#Krantikari #Jaydev_Kapoor #अमर क्रांतिकारी #जयदेव_कपूर (24 अक्टूबर, 1908 - 19 सितंबर, 1994)
🇮🇳 #जयदेव का जन्म 1908 में दीवाली की पूर्व संध्या पर हरदोई, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता शालिग्राम कपूर आर्य समाज के सदस्य थे। जयदेव ने छोटे महाराज और ठाकुर राम सिंह के संरक्षण में कुश्ती सीखी
🇮🇳 #अंडमान की कुख्यात #कालापानी जेल में नंगे बदन पर रोज कोड़ों की मार झेलते रहे हरदोई के लाल जयदेव, पर कभी उफ्फ तक नहीं की 🇮🇳
🇮🇳 देश की आजादी में कई ऐसे क्रांतिकारियों का योगदान रहा है जिन्होंने इस राष्ट्र को स्वाधीनता के प्रकाश में लाने के लिए अपना पूरा जीवन अंधकार से भरी जेल की तंग कालकोठरियों में गुजार दिया, बावजूद इसके उनकी शहादत इस स्वाधीन राष्ट्र जो उनके पुण्य बलिदानों का प्रतिफल है, में उचित सम्मान पाने के लिए आज संघर्ष कर रही है.
🇮🇳 #माँ_भारती के पैरों में पड़ी परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ने के उद्देश्य से संघर्ष करने वाले ऐसे ही एक क्रांतिकारी #जयदेव_कपूर जी को हम आज याद कर रहे हैं. जयदेव कपूर उत्तरप्रदेश के #हरदोई के रहने वाले थे. #कानपुर के डीएवी हॉस्टल में रहते हुए वह क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आए और जल्द ही उनकी एक टोली में शामिल हो गए. इस दौरान वे #चन्द्रशेखर_आजाद और फिर शहीद-ए-आजम #भगतसिंह के संपर्क में आए.
🇮🇳 8 अप्रैल 1929 को जब सेंट्रल असेम्बली में बम फेंकने की योजना बनी तो जयदेव कपूर और #शिव_वर्मा ने भगत सिंह और #बटुकेश्वर_दत्त के एंट्री पास का इंतजाम कर उनको असेम्बली में दाखिल करवाया, जिसके बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बम फेंका था. सेंट्रल असेम्बली में बम विस्फोट कांड में षडयंत्रकर्ता के तौर पर पकड़े जाने के बाद जयदेव कपूर को #अंडमान की कुख्यात #कालापानी जेल भेज दिया गया. वहाँ सजा काटने के दौरान जयदेव ने देखा कि जेलर भारतीयों को गाली दे रहा है तो उन्होंने उसे ऐसा घूँसा मारा कि उसके दाँत टूट गए.
🇮🇳 इसका नतीजा ये हुआ कि सजा के तौर पर उन्हें प्रतिदिन नंगे बदन पर 30 कोड़े लगाने का फरमान सुनाया गया. इस कठिन सजा को आजादी के इस परवाने ने हँसते हुए झेल लिया. कोड़े को पानी में भिगोकर इतनी जोर से मारा जाता था कि वह जिस जगह पर पड़ता वहाँ की चमड़ी साथ उधेड़ लाता, लेकिन मजाल कि माँ भारती के इस सच्चे सपूत ने दर्द से उफ्फ तक भी की हो. जयदेव कपूर की ये सहनशीलता देख अंग्रेजी अफसर भी दंग रह जाते. अंडमान जेल की सजा के दौरान बदन पर पड़े कोड़ों के निशान जयदेव जी के शरीर पर ताउम्र बने रहे.
🇮🇳 जयदेव कपूर भगतसिंह के करीबी मित्रों में से एक थे. 8 अप्रैल 1829 को असेंबली हाल में बम फेंकने से पहले शहीद भगतसिंह ने जयदेव को अपने जूते भेंट किए थे. साथ ही उन्होंने एक पॉकेट घड़ी भी उन्हें दी थी जो महान क्रांतिकारी #शचीन्द्रनाथ_सान्याल ने उन्हें भेंट की थी. इन्हें देते हुए भगतसिंह से जयदेव से आजादी की मशाल को जलाए रखने का वचन लिया था. जयदेव कपूर स्वतंत्रता के बाद भी लगभग 2 वर्ष तक जेल में रहे. सन 1949 में जेल से रिहा होकर उन्होंने शादी कर ली. उसके बाद सन 1949 से एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में वे वंचितों और शोषितों की आवाज बुलंद करते रहे. 19 सितंबर 1994 को 86 वर्ष की आयु में जयदेव कपूर का निधन हो गया। ।
साभार: zeenews.india.com
सेंट्रल असेम्बली में बम फेंकने की योजना के अन्तर्गत सुप्रसिद्ध क्रांतिकारियों भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को एंट्री पास दिलाने की व्यवस्था करने वाले अमर क्रांतिकारी #जयदेव_कपूर जी को शत् शत् नमन !
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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व
#आजादी_का_अमृतकाल
साभार: चन्द्र कांत (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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