17 फ़रवरी 2024

Karpoori Thakur | स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर | 24 जनवरी 1924 - 17 फरवरी 1988

 



Karpoori Thakur | स्वतंत्रता सेनानी  कर्पूरी ठाकुर  | (24 जनवरी 1924 - 17 फरवरी 1988)

#Karpoori_Thakur was an Indian #politician who served two terms as the 11th #Chief_Minister of #Bihar, first from December 1970 to June 1971, and then from June 1977 to April 1979. He was popularly known as #Jan_Nayak.

#कर्पूरी_ठाकुर भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री तथा दो बार मुख्यमंत्री थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें 'जननायक' कहा जाता है।23 जनवरी 2024 को भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरान्त भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न से सम्मानित करने की घोषणा की है।

🇮🇳 कर्पूरी ठाकुर #बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था। ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए।

🇮🇳 जब करोड़ो रुपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता। उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं। उनसे जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते में उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा। उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। उसके बाद अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, “जाइए, उस्तरा आदि ख़रीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।”

🇮🇳 कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे #रामनाथ को पत्र लिखना नहीं भूले। इस पत्र में क्या था, इसके बारे में रामनाथ कहते हैं, “पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं- तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।” रामनाथ ठाकुर इन दिनों भले राजनीति में हों और पिता के नाम का लाभ भी उन्हें मिला हो, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन में उन्हें राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने का काम नहीं किया।

🇮🇳 उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में लिखा, “कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- #कर्पूरीजी कभी आपसे पाँच-दस हज़ार रुपये माँगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में #देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरी जी ने कुछ माँगा। हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ माँगते ही नहीं।

🇮🇳 कर्पूरी जी के मुख्यमंत्री रहते हुए ही उनके क्षेत्र के कुछ सामंती यादव जमींदारों ने उनके पिता को सेवा के लिये बुलाया। जब वे बीमार होने के नाते नहीं पहुंच सके तो जमींदार ने अपने लठैतों से मारपीट कर लाने का आदेश दिया। जिसकी सूचना किसी प्रकार जिला प्रशासन को हो गयी तो तुरन्त जिला प्रशासन कर्पूरी जी के घर पहुँच गया और उधर लठैत पहुँचे ही थे। लठैतो को बंदी बना लिया गया किन्तु कर्पूरी ठाकुर जी ने सभी लठैतों को जिला प्रशासन से बिना शर्त छोडने का आग्रह किया तो अधिकारीगणों ने कहा कि इन लोगों ने मुख्यमंत्री के पिता को प्रताडित करने का कार्य किया इन्हे हम किसी शर्त पर नही छोड सकते थे। कर्पूरी ठाकुर जी ने कहा " इस प्रकार के पता नही कितने असहाय लाचार एवं शोषित लोग प्रतिदिन लाठियाँ खाकर दम तोडते है काम करते है कहाँ तक, किस किस को बचाओगे। क्या सभी मुख्यमंत्री के माँ बाप है। इनको इसलिये दंडित किया जा रहा है कि इन्होने मुख्यमंत्री के पिता को उत्पीड़ित किया है, सामान्य जनता को कौन बचायेगा। जाओ प्रदेश के कोने कोने मे शोषण उत्पीड़न के खिलाफ अभियान चलाओ और एक भी परिवार सामंतों के जुल्मों सितम का शिकार न होने पाये" लठैतों को कर्पूरी जी ने छुडवा दिया। इस प्रकार वे पक्षपात एवं मानवता का मसीहा कहा जाना अतिश्योक्ति नहीं है।

🇮🇳 अस्सी के दशक की बात है. बिहार विधान सभा की बैठक चल रही थी. कर्पूरी ठाकुर विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे. उन्होंने एक नोट भिजवा कर अपने ही दल के एक विधायक से थोड़ी देर के लिए उनकी जीप माँगी. उन्हें लंच के लिए आवास जाना था.

उस विधायक ने उसी नोट पर लिख दिया, ‘मेरी जीप में तेल नहीं है. कर्पूरी जी दो बार मुख्यमंत्री रहे. कार क्यों नहीं खरीदते?’ यह संयोग नहीं था कि संपत्ति के प्रति अगाध प्रेम के चलते वह विधायक बाद के वर्षों में अनेक कानूनी परेशानियों में पड़े, पर कर्पूरी ठाकुर का जीवन बेदाग रहा.

🇮🇳 एक बार उप मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे. क्योंकि उनकी जायज आय कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती ।

🇮🇳 कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गाँव गए थे. बहुगुणा जी कर्पूरी ठाकुर की पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे.

स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार विधायक रहे, पर अपने लिए उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया.

🇮🇳 सत्तर के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी. खुद कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ विधायकों ने कर्पूरी ठाकुर से कहा कि आप भी अपने आवास के लिए जमीन ले लीजिए.

🇮🇳 कर्पूरी ठाकुर ने साफ मना कर दिया. तब के एक विधायक ने उनसे यह भी कहा था कि जमीन ले लीजिए.अन्यथा आप नहीं रहिएगा तो आपका बाल-बच्चा कहाँ रहेगा? कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अपने गॉंव में रहेगा.

🇮🇳 कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ नेता अपने यहाँ की शादियों में करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं.पर जब कर्पूरी ठाकुर को अपनी बेटी की शादी करनी हुई तो उन्होंने क्या किया था? उन्होंने इस मामले में भी आदर्श उपस्थित किया.

🇮🇳 1970-71 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री थे. रांची के एक गाँव में उन्हें वर देखने जाना था. तब तक बिहार का विभाजन नहीं हुआ था. कर्पूरी ठाकुर सरकारी गाड़ी से नहीं जाकर वहाँ टैक्सी से गये थे. शादी समस्तीपुर जिला स्थित उनके पुश्तैनी गाँव #पितौंजिया में हुई. कर्पूरी ठाकुर चाहते थे कि शादी  देवघर मंदिर में हो, पर उनकी पत्नी की जिद पर गाँव में शादी हुई. कर्पूरी ठाकुर ने अपने मंत्रिमंडल के किसी सदस्य को भी उस शादी में आमंत्रित नहीं किया था. यहाँ तक कि उन्होंने संबंधित अफसर को यह निर्देश दे दिया था कि बिहार सरकार का कोई भी विमान मेरी यानी मुख्यमंत्री की अनुमति के बिना उस दिन दरभंगा या सहरसा हवाई अड्डे पर नहीं उतरेगा. पितौंजिया के पास के हवाई अड्डे वहीं थे.आज के कुछ तथाकथित समाजवादी नेता तो शादी को भी ‘सम्मेलन’ बना देते हैं. भ्रष्ट अफसर और व्यापारीगण सत्ताधारी नेताओं के यहाँ की शादियों के अवसरों पर करोड़ों का खर्च जुटाते हैं. कर्पूरी ठाकुर के जमाने में भी थोड़ा बहुत यह सब होता था, पर कर्पूरी ठाकुर तो अपवाद थे.

🇮🇳 हालांकि उनकी साधनहीनता भी उन्हें दो बार मुख्यमंत्री बनने से रोक भी नहीं सकी. 1977 में जेपी आवास पर जयप्रकाश नारायण का जन्म दिन मनाया जा रहा था.

पटना के कदम कुआँ स्थित चरखा समिति भवन में, जहाँ जेपी रहते थे, देश भर से जनता पार्टी के बड़े नेता जुटे हुए थे. उन नेताओं में चंद्रशेखर, नानाजी देशमुख शामिल थे. मुख्यमंत्री पद पर रहने बावजूद फटा कुर्ता, टूटी चप्पल और बिखरे बाल कर्पूरी ठाकुर की पहचान थे. उनकी दशा देखकर एक नेता ने टिप्पणी की, ‘किसी मुख्यमंत्री के ठीक ढंग से गुजारे के लिए कितना वेतन मिलना चाहिए?’ सब निहितार्थ समझ गए. हंसे. फिर चंद्रशेखर अपनी सीट से उठे. उन्होंने अपने लंबे कुर्ते को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर सामने की ओर फैलाया. वह बारी-बारी से वहां बैठे नेताओं के पास जाकर कहने लगे कि आप कर्पूरी जी के कुर्ता फंड में दान कीजिए. तुरंत कुछ सौ रुपए एकत्र हो गए. उसे समेट कर चंद्रशेखर जी ने कर्पूरी जी को थमाया और कहा कि इससे अपना कुर्ता-धोती ही खरीदिए. कोई दूसरा काम मत कीजिएगा. चेहरे पर बिना कोई भाव लाए कर्पूरी ठाकुर ने कहा, ‘इसे मैं मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करा दूंगा.’

🇮🇳 यानी तब समाजवादी आंदोलन के कर्पूरी ठाकुर को उनकी सादगी और ईमानदारी के लिए जाना जाता था, पर आज के कुछ समाजवादी नेताओं को? कम कहना और अधिक समझना !

साभार: wikipedia.org

स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और आदर्श जन-नायक #कर्पूरी_ठाकुर जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

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 🇮🇳💐🙏 वन्दे मातरम् 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
#Karpoori_Thakur  #freedomfighter  #inspirational_personality

Freedom Fighter | Budhu Bhagat | क्रांतिकारी बुधु भगत | (17 फरवरी, 1792 -13 फरवरी, 1832)




#क्रांतिकारी बुधु भगत का जन्म आज ही के दिन 17 फरवरी, 1792 में #रांची (झारखंड) में हुआ था।

#Budhu_Bhagat was an #Indian #freedom_fighter. He had led #guerrilla #warfare against #British. He was #leader of #Kol #rebellion and #Larka #rebellion in 1831—32 in #Chhotanagpur. 

🇮🇳 #कोल_विद्रोह के दाैरान अंग्रेज सैनिकों ने अंधाधुंध गोलियाँ चलायीं। बच्चे, बूढ़े और महिलाओं तक को नहीं बख्शा. देखते ही देखते 300 लाशें बिछ गयीं। अंग्रेज सैनिकों के खूनी तांडव के बाद लोगों के भीषण चीत्कार से पूरा इलाका काँप उठा। 🇮🇳

🇮🇳 #क्रांतिकारी_बुधु_भगत का जन्म आज ही के दिन 17 फरवरी, 1792 में #रांची (झारखंड) में हुआ था। वे बचपन से ही तलवारबाजी और धनुर्विद्या का अभ्यास करते थे। साथ में हमेशा कुल्हाड़ी रखते थे। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई आंदोलन किए। जनजातियों को बचाने के लिए शुरू किए गए #लरका_आंदोलन और #कोल_विद्रोह की अगुआई की। अपने दस्ते को गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया। अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए उस समय एक हजार रुपये के इनाम की घोषणा की थी। 13 फरवरी, 1832 को अपने गाँव #सिलागाई में अंग्रेजों की सेना से लोहा लेते हुए साथियों के साथ शहीद हो गए। 

🇮🇳 भारत के स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड के अनेकों लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया। अनेकों ने आदिवासी समाज और देश की अस्मिता की रक्षा के लिए अपने प्राण कुर्बान कर दिये। ऐसे ही एक महानायक थे वीर बुधु भगत। रांची जिले के #चान्हो प्रखंड स्थित #सिलागांई गाँव में 17 फरवरी, 1792 को एक उरांव आदिवासी परिवार में जन्मे बुधु भगत 1831-32 के कोल विद्रोह के महानायक थे। बुधु भगत ने अंग्रेजी सेना के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी। इसे इतिहास में लरका आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। 

🇮🇳 छोटा नागपुर के रांची और आसपास के इलाके के लोगों पर बुधु की जबरदस्त पकड़ी थी। उनके एक इशारे पर हजारों लोग अपनी जान तक कुर्बान करने के लिए तैयार रहते थे। बुधु भगत का सैनिक अड्डा चोगारी पहाड़ की चोटी पर घने जंगलों के बीच था। यहीं पर रणनीतियां बनती थीं। 

🇮🇳 ऐसा कहा जाता था कि वीर बुधु भगत को दैवीय शक्तियाँ प्राप्त थीं। इसलिए वह एक कुल्हाड़ी सदैव अपने साथ रखते थे। कोल आंदोलन के जननेता बुधु भगत ने अंग्रेजों के चाटुकार जमींदारों, दलालों के विरुद्ध भूमि, वन की सुरक्षा के लिए जंग छेड़ी थी। आंदोलन में भारी संख्या में अंग्रेजी सेना तथा आंदोलनकारी मारे गये थे। बुधु भी 13 फरवरी, 1832 को शहीद हो गए। उनकी कहानियाँ आज भी उन जंगलों में सुनी जाती हैं। 

🇮🇳 कोल विद्रोह के दाैरान अंग्रेज सैनिकों ने अंधाधुंध गोलियाँ चलायीं। बच्चे, बूढ़े और महिलाओं तक को नहीं बख्शा. देखते ही देखते 300 लाशें बिछ गयीं। अंग्रेज सैनिकों के खूनी तांडव के बाद लोगों के भीषण चीत्कार से पूरा इलाका काँप उठा। अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर खामोश कर दिया गया। बुधु भगत अपने दो बेटों च्हलधरज् और च्गिरधरज् के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। कहते हैं कि अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले इस आदिवासी वीर को उनके साथियों के साथ कैप्टन इंपे ने सिलागांई गांव में घेर लिया। बुधु भगत चारों ओर से अंग्रेज सैनिकों से घिर चुके थे। वह जानते थे कि अंग्रेज फायरिंग करेंगे। इसमें बेगुनाह ग्रामीण भी मर सकते हैं। इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण का प्रस्ताव रखा। लेकिन, क्रूर अंग्रेज अधिकारी ने बुधु भगत और उनके समर्थकों को घेरकर गोलियाँ चलाने के आदेश दे दिए। 

साभार: jagran.com

प्रसिद्ध क्रांतिकारी तथा #लरका_विद्रोह के आरम्भकर्ता #बुधु_भगत जी की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

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 🇮🇳💐🙏 वन्दे मातरम् 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
#Budhu_Bhagat #freedomfighter  #inspirational_personality

Vasudev Balwant Phadke | महान क्रांतिकारी | वासुदेव बलवंत फड़के | (4 नवंबर, 1845 -17 फरवरी, 1883)


 

Vasudev Balwant Phadke | महान क्रांतिकारी |  वासुदेव बलवंत फड़के |   (4 नवंबर, 1845 -17 फरवरी, 1883)

Vasudev Balwant Phadke, an early luminary of the #Indian #independence #movement. He ignited the fervor of resistance against #British #imperialism, #inspiring and mobilising the masses to ardently pursue the cause of #India's #liberation. #VasudevBalwantPhadke

🇮🇳 17 फरवरी, 1883 को कालापानी की सजा काटते हुए जेल के अंदर ही देश का यह वीर सपूत बलिदान हो गया। 🇮🇳

🇮🇳 अगर बात करे भारतीय #स्वतंत्रता की क्रांति और उन #क्रांतिकारियों की जिनकी वजह से देश को आजादी मिली तो इतिहास की रेत में शायद हज़ारों नाम दबे मिले। पर हम सिर्फ कुछ नामों से ही रु-ब-रु हुए हैं। वैसे तो भारत माँ के इन सभी सपूतों के बारे में जानकारी सहेजने की कोशिश जारी है ताकि आने वाली हर पीढ़ी इनके बलिदान को जान-समझ सके।

🇮🇳 ऐसा ही एक महान क्रांतिकारी और भारत माँ का सच्चा बेटा था वासुदेव बलवंत फड़के! फड़के ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का संगठन करने वाले भारत के प्रथम क्रान्तिकारी थे। उनका जन्म 4 नवंबर, 1845 को महाराष्ट्र के #रायगड जिले के #शिरढोणे गाँव में हुआ था।

🇮🇳 साल 1857 की क्रांति की विफलता के बाद एक बार फिर भारतीयों में संघर्ष की चिंगारी फड़के ने ही जलाई थी।

🇮🇳 वासुदेव बलवन्त फड़के बचपन से ही बड़े तेजस्वी और बहादुर बालक थे। उन्हें वनों और पर्वतों में घूमने का बड़ा शौक़ था। #कल्याण और #पुणे में उनकी शिक्षा पूरी हुई। फड़के के पिता चाहते थे कि वह एक व्यापारी की दुकान पर दस रुपए मासिक वेतन की नौकरी कर लें। लेकिन फड़के ने यह बात नहीं मानी और मुम्बई आ गए।

🇮🇳 उन्होंने 15 साल पुणे के मिलिट्री एकाउंट्स डिपार्टमेंट में नौकरी की। इस सबके दौरान फड़के लगातार अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के सम्पर्क में रहे। उन पर खास प्रभाव #महादेव_गोविन्द_रानाडे का था। फड़के के में पहले ही ब्रिटिश राज के खिलाफ बग़ावत के बीज पड़ चुके थे।

🇮🇳 ऐसे में एक और घटना हुई और इस घटना ने फड़के के पूरे जीवन को ही बदल दिया। साल 1871 में, एक शाम उनकी माँ की तबियत खराब होने का तार उनको मिला। इसमें लिखा था कि ‘वासु’ (वासुदेव बलवन्त फड़के) तुम शीघ्र ही घर आ जाओ, नहीं तो माँ के दर्शन भी शायद न हो सकेंगे।

🇮🇳 इस तार को पढ़कर वे विचलित हो गये और अपने अंग्रेज़ अधिकारी के पास अवकाश का प्रार्थना-पत्र देने के लिए गए। किन्तु अंग्रेज़ तो भारतीयों को अपमानित करने के लिए तैयार रहते थे। उस अंग्रेज़ अधिकारी ने उन्हें छुट्टी नहीं दी, लेकिन फड़के दूसरे दिन अपने गाँव चले आए।

🇮🇳 पर गाँव जाकर देखा कि माँ तो अपने प्यारे वासु को देखे बिना ही इस दुनिया को छोड़ गयीं। इस बात का उनके मन पर बहुत आघात हुआ और उन्होंने तभी वह अंग्रेजी नौकरी छोड़ दी।

🇮🇳 देश में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर उन्होंने भी ब्रिटिश राज के खिलाफ जंग की तैयारी शुरू कर दी। उन्हें देशी राज्यों से कोई सहायता नहीं मिली तो फड़के ने शिवाजी का मार्ग अपनाकर #आदिवासियों की सेना संगठित करने की कोशिश शुरू की।

🇮🇳 साल 1879 में उन्होंने अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दी। उन्होंने पूरे #महाराष्ट्र में घूम-घूमकर नवयुवकों से विचार-विमर्श किया, और उन्हें संगठित करने का प्रयास किया।  महाराष्ट्र की कोळी, भील तथा धांगड जातियों को एकत्र कर उन्होने #रामोशी नाम का क्रान्तिकारी संगठन खड़ा किया। अपने इस मुक्ति संग्राम के लिए धन एकत्र करने के लिए उन्होने धनी अंग्रेज साहुकारों को लूटा।

🇮🇳 महाराष्ट्र के सात ज़िलों में वासुदेव फड़के की सेना का ज़बर्दस्त प्रभाव फैल चुका था। जिससे अंग्रेज़ अफ़सर डर गए थे। इस कारण एक दिन बातचीत करने के लिए वे विश्राम बाग़ में इकट्ठा हुए। वहाँ पर एक सरकारी भवन में बैठक चल रही थी।

🇮🇳 13 मई, 1879 को रात 12 बजे वासुदेव बलवन्त फड़के अपने साथियों सहित वहाँ आ गए। अंग्रेज़ अफ़सरों को मारा तथा भवन को आग लगा दी। उसके बाद अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ने पर पचास हज़ार रुपए का इनाम घोषित किया। किन्तु दूसरे ही दिन मुम्बई नगर में वासुदेव के हस्ताक्षर से इश्तहार लगा दिए गए कि जो अंग्रेज़ अफ़सर ‘रिचर्ड’ का सिर काटकर लाएगा, उसे 75 हज़ार रुपए का इनाम दिया जाएगा। अंग्रेज़ अफ़सर इससे और भी बौखला गए।

🇮🇳 फड़के की सेना और अंग्रेजी सेना में कई बार मुठभेड़ हुई, पर उन्होंने अंग्रेजी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। लेकिन फड़के की सेना का गोला-बारूद धीरे-धीरे खत्म होने लगा। ऐसे में उन्होंने कुछ समय शांत रहने में ही समझदारी मानी और वे पुणे के पास के आदिवासी इलाकों में छिप गये।

🇮🇳 20 जुलाई, 1879 को फड़के बीमारी की हालत में एक मंदिर में आराम कर रहे थे। पर किसी ने उनके यहाँ होने की खबर ब्रिटिश अफसर को दे दी। और उसी समय उनको गिरफ्तार कर लिया गया। उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया और उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गयी।

🇮🇳 लेकिन एक बहुत ही विख्यात वकील #महादेव_आप्टे ने उनकी पैरवी की। जिसके बाद उनकी मौत की सजा को #कालापानी की सजा में बदल दिया गया और उन्हें #अंडमान की जेल में भेजा गया। 17 फरवरी, 1883 को कालापानी की सजा काटते हुए जेल के अंदर ही देश का यह वीर सपूत शहीद हो गया।

🇮🇳 साल 1984 में भारतीय डाक सेवा ने उनके सम्मान में एक पोस्टल स्टैम्प भी जारी की। दक्षिण मुंबई में उनकी एक मूर्ति की स्थापना भी की गयी।

🇮🇳 देश के इस महान क्रांतिकारी को द बेटर इंडिया का कोटि-कोटि नमन!

साभार: thebetterindia.com

कालापानी की सजा काटते हुए अंडमान की जेल के अंदर ही बलिदान हुए, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी #वासुदेव_बलवन्त_फड़के जी को उनके बलिदान दिवस पर कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

🇮🇳💐🙏 वन्दे मातरम् 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व
साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
 ##VasudevBalwantPhadke #freedomfighter #astronomer #inspirational_personality

16 फ़रवरी 2024

Electoral Bonds Scheme | चुनावी बॉन्ड पर फैसला | लेखक : सुभाष चन्द्र




चुनावी बॉन्ड पर फैसला - अदालत में इंडी गठबंधन का 

फैसला प्रतीत होता है - सरकार को पलट देना चाहिए -


#Electoral_Bonds की योजना भाजपा की निजी योजना नहीं थी बल्कि सरकार द्वारा 2017 के बजट में संसद से पास हुई योजना थी, बजट के प्रावधान थे जिन्हें राष्ट्रपति से मंजूरी मिली थी - लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी प्रशांत भूषण की संस्था “#Common_Cause”, #CPIM), कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने और साथ में थी #ADR (The #Association for #Democratic #Reforms) - 


यानी एक तरह विपक्ष का #इंडी_गठबंधन खड़ा था #मोदी_सरकार के खिलाफ #सुप्रीम_कोर्ट में और यह गठबंधन सब जानते हैं आजकल “#George_Soros” की #फंडिंग पर काम कर रहा है जिसका मकसद मोदी को उखाड़ फेंकना है - कल के फैसले में सुप्रीम कोर्ट एक तरह इंडी गठबंधन का हिस्सा बन कर खड़ा हो गया -


चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने बजट में पास किए गए Electoral Bonds को असंवैधानिक कह कर अपनी शक्तियों का अतिक्रमण किया है और सही मायने में कहा जाए तो पायजामे से बाहर निकल कर फैसला किया है - सुप्रीम कोर्ट के पास शक्ति केवल कानून में कमी बताने की होनी चाहिए, उसे खारिज करने की शक्ति नहीं होनी चाहिए -


CJI चंद्रचूड़ ने कहा है कि “राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है - काले धन को काबू पाने का एकमात्र तरीका इलेक्टोरल बांड नहीं हो सकता - इसके और भी विकल्प हैं”


चंद्रचूड़ ने एक तरह यह स्वीकार किया है कि Electoral Bonds के जरिए सरकार ने काले धन पर लगाम लगाने की कोशिश की थी अलबत्ता यह बात अलग है कि चंद्रचूड़ इसे केवल एकमात्र उपाय नहीं समझते - चंद्रचूड़ फैसला देते हुए यह मान कर चले हैं कि पार्टियों को चंदा देकर लोग अपना काम निकलवा लेते हैं - अगर ऐसा है तो यह करने वाली केवल सरकार नहीं होती बल्कि महुआ मोइत्रा जैसे लोग भी होते हैं -


यह बात फिर जजों के फैसलों पर भी लागू हो सकती है और उन पर भी आरोप लग सकता है कि मोदी सरकार को “अस्थिर” करने के लिए जजों को George Soros या अन्य किसी जगह से पैसा दिया गया और फैसले को प्रभावित कर मोदी को परेशान करने की कोशिश की गई - फिलहाल यह कोशिश किसान आंदोलन करा कर भी की जा रही है -


सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि जनता को जानने का अधिकार है किसी पार्टी को कहां से कितना फंड मिला लेकिन Electoral Bonds योजना में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था जिससे RTI का उल्लंघन हो रहा था - यदि #RTI का उल्लंघन हो रहा था तो आप इसे RTI के दायरे में लाने के आदेश दे सकते थे मगर योजना को ही “असंवैधानिक” कह देना आपके अधिकार क्षेत्र में नहीं हो सकता - 

सुप्रीम कोर्ट को बेनकाब करेगा बांड पर फैसला

वीडियो देखने के लिए क्लिक करें   https://youtu.be/3LWBEVEF5-M

मीलॉर्ड, आप दुनिया को प्रवचन देते फिरते हो पारदर्शिता का लेकिन खुद अपनी #Assets & #Liability_Returns नहीं भरते और न RTI में उपलब्ध कराई जाती है - आप अगर समझते हैं कि प्राइवेट parties का पैसा सरकार के फैसलों को प्रभावित कर सकता है तो आपके फैसलों को भी पैसे वाले लोग प्रभावित कर सकते हैं - अगर ऐसा न होता तो साढ़े 32 साल की सजा पाया लालू यादव छुट्टे सांड की तरह आपकी मेहरबानी से बाहर न घूम रहा होता और 3200 करोड़ का #घोटाला करके चंदा कोचर की गिरफ़्तारी को आप लोग गलत साबित न करते -

मोदी सरकार ने कुछ छुपाने की कोशिश नहीं की थी इस Electoral Bonds Scheme में, उन्हें जितना पैसा मिला, वह बताया गया लेकिन आपने गलत #intention से योजना को पटक दिया - सरकार को चाहिए वह अध्यादेश लाकर आपके फैसले को पलट दे और ऐसा करने का अधिकार आपने ही बताया है सरकार के पास है -  "लेखक के निजी विचार हैं "


 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 16/02/2024 

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Freedom Fighter | Astronomer | Scientist Professor Meghnad Saha | स्वतंत्रता सेनानी | खगोलविद | वैज्ञानिक प्रोफेसर मेघनाद साहा





स्वतंत्रता सेनानी | खगोलविद  | वैज्ञानिक प्रोफेसर मेघनाद साहा

Freedom Fighter | Astronomer | Scientist Professor Meghnad Saha (6 October 1893 – 16 February 1956)


🇮🇳 खगोल विज्ञान में #साहा_समीकरण को वर्षों से प्रयोग में लाया जा रहा है। इस समीकरण को स्थापित करने वाले महान भारतीय वैज्ञानिक और #खगोलविद प्रोफेसर मेघनाद साहा का जन्म 6 अक्तूबर 1893 को हुआ था। भारत के सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों में से एक मेघनाद साहा अंतरराष्ट्रीय ख्याति के खगोलविद थे। उनकी इस ख्याति का आधार है -साहा समीकरण। यह समीकरण तारों में भौतिक एवं रासायनिक स्थिति की व्याख्या करता है। साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान तथा इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइंस जैसी कई महत्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना का श्रेय प्रोफेसर साहा को जाता है।

Meghnad Saha FRS (6 October 1893 – 16 February 1956) was an Indian astrophysicist who helped devise the theory of thermal ionisation. His Saha ionisation equation allowed astronomers to accurately relate the spectral classes of stars to their actual temperatures.


मेघनाद साहा सुप्रसिद्ध भारतीय खगोलविज्ञानी थे। वे साहा समीकरण के प्रतिपादन के लिये प्रसिद्ध हैं। यह समीकरण तारों में भौतिक एवं रासायनिक स्थिति की व्याख्या करता है। उनकी अध्यक्षता में गठित विद्वानों की एक समिति ने भारत के राष्ट्रीय शक पंचांग का भी संशोधन किया, जो २२ मार्च १९५७ से लागू किया गया।

🇮🇳 गरीब परिवार में जन्मे मेघनाद को अपनी लक्ष्य प्राप्ति के लिए कई संघर्ष करने पड़े। उनकी आरम्भिक शिक्षा ढाका कॉलेजिएट स्कूल में हुई और बाद में उन्होंने ढाका महाविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद वर्ष 1917 में क्वांटम फिजिक्स के प्राध्यापक के तौर पर उनकी नियुक्ति कोलकाता के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंस में हो गई। अपने सहपाठी #सत्येन्द्रनाथ_बोस के साथ मिलकर प्रोफेसर साहा ने #अल्बर्ट आइंस्टीन #Albert_Einstein  और #मिन्कोव्स्की #Minkowski के शोधपत्रों का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया। 


वर्ष 1919 में अमेरिका के एक खगोल भौतिकी जर्नल में साहा का एक शोध पत्र छपा। यह वही शोध पत्र था, जिसमे उन्होंने ‘आयनीकरण फार्मूला’ प्रतिपादित किया था। यह फॉर्मूला खगोलशास्त्रियों को सूर्य और अन्य तारों के आंतरिक तापमान और दबाव की जानकारी देने में सक्षम है। एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री ने इस खोज को खगोल विज्ञान की 12वीं बड़ी खोज कहा है। यह समीकरण खगोल भौतिकी के क्षेत्र में एक नई उर्जा और दूरगामी परिणाम लाने वाला सिद्ध हुआ। उनके इस सिद्धांत पर बाद में भी कई शोध किये गए।


🇮🇳 सत्येन्द्रनाथ बोस के साथ मिलकर प्रोफेसर साहा ने आइंस्टीन और मिंकोवस्की के शोधपत्रों का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया। वर्ष 1919 में अमेरिका के एक खगोल भौतिकी जर्नल में साहा का एक शोध पत्र छपा। यह वही शोध पत्र था, जिसमे उन्होंने ‘आयनीकरण फार्मूला’ प्रतिपादित किया था।

तत्वों के थर्मल आयनीकरण के जरिये सितारों के स्पेक्ट्रा की व्याख्या करने के अध्ययन में साहा समीकरण का प्रयोग किया जाता है। यह समीकरण खगोल भौतिकी में सितारों के स्पेक्ट्रा की व्याख्या के लिए बुनियादी उपकरणों में से एक है। इसके आधार पर विभिन्न तारों के स्पेक्ट्रा का अध्ययन कर कोई भी उनके तापमान का पता लगा सकता है। प्रोफेसर साहा के समीकरण का उपयोग करते हुए तारों को बनाने वाले विभिन्न तत्वों के आयनीकरण की स्थिति निर्धारित की जा सकती है। प्रोफेसर साहा ने सौर किरणों के वजन और दबाव को मापने के लिए एक उपकरण का भी आविष्कार किया।

🇮🇳 प्रोफेसर मेघनाद साहा ने कई वैज्ञानिक संस्थानों, समितियों जैसे नेशनल अकादमी ऑफ़ साइंस, इंडियन फिजिकल सोसाइटी, इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस के साथ इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग और कलकत्ता में परमाणु भौतिकी संस्थान का निर्माण करने में मदद की। वर्ष 1947 में साहा द्वारा स्थापित इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स का नाम उनके नाम पर ‘साहा इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स’ रख दिया गया। इसके अलावा उन्होंने विज्ञान और संस्कृति पत्रिका की स्थापना की और 16 फरवरी 1956 यानी अपनी मृत्यु तक इसके संपादक रहे।

🇮🇳 प्रोफेसर साहा का पूरा जीवन विज्ञान और देश की उन्नति को समर्पित रहा। प्रोफेसर साहा के एक सिद्धांत ऊँचे तापमान पर तत्वों के व्यवहार को यूरोप के प्रमुख वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने संसार को एक विशेष देन कहा। 

🇮🇳 एक महान वैज्ञानिक होने के साथ साथ प्रोफेसर साहा एक स्वतंत्रता सेनानी भी रहे। उन्होंने देश की आजादी में भी योगदान दिया। प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ते हुए ही मेघनाद क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। इसके बाद उनका संपर्क #नेताजी_सुभाष_चंद्र_बोस और #डॉ_राजेंद्र_प्रसाद से भी रहा। 

🇮🇳 भारत और उसकी समृद्धि में विज्ञान के महत्व को रेखांकित करने वाले प्रोफेसर मेघनाद साहा का आधुनिक और सक्षम भारत के निर्माण में अप्रतिम योगदान है। यह भी एक रोचक तथ्य है कि वैज्ञानिक होने के साथ-साथ प्रोफेसर साहा आम जनता में भी लोकप्रिय थे। वह वर्ष 1952 में भारत के पहले लोकसभा के चुनाव में कलकत्ता से भारी बहुमत से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीतकर आए।

साभार: vigyanprasar.gov.in
🇮🇳 #स्वतंत्रतासेनानी और सुप्रसिद्ध भारतीय #खगोलविज्ञानी #प्रोफेसर_मेघनाद_साहा जी की पुण्यतिथि 16 फरवरी पर  उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !
🇮🇳💐🙏

🇮🇳💐🙏 वन्दे मातरम् 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व
साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
 #Profe_Meghnad_Saha #freedomfighter #astronomer #inspirational_personality

15 फ़रवरी 2024

Narmada Jayanti | नर्मदा जयंती | माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी | अमरकंटक


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा माता का जन्म हुआ था, जिसे लोग नर्मदा जयंती के नाम से भी जानते हैं। इस साल यह शुक्रवार, 16 फरवरी 2024 को मनाई जाएगी| 

#नर्मदा_जयंती माँ नर्मदा के जन्मदिवस यानी माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनायी जाती है। नर्मदा जयंती मध्य प्रदेश राज्य के नर्मदा नदी के तट पर मनायी जाती है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को शास्त्रों में 'नर्मदा जयंती' कहा गया है। नर्मदा #अमरकंटक से प्रवाहित होकर #रत्नासागर में समाहित हुई है और अनेक जीवों का उद्धार भी किया है।


नर्मदा जयंती भारत में हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार है। यह अमरकंटक में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है, क्योंकि यह माँ नर्मदा का जन्म स्थान है। इसके अलावा यह पूरे मध्य प्रदेश में बड़े ही हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जाता है। जनवरी माह में मनाये जाने वाले संक्रांति के त्यौहार के आसपास यह त्यौहार मनाया जाता है। #हिन्दू_कैलेंडर के हिसाब से माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को माँ नर्मदा का जन्म हुआ था, इसलिए नर्मदा जयंती हर साल इस दिन मनायी जाती है। भारत में सात धार्मिक नदियाँ हैं, उन्हीं में से एक है माँ नर्मदा। हिन्दू धर्म में इसका बहुत महत्त्व है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने देवताओं को उनके पाप धोने के लिए माँ नर्मदा को उत्पन्न किया था और इसलिए इसके पवित्र जल में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते है।


नर्मदा जयंती महोत्सव

अलौकिक और पुण्यदायिनी माँ नर्मदा के जन्मदिवस यानी माघ शुक्ल सप्तमी को नर्मदा जयंती महोत्सव प्रति वर्ष मनाया जाता है। वैसे तो संसार में 999 नदियाँ हैं, पर नर्मदाजी के सिवा किसी भी नदी की प्रदक्षिणा करने का प्रमाण नहीं देखा। युगों से सभी शक्ति की उपासना करते आए हैं। चाहे वह दैविक, दैहिक तथा भौतिक ही क्यों न हो, इसका सम्मान और पूजन करते हैं।


कथा

एक समय सभी देवताओं के साथ में ब्रह्मा-विष्णु मिलकर भगवान शिव के पास आए, जो कि (अमरकंटक) मेकल पर्वत पर समाधिस्थ थे। वे अंधकासुर राक्षस का वध कर शांत-सहज समाधि में बैठे थे। अनेक प्रकार से स्तुति-प्रार्थना करने पर शिवजी ने आँखें खोलीं और उपस्थित देवताओं का सम्मान किया। देवताओं ने निवेदन किया- हे भगवन्‌! हम देवता भोगों में रत रहने से, बहुत-से राक्षसों का वध करने के कारण हमने अनेक पाप किए हैं, उनका निवारण कैसे होगा आप ही कुछ उपाय बताइए। तब शिवजी की भृकुटि से एक तेजोमय बिन्दु पृथ्वी पर गिरा और कुछ ही देर बाद एक कन्या के रूप में परिवर्तित हुआ। उस कन्या का नाम नर्मदा रखा गया और उसे अनेक वरदानों से सज्जित किया गया।


'माघै च सप्तमयां दास्त्रामें च रविदिने। मध्याह्न समये राम भास्करेण कृमागते॥'





माघ शुक्ल सप्तमी को मकर राशि सूर्य मध्याह्न काल के समय नर्मदाजी को जल रूप में बहने का आदेश दिया। तब नर्मदाजी प्रार्थना करते हुए बोली- 'भगवन्‌! संसार के पापों को मैं कैसे दूर कर सकूँगी?' तब भगवान विष्णु ने आशीर्वाद रूप में वक्तव्य दिया-


'नर्मदे त्वें माहभागा सर्व पापहरि भव। त्वदत्सु याः शिलाः सर्वा शिव कल्पा भवन्तु ताः।'

अर्थात् तुम सभी पापों का हरण करने वाली होगी तथा तुम्हारे जल के पत्थर शिव-तुल्य पूजे जाएँगे।

तब नर्मदा ने शिवजी से वर माँगा। जैसे उत्तर में गंगा स्वर्ग से आकर प्रसिद्ध हुई है, उसी प्रकार से दक्षिण गंगा के नाम से प्रसिद्ध होऊँ। शिवजी ने नर्मदाजी को अजर-अमर वरदान और अस्थि-पंजर राखिया शिव रूप में परिवर्तित होने का आशीर्वाद दिया। इसका प्रमाण #मार्कण्डेय_ऋषि ने दिया, जो कि अजर-अमर हैं। उन्होंने कई कल्प देखे हैं। इसका प्रमाण मार्कण्डेय पुराण में है।


नर्मदाजी का तट सुर्भीक्ष माना गया है। पूर्व में भी जब सूखा पड़ा था तब अनेक ऋषियों ने आकर प्रार्थनाएँ कीं कि भगवन्‌ ऐसी अवस्था में हमें क्या करना चाहिए और कहाँ जाना चाहिए? आप त्रिकालज्ञ हैं तथा दीर्घायु भी हैं। तब मार्कण्डेय ऋषि ने कहा कि कुरुक्षेत्र तथा उत्तर प्रदेश को त्याग कर दक्षिण गंगा तट पर निवास करें। नर्मदा किनारे अपनी तथा सभी के प्राणों की रक्षा करें।

साभार: bharatdiscovery.org

#religious #Narmada_Mata #Narmada_Jayanti

Farmers’ have the right to protest | किसानों को प्रदर्शन का अधिकार है | लेखक : सुभाष चन्द्र


 


कैसे प्रदर्शन का अधिकार हो - मीलॉर्ड, क्या एक बार फिर अराजकता 

फैलाने की सुपारी ले ली आपने -गुंडों को अधिकार दे रहे हो और 

सरकार को फर्ज समझा रहे हो -


#पंजाब & #हरियाणा हाई कोर्ट ने लगता है एक बार फिर देश को अराजकता की आग में झोकने की सुपारी ले ली है जो कल आदेश में यह कहा है कि ‘किसानों” को प्रदर्शन का अधिकार है लेकिन नागरिकों की सुरक्षा करना सरकार का भी कर्तव्य है - 


यही हाई कोर्ट पिछले वर्ष NH - 44 पर प्रदर्शन कर रहे किसानों से हाईवे को मुक्त कराने के आदेश दे रहा था यानी उस आदेश में किसानों को बलपूर्वक उठाने की बात कर रहा था और आज कह रहा है उन्हें #प्रदर्शन का अधिकार है - साथ में सरकार को प्रवचन दे रहे हैं हाई कोर्ट के जज कि नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी का काम आपका (सरकार) का है -


हरियाणा सरकार ने अदालत में बताया कि किस तरह का उग्र #प्रदर्शन करने की तैयारी की हुई है कथित किसानों ने और वे #शम्भू_बॉर्डर पर #खालिस्तान से जुडी बातें भी कर रहे हैं, किसान मोडिफाई किए गए ट्रैक्टरों के साथ हैं और हथियारों की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता - 


इतने पर भी यदि हाई कोर्ट के जजों को लगता है कि कथित किसान शांतिपूर्ण प्रदर्शन करेंगे तो ऐसे जजों की सोच पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है - यह नहीं माना जा सकता कि सोशल मीडिया की रिपोर्ट हाई कोर्ट के जजों तक नहीं पहुँच रही होंगी  फिर भी आप उन्हें प्रदर्शन का अधिकार दे रहे हो - 


“रेलवे ट्रैक रोकना किस तरह जायज है, सड़के जाम करना कैसे जायज है, मोदी अबकी पंजाब आएगा तो जिंदा वापस नहीं जाने देंगे, हमें खालिस्तान दे दो, हमें पाकिस्तान से जुड़ जाने दो,  #मोदी का ग्राफ बढ़ गया है, उसे नीचे लाना है किसी भी तरह से और हम विपक्ष के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं”


अफ़सोस की बात है कि इतना सब होने के बाद भी हाई कोर्ट के जज कह रहे थे कि किसान प्रदर्शन के लिए दिल्ली जा रहे हैं तो इसमें हरियाणा सरकार को क्या आपत्ति है; आखिर क्यों हरियाणा सरकार हाइवे पर बेरिकेडिंग कर रही है - 


ऐसी बातों के चलते भी अगर हाई कोर्ट के जज अंधे हो कर कहते रहेंगे कि किसानों को प्रदर्शन का अधिकार है तो इसका मतलब साफ़ है कि ऐसे जजों ने देश को अराजकता की आग में झोकने की सुपारी ली हुई है - उधर #CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर वकीलों को अदालत में आने में समस्या होती है तो हम “सामजस्य बैठाएंगे” - मतलब केवल वकीलों की समस्या पर ध्यान है जनता जाए भाड़ में -


क्या चाहते हैं #हाई_कोर्ट के जज ? कथित किसानों को दिल्ली जाकर आग लगाने दी जाए और #प्रधानमंत्री_मोदी के आवास को घेरने दिया जाए जैसा अमेरिका में बैठा गुरपतवंत सिंह पन्नू आदेश दे रहा है - दिल्ली को #श्रीलंका बनाना चाहता है विपक्ष -


यही किया था CJI बोबडे ने पिछले #किसान_आंदोलन के समय जब #दिल्ली पुलिस से किसानों के 26 जनवरी के मार्च पर रोक लगाने की मांग की थी लेकिन बोबडे ने मना कर दिया और कहा था कि कानून व्यवस्था देखना आपका काम है और उसके बाद क्या हुआ लाल किले पर सबने देखा - आज वही सुप्रीम कोर्ट कह रहा है मुझे #RTI के जवाब में कि मुझे उस विषय पर सवाल करने का कोई अधिकार नहीं है और यह भी कहा है कि जो #Experts की #Committee बनाई थी उसकी रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई हुई यह भी उनके रिकॉर्ड में नहीं है - कितना बड़ा #फ्रॉड किया कोर्ट ने -


कथित किसानों को लेकर जितना #कांग्रेस, #आप या अन्य विपक्षी नेताओं को कटघरे में खड़ा करने की जरूरत है उससे ज्यादा जरूरत न्यायाधीशों की हरकतों को बेनकाब करने की है - 


मोदी की लोकप्रियता कम नहीं होगी पाखंडी राहुल “कालनेमि” समझ ले और तू भी समझ ले केजरीवाल और अखिलेश यादव - ये कथित किसान तुम्हारे दलों को खेतों में ही दफ़न कर देंगे अबकी बार -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 15/02/2024 

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सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...