18 फ़रवरी 2024

Sri Ramakrishna Paramhansa | Social Reformer | समाज सुधारक | श्री रामकृष्ण परमहंस |18 फरवरी 1836-16 अगस्त 1886

 



🇮🇳🔶 भारत की #रत्नगर्भा #वसुंधरा माटी में कई संत और महान व्यक्ति हुए हैं जिन्हें उनके कर्म, ज्ञान और महानता के लिए आज भी याद किया जाता है। जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और कर्तृत्व से न सिर्फ स्वयं को प्रतिष्ठित किया वरन् उनके अवतरण से समग्र विश्व मानवता धन्य हुई है। इसी संतपुरुषों, गुरुओं एवं महामनीषियों की श्रृंखला में एक महामानव एवं सिद्धपुरुष हैं श्री रामकृष्ण परमहंस।

🇮🇳🔶 वे एक महान संत, शक्ति साधक तथा समाज सुधारक थे। इन्होंने अपना सारा जीवन निःस्वार्थ भाव से मानव सेवा के लिये व्यतीत किया, इनके विचारों का न केवल #कोलकाता बल्कि समूचे राष्ट्र के बुद्धिजीवियों पर गहरा सकारात्मक असर पड़ा तथा वे सभी इन्हीं की राह पर चल पड़े।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को #बंगाल प्रांत के #हुगली जिले के #कामारपुकुर ग्राम में हुआ था। इनके पिताजी का नाम #खुदीराम_चट्टोपाध्याय तथा माता का नाम #चंद्रमणि_देवी था। #गदाधर के जन्म के पहले ही उनके माता-पिता को कुछ अलौकिक लक्षणों का अनुभव होने लगा था, जिसके अनुसार वे यह समझ गए थे कि कुछ शुभ होने वाला हैं।

🇮🇳🔶 इनके पिता ने सपने में भगवान विष्णु को अपने घर में जन्म लेते हुए देखा तथा माता को शिव मंदिर में ऐसा प्रतीत हुआ कि एक तीव्र प्रकाश इनके गर्भ में प्रवेश कर रहा हैं। बाल्यकाल, यानी 7 वर्ष की अल्पायु में इनके पिता का देहांत हो गया तथा परिवार के सम्मुख आर्थिक संकट प्रकट हुआ, परन्तु इन्होंने कभी हार नहीं मानी।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस का जीवन साधनामय था और जन-जन को वे साधना की पगडंडी पर ले चले, प्रकाश स्तंभ की तरह उन्हें जीवन पथ का निर्देशन दिया एवं प्रेरणास्रोत बने। जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और कर्तृत्व से न सिर्फ स्वयं को प्रतिष्ठित किया वरन् उनके अवतरण से समग्र विश्व मानवता धन्य हुई है।

🇮🇳🔶 भारत का जन-जन श्री रामकृष्ण परमहंस की परमहंसी साधना का साक्षी है, उनकी गहन तपस्या के परमाणुओं से अभिषिक्त है यहां की माटी और धन्य है यहां की हवाएं जो इस भक्ति और साधना के शिखरपुरुष के योग से आप्लावित है। संसार के पूर्णत्व को जो महापुरुष प्राप्त हुए हैं, उन इने-गिने व्यक्तियों में वे एक थे। उनका जीवन ज्ञानयोग, कर्मयोग एवं भक्तियोग का समन्वय था।

🇮🇳🔶 उन्होंने हर इंसान को भाग्य की रेखाएं स्वयं निर्मित करने की जागृत प्रेरणा दी। स्वयं की अनन्त शक्तियों पर भरोसा और आस्था जागृत की। अध्यात्म और संस्कृति के वे प्रतीकपुरुष हैं। जिन्होंने एक नया जीवन-दर्शन दिया, जीने की कला सिखलाई।

🇮🇳🔶 #गदाधर_चट्टोपाध्याय उनके बचपन का नाम था। इन्होंने सभी धर्मों और जातियों की एकता तथा समानता हेतु जीवनभर कार्य किया, परिणामस्वरूप इन्हें राम-कृष्ण नाम सर्व साधारण द्वारा दिया गया एवं इनके उदार विचार एवं व्यापक सोच जो सभी के प्रति समभाव रखते थे, के कारण परमहंस की उपाधि प्राप्त हुई। बचपन से ही इनकी ईश्वर पर अडिग आस्था थी, ईश्वर के अस्तित्व को समस्त तत्वों में मानते थे तथा ईश्वर के प्राप्ति हेतु इन्होंने कठोर साधना भी की, ईश्वर प्राप्ति को ही सबसे बड़ा धन मानते थे।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस को दृढ़ विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं और यही वजह है कि उन्होंने ईश्वर की प्राप्ति के लिए भक्ति का मार्ग अपनाया और कठोर साधना की। वह मानवता के पुजारी थे और उनका दृष्टान्त था कि ईश्वर तक पहुंचने के रास्ते अलग-अलग हैं, लेकिन परमपिता परमेश्वर एक ही है। उन्होंने सभी धर्मों को एक माना तथा ईश्वर प्राप्ति हेतु केवल अलग-अलग मार्ग सिद्ध किया। वे माँ काली के परम भक्त थे, अपने दो गुरुओं #योगेश्वरी_भैरवी तथा #तोतापुरी के सान्निध्य में इन्होंने सिद्धि प्राप्त की, ईश्वर के साक्षात् दर्शन हेतु कठिन तप किया एवं सफल हुए। इन्होंने मुस्लिम तथा ईसाई धर्म की भी साधनाएँ की और सभी में एक ही ईश्वर को देखा। वे भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूतों में प्रमुख हैं।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस की भक्ति एवं साधना ने हजारों-लाखों को भक्ति-साधना के मार्ग पर अग्रसर किया। उनके जादुई हाथों के स्पर्श ने न जाने कितने व्यक्तियों में नयी चेतना का संचार हुआ, उन जैसे आत्मद्रष्टा ऋषि के उपदेशों का अचिन्त्य प्रभाव असंख्य व्यक्तियों के जीवन पर पड़ा। उनके प्रेरक जीवन ने अनेकों की दिशा का रूपान्तरण किया। उनकी पावन सन्निधि भक्ति, साधना एवं परोपकार की नयी किरणें बिखेरती रही अतः वे साधक ही नहीं, साधकों के महानायक थे। वे ब्रह्मर्षि और देवर्षि थे- साधना-भक्ति के नये-नये प्रयोगों का आविष्कार किया इसलिये ब्रह्मर्षि और ज्ञान का प्रकाश बॉटते रहे इसलिये देवर्षि।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस सिद्ध संतपुरुष थे, सिद्धि प्राप्ति के पश्चात, उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली तथा बहुत से बुद्धिजीवी, संन्यासी एवं सामान्य वर्ग के लोग उनके संसर्ग हेतु दक्षिणेश्वर काली मंदिर आने लगे। सभी के प्रति उनका स्वभाव बड़ा ही कोमल था, सभी वर्गों तथा धर्मों के लोगों को वे एक सामान ही समझते थे। वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं होता था जो परमहंसजी नहीं जान पाते थे, माँ काली की कृपा से वे त्रिकालदर्शी महापुरुष बन गए थे। रूढ़िवादी परम्पराओं का त्याग कर, उन्होंने समाज सुधार में अपना अमूल्य योगदान दिया। #ईश्वरचंद्र_विद्यासागर, #विजयकृष्ण_गोस्वामी, #केशवचन्द्र_सेन जैसे बंगाल के शीर्ष विचारक उनसे प्रेरणा प्राप्त करते थे। इसी श्रेणी में #स्वामी_विवेकानंद उनके प्रमुख शिष्य थे, उनके विचारों तथा भावनाओं का स्वामीजी ने सम्पूर्ण विश्व में प्रचार किया तथा हिन्दू सभ्यता तथा संस्कृति की अतुलनीय परम्परा को प्रस्तुत किया।

🇮🇳🔶 स्वामीजी ने परमहंस जी के मृत्यु के पश्चात रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो सम्पूर्ण विश्व में समाज सेवा, शिक्षा, योग, हिन्दू दर्शन पर आधारित कार्यों में संलग्न रहती हैं तथा प्रचार करती हैं, इनका मुख्यालय बेलूर, पश्चिम बंगाल में हैं। रामकृष्ण परमहंस, ठाकुर नाम से जाने जाने लगे थे, बंगाली में ठाकुर शब्द का अभिप्राय ईश्वर होता हैं, सभी उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे थे।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस ने अपना ज्यादातर जीवन एक परम भक्त की तरह बिताया। वे काली के परम भक्त थे। उनके लिए काली कोई देवी नहीं थीं, वह एक जीवित हकीकत थी। काली उनके सामने नाचती थीं, उनके हाथों से खाती थीं, उनके बुलाने पर आती थीं और उन्हें आनंदविभोर छोड़ जाती थीं। ऐसी चमत्कारी एवं अविस्मरणीय घटनाएं उनके साथ अक्सर घटित होती थी। जब उनके भीतर भक्ति प्रबल होतीं, तो वे आनंदविभोर हो जाते और नाचना-गाना शुरू कर देते। जब वह थोड़े मंद होते और काली से उनका संपर्क टूट जाता, तो वह किसी शिशु की तरह रोना शुरू कर देते।

🇮🇳🔶 उनकी चेतना इतनी ठोस थी कि वह जिस रूप की इच्छा करते थे, वह उनके लिए एक हकीकत बन जाती थी। इस स्थिति में होना किसी भी इंसान के लिए बहुत ही सुखद होता है। हालांकि उनका शरीर, मन और भावनाएं परमानंद से सराबोर थे, मगर उनका अस्तित्व इस परमानंद से परे जाने के लिए बेकरार था। उनके अंदर कहीं-न -कहीं एक जागरूकता थी कि यह परमानंद अपने आप में एक बंधन है।

🇮🇳🔶 श्री रामकृष्ण परमहंस के अनुयायियों और शिष्यों में नाटकों के निर्देशक गिरीश चन्द्र घोष भी थे, उनके प्रति आघात स्नेह था। यही कारण है कि गिरीश की सब कुछ- तकलीफें और परेशानियां उन्होंने अपने ऊपर ले ली थी। इसी में उसके गले का रोग भी शामिल था, परिणामस्वरूप इनके गले में कर्क रोग हुआ तथा इसी रोग से इनकी मृत्यु हुई।

🇮🇳🔶 स्वामी विवेकानंद चिकित्सा कराते रहे परन्तु किसी भी प्रकार की चिकित्सा का उनके रोग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः 16 अगस्त 1886 की भोर होने से पहले ब्रह्म-मुहूर्त में इन्होंने महा-समाधि ली या कहे तो पंच तत्व के इस शरीर का त्याग कर ब्रह्म में विलीन हो गए। सचमुच उन्होंने अपने प्रत्येक क्षण को जिस चैतन्य, प्रकाश एवं अलौकिकता के साथ जीया, वह भारती ऋषि परम्परा के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है।

- ललित गर्ग

साभार: hastakshep.com

🇮🇳 भारत के महान संत एवं विचारक तथा स्वामी विवेकानन्द के गुरु #रामकृष्ण_परमहंस जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

 🇮🇳💐🙏 वन्दे मातरम् 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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