10 मार्च 2024

Graham Bell | ग्राहम बेल | 10 मार्च 1876 को दो व्यक्तियों के बीच पहली बार टेलीफोन , Telephone, दूरभाषी यंत्र पर बात हुई थी।

 



10 मार्च 1876 को दो व्यक्तियों के बीच पहली बार #टेलीफोन #telephone (#दूरभाषी_यंत्र) पर बात हुई थी। 

इस बातचीत में #ग्राहम_बेल अपने सहायक #टॉमस_वॉटसन को कहते हैं कि “Mr. Watson Come here … I Want To See You” यानी कि मिस्टर वॉटसन, यहाँ आओ मुझे तुम्हारी जरूरत है।

#हैलो, स्कॉटिश वैज्ञानिक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल !

आपको हमारा धन्यवाद !

🇮🇳💐🙏

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


Wajid khan | वाजिद ख़ान |आयरन नेल आर्टिस्ट | Iron Nail Artist | 10 मार्च, 1981, मंदसौर, मध्य प्रदेश




विलक्षण प्रतिभाशाली वाजिद ख़ान का नाम 

'गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स', 

'गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स', 

'लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स', 

'इंडिया बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स', 

'एशिया बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स' में दर्ज हो चुका है। 🇮🇳

🇮🇳 वाजिद ख़ान (जन्म- 10 मार्च, 1981, मंदसौर, मध्य प्रदेश) भारत के प्रसिद्ध #चित्रकार और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त #आयरन_नेल_आर्टिस्ट #iron_nail_artist, पेटेंट धारक तथा आविष्कारक हैं। नेल आर्ट को पूरी दुनिया में पहुँचाने वाले वाजिद ख़ान ने इस कला का इस्तेमाल करते हुए मशहूर हस्तियों, जैसे- फ़िल्म अभिनेता सलमान ख़ान, महात्मा गाँधी, पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम और धीरूभाई अंबानी जैसी बड़ी हस्तियों के पोर्ट्रेट बनाये हैं। इसके इलावा वह औद्योगिक कचरे और गोलियों से भी कला पीस बनाते हैं। उन्होंने अपनी इस कला को पेटेंट भी करवाया है, जिस कारण उनकी इस कला की उनकी इजाज़त के बिना कोई भी नकल नहीं कर सकता है।

🇮🇳 वाजिद ख़ान का जन्म 10 मार्च, 1981 को #मध्य_प्रदेश के ज़िले #मंदसौर के बेहद छोटे से गाँव #सोनगिरी में हुआ था। सुदूर अंचल में बसे इस गॉंव के लोग खेती और मजदूरी से अपना जीवन यापन करते हैं। कला के क्षेत्र में नाम कमाने से पहले वाजिद इसी गॉंव में रहा करते थे। पाँच भाईयों और दो बहनों के साथ शुरुआती जीवन आम बच्चों की तरह ही बीता। लेकिन मन चंचल और सोच कलात्मक थी। साधारण वस्तुओं से वे असाधारण प्रस्तुति देने की कोशिश करते थे। थोड़े और बड़े हुए तो कुछ अलग करने की चाह ने कला के क्षेत्र में कदम रखवाया।

🇮🇳 पढ़ाई के मामले में वाजिद ख़ान पाँचवीं फेल हैं, जिसके बाद उन्होंने कुछ घर के हालातों और पढ़ाई में ध्यान न होने की वजह से पढ़ाई से नाता तोड़ लिया। वाजिद ख़ान के अनुसार, पैसों की तंगी और पढ़ाई में ध्यान न होने की वजह से उन्होंने फेल होने के बाद पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया था। 

🇮🇳 उनकी माँ ने उन्हें 1300 रुपये देकर अपना नाम बनाने के लिए घर से विदा कर दिया था, क्योंकि उस गाँव में जहाँ वे रहते थे, वहाँ वह सहूलियतें नहीं थीं जो उनकी सोच को असलियत में उतार सकें। घर छोड़ने के बाद वाजिद ख़ान #अहमदाबाद पहुँच गये और पेंटिंग और इनोवेशन के काम में जुट गए। वहाँ वे रोबोट बनाते थे। यहीं पर उनके हुनर को पहचाना आई.आई.एम. अहमदाबाद के #प्रोफेसर_अनिल_गुप्ता ने। अनिल गुप्ता को वाजिद ख़ान अपना गुरु मानते हैं और बताते हैं कि "उन्होंने मेरा काम देखकर मुझे 17500 रुपये दिए और कहा कि तुम्हारी जगह यहाँ नहीं है। तुम कला के क्षेत्र में जाओ, वही तुम्हारे लिए सही राह है।" इस बात को मानकर वाजिद ख़ान आगे बढ़े और फिर बुलंदियां छूने से उन्हें कोई नहीं रोक पाया।



🇮🇳 वाजिद ख़ान ने 14 वर्ष की आयु तक आते-आते पानी में चलने वाला सबसे छोटा जहाज़ बना दिया। ज़मीन, पानी के बाद आसमान नापने की बारी थी और कलाकृति में बनाया हैलीकॉप्टर। जब इन कलाकृतियों पर तारीफें मिलीं तो उनके सपनों को भी पंख लगने लगे और युवावस्था तक आते-आते पानी चोरी रोकने की मशीन सहित 200 आविष्कार कर दिए। इन आविष्कारों को जिसने भी देखा, वह हैरान था। लेकिन मार्गदर्शन न मिल पाने से इन आविष्कारों को वह स्थान नहीं मिला, जिसके वाजिद ख़ान हकदार थे। वर्ष 2003 में उन्होंने एक प्रकाश संवेदक और गियर लॉक का आविष्कार किया। वाजिद ख़ान को 140 अविष्कारों के लिए श्रेय प्राप्त है।

🇮🇳 नेल आर्ट को पूरे विश्व में पहुँचाने का श्रेय वाजिद ख़ान को दिया जा सकता है। उनके द्वारा निर्मित माँ-बेटे का प्यार दिखाती नेल आर्ट की एक कलाकृति में उमड़ी भावनाओं ने दर्शकों को भावुक किया था। कीलों से बने इन चेहरों की कशिश दिनोंदिन बढ़ती गई। इसकी प्रसिद्धि ने रफ्तार पकड़ ली और प्रदर्शनी का दौर शुरू हुआ। हालांकि जब किसी कलाकार की कला मुकम्मल कहलाने लगती है तो कलाकार को नया प्रयोग करने का खतरा उठाना ही पड़ता है। वाजिद ख़ान यह खतरा बहुत जल्द उठाने को तैयार हो गए और युवावस्था में ही उन्होंने नेल आर्टिस्ट के जमे हुए ओहदे से खुद को बाहर निकालकर 2012 में ऑटोमोबाइल आर्ट लांच कर दिया। बी.एम.डब्ल्यू., मर्सिडीज़ और बुलेट के पार्ट्स से यह ऑटोमोबाइल आर्ट तैयार किया गया था। इन्हें मिलाकर दीवार पर एक घोड़ा बनाया गया था, जो दूर से देखने पर जॉकी के साथ दौड़ता हुआ नजर आता है। इसके थ्री डी इफेक्ट्स आज भी इंदौर शहर के एक मशहूर बंगले की दीवार पर कायम हैं।

🇮🇳 इन सभी के बीच मुंबई से लेकर दुबई और लंदन में कला प्रदर्शित होते रहे। वाजिद ख़ान ने अपनी कला को सिर्फ लोगों को खुशी देने या अपने जज्बात जाहिर करने का जरिया नहीं बनाया बल्कि समाज को जागरुक करने में भी अहम भूमिका निभाई। 2014 में 'बेटी बचाओ आंदोलन' में शामिल हुए और चिकित्सा क्षेत्र में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों से रोती हुई एक मासूम बच्ची की कलाकृति बनाई। यह बताती है कि जो कैंची लोगों के जख्मों को सिलने के काम आती है, जो स्टेथेस्कोप दिल की धड़कने नापता है, अकसर वही किसी मासूम को दुनिया में आने से पहले मौत के मुँह में पहुँचा देती है। मेडिकल उपकरणों के इस्तेमाल से इसी हकीकत को वाजिद ख़ान ने निडरता से दिखाया और भ्रूण हत्या रोकने का संदेश दिया। श्रीलंका के आर्किटेक्ट बाबा का गिट्टी से फोटो बनाकर अपना हुनर दिखाया।

🇮🇳 वाजिद ख़ान ने ‘नेल आर्ट’ से महात्मा गाँधी का चित्र भी बनाया। इस चित्र की चर्चा होने पर मुंबई से ‘गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स’ के विशेषज्ञों का एक दल इंदौर पहुंचा तथा बारीकी से उसकी कला का अध्ययन करने के उपरांत उसे वर्ष 2012 में ‘गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ बनाने वालों में शामिल किया।

🇮🇳 इसके अतिरिक्त वाजिद ख़ान ने नेल आर्ट से मदर मैरी, ईसा मसीह, काबा शरीफ़, साईं बाबा, रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक उद्योगपति धीरूभाई अंबानी, मशहूर फ़िल्म अभिनेता सलमान ख़ान, राहुल गाँधी, संयुक्त अरब अमीरात के वज़ीर-ए-आलम मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम और उनके पुत्र हामदान बिन मोहमे बिन राशिद अल मकतूम का चित्र बनाया।

🇮🇳 वे भारत के पहले ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें आयरन नेल आर्ट और मेडिकल इक्विपमेंट आर्ट हेतु पेटेंट प्राप्त हैं।

🇮🇳 उन्हें जहाज़ के आर्ट के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया था। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम से प्रशंसा एवं प्रोत्साहन व राष्ट्रीय नवप्रवर्तन संस्थान में डॉ. कलाम के साथ समय व्यतीत करने का गौरव व सौभाग्य उन्हें मिला था।

साभार : bharatdiscovery.org

140 से अधिक अविष्कारों के लिए श्रेय प्राप्त, विश्वकीर्तिमान धारक प्रसिद्ध #चित्रकार और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त #आयरन_नेल_आर्टिस्ट, पेटेंट धारक तथा #आविष्कारक #वाजिद_ख़ान जी को जन्मदिवस की वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर ढेरों बधाई एवं शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


Priyanka Goswami | प्रियंका गोस्वामी | महिला एथलीट | Female Athlete | जन्म- 10 मार्च, 1996

 



प्रियंका गोस्वामी (जन्म- 10 मार्च, 1996) भारतीय #महिला_एथलीट  #female_ athleteहैं। उन्होंने बर्मिघम, इंग्लैंड में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स, 2022 में कमाल का प्रदर्शन करते हुए महिलाओं की 10 हजार मीटर रेस वॉक (पैदल चाल) में भारत के लिये रजत पदक जीता है। इस खिलाड़ी ने अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए देश को पदक दिलाया। प्रियंका गोस्वामी ने 43:38.82 समय में रेस पूरी की। इस जीत के साथ ही प्रियंका गोस्वामी ने इतिहास रच दिया है। वह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं, जिसने कॉमनवेल्थ गेम्स में पैदल चाल में पदक हासिल किया है। प्रियंका गोस्वामी ने टोक्यो ओलिंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था, लेकिन तब वह 17वें स्थान पर रही थीं।

🇮🇳 #प्रियंका गोस्वामी भारतीय रेलवे में कार्यरत हैं। वह मूल रूप से #मेरठ, #उत्तर_प्रदेश की रहने वाली हैं। उन्होंने 20 किलोमीटर वॉक रेस में देश के लिए कई पदक जीते हैं। उन्होंने 2021 में टोक्यो ओलिंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था। प्रियंका गोस्वामी के पिता #मदनपाल_गोस्वामी यूपी रोडवेज में कंडक्टर की नौकरी करते थे, पर किसी कारण से उनकी नौकरी चली गई। जिसके बाद घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई।

🇮🇳 प्रियंका गोस्वामी ने मेरठ के गर्ल्स स्कूल और बीके माहेश्वरी से स्कूली शिक्षा पूरी की। बीए की पढ़ाई पटियाला में की। इस दौरान पिता टैक्सी चलाकर, आटा चक्की और छोटे-मोटे कामकर जैसे-तैसे चार से पाँच हजार रुपये भेजते थे।

🇮🇳 प्रियंका गोस्वामी ने कॉमनवेल्थ गेम्स, 2022 की 10000 मीटर पैदल चाल स्पर्धा में रजत पदक जीता। उन्होंने अपना निजी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और इस लंबी दूरी को 49 मिनट 38 सेकंड में पूरा किया। इसी के साथ उन्होंने #मुरली_श्रीशंकर (लम्बी कूद में रजत) और #तेजस्विन_शंकर (ऊँची कूद में कांस्य) की लिस्ट में अपना नाम शामिल करा लिया, जिन्होंने इन खेलों की ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं में पदक जीते।

🇮🇳 टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकीं प्रियंका गोस्वामी ने वॉक के पहले चरण में बहुत तेजी से बढ़त बना ली और खुद को 4000 मीटर (4 कि.मी.) के निशान के बाद पहले स्थान पर बनाए रखा। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया की जेमिमा मोंटाग और केन्या की एमिली वामुसी एनजी से वह पीछे रह गईं। 8 कि.मी. के बाद प्रियंका गोस्वामी तीसरे स्थान पर खिसक गई थीं, लेकिन अंतिम मिनट में 2 कि.मी. की दूरी तय करने के बाद भारतीय एथलीट को फायदा हुआ।

🇮🇳 #जेमिमा_मोंटाग ने 42:38 का समय लेकर स्वर्ण पदक जीता, जबकि प्रियंका गोस्वामी दूसरे स्थान पर रहीं। प्रतियोगिता में शामिल अन्य भारतीय #भावना_जाट 8वें स्थान पर रहीं। इसके साथ ही प्रियंका गोस्वामी कॉमनवेल्थ गेम्स की रेस-वॉक स्पर्धा में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं। वह कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक जीतने वाली दूसरी रेसवॉकर भी हैं। उनसे पहले #हरमिंदर_सिंह ने 2010 खेलों में 20 मीटर रेसवॉक में कांस्य पदक जीता था।

🇮🇳 वर्ष 2007 में प्रियंका गोस्वामी ने जिमनास्टिक में भाग लेना शुरू कर दिया था। उनके माता-पिता और शिक्षकों ने उनका काफी सपोर्ट किया।

🇮🇳 जिमनास्टिक की ट्रेनिंग के लिए प्रियंका को राज्य सरकार द्वारा संचालित छात्रावास लखनऊ भेजा जा रहा था लेकिन उन्होंने मेरठ के ही स्टेडियम में प्रशिक्षण प्राप्त करने का फैसला लिया। कुछ समय तक जिमनास्टिक की ट्रेनिंग लेने के बाद जिमनास्टिक से उनकी रूचि खत्म हो गई और उन्होंने मेरठ छात्रावास छोड़ दिया।

🇮🇳 उन्होंने खेलों से 3-4 साल का ब्रेक लिया। हालांकि उन्होंने अपना साहस सँभाला और स्टेडियम में दोबारा से लौटने का फैसला किया। लगातार दो महीने तक कोच से कठोर शारीरिक प्रशिक्षण प्राप्त किया।

🇮🇳 पटियाला से ग्रेजुएशन करने के बाद प्रियंका गोस्वामी को बेंगलूरू साईं सेंटर में निःशुल्क प्रशिक्षण मिलना शुरू हुआ।

🇮🇳 प्रियंका गोस्वामी ने रेस के शुरुआती दिनों में 800 और 1500 मीटर रेस प्रतियोगिता में भाग लिया लेकिन इन प्रतियोगिताओं में सफल नहीं हुई। जिसके बाद उन्होंने वर्ष 2011 में जिला स्तर के रेस प्रतियोगिता में भाग लिया और तीसरा स्थान प्राप्त किया। इस प्रतियोगिता में तीसरा स्थान प्राप्त करने पर उन्हें इनाम स्वरूप स्कूल बैग भेंट किया गया।

🇮🇳 वर्ष 2011 में पहला पदक हासिल करने के बाद प्रियंका ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक रेस प्रतियोगिताओं में भाग लिया।

🇮🇳 वर्ष 2015 में उन्होंने तिरुअनंतपुरम में आयोजित नेशनल चैंपियनशिप रेस प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता।

🇮🇳 वर्ष 2017 में दिल्ली में आयोजित नेशनल रेस वॉकिंग चैंपियनशिप में करतब दिखाते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया।

🇮🇳 वर्ष 2018 में स्पोर्ट कोटा के माध्यम से रेलवे विभाग में क्लर्क का पद हासिल किया।

🇮🇳 13 फरवरी, 2021 को उन्होंने रांची में 8वीं ओपन नेशनल और इंटरनेशनल रेस वॉकिंग चैंपियनशिप में राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया।

🇮🇳 नेशनल और इंटरनेशनल दौड़ जीतने के बाद प्रियंका गोस्वामी ने टोक्यो ओलंपिक, 2020 और अमेरिका के ओरेगन में होने वाले विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के लिए क्वालीफाई किया।

🇮🇳 प्रियंका गोस्वामी ने जूनियर, सीनियर और नेशनल लेवल पर अब तक 60 पदक भारत के नाम किये हैं, जिसमें से दो रजत पदक राष्ट्रीय स्तर पर और एक स्वर्ण पदक अखिल भारतीय रेलवे प्रतियोगिता स्तर पर प्राप्त किया है। इसके अलावा उन्होंने इटली में आयोजित वर्ल्ड वॉक चैंपियनशिप और जापान में आयोजित एशियन वॉक चैंपियनशिप में भी भाग लिया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 बर्मिघम, इंग्लैंड में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स, 2022 में रजत पदक जीतकर इस खेल में पहली पदक विजेता बनी भारतीय महिला #एथलीट #रेसवॉकर (पैदल चालक) #प्रियंका_गोस्वामी जी को जन्मदिवस की वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर ढेरों बधाई एवं शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Rifleman Jaswant Singh, awarded Mahavir Chakra in the India-China war of 1962, Sela and Noora | 1962 के भारत-चीन युद्ध में महावीर चक्र से सम्मानित राइफलमैन जसवंत सिंह, सेला और नूरा




🇮🇳 1962 के भारत-चीन युद्ध में #महावीर_चक्र से सम्मानित #राइफलमैन_जसवंत_सिंह ने #सेला और #नूरा  #Rifleman_Jaswant_Singh, #awarded #Mahavir_Chakra #India_China_war_1962, #Sela #Nooraके साथ चीनी सेना के साथ 72 घंटों तक बहादुरी से लड़ाई लड़ी और 300 से अधिक पीएलए सैनिकों को मार डाला।

🇮🇳#Jaswant_Singh_Rawat single-handedly had held off over 300 #Chinese_soldiers for 72 hours in the icy heights of #Arunachal_Pradesh with just one machine gun during the #1962 war before laying down his life. He was posthumously awarded the #Maha_Vir_Chakra

🇮🇳 मुझे पहाड़ों की यात्रा करना बहुत पसंद है. मेरे लिए पहाड़ों में सवारी करना एक बहुत ही प्रभावी उपचार तंत्र है। खूबसूरत प्राकृतिक खजानों के साथ-साथ इन पहाड़ों के साथ कुछ दिलचस्प कहानियाँ/लोककथाएँ भी जुड़ी हुई हैं। 

🇮🇳 एक मोटरसाइकिल चालक के रूप में #अरुणाचल_प्रदेश  #Arunachal_Pradesh ने मुझे हमेशा उत्साहित किया है और इस जनवरी में मैं लामाओं की इस भूमि में रहने के लिए भाग्यशाली रहा। शून्य से नीचे के तापमान में शक्तिशाली सेला दर्रे को पार करना एक रोमांचकारी अनुभव था। 

🇮🇳 #वेस्ट_कामेंग की मेरी यात्रा के दौरान, एक दिलचस्प कहानी सामने आई। जो साझा करने लायक है. 

🇮🇳 #सेला_दर्रा #तवांग को #दिरांग से जोड़ता है और तवांग की ओर आगे बढ़ने पर #नूरा_पोस्ट नामक एक सेना चौकी पड़ती है, जिसके बाद "#जसवंत_गढ़ नामक स्थान आता है। सेला, नूरा और जसवन्त नाम वास्तव में एक कहानी के वास्तविक पात्र हैं।

एसएसबी कैंप, तवांग में एक मूर्ति हमारे बहादुर भारतीय सैनिकों की वीरता का वर्णन करती है।


🇮🇳 यह 1962 का भारत-चीन युद्ध था। चौथी गढ़वाल राइफल्स के एक सैनिक राइफलमैन जसवन्त सिंह रावत (एमवीसी) तत्कालीन उत्तर पूर्वी सीमांत एजेंसी (एनईएफए) अरुणाचल में तैनात थे। चीन की पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) को #नूरानांग की लड़ाई के दौरान भारतीय सेना द्वारा घुसपैठ के लिए दो बार हार मिली । अपनी तीसरी घुसपैठ के दौरान, चीनी जवान जसवन्त सिंह की पोस्ट (सेला पास से 21 किमी दूर) पर एमएमजी का उपयोग करके गोलीबारी कर रहे थे और लेकिन उन्होंने दो और राइफलमैन (#त्रिलोकी_सिंह और #गोपाल_गुसाई) के साथ पीएलए को कड़ी टक्कर दी। चीनियों की भारी गोलाबारी को देखते हुए उनके आदेश से उन्हें पोस्ट खाली करने का निर्देश दिया गया। स्थिति को समझते हुए और पद के महत्व को जानते हुए, उन्होंने अपने साथी राइफलमैन के साथ अपनी आखिरी साँस तक लड़ने का फैसला किया।

🇮🇳 पोस्ट पर जसवन्त सिंह की तैनाती के दौरान सेला नामक एक स्थानीय लड़की उनकी पोस्ट पार कर जाती थी। यहीं से जसवन्त सिंह और सेला का प्रेम प्रसंग शुरू हुआ। विभिन्न लोककथाओं में उनके रिश्ते के बारे में अलग-अलग आख्यान हैं। कुछ लोग कहते हैं कि उनका लिव इन रिलेशन शिप था। कुछ लोग कहते हैं कि जसवन्त सिंह के सेला और नूरा (सेला की बहन) दोनों के साथ संबंध थे और वे दोनों जसवन्त सिंह के साथ लिव इन में रहती थी। 

🇮🇳 नवंबर 1962 में, जसवन्त सिंह के दोनों साथी राइफलमैन शहीद हो गये। लेकिन वह अपना हौसला दिखाते रहे और विशाल पीएलए को अकेले ही ढेर कर दिया। वह अपनी लोकेशन बदलता रहा और अलग-अलग एंगल से फायरिंग करता रहा. पीएलए को यह भ्रम था कि सैनिकों का एक बड़ा समूह उनके खिलाफ गोलीबारी कर रहा है। 

🇮🇳 उनके वन मैन आर्मी एक्ट के दौरान, सेला और नूरा ने उन्हें भोजन और राशन देने के साथ-साथ चीनी सेना पर भी गोलीबारी की। एक और कहानी यह भी है कि सेला और नूरा के पिता की जसवंत सिंह से दुश्मनी हो गई थी और उन्होंने उनकी पोस्ट की जानकारी पीएलए को लीक कर दी थी। 

🇮🇳 इस लड़ाई के दौरान जसवन्त सिंह और सेला शहीद हो गए और नूरा को पीएलए द्वारा पकड़ लिया गया और चीन ले जाया गया और वह कभी वापस नहीं आई। 

🇮🇳 कुछ लोगों का मानना ​​है कि सेला के पिता जसवन्त सिंह के विश्वासघात के कारण मैत्रेड और सेला ने पहाड़ की चोटी से कूदकर आत्महत्या कर ली। 

🇮🇳 राइफलमैन जसवंत सिंह ने सेला और नूरा के साथ 72 घंटों तक बहादुरी से लड़ाई लड़ी और 300 से अधिक पीएलए #PLA सैनिकों को मार डाला। यह उनकी वीरता के कारण ही था कि भारतीय सेना पीएलए पर नियंत्रण रखने में कामयाब रही जो बैसाखी पोस्ट की ओर आगे बढ़ रही थी। 

स्टेन मशीन गन एमके-वी (नूरानंग की लड़ाई)।


🇮🇳 उनके वीरतापूर्ण कार्य के लिए, राइफलमैन जसवन्त सिंह रावत को दूसरे सर्वोच्च सैन्य सम्मान, #महावीर_चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया । उनकी यूनिट (चौथी गढ़वाल राइफल्स) को "बैटल ऑनर नूरानांग" से सम्मानित किया गया था । 

बाएँ-जसवंत सिंह रावत का स्मारक। दाएं-जसवंत सिंह रावत की फ़ाइल छवि।


🇮🇳 सेला के नाम पर ही पहाड़ी दर्रा और झील का नाम सेला दर्रा और सेला झील रखा गया । इसके आगे की सेना चौकी का नाम नूरा पोस्ट है और इन दोनों से आगे पड़ता है जसवन्त गढ़ ।

खूबसूरत जमी हुई सेला झील- सेला दर्रा, पश्चिम कामेंग, अरुणाचल प्रदेश।

जसवन्त गढ़ का नाम जसवन्त सिंह रावत (एमवीसी) के नाम पर रखा गया।


🇮🇳 जमे हुए सेला दर्रे से गुजरते समय, जसवन्त गढ़ के बर्फीले टुकड़ों पर चलते हुए और नूरा पोस्ट को देखते हुए आपके कानों को चुभने वाली ठंडी हवा वास्तव में सेला-नूरा-जसवंत सिंह की इस खूबसूरत कहानी को बयान करने की कोशिश करती है । 

साभार: lonelymusafir.com

बहादुर सैनिकों #brave_soldiers और उनकी सहयोगियों को शत् शत् नमन !

🇮🇳💐🙏

जय हिन्द 🇮🇳

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

PM Narendra Modi unveiled the 'Statue of Valour' of Lachit Borphukan, in Jorhat, Assam on March 09 | अहोम जनरल वीर लाचित बोरफुकन की 125 फुट ऊँची कांस्य प्रतिमा का अनावरण

 



PM Narendra Modi unveiled the 'Statue of Valour' of Lachit Borphukan, in Jorhat, Assam on March 09 | प्रधानमंत्री मोदी ने 'वीर योद्धा' अहोम जनरल' लाचित बोरफुकन की 125 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया। 



वन्दे मातरम् 🇮🇳

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने #असम के #जोरहाट के #लहदोईगढ़ में अहोम जनरल वीर लाचित बोरफुकन की 125 फुट ऊँची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया। प्रतिमा, जिसे 'स्टैच्यू ऑफ वेलोर' कहा जाता है, का अनावरण लाचित बरफुकन मैदाम विकास परियोजना में किया गया था। मोदी ने एक अहोम अनुष्ठान में भाग लिया और उनके साथ मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी थे। 

मुगल सेना के विरुद्ध वर्ष 1671 में #सरायघाट_की_लड़ाई के नेतृत्वकर्ता #वीर_लाचित_बोरफुकन जी को शत् शत् नमन !


Vande Mataram 🇮🇳

Prime Minister Narendra Modi unveiled a 125-feet tall bronze statue of Ahom General Veer Lachit Borphukan at #Ladhoigarh in #Jorhat, #Assam. The statue, called the 'Statue of Valour', was unveiled at the Lachit Barphukan Maidam Development Project. Modi participated in an Ahom ritual and was accompanied by Chief Minister Himanta Biswa Sarma.

Salutes to the brave Lachit Borphukan ji who led the battle of Saraighat against the Mughal army in the year 1671!


#inspirational_personality


🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

09 मार्च 2024

Ramprasad_Bismil | रामप्रसाद_बिस्मिल

 "न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना

मुझे वर दे यही माता रहूँ #भारत पे दीवाना

करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दु:ख

अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना



लगा रहे प्रेम #हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखूँ हिन्दी

चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की

#स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना

लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन

करुँ मैं प्राण तक #अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना

नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम

उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना"

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#रामप्रसाद_बिस्मिल #Ramprasad_Bismil

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 वन्दे मातरम् 🇮🇳

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Zakir Hussain | जाकिर हुसैन | Tabla Player and Composer

 





आज प्रसिद्ध तबला वादक और संगीतकार ज़ाकिर हुसैन का जन्मदिन है. जाकिर हुसैन का जन्म 09 मार्च 1951 को हुआ था. जाकिर हुसैन मशहूर तबला वादक क़ुरैशी अल्ला रखा ख़ान के पुत्र हैं. अल्ला खान भी तबला बजाने में माहिर माने जाते थे. जाकिर हुसैन का बचपन मुंबई में ही बीता. प्रारंभिक शिक्षा और कॉलेज के बाद जाकिर हुसैन ने कला के क्षेत्र में अपने आप को स्थापित करना शुरु कर दिया.

🇮🇳 बारह साल की उम्र से ही जाकिर हुसैन ने संगीत की दुनिया में अपने तबले की आवाज को बिखेरना शुरु कर दिया था. 1973 में उनका पहला एलबम “लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड” आया था. उसके बाद तो जैसे जाकिर हुसैन ने ठान लिया कि अपने तबले की आवाज को दुनिया भर में बिखेरेंगे. 1973 से लेकर 2007 तक ज़ाकिर हुसैन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समारोहों और एलबमों में अपने तबले का दम दिखाते रहे. ज़ाकिर हुसैन भारत में तो बहुत ही प्रसिद्ध हैं ही साथ ही विश्व के विभिन्न हिस्सों में भी समान रुप से लोकप्रिय हैं.

🇮🇳 अपने इस हुनर के लिए ज़ाकिर हुसैन को कई सम्मान और पुरस्कार भी मिले हैं. 1988 में जब उन्हें पद्म श्री का पुरस्कार मिला था तब वह महज 37 वर्ष के थे और इस उम्र में यह पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति भी. इसी तरह 2002 में संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण का पुरस्कार दिया गया था.

🇮🇳 ज़ाकिर हुसैन को 1992 और 2009 में संगीत का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ग्रैमी अवार्ड भी मिला है.

🇮🇳 आज भी जाकिर हुसैन के तबले का जादू बरकरार है और वक्त के साथ उम्मीद है आगे भी जारी रहेगा.

साभार: jagran.com

🇮🇳 #पद्मश्री, #पद्मभूषण और #पद्मविभूषण से सम्मानित Awarded with #Padmashree, #PadmaBhushan and #PadmaVibhushan.; मशहूर #तबलावादक उस्ताद #जाकिर_हुसैन जी #Tabla player Ustad #Zakir_Hussain को जन्मदिन की हार्दिक बधाई !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...