05 मार्च 2024

How long will Kejriwal be able to survive? | केजरीवाल कब तक बच पाएगा | लेखक : सुभाष चन्द्र

 


How long will Kejriwal be able to survive?  |  केजरीवाल कब तक बच पाएगा  | 

हर मोर्चे पर फेल हो रहा है | 

कुछ मामले केजरीवाल के बता रहे हैं कि अब सितारे पूरी तरह गर्दिश में हैं दिल्ली के राजा के -

#ED ने केजरीवाल को शराब घोटाले में पूछताछ के लिए 8वां समन 27 फरवरी के लिए जारी किया था लेकिन दिल्ली का ठग नहीं गया और बाद में ED को पत्र भेज कर 12 मार्च के बाद की तारीख देने के लिए कहा और यह भी कहा कि वह #video_conference से ED के सवालों के जवाब देने के लिए तैयार है 


केजरीवाल शायद अभिषेक मनु सिंघवी के पढ़ाए पाठ पढ़ रहा जबकि #सिंघवी खुद हिमाचल में पिट चुका है और सुप्रीम कोर्ट हाल ही में तमिलनाडु के अधिकारियों को ED के समन पर हाजिर होने के लिए निर्देश देते हुए कह चुका है कि ED के समन को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता - ED #PMLA के #section_50_(2) के अंतर्गत किसी को भी #Evidence और #record प्रस्तुत करने के लिए स्वयं पेश होने के लिए समन जारी करता है और section 50 (3 ) के अंतर्गत जिसे समन जारी होता है उसे स्वयं पेश होना होता है या अपने अधिकृत प्रतिनिधि के जरिए भी हाजिर हो सकता है - 


केजरीवाल को निजी रूप में हाजिर होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ED के समक्ष पेशी एक न्यायिक प्रक्रिया होती है और ED के सामने बयान देना अदालत के समक्ष शपथ पत्र पर बयान देने  जैसा होता है जिस पर पेश होने वाले के sign भी होने जरूरी होते है - Video Conference से हाजिर होने पर sign कहां करेगा और इसलिए पेश होना ही होगा लेकिन उसे डर है कि अगर पेश हो गया तो ED गिरफ्तार कर लेगी -


केजरीवाल चाहे तो ED के अधिकारियों को अपने घर भी बुला सकता है जैसे हेमंत सोरेन ने बुलाया था लेकिन ED तो उसे घर से भी उठा कर ले जा सकती है जैसे हेमंत सोरेन को ले गई - इसलिए केजरीवाल के दिन अब पूरे हो गए -


दूसरे केस में कल #सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल की “आप” को दिल्ली हाई कोर्ट की जमीन पर अवैध कब्ज़ा कर बनाए गए कार्यलय को 15 जून, 2024 तक खाली करने के आदेश दे दिए और केस की सुनवाई में CJI चंद्रचूड़ ने अभिषेक मनु सिंघवी पर लज्जित करने वाला तंज भी कस दिया कि आपको तो अदालत के साथ होना चाहिए था, आप उस तरफ कैसे चले गए, आपको तो “आप” का केस लड़ना ही नहीं चाहिए था - गनीमत है कोर्ट ने “आप” कार्यालय को ध्वस्त करने के आदेश नहीं दिए 


इसके अलावा एक तीसरा कांड और हो गया - चंद्रचूड़ जी की मेहरबानी से चंडीगढ़ के महापौर का चुनाव रद्द हो गया और “आप” के प्रत्याशी को महापौर विजेता घोषित कर दिया गया था लेकिन कल भाजपा के उम्मीदवार Senior Deputy Mayor और Deputy Mayor का चुनाव जीत गए,  उन्हें 19 वोट मिले और “आप-कांग्रेस” गठबंधन को 16 वोट मिले - यह झटका देखा जाए तो कांग्रेस और आप से ज्यादा CJI चंद्रचूड़ को लगा माना जाएगा और इससे भी बड़ा झटका और लग सकता है जब चंद्रचूड़ जी की मेहरबानी से बना “आप” का मेयर अविश्वास प्रस्ताव से हटा दिया जाएगा और भाजपा का मेयर सत्ता में होगा -


अब कुछ दिनों में कांग्रेस और आप एक दूसरे को जूते मारते नज़र आएंगे - “तुमने हमें मरवा दिया” और वो नज़ारा देखने वाला होगा -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 05/03/2024 

#Political, #sabotage,   #Congress,  #Kejriwal  #judiciary  #delhi #sharadpanwar, #laluyadav, #spa #uddavthakre, #aap  #FarmerProtest2024  #KisanAndolan2024  #SupremeCourtofIndia #Congress_Party  #political_party #India #movement #indi #gathbandhan #Farmers_Protest  #kishan #Prime Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court #Arvind_Kejriwal #Defamation_Case #top_stories#supreme_court #arvind_kejriwal #apologises #sharing #fake_video #against #bjp #dhruv_rathee_video 


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,

Sardar Nanak Singh | अमर बलिदानी सरदार नानक सिंह जी | 11 सितंबर 1903-4 मार्च 1947



भारत की विविधता इंद्रधनुष के रंगों की तरह है। यदि इनमें से एक को भी हटा दिया जाए तो इसका आकर्षण और सुंदरता कम हो जाएगी। 🇮🇳

~ अमर बलिदानी सरदार नानक सिंह जी

🇮🇳 जब उन्हें #सरगोधा, जो अब पाकिस्तान में है, में निहत्थे शांतिपूर्ण स्वतंत्रता प्रेमियों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया तो उन्होंने अपना शानदार पुलिस कैरियर त्याग दिया। 🇮🇳

🇮🇳 अमर बलिदानी सरदार नानक सिंह का जन्म 11 सितंबर 1903 को #रावलपिंडी, जो अब पाकिस्तान में है, में हुआ था। उनका जन्म #डॉ_वज़ीर_सिंह और उनकी पत्नी #जीवन_कौर के यहाँ हुआ था। अमर बलिदानी नानक सिंह, बीएससी (ऑनर्स) एलएलबी, पश्चिम पंजाब के एक प्रमुख सिख नेता, बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष, अकाली जत्था, मुल्तान के महासचिव, पोस्ट एंड टेलीग्राफ यूनियन, मुल्तान के अध्यक्ष, सांप्रदायिक सद्भाव संस्था के उपाध्यक्ष थे।

🇮🇳 उन्होंने अपना अंतिम सार्वजनिक भाषण 4 मार्च 1947 को #मुल्तान शहर के #कूप_मंडी में #पंजाब के राष्ट्रपति #डॉ_सैफुद्दीन_किचलू के साथ दिया और एकजुट भारत के रूप में स्वतंत्रता प्राप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया। अगले दिन, मुल्तान के डीएवी कॉलेज के 600 छात्रों को बचाते हुए वह 43 साल की उम्र में बलिदान हो गए। 

🇮🇳 छात्रों ने भारत के विभाजन के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण जुलूस निकाला था लेकिन वे सांप्रदायिक दंगों में फँस गये। वह छात्रों को बचाने में कामयाब रहे लेकिन भारत में हिंदू मुस्लिम एकता के लिए उन्होंने अपनी जान गँवा दी। वह अपने पीछे 35 साल की एक युवा विधवा सरदारनी #हरबंस_कौर और आठ छोटे बच्चे छोड़ गए, जिनमें सबसे बड़ी उम्र केवल 14 साल थी।

🇮🇳 अमर बलिदानी नानक सिंह पश्चिमी पंजाब, जो अब पाकिस्तान में है, के एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन भारत की स्वतंत्रता, सांप्रदायिक सद्भाव और एकता के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने धर्म के आधार पर भारत के विभाजन का विरोध किया क्योंकि वे धार्मिक असामंजस्य के परिणामों की भविष्यवाणी कर सकते थे। उन्होंने तत्कालीन मुस्लिम नेताओं को चेतावनी दी कि वे ब्रिटिश 'फूट डालो और राज करो' की नीति, जो फूट डालो और भागो में बदल गई थी, के झाँसे में न आएं। उन्होंने मुस्लिम नेताओं से अनुरोध किया कि स्वतंत्रता के बाद, भारत एक व्यक्ति, एक वोट वाला एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश होगा और परिणामस्वरूप, हम एक साथ मिलकर अपना भाग्य बनाएंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि हम अपने-अपने रास्ते अलग हो गए, तो हमारे बीच कुछ भी समान नहीं होगा और हम प्रतिद्वंद्वी बन जाएंगे और परिणामस्वरूप, क्षेत्र में कभी भी शांति का अनुभव नहीं होगा।

🇮🇳 अमर बलिदानी नानक सिंह ब्रिटिश पुलिस में एक तेजतर्रार पुलिस इंस्पेक्टर थे और अपने उत्कृष्ट कर्तव्य निर्वहन के लिए उन्हें 29 गोल्ड कमेंडेशन सर्टिफिकेट प्राप्त हुए थे। जब उन्हें #सरगोधा, जो अब पाकिस्तान में है, में निहत्थे शांतिपूर्ण स्वतंत्रता प्रेमियों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया तो उन्होंने अपना शानदार पुलिस कैरियर त्याग दिया। उन्होंने अपने वरिष्ठ के अनैतिक आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्होंने #जलियांवाला_बाग के समान एक अन्य घटना का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था।

 

🇮🇳 सज़ा के रूप में, उन्हें उत्तर-पश्चिम सीमा पर एक आदिवासी क्षेत्र #डेरा_गाज़ी_खान में तैनात किया गया था। ब्रिटिश अधिकारियों से मोहभंग होने के बाद, उन्होंने पुलिस बल से इस्तीफा दे दिया और मुल्तान में कानूनी प्रैक्टिस शुरू कर दी। वह क्षेत्र के एक सफल और प्रतिष्ठित वकील थे। उन्होंने #नेताजी_सुभाष_चंद्र_बोस और #जनरल_मोहन_सिंह द्वारा शुरू की गई भारतीय राष्ट्रीय सेना (#आजाद_हिंद_फौज) के कैदियों की रक्षा के लिए मामले उठाए। ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा प्रतिशोध के डर से कोई अन्य वकील ऐसे मामलों को लेने की हिम्मत नहीं करेगा।

🇮🇳 अमर बलिदानी नानक सिंह ने अपना पूरा जीवन भारत की शांति, अखंडता और एकता के लिए समर्पित कर दिया और उन्हीं सिद्धांतों के लिए उन्होंने अपना जीवन बलिदान कर दिया। उनका चित्र अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में भी लगा हुआ है। पंजाब सरकार ने उनके नाम पर एक सड़क का नाम रखा है और सड़क पर उनकी प्रतिमा स्थापित की है।

जय हिन्द।

साभार: shaheednanaksinghfoundation.com

🇮🇳 भारत की एकता और अखंडता की रक्षा के संकल्प के साथ भारत विभाजन रोकने के आंदोलन में डीएवी कॉलेज के 600 छात्रों को बचाते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले देशप्रेमी अमर बलिदानी #सरदार_नानक_सिंह जी को उनके #बलिदान_दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Baba Prithvi Singh Azad | बाबा पृथ्वीसिंह आजाद | 15 सितंबर 1892 - 05 मार्च 1989



14 दिनों तक रोज सामने मौत की बाल्टी देख कर भी डरे नहीं #Baba_Prithvi_Singh_Azad  #पृथ्वीसिंह आजाद 🇮🇳

🇮🇳 भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले कुछ ऐसे क्रांतिकारी भी रहे, जिन्हें आजादी मिलने के बाद भुला दिया गया। या तो उन्हें जानबूझकर भुलाया गया या फिर उनके बारे में कहीं कोई जानकारी दर्ज थी ही नहीं, इसलिए देश उन्हें भूल गया। ऐसे ही क्रांतिवीर थे पृथ्वीसिंह आजाद, जिनके बारे में छुटपुट जानकारी ही देश के सामने आ सकी। बाबा पृथ्वीसिंह आजाद ऐसे क्रांतिवीर थे, जिनके जीवन का प्रत्येक क्षण देश की स्वतंत्रता के लिए अर्पित था। 

🇮🇳 15 सितंबर 1892 को #पंजाब के #सर्कपुर_टावर, जिला #अम्बाला में जन्मे पृथ्वीसिंह आजाद कुछ कमाने के लिए कई देशों की यात्रा करते हुए अमेरिका पहुँचे थे। वहाँ वे भारत की आजादी के लिए लड़ रही 'गदर पार्टी' में शामिल हो गए।

🇮🇳 गदर पार्टी के आह्वान पर वे अपने साथियों के साथ वापस भारत लौटे और अम्बाला की सैनिक छावनियों में भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने की प्रेरणा देने लगे। दुर्भाग्य से 8 दिसम्बर 1914 को उन्हें बंदी बनाकर #लाहौर की सेंट्रल जेल भेज दिया गया। उन्हें लाहौर षड्‌यंत्र केस में अन्य कई क्रांतिकारियों के साथ अभियुक्त बनाया गया।

🇮🇳 न्यायालय ने उक्त केस में 24 क्रांतिकारियों को फाँसी का दंड घोषित किया। उन क्रांतिकारियों में बाबा पृथ्वीसिंह आजाद भी थे। उस समय जेल में फाँसी देने के बाद शवों को नहलाया नहीं जाता था। जेल परिसर में जेल के ही कर्मचारियों द्वारा शव को जला दिया जाता था। अतः राजबंदियों की माँग थी कि जिस दिन हमें फाँसी दें, उसके पहले स्नान करने की व्यवस्था करें। मगर क्रूर अंग्रेजी शासक क्रांतिकारियों को मानसिक प्रताड़ना देने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते थे।

🇮🇳 जेल में बाबा पृथ्वीसिंह आजाद की कोठरी के सामने रोज एक बाल्टी पानी रख दिया जाता था। क्रांतिकारियों को लगता था कि आज उन्हें फाँसी दी जाएगी। ऐसी मानसिक क्रूरता लगातार 14 दिनों तक की गई। किंतु इससे न तो बाबा पृथ्वीसिंह आजाद डिगे, न ही कोई अन्य क्रांतिकारी।

साभार: naidunia.com

🇮🇳 #पद्मभूषण से सम्मानित; संयुक्त राज्य अमेरिका में #ग़दर_पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक और #लाहौर, #कलकत्ता, #मद्रास तथा #सेलुलर जेल समेत विभिन्न जेलों में यातनापूर्ण 10 साल बिताने वाले महान #क्रांतिकारी #बाबा_पृथ्वीसिंह_आजाद जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Revolutionary Sushila Didi | भगत सिंह की 'दीदी' क्रांतिकारी सुशीला दीदी

 




भारत के #स्वतंत्रता संग्राम के #क्रांतिकारी वीरों के बलिदान से हम ज़्यादातर भारतीय परिचित हैं। शहीद- ए- आजम #भगत_सिंह की कुर्बानी की गाथाएं हर गली-मोहल्ले में सुनाई जाती हैं। लेकिन उनका साथ देने वाली महिला क्रांतिकारियों के बारे में लोगों को बहुत ही कम जानकारी है। आज हम आपको उनकी टोली की एक और महिला क्रांतिकारी, सुशीला मोहन यानी कि भगत सिंह की #सुशीला_दीदी #Sushila_Didiके बारे में बता रहे हैं।

🇮🇳 5 मार्च 1905 को पंजाब के #दत्तोचूहड़ (अब पाकिस्तान) में जन्मीं दीदी की शिक्षा जालंधर के आर्य कन्या महाविद्यालय में हुई। उनके पिता अंग्रेजी सेना में नौकरी करते थे। पढ़ाई के दौरान सुशीला क्रांतिकारी दलों से जुड़े छात्र-छात्राओं के संपर्क में आईं। उनका मन भी #देशभक्ति में रमने लगा और देखते ही देखते, वह खुद क्रांति का हिस्सा बन गईं। 

🇮🇳 लोगों को जुलूस के लिए इकट्ठा करना, गुप्त सूचनाएं पहुँचाना और क्रांति के लिए चंदा इकट्ठा करना उनका काम हुआ करता था। यहाँ पर उनका मिलना-जुलना भगत सिंह और उनके साथियों से भी हुआ। यहाँ पर उनकी मुलाक़ात #भगवती_चरण और उनकी पत्नी #दुर्गा_देवी_वोहरा से हुई।

🇮🇳 यह सुशीला दीदी ही थीं जिन्होंने दुर्गा देवी को #दुर्गा_भाभी बना दिया। उन्होंने ही सबसे पहले यह संबोधन उन्हें दिया और फिर हर कोई क्रांतिकारी उन्हें सम्मान से दुर्गा भाभी कहने लगा और सुशीला को सुशीला दीदी।

🇮🇳 कहते हैं कि भगत सिंह भी सुशीला दीदी को बड़ी बहन की तरह सम्मान करते थे। ब्रिटिश सरकार की बहुत सी योजनाओं के खिलाफ सुशीला दीदी ने उनकी मदद की थी।

🇮🇳 #काकोरी_क्रांति #Kakori_Krantiमें जब #राम_प्रसाद_बिस्मिल और उनके साथी पकड़े गए तो उन पर मुकदमा चला। मुकदमे की पैरवी को आगे बढ़ाने के लिए धन की ज़रूरत थी। ऐसे में, सुशीला दीदी ने दस तोला #सोना दिया। बताया जाता है कि यह सोना उनकी माँ ने उनकी शादी के लिए रखा था। पर इस वीरांगना ने इसे अपने देश की आज़ादी के लिए दे दिया क्योंकि उन्हें किसी भी दौलत से ज्यादा आज़ादी से प्यार था। लेकिन यह देश की बदकिस्मती थी कि काकोरी ट्रेन को लूटकर अंग्रेजों की नींद उड़ाने वाले क्रांतिकारियों में से 4 को फाँसी की सजा सुना दी गई।

🇮🇳 इस खबर ने सुशीला दीदी और उनके जैसे बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों को झकझोर दिया था। पर उनके कदम नहीं डगमगाए बल्कि सुशीला दीदी तो अपने घरवालों के खिलाफ चली गईं। उनके पिता ने जब उन्हें राजनीति और क्रांति से दूर रहने के लिए समझाया तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि घर छूटे तो छूटे लेकिन उनके #कदम देश को आज़ादी दिलाये बिना नहीं रुकेंगे।

🇮🇳 पढ़ाई पूरी करने के बाद, सुशीला दीदी कोलकाता में शिक्षिका की नौकरी करने लगीं। यहाँ पर रहते हुए भी वह लगातार क्रांतिकारियों की मदद कर रही थीं। साल था 1928, जब साइमन कमीशन का विरोध करते समय #लाला_लाजपतराय पर लाठियाँ बरसाने वाले ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स को मारने के बाद भगतसिंह, दुर्गा भाभी के साथ छद्म वेश में कलकत्ता पहुँचे।

🇮🇳 उस समय भगवती चरण भी कलकत्ता में ही थे। लखनऊ स्टेशन से ही भगत सिंह ने भगवती और सुशीला दीदी को पत्र लिख दिया था। कलकत्ता स्टेशन पर सुशीला दीदी और भगवती उन्हें लेने के लिए पहुंचे।

🇮🇳 कलकत्ता में सुशीला दीदी ने भगत सिंह को वहीं ठहराया, जहाँ वह खुद रह रहीं थी ताकि ब्रिटिश सरकार को पता न चल सके। सुशीला दीदी की मदद से भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारी ने अपनी अगली योजना पर काम किया।

🇮🇳 8 अप्रैल 1929 को #भगतसिंह और #बटुकेश्वर_दत्त को केन्द्रीय असेम्बली में बम विस्फोट करने के लिए भेजना तय किया गया और उस समय #सुशीला_दीदी, #दुर्गा_भाभी और भगवती चरण के साथ लाहौर में ही थीं। अपने मिशन पर निकलने से पहले भगत सिंह उनसे मिलने भी आए थे।

🇮🇳 लेकिन जैसा कि हम सब जानते हैं कि इस हमले में भगत सिंह की गिरफ्तारी हो गई। भगतसिंह और उनके साथियों पर जब ‘लाहौर षड्यन्त्र केस’ चला तो दीदी भगतसिंह के बचाव के लिए चंदा जमा करने कलकत्ता पहुँचीं। भवानीपुर में सभा का आयोजन हुआ और जनता से ‘भगतसिंह डिफेन्स फंड’ के लिए धन देने की अपील की गई। कलकत्ता में दीदी ने अपने इस अभियान के लिए अपनी महिला टोली के साथ एक नाटक का मंचन करके भी 12 हजार रूपए जमा किए थे। यहाँ तक कि उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और पूरा समय क्रांतिकारी दल को देने लगीं।

🇮🇳 अन्य क्रांतिकारियों के साथ-साथ सुशीला भी अंग्रेजों की नज़र में आने लगीं थीं। उनके खिलाफ गिरफ्तारी का आदेश जारी हो चुका था। लेकिन इसकी परवाह किए बिना भी उन्होंने #जतिंद्र_नाथ की मृत्यु के बाद, दुर्गा भाभी के साथ मिलकर भारी जुलूस निकाला। जन-जन के दिल में क्रांति की आग को भड़काया। उन्हें साल 1932 में गिरफ्तार भी किया गया। छह महीने की सजा के बाद उन्हें छोड़ा गया और उन्हें अपने घर पंजाब लौटने की हिदायत मिली।

🇮🇳 साल 1933 में उन्होंने अपने एक सहयोगी वकील #श्याम_मोहन से विवाह किया, जो खुद स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए थे। साल 1942 के आंदोलन में दोनों पति-पत्नी जेल भी गए। श्याम मोहन को दिल्ली में रखा गया और दीदी को लाहौर में। इतनी यातनाएं सहने के बाद भी उनके मन से देश को आज़ाद कराने का जज्बा बिल्कुल भी कम नहीं हुआ। आखिरकार, महान वीर-वीरांगनाओं की मेहनत रंग लायी और साल 1947 में देश को आज़ादी मिली।

🇮🇳 आज़ादी के बाद की ज़िंदगी, सुशीला दीदी ने दिल्ली में #गुमनामी में ही गुजारी। उन्होंने कभी भी अपने बलिदानों के बदले सरकार से किसी भी तरह की मदद या इनाम की अपेक्षा नहीं रखी। 

🇮🇳 3 जनवरी 1963 को भारत की इस बेटी ने दुनिया को अलविदा कहा। दिल्ली के चाँदनी चौक में एक सड़क का नाम ’सुशीला मोहन मार्ग’ रखा गया था, पर शायद ही कोई इस नाम के पीछे की कहानी से परिचित हो।

🇮🇳 अक्सर यही होता आया है… हमारा इतिहास महिलाओं के बलिदान और उनकी बहादुरी को अक्सर भूल जाता है। बहुत सी ऐसी नायिकाएं हमेशा छिपी ही रह जाती हैं। सुशीला मोहन भी उन्हीं नायिकाओं में से एक हैं!

🇮🇳 देश की आज़ादी के लिए मर-मिटने वाली ऐसी वीरांगनाओं को कोटि कोटि प्रणाम!

~ निशा डागर 

साभार: thebetterindia.com

🇮🇳 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना जीवन समर्पित करने वाली; त्याग, साहस और देशप्रेम की प्रतिमूर्ति अमर #वीरांगना #सुशीला_मोहन जी को उनकी जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 जय मातृभूमि 🇮🇳

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

#Revolutionary  #Sushila_Didi #05March

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Gangu Bai Hangal | Indian singer | गंगूबाई हंगल शास्त्रीय संगीत की प्रख्यात गायिका




#Gangu_Bai_Hangal | #गंगूबाई_हंगल

 उन्होंने आर्थिक संकट, पड़ोसियों द्वारा जातीय आधार पर उड़ाई गई खिल्ली और भूख से लगातार लड़ाई करते हुए भी उच्च स्तर का संगीत दिया। 🇮🇳

🇮🇳 #भारतीय_शास्त्रीय_संगीत  #Indian_Classical_Music की नब्ज पकड़ कर और किराना घराना की विरासत को बरकरार रखते हुए परंपरा की आवाज का प्रतिनिधित्व करने वाली गंगूबाई हंगल ने लिंग और जातीय बाधाओं को पार कर संगीत क्षेत्र में आधे से अधिक सदी तक अपना योगदान दिया। 

🇮🇳 गंगूबाई का जन्म 5 मार्च 1913 को एक केवट परिवार में हुआ था। उनके संगीत कॅरियर के शिखर तक पहुँचने के बारे में एक #अतुल्य_संघर्ष की कहानी है। उन्होंने आर्थिक संकट, पड़ोसियों द्वारा जातीय आधार पर उड़ाई गई खिल्ली और भूख से लगातार लड़ाई करते हुए भी उच्च स्तर का संगीत दिया। कर्नाटक के एक गॉंव हंगल की रहने वाली गंगूबाई को बचपन में अक्सर जातीय टिप्पणी का सामना करना पड़ा और उन्होंने जब गायकी शुरू की तब उन्हें उन लोगों ने गाने वाली कह कर पुकारा जो इसे एक अच्छे पेशे के रूप में नहीं देखते थे।

🇮🇳 गंगूबाई हंगल ने कई बाधाओं को पार कर अपनी गायिकी को एक मुकाम तक पहुँचाया और उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण, तानसेन पुरस्कार, कर्नाटक संगीत नृत्य अकादमी पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी जैसे पुरस्कारों से नवाजा गया। 

🇮🇳 पुरानी पीढ़ी की एक नेतृत्वकर्ता गंगूबाई ने गुरु शिष्य परंपरा को बरकरार रखा। उनमें संगीत के प्रति जन्मजात लगाव था और यह उस वक्त दिखाई पड़ता था जब अपने बचपन के दिनों में वह ग्रामोफोन सुनने के लिए सड़क पर दौड़ पड़ती थीं और उस आवाज की नकल करने की कोशिश करती थीं। 

🇮🇳 अपनी बेटी में संगीत की प्रतिभा को देखकर गंगूबाई की संगीतज्ञ माँ ने कर्नाटक संगीत के प्रति अपने लगाव को दूर रख दिया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी बेटी संगीत क्षेत्र के #एच_कृष्णाचार्य जैसे दिग्गज और किराना उस्ताद #सवाई_गंधर्व से सर्वश्रेष्ठ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखे। 

🇮🇳 गंगूबाई ने अपने गुरु सवाई गंधर्व की शिक्षाओं के बारे में एक बार कहा था कि मेरे गुरुजी ने यह सिखाया कि जिस तरह से एक कंजूस अपने पैसों के साथ व्यवहार करता है। उसी तरह सुर का इस्तेमाल करो ताकि श्रोता राग की हर बारीकी के महत्व को समझ सके।

🇮🇳 संगीत के प्रति गंगूबाई का इतना लगाव था कि #कंदगोल स्थित अपने गुरु के घर तक पहुँचने के लिए वह 30 किलोमीटर की यात्रा ट्रेन से पूरी करती थीं और इसके आगे पैदल ही जाती थीं। यहाँ उन्होंने भारत रत्न से सम्मानित #पंडित_भीमसेन_जोशी के साथ संगीत की शिक्षा ली। किराना घराने की परंपरा को बरकरार रखने वाली गंगूबाई इस घराने और इससे जुड़ी शैली की शुद्धता के साथ किसी तरह का समझौता किए जाने के पक्ष में नहीं थीं। गंगूबाई को भैरव, असावरी, तोडी, भीमपलासी, पुरिया, धनश्री, मारवा, केदार और चंद्रकौंस रागों की गायकी के लिए सबसे अधिक वाहवाही मिली। 

🇮🇳 उन्होंने एक बार कहा था कि मैं रागों को धीरे−धीरे आगे बढ़ाने और इसे धीरे−धीरे खोलने की हिमायती हूँ ताकि श्रोता उत्सुकता से अगले चरण का इंतजार करे।

🇮🇳 21 जुलाई 2009 को उनके निधन के साथ संगीत जगत ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के उस युग को दूर जाते हुए देखा जिसने शुद्धता के साथ अपना संबंध बनाया था और यह मान्यता है कि संगीत ईश्वर के साथ अंतरसंवाद है जो हर बाधा को पार कर जाती है।

साभार: prabhasakshi.com

🇮🇳 #पद्मभूषण #PadmaVibhushan #पद्मविभूषण #PadmaVibhushan , तानसेन पुरस्कार, कर्नाटक संगीत नृत्य अकादमी पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी जैसे पुरस्कारों से अलंकृत; भारतीय #शास्त्रीय #संगीत की प्रसिद्ध #गायिका #गंगूबाई_हंगल #Gangubai_Hangal जी को उनकी जयंती पर हार्दिक श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Neera Arya Nagin | वीरांगना नीरा आर्य नागिन जी | 5 मार्च 1902 -26 जुलाई 1998

 



  🇮🇳 #वीरांगना_नीरा_आर्य  #Neera_Arya_Nagin  ने #नेताजी_सुभाष_चंद्र_बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी |

🇮🇳5 मार्च 1902 को तत्कालीन संयुक्त प्रांत के #खेकड़ा नगर में एक प्रतिष्ठित व्यापारी #सेठ_छज्जूमल  #Seth_Chhajjumal के घर जन्मी नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज में रानी झाँसी रेजिमेंट की सिपाही थीं, जिन पर अंग्रेजी सरकार ने गुप्तचर होने का आरोप भी लगाया था।

🇮🇳 इन्हें नीरा ​नागिनी के नाम से भी जाना जाता है। इनके भाई #बसंत_कुमार भी आजाद हिन्द फौज में थे। इनके पिता #सेठ_छज्जूमल #Basant_Kumar अपने समय के एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे, जिनका व्यापार देशभर में फैला हुआ था। खासकर कलकत्ता में इनके पिताजी के व्यापार का मुख्य केंद्र था, इसलिए इनकी शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता में ही हुई ।

🇮🇳 नीरा आर्य का विवाह ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ हुआ था | नीरा ने #नेताजी_सुभाष_चंद्र_बोस  #Netaji_Subhash_Chandra_Bose की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी |

🇮🇳 आजाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब लाल किले में मुकदमा चला तो सभी बंदी सैनिकों को छोड़ दिया गया, लेकिन इन्हें पति की हत्या के आरोप में #काले_पानी #Kale_Pani की सजा हुई थी, जहाँ इन्हें घोर यातनाएँ दी गई।

🇮🇳 आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।

🇮🇳 नीरा ने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी है | इस आत्म कथा का एक हृदयद्रावक अंश प्रस्तुत हैं–

🔴 ‘‘मैं जब कोलकाता जेल से #अंडमान पहुँची, तो हमारे रहने का स्थान वे ही कोठरियाँ थीं, जिनमें अन्य महिला राजनैतिक अपराधी रही थी अथवा रहती थी। 🔴

🔴 हमें रात के 10 बजे कोठरियों में बंद कर दिया गया और चटाई, कंबल आदि का नाम भी नहीं सुनाई पड़ा। मन में चिंता होती थी कि इस गहरे समुद्र में अज्ञात द्वीप में रहते स्वतंत्रता कैसे मिलेगी, जहाँ अभी तो ओढ़ने बिछाने का ध्यान छोड़ने की आवश्यकता आ पड़ी है? 🔴

🔴 जैसे-तैसे जमीन पर ही लोट लगाई और नींद भी आ गई। लगभग 12 बजे एक पहरेदार दो कम्बल लेकर आया और बिना बोले-चाले ही ऊपर फेंककर चला गया। कंबलों का गिरना और नींद का टूटना भी एक साथ ही हुआ। बुरा तो लगा, परंतु कंबलों को पाकर संतोष भी आ ही गया। 🔴

🔴 अब केवल वही एक लोहे के बंधन का कष्ट और रह-रहकर भारत माता से जुदा होने का ध्यान साथ में था। 🔴

🔴 ‘‘सूर्य निकलते ही मुझको खिचड़ी मिली और लुहार भी आ गया। हाथ की सांकल काटते समय थोड़ा-सा चमड़ा भी काटा, परंतु पैरों में से आड़ी बेड़ी काटते समय, केवल दो-तीन बार हथौड़ी से पैरों की हड्डी को जाँचा कि कितनी पुष्ट है। 🔴

🔴 मैंने एक बार दुःखी होकर कहा, ‘‘क्या अंधा है, जो पैर में मारता है?’’ ‘‘पैर क्या हम तो दिल में भी मार देंगे, क्या कर लोगी?’’ उसने मुझे कहा था। 🔴

🔴 ‘‘बंधन में हूँ तुम्हारे कर भी क्या सकती हूँ…’’ फिर मैंने उनके ऊपर थूक दिया था, ‘‘औरतों की इज्जत करना सीखो?’’ 🔴

🔴 जेलर भी साथ थे, तो उसने कड़क आवाज में कहा, ‘‘तुम्हें छोड़ दिया जाएगा, यदि तुम बता दोगी कि तुम्हारे नेताजी सुभाष कहाँ हैं?’’ 🔴

🔴 ‘‘वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे,’’ मैंने जवाब दिया, ‘‘सारी दुनिया जानती है।’’ 🔴

🔴 ‘‘नेताजी जिंदा हैं….झूठ बोलती हो तुम कि वे हवाई दुर्घटना में मर गए?’’ जेलर ने कहा। 🔴

🔴 ‘‘हाँ नेताजी जिंदा हैं।’’ 🔴

🔴 ‘‘तो कहाँ हैं…।’’ 🔴

🔴 ‘‘मेरे दिल में जिंदा हैं वे।’’ 🔴

🔴 जैसे ही मैंने कहा तो जेलर को गुस्सा आ गया था और बोले, ‘‘तो तुम्हारे दिल से हम नेताजी को निकाल देंगे।’’ और फिर उन्होंने मेरे आँचल पर ही हाथ डाल दिया और मेरी आँगी को फाड़ते हुए फिर लुहार की ओर संकेत किया…लुहार ने एक बड़ा सा जंबूड़ औजार जैसा फुलवारी में इधर-उधर बढ़ी हुई पत्तियाँ काटने के काम आता है, उस ब्रेस्ट रिपर को उठा लिया और मेरे दाएँ स्तन को उसमें दबाकर काटने चला था…लेकिन उसमें धार नहीं थी, ठूँठा था और उरोजों (स्तनों) को दबाकर असहनीय पीड़ा देते हुए दूसरी तरफ से जेलर ने मेरी गर्दन पकड़ते हुए कहा, ‘‘अगर फिर जबान लड़ाई तो तुम्हारे ये दोनों गुब्बारे छाती से अलग कर दिए जाएँगे…’’ 🔴

🔴 उसने फिर चिमटानुमा हथियार मेरी नाक पर मारते हुए कहा, ‘‘शुक्र मानो महारानी विक्टोरिया का कि इसे आग से नहीं तपाया, आग से तपाया होता तो तुम्हारे दोनों स्तन पूरी तरह उखड़ जाते।’’ 🔴

🇮🇳 सलाम हैं ऐसे देश भक्त को। आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।

जय हिन्द, जय माँ भारती, वन्देमातरम !!!

🇮🇳 पढ़ने के बाद ही रूह काँप जाती है जिन पर बीती होगी उसका दर्द वही जानते होंगे नमन हैं ऐसे क्रांतिवीरों को!

~ राजन पाण्डेय

साभार: kreately.in

नीरा आर्य जी के जीवन के विषय में अधिक जानने के लिए...

www.neeraaryamemorial.com

🇮🇳 #आजाद_हिन्द_फौज #Azad_Hind_Army's में रानी झाँसी रेजिमेंट की सिपाही, देशप्रेम की अद्भुत मिसाल #वीरांगना #नीरा_आर्य_नागिनी जी #Neera_Arya_Nagini की जयंती पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 जय मातृभूमि 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Amar Shaheed Dal Bahadur Thapa Azad Hind Fauj | आजाद हिंद फौज के अमर शहीद दल बहादुर थापा





 #दल बहादुर थापा #Dal Bahadur Thapa का जन्म 04 मार्च, 1907 को #Himachal में #Kangra के #Barkot में हुआ था। तब इनके पिता ब्रिटिश अधिकारियों के साथ उनके निजी स्टाफ में काम करते थे। पराक्रम और शौर्य के नैसर्गिक गुणों से पूर्ण दल बहादुर 1924 में ब्रिटिश इण्डियन आर्मी के गोरखा राइफल्स में भर्ती हो गए थे। 

🇮🇳 ब्रिटिश आर्मी की तरफ से #Waziristan (पाकिस्तान, अफगानिस्तान सीमा) में अपने अद्भुत शौर्य प्रदर्शन दिखाने के लिए इन्हें मैन्शन इन डिस्पैच के सैन्य पदक से सम्मानित किया गया। 

🇮🇳 द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना ने इन्हें मलाया भेजा। अपनी सैन्य परम्परा का निर्वहन करते हुए उन्होंने जापानी सेना का डट कर मुकाबला किया। किन्तु 23 अगस्त, 1941 को इन्हें युद्व मोर्चे पर बन्दी बना लिया गया। 

🇮🇳 #Netaji_Subhash_Chand_Bose के प्रभाव और देशभक्ति की भावना से प्रेरित हो कर इन्होंने 1942 में आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने का निश्चय किया। 

🇮🇳 कैप्टेन पद पर कार्य करते हुए पूर्वोत्तर सीमा पर 1944 में इन्हें बन्दी बना लिया गया। फरवरी 1945 में #दिल्ली की #लालकिला जेल में इन पर मुकदमा चलाया गया। ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों द्वारा इनके परिवार की सेवाओं को देखते हुए इन्हें माफीनामा देने पर सहमति प्रदान की किन्तु इन्होंने माफीनामा पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया। 

🇮🇳 इस तरह 12 फरवरी, 1945 को इन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई और 03 मई, 1945 को वीर कैप्टेन दल बहादुर को दिल्ली के केन्द्रीय कारागार में फाँसी दे दी गई।

साभार: amritmahotsav.in

🇮🇳 पराक्रम और शौर्य के नैसर्गिक गुणों से पूर्ण आजाद हिन्द फौज के सैनिक #Captain_Dal_Bahadur_Thapaजी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

🇮🇳🌹🙏

🇮🇳 जय हिन्द, जय हिन्द की सेना 🇮🇳



साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

  #दल बहादुर थापा #Dal Bahadur Thapa ,    #आजादी_का_अमृतकाल,  #04March. 


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...