20 फ़रवरी 2024

Sarat Chandra Bose | शरत चन्द्र बोस | जन्म: 6 सितंबर 1889- मृत्यु 20 फरवरी 1950




Sarat Chandra Bose (Born: 6 September 1889- Died 20 February 1950)

🇮🇳 शरत चन्द्र बोस (जन्म: 6 सितंबर 1889- मृत्यु 20 फरवरी 1950)

उनके पिता का #जानकी_नाथ_बोस तथा उनकी माता का नाम #प्रभावती था। 

🇮🇳 नेताजी बोस इतना बड़ा व्यक्तित्व बन गए कि लोग उनके #मेज_दादा की चर्चा ही नहीं करते, जिनकी वजह से नेताजी बोस कैरियर और राष्ट्रीय आंदोलन में इस ऊँचाई तक पहुँच पाए, जिनकी मदद से सुभाष बाबू अपनी जिंदगी की तमाम बाधाओं पर पार पाते रहे. उन शरत चंद्र बोस के बारे में आम युवा से पूछेंगे तो शायद यही बता पाए कि उनके भाई थे, इससे ज्यादा नहीं. आज उनकी पुण्यतिथि है, इस मौके पर #सुभाष_चंद्र_बोस के 'ट्रबल शूटर' शरत चंद्र बोस के बारे में जानिए:  

🇮🇳 शरत चंद्र बोस अपने माता पिता की चौथी संतान और दूसरे बेटे थे, जबकि सुभाष चंद्र बोस उनसे 8 साल छोटे थे. शरत चंद्र बोस पर बंग भंग आंदोलन का काफी प्रभाव पड़ा, 18 साल की उम्र में वो कांग्रेस से जुड़ गए. अपने कॉलेज के ऐसे प्रखर वक्ता बन गया, जिनसे पार पाना मुश्किल था. 1911 से 1914 तक इंगलैंड में पढ़ाई करके लौटे तो कोलकाता हाईकोर्ट में बैरिस्टर बन गए. उस दौर में क्रांतिकारी और राजनीतिक कार्यकर्ता आसानी से जेल जाने के तैयार रहते थे क्योंकि उन्हें पता था कि उनको जल्द शरत बाबू छुड़ा लेंगे और उनके परिवार का ख्याल भी रखेंगे.

🇮🇳 उनका घर 1, वुडबर्न पार्क राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया, जब भी #गाँधीजी या #नेहरू जैसे नेता #कोलकाता आते तो उनके घर ही ठहरते. ऐसे में उनके छोटे भाई सुभाष बाबू को ये माहौल और शरत बाबू जैसा संरक्षक मिला तो उनको देश की दशा और राजनीति को करीब से समझने का मौका मिला और भरपूर आत्मविश्वास भी. जब भी कोई मुश्किल सुभाष बाबू के सामने आती, वो फौरन अपने मेज दादा की शरण में आते और चुटकियों में वो मुश्किल हल हो जाती.

🇮🇳 जब सुभाष चंद्र बोस को प्रेसीडेंसी कॉलेज में एक घटना के बाद प्रिंसिपल ने निष्कासित कर दिया, तो शरत बाबू ने अपने सम्पर्कों से उनका एडमीशन स्कॉटिश चर्च कॉलेज में करवाया और वो कैसे सुभाष बाबू की आर्थिक देखभाल करते थे, उसके बारे में आप सुभाष बाबू के एक पत्र से बखूबी समझते हैं. ये पत्र सुभाष चंद्र बोस ने शरद चंद्र बोस को तब लिखा था, जब वो 1921 में आईसीएस (सिविल सर्विस) की परीक्षा पास करने के बाद इस्तीफा दे रहे थे, इस पत्र में सुभाष बाबू ने लिखा था, "जब मैं आपसे अपने इस्तीफे के विषय में आग्रह कर रहा हूँ तो यहाँ मैं अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए कुछ नहीं माँग रहा, बल्कि अपने भाग्यहीन देश के लिए माँग रहा हूँ. मुझे पर खर्च किए गए धन को आपको माँ पर किए गए खर्च के रूप में देखना होगा, बिना प्रतिलाभ की आशा किए हुए." 

🇮🇳 जिस कांग्रेस को बंगाल में खड़ा करने के लिए शरत बाबू ने अपना सबकुछ दाँव पर लगा दिया, इतना समय दिया, अंग्रेजों से झगड़ा मोल लिया, इतना पैसा दिया, उसी कांग्रेस के नेताओं ने जब साजिश करके सुभाष चंद्र बोस को लगातार दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष बनने देने की राह में रोड़े अटकाए, 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस ने गाँधीजी के प्रिय #पट्टाभि_सीतारमैया को हराकर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, तो कोई भी उनके साथ नहीं खड़ा था, केवल शरत बाबू खड़े थे.

🇮🇳 तब शरत बाबू ने गाँधीजी को गुस्से में एक #पत्र भी लिख डाला था, "त्रिपुरी में जिन 7 दिनों में मैंने रहकर जो कुछ भी देखा, सुना वह मेरी आँखें खोल देने वाला था. जिन लोगों को जनता खुद आपके द्वारा चुने गए शिष्यों, प्रतिनिधियों के रूप में देखती है, उनमें सत्य और अहिंसा का जो दृश्य मैंने देखा, उसने खुद आपके ही शब्दों में मेरी नासिका में दुर्गन्ध भर दी है. राष्ट्रपति (कांग्रेस अध्यक्ष) के विरुद्ध जो प्रचार उन्होंने किया, वह पूरी तरह से निकृष्ट, दुर्भावना से पूर्ण और प्रतिशोधपूर्ण था, जिसमें सत्य और अहिंसा का पूर्णत: अभाव था. त्रिपुरी में जनता के सामने आपके नाम की कसमें खाने वालों ने अपने स्वार्थ सिद्धि करने के लिए और उसको पीड़ा का अधिकतम शर्मनाक लाभ अर्जित करने के लिए उसे गतिरोध के सिवा कुछ नहीं दिया’’.

🇮🇳 सुभाष बाबू भी उन्हें कम सम्मान नहीं देते थे, जब वियना में उनका एक मुश्किल ऑपरेशन होना था, डॉक्टर ने पूछा कोई संदेश देना चाहते हैं, तो वो मुस्कराए और लिखा, "मेरे देशवासियों के लिए मेरा प्यार और मेरे बड़े भाई के प्रति मेरा आभार." जब 1941 में सुभाष चंद्र बोस ने शरत बाबू की सलाह पर ही भारत छोड़ने का निर्णय लिया तो जापान से उन्हें एक पत्र भेजा और उन्हें आभार व स्नेह लिखा और साथ ही लिखा कि, "ऐसा ही स्नेह मेरी बेटी और पत्नी को भी मिले, जिन्हें पीछे छोड़कर जा रहा हूँ."

🇮🇳 ऐसे रिश्ते थे दोनों भाइयों के, ऐसे में #आजाद_हिंद_फौज के चलते सुभाष बाबू इतने बड़े सूर्य बन गए कि उनके सामने बाकी लोग दीपक लगते हैं. शरत बाबू को भी लोग इसीलिए कम जानते हैं, वरना शरत बाबू ही थे जो हर वो नींव तैयार करते रहे, जिस पर सुभाष चंद्र बोस ने सीढ़ियाँ बनाईं. शरत बाबू अलग-अलग केसों में आजादी की लड़ाई के लिए 8 साल तक जेल में रहे, बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, संविधान सभा में भी चुने गए. जब तक रहे देश और समाज के लिए काम करते रहे.

साभार: zeenews.india.com

🇮🇳 नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई एवं मार्गदर्शक, स्वतन्त्रता सेनानी #शरत_चन्द्र_बोस जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#Sarat_Chandra_Bose #freedomfighter  #inspirational_personality

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