23 मार्च 2024

Dr. Ram Manohar Lohia | डॉ. राम मनोहर लोहिया | 23 March 1910 – 12 October 1967

 




किसी देश का उत्थान जनता की चेतना और राजनीतिक जागरूकता पर निर्भर करता है। 🇮🇳 

🇮🇳 आज देश के महानायक भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और डॉ. राम मनोहर लोहिया को एक साथ याद करने का दिन है। 23 मार्च को जहाँ भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के बलिदान का दिन है तो वहीं महान समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया की जयंती भी है।

🇮🇳 डॉ. लोहिया एक ऐसे चिंतक और नेता थे, जिन्होंने अपने जन्मदिन को बलिदान दिवस (शहीदी दिवस) को समर्पित कर दिया। वे कहते थे कि यह जन्मदिन से अधिक अपने महानायकों को याद करने का दिन है, जो बहुत कम उम्र में बलिदान देकर समाज को एक बड़ा सपना दे गया। ऐसे बलिदान समाज में एक नई सोच और सपने देखने के नजरिए को प्रतिफलित करती हैं, उस सपने को आगे बढ़ाने का दिन है।

🇮🇳 उन्होंने भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदानों के बाद खुद का जन्मदिन मनाने से इनकार कर दिया और अपने समाजवादी साथियों से यह अपील की कि वह भी उसे न मनाएं । अगर कोई उनसे जन्मदिन मनाने का आग्रह करता तो वह स्पष्ट रूप से कहते थे कि भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदानों को याद करना चाहिए और इस दिन को हमें बलिदान दिवस के रूप में मनाना चाहिए।

🇮🇳 इतने कम उम्र में भगत सिंह जितना लिख गए और पढ़ गए वह अद्भुत है। उनकी लेखनी में समाज के हाशिए पर खड़े लोगों की झलक दिखती है। आज हमारे समाज को भगत सिंह और डॉ. राम मनोहर लोहिया के त्याग, विचार और संदेश को आत्मसात करने की जरूरत है।

डॉ. लोहिया और भगत सिंह की कार्य प्रणाली, व्यक्तित्व, सोच एवं जीवन दर्शन में कई समानताएं देखने को मिलती हैं। दोनों का लक्ष्य था कि एक ऐसे समाज की स्थापना की जाए, जिसमें शोषण न हो, भेदभाव न हो, असमानता न हो, किसी प्रकार का अप्राकृतिक अथवा अमानवीय विभेद न हो। अर्थात समतामूलक समाजवादी समाज की स्थापना की जाए।

🇮🇳 दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि समाज में व्यक्ति-व्यक्ति के बीच कोई भेद एवं कोई दीवार न हो, न ही जाति का बंधन हो और न ही धर्म की बंदिशें हो, सभी जन एक समान हों और सब जन का मंगल हो।

🇮🇳 वहीं मौजूदा हालात ऐसे हैं, जिसमें सभी का मंगल बाधित होता दिख रहा है। देश में बढ़ती बेरोजगारी, महँगाई, छात्र-छात्राओं में हताशा की किरणें और आए दिन राजनीतिक परिदृश्य में परिवर्तन इस ओर इशारा करती हैं कि राम मनोहर लोहिया की समाजवादी विचारधारा आज भी प्रासंगिक है।

उन्होंने कहा था कि-

जो लोग ये कहते हैं कि राजनीति को रोजी-रोटी की समस्या से अलग रखो तो यह कहना उनकी अज्ञानता है या बेईमानी है। राजनीति का अर्थ और प्रमुख उद्देश्य लोगों का पेट भरना है। जिस राजनीति से लोगों को रोटी नहीं मिलती, उनका पेट नहीं भरता वह राजनीति भ्रष्ट, पापी और नीच राजनीति है।’ अर्थात राजनीति को हम दरकिनार करके समाज के विकास या समतामूलक समाज की स्थापना की बात नहीं कर सकते हैं। क्योंकि राजनीति भी हमारे समाज का ही हिस्सा है।

🇮🇳 राजनीति में शुचिता और पारदर्शिता डॉ. लोहिया की पहली शर्त थी, लेकिन राजनीति का बदलता स्वरूप समाज की प्राथमिकता को कम कर रहा है। समाज से सीधा संवाद नहीं हो रहा है। यहाँ पर संवाद की प्रक्रिया में ओपिनियन लीडर की भूमिका अहम हो गई है, जो राजनीतिक पार्टियों के द्वारा तय किए गए मुद्दों पर केंद्रित होता दिख रहा है।

🇮🇳 जहाँ समाज की भूमिका कम हो जाती है और राजनीति धीरे-धीरे रोजी-रोटी की समस्या से दूर होने लगती है। वहीं वोट की राजनीति पर अधिक केंद्रित हो जाती है। जबकि किसी देश का उत्थान जनता की चेतना और राजनीतिक जागरूकता पर निर्भर करता है।

🇮🇳 डॉ. लोहिया समाज के अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के लोकतांत्रिक अधिकारों की बात करते थे। उन्होंने कहा कि आर्थिक गैर बराबरी जाति-पाति राक्षस हैं और अगर एक से लड़ना है तो दूसरे से भी लड़ना जरूरी है। जाति समाज में असमानता को उत्पन्न करती है। जाति प्रथा के कारण ही समाज के निम्न वर्ग के लोग शोषण का शिकार होते हैं और उन्हें उन्नति के अवसरों से दूर कर देती है।

🇮🇳 यही असमानता मानव विकास की यात्रा में बढ़ती दिख रही है। इसके लिए जाति भेदभाव को खत्म करने की आवश्यकता है और यह आर्थिक बराबरी होने पर ही खत्म हो सकती है। इसलिए समाज को बराबरी और समतामूलक बनाने के लिए इनसे छुटकारा पाना होगा। वे आजीवन समाजवादी विचारों के समरूप समानता स्थापित करने लिए संघर्षरत रहे।

🇮🇳 वह देश के उन तमाम लोगों की आवाज थे, जिनकी आवाज संसद तक नहीं पहुँचती थी। उन सभी की आवाज को उन्होंने संसद तक पहुंचाया। आज भी हमें याद है कि कैसे राम मनोहर लोहिया ने संसद में एक आम आदमी के रोज के खर्चे से हजारों गुना अधिक बताते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पर तीखा हमला किया था।

🇮🇳 उन्होंने एक आम आदमी की आमदनी की पीड़ा को प्रधानमंत्री के समक्ष रखा। उन्होंने कहा था-

जो आबादी का 27 करोड़ है, वह तीन आना प्रतिदिन पर जीवनयापन कर रहे हैं। वहीं प्रधानमंत्री के कुत्ते पर प्रतिदिन तीन रुपये का खर्च किया जाता है। जबकि प्रधानमंत्री पर प्रतिदिन 25 से 30 हजार रुपये खर्च होता है। उन्होंने संसद में जनता की समस्याओं को तर्कों के साथ रखने की एक अलग पहचान को साबित किया। 

🇮🇳 आज भी डॉ. लोहिया के विचारों से सीखने की जरूरत है कि कैसे विपक्ष की भूमिका में रहकर जनता के सवालों को पूरे जोरदार तरीके से रखा जाए। यह बातें सिर्फ लोहिया के भाषण के रूप में नहीं है, बल्कि वर्तमान राजनीतिक पार्टियों के लिए सीखने और आत्मसात करने की जरूरत है। उनके कालखंड में जितने भी विपक्षी नेता हुए, उन सब में एक नैतिक बल की दृष्टि थी, जिसका आज के विपक्षी नेताओं में अभाव दिख रहा है।

🇮🇳 वे जीवन के अंतिम वर्षों में राजनीति के अलावा साहित्य एवं कला पर युवाओं से संवाद करते रहे। उन्होंने कहा था कि ‘जिंदा कौमें पाँच साल इंतजार नहीं करतीं।’ डॉ. लोहिया जीवन के अंतिम क्षण तक कौम के बारे में सोचते रहते थे, लेकिन अब यह दिखाई नहीं देता।

🇮🇳 आज के नेता सिर्फ व सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, जिससे परिवारवाद का भी आरोप लगता रहा है। भारतीय राजनीति में डॉ. लोहिया की आज भी जरूरत है। उनका विचार और समतामूलक समाज की अवधारणा भारतीय संदर्भों में देश का भविष्य सुनिश्चित कर सकता है।

साभार : amarujala.com

🇮🇳 समतामूलक समाज की अवधारणा को आगे बढ़ाने वाले, समाजवाद के जनक, भारतीय #स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी #राममनोहर_लोहिया जी को उनकी जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि !

#RamManohar_Lohia ji

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


| स्वतंत्रता सेनानी सुहासिनी गांगुली | जन्म- 3 फ़रवरी, 1909; मृत्यु- 23 मार्च, 1965





 #क्रांतिकारी_वीरांगना भारत की लड़ाई में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी कंधे से कंधा मिलाकर अपना योगदान दिया। इसमें से कई महिलाओं ने जहाँ #महात्मा_गाँधी के अहिंसा का मार्ग अपनाया तो वहीं कई महिलाओं ने #चंद्रशेखर_आजाद और #भगत_सिंह जैसे क्रांतिकारियों के मार्ग को अपनाया। ऐसे ही महान महिला स्वतंत्रता सेनानियों में #सुहासिनी गांगुली का नाम प्रमुख है जिन्होंने बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियों में अपना सक्रिय योगदान दिया ।

🇮🇳 सुहासिनी गांगुली का जन्म 3 फरवरी 1909 को तत्कालीन बंगाल के #खुलना में हुआ था।

🇮🇳 अपनी शिक्षा पूरी करने के उपरांत उन्होंने #कोलकाता में एक मूक बधिर बच्चों के स्कूल में नौकरी करना शुरू किया जहाँ पर वह क्रांतिकारियों के संपर्क में आई।

🇮🇳 उल्लेखनीय है कि उन दिनों बंगाल में ‘छात्री संघा’ नाम का एक महिला क्रांतिकारी संगठन कार्यरत था जिसकी कमान #कमला_दासगुप्ता के हाथों में थी। उल्लेखनीय है कि इसी संगठन से #प्रीति_लता_वादेदार और #बीना_दास जैसी वीरांगनायें जुड़ी हुई थी।

🇮🇳 खुलना के क्रांतिकारी #रसिक_लाल_दास और क्रांतिकारी #हेमंत_तरफदार के संपर्क में आने से सुहासिनी गांगुली क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर प्रेरित हुई और जल्द ही #युगांतर_पार्टी से जुड़ गई।

🇮🇳 सन 1930 के #चटगाँव_शस्त्रागार_कांड के उपरांत #छात्री_संघा के साथ-साथ अन्य क्रांतिकारी साथियों समेत सुहासिनी गांगुली पर भी निगरानी बढ़ गई। इसके उपरांत वह चंद्रनगर आ गई एवं क्रांतिकारी #शशिधर_आचार्य की छद्म धर्मपत्नी के तौर पर रहने लगीं।

🇮🇳 चंद्रनगर में रहते हुए सुहासिनी गांगुली ने क्रांतिकारियों को मदद करने में वही किरदार निभाया जैसा #दुर्गा_भाभी ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू समेत अन्य क्रांतिकारियों की मदद करने के लिए निभाया था।

🇮🇳 इन्होंने पर्दे के पीछे से क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन हेतु अपने घर को ना केवल प्रमुख स्थल बनाया बल्कि उस दौर के सभी क्रांतिकारियों को जरूरत पड़ने पर आश्रय भी प्रदान किया।

🇮🇳 वर्ष 1930 में एक दिन पुलिस के साथ हुई आमने-सामने की मुठभेड़ में #जीवन_घोषाल जहाँ बलिदान हो गए वहीं शशिधर आचार्य और सुहासिनी को गिरफ्तार करके उन्हें #हिजली डिटेंशन कैम्प में रखा गया। आगे चलकर यही हिजली डिटेंशन कैम्प खड़गपुर आईआईटी का कैम्पस बना।

🇮🇳 1938 में रिहा होने के उपरांत इन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी को ज्वाइन किया। यद्यपि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कम्युनिस्ट पार्टी के द्वारा इस आंदोलन का बहिष्कार किया गया फिर भी इन्होंने आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए क्रांतिकारियों की लगातार मदद की।

🇮🇳 प्रसिद्ध क्रांतिकारी #हेमंत_तरफदार की सहायता के कारण इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया एवं इन्हें पुनः 1945 में रिहा किया गया। रिहा होने के उपरांत वह हेमंत तरफदार द्वारा निवास कर रहे धनबाद के एक आश्रम में रहने लगी।

🇮🇳 अन्य तात्कालिक स्वतंत्रता सेनानियों के विपरीत इन्होंने राजनीति का त्याग करते हुए आजादी के बाद अपना सारा जीवन सामाजिक, आध्यात्मिक कार्यों हेतु समर्पित कर दिया।

🇮🇳 मार्च 1965 में यह एक सड़क दुर्घटना की शिकार हो गई एवं इलाज के दौरान चिकित्सीय लापरवाही से बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण इनकी मृत्यु 23 मार्च 1965 को हो गई।

साभार: dhyeyaias.com

🇮🇳 भारत के स्वाधीनता संघर्ष की #स्वतंत्रता सेनानी, #क्रांतिकारी #वीरांगना #सुहासिनी_गांगुली जी को उनकी पुण्यतिथि पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से शत् शत् नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

#Revolutionary  #Suhasini_Ganguly ji

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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Krantiveer Hemu Kalani | क्रांतिवीर हेमू कालाणी | 23 मार्च 1923 - 21 जनवरी 1943

 




#Krantiveer_Hemu_Kalani

#क्रांतिवीर_हेमू_कालाणी 

हेमू कालाणी जब मात्र 7 वर्ष के थे तब वह #तिरंगा लेकर अंग्रेजों की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे | 🇮🇳

🇮🇳 जब फाँसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। 🇮🇳

🇮🇳 स्वतंत्रता संग्राम में भारत माता के अनगिनत सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराया | आजादी की लड़ाई में भारत के सभी प्रदेशों का योगदान रहा | अंग्रेजों को भारत से भगा कर देश को जिन वन्दनीय वीरों ने आजाद कराया उनमे सबसे कम उम्र के बालक क्रांतिकारी अमर बलिदानी हेमू कालाणी को भारत देश कभी नही भुला पायेगा |

🇮🇳 हेमू कालाणी #सिन्ध के #सख्खर में 23 मार्च सन् 1923 को जन्मे थे। उनके पिताजी का नाम #पेसूमल_कालाणी एवं उनकी माँ का नाम #जेठी_बाई था।

🇮🇳 हेमू बचपन से साहसी तथा विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे | हेमू कालाणी जब मात्र 7 वर्ष के थे तब वह तिरंगा लेकर अंग्रेजों की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे |

🇮🇳 1942 में 19 वर्षीय किशोर क्रांतिकारी ने “अंग्रेजों भारत छोड़ो” नारे के साथ अपनी टोली के साथ सिंध प्रदेश में तहलका मचा दिया था और उसके उत्साह को देखकर प्रत्येक सिंधवासी में जोश आ गया था | हेमू समस्त विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए लोगों से अनुरोध किया करते थे | शीघ्र ही सक्रिय क्रान्तिकारी गतिविधियों में शामिल होकर उन्होंने हुकुमत को उखाड़ फेंकने के संकल्प के साथ राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रियाकलापों में भाग लेना शुरू कर दिया | अत्याचारी फिरंगी सरकार के खिलाफ छापामार गतिविधियों एवं उनके वाहनों को जलाने में हेमू सदा अपने साथियों का नेतृत्व करते थे |

🇮🇳 हेमू ने अंग्रेजों की एक ट्रेन, जिसमे क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए हथियार एवं अंग्रेजी अफसरों का खूंखार दस्ता था, उसे सक्खर पुल में पटरी की फिश प्लेट खोलकर गिराने का कार्य किया था जिसे अंग्रेजों ने देख लिया था | 

🇮🇳 1942 में क्रांतिकारी हौसले से भयभीत अंग्रजी हुकुमत ने हेमू की उम्र कैद को फाँसी की सजा में तब्दील कर दिया | पूरे भारत में सिंध प्रदेश में सभी लोग एवं क्रांतिकारी संगठन हैरान रह गये और अंग्रेज सरकार के खिलाफ विरोध प्रकट किया | हेमू को जेल में अपने साथियों का नाम बताने के लिए काफी प्रलोभन और यातनायें दी गयी लेकिन उसने मुँह नही खोला और फाँसी पर झूलना ही बेहतर समझा |

🇮🇳 8 अगस्त 1942 को गॉंधी जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध 'भारत छोडो आन्दोलन' तथा 'करो या मरो' का नारा दिया। इससे पूरे देश का वातावरण एकदम गर्म हो गया। गाँधी जी का कहना था कि या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या इसके लिए जान दे देंगे। अंग्रेजों को भारत छोड कर जाना ही होगा। जनता तथा ब्रिटिश सरकार के बीच लडाई तेज हो गई। अधिकांश कांग्रेसी नेता पकड-पकड कर जेल में डाल दिए गए। इससे छात्रों, किसानों, मजदूरों, आदमी, औरतों व अनेक कर्मचारियों ने आन्दोलन की कमान स्वयं सम्हाल ली। पुलिस स्टेशन,पोस्ट ऑफिस,रेलवे स्टेशन आदि पर आक्रमण प्रारंभ हो गए। जगह जगह आगजनी की घटनाएं होने लगी। गोली और गिरफ्तारी के दम पर आंदोलन को काबू में लाने की कोशिश होने लगी। 

हेमू कालाणी सर्वगुण संपन्न व होनहार बालक था, जो जीवन के प्रारंभ से ही पढाई लिखाई के अलावा अच्छा तैराक, तीव्र साईकिल चालक तथा अच्छा धावक भी था। वह तैराकी में कई बार पुरस्कृत हुआ था। सिंध प्रान्त में भी तीव्र आन्दोलन उठ खडा हुआ तो इस वीर युवा ने आंदोलन में बढ चढकर हिस्सा लिया।

🇮🇳 अक्टूबर 1942 में हेमू को पता चला कि अंग्रेज सेना की एक टुकडी तथा हथियारों से भरी ट्रेन उसके नगर से गुजरेगी तो उसने अपने साथियों के साथ इस ट्रेन को गिराने की सोची। उसने रेल की पटरियों की फिशप्लेट निकालकर पटरी उखाडने तथा ट्रेन को डिरेल करने का प्लान तैयार किया। हेमू और उनके दोस्तों के पास पटरियों के नट बोल्ट खोलने के लिए कोई औजार नहीं थे अत: लोहे की छडों से पटरियों को हटाने लगे, जिससे बहुत आवाज होने लगी। जिससे हेमू और उनके दोस्तों को पकडने के लिए एक दस्ता तेजी से दौडा। हेमू ने सब दोस्तों को भगा दिया किन्तु खुद पकडा गया और जेल में डाल दिया गया।

🇮🇳 जब वे किशोर वयस्‍क अवस्‍था के थे तब उन्होंने अपने साथियों के साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का आग्रह किया। सन् 1942 में जब महात्मा गाँधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो हेमू इसमें कूद पड़े। 1942 में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी. हेमू कालाणी अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई। वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए। 

🇮🇳 हेमू कालाणी को कोर्ट ने फाँसी की सजा सुनाई. उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की। वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कालाणी अपने साथियों का नाम और पता बताये पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी।

🇮🇳 21 जनवरी 1943 को उन्हें फाँसी की सजा दी गई। जब फाँसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय की घोषणा के साथ उन्होंने फाँसी को स्वीकार किया ।

साभार: jivani.org

🇮🇳 माँ भारती को दासता की बेड़ियों से मुक्ति दिलाने के लिए मात्र 19 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति देने वाले, युवा #क्रांतिकारी अमर बलिदानी #हेमू_कालाणी जी की जयंती पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

#Hemu_Kalani ji

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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Lala Ram Thakur | VICTORIA CROSS WINNER | लांस नायक लाला राम | जन्म- 20 अप्रैल, 1876, हिमाचल प्रदेश; मृत्यु- 23 मार्च, 1927

 



#भारतीयता_की_पहचान_को_कायम_रखने_वाले_नायक

लांस नायक लाला राम (जन्म- 20 अप्रैल, 1876, हिमाचल प्रदेश; मृत्यु- 23 मार्च, 1927) भारतीय थल सेना के 41वें डोगरा में लांस नाईक थे। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने मेसोपोटामिया (मौजूदा इराक) में हन्ना के युद्ध में 21 जनवरी, 1916 को बहादुरी की मिसाल कायम की, जिसके लिए उनको "विक्टोरिया क्रॉस" से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 लांस नायक लाला राम ने एक ब्रिटिश ऑफिसर को दुश्मन के करीब जमीन पर बेसुध पाया। वह ऑफिसर दूसरी रेजिमेंट का था।

लाला राम उस ऑफिसर को एक अस्थायी शरण में ले आए, जिसे उन्होंने खुद बनाया था। उसमें वह पहले भी चार लोगों की मरहम-पट्टी कर चुके थे।

🇮🇳 जब उस अधिकारी के जख्म की मरहम-पट्टी कर दी तो उनको अपनी रेजिमेंट के एजुटेंट की आवाज सुनाई दी। एजुटेंट बुरी तरह जख्मी थे और जमीन पर पड़े थे।

लाला राम ने एजुटेंट को अकेले नहीं छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने अपने पीठ पर लादकर एजुटेंट को ले जाना चाहा, लेकिन एजुटेंट ने मना कर दिया।

🇮🇳 उसके बाद वह शेल्टर में आ गए और अपने कपड़े उतारकर जख्मी अधिकारी को गर्म रखने की कोशिश की और अंधेरा होने तक उसके साथ रहे।

🇮🇳 जब वह अधिकारी अपने शेल्टर में चला गया तो उन्होंने पहले वाले जख्मी अधिकारी को मुख्य खंदक में पहुँचाया। इसके बाद वह एक स्ट्रेचर लेकर गए और अपने एजुटेंट को वापस लाए।

🇮🇳 उन्होंने अपने अधिकारियों के लिए साहस और समर्पण की अनोखी मिसाल कायम की।

🇮🇳 लाला राम का 23 मार्च, 1927 में निधन हो गया और उनके अंतिम शब्द थे- "हमने सच्चे दिल से लड़ा।"

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित; प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मेसोपोटामिया (मौजूदा इराक) में हन्ना के युद्ध में 21 जनवरी, 1916 को बहादुरी की मिसाल कायम करने वाले भारतीय थल सेना के 41वें डोगरा के सैनिक #लांस_नायक_लाला_राम जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

#Lance_Nayak_Lala_Ram ji

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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Brigadier Rai Singh Yadav | ब्रिगेडियर राय सिंह यादव | टाइगर ऑफ नाथू ला | 17 मार्च 1925 -23 मार्च, 2017

 


#नाथू_ला_का_बाघ

लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह यादव को भारतीय सेना में 'टाइगर ऑफ नाथू ला' के नाम से याद किया जाता है। उन्होंने संगीनों और राइफल बटों के साथ आमने-सामने की लड़ाई में आगे रहकर अपने लोगों का नेतृत्व किया। 🇮🇳

🇮🇳 राय सिंह यादव का जन्म 17 मार्च 1925 को पंजाब प्रांत (अब हरियाणा के रेवाड़ी जिले) के #गुड़गाँव जिले के #कोसली गाँव में हुआ था। उनके पिता #रायसाहब_गणपत_सिंह थे जिन्होंने 1920 के दशक में ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा की थी। राय सिंह ने अपनी सीनियर कैम्ब्रिज किंग जॉर्ज मिलिट्री स्कूल, जुलुंदुर से उत्तीर्ण की। वह 1944 में एक सिपाही के रूप में सेना में शामिल हुए। उन्हें 10 दिसंबर 1950 को 2 ग्रेनेडियर्स में नियुक्त किया गया था। उनका दिमाग विश्लेषणात्मक था और सेवा के आरंभ में ही वे सैन्य रणनीति और रणनीति में निपुण हो गए थे। उन्हें यूके के कैम्बरली में प्रतिष्ठित डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज में भाग लेने के लिए नामांकित किया गया था।   

🇮🇳 1962 में झटके के बाद, किसी भी चीनी हमले के खिलाफ भारत की उत्तरी सीमाओं की रक्षा के लिए सात पर्वतीय डिवीजनों को खड़ा किया गया था। नाथू ला डोंगक्या रेंज पर एक पहाड़ी दर्रा है जो 14,250 फीट (4,340 मीटर) की ऊंचाई पर सिक्किम और तिब्बत की चुम्बी घाटी को अलग करता है। सिक्किम के नाथू ला दर्रे पर, तैनात चीनी और भारतीय सेनाएँ लगभग 20-30 मीटर की दूरी पर तैनात थीं। क्षेत्र में छोटे पैमाने पर झड़पें अक्सर होती रहीं। लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह ने नाथू ला सीमा चौकी की सुरक्षा करने वाले 2 ग्रेनेडियर्स की कमान संभाली। 

🇮🇳 20 अगस्त 1967 को, लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह यादव को उत्तरी कंधे पर पहली चीनी घुसपैठ के बाद नाथू ला में जल शेड के साथ तार की बाड़ बनाने का आदेश दिया गया था। चीनी राजनीतिक कमिश्नर रेन रोंग, पैदल सेना की एक टुकड़ी के साथ, दर्रे के केंद्र में आये जहाँ लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह यादव अपनी कमांडो पलटन के साथ खड़े थे। रोंग ने यादव से तार बिछाना बंद करने को कहा। भारतीय सैनिकों ने रुकने से इनकार कर दिया. चीनियों ने भारतीय सैनिकों पर मशीनगनों से गोलीबारी कर जवाब दिया। दर्रे में कवर की कमी के कारण शुरुआत में भारतीय सैनिकों को भारी क्षति उठानी पड़ी। बाद में चीनियों ने भी भारतीयों पर तोपखाने से गोलियाँ चलायीं। 

🇮🇳 भारतीय सैनिकों ने अपनी ओर से तोपखाने से जवाब दिया। झड़प दिन-रात चलती रही, अगले तीन दिनों तक दोनों पक्षों ने तोपखाने से गोलाबारी की। भारतीय सैनिक चीनी सेना को 'पीटने' में कामयाब रहे। दुश्मन के गंभीर प्रतिरोध के बावजूद, यादव बाड़ लगाने का काम सफलतापूर्वक पूरा करने में कामयाब रहे। 

🇮🇳 7 सितंबर 1967 को, उन्हें उत्तरी कंधे से दक्षिण कंधे तक बाड़ का विस्तार करने का आदेश दिया गया था। चीनियों ने गोलीबारी शुरू कर दी, संगीनों और राइफल बटों का भी इस्तेमाल किया। 11 सितंबर को बाड़ को मजबूत करने का काम करते समय चीनियों ने मोर्टार और रिकॉइललेस गन से हमला कर दिया। उन्होंने अपनी यूनिट को सभी उपलब्ध हथियारों के साथ जवाबी गोलीबारी करने का आदेश दिया, और अपने लोगों को सुरक्षा में वापस लाने के लिए कवर फायर देने के लिए व्यक्तिगत रूप से एक लाइट मशीन गन (एलएमजी) से गोलीबारी की। 

🇮🇳 जब उनका खुद का बंकर क्षतिग्रस्त हो गया, तो वह खुले में आये, एक घायल सैनिक का हथियार उठाया और चीनियों पर गोलीबारी करते रहे। बाद में उन्होंने ब्राउनिंग मशीन गन का संचालन किया जब इसके ऑपरेटर की मौत हो गई। लेकिन बाद में उनके पेट में गोली लगी और वह मौके पर ही गिर पड़े. उसके सिर पर भी छर्रे से वार किया गया। कुछ समय बाद, जब उन्हें होश आया, तो उन्होंने हिलने से इनकार कर दिया और अपने गंभीर घावों की परवाह किए बिना, उन्होंने निर्देश देना जारी रखा और अपने सैनिकों को लड़ते रहने के लिए प्रोत्साहित किया। 

🇮🇳 लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह यादव को भारतीय सेना में 'टाइगर ऑफ नाथू ला' के नाम से याद किया जाता है। उन्होंने संगीनों और राइफल बटों के साथ आमने-सामने की लड़ाई में सामने से अपने लोगों का नेतृत्व किया और इस प्रकार दुश्मन के सामने विशिष्ट बहादुरी और असाधारण नेतृत्व का प्रदर्शन किया। इसके लिए उन्हें महावीर चक्र (एमवीसी) से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह (एमवीसी), सेना मुख्यालय, नई दिल्ली में सैन्य संचालन निदेशालय में जनरल स्टाफ ऑफिसर ग्रेड 1 के रूप में तैनात थे। बाद में, उन्हें ब्रिगेडियर के पद पर पदोन्नत किया गया और एक इन्फैंट्री ब्रिगेड की कमान सौंपी गई। उन्होंने प्रतिनियुक्ति पर सीमा सुरक्षा बल में महानिरीक्षक (संचालन) के रूप में भी कार्य किया। 23 मार्च, 2017 को उन्होंने अंतिम साँस ली।

साभार: oneindiaonepeople.com

🇮🇳 युद्ध क्षेत्र में विशिष्ट बहादुरी और असाधारण नेतृत्व के लिए महावीर चक्र (एमवीसी) से सम्मानित; #ब्रिगेडियर_राय_सिंह_यादव जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

#Brigadier_Rai_Singh_Yadav

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 



Sardar Bhagat Singh | स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी | सरदार भगत सिंह | जन्म: 28 सितम्बर 1907 , वीरगति: 23 मार्च 1931



#क्रांतिकारी_बलिदानियों_का_देश_के_लिए_स्वप्न_कब_पूरा_होगा ???

भगत सिंह (जन्म: 28 सितम्बर 1907 , वीरगति: 23 मार्च 1931) भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे।

28 सितंबर 1907 को लायलपुर, पश्चिमी पंजाब, भारत (वर्तमान पाकिस्तान) में एक सिख परिवार में जन्मे भगत सिंह, किशन सिंह संधू और विद्या वती के बेटे थे। सात भाई-बहनों में भगत सिंह दूसरे नंबर पर थे उनके दादा अर्जन सिंह, पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे।

भगत सिंह ने अपनी 5वीं तक की पढाई गांव में की और उसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर में उनका दाखिला करवाया। बहुत ही छोटी उम्र में भगत सिंह, #महात्मा गांधी जी के असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए और बहुत ही बहादुरी से उन्होंने ब्रिटिश सेना को ललकारा।

महज़ 24 साल की उम्र में #ब्रिटिश सरकार ने सरदार भगत सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया था. उन पर #लाहौर षडयंत्र केस में शामिल होने का आरोप था. #भगत सिंह के साथ #राजगुरु और #सुखदेव #Bhagat_Singh, #Rajguru and #Sukhdev को भी सज़ा-ए-मौत दी गई थी

भगत सिंह जिस तस्वीर को अपनी जेब में रखते थे वह किसी बाबा की फोटो नहीं थी वो एक 19 साल के नौजवान #करतार सिंह सराभा की फोटो थी जिसे भगत सिंह अपना आदर्श, अपना गुरु मानते थे. #पंजाब के लुधियाना जिले के सराभा गांव में 24 मई, 1896 को जन्म करतार सिंह सराभा को अंग्रेजों ने महज 19 साल की उम्र में ही #फांसी दे दी थी.

सामाजिक प्रगति कुछ लोगों के अभिजात-वर्ग बनने पर नहीं बल्कि लोकतंत्र के संवर्धन पर निर्भर करती है; सार्वभौमिक भाईचारा केवल तब प्राप्त किया जा सकता है जब सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में अवसर की एक समानता होती है। 🔴🇮🇳

जय भारत !

~ सरदार भगत सिंह की डायरी से

मानवता को समर्पित दूरदृष्टा चिंतक, देशभक्ति से ओतप्रोत माँ भारती के सच्चे सपूत अमर बलिदानी #सरदार_भगत_सिंह जी को शत् शत् नमन !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Balidan diwas | बलिदान-दिवस | भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू | 23 मार्च, 1931



#बलिदान_दिवस

सरदार भगत सिंह 🇮🇳

🇮🇳 अमर हुतात्मा #सरदार_भगतसिंह का जन्म- 27 सितंबर, 1907 को बंगा, लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में) हुआ था व 23 मार्च, 1931 को इन्हें दो अन्य साथियों सुखदेव व राजगुरू के साथ फाँसी दे दी गई। भगतसिंह का नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय है। भगतसिंह देश के लिये जीये और देश ही के लिए बलिदान भी हो गए।

🇮🇳 राजगुरु 🇮🇳

🇮🇳 24 अगस्त, 1908 को पुणे ज़िले के खेड़ा गाँव (जिसका नाम अब 'राजगुरु नगर' हो गया है) में पैदा हुए अमर हुतात्मा #राजगुरु का पूरा नाम 'शिवराम हरि राजगुरु' था। आपके पिता का नाम 'श्री हरि नारायण' और माता का नाम 'पार्वती बाई' था। भगत सिंह और सुखदेव के साथ ही राजगुरु को भी 23 मार्च 1931 को फाँसी दी गई थी।

राजगुरु 'स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे हासिल करके रहूँगा' का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे।

🇮🇳 सुखदेव 🇮🇳

🇮🇳 अमर हुतात्मा #सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907, पंजाब में हुआ था। 23 मार्च, 1931 को सेंट्रल जेल, लाहौर में भगतसिंह व राजगुरू के साथ इन्हें भी फाँसी दे दी गई। सुखदेव का नाम भारत के अमर क्रांतिकारियों और बलिदानियों में गिना जाता है। आपने अल्पायु में ही देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। सुखदेव का पूरा नाम 'सुखदेव थापर' था। इनका नाम भगत सिंह और राजगुरु के साथ जोड़ा जाता है।   

🇮🇳 इन तीनों अमर बलिदानियों की तिकड़ी भारत के इतिहास में सदैव याद रखी जाएगी। तीनों देशभक्त क्रांतिकारी आपस में अच्छे मित्र थे और देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वत्र न्यौछावर कर देने वालों में से थे। 23 मार्च, 1931 को भारत के इन तीनों वीर नौजवानों को एक साथ फ़ाँसी दी गई और 23 मार्च को बलिदान-दिवस के रूप में याद किया जाता है।

सभी राष्ट्रभक्तों की ओर से अमर हुतात्माओं को कोटि-कोटि नमन !

#Sukhdev #Rajgurusardar #BhagatSingh

🇮🇳💐🙏

भारत माता की जय 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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