कर्मयोग एवं भक्तियोग का समन्वय था।

🇮🇳🔶 उन्होंने हर इंसान को भाग्य की रेखाएं स्वयं निर्मित करने की जागृत प्रेरणा दी। स्वयं की अनन्त शक्तियों पर भरोसा और आस्था जागृत की। अध्यात्म और संस्कृति के वे प्रतीकपुरुष हैं। जिन्होंने एक नया जीवन-दर्शन दिया, जीने की कला सिखलाई।

🇮🇳🔶 #गदाधर_चट्टोपाध्याय उनके बचपन का नाम था। इन्होंने सभी धर्मों और जातियों की एकता तथा समानता हेतु जीवनभर कार्य किया, परिणामस्वरूप इन्हें राम-कृष्ण नाम सर्व साधारण द्वारा दिया गया एवं इनके उदार विचार एवं व्यापक सोच जो सभी के प्रति समभाव रखते थे, के कारण परमहंस की उपाधि प्राप्त हुई। बचपन से ही इनकी ईश्वर पर अडिग आस्था थी, ईश्वर के अस्तित्व को समस्त तत्वों में मानते थे तथा ईश्वर के प्राप्ति हेतु इन्होंने कठोर साधना भी की, ईश्वर प्राप्ति को ही सबसे बड़ा धन मानते थे।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस को दृढ़ विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं और यही वजह है कि उन्होंने ईश्वर की प्राप्ति के लिए भक्ति का मार्ग अपनाया और कठोर साधना की। वह मानवता के पुजारी थे और उनका दृष्टान्त था कि ईश्वर तक पहुंचने के रास्ते अलग-अलग हैं, लेकिन परमपिता परमेश्वर एक ही है। उन्होंने सभी धर्मों को एक माना तथा ईश्वर प्राप्ति हेतु केवल अलग-अलग मार्ग सिद्ध किया। वे माँ काली के परम भक्त थे, अपने दो गुरुओं #योगेश्वरी_भैरवी तथा #तोतापुरी के सान्निध्य में इन्होंने सिद्धि प्राप्त की, ईश्वर के साक्षात् दर्शन हेतु कठिन तप किया एवं सफल हुए। इन्होंने मुस्लिम तथा ईसाई धर्म की भी साधनाएँ की और सभी में एक ही ईश्वर को देखा। वे भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूतों में प्रमुख हैं।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस की भक्ति एवं साधना ने हजारों-लाखों को भक्ति-साधना के मार्ग पर अग्रसर किया। उनके जादुई हाथों के स्पर्श ने न जाने कितने व्यक्तियों में नयी चेतना का संचार हुआ, उन जैसे आत्मद्रष्टा ऋषि के उपदेशों का अचिन्त्य प्रभाव असंख्य व्यक्तियों के जीवन पर पड़ा। उनके प्रेरक जीवन ने अनेकों की दिशा का रूपान्तरण किया। उनकी पावन सन्निधि भक्ति, साधना एवं परोपकार की नयी किरणें बिखेरती रही अतः वे साधक ही नहीं, साधकों के महानायक थे। वे ब्रह्मर्षि और देवर्षि थे- साधना-भक्ति के नये-नये प्रयोगों का आविष्कार किया इसलिये ब्रह्मर्षि और ज्ञान का प्रकाश बॉटते रहे इसलिये देवर्षि।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस सिद्ध संतपुरुष थे, सिद्धि प्राप्ति के पश्चात, उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली तथा बहुत से बुद्धिजीवी, संन्यासी एवं सामान्य वर्ग के लोग उनके संसर्ग हेतु दक्षिणेश्वर काली मंदिर आने लगे। सभी के प्रति उनका स्वभाव बड़ा ही कोमल था, सभी वर्गों तथा धर्मों के लोगों को वे एक सामान ही समझते थे। वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं होता था जो परमहंसजी नहीं जान पाते थे, माँ काली की कृपा से वे त्रिकालदर्शी महापुरुष बन गए थे। रूढ़िवादी परम्पराओं का त्याग कर, उन्होंने समाज सुधार में अपना अमूल्य योगदान दिया। #ईश्वरचंद्र_विद्यासागर, #विजयकृष्ण_गोस्वामी, #केशवचन्द्र_सेन जैसे बंगाल के शीर्ष विचारक उनसे प्रेरणा प्राप्त करते थे। इसी श्रेणी में #स्वामी_विवेकानंद उनके प्रमुख शिष्य थे, उनके विचारों तथा भावनाओं का स्वामीजी ने सम्पूर्ण विश्व में प्रचार किया तथा हिन्दू सभ्यता तथा संस्कृति की अतुलनीय परम्परा को प्रस्तुत किया।

🇮🇳🔶 स्वामीजी ने परमहंस जी के मृत्यु के पश्चात रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो सम्पूर्ण विश्व में समाज सेवा, शिक्षा, योग, हिन्दू दर्शन पर आधारित कार्यों में संलग्न रहती हैं तथा प्रचार करती हैं, इनका मुख्यालय बेलूर, पश्चिम बंगाल में हैं। रामकृष्ण परमहंस, ठाकुर नाम से जाने जाने लगे थे, बंगाली में ठाकुर शब्द का अभिप्राय ईश्वर होता हैं, सभी उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे थे।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस ने अपना ज्यादातर जीवन एक परम भक्त की तरह बिताया। वे काली के परम भक्त थे। उनके लिए काली कोई देवी नहीं थीं, वह एक जीवित हकीकत थी। काली उनके सामने नाचती थीं, उनके हाथों से खाती थीं, उनके बुलाने पर आती थीं और उन्हें आनंदविभोर छोड़ जाती थीं। ऐसी चमत्कारी एवं अविस्मरणीय घटनाएं उनके साथ अक्सर घटित होती थी। जब उनके भीतर भक्ति प्रबल होतीं, तो वे आनंदविभोर हो जाते और नाचना-गाना शुरू कर देते। जब वह थोड़े मंद होते और काली से उनका संपर्क टूट जाता, तो वह किसी शिशु की तरह रोना शुरू कर देते।

🇮🇳🔶 उनकी चेतना इतनी ठोस थी कि वह जिस रूप की इच्छा करते थे, वह उनके लिए एक हकीकत बन जाती थी। इस स्थिति में होना किसी भी इंसान के लिए बहुत ही सुखद होता है। हालांकि उनका शरीर, मन और भावनाएं परमानंद से सराबोर थे, मगर उनका अस्तित्व इस परमानंद से परे जाने के लिए बेकरार था। उनके अंदर कहीं-न -कहीं एक जागरूकता थी कि यह परमानंद अपने आप में एक बंधन है।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस के अनुयायियों और शिष्यों में नाटकों के निर्देशक गिरीश चन्द्र घोष भी थे, उनके प्रति आघात स्नेह था। यही कारण है कि गिरीश की सब कुछ- तकलीफें और परेशानियां उन्होंने अपने ऊपर ले ली थी। इसी में उसके गले का रोग भी शामिल था, परिणामस्वरूप इनके गले में कर्क रोग हुआ तथा इसी रोग से इनकी मृत्यु हुई।

🇮🇳🔶 स्वामी विवेकानंद चिकित्सा कराते रहे परन्तु किसी भी प्रकार की चिकित्सा का उनके रोग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः 16 अगस्त 1886 की भोर होने से पहले ब्रह्म-मुहूर्त में इन्होंने महा-समाधि ली या कहे तो पंच तत्व के इस शरीर का त्याग कर ब्रह्म में विलीन हो गए। सचमुच उन्होंने अपने प्रत्येक क्षण को जिस चैतन्य, प्रकाश एवं अलौकिकता के साथ जीया, वह भारती ऋषि परम्परा के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है।

- ललित गर्ग

साभार: hastakshep.com

🇮🇳 भारत के महान संत एवं विचारक तथा स्वामी विवेकानन्द के गुरु #रामकृष्ण_परमहंस जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

 🇮🇳💐🙏 वन्दे मातरम् 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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Madan Lal Dhingra | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान् क्रान्तिकारी मदन लाल ढींगरा | 18 फ़रवरी, 1883 - 17 अगस्त, 1909




 #क्रांतिकारी

🇮🇳 #मदन लाल ढींगरा #Madan_Lal_Dhingra (जन्म- 18 फ़रवरी, 1883; मृत्यु- 17 अगस्त, 1909) भारतीय #स्वतंत्रता_संग्राम के महान् क्रान्तिकारी थे। स्वतंत्र भारत के निर्माण के लिए भारत-माता के कितने शूरवीरों ने हँसते-हँसते अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था, उन्हीं महान् शूरवीरों में ‘अमर शहीद मदन लाल ढींगरा’ का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है। अमर #शहीद मदन लाल ढींगरा महान् #देशभक्त, धर्मनिष्ठ क्रांतिकारी थे। उन्होंने #भारत_माँ की आज़ादी के लिए जीवन-पर्यन्त अनेक प्रकार के कष्ट सहन किए, परन्तु अपने मार्ग से विचलित न हुए और स्वाधीनता प्राप्ति के लिए फाँसी पर झूल गए।

🇮🇳 मदन लाल ढींगरा का जन्म सन् 1883 में #पंजाब में एक संपन्न #हिंदू #परिवार में हुआ था। उनके पिता सिविल सर्जन थे और अंग्रेज़ी रंग में पूरे रंगे हुए थे; परंतु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था। जब मदन लाल को भारतीय स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक विद्यालय से निकाल दिया गया, तो परिवार ने मदन लाल से नाता तोड़ लिया। मदन लाल को एक लिपिक के रूप में, एक तांगा-चालक के रूप में और एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा। वहाँ उन्होंने एक यूनियन (संघ) बनाने का प्रयास किया; परंतु वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में भी काम किया। अपनी बड़े भाई से विचार विमर्श कर वे सन् 1906 में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैड गये, जहां 'यूनिवर्सिटी कॉलेज' लंदन में यांत्रिक प्रौद्योगिकी में प्रवेश लिया। इसके लिए उन्हें उनके बड़े भाई एवं इंग्लैंड के कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से आर्थिक सहायता मिली।

🇮🇳 लंदन में वह #विनायक_दामोदर_सावरकर और #श्याम_जी_कृष्ण_वर्मा जैसे कट्टर देशभक्तों के संपर्क में आए। सावरकर ने उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। ढींगरा 'अभिनव भारत मंडल' के सदस्य होने के साथ ही #इंडिया_हाउस नाम के संगठन से भी जुड़ गए जो भारतीय विद्यार्थियों के लिए राजनीतिक गतिविधियों का आधार था। इस दौरान सावरकर और ढींगरा के अतिरिक्त ब्रिटेन में पढ़ने वाले अन्य बहुत से भारतीय छात्र भारत में #खुदीराम_बोस, #कनानी_दत्त, #सतिंदर_पाल और #कांशीराम जैसे देशभक्तों को फाँसी दिए जाने की घटनाओं से तिलमिला उठे और उन्होंने बदला लेने की ठानी।

🇮🇳 1 जुलाई 1909 को 'इंडियन नेशनल एसोसिएशन' के लंदन में आयोजित वार्षिक दिवस समारोह में बहुत से भारतीय और अंग्रेज़ शामिल हुए। ढींगरा इस समारोह में अंग्रेज़ों को सबक सिखाने के उद्देश्य से गए थे। अंग्रेज़ों के लिए भारतीयों से जासूसी कराने वाले ब्रिटिश अधिकारी सर कर्ज़न वाइली ने जैसे ही हाल में प्रवेश किया तो ढींगरा ने रिवाल्वर से उस पर चार गोलियां दाग़ दीं। कर्ज़न को बचाने की कोशिश करने वाला पारसी डॉक्टर कोवासी ललकाका भी ढींगरा की गोलियों से मारा गया।

🇮🇳 कर्ज़न वाइली को गोली मारने के बाद मदन लाल ढींगरा ने अपने पिस्तौल से अपनी हत्या करनी चाही; परंतु उन्हें पकड लिया गया। 23 जुलाई को ढींगरा के प्रकरण की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट, लंदन में हुई। उनको मृत्युदण्ड दिया गया और 17 अगस्त सन् 1909 को फाँसी दे दी गयी। इस महान् क्रांतिकारी के रक्त से #राष्ट्रभक्ति के जो बीज उत्पन्न हुए वह हमारे देश के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #माँ_भारती को परतंत्रता की बेडियों से मुक्त कराने के लिए हँसते-हँसते अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी #मदन_लाल_ढींगरा जी को उनकी #जयंती पर विनम्र #श्रद्धांजलि !

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साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
##Madan_Lal_Dhingra #freedomfighter  #inspirational_personality

Kejriwal Played with the Judiciary | केजरीवाल ने न्यायपालिका के साथ किया खिलवाड़ | लेखक : सुभाष चन्द्र




3 दिन में 3 मामले और केजरीवाल ने कैसे  पुंज कर दी न्यायपालिका -

मेरी बात हो सकता है कुछ अजीब लगे परंतु दिखाई तो यही दे रहा है कि केजरीवाल न्यायपालिका को नाच नचाने में सफल हो रहा है - ऐसा पिछले 3 दिनों में साफ़ नज़र आया - आइए इन मामलों पर नज़र डालते हैं -


-कल #शराब_घोटाले में #ED के समन के संबंध में #केजरीवाल को #Rouse_Avenue_court में पेश होना था लेकिन उसके पहले उसने #विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव और #बजट अधिवेशन रख दिया और जज साहब को #virtually पेश हो कर गोली खिला दी कि अभी वह नहीं आ सकता और जज साहब ने एक माह बाद 16 मार्च की तारीख लगा दी - इतनी लंबी तारीख लगाने का क्या मतलब था, विधानसभा का अधिवेशन चल रहा है तो कोर्ट उसे रविवार को बुला सकता था या रात के समय बुला सकता था लेकिन लगता है कोर्ट की ऐसी कोई मंशा थी ही नहीं;


-दूसरे केस में देखिए, #सुप्रीम_कोर्ट में #CJI #चंद्रचूड़ को दिल्ली #हाई_कोर्ट की तरफ से बताया जाता है कि केजरीवाल की “आम आदमी पार्टी” ने हाई कोर्ट को 2020 में आबंटित की गई जमीन पर कब्ज़ा कर उस पर अपना ऑफिस बना लिया है और अब उसे वापस देने को तैयार नहीं है - चंद्रचूड़ जी भड़क गए कि कोई पार्टी ऐसा कैसे कर सकती है मगर वह तो एक “चुनी हुई सरकार” ने किया था और “आप” ने अदालत में कह दिया कि वह जमीन 2016 में हमें मिली थी, हमने कोई #Enchroachment नहीं किया है - अब सवाल उठता है कि 4 साल से जमीन पर “#आप” ने कब्ज़ा किया हुआ था तो दिल्ली हाई कोर्ट क्या भजन कर रहा था;

वीडियो देखने के लिए क्लिक करें 


https://youtu.be/5tirWSw98A8

-तीसरा मामला वर्ष 2014 का है - सुप्रीम कोर्ट के #जस्टिस #M_M_Sundresh और जस्टिस  #S_V_N_Bhatti की पीठ ने चौथी बार केजरीवाल पर #मुकदमा चलाने पर रोक को बढ़ा दिया -यह मामला 2 मई, 2014 का है (10 साल पुराना) जब केजरीवाल मुख्यमंत्री नहीं था, तब उसने #उत्तर_प्रदेश की एक चुनाव सभा में बयान दिया था :-

“जो कांग्रेस को वोट देंगे, उन्हें गद्दार माना जाएगा और जो #भाजपा को वोट देंगे, उन्हें “खुदा” भी कभी माफ़ नहीं करेगा”

एक शिकायतकर्ता ने #People #Representation #Act के #section_125 में दर्ज केस करा दिया जिसमे लोगों के बीच “#religion, #race, #caste, #community या #Language के आधार पर नफरत फ़ैलाने के आरोप में 3 साल की सजा का प्रावधान है - ये केस सुल्तानपुर ट्रायल कोर्ट में लंबित है जिसे रद्द करने की केजरीवाल की याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 9 साल बाद 16 जनवरी, 2023 को ख़ारिज कर दी थी –


अब आप देखिए कि 10 साल बाद भी सुप्रीम कोर्ट केजरीवाल पर मुकदमा चलाने पर रोक लगा रहा है तो कब केस चलेगा और कब फैसला होगा - सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि “Let the interim order continue. What is all this? These are all #irrelevant #matters. It is not a matter for us to go into,”


सुप्रीम कोर्ट को अगर लगता है कि यह irrelevant matter है तो खारिज कर देना चाहिए लेकिन इतने समय बाद केस रोकना नहीं चाहिए - उस समय केजरीवाल क्योंकि मुख्यमंत्री नहीं था तो आज उस केस का खर्च भी दिल्ली सरकार को वहन नहीं करना चाहिए जबकि हर तारीख पर केजरीवाल की तरफ से #अभिषेक_मनु_सिंघवी सुप्रीम कोर्ट जाता है और लाखों की फीस लेता होगा -


यह खर्च केजरीवाल को उठाना चाहिए, मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि कुछ समय पहले #पंजाब की #भगवंत_मान_सरकार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री  #कैप्टन_अमरिंदर सिंह और जेल मंत्री रहे #सुखजिंदर_सिंह_रंधावा से 55 लाख रुपए की मांग की थी #मुख़्तार_अंसारी पर हुए खर्च की भरपाई के लिए - ऐसे में केजरीवाल के मुक़दमे का खर्च भी उसे खुद ही उठाना चाहिए - इतना ही नहीं मोदी की डिग्री केस में भी सारा खर्च केजरीवाल को उठाना चाहिए क्योंकि #मोदी की डिग्री मांगना और उसके लिए आरोप लगाना केजरीवाल ने #मुख्यमंत्री की हैसियत से नहीं किया था -


अदालतों को केजरीवाल पर सख्त होना चाहिए वरना यह व्यक्ति अपने मामले लटकाने में सफल होता रहेगा - "लेखक के निजी विचार हैं "


 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 18/02/2024 

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17 फ़रवरी 2024

Karpoori Thakur | स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर | 24 जनवरी 1924 - 17 फरवरी 1988

 



Karpoori Thakur | स्वतंत्रता सेनानी  कर्पूरी ठाकुर  | (24 जनवरी 1924 - 17 फरवरी 1988)

#Karpoori_Thakur was an Indian #politician who served two terms as the 11th #Chief_Minister of #Bihar, first from December 1970 to June 1971, and then from June 1977 to April 1979. He was popularly known as #Jan_Nayak.

#कर्पूरी_ठाकुर भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री तथा दो बार मुख्यमंत्री थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें 'जननायक' कहा जाता है।23 जनवरी 2024 को भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरान्त भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न से सम्मानित करने की घोषणा की है।

🇮🇳 कर्पूरी ठाकुर #बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था। ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए।

🇮🇳 जब करोड़ो रुपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता। उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं। उनसे जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते में उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा। उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। उसके बाद अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, “जाइए, उस्तरा आदि ख़रीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।”

🇮🇳 कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे #रामनाथ को पत्र लिखना नहीं भूले। इस पत्र में क्या था, इसके बारे में रामनाथ कहते हैं, “पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं- तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।” रामनाथ ठाकुर इन दिनों भले राजनीति में हों और पिता के नाम का लाभ भी उन्हें मिला हो, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन में उन्हें राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने का काम नहीं किया।

🇮🇳 उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में लिखा, “कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- #कर्पूरीजी कभी आपसे पाँच-दस हज़ार रुपये माँगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में #देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरी जी ने कुछ माँगा। हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ माँगते ही नहीं।

🇮🇳 कर्पूरी जी के मुख्यमंत्री रहते हुए ही उनके क्षेत्र के कुछ सामंती यादव जमींदारों ने उनके पिता को सेवा के लिये बुलाया। जब वे बीमार होने के नाते नहीं पहुंच सके तो जमींदार ने अपने लठैतों से मारपीट कर लाने का आदेश दिया। जिसकी सूचना किसी प्रकार जिला प्रशासन को हो गयी तो तुरन्त जिला प्रशासन कर्पूरी जी के घर पहुँच गया और उधर लठैत पहुँचे ही थे। लठैतो को बंदी बना लिया गया किन्तु कर्पूरी ठाकुर जी ने सभी लठैतों को जिला प्रशासन से बिना शर्त छोडने का आग्रह किया तो अधिकारीगणों ने कहा कि इन लोगों ने मुख्यमंत्री के पिता को प्रताडित करने का कार्य किया इन्हे हम किसी शर्त पर नही छोड सकते थे। कर्पूरी ठाकुर जी ने कहा " इस प्रकार के पता नही कितने असहाय लाचार एवं शोषित लोग प्रतिदिन लाठियाँ खाकर दम तोडते है काम करते है कहाँ तक, किस किस को बचाओगे। क्या सभी मुख्यमंत्री के माँ बाप है। इनको इसलिये दंडित किया जा रहा है कि इन्होने मुख्यमंत्री के पिता को उत्पीड़ित किया है, सामान्य जनता को कौन बचायेगा। जाओ प्रदेश के कोने कोने मे शोषण उत्पीड़न के खिलाफ अभियान चलाओ और एक भी परिवार सामंतों के जुल्मों सितम का शिकार न होने पाये" लठैतों को कर्पूरी जी ने छुडवा दिया। इस प्रकार वे पक्षपात एवं मानवता का मसीहा कहा जाना अतिश्योक्ति नहीं है।

🇮🇳 अस्सी के दशक की बात है. बिहार विधान सभा की बैठक चल रही थी. कर्पूरी ठाकुर विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे. उन्होंने एक नोट भिजवा कर अपने ही दल के एक विधायक से थोड़ी देर के लिए उनकी जीप माँगी. उन्हें लंच के लिए आवास जाना था.

उस विधायक ने उसी नोट पर लिख दिया, ‘मेरी जीप में तेल नहीं है. कर्पूरी जी दो बार मुख्यमंत्री रहे. कार क्यों नहीं खरीदते?’ यह संयोग नहीं था कि संपत्ति के प्रति अगाध प्रेम के चलते वह विधायक बाद के वर्षों में अनेक कानूनी परेशानियों में पड़े, पर कर्पूरी ठाकुर का जीवन बेदाग रहा.

🇮🇳 एक बार उप मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे. क्योंकि उनकी जायज आय कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती ।

🇮🇳 कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गाँव गए थे. बहुगुणा जी कर्पूरी ठाकुर की पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे.

स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार विधायक रहे, पर अपने लिए उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया.

🇮🇳 सत्तर के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी. खुद कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ विधायकों ने कर्पूरी ठाकुर से कहा कि आप भी अपने आवास के लिए जमीन ले लीजिए.

🇮🇳 कर्पूरी ठाकुर ने साफ मना कर दिया. तब के एक विधायक ने उनसे यह भी कहा था कि जमीन ले लीजिए.अन्यथा आप नहीं रहिएगा तो आपका बाल-बच्चा कहाँ रहेगा? कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अपने गॉंव में रहेगा.

🇮🇳 कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ नेता अपने यहाँ की शादियों में करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं.पर जब कर्पूरी ठाकुर को अपनी बेटी की शादी करनी हुई तो उन्होंने क्या किया था? उन्होंने इस मामले में भी आदर्श उपस्थित किया.

🇮🇳 1970-71 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री थे. रांची के एक गाँव में उन्हें वर देखने जाना था. तब तक बिहार का विभाजन नहीं हुआ था. कर्पूरी ठाकुर सरकारी गाड़ी से नहीं जाकर वहाँ टैक्सी से गये थे. शादी समस्तीपुर जिला स्थित उनके पुश्तैनी गाँव #पितौंजिया में हुई. कर्पूरी ठाकुर चाहते थे कि शादी  देवघर मंदिर में हो, पर उनकी पत्नी की जिद पर गाँव में शादी हुई. कर्पूरी ठाकुर ने अपने मंत्रिमंडल के किसी सदस्य को भी उस शादी में आमंत्रित नहीं किया था. यहाँ तक कि उन्होंने संबंधित अफसर को यह निर्देश दे दिया था कि बिहार सरकार का कोई भी विमान मेरी यानी मुख्यमंत्री की अनुमति के बिना उस दिन दरभंगा या सहरसा हवाई अड्डे पर नहीं उतरेगा. पितौंजिया के पास के हवाई अड्डे वहीं थे.आज के कुछ तथाकथित समाजवादी नेता तो शादी को भी ‘सम्मेलन’ बना देते हैं. भ्रष्ट अफसर और व्यापारीगण सत्ताधारी नेताओं के यहाँ की शादियों के अवसरों पर करोड़ों का खर्च जुटाते हैं. कर्पूरी ठाकुर के जमाने में भी थोड़ा बहुत यह सब होता था, पर कर्पूरी ठाकुर तो अपवाद थे.

🇮🇳 हालांकि उनकी साधनहीनता भी उन्हें दो बार मुख्यमंत्री बनने से रोक भी नहीं सकी. 1977 में जेपी आवास पर जयप्रकाश नारायण का जन्म दिन मनाया जा रहा था.

पटना के कदम कुआँ स्थित चरखा समिति भवन में, जहाँ जेपी रहते थे, देश भर से जनता पार्टी के बड़े नेता जुटे हुए थे. उन नेताओं में चंद्रशेखर, नानाजी देशमुख शामिल थे. मुख्यमंत्री पद पर रहने बावजूद फटा कुर्ता, टूटी चप्पल और बिखरे बाल कर्पूरी ठाकुर की पहचान थे. उनकी दशा देखकर एक नेता ने टिप्पणी की, ‘किसी मुख्यमंत्री के ठीक ढंग से गुजारे के लिए कितना वेतन मिलना चाहिए?’ सब निहितार्थ समझ गए. हंसे. फिर चंद्रशेखर अपनी सीट से उठे. उन्होंने अपने लंबे कुर्ते को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर सामने की ओर फैलाया. वह बारी-बारी से वहां बैठे नेताओं के पास जाकर कहने लगे कि आप कर्पूरी जी के कुर्ता फंड में दान कीजिए. तुरंत कुछ सौ रुपए एकत्र हो गए. उसे समेट कर चंद्रशेखर जी ने कर्पूरी जी को थमाया और कहा कि इससे अपना कुर्ता-धोती ही खरीदिए. कोई दूसरा काम मत कीजिएगा. चेहरे पर बिना कोई भाव लाए कर्पूरी ठाकुर ने कहा, ‘इसे मैं मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करा दूंगा.’

🇮🇳 यानी तब समाजवादी आंदोलन के कर्पूरी ठाकुर को उनकी सादगी और ईमानदारी के लिए जाना जाता था, पर आज के कुछ समाजवादी नेताओं को? कम कहना और अधिक समझना !

साभार: wikipedia.org

स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और आदर्श जन-नायक #कर्पूरी_ठाकुर जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

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 🇮🇳💐🙏 वन्दे मातरम् 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
#Karpoori_Thakur  #freedomfighter  #inspirational_personality

Freedom Fighter | Budhu Bhagat | क्रांतिकारी बुधु भगत | (17 फरवरी, 1792 -13 फरवरी, 1832)




#क्रांतिकारी बुधु भगत का जन्म आज ही के दिन 17 फरवरी, 1792 में #रांची (झारखंड) में हुआ था।

#Budhu_Bhagat was an #Indian #freedom_fighter. He had led #guerrilla #warfare against #British. He was #leader of #Kol #rebellion and #Larka #rebellion in 1831—32 in #Chhotanagpur. 

🇮🇳 #कोल_विद्रोह के दाैरान अंग्रेज सैनिकों ने अंधाधुंध गोलियाँ चलायीं। बच्चे, बूढ़े और महिलाओं तक को नहीं बख्शा. देखते ही देखते 300 लाशें बिछ गयीं। अंग्रेज सैनिकों के खूनी तांडव के बाद लोगों के भीषण चीत्कार से पूरा इलाका काँप उठा। 🇮🇳

🇮🇳 #क्रांतिकारी_बुधु_भगत का जन्म आज ही के दिन 17 फरवरी, 1792 में #रांची (झारखंड) में हुआ था। वे बचपन से ही तलवारबाजी और धनुर्विद्या का अभ्यास करते थे। साथ में हमेशा कुल्हाड़ी रखते थे। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई आंदोलन किए। जनजातियों को बचाने के लिए शुरू किए गए #लरका_आंदोलन और #कोल_विद्रोह की अगुआई की। अपने दस्ते को गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया। अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए उस समय एक हजार रुपये के इनाम की घोषणा की थी। 13 फरवरी, 1832 को अपने गाँव #सिलागाई में अंग्रेजों की सेना से लोहा लेते हुए साथियों के साथ शहीद हो गए। 

🇮🇳 भारत के स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड के अनेकों लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया। अनेकों ने आदिवासी समाज और देश की अस्मिता की रक्षा के लिए अपने प्राण कुर्बान कर दिये। ऐसे ही एक महानायक थे वीर बुधु भगत। रांची जिले के #चान्हो प्रखंड स्थित #सिलागांई गाँव में 17 फरवरी, 1792 को एक उरांव आदिवासी परिवार में जन्मे बुधु भगत 1831-32 के कोल विद्रोह के महानायक थे। बुधु भगत ने अंग्रेजी सेना के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी। इसे इतिहास में लरका आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। 

🇮🇳 छोटा नागपुर के रांची और आसपास के इलाके के लोगों पर बुधु की जबरदस्त पकड़ी थी। उनके एक इशारे पर हजारों लोग अपनी जान तक कुर्बान करने के लिए तैयार रहते थे। बुधु भगत का सैनिक अड्डा चोगारी पहाड़ की चोटी पर घने जंगलों के बीच था। यहीं पर रणनीतियां बनती थीं। 

🇮🇳 ऐसा कहा जाता था कि वीर बुधु भगत को दैवीय शक्तियाँ प्राप्त थीं। इसलिए वह एक कुल्हाड़ी सदैव अपने साथ रखते थे। कोल आंदोलन के जननेता बुधु भगत ने अंग्रेजों के चाटुकार जमींदारों, दलालों के विरुद्ध भूमि, वन की सुरक्षा के लिए जंग छेड़ी थी। आंदोलन में भारी संख्या में अंग्रेजी सेना तथा आंदोलनकारी मारे गये थे। बुधु भी 13 फरवरी, 1832 को शहीद हो गए। उनकी कहानियाँ आज भी उन जंगलों में सुनी जाती हैं। 

🇮🇳 कोल विद्रोह के दाैरान अंग्रेज सैनिकों ने अंधाधुंध गोलियाँ चलायीं। बच्चे, बूढ़े और महिलाओं तक को नहीं बख्शा. देखते ही देखते 300 लाशें बिछ गयीं। अंग्रेज सैनिकों के खूनी तांडव के बाद लोगों के भीषण चीत्कार से पूरा इलाका काँप उठा। अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर खामोश कर दिया गया। बुधु भगत अपने दो बेटों च्हलधरज् और च्गिरधरज् के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। कहते हैं कि अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले इस आदिवासी वीर को उनके साथियों के साथ कैप्टन इंपे ने सिलागांई गांव में घेर लिया। बुधु भगत चारों ओर से अंग्रेज सैनिकों से घिर चुके थे। वह जानते थे कि अंग्रेज फायरिंग करेंगे। इसमें बेगुनाह ग्रामीण भी मर सकते हैं। इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण का प्रस्ताव रखा। लेकिन, क्रूर अंग्रेज अधिकारी ने बुधु भगत और उनके समर्थकों को घेरकर गोलियाँ चलाने के आदेश दे दिए। 

साभार: jagran.com

प्रसिद्ध क्रांतिकारी तथा #लरका_विद्रोह के आरम्भकर्ता #बुधु_भगत जी की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

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 🇮🇳💐🙏 वन्दे मातरम् 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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Vasudev Balwant Phadke | महान क्रांतिकारी | वासुदेव बलवंत फड़के | (4 नवंबर, 1845 -17 फरवरी, 1883)


 

Vasudev Balwant Phadke | महान क्रांतिकारी |  वासुदेव बलवंत फड़के |   (4 नवंबर, 1845 -17 फरवरी, 1883)

Vasudev Balwant Phadke, an early luminary of the #Indian #independence #movement. He ignited the fervor of resistance against #British #imperialism, #inspiring and mobilising the masses to ardently pursue the cause of #India's #liberation. #VasudevBalwantPhadke

🇮🇳 17 फरवरी, 1883 को कालापानी की सजा काटते हुए जेल के अंदर ही देश का यह वीर सपूत बलिदान हो गया। 🇮🇳

🇮🇳 अगर बात करे भारतीय #स्वतंत्रता की क्रांति और उन #क्रांतिकारियों की जिनकी वजह से देश को आजादी मिली तो इतिहास की रेत में शायद हज़ारों नाम दबे मिले। पर हम सिर्फ कुछ नामों से ही रु-ब-रु हुए हैं। वैसे तो भारत माँ के इन सभी सपूतों के बारे में जानकारी सहेजने की कोशिश जारी है ताकि आने वाली हर पीढ़ी इनके बलिदान को जान-समझ सके।

🇮🇳 ऐसा ही एक महान क्रांतिकारी और भारत माँ का सच्चा बेटा था वासुदेव बलवंत फड़के! फड़के ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का संगठन करने वाले भारत के प्रथम क्रान्तिकारी थे। उनका जन्म 4 नवंबर, 1845 को महाराष्ट्र के #रायगड जिले के #शिरढोणे गाँव में हुआ था।

🇮🇳 साल 1857 की क्रांति की विफलता के बाद एक बार फिर भारतीयों में संघर्ष की चिंगारी फड़के ने ही जलाई थी।

🇮🇳 वासुदेव बलवन्त फड़के बचपन से ही बड़े तेजस्वी और बहादुर बालक थे। उन्हें वनों और पर्वतों में घूमने का बड़ा शौक़ था। #कल्याण और #पुणे में उनकी शिक्षा पूरी हुई। फड़के के पिता चाहते थे कि वह एक व्यापारी की दुकान पर दस रुपए मासिक वेतन की नौकरी कर लें। लेकिन फड़के ने यह बात नहीं मानी और मुम्बई आ गए।

🇮🇳 उन्होंने 15 साल पुणे के मिलिट्री एकाउंट्स डिपार्टमेंट में नौकरी की। इस सबके दौरान फड़के लगातार अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के सम्पर्क में रहे। उन पर खास प्रभाव #महादेव_गोविन्द_रानाडे का था। फड़के के में पहले ही ब्रिटिश राज के खिलाफ बग़ावत के बीज पड़ चुके थे।

🇮🇳 ऐसे में एक और घटना हुई और इस घटना ने फड़के के पूरे जीवन को ही बदल दिया। साल 1871 में, एक शाम उनकी माँ की तबियत खराब होने का तार उनको मिला। इसमें लिखा था कि ‘वासु’ (वासुदेव बलवन्त फड़के) तुम शीघ्र ही घर आ जाओ, नहीं तो माँ के दर्शन भी शायद न हो सकेंगे।

🇮🇳 इस तार को पढ़कर वे विचलित हो गये और अपने अंग्रेज़ अधिकारी के पास अवकाश का प्रार्थना-पत्र देने के लिए गए। किन्तु अंग्रेज़ तो भारतीयों को अपमानित करने के लिए तैयार रहते थे। उस अंग्रेज़ अधिकारी ने उन्हें छुट्टी नहीं दी, लेकिन फड़के दूसरे दिन अपने गाँव चले आए।

🇮🇳 पर गाँव जाकर देखा कि माँ तो अपने प्यारे वासु को देखे बिना ही इस दुनिया को छोड़ गयीं। इस बात का उनके मन पर बहुत आघात हुआ और उन्होंने तभी वह अंग्रेजी नौकरी छोड़ दी।

🇮🇳 देश में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर उन्होंने भी ब्रिटिश राज के खिलाफ जंग की तैयारी शुरू कर दी। उन्हें देशी राज्यों से कोई सहायता नहीं मिली तो फड़के ने शिवाजी का मार्ग अपनाकर #आदिवासियों की सेना संगठित करने की कोशिश शुरू की।

🇮🇳 साल 1879 में उन्होंने अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दी। उन्होंने पूरे #महाराष्ट्र में घूम-घूमकर नवयुवकों से विचार-विमर्श किया, और उन्हें संगठित करने का प्रयास किया।  महाराष्ट्र की कोळी, भील तथा धांगड जातियों को एकत्र कर उन्होने #रामोशी नाम का क्रान्तिकारी संगठन खड़ा किया। अपने इस मुक्ति संग्राम के लिए धन एकत्र करने के लिए उन्होने धनी अंग्रेज साहुकारों को लूटा।

🇮🇳 महाराष्ट्र के सात ज़िलों में वासुदेव फड़के की सेना का ज़बर्दस्त प्रभाव फैल चुका था। जिससे अंग्रेज़ अफ़सर डर गए थे। इस कारण एक दिन बातचीत करने के लिए वे विश्राम बाग़ में इकट्ठा हुए। वहाँ पर एक सरकारी भवन में बैठक चल रही थी।

🇮🇳 13 मई, 1879 को रात 12 बजे वासुदेव बलवन्त फड़के अपने साथियों सहित वहाँ आ गए। अंग्रेज़ अफ़सरों को मारा तथा भवन को आग लगा दी। उसके बाद अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ने पर पचास हज़ार रुपए का इनाम घोषित किया। किन्तु दूसरे ही दिन मुम्बई नगर में वासुदेव के हस्ताक्षर से इश्तहार लगा दिए गए कि जो अंग्रेज़ अफ़सर ‘रिचर्ड’ का सिर काटकर लाएगा, उसे 75 हज़ार रुपए का इनाम दिया जाएगा। अंग्रेज़ अफ़सर इससे और भी बौखला गए।

🇮🇳 फड़के की सेना और अंग्रेजी सेना में कई बार मुठभेड़ हुई, पर उन्होंने अंग्रेजी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। लेकिन फड़के की सेना का गोला-बारूद धीरे-धीरे खत्म होने लगा। ऐसे में उन्होंने कुछ समय शांत रहने में ही समझदारी मानी और वे पुणे के पास के आदिवासी इलाकों में छिप गये।

🇮🇳 20 जुलाई, 1879 को फड़के बीमारी की हालत में एक मंदिर में आराम कर रहे थे। पर किसी ने उनके यहाँ होने की खबर ब्रिटिश अफसर को दे दी। और उसी समय उनको गिरफ्तार कर लिया गया। उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया और उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गयी।

🇮🇳 लेकिन एक बहुत ही विख्यात वकील #महादेव_आप्टे ने उनकी पैरवी की। जिसके बाद उनकी मौत की सजा को #कालापानी की सजा में बदल दिया गया और उन्हें #अंडमान की जेल में भेजा गया। 17 फरवरी, 1883 को कालापानी की सजा काटते हुए जेल के अंदर ही देश का यह वीर सपूत शहीद हो गया।

🇮🇳 साल 1984 में भारतीय डाक सेवा ने उनके सम्मान में एक पोस्टल स्टैम्प भी जारी की। दक्षिण मुंबई में उनकी एक मूर्ति की स्थापना भी की गयी।

🇮🇳 देश के इस महान क्रांतिकारी को द बेटर इंडिया का कोटि-कोटि नमन!

साभार: thebetterindia.com

कालापानी की सजा काटते हुए अंडमान की जेल के अंदर ही बलिदान हुए, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी #वासुदेव_बलवन्त_फड़के जी को उनके बलिदान दिवस पर कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

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🇮🇳💐🙏 वन्दे मातरम् 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व
साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...