01 मार्च 2024

Leave it | छोड़ दीजिए | सुविचार | Good Thought | Quote





😊 Leave it 😊 😊 छोड़ दीजिए 😊 


एक दो बार समझाने से कोई नही समझ रहा है तो सामने वाले को समझाना

छोड़ दीजिए 


बच्चे बड़े होने पर वो खुद के निर्णय लेने लगे तो उनके पीछे लगना

छोड़ दीजिए 


गिने चुने लोगो से अपने विचार मिलते है, 

एक दो से नही जुड़े तो उन्हें

छोड़ दीजिए 


एक उम्र के बाद कोई आपको ना पूछे या कोई पीठ पीछे आपके बारे में गलत कह रहा है तो दिल पे लेना 

छोड़ दीजिए 


अपने हाथ कुछ नही, ये अनुभव आने पर भविष्य की चिंता करना

छोड़ दीजिए 


इच्छा और क्षमता में बहोत फर्क पड़ रहा है तो खुद से अपेक्षा करना

छोड़ दीजिए 


हर किसीका जीवन अलग, 

कद, रंग सब अलग है इसलिए तुलना करना

छोड़ दीजिए


बढ़ती उम्र में जीवन का आनंद लीजिए, रोज जमा खर्च की चिंता करना

छोड़ दीजिए 


अच्छा लगे तो ठीक ना लगे तो हल्के में लेकर


छोड़ दीजिए... 😇

👍👌👌👌👌


 #Leave_it,  #छोड़ दीजिए,  #सुविचार, #Good, #Thought, #Quote,




सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,


29 फ़रवरी 2024

Illegal Construction | Good Order from the Supreme Court | अच्छा आदेश है सुप्रीम कोर्ट का | हर जगह लागू होना चाहिए | लेखक : सुभाष चन्द्र

 



Illegal construction Good Order from the Supreme Court | अच्छा आदेश है सुप्रीम कोर्ट का  |  हर जगह लागू होना चाहिए,


अच्छा आदेश है सुप्रीम कोर्ट का, 

लेकिन यह हर जगह लागू होना चाहिए,

सुप्रीम कोर्ट हर राज्य सरकार से 

समयबद्ध सीमा में अवैध निर्माण 

गिराने के आदेश दे -


सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने चेन्नई में बनाई गई मस्जिद और मदरसे को गिराने के मद्रास हाई कोर्ट के देश को बरक़रार रखते हुए 26 फरवरी को कहा कि वह निर्माण पूरी तरह अवैध था - मस्जिद व दरगाह समिति की अपील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा सार्वजनिक स्थानों पर अवैध कब्ज़ा कर बनाए गए धार्मिक स्थलों को हटाना ही उचित है जैसा हम पूर्व आदेशों में भी कह चुके हैं -


मस्जिद और दरगाह समिति ने कहा था कि वह जमीन लंबे समय से खाली पड़ी थी जिसका मतलब है कि सरकार को जनहित में उसकी जरूरत नहीं थी - पीठ ने इस पर कहा कि क्या इसका मतलब है कि आप जमीन पर कब्ज़ा कर लेंगे, जमीन सरकार की है, वह उसे प्रयोग करे या न करे, लेकिन आपको उस पर कब्ज़ा करने का कोई अधिकार नहीं है - अदालत ने बिल्डिंग हटाने के लिए 31 मई तक का समय दिया है -


कहने को यह आदेश बहुत अच्छा है लेकिन इसका पालन हर जगह होना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के हर आदेश में होना चाहिए - जमीन सरकार की खाली पड़ी भी तो भी उस पर किसी को कब्ज़ा कर उपयोग करने का अधिकार नहीं है, यह सुप्रीम कोर्ट स्वयं कह रहा है -


यह बात भी याद रखनी चाहिए कि रेलवे और सेना की लाखों एकड़ भूमि पर लोग अवैध कब्ज़ा कर बैठे हैं, झुग्गियां बसा लेते हैं लेकिन जब प्रशासन उस अवैध कब्जे से जमीन को मुक्त कराने की कोशिश करता है तो सुप्रीम कोर्ट ही विगत में ऐसे प्रयासों पर रोक लगाता रहा - यहां तक वहां बसे लोगों के पुनर्वास की पहले व्यवस्था करने के आदेश देता रहा है और इस तरह अदालत स्वयं ऐसे कब्जे को कानूनी जामा पहनाने की कोशिश करता है -


आपको याद होगा हल्द्वानी की रेलवे की भूमि को खाली कराने से सुप्रीम कोर्ट ने ही रोका था और यहां तक मुस्लिम होने का भी वास्ता देकर पहले उनके पुनर्वास की बात की थी जिससे उन्हें इतना बल मिला कि ठीक एक साल बाद उन लोगों ने पुलिस पर हमला कर करोड़ो की संपत्ति बर्बाद कर दी - ऐसा #secularism आड़े नहीं आना चाहिए -


मज़ार का मतलब होता है - “समाधि स्थल, दरगाह, किसी सूफ़ी बुज़ुर्ग की क़ब्र · कोई दर्शनीय स्थल, श्राइन, बड़ों का तीर्थ, दरगाह, आस्ताना, तीर्थ”

लेकिन यह देखा जा सकता है कि हर खाली जमीन पर मज़ारें बना दी जाती है जिनमे कोई सूफी या कोई व्यक्ति नहीं  होता - दिल्ली भर में अनेक सड़कें है जिनके बनते ही “मज़ारें” बन जाती हैं, भला सड़कें बनने के बाद कोई वहीँ कैसे मरता है जिसकी मज़ार बन जाती है - जबकि जाकिर नाइक के अनुसार इस्लाम में मज़ार बनाना वर्जित है और इसलिए ऐसे सब निर्माण अवैध हैं जिन्हे हटाने के लिए हर राज सरकार को समयबद्ध सीमा में कार्रवाई के आदेश देने चाहिए -


इलाहाबाद हाई कोर्ट परिसर में खड़ी अवैध मस्जिद को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 5 साल लगा दिए और तब मार्च, 2023 में हटाने के आदेश दिए - पता चला है वह मस्जिद अंततः अप्रैल/मई 2023 में हटा दी गई -


पटना हाई कोर्ट के नजदीक बनाए गए “वक्फ भवन” को हटाने के आदेश हाई कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने  4 -1 से  19 अगस्त, 2021 को देते हुए कहा था कि “The Structure has been constructed in utter and brazen violation of provisions of law –and it must be held to be illegal and non - est from the word go “


लेकिन इस फैसले में जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह का इस्लाम बीच में आ गया और उन्होंने 4 जजों के विरोध में मत दिया -

इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर, 2021 को रोक लगा दी और मामला बरफ में जम गया जिस पर अभी तक सुनवाई नहीं हुई है - 


इसलिए मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के अवैध निर्माण को हटाने के लिए आदेश सब जगह लागू किए जाएं, ये आदेश specific नहीं होने चाहिए -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 29/02/2024 

#Illegal_construction, #Good_Order, #Supreme_Court #Kejriwal  #judiciary #ed #cbi #delhi #sharabghotala #Rouse_Avenue_court #liquor_scam #aap  #FarmerProtest2024  #KisanAndolan2024  #SupremeCourtofIndia #Congress_Party  #political_party #India #movement #indi #gathbandhan #Farmers_Protest  #kishan #Prime Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court #Arvind_Kejriwal #Defamation_Case #top_stories#supreme_court #arvind_kejriwal #apologises #sharing #fake_video #against #bjp #dhruv_rathee_video 


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Prof. Conjeevaram Srirangachari Seshadri | Famous Mathematician | कांजिवरम श्रीरंगचारी शेषाद्रि | 29 फ़रवरी, 1932-17 जुलाई, 2020

 



Prof. Conjeevaram Srirangachari Seshadri | कांजिवरम श्रीरंगचारी शेषाद्रि | 29 फ़रवरी, 1932-17 जुलाई, 2020 

🇮🇳 #कांजिवरम #श्रीरंगचारी #शेषाद्रि (जन्म- 29 फ़रवरी, 1932; मृत्यु- 17 जुलाई, 2020, #चेन्नई) भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ थे। उन्हें सन 2009 में भारत सरकार द्वारा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था। सी. एस. शेषाद्रि स्वातंत्र्योत्तर काल में भारतीय गणित के नेताओं में से एक थे। वह संगीत और कर्नाटक संगीत के एक कुशल गायक भी थे, जो बड़ी बारीकियों में सक्षम थे।

🇮🇳 #भारतीय #गणितज्ञ सी. एस. #शेषाद्रि का जन्म 29 फ़रवरी, 1932 को हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में स्नातक छात्रों के पहले बैच के रूप में की थी। शानदार सहयोगियों के साथ-साथ एम.एस. नरसिम्हन, एस. रामकरण और एम.एस. रघुनाथन, उन्होंने टीआईएफआर में स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स को दुनिया में गणित अनुसंधान के प्रमुख केंद्रों के रूप में स्थापित करने में मदद की।

🇮🇳 वह 1985 में गणितीय विज्ञान संस्थान में चेन्नई चले गए। 1989 में, उन्हें एसपीआईसी साइंस फाउंडेशन के हिस्से के रूप में स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स शुरू करने का मौका मिला, जो चेन्नई गणित संस्थान में विकसित हुआ है।

🇮🇳 बीजगणितीय ज्यामिति क्षेत्र के नेता सी. एस. शेषाद्रि ने ऐसी सफलताओं को बनाया जो इस गहन अनुशासन की कई शाखाओं के आधार पर हैं। उनमें पूरे या पर्याप्त भाग में खोजे जा सकने वाले विषयों में बहुपद के छल्ले, ज्यामितीय अपरिवर्तनीय सिद्धांत, प्रतिरूप सिद्धांत, वक्रों पर वेक्टर बंडलों, नरसिम्हन-शेषाद्रि प्रमेय, परवलयिक बंडल, मानक मोनोमियल सिद्धांत और शुबर्ट किस्मों के ज्यामिति पर अनुमानित मॉड्यूल शामिल हैं। वह अंत तक सूक्ष्म गणित में लगे रहे, इसका अधिकांश हिस्सा युवा सहकर्मी वी. बालाजी के साथ लंबे समय से चल रहा था।

🇮🇳 सीएमआई भारत में एक अनूठी संस्था है जो अनुसंधान के साथ स्नातक शिक्षा को एकीकृत करने का प्रयास करती है। शेषाद्रि की दृष्टि में यह वृद्धि हुई कि उच्च शिक्षा केवल विषय में परास्नातक की उपस्थिति के बीच सक्रिय अनुसंधान के वातावरण में हो सकती है। अपने करीबी दोस्तों और शुभचिंतकों से भी असाधारण विरोध और संदेह के कारण यह एक बहादुर उद्यम था। शिक्षा के एक केंद्र का निर्माण करना उनका सपना था जो दुनिया के महान अनुसंधान विश्वविद्यालयों के साथ खुद की तुलना कर सकता है। यह भारत में एक अद्वितीय शैक्षणिक माहौल में सीखने के लिए प्रतिभाशाली छात्रों के लिए अवसरों को खोलता है और सक्रिय शोधकर्ताओं को इस प्रयोग में भाग लेने की संभावनाएं देता है, जो यह मानता है कि भारत में गणित के विकास पर हमेशा के लिए प्रभाव छोड़ देगा।

🇮🇳 यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सीएमआई अब गणित और सैद्धांतिक कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक अध्ययन के लिए दुनिया के सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में से एक के रूप में आँका गया है।

🇮🇳 गणित में सी. एस. शेषाद्रि की उपलब्धियों को कई सम्मानों के माध्यम से मान्यता दी गई थी। उन्हें 1988 में रॉयल सोसाइटी का फेलो और 2010 में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, यू.एस. का एक विदेशी एसोसिएट चुना गया था। उन्हें 2009 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था।

🇮🇳 सी. एस. शेषाद्रि का निधन 17 जुलाई, 2020 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार और #पद्मभूषण से सम्मानित; सुप्रसिद्ध भारतीय #गणितज्ञ #कांजिवरम_श्रीरंगचारी_शेषाद्रि जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 #आजादी_का_अमृतकाल  #29February #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व,  #Prof_Conjeevaram_Srirangachari_Seshadri b#Kanjivaram_Srirangachari_Seshadri, #Famous_Mathematician  



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28 फ़रवरी 2024

Jagadguru Shri Jayendra Saraswati Shankaracharya | जगद्गुरु श्री जयेन्द्र सरस्वती शंकराचार्य | 18 July, 1935-28 February, 2018


 

🇮🇳 #Jagadguru Shri #Jayendra #Saraswati #Shankaracharya #जगद्गुरु श्री #जयेन्द्र #सरस्वती #शंकराचार्य (18 July, 1935-28 February, 2018)

जगद्गुरु श्री जयेन्द्र सरस्वती शंकराचार्य (जन्म- 18 जुलाई, 1935; मृत्यु- 28 फ़रवरी, 2018) कामकोटि पीठ, #कांचीपुरम, तमिलनाडु के शंकराचार्य थे। स्वामी जी ने रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ा और #मठ की गतिवधियों का विस्तार समाज कल्याण, ख़ासकर दलितों के शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कार्यों तक किया। उन्हें 22 मार्च, 1954 को चंद्रशेखरानंद सरस्वती स्वामीगल ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, जिसके बाद वह 69वें मठ प्रमुख बने थे। जयेन्द्र सरस्वती ने अयोध्या विवाद के हल के लिए भी पहल की थी। इसके लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी काफी प्रशंसा की थी।

🇮🇳 जयेन्द्र सरस्वती ने हिंदुओं के प्रमुख केंद्र कामकोटि मठ को और ताकतवर बनाया। उनके समय में यहाँ एनआरआई और राजनीतिक शख्सियतों की गतिविधियां बढ़ीं। कांची मठ कई स्कूल और अस्पताल भी चलाता है। इसके साथ ही प्रसिद्ध शंकर नेत्रालय मठ की तरफ से चलाया जाता है।

🇮🇳 परिचय--

जयेन्द्र सरवस्ती का जन्म 18 जुलाई, 1935 को #तंजावुर, #तमिलनाडु में हुआ था। उन्हें पहले 'सुब्रमण्यम महादेव अय्यर' के नाम से जाना जाता था, क्योंकि उनके पिता का नाम #महादेव_अय्यर था। पिता ने उन्हें नौ वर्ष की अवस्था में वेदों के अध्ययन के लिए कांची कामकोटि मठ में भेज दिया। वहाँ उन्होंने छह वर्ष तक ऋग्वेद व अन्य ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया। मठ के 68वें #आचार्य_चंद्रशेखरानंद_सरस्वती ने उनकी प्रतिभा देखकर उन्हें उपनिषद पढ़ने को कहा। सम्भवतः वे सुब्रह्मण्यम में अपने भावी उत्तराधिकारी को देख रहे थे, जो बाद में आगे चलकर सही भी साबित हुआ।

🇮🇳 संन्यास--

आगे चलकर जयेन्द्र सरवस्ती ने अपने पिता के साथ अनेक तीर्थों की यात्रा की। वे भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन के लिए तिरुमला गये और वहाँ उन्होंने सिर मुण्डवा लिया। 22 मार्च, 1954 उनके जीवन का महत्वपूर्ण दिन था, जब उन्होंने संन्यास ग्रहण किया। सर्वतीर्थ तालाब में कमर तक जल में खड़े होकर उन्होंने प्रश्नोच्चारण मन्त्र का जाप किया और यज्ञोपवीत उतार कर स्वयं को सांसारिक जीवन से अलग कर लिया। इसके बाद वे अपने गुरु स्वामी चन्द्रशेखरानंद सरस्वती द्वारा प्रदत्त भगवा वस्त्र पहन कर तालाब से बाहर आये। इस देशाटन से वह भारत में धर्म पर वार कर रही कुसंस्कृतियों को भी जान और पहिचान चुके थे। इसके बाद 15 वर्ष तक उन्होंने वेद, व्याकरण मीमांसा तथा न्यायशास्त्र का गहन अध्ययन किया। उनकी प्रखर साधना देखकर कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरानंद सरस्वती ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर उनका नाम जयेन्द्र सरस्वती रखा। अब उनका अधिकांश समय पूजा-पाठ में बीतने लगा।

🇮🇳 शंकराचार्य--

जयेन्द्र सरस्वती 19 साल की उम्र में शंकराचार्य बने थे। उन्होंने 65 साल तक कांची कामकोटि की गद्दी संभाली। 22 मार्च 1954 को चंद्रशेखरानंद सरस्वती के बाद उन्हें 69वां शंकराचार्य बनाया गया था। कांची पीठ हिंदू धर्म का अनुसरण करने वालों के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह तमिलनाडु राज्य में कांचीपुरम नगर में स्थित है। स्वामी जी ने रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ा और मठ की गतिवधियों का विस्तार समाज कल्याण, ख़ासकर दलितों के शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कार्यों तक किया। उन्हें 22 मार्च 1954 को चंद्रशेखरानंद सरस्वती स्वामीगल ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, जिसके बाद वह 69वें मठप्रमुख बने थे।

🇮🇳 उन्होंने मठ को एक नई दिशा दी। पहले मठ सिर्फ आध्यात्मिक कार्यों तक सीमित होता था। उन्होंने धार्मिक संस्थानों को सामाजिक कार्यों से जोड़ा। यही कारण है कि वह देशभर में लोकप्रिय हुए। जयेन्द्र सरस्वती का आंदोलन समाज के सबसे निचले स्तर पर खड़े लोगों को मदद पहुंचाने के लिए था। पहले मठ कांचीपुरम और राज्य के भीतर तक सीमित था। वह इसे उत्तर-पूर्वी राज्यों तक ले गए। वहां उन्होंने स्कूल और अस्पताल शुरू किए। उन्होंने मठ को समाज से जोड़ा, सार्वजनिक मामलों में रुचि ली और दूसरे धर्मों के नेताओं से भी अच्छे संबंध स्थापित किए।

🇮🇳 #अयोध्या विवाद हल हेतु प्रयासरत--

स्वामी जयेन्द्र सरस्वती अयोध्या विवाद को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे। एक समय वह अयोध्या विवाद के हल के लिए काफी सक्रिय थे। भूतपूर्व प्रधानमंत्री #अटल #बिहारी#वाजपेयी ने भी अयोध्या मसले के समाधान के लिए शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती की सराहना की थी। जयेन्द्र सरस्वती ने 2010 में ये दावा किया था कि वाजपेयी सरकार अयोध्या विवाद के समाधान के करीब पहुंच गई थी। वह संसद में कानून बनाना चाहती थी।

🇮🇳 मठ स्थापना--

आदि शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में मठ स्थापित किए थे-

🇮🇳 शृंगेरी मठ--

शृंगेरी शारदा पीठ कर्नाटक के चिकमंगलुर में है। यहां दीक्षा लेने वाले संयासियों के नाम के बाद 'सरस्वती', 'भारती', 'पुरी' लगाया जाता है।

🇮🇳 गोवर्धन मठ--

गोवर्धन मठ ओडिशा के पुरी में है। इसका संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से है। इसमें बिहार से ओडिशा व अरुणाचल प्रदेश तक का भाग आता है।

🇮🇳 शारदा मठ--

द्वारका मठ को शारदा मठ कहा जाता है। यह गुजरात में द्वारकाधाम में है। यहां दीक्षा लेने वाले के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' लिखा जाता है।

🇮🇳 ज्योतिर्मठ--

ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रीनाथ में है। यहां दीक्षा लेने वाले के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' और 'सागर' का विशेषण लगाया जाता है।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 कामकोटि पीठ, कांचीपुरम, तमिलनाडु के #शंकराचार्य #जगद्गुरु_श्री_जयेन्द्र_सरस्वती शंकराचार्य जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳🕉️🚩🔱💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 #आजादी_का_अमृतकाल  #28February #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व, #Jagadguru #Shri_Jayendra_Saraswati #Shankaracharya


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Veer Surendra Sai | क्राँतिकारी वीर सुरेन्द्र साय | जन्म- 23 जनवरी, 1809; मृत्यु- 28 फ़रवरी, 1884

 


🇮🇳 Veer Surendra Sai (born- 23 January, 1809; died- 28 February, 1884) क्राँतिकारी वीर सुरेन्द्र साय (साई) (जन्म- 23 जनवरी, 1809; मृत्यु- 28 फ़रवरी, 1884) भारतीय क्रांतिकारी थे। वह 16वीं शताब्दी में चौहान वंश के संबलपुर के महाराजा मधुकर साई के वंशज थे। वीर सुरेंद्र साई ने 1857 के विद्रोह से पहले ही विदेशी शासन के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी थी और विद्रोह के थम जाने के बाद भी उन्होंने इसे जारी रखा। उन्होंने संबलपुर में लगभग 1500 आदमियों की एक लड़ाकू सेना तैयार की थी। उन्होंने 1857 से 1862 तक अंग्रेज़ों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध जारी रखा। अंग्रेज़ों ने उन्‍हें पकड़ने के लिए हर हथकंडा अपनाया, किन्तु उन्‍हें रोक नहीं पाए।

🇮🇳 वीर सुरेंद्र साई का जन्म ग्राम #खिण्डा (#सम्बलपुर, #उड़ीसा) के चौहान राजवंश में 23 जनवरी, 1809 को हुआ था। इनका गाँव सम्बलपुर से 30 कि.मी. की दूरी पर था। युवावस्था में उनका विवाह हटीबाड़ी के जमींदार की पुत्री से हुआ, जो उस समय गंगापुर राज्य के प्रमुख थे। आगे चलकर सुरेन्द्र साई के घर में एक पुत्र मित्रभानु और एक पुत्री ने जन्म लिया।

🇮🇳 सन 1827 में सम्बलपुर के राजा का निःसन्तान अवस्था में देहान्त हो गया। राजवंश का होने के कारण राजगद्दी पर अब वीर सुरेंद्र साई का हक था; पर अंग्रेज़ जानते थे कि सुरेन्द्र साई उनका हस्तक बन कर नहीं रहेगा। इसलिए उन्होंने राजा की पत्नी #मोहन_कुमारी को ही राज्य का प्रशासक बना दिया। मोहन कुमारी बहुत सरल महिला थीं। उन्हें राजकाज की कुछ जानकारी नहीं थी। अतः अंग्रेज़ उन्हें कठपुतली की तरह अपनी उँगलियों पर नचाने लगे। लेकिन अंग्रेज़ों की इस धूर्तता से उस राज्य के सब जमींदार नाराज हो गये। उन्होंने मिलकर इसका सशस्त्र विरोध करने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने वीर सुरेंद्र साई को नेता बनाया। धीरे-धीरे इनके संघर्ष एवं प्रतिरोध की गति बढ़ने लगी। इससे अंग्रेज अधिकारी परेशान हो गये।

🇮🇳 सन 1837 में वीर सुरेंद्र साई, #उदन्त_साय, #बलराम_सिंह तथा लखनपुर के जमींदार #बलभद्र_देव मिलकर डेब्रीगढ़ में कुछ विचार-विमर्श कर रहे थे कि अंग्रेज़ों ने वहाँ अचानक धावा बोल दिया। उन्होंने बलभद्र देव की वहीं निर्ममता से हत्या कर दी; पर शेष तीनों लोग बचने में सफल हो गये। इस हमले के बाद भी इनकी गतिविधियाँ चलती रहीं। अंग्रेज़ भी इनके पीछे लगे रहे। उन्होंने कुछ जासूस भी इनको पकड़ने के लिए लगा रखे थे। ऐसे ही देशद्रोहियों की सूचना पर 1840 में वीर सुरेंद्र साई, उदन्त साय तथा बलराम सिंह अंग्रेज़ों की गिरफ्त में आ गये। तीनों को आजन्म कारावास का दण्ड देकर #हजारीबाग जेल में डाल दिया गया। ये तीनों परस्पर रिश्तेदार भी थे।

🇮🇳 वीर सुरेंद्र साई के साथी शान्त नहीं बैठे। 30 जुलाई, 1857 को सैकड़ों क्रान्तिवीरों ने हजारीबाग जेल पर धावा बोला और वीर सुरेंद्र साई को 32 साथियों सहित छुड़ा कर ले गये। सुरेन्द्र साई ने सम्बलपुर पहुँचकर फिर से अपने राज्य को अंग्रेज़ों से मुक्त कराने के लिए सशस्त्र संग्राम शुरू कर दिया। अंग्रेज़ पुलिस और सुरेन्द्र साई के सैनिकों में परस्पर झड़प होती ही रहती थी। कभी एक का पलड़ा भारी रहता, तो कभी दूसरे का; पर सुरेन्द्र साई और उनके साथियों ने अंग्रेज़ों को चैन की नींद नहीं सोने दिया।

🇮🇳 23 जनवरी, 1864 को जब सुरेंद्र साई अपने परिवार के साथ सो रहे थे, तब अंग्रेज़ पुलिस ने छापा मारकर उन्हें पकड़ लिया। रात में ही उन्हें सपरिवार रायपुर ले जाया गया और फिर अगले दिन नागपुर की असीरगढ़ जेल में बन्द कर दिया। जेल में भरपूर शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के बाद भी सुरेंद्र साई ने विदेशी शासन के आगे झुकना स्वीकार नहीं किया। अपने जीवन के 37 साल जेल में बिताने वाले वीर सुरेंद्र साई ने 28 फरवरी, 1884 को #असीरगढ़ किले की जेल में ही अन्तिम साँस ली।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 1857 की क्रांति से पहले ही विदेशी शासन के खिलाफ लड़ाई शुरू करने वाले और अपने जीवन के 37 साल जेल में बिताने वाले अमर क्रांतिकारी #वीर_सुरेंद्र_साई जी को उनके #बलिदान_दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 #आजादी_का_अमृतकाल  #28February #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व, #Veer_Surendra_Sai  


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Rana Udai Singh | मेवाड़ के राणा साँगा के पुत्र और महाराणा प्रताप के पिता राणा उदयसिंह जी | Born: August 4, 1522 AD - Death: February 28, 1572 AD


 

🇮🇳 राणा उदयसिंह (जन्म: 4 अगस्त, 1522 ई. - मृत्यु: 28 फ़रवरी, 1572 ई.) मेवाड़ के राणा साँगा के पुत्र और राणा प्रताप के पिता थे। इनका जन्म इनके पिता के मरने के बाद हुआ था और तभी गुजरात के बहादुरशाह ने चित्तौड़ नष्ट कर दिया था। इनकी माता कर्णवती द्वारा हुमायूँ को राखीबंद भाई बनाने की बात इतिहास प्रसिद्ध है। मेवाड़ की ख्यातों में इनकी रक्षा की अनेक अलौकिक कहानियाँ कही गई हैं। उदयसिंह को कर्त्तव्यपरायण धाय पन्ना के साथ बलबीर से रक्षा के लिए जगह-जगह शरण लेनी पड़ी थी। उदयसिंह 1537 ई. में मेवाड़ के राणा हुए और कुछ ही दिनों के बाद अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर चढ़ाई की। हज़ारों मेवाड़ियों की मृत्यु के बाद जब लगा कि चित्तौड़गढ़ अब न बचेगा तब जयमल और पत्ता आदि वीरा के हाथ में उसे छोड़ उदयसिंह अरावली के घने जंगलों में चले गए। वहाँ उन्होंने नदी की बाढ़ रोक उदयसागर नामक सरोवर का निर्माण किया था। वहीं उदयसिंह ने अपनी नई राजधानी उदयपुर बसाई। चित्तौड़ के विध्वंस के चार वर्ष बाद उदयसिंह का देहांत हो गया।

🇮🇳 राणा संग्राम सिंह उपनाम राणा सांगा एक बहुत ही वीर शासक थे। परिस्थितियों ने उनकी मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र कुंवर उदय सिंह को वीरमाता पन्ना धाय के संरक्षण में रहने के लिए विवश कर दिया। माता पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर ‘मेवाड़ के अभिशाप’ बने बनवीर से मेवाड़ के भविष्य के राणा उदय सिंह की प्राण रक्षा की और उसे सुरक्षित रूप में किले से निकालकर बाहर ले गयी। तब चित्तौड़ से काफ़ी दूर राणा उदय सिंह का पालन पोषण आशाशाह नाम के एक वैश्य के घर में हुआ। इतिहासकारों ने बताया है कि माता पन्नाधाय के बलिदान की देर सवेर जब चित्तौड़ के राजदरबार के सरदारों को पता चली तो उन्होंने बनवीर जैसे दुष्ट शासक से सत्ता छीनकर राणा सांगा के पुत्र राणा उदय सिंह को सौंपने की रणनीति बनानी आरंभ कर दी। उसी रणनीति के अंतर्गत राणा उदय सिंह को चित्तौड़ लाया गया। राणा के आगमन की सूचना जैसे ही बनवीर को मिली तो वह राजदरबार से निकलकर सदा के लिए भाग गया। इससे राणा उदय सिंह ने निष्कंटक राज्य करना आरंभ किया। यह घटना 1542 की है। यही वर्ष अकबर का जन्म का वर्ष भी है।

🇮🇳 राणा उदय सिंह की मृत्यु 1572 में हुई थी। उस समय उनकी अवस्था 42 वर्ष थी और उनकी सात रानियों से उन्हें 24 लड़के थे। उनकी सबसे छोटी रानी का लड़का जगमल था, जिससे उन्हें असीम अनुराग था। मृत्यु के समय राणा उदय सिंह ने अपने इसी पुत्र को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था। लेकिन राज्य दरबार के अधिकांश सरदार लोग यह नहीं चाहते थे कि राणा उदय सिंह का उत्तराधिकारी जगमल जैसा अयोग्य राजकुमार बने। राणा उदय सिंह के काल में पहली बार सन 1566 में चढ़ाई की थी, जिसमें वह असफल रहा। इसके बाद दूसरी चढ़ाई सन 1567 में की गयी थी और वह इस किले पर अधिकार करने में इस बार सफल भी हो गया था। इसलिए राणा उदय सिंह की मृत्यु के समय उनके उत्तराधिकारी की अनिवार्य योग्यता चित्तौड़गढ़ को वापस लेने और अकबर जैसे शासक से युद्घ करने की चुनौती को स्वीकार करना था। राणा उदय सिंह के पुत्र जगमल में ऐसी योग्यता नहीं थी इसलिए राज्य दरबारियों ने उसे अपना राजा मानने से इंकार कर दिया।

🇮🇳 1567 में जब चित्तौड़गढ़ को लेकर अकबर ने इस किले का दूसरी बार घेराव किया तो यहाँ राणा उदय सिंह की सूझबूझ काम आयी। अकबर की पहली चढ़ाई को राणा ने असफल कर दिया था। पर जब दूसरी बार चढ़ाई की गयी तो लगभग छह माह के इस घेरे में किले के भीतर के कुओं तक में पानी समाप्त होने लगा। किले के भीतर के लोगों की और सेना की स्थिति बड़ी ही दयनीय होने लगी। तब किले के रक्षकदल सेना के उच्च पदाधिकारियों और राज्य दरबारियों ने मिलकर राणा उदय सिंह से निवेदन किया कि राणा संग्राम सिंह के उत्तराधिकारी के रूप में आप ही हमारे पास हैं, इसलिए आपकी प्राण रक्षा इस समय आवश्यक है। अत: आप को किले से सुरक्षित निकालकर हम लोग शत्रु सेना पर अंतिम बलिदान के लिए निकल पड़ें। तब राणा उदय सिंह ने सारे राजकोष को सावधानी से निकाला और उसे साथ लेकर पीछे से अपने कुछ विश्वास आरक्षकों के साथ किले को छोड़कर निकल गये। अगले दिन अकबर की सेना के साथ भयंकर युद्घ करते हुए वीर राजपूतों ने अपना अंतिम बलिदान दिया। जब अनेकों वीरों की छाती पर पैर रखता हुआ अकबर किले में घुसा तो उसे शीघ्र ही पता चल गया कि वह युद्घ तो जीत गया है, लेकिन कूटनीति में हार गया है, किला उसका हो गया है परंतु किले का कोष राणा उदय सिंह लेकर चंपत हो गये हैं। अकबर झुंझलाकर रह गया। राणा उदय सिंह ने जिस प्रकार किले के बीजक को बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की वह उनकी सूझबूझ और बहादुरी का ही प्रमाण है।

🇮🇳 फलस्वरूप राणा उदय सिंह की अंतिम क्रिया करने के पश्चात् राज्य दरबारियों ने राणा जगमल को राजगद्दी से उतारकर महाराणा प्रताप को उसके स्थान पर बैठा दिया। इस प्रकार एक मौन क्रांति हुई और मेवाड़ का शासक राणा उदय सिंह की इच्छा से न बनकर दरबारियों की इच्छा से महाराणा प्रताप बने। इस घटना को इसी रूप में अधिकांश इतिहासकारों ने उल्लेखित किया है। इसी घटना से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि महाराणा प्रताप और उनके पिता राणा उदय सिंह के बीच के संबंध अधिक सौहार्दपूर्ण नहीं थे। महाराणा प्रताप ने जब अपने पिता राणा उदय सिंह के द्वारा अपने छोटे भाई जगमल को अपना उत्तराधिकारी बनाते देखा तो कहा जाता है कि उस समय उन्होंने संन्यास लेने का मन बना लिया था। लेकिन राज्यदरबारियों की कृपा से उन्हें सत्ता मिल गयी और वह मेवाड़ाधिपति कहलाए। #महाराणा_प्रताप मेवाड़ के अधिपति बन गये तो उनके मानस को समझकर कई कवियों और लेखकों ने महाराणा संग्राम सिंह और महाराणा प्रताप के बीच खड़े राणा उदय सिंह की उपेक्षा करनी आरंभ कर दी। जिससे राणा उदय सिंह के साथ कई प्रकार के आरोप मढ़ दिये गये। जिससे इतिहास में उन्हें एक विलासी और कायर शासक के रूप में निरूपित किया गया है।

साभार: bharatdiscovery.org

मेवाड़ के राणा साँगा के पुत्र और महाराणा प्रताप के पिता #राणा_उदयसिंह जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 #आजादी_का_अमृतकाल  #28February #देशभक्त #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व, #Rana_Udai_Singh  #महाराणा_प्रताप

27 फ़रवरी 2024

Arvind Kejriwal Defamation Case | केजरीवाल को माफ़ी न दे, सुप्रीम कोर्ट | सुप्रीम कोर्ट में अरविंद केजरीवाल ने माँगी माफी | लेखक : सुभाष चन्द्र

 




किसी भी कीमत पर केजरीवाल को माफ़ी न दे -सुप्रीम कोर्ट ने माफी नामे पर थोड़ा गलत रुख अपनाया - सुप्रीम कोर्ट में माफ़ी के कोई मायने नहीं हैं -

#केजरीवाल ने #ध्रुव_राठी के ट्वीट को #Retweet करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में माफ़ी मांगते हुए कहा है कि उनसे Retweet करने में गलती हुई है - इस पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने शिकायतकर्ता #विकास #सांस्कृत्यान के वकील से पूछा कि क्या वो #मुख्यमंत्री के माफ़ी मांगने और गलती मान लेने से केस बंद करने को सहमत हैं -

विकास के वकील ने कहा कि वे इस विषय में अपने Client से पूछ कर ही कुछ कह सकते हैं - केजरीवाल का वकील अभिषेक मनु सिंघवी तड़प रहा था कि आगामी चुनाव को देख कर लोग ट्रायल में जल्दी  कर रहे हैं - अदालत ने ट्रायल कोर्ट को 11 मार्च तक कोई कार्रवाई करने से मना कर दिया -

आज वैसे केजरीवाल का वकील सिंघवी राज्य सभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश में पिट गया है 

अब सवाल उठता है कि केजरीवाल ने दिल्ली हाई कोर्ट के 5 फरवरी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में  चुनौती दी थी क्योंकि हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के समन को ख़ारिज करने से मना कर दिया था - जो माफ़ी केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट में मांगी वह वो दिल्ली हाई कोर्ट में भी मांग सकता था लेकिन वहां तो उसने पैरवी करते हुए ट्रायल कोर्ट पर दोषारोपण किया था कि ट्रायल कोर्ट ने गलती की है -

फिर, यदि माफ़ी मांगनी थी तो केजरीवाल को विकास सांस्कृत्यान से मांगनी चाहिए थी - सुप्रीम कोर्ट से माफ़ी मांगने का कोई औचित्य ही नहीं है और सुप्रीम कोर्ट को शिकायतकर्ता से सवाल करने की बजाय  केजरीवाल से पूछना चाहिए था कि यह माफ़ी उसने शिकायतकर्ता से क्यों नहीं मांगी और यह माफीनामा दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल क्यों नहीं किया -

ये ....... केजरीवाल की गर्दन जब फंसने लगती है तब ही ये माफ़ी-कार्ड चलता है -  ऐसी माफ़ी यह पहले स्वर्गीय #अरुण_जेटली, #नितिन_गडकरी, #कपिल_सिब्बल, #अकाली #नेता #बिक्रम_सिंह_मजीठिया और भाजपा नेता #अवतार #सिंह #भड़ाना से भी मांग कर अपने विरुद्ध आपराधिक #मानहानि #केस वापस करवा चुका है मगर फिर भी बाज़ नहीं आता - 

#प्रधानमंत्री #नरेंद्र #मोदी के खिलाफ को अपमानजनक शब्दों की बौछार लगा दी है है इस .......ने और अभी भी उनकी डिग्री को लेकर गुजरात में लड़ रहा है लेकिन जिस दिन इसे लगेगा कि लपेटे में आ जाएगा और सजा हो सकती है, उस दिन वहां भी माफ़ी मांगने में गुरेज नहीं करेगा -

इसलिए अब केजरीवाल ने माफ़ी मांग ली है तो गलती तो स्वीकार कर ही ली और इसलिए शिकायतकर्ता को किसी कीमत पर इसे माफ़ी नहीं देनी चाहिए जिसके लिए यह विकास को मोटी रकम भी देने के लिए यह आगे आ सकता है - बस विकास अपना तंत्र #Active रखे और जो भी कुछ #offer मिले उसकी #recording कर पूरा केस पुख्ता कर ले - 

#भाजपा पर #केजरीवाल ने अपने विधायकों को 25 करोड़ में खरीदने का आरोप लगाया था और जब पुलिस ने सबूत मांगे तो सिट्टी पिट्टी गुल हो गई - लिहाजा इस केस को #Logical End तक ले जाना चाहिए और सजा होने देनी चाहिए, माफ़ी देने की कोई जरूरत नहीं है -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 27/02/2024 

#Kejriwal  #judiciary #ed #cbi #delhi #sharabghotala #Rouse_Avenue_court #liquor_scam #aap  #FarmerProtest2024  #KisanAndolan2024  #SupremeCourtofIndia #Congress_Party  #political_party #India #movement #indi #gathbandhan #Farmers_Protest  #kishan #Prime Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court #Arvind_Kejriwal #Defamation_Case #top_stories#supreme_court #arvind_kejriwal #apologises #sharing #fake_video #against #bjp #dhruv_rathee_video 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...