02 मार्च 2024

What do you want Milord | क्या चाहते हैं मीलॉर्ड | Illegal Construction | लेखक : सुभाष चन्द्र




क्या चाहते हैं मीलॉर्ड - मैंने कहा था 

सब जगह समान आदेश लागू हों  और कल ही भ्रम पैदा कर दिया -


मैंने सुप्रीम कोर्ट के चेन्नई की अवैध मस्जिद और मदरसे को हटाने के आदेश पर लिखा था कि आदेश अच्छा है लेकिन यह सभी जगह लागू होना चाहिए और कई उदाहरण भी दिए थे जहां उन्हें लागू होना चाहिए -


लेकिन कल ही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने लखनऊ के अकबरनगर में 24 “अवैध कॉलोनियों” को ध्वस्त करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को ख़ारिज करने के लिए दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चेन्नई मामले से बिलकुल विपरीत ऐसी टिपण्णी कर दी जो “अवैध निर्माण” को प्रोत्साहन देती है -


जस्टिस खन्ना की पीठ ने बहुत खतरनाक बात कही जिसमें कहा गया - “किसी भी शख्स के सिर पर छत होना उसका मूलभूत अधिकार है लेकिन अगर किफायती दाम पर लोगों को आवास उपलब्ध कराने में सरकारी नीतियां असमर्थ रहती हैं, तो ऐसे में अनाधिकृत कॉलोनियों का बनना तय है” 


इसका मतलब साफ़ है सुप्रीम कोर्ट जनता के प्रति सारी जिम्मेदारी सरकार पर थोप देना चाहता है चाहे किसी भी समुदाय के लोग भारत में अपनी जितनी मर्जी आबादी बढ़ाते रहें और रोहिंग्या एवं बांग्लादेशियों की तरह घुसपैठ करते रहें - सुप्रीम कोर्ट कल को यह भी कहेगा क्या  कि सरकार यदि सभी को नौकरी नहीं देती तो युवा “आतंकी” बनने का अधिकार रखते हैं -


अगर जजों के बंगलों के नजदीक लोग “अवैध घर” बना कर रहने लगें तब क्या होगा, एक दिन में तुड़वा देंगे तब -


वैसे एक बात सामने आई है कि इन सभी अवैध निर्माण करने वालों में अधिकांश एक ही समुदाय के लोग हैं जिनके लिए शायद सुप्रीम कोर्ट के दिल में ज्यादा तड़प होती है जैसे हल्द्वानी में रोक लगाते हुए थी -


एक तरफ कोर्ट ने यह मूर्खतापूर्ण टिप्पणी की तो दूसरी तरफ जस्टिस खन्ना ने यह भी कहा कि लोगों ने स्वीकार किया है (जिनमे कुछ गरीब भी हैं) कि  ये जमीन सरकार की है और सरकारी जमीन पर निर्माण अवैध है और उन्हें 4 मार्च की रात 12 बजे तक अपना सामान निकालने का समय दिया - इसका मतलब यह भी हुआ कि सुप्रीम कोर्ट स्वयं विपरीत नजरिया अपना रहा है क्योंकि अगर सरकारी जमीन पर निर्माण हुआ है तो वह चेन्नई मस्जिद की तरह हटा देने के आदेश से अलग मामला नहीं हो सकता -


मीलॉर्ड को इस संदर्भ में याद करा दिया जाना चाहिए कि छत्तीसगढ़ में 2013 में प्रधानमंत्री गरीब आवास योजना के तहत 2013 में 400 घरों में से 335 आवास दिए गए थे बाकी 65 पर निगम ने ताला लगा रखा था लेकिन बाहरी रोहिंग्या मुसलमानों ने उन 65 घरो पर अवैध कब्ज़ा कर लिया और 60 अन्य परिवारों को डरा धमका का उनके मकानों पर भी बलात कब्ज़ा कर लिया - और वहां कुछ घरों में मज़ारनुमा आकृति देकर झाड़फूंक का काम करना शुरू कर दिया -


अब मीलॉर्ड इस पर भी कभी पंचायत लगा कर बैठेंगे तो क्या बताएंगे छत किसका अधिकार है, जिसे प्रधानमंत्री योजना में घर मिला या जिसने बलात कब्ज़ा कर लिया -


सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और टिप्पणियों के बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं और इसलिए न्यायाधीश भावनाओं में बह कर टिप्पणियां न किया करें - कई बार यह भी कहा जाता है कि अवैध निर्माण ध्वस्त करने से पहले नोटिस क्यों नहीं दिया गया (जो दिया जाता है) मगर दंगाइयों से कभी कोई नहीं पूछता कि लोगों की गाड़ियां जलाने या सरकारी संपत्ति जलाने से पहले नोटिस क्यों नहीं देते - 


CAA के दंगाइयों से वसूली से तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने उत्तरप्रदेश सरकार को रोक कर जैसे सरकारी संपत्ति जलाने को ही उचित ठहरा दिया था - तब भी चंद्रचूड़ ने कहा था “ये तो निरीह गरीब हैं, ये नुकसान की भरपाई कैसे करेंगे”


"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 01/03/2024 

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सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,

Syed Ali | July 10, 1942-March 2, 2010 | Former Indian Hockey Player| सैयद अली | भारत के पूर्व हॉकी खिलाड़ी

 



Syed Ali | July 10, 1942-March 2, 2010) | Former Indian Hockey Player|  सैयद अली | भारत के पूर्व हॉकी खिलाड़ी ।

🇮🇳 पद्मश्री जमन लाल शर्मा के साथ सैयद अली ने बच्चों को #हॉकी सिखाना शुरू किया था। अधिकतर बच्चे गरीब घरों के थे। उनके पास हॉकी और जूते तक खरीदने की क्षमता नहीं थी। खेल के प्रति अपने जुनून के चलते सैयद अली ने बच्चों की जरुरतें पूरी करने लगे। 🇮🇳

🇮🇳 सैयद अली (जन्म- 10 जुलाई, 1942; मृत्यु- 2 मार्च, 2010) भारत के पूर्व हॉकी खिलाड़ी थे। वह पुरुषों की उस हॉकी टीम के सदस्य थे जिसने सन 1964 के टोक्यो ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता था।

🇮🇳 नि:स्वार्थ सेवा--

लखनऊ के चंद्रभानु गुप्त मैदान में पूर्व ओलंपियन सैयद अली अपनी नर्सरी में खिलाड़ियों को इस मकसद से तराशते और निखारते हैं कि वे किसी दिन देश के लिए खेल सके और हॉकी के फिर से सुनहरे दिन ला सकें। सैयद अली की नर्सरी से कई खिलाड़ी देश के लिए खेल भी चुके हैं। 33 साल से अनवरत जारी उनका प्रयास देश की नि:स्वार्थ सेवा का अप्रतिम उदाहरण है। महान हॉकी खिलाड़ी के.डी. सिंह बाबू की धरती पर उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे सैयद अली की नजर में वह कुछ खास नहीं कर रहे। वह बस इतना ही कहते हैं, 'जो इस खेल से मिला है, बस वही लौटा रहा हूँ।'

🇮🇳 लखनऊ आगमन--

भारत के लिए कई अंतराराष्ट्रीय हॉकी मैच खेल चुके सैयद अली के लखनऊ आने की कहानी भी बड़ी रोचक है। नैनीताल में उनकी कपड़े की सिलाई की दुकान थी। वहीं पर #के_डी_सिंह_बाबू ने उन्हें स्थानीय प्रतियोगिता में खेलते देखा तो लखनऊ ले आए। के.डी. सिंह ओलंपिक में 1948 (लंदन) और 1952 (हेलसिंकी) में हॉकी में गोल्ड जीतने वाली टीम में सदस्य थे। 1952 में तो वह टीम के उपकप्तान भी थे। यह के.डी. सिंह की प्रतिभा परखने की नजर ही थी, जिसने प्रशिक्षण देकर सैयद अली को 1976 की मांट्रियल ओलंपिक टीम तक पहुँचाया। सैयद अली ने देश को कई यादगार क्षण दिए। आज भले ही वह खेल से रिटायर हो गए हैं, लेकिन वह पहले भी ज्यादा सक्रिय हैं। स्टेट बैंक में नौकरी कर रहे सैयद छुट्टी मिलते ही सीधे चंद्रभानु गुप्त मैदान पर पहुँच जाते हैं और हॉकी की प्रतिभाओं को तराशते हैं।

🇮🇳 प्रशिक्षित खिलाड़ी--

बिना सरकारी मदद के चलने वाली सैयद अली की नर्सरी में दाखिले के लिए शुल्क नहीं, हॉकी के लिए केवल जुनून की जरूरत होती है। इसी के सहारे इस नर्सरी से ललित उपाध्याय, आमिर, हरिकृपाल, राहुल शिल्पकार, सौरभ, विजय थापा, विवेकधर, अमित प्रभाकर, सिद्धार्थ शंकर, दीपक सिंह, शारदानंद तिवारी, कुमारी कमला रावत, कविता मौर्या और कमलेश जैसे खिलाड़ी इंडिया कैंप तक पहुँचे। कमल थापा, वीरबहादुर, अविनाश, मो. रफीक, कुमारी फरहा, अभिमन्यु, कवि यादव, विजय कुमार, प्रशांत कबीर, शुभम वर्मा, राहुल वर्मा, अंकित कुमार, आकाश यादव, सौरभ यादव, गौरव यादव राष्ट्रीय टीम के लिए खेल चुके हैं।

🇮🇳 सुजीत कुमार का योगदान--

पद्मश्री #जमन_लाल_शर्मा के साथ सैयद अली ने बच्चों को हॉकी सिखाना शुरू किया था। अधिकतर बच्चे गरीब घरों के थे। उनके पास हॉकी और जूते तक खरीदने की क्षमता नहीं थी। खेल के प्रति अपने जुनून के चलते सैयद अली ने बच्चों की जरुरतें पूरी करने लगे। सैयद अली के संघर्ष को देखकर कुछ साथियों ने हाथ बढ़ाया। इनमें से एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी #सुजीत_कुमार आज तक गरीब बच्चों का भविष्य सँवारने में मदद कर रहे हैं। सैयद अली सुजीत कुमार के सहयोग का जिक्र करने के साथ इसके लिए उनका आभार जताने से नहीं चूकते।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 सन 1964 के टोक्यो #ओलम्पिक में स्वर्ण पदक विजेता टीम के सदस्य, पूर्व #हॉकी खिलाड़ी #सैयद_अली जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 #Syed_Ali   #आजादी_का_अमृतकाल  #02March #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व,  


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Pawan Diwan | Spiritual Saint | संत कवि पवन दीवान (अमृतानंद जी) | January 01, 1945-March 2, 2014




 Pawan Diwan | Spiritual Saint  | पवन दीवान (अमृतानंद जी)| आध्यात्मिक संत

🇮🇳 पवन दीवान ने छत्तीसगढ़ी भाषा को भागवत कथा में शामिल कर उसे जन-जन में प्रसारित करने, प्रचारित करने और मातृभाषा के प्रति सम्मान जगाने का काम किया था। 🇮🇳

🇮🇳 अध्ययन काल के दौरान पवन दीवान की रुचि खेल में भी रही। फ़ुटबॉल के साथ बॉलीबॉल में वे स्कूल के दिनों में उत्कृष्ट खिलाड़ी रहे। इस दौरान ही उन्होंने कविता लेखन की शुरुआत भी कर दी थी। 🇮🇳

🇮🇳 पवन दीवान (जन्म- 1 जनवरी, 1945, #राजिम, #छत्तीसगढ़; मृत्यु- 2 मार्च, 2014, #दिल्ली) छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के प्रखर नेता, संत और कवि थे। वह छत्तीसगढ़ी, हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषाओं के प्रखर वक्ता थे। उन्होंने महानदी के किनारे छत्तीसगढ़ की तीर्थ नगरी राजिम से 'अंतरिक्ष', 'बिम्ब' और 'महानदी' नामक साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन किया। 

🇮🇳 पवन दीवान लम्बे समय तक राजिम स्थित संस्कृत विद्यापीठ के प्राचार्य भी रहे। वह #खूबचन्द_बघेल द्वारा स्थापित 'छत्तीसगढ़ भातृसंघ' के भी अध्यक्ष रहे। राजनीति में रहने के बावज़ूद पवन दीवान की पहचान मुख्य रूप से एक आध्यात्मिक सन्त, विद्वान भागवत प्रवचनकर्ता और हिन्दी तथा छत्तीसगढ़ी के लोकप्रिय कवि के रूप में आजीवन बनी रही। उनकी प्रकाशित पुस्तकों में कविता संग्रह 'मेरा हर स्वर इसका पूजन' और 'अम्बर का आशीष' उल्लेखनीय हैं।

🇮🇳 पवन दीवान उन व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ियों में स्वाभिमान जगाने का काम किया था। जिन्होंने पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिए आंदोलन किया था। जिन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा को भागवत कथा में शामिल कर उसे जन-जन में प्रसारित करने, प्रचारित करने और मातृभाषा के प्रति सम्मान जगाने का काम किया था। जिन्होंने हर मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी। जो एक सफल कवि, भागवताचार्य, खिलाड़ी और राजनेता के तौर जाने और माने गए। जिन्होंने एक पंक्ति में जीवन के मूल्य को समझा दिया था- "तहूँ होबे राख… महूँ होहू राख…" जिनके लिए सन 1977 में एक नारा गूँजा था- पवन नहीं ये आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है।

🇮🇳 पवन दीवान का जन्म 1 जनवरी, 1945 को राजिम के पास ग्राम #किरवई में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुई। उनके पिता का नाम #सुखराम_धर_दीवान शिक्षक थे। वहीं माता का नाम #कीर्ति_देवी_दीवान था। ननिहाल #आरंग के पास #छटेरा गाँव था। उन्होंने स्कूली शिक्षा किरवई और राजिम से पूरी की। जबकि उच्च शिक्षा #सागर विश्वविद्यालय और रविशकंर शुक्ल विश्वविद्यालय #रायपुर से प्राप्त की थी। उन्होंने हिंदी और संस्कृत में एमए की पढ़ाई की थी।

🇮🇳 अध्ययनकाल के समय ही पवन दीवान में वैराग्य की भावना बलवती हो गई थी। 21 वर्ष की आयु में हिमालय की तरायु में जाकर अंततः उन्होंने #स्वामी_भजनानंदजी_महाराज से दीक्षा लेकर संन्यास धारण कर लिया और भी पवन दीवान से #अमृतानंद बन गए। इसके बाद वे आजीवन संन्यास में रहे और गाँव-गाँव जाकर भागवत कथा का वाचन करने लगे।

🇮🇳 अध्ययन काल के दौरान पवन दीवान की रुचि खेल में भी रही। फ़ुटबॉल के साथ बॉलीबॉल में वे स्कूल के दिनों में उत्कृष्ट खिलाड़ी रहे। इस दौरान ही उन्होंने कविता लेखन की शुरुआत भी कर दी थी। धीरे-धीरे वे एक मंच के एक धाकड़ कवि बन चुके थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ी और हिंदी दोनों में ही कविताएं लिखी। उनकी कुछ कविताएं जनता के बीच इतनी चर्चित हुई कि वे जहाँ भी भागवत कथा को वाचन को जाते लोग उनसे कविता सुनाने की माँग अवश्य करते। इन कविताओं में 'राख' और 'ये पइत पड़त हावय जाड़' प्रमुख रहे। वहीं कवि सम्मेलनों में उनकी जो कविता सबसे चर्चित रही उसमें एक थी 'मेरे गाँव की लड़की चंदा उसका नाम था' शामिल है।

🇮🇳 चर्चित कविता ‘राख’--

राखत भर ले राख …

तहाँ ले आखिरी में राख।।

राखबे ते राख…।।

अतेक राखे के कोसिस करिन…।।

नि राखे सकिन……

तेके दिन ले…।

राखबे ते राख…।।

नइ राखस ते झन राख…।

आखिर में होना च हे राख…।

तहूँ होबे राख महूँ होहू राख…।

सब हो ही राख…

सुरू से आखिरी तक…।।

सब हे राख…।।

ऐखरे सेती शंकर भगवान……

चुपर ले हे राख……।

🇮🇳 भागवत कथा वाचन, कवि सम्मेलनों से राजिम सहित पूरे अँचल में पवन दीवान प्रसिद्ध हो चुके हैं। उनके शिष्यों की संख्या लगातार बढ़ते ही जा रही थी। राजनीति दल के लोगों से उनका मिलना-जुलना जारी था। और उनकी यही बढ़ती हुई लोकप्रियता एक दिन उन्हें राजनीति में ले आई। राजनीति में उनका प्रवेश हुआ जनता पार्टी के साथ। 1975 में आपात काल के बाद सन 1977 में जनता पार्टी से राजिम विधानसभा सीट से चुनाव लड़े। एक युवा संत कवि के सामने तब कांग्रेस के दिग्गज नेता श्यामाचरण शुक्ल कांग्रेस पार्टी से मैदान में थे। लेकिन युवा संत कवि पवन दीवान ने श्यामाचरण शुक्ल को हराकर सबको चौंका दिया था। तब उस दौर में एक नारा गूँजा था- पवन नहीं ये आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है। श्यामाचरण शुक्ल जैसे नेता को हराने का इनाम पवन दीवान को मिला और अविभाजित मध्य प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार में जेल मंत्री रहे। इसके बाद वे कांग्रेस के साथ आ गए और फिर पृथक राज्य छत्तीसगढ़ बनने तक कांग्रेस में रहे।

🇮🇳 2003 में रमन सरकार बनने के साथ वे भाजपा में और रमन सरकार में गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे और भी समय गुजरते-गुजरते एक दिन ऐसा भी आया, जब अपनी खिलखिलाहट से समूचे छत्तीसगढ़ को हॅंसा देने वाले पवन दीवान सबको रुला भी गए। यह तारीख थी 23 फ़रवरी, 2014। इस दौरान राजिम कुंभ मेला चल रहा था। मेले में ही कार्यक्रम के दौरान उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ। फिर वे कोमा में चले गए। 2 मार्च, 2014 को दिल्ली में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के प्रखर प्रसिद्ध नेता, आध्यात्मिक संत, विद्वान भागवत प्रवचनकर्ता और कवि #पवन_दीवान (संन्यास नाम: #अमृतानंद) जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 #Pawan_Diwan #Spiritual_Saint #आजादी_का_अमृतकाल  #02March #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व,  


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Prof. Manoranjan Sahu | प्रो. मनोरंजन साहू | क्षारसूत्र चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञ

 



Prof. Manoranjan Sahu | प्रो. मनोरंजन साहू | क्षारसूत्र चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञ

🇮🇳 प्रो. मनोरंजन साहू बीएचयू आयुर्वेद संकाय के डीन रहे। उन्होंने अपने कार्यकाल में बीएचयू में वर्ष 2013 में देश का पहला क्षार सूत्र केंद्र बनवाया था। 🇮🇳

🇮🇳 मनोरंजन साहू (जन्म- 2 मार्च, 1953, मिदनापुर, पश्चिम बंगाल) बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय के पूर्व प्रमुख, शल्य चिकित्सा विभाग के पूर्व अध्यक्ष और क्षारसूत्र चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञ हैं। प्रो. मनोरंजन साहू को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में पद्म श्री, 2023 से सम्मानित किया है। प्रो. मनोरंजन साहू शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में यह सम्मान पाने वाले पहले प्रोफेसर हैं।

🇮🇳 प्रोफेसर साहू का जन्म 2 मार्च, 1953 को #पश्चिम_बंगाल के #मिदनापुर जिले में हुआ था। सन 1977 में उन्होंने स्टेट आयुर्वेदिक कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद एमडी और पीएचडी की उपाधि काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1982 व 1986 में प्राप्त की। इसके बाद बी.एच.यू. में उन्होंने बतौर शिक्षक 34 वर्षों तक कार्य किया।

🇮🇳 प्रो. मनोरंजन साहू बीएचयू आयुर्वेद संकाय के डीन रहे। उन्होंने अपने कार्यकाल में बीएचयू में वर्ष 2013 में देश का पहला क्षार सूत्र केंद्र बनवाया था।

🇮🇳 वह सामाजिक संस्थाओं में भी बवासीर का मुफ्त इलाज किया करते थे।

🇮🇳 मूल रूप से पश्चिम बंगाल के मिदनापुर निवासी प्रो. मनोरंजन साहू ने कोलकाता के जेबी रॉय स्टेट आयुर्वेदिक कॉलेज से वर्ष 1977 में स्नातक किया ।

🇮🇳 सन 1982 और 1986 में बीएचयू में आयुर्वेद में एमडी और शोध करने के बाद काठमांडू चिकित्सा संस्थान में लेक्चरर नियुक्त हुए।

🇮🇳 वर्ष 1993 में बीएचयू आयुर्वेद फैकल्टी के शल्य तंत्र विभाग में रीडर नियुक्त हुए। इसके बाद वे 2003 में प्रोफेसर बने।

🇮🇳 प्रो. मनोरंजन साहू को आयुष विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 2008 में सम्मान, 2014 में वैद्य सुंदरलाल जोशी मेमोरियल अवार्ड सहित अन्य पुरस्कार मिल चुका है।

🇮🇳 दो शोध का पेटेंट और 32 अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन भी प्रो. साहू ने किया है।

🇮🇳 दुनिया के कई देशों में आयोजित मनोरंजन साहू आयुर्वेद सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके है।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #पद्मश्री और वैद्य सुंदरलाल जोशी मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित; बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के #आयुर्वेद संकाय के पूर्व प्रमुख, #शल्य_चिकित्सा विभाग के पूर्व अध्यक्ष और #क्षारसूत्र_चिकित्सा_पद्धति के विशेषज्ञ #प्रोफेसर_मनोरंजन_साहू जी को जन्मदिन की ढेरों बधाई एवं शुभकामनाएँ !

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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Queen Talaash Kunwari | पूर्वांचल की लक्ष्मीबाई थीं रानी तलाश कुंवरि




🇮🇳 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम आते ही जेहन में मंगल पांडेय का नाम आता है। मगर उत्तर प्रदेश के #बस्ती जिले के #अमोढ़ा रियासत की रानी तलाश कुंवरि ने भी उस आंदोलन में न सिर्फ पूरी ताकत से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन को जनक्रांति का स्वरूप दे दिया। रानी की अगुवाई में ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ जंग में शामिल सैकड़ों क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने छावनी में पीपल के पेड़ पर लटका कर सरेआम फाँसी दी थी। यह पेड़ आज भी बस्ती के स्वतंत्रता आंदोलन के गौरवशाली इतिहास की गवाही देता है।

🇮🇳 महारानी तलाश कुंवरि बस्ती ही नहीं, #पूर्वांचल के लोगों के दिलों में आज भी जिंदा है। वह अमोढ़ा रियासत की अंतिम शासक थीं। एसआर डिग्री कॉलेज #दसिया के कार्यवाहक प्राचार्य व इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष #डॉ_वीरेंद्र_श्रीवास्तव बताते हैं कि सन 1852 में #महाराजा_जंगबहादुर_सिंह के निधन के बाद रानी तलाश कुंवरि को सत्ता की बागडोर सँभालनी पड़ी। उस समय अंग्रेज अपने राज्य विस्तार में पूरी ताकत झोंके हुए थे।

🇮🇳 ब्रिटिश हुकूमत की नजर एकाएक अमोढ़ा रियासत पर पड़ी। उसे हथियाने को कुचक्र रचना शुरू कर दिया। तब इर्द-गिर्द की मित्र रियासतों का संगठन बना, जिसमें अमोढ़ा भी शामिल हो गया। रियासतों ने अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफर के नेतृत्व में यह लड़ाई शुरू की।

🇮🇳 इधर, रानी की बढ़ती ताकत से तिलमिलाए अंग्रेजों ने विद्रोह को दबाने के लिए 1858 में कर्नल ह्यूज के नेतृत्व में ब्रिटिश फौज को आक्रमण के लिए भेजा। रानी और उनके सैनिक अंग्रेजों से वीरता से लड़े। अंग्रेज रानी को जिंदा पकड़ना चाहते थे, लेकिन रानी ने सौगंध ले रखी थी कि वह जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगेंगी। इसी संकल्प को आत्मसात कर वह अंग्रेजों से युद्ध करते #पखेरवा कुंवर सम्मय माता के स्थान पर पहुँच गईं।

🇮🇳 सिपहसालारों को बुलाकर कहा कि अब प्राण बचाना मुश्किल है। यहीं पर उन्होंने दो मार्च 1858 को छाती में कटार घोंप कर आत्मबलिदान दे दिया। डॉ. वीरेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि रानी ने देश में बस्ती का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज कराया। उनकी वीरता किसी मायने में रानी लक्ष्मीबाई से कम नहीं है।

🇮🇳 रानी की शहादत के बाद उनके शव को सहयोगियों ने छिपा लिया। बाद में शव को अमोढ़ा राज्य की कुल देवी #सम्मय_माता_भवानी का चौरा के पास दफना दिया गया। यह जगह रानी चौरा के टीले के नाम से प्रसिद्ध है। जबकि पखेरवा में रानी के घोड़े को दफनाया गया है। इस जगह पर एक पीपल का पेड़ आज भी मौजूद है।

🇮🇳 रानी की शहादत के बाद भी क्षेत्र के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। लेकिन तब अंग्रेजों की सेना ने गाँव-गाँव जाकर रानी के सैनिकों और उनका सहयोग करने वालों को पकड़ा। मुकदमे का हवाला देते हुए अंग्रेजों ने डेढ़ सौ सैनिकों को छावनी में पीपल के पेड़ से लटका कर मौत के घाट उतार दिया। यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा है।



🇮🇳 छावनी शहीद स्थल का निर्माण वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कराया। यहाँ 1992 से मेला लगता आ रहा है। यहाँ शिलालेख पर महारानी का जीवन परिचय लिखा है तो दूसरी तरफ शहीदों का नाम अंकित है। हालांकि शिलालेख में सिर्फ 19 बलिदानियों का ही नाम अंकित है।

Photo: Chandra Prakash Chaudhary

साभार: amarujala.com

🇮🇳 ब्रिटिश हुकूमत को नाकों चने चबाने को विवश करने वाली, 1857 के प्रथम #स्वतंत्रता संग्राम की नायिका #वीरांगना #रानी_तलाश_कुंवरि जी को उनके #आत्मबलिदान_दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि !

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 #Queen_Talaash_Kunwari #आजादी_का_अमृतकाल  #02March #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व,  


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,

01 मार्च 2024

God Sent Traveler's | ऊपर वाले ने मुसाफ़िर भेजे | मुसाफ़िरों ने सराय को ठौर मान लिया । Good Thought | Quote | सुविचार

 



ऊपर वाले ने मुसाफ़िर भेजे। मुसाफ़िरों  ने सराय को ठौर मान लिया ।

ऊपर वाले ने मंच पर कठपुतलियाँ  उतारी। कठपुतलियों ने गति को अपनी ताकत माना । भूल गई कि डोर खींचते ही कभी भी खेल खत्म किया जा सकता है ।

 ऊपर वाले ने मल्लाहों को दरिया में उतारा । मल्लाह भूल गए कश्ती का लंगर किसी और के हाथ है । 


गजब ये है कि हर रोज कठपुतलियाँ डोर टूटती देख रही है , मल्लाह कश्ती डूबती देख रहे है , मुसाफ़िर सरायखाने से लोगों को जाते देख रहे मगर वे भूल जाते है कि किसी भी समय उनके खेल समाप्ति की घण्टी बज सकती है ।


हम सब एक दूसरे से हँसकर मिलते है ,बातें करते है ,पिक्स खिंचवाते है।

मगर ये बात कोई नही जान पाता है कि भीड़ में किसी के भीतर कितना अकेलापन है । किस बेमनी से कोई   कितना झूठा मुस्कुरा रहा है । ईश्वर की दी जिंदगी में दर्द, बिछोह , सपनों और रिश्तों के टूटने का दर्द जीवन के आखरी दिनों तक हमें मिलता रहेगा । 


सबके जीवन में बुरा समय आता है ...बीत भी जाता है.। नई खुशियों पर लोग फिर से धीरे धीरे मुस्काना सीखते है । जिंदगी है.. आगे बढ़ेगी ही । लंबे चले उस बुरे समय की मोबाइल की गैलरी में अपनी ही किसी पिक को देख खुद के लिए करुणा उपजेगी । पिक में अपनी वो छद्म हँसी आज भी आपको उदास कर देगी । कोई नही समझ पाया था कि मुझ पर क्या गुजर रही थी ।


कैसे मैंने काट लिए महीनों के लंबे रतजगे, 

वो ज़लज़ला काफ़ी था जान लेने की खातिर ।


ऊपर वाला जब जब अंधेरा करता है तब तब चिराग टटोलने में व्यस्त रहने वाला अवसाद में नही जाता है । चिराग हाथ ना भी लगे , तब भी ढूँढने की कोशिश में कम से कम अंधेरा समय बीत जाता है ।


कभी कभी हमारा कोई दुःख इतना निजी होता है कि हमें ढांढस देने वाला  गले भी लगाए तो उसके आलिंगन में सिर्फ बदन जाता है। हमारी कोरी रूह तो दूर कही अकेली मातम मना रही होती है । कभी कभी लगता है जीने का एक मौका और मिलता तो सही तरीके से खेलते। मगर ऊपर वाले के यहाँ रीस्टार्ट का ऑप्शन नही होता । जिंदगी को जितनी गम्भीरता से लो उतनी पीड़ा होगी। इसे तो कुछ इस तरह जियो कि उम्र एक सड़क है और सिर्फ चलना है ....दुनिया एक चित्र है और देखना है ...।


लोग इंतज़ार करते है कि एक दिन जब सब कुछ ठीक हो जाएगा तो जी लेंगे । अभी तो उम्र पड़ी है । असल में सब कुछ ठीक कभी नही होता । ख्वाहिशें पूरी होते ही चार दिन में मोल खो देती है । भीतर वही खालीपन । चाँद भी गर झोली में आ जाए तो राई का दाना हो जाएगा । लोग मिलेंगे बिछड़ेंगे , आस बनेगी टूटेगी , ख्वाब बिखरते संवरते रहेंगे ।


जीवन बहुत छोटा है ।जीवन को व्यस्थित करने की अत्यधिक चाक चौबन्ध व्यवस्था करने वालों को अंत में समझ आता है कि सफर का सबसे हसीन हिस्सा परफेक्शन में गुजर गया ।


जीवन में हर वक्त कुछ ना कुछ मिसिंग होगा ही ...। जीवन की पूर्णता को अपूर्णताओं के बीच ही तलाशना है । सांसारिक सफलता पद , पैसे , प्रतिष्ठा से घर भरने के साधन जरूर खरीद सकते है । इनसे लोग खरीदे जा सकते है ... रिश्तें नही । असल कामयाबी बुरे समय को भी संयत तरीके से गुजार देने में है .... यदि आपके पास चंद ऐसे रिश्तें है जो बदन नही रूह को गले लगाते है और अपनी नजदीकियों से पलके नम कर दे तो आपका जीवन सुंदर और सफल है । कुछ लोग आपके लिए है जो आपसे मिलने लम्बा सफर तय करके , समय निकाल कर आते है तो आप कामयाब है ।यदि अपनी अपूर्णताओं के साथ मुस्कुरा रहे है तो आप पूर्ण है ।


दौड़ता सबसे पहले परचम फहराने पहुँचा वो जहाँ अंत है  ,

तेज़ी में रहा बेखबर पीछे छूट गए कितने अनदेखे बसंत है ।

साभार: Madhu -writerat film writer's association Mumbai

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सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Leave it | छोड़ दीजिए | सुविचार | Good Thought | Quote





😊 Leave it 😊 😊 छोड़ दीजिए 😊 


एक दो बार समझाने से कोई नही समझ रहा है तो सामने वाले को समझाना

छोड़ दीजिए 


बच्चे बड़े होने पर वो खुद के निर्णय लेने लगे तो उनके पीछे लगना

छोड़ दीजिए 


गिने चुने लोगो से अपने विचार मिलते है, 

एक दो से नही जुड़े तो उन्हें

छोड़ दीजिए 


एक उम्र के बाद कोई आपको ना पूछे या कोई पीठ पीछे आपके बारे में गलत कह रहा है तो दिल पे लेना 

छोड़ दीजिए 


अपने हाथ कुछ नही, ये अनुभव आने पर भविष्य की चिंता करना

छोड़ दीजिए 


इच्छा और क्षमता में बहोत फर्क पड़ रहा है तो खुद से अपेक्षा करना

छोड़ दीजिए 


हर किसीका जीवन अलग, 

कद, रंग सब अलग है इसलिए तुलना करना

छोड़ दीजिए


बढ़ती उम्र में जीवन का आनंद लीजिए, रोज जमा खर्च की चिंता करना

छोड़ दीजिए 


अच्छा लगे तो ठीक ना लगे तो हल्के में लेकर


छोड़ दीजिए... 😇

👍👌👌👌👌


 #Leave_it,  #छोड़ दीजिए,  #सुविचार, #Good, #Thought, #Quote,




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Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...