फाँसी से पहले जेल में बचे उनके शेष समय के दौरान उन्होंने अपना समय गीता पढ़ कर बिताया। कुशल ने लगभग 112 दिन जेल में बिताए। 🇮🇳
🇮🇳 कुशल कोंवर जो ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ भारत छोड़ो आन्दोलन का हिस्सा रहे। उसी दौरान आन्दोलन ने कुछ क्षेत्रों में हिंसक रूप ले लिया। कुशल कोंवर को एक ऐसे गुनाह के लिए गिरफ्तार किया जो उन्होंने किया भी नहीं था। इस गुनाह के लिए उन्हें फाँसी की सजी दी गई। बिना किसी गलती और गुनाह के बाद भी उन्होंने फाँसी की इस सजा को स्वीकार किया।
🇮🇳 कुशल कोंवर का जन्म 21 मार्च 1905 में हुआ था। कुशल का जन्म #असम के #गोलाघाट जिले में हुआ था। वह एक शाही परिवार से थे। #अहोम_साम्राज्य के शाही परिवार से होने पर उन्होंने कोंवर सरनेम का प्रयोग किया था। जिसे बाद में उन्होंने छोड़ भी दिया था। कुशल एक ऐसे व्यक्ति थे, जो शांत थे और सच्चाई से प्यार करने वाले थे। ये गुण उन्हें उनके माता-पिता #कनकेश्वरी_कोंवर और #सोनाराम_कोंवर से मिले थे।
🇮🇳 कुशल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा #बेजबरुआ स्कूल से हासिल की। अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद कुशल ने 1918 में गोलाघाट के गवर्नमेंट हाई स्कूल में आगे की शिक्षा प्राप्त की। 1921 के समय की बात है उस दौरान वह स्कूल में थे। गॉंधी जी का #असहयोग_आन्दोलन चल रहा था और उनके इस आन्दोलन से कुशल बहुत प्रभावित हुए जिसके बाद से उन्होंने इस आन्दोलन में सक्रिय रूप से भूमिका निभाई।
🇮🇳 1919 में जब ब्रिटिश सरकार ने #जलियांवाला_बाग हत्याकांड और रॉलेट एक्ट जारी किया उस दौरान कुशल केवल 17 वर्ष के थे। इस एक्ट का असल जलियांवाला बाग तक ही सीमित नहीं था। इसका असर पूरे भारत में देखने को मिला था। इस हत्याकांड के विरोध में असहयोग आन्दोलन की शुरूआत हुई और इस आन्दोलन का प्रभाव असम तक पहुँचा और कुशल और अन्य युवा सेनानी इस आन्दोलन में सक्रिय रूप से उतरे।
🇮🇳 कुशल का जीवन गाँधी जी के विचारों से अधिक प्रभावित था। गॉंधी जी के स्वराज, सत्य और अहिंसा से वाले आदर्शों से वह इस कदर प्रभावित हुए की उन्होंने #बेंगमई में एक प्राथमिक विद्यालय की स्थापना की और वहाँ एक शिक्षक के रूप में कार्य किया। इसके बाद वह एक क्लर्क के रूप में बालीजन टी एस्टेट में शामिल हुए, जहाँ उन्होंने कुछ समय के लिए काम किया। इस प्रकार गॉंधी जी के स्वतंत्रता के आह्वान और दिल में स्वतंत्र भारत को देखने की उनकी इच्छा में उन्होंने अपना जीवन देश के नाम समर्पित कर दिया। उन्होंने सत्याग्रह और अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन में #सरूपथर क्षेत्र के लोगों का नेतृत्व किया और कांग्रेस पार्टी को संगठित किया। इसके बाद वे सरुपथर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए।
🇮🇳 10 अक्टूबर 1942 में स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं ने सरूपथर की रेलवे की पटरी से स्लीपरों हटा दिए थे जिसकी वजह से वहाँ से गुजरने वाली सैन्य रेल गाड़ी पटरी से उतर गई। जिसमें हजारों की तादाद में अंग्रेजी सैनिक मारे गए। पुलिस ने इलाके को तुरंत घेर लिया और इस घटना को अंजाम देने वालों को ढूँढना शुरू किया।
🇮🇳 इस घटना के लिए कुशल को आरोपी माना गया था। जबकि इस घटना में उनका कोई हाथ नहीं था। पुलिस कर्मियों के पास उनके गुनहगार होने का कोई सबूत नहीं था लेकिन फिर भी कुशल को रेलवे की तोड़फोड़ का मुख्य आरोपी माना गया और उनको इसके लिए गिरफ्तार किया गया।
🇮🇳 5 नवंबर 1942 में उन्हें गोलाघाट लाया गया और वहाँ की #जोरहाट जेल में बंद कर दिया गया। सीएम हम्फ्री की अदालत में उन्हें दोषी करार किया गया और उन्हें फाँसी की सजा दी गई। जबकि उन्होंने ये गुनाह किया भी नहीं था। लेकिन फिर भी कुशल ने गरिमा के साथ इस फैसले को स्वीकार किया।
🇮🇳 जेल में जब उनकी पत्नी #प्रभावती उनसे मिलने गई तो उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि उन्हें गर्व है कि भगवान ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान के लिए हजारों लोगों में से उन्हें चुना।
🇮🇳 फाँसी से पहले जेल में बचे उनके शेष समय के दौरान उन्होंने अपना समय गीता पढ़ कर बिताया। कुशल ने लगभग 112 दिन जेल में बिताए। 6 जून 1943 में उन्हे फाँसी की सजा सुनाई गई। और फाँसी देने की तिथि 15 जून 1943 की थी। 15 जून 1943 को शाम 4:30 बजे कुशल कोंवर को फाँसी दी गई।
साभार: careerindia.com
🇮🇳 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी क्रांतिकारी #कुशल_कोंवर #kushal_konwar जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !
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वन्दे मातरम् 🇮🇳
#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व
#आजादी_का_अमृतकाल
साभार: चन्द्र कांत (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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