23 मार्च 2024

| स्वतंत्रता सेनानी सुहासिनी गांगुली | जन्म- 3 फ़रवरी, 1909; मृत्यु- 23 मार्च, 1965





 #क्रांतिकारी_वीरांगना भारत की लड़ाई में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी कंधे से कंधा मिलाकर अपना योगदान दिया। इसमें से कई महिलाओं ने जहाँ #महात्मा_गाँधी के अहिंसा का मार्ग अपनाया तो वहीं कई महिलाओं ने #चंद्रशेखर_आजाद और #भगत_सिंह जैसे क्रांतिकारियों के मार्ग को अपनाया। ऐसे ही महान महिला स्वतंत्रता सेनानियों में #सुहासिनी गांगुली का नाम प्रमुख है जिन्होंने बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियों में अपना सक्रिय योगदान दिया ।

🇮🇳 सुहासिनी गांगुली का जन्म 3 फरवरी 1909 को तत्कालीन बंगाल के #खुलना में हुआ था।

🇮🇳 अपनी शिक्षा पूरी करने के उपरांत उन्होंने #कोलकाता में एक मूक बधिर बच्चों के स्कूल में नौकरी करना शुरू किया जहाँ पर वह क्रांतिकारियों के संपर्क में आई।

🇮🇳 उल्लेखनीय है कि उन दिनों बंगाल में ‘छात्री संघा’ नाम का एक महिला क्रांतिकारी संगठन कार्यरत था जिसकी कमान #कमला_दासगुप्ता के हाथों में थी। उल्लेखनीय है कि इसी संगठन से #प्रीति_लता_वादेदार और #बीना_दास जैसी वीरांगनायें जुड़ी हुई थी।

🇮🇳 खुलना के क्रांतिकारी #रसिक_लाल_दास और क्रांतिकारी #हेमंत_तरफदार के संपर्क में आने से सुहासिनी गांगुली क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर प्रेरित हुई और जल्द ही #युगांतर_पार्टी से जुड़ गई।

🇮🇳 सन 1930 के #चटगाँव_शस्त्रागार_कांड के उपरांत #छात्री_संघा के साथ-साथ अन्य क्रांतिकारी साथियों समेत सुहासिनी गांगुली पर भी निगरानी बढ़ गई। इसके उपरांत वह चंद्रनगर आ गई एवं क्रांतिकारी #शशिधर_आचार्य की छद्म धर्मपत्नी के तौर पर रहने लगीं।

🇮🇳 चंद्रनगर में रहते हुए सुहासिनी गांगुली ने क्रांतिकारियों को मदद करने में वही किरदार निभाया जैसा #दुर्गा_भाभी ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू समेत अन्य क्रांतिकारियों की मदद करने के लिए निभाया था।

🇮🇳 इन्होंने पर्दे के पीछे से क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन हेतु अपने घर को ना केवल प्रमुख स्थल बनाया बल्कि उस दौर के सभी क्रांतिकारियों को जरूरत पड़ने पर आश्रय भी प्रदान किया।

🇮🇳 वर्ष 1930 में एक दिन पुलिस के साथ हुई आमने-सामने की मुठभेड़ में #जीवन_घोषाल जहाँ बलिदान हो गए वहीं शशिधर आचार्य और सुहासिनी को गिरफ्तार करके उन्हें #हिजली डिटेंशन कैम्प में रखा गया। आगे चलकर यही हिजली डिटेंशन कैम्प खड़गपुर आईआईटी का कैम्पस बना।

🇮🇳 1938 में रिहा होने के उपरांत इन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी को ज्वाइन किया। यद्यपि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कम्युनिस्ट पार्टी के द्वारा इस आंदोलन का बहिष्कार किया गया फिर भी इन्होंने आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए क्रांतिकारियों की लगातार मदद की।

🇮🇳 प्रसिद्ध क्रांतिकारी #हेमंत_तरफदार की सहायता के कारण इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया एवं इन्हें पुनः 1945 में रिहा किया गया। रिहा होने के उपरांत वह हेमंत तरफदार द्वारा निवास कर रहे धनबाद के एक आश्रम में रहने लगी।

🇮🇳 अन्य तात्कालिक स्वतंत्रता सेनानियों के विपरीत इन्होंने राजनीति का त्याग करते हुए आजादी के बाद अपना सारा जीवन सामाजिक, आध्यात्मिक कार्यों हेतु समर्पित कर दिया।

🇮🇳 मार्च 1965 में यह एक सड़क दुर्घटना की शिकार हो गई एवं इलाज के दौरान चिकित्सीय लापरवाही से बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण इनकी मृत्यु 23 मार्च 1965 को हो गई।

साभार: dhyeyaias.com

🇮🇳 भारत के स्वाधीनता संघर्ष की #स्वतंत्रता सेनानी, #क्रांतिकारी #वीरांगना #सुहासिनी_गांगुली जी को उनकी पुण्यतिथि पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से शत् शत् नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

#Revolutionary  #Suhasini_Ganguly ji

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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