17 फ़रवरी 2024

Freedom Fighter | Budhu Bhagat | क्रांतिकारी बुधु भगत | (17 फरवरी, 1792 -13 फरवरी, 1832)




#क्रांतिकारी बुधु भगत का जन्म आज ही के दिन 17 फरवरी, 1792 में #रांची (झारखंड) में हुआ था।

#Budhu_Bhagat was an #Indian #freedom_fighter. He had led #guerrilla #warfare against #British. He was #leader of #Kol #rebellion and #Larka #rebellion in 1831—32 in #Chhotanagpur. 

🇮🇳 #कोल_विद्रोह के दाैरान अंग्रेज सैनिकों ने अंधाधुंध गोलियाँ चलायीं। बच्चे, बूढ़े और महिलाओं तक को नहीं बख्शा. देखते ही देखते 300 लाशें बिछ गयीं। अंग्रेज सैनिकों के खूनी तांडव के बाद लोगों के भीषण चीत्कार से पूरा इलाका काँप उठा। 🇮🇳

🇮🇳 #क्रांतिकारी_बुधु_भगत का जन्म आज ही के दिन 17 फरवरी, 1792 में #रांची (झारखंड) में हुआ था। वे बचपन से ही तलवारबाजी और धनुर्विद्या का अभ्यास करते थे। साथ में हमेशा कुल्हाड़ी रखते थे। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई आंदोलन किए। जनजातियों को बचाने के लिए शुरू किए गए #लरका_आंदोलन और #कोल_विद्रोह की अगुआई की। अपने दस्ते को गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया। अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए उस समय एक हजार रुपये के इनाम की घोषणा की थी। 13 फरवरी, 1832 को अपने गाँव #सिलागाई में अंग्रेजों की सेना से लोहा लेते हुए साथियों के साथ शहीद हो गए। 

🇮🇳 भारत के स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड के अनेकों लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया। अनेकों ने आदिवासी समाज और देश की अस्मिता की रक्षा के लिए अपने प्राण कुर्बान कर दिये। ऐसे ही एक महानायक थे वीर बुधु भगत। रांची जिले के #चान्हो प्रखंड स्थित #सिलागांई गाँव में 17 फरवरी, 1792 को एक उरांव आदिवासी परिवार में जन्मे बुधु भगत 1831-32 के कोल विद्रोह के महानायक थे। बुधु भगत ने अंग्रेजी सेना के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी। इसे इतिहास में लरका आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। 

🇮🇳 छोटा नागपुर के रांची और आसपास के इलाके के लोगों पर बुधु की जबरदस्त पकड़ी थी। उनके एक इशारे पर हजारों लोग अपनी जान तक कुर्बान करने के लिए तैयार रहते थे। बुधु भगत का सैनिक अड्डा चोगारी पहाड़ की चोटी पर घने जंगलों के बीच था। यहीं पर रणनीतियां बनती थीं। 

🇮🇳 ऐसा कहा जाता था कि वीर बुधु भगत को दैवीय शक्तियाँ प्राप्त थीं। इसलिए वह एक कुल्हाड़ी सदैव अपने साथ रखते थे। कोल आंदोलन के जननेता बुधु भगत ने अंग्रेजों के चाटुकार जमींदारों, दलालों के विरुद्ध भूमि, वन की सुरक्षा के लिए जंग छेड़ी थी। आंदोलन में भारी संख्या में अंग्रेजी सेना तथा आंदोलनकारी मारे गये थे। बुधु भी 13 फरवरी, 1832 को शहीद हो गए। उनकी कहानियाँ आज भी उन जंगलों में सुनी जाती हैं। 

🇮🇳 कोल विद्रोह के दाैरान अंग्रेज सैनिकों ने अंधाधुंध गोलियाँ चलायीं। बच्चे, बूढ़े और महिलाओं तक को नहीं बख्शा. देखते ही देखते 300 लाशें बिछ गयीं। अंग्रेज सैनिकों के खूनी तांडव के बाद लोगों के भीषण चीत्कार से पूरा इलाका काँप उठा। अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर खामोश कर दिया गया। बुधु भगत अपने दो बेटों च्हलधरज् और च्गिरधरज् के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। कहते हैं कि अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले इस आदिवासी वीर को उनके साथियों के साथ कैप्टन इंपे ने सिलागांई गांव में घेर लिया। बुधु भगत चारों ओर से अंग्रेज सैनिकों से घिर चुके थे। वह जानते थे कि अंग्रेज फायरिंग करेंगे। इसमें बेगुनाह ग्रामीण भी मर सकते हैं। इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण का प्रस्ताव रखा। लेकिन, क्रूर अंग्रेज अधिकारी ने बुधु भगत और उनके समर्थकों को घेरकर गोलियाँ चलाने के आदेश दे दिए। 

साभार: jagran.com

प्रसिद्ध क्रांतिकारी तथा #लरका_विद्रोह के आरम्भकर्ता #बुधु_भगत जी की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

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 🇮🇳💐🙏 वन्दे मातरम् 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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