19 फ़रवरी 2024

Madhav Sadashiv Golwalkar | प्रखर राष्ट्रवादी श्री माधव सदाशिव गोलवलकर | 19 फरवरी 1906-5 जून 1973 | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ |

 


🇮🇳🔶 माधव सदाशिव गोलवलकर का जन्म 19 फरवरी 1906 को #नागपुर के पास #रामटेक में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वह नौ बच्चों में से एकमात्र जीवित पुत्र थे.

🇮🇳🔶 1927 में गोलवलकर ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एमएससी की डिग्री हासिल की थी. वह राष्ट्रवादी नेता और विश्वविद्यालय के संस्थापक #मदन_मोहन_मालवीय से बहुत प्रभावित थे. बाद में उन्होंने बीएचयू में ‘जंतु शास्त्र’ पढ़ाया,

🇮🇳🔶 श्री माधवराव सदाशिव गोलवलकर, जिन्हें आदरपूर्वक और विनम्रता से 'श्री गुरुजी' कहा जाता था, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के दूसरे सरसंघचालक थे, जिन्होंने 33 वर्षों (1940 से 1973) तक संगठन की सेवा और मार्गदर्शन किया।

🇮🇳🔶 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक #केशव_बलिराम_हेडगेवार या #डॉक्टरजी को बीएचयू के एक छात्र के माध्यम से गोलवलकर के बारे में पता चला. गोलवलकर ने 1932 में हेडगेवार से मुलाकात की और तभी उन्हें बीएचयू में संघचालक नियुक्त किया.

🇮🇳🔶 एक साल बाद गोलवलकर कानून की डिग्री हासिल करने के लिए नागपुर लौट आए. अध्यात्म की खोज में वह 1936 में बंगाल के #सरगाची के लिए रवाना हुए और रामकृष्ण मठ के #स्वामी_अखंडानंद की सेवा में दो साल बिताए.

🇮🇳🔶 उनकी वापसी पर हेडगेवार ने उन्हें अपना जीवन संघ को समर्पित करने के लिए राजी कर लिया. 1940 में जब आरएसएस प्रमुख का निधन हुआ, तो गोलवलकर ने 34 वर्ष की आयु में सरसंघचालक का पदभार सँभाला.

🇮🇳🔶 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लंबे इतिहास में सबसे विवादास्पद अध्याय महात्मा गॉंधी से मतभेद और बाद में उनकी हत्या था.

🇮🇳🔶 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गैर-भागीदारी को लेकर आरएसएस को लगातार आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. 1942 में, गोलवलकर ने गाँधी के नेतृत्व वाले भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने से आरएसएस के स्वयंसेवकों को मना किया था. उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना आरएसएस के मिशन का हिस्सा नहीं था.

🇮🇳🔶 उन्होंने कहा, ‘हमें याद रखना चाहिए कि अपनी प्रतिज्ञा में हमने धर्म और संस्कृति की रक्षा के माध्यम से देश की आजादी की बात की है. यहाँ से अंग्रेजों के जाने का कोई जिक्र नहीं है.’

हालांकि, आरएसएस उन वर्षों में अपने संघर्ष के दौरान अपनी भूमिका निभाती रही थी.

🇮🇳🔶 सितंबर 1947 में भारत विभाजन के दौर से गुजर रहा था. #गाँधी ने गोलवलकर से मुलाकात की और उन्हें बताया कि वे इन दंगों में आरएसएस का हाथ होने के बारे में सुन रहे हैं. हालांकि, गोलवलकर ने उन्हें आश्वास्त करने की कोशिश करते हुए कहा था कि मुसलमानों की हत्या के पीछे आरएसएस नहीं  है. यह केवल हिंदुस्तान की रक्षा करना चाहता था. द इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख के मुताबिक सरदार पटेल को लिखे पत्र में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लिखा था कि गाँधी ने उन्हें बताया कि गोलवलकर बातों में विश्वस्त नहीं लगे.

🇮🇳🔶 महीनों बाद राष्ट्रपिता गाँधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा की गई थी. जो एक कट्टरपंथी हिंदू राष्ट्रवादी था. जिनके बारे में कहा जाता है कि वे आरएसएस के सदस्य थे. आरएसएस का कहना है कि उसने हत्या करने से पहले ही संस्था की सदस्यता छोड़ दी थी.

🇮🇳🔶 इस घटना के बाद, गोलवलकर और आरएसएस के सदस्यों को फरवरी 1948 में गिरफ्तार कर लिया गया था. गृहमंत्री पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था.

🇮🇳🔶 गोलवलकर ने 9 दिसंबर 1948 को दिल्ली में शुरू किए गए सत्याग्रह के साथ आरएसएस पर प्रतिबंध को चुनौती देने का फैसला किया. जुलाई 1949 में आरएसएस के भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा लेने के बाद ही प्रतिबंध को अंततः रद्द कर दिया गया.

🇮🇳🔶 गोलवलकर का भारत का विचार

‘बंच ऑफ थॉट’, जो गोलवलकर का सबसे अधिक देखा जाने वाला कार्य बना. भारत में आरएसएस की शाखाओं में सबसे अधिक उनके द्वारा कहे गए व्याख्यान का एक संग्रह है.

🇮🇳🔶 1966 में बैंगलोर (अब बेंगलुरु) में प्रकाशित, पुस्तक को चार भागों में बाँटा गया है: द मिशन, द नेशन एंड इट्स प्रॉब्लम्स, द पाथ टू ग्लोरी एंड मोल्डिंग मैन.

🇮🇳🔶 गोलवलकर ने #मातृभूमि या पुण्यभूमि और उसके प्रमुख धर्म हिंदू धर्म की महिमा के बारे में लिखा. आरएसएस प्रमुख ने हिंदू समाज के बारे में लिखा, ‘जो मानव जाति के उद्धार के भव्य मिशन को पूरा कर सके.’ उन्होंने जाति व्यवस्था के बारे में भी लिखा, यह कहकर इसका बचाव किया कि इसने हिंदुओं को संगठित रखा और सदियों से एकजुट किया है.

🇮🇳🔶 इसके अलावा गोलवलकर ने राष्ट्रवाद और उनका राष्ट्र के बारे में क्या विचार थे के बारे में भी विस्तार से लिखा था. उन्होंने लिखा कि देश के भीतर शत्रुतापूर्ण तत्व बाहर से आक्रामकों की तुलना में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अधिक खतरा पैदा करते हैं. उन्होंने भारत में तीन प्रमुख आंतरिक खतरे देखे: मुस्लिम, ईसाई और कम्युनिस्ट.

🇮🇳🔶 मुसलमानों और ईसाइयों के बारे में बात करते हुए उन्होंने लिखा कि वे इस भूमि पर पैदा हुए थे. लेकिन वे इसके प्रति ईमानदार नहीं थे और ‘उसकी सेवा’ करना अपना कर्तव्य नहीं समझते हैं.

🇮🇳🔶 इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने लिखा ‘मुसलमानों के प्रति उनका विरोध ऐसा था कि उन्होंने लिखा जो भी खुद को हिंदू मानता है वह मुस्लिम से पूरी तरह से घृणा करते हैं’.

🇮🇳🔶 गुहा ने द हिंदू के लिए लिखे एक लेख में गोलवलकर के हवाले से कहा ‘अगर हम (हिंदू) मंदिर में पूजा करते हैं, तो वह (मुस्लिम) इसे उजाड़ देगा. अगर हम भजन और कार उत्सव (रथयात्रा) करते हैं. तो इससे उन्हें चिढ़ होती है. अगर हम गाय की पूजा करते हैं, तो वह उसे खाना चाहता है. अगर हम महिला को पवित्र मातृत्व के प्रतीक के रूप में महिमा मंडित करते हैं, तो वह उससे छेड़छाड़ करना चाहेगा’.

🇮🇳🔶 ‘वह जीवन के सभी पहलुओं में हमारे तौर तरीके के विपरीत रहेंगे चाहे वह धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, पहलु हों. उन्होंने उस विरोध को मूल रूप से आत्मसात कर लिया था.’

🇮🇳🔶 गोलवलकर ने भी लोकतंत्र की अवधारणा को खारिज कर दिया क्योंकि इसने व्यक्ति को बहुत अधिक स्वतंत्रता दी और एक खतरे के रूप में साम्यवाद की निंदा की. उन्होंने लिखा है कि ‘हमारे वर्तमान संविधान के अनुयायी भी हमारे एकल सजातीय राष्ट्रों के दृढ़ विश्वास में दृढ़ नहीं थे’.

🇮🇳🔶 गुहा ने लिखा है कि ‘कोई भी व्यक्ति जो ‘बंच ऑफ़ थॉट्स’ पढ़ता है, वह इस निष्कर्ष पर पहुँच सकता है कि उसका लेखक एक प्रतिक्रियावादी व्यक्ति था, जिसके विचारों और पूर्वाग्रहों का आधुनिक, उदार लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है.

🇮🇳🔶 हालांकि, संघ परिवार ने तर्क दिया है कि गोलवलकर के ‘हिंदू राष्ट्र’ की अवधारणा का गलत अर्थ निकाला गया और अपमानित किया गया.

🇮🇳🔶 विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा गोलवलकर का मानना था कि स्वतंत्रता के समय सरकार ने जिन मूल्यों को अपनाया था. वे रूस के समाजवाद के रूप में था और ब्रिटेन के भारत सरकार अधिनियम 1935 से लिया गया था और उनका मानना था कि भारत को अपनी संस्कृति और मूल्यों को अपनाना चाहिए. हिंदू राष्ट्र का एक व्यापक अर्थ था, जिसका उपयोग विश्वास के साथ-साथ भारतीय समाज को संदर्भित करने के लिए किया जा सकता है.

🇮🇳🔶 उनका मानना था कि भारत या भारत की जीवन शैली इसकी संस्कृति और धर्म हिंदू राष्ट्र के थे. #हिंदूराष्ट्र में प्रबुद्ध राष्ट्रवाद और विविधता की स्वीकृति और सहिष्णुता शामिल है.’

🇮🇳🔶 जैसे-जैसे उनकी सेहत बिगड़ने लगी गोलवलकर ने 1972-73 में देश भर में एक आखिरी दौरा किया था. यह दौरा बांग्लादेश लिबरेशन वार में पाकिस्तान पर भारत की जीत के ठीक बाद किया था, जिसके लिए गोलवलकर ने तत्कालीन पीएम #इंदिरा_गाँधी को बधाई दी थी.

🇮🇳🔶 मार्च 1973 में वह आखिरी बार नागपुर लौटे. तीन महीने बाद 5 जून को उनकी मृत्यु हो गई.

🇮🇳🔶 लेकिन तब तक गोलवलकर ने राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के साथ आरएसएस को सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन के रूप में स्थापित कर दिया था. इसकी प्रशाखा आज भारतीय जनता पार्टी, भारत की प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पार्टी है.

- रेवथी कृष्णन

साभार: hindi.theprint.in

🇮🇳 #राष्ट्रीय_स्वयंसेवक_संघ के द्वितीय #सरसंघचालक प्रखर राष्ट्रवादी #माधवराव_सदाशिवराव_गोलवलकर जी को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 भारत माता की जय 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व   🇮🇳💐🙏 वन्दे मातरम् 

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
#Madhav_Sadashiv_Golwalkar #Social_Reformer  #inspirational_personality

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...