13 फ़रवरी 2024

Sarojini Naidu | स्वतंत्रता सेनानी, कवयित्री, देश की पहली महिला गवर्नर, केसर-ए-हिन्द श्रीमती सरोजिनी नायडू

 




#बहुमुखी_प्रतिभा 

🇮🇳 स्वतंत्रता सेनानी, कवयित्री, देश की पहली महिला गवर्नर, केसर-ए-हिन्द श्रीमती सरोजिनी नायडू उन महिलाओं में से हैं, जिन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए कठिन संघर्ष किया। उन्होंने कांग्रेस के वर्ष 1925 मे आयोजित कानपुर अधिवेशन की अध्यक्षता करके ऐसा करने वाली राष्ट्रीय स्तर की चंद महिला नेताओं में अपना नाम शामिल करवाने का सौभाग्य प्राप्त किया। राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ का प्रथम बार सस्वर गायन भी कांग्रेस के बाद के अधिवेशन में उन्होंने ही किया था। इसीलिए उनको देश के #राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा 'भारत कोकिला' के सम्मान से नवाजा गया था।

#Sarojini_Naidu (13 February 1879 – 2 March 1949) was an #Indian_political activist and poet who served as the first #Governor of United Provinces, after India's independence. She played an important role in the #Indian #independence #movement against the #British_Raj.

🇮🇳 सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 में #हैदराबाद के एक वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री पिता #अघोरनाथ_चट्टोपध्याय और बंगाली भाषा की कवयित्री माता #वरदा_सुंदरी के घर हुआ था। सरोजिनी नायडू को काव्य लेखन का हुनर विरासत में मिला था। वे अपने आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। उनके एक भाई #विरेंद्रनाथ क्रांतिकारी थे और एक भाई #हरिंद्रनाथ कवि, कथाकार और कलाकार थे। होनहार छात्रा होने के साथ ही वे उर्दू, तेलगू, इंग्लिश, बांग्ला और फारसी भाषाओं में भी दक्ष थीं। उन्होंने #बचपन में ही कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं। उन्होंने 12 साल की उम्र में 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ पास कर ली थीं और केवल 13 वर्ष की आयु में 1300 पदों की ‘लेडी ऑफ दी लेक’ नामक लंबी कविता और लगभग 2000 पंक्तियों का एक विस्तृत नाटक लिखकर अंग्रेज़ी भाषा पर अपना अधिकार सिद्धकर अपने कवयित्री होने का सार्वजनिक ऐलान कर दिया था।

🇮🇳 उनके वैज्ञानिक पिता चाहते थे कि वो गणितज्ञ या वैज्ञानिक बनें, पर उनकी रुचि कविता में थीं। उनकी कविता से हैदराबाद के निजाम बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने सरोजिनी नायडू को विदेश में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति दी। 1895 में 16 साल की उम्र में हैदराबाद के निजाम की ओर से छात्रवृत्ति प्राप्त कर वे पढ़ने के लिए पहले लंदन के किंग्स कॉलेज और बाद में ग्रिटन कॉलेज कैम्ब्रिज गईं। वहां वे उस दौर के प्रतिष्ठित कवि अर्थर साइमन और एडमंड गॉस से मिलीं। एडमंड गॉस ने नायडू को भारत के पर्वतों, नदियों, मंदिरों और सामाजिक परिवेश को अपनी कविता में समाहित करने की प्रेरणा दी। नायडू की शादी 19 साल की उम्र में #डॉ_एम_गोविंदराजलु_नायडू से हुईं तथा वे लगभग बीस वर्ष तक कविताएं और लेखन कार्य करती रहीं और इस समय में उनके तीन कविता-संग्रह प्रकाशित हुए। उनके कविता संग्रह ‘बर्ड ऑफ़ टाइम’ और ‘ब्रोकन विंग’ ने उन्हें एक प्रसिद्ध कवयित्री बनवा दिया। सरोजिनी नायडू को भारतीय और अंग्रेज़ी साहित्य जगत की स्थापित कवयित्री माना जाने लगा था किंतु वह स्वयं को कवि नहीं मानती थीं। उनका प्रथम काव्य संग्रह ‘द गोल्डन थ्रेसहोल्ड’ 1905 में प्रकाशित हुआ जो काफी लोकप्रिय रहा।

🇮🇳 देश की राजनीति में कदम रखने से पहले सरोजिनी नायडू दक्षिण अफ्रीका में #गाँधी जी के साथ काम कर चुकी थीं। गाँधी जी वहाँ की जातीय सरकार के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे और सरोजिनी नायडू ने स्वयंसेवक के रूप में उन्हें सहयोग दिया था। इसी तरह 1930 के प्रसिद्ध #नमक_सत्याग्रह में सरोजिनी नायडू गॉंधी जी के साथ चलने वाले स्वयंसेवकों में से एक थीं। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि वे गाँधीजी से पहली बार भारत में नहीं बल्कि ब्रिटेन में मिली थीं। ये 1914 की बात है। गाँधी जी अपने दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह के चलते प्रसिद्ध हो चुके थे। सरोजिनी नायडू उस समय इंग्लैंड में थीं। जब उन्होंने सुना कि गॉंधी जी भी इंग्लैंड में हैं, तब वो उनसे मिलने गईं। गाँधी जी को देखकर चौंकीं लेकिन प्रभावित भी हुईं, उन्होंने देखा कि गाँधी जी जमीन पर कंबल बिछाकर बैठे हुए हैं और उनके सामने टमाटर और मूँगफली का भोजन परोसा हुआ है। सरोजिनी नायडू गाँधी की प्रशंसा सुन चुकी थीं, पर उन्हें कभी देखा नहीं था। जैसा कि वो खुद वर्णन करती हैं, ‘कम कपड़ों में गंजे सिर और अजीब हुलिये वाला व्यक्ति और वो भी जमीन पर बैठकर भोजन करता हुआ।’

🇮🇳 गाँधी जी अपने पत्रों में नायडू को कभी-कभी ‘डियर बुलबुल’, ‘डियर मीराबाई’ तो यहाँ तक कि कभी मजाक में ‘अम्माजान’ और ‘मदर’ भी लिखते थे। मजाक के इसी अंदाज में सरोजिनी भी उन्हें कभी ‘जुलाहा’,‘लिटिल मैन’ तो कभी ‘मिकी माउस’ संबोधित करती थीं। वैसे जब देश में आजादी के साथ भड़की हिंसा को शांत कराने का प्रयत्न महात्मा गाँधी कर रहे थे, उस वक्त सरोजिनी नायडू ने उन्हें ‘शांति का दूत’ कहा था और हिंसा रुकवाने की अपील की थी। नारी-मुक्ति की समर्थक सरोजिनी नायडू का यह मानना था कि #भारतीय नारी कभी भी कृपा की पात्र नहीं थी, वह सदैव से समानता की अधिकारी रही हैं। उन्होंने अपने इन विचारों के साथ महिलाओं में आत्मविश्वास जाग्रत करने का काम किया। राज्यपाल के पद पर रहते हुए उनका 2 मार्च, 1949 को निधन हो गया था।

🇮🇳 मृत्यु एक शाश्वत सत्य है और इसे भला कौन रोक पाया है। स्वयं सरोजिनी नायडू ने अपनी एक कविता में मृत्यु को कुछ देर के लिए ठहर जाने को कहा था, 'मेरे जीवन की क्षुधा, नहीं मिटेगी जब तक मत आना हे मृत्यु, कभी तुम मुझ तक।'  काश ! ऐसा हो पाता। इस महान देशभक्त को देश ने बहुत सम्मान दिया। सरोजिनी नायडू को विशेषतः ‘भारत कोकिला’, ‘राष्ट्रीय नेता’ और ‘नारी मुक्ति आन्दोलन की समर्थक’ के रूप में सदैव याद किया जाता रहेगा। 

🇮🇳 उनको सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम सभी उनके एवं अन्य स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा प्रदत्त मार्गदर्शन और राष्ट्र निर्माण के लिए बताये गये उच्च आदर्शों के अनुरूप आचरण करें और भारत को एक समृद्ध, समावेशी, बहुलतावादी, सहिष्णु और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप मे विश्व मंच पर स्थापित करें।

-देवेन्द्रराज सुथार

साभार: prabhasakshi.com

नारी-मुक्ति की समर्थक, प्रमुख #स्वतंत्रतासेनानी एवं #कवयित्री 'भारत कोकिला' #सरोजिनी_नायडू जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व  #आजादी_का_अमृतकाल #Sarojini Naidu #Freedom_fighter #poet, #first_woman_governor #Kesar_e_Hind #social_reformer 

Farmers Protest | किसान आंदोलन की आड़ में | कांग्रेस और “आप” ......? | लेखक : सुभाष चन्द्र

 




किसान हैं ही नहीं,  कांग्रेस और “आप” के गुंडे हैं -

देश के खिलाफ युद्ध का ऐलान है -सरकार कुचल दे ऐसे लोगों को -


#किसान आंदोलन #FarmersProtest  की आड़ में देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का काम करा रही है कांग्रेस और अमेरिका में  बैठा गुरपतवंत सिंह पन्नू भड़का रहा है सिखों को प्रधानमंत्री मोदी के घर पर खालिस्तान का झंडा लगाने के लिए - कांग्रेस के जयराम रमेश ने खुल कर कहा है कि आज राहुल गांधी अंबिकापुर में किसान संगठनों से मुलाकात कर रहे हैं और “आज ही के दिन पंजाब, हरियाणा, यूपी और अलग अलग देशों के किसान दिल्ली आ रहे हैं” - यानी कांग्रेस देश को राज्यों को अलग अलग देश बता रही है -


आज के कथित #किसान #कांग्रेस, #आप  और #George Soros के पैसे से खरीदे हुए गुंडे हैं और राहुल “कालनेमि” की मोहब्बत की दुकान के #Salesmen हैं - #केजरीवाल को समझ लेना चाहिए कि चाहे वो #रामलला के दर्शन कर आया या कथित किसानों को भड़का ले, #ED में उसका “सुंदर कांड” होकर रहेगा 


उधर आंदोलन में शामिल लोग कह रह रहे हैं “हमको छोड़ दो, खालिस्तान बनाने दो …. हम पाकिस्तान के साथ जुड़ जाएंगे” - आंदोलन करने वालों ने ट्रैक्टर इस तरह modify किए जिससे वह पुलिस के  बेरिकेड तोड़ सके, आग का सामना कर सके और आंसू गैस का भी इन पर असर न हो - भला कौन किसान एक आंदोलन के लिए इतना खर्च कर सकता है - इनका मकसद पन्नू की कॉल पर प्रधानमंत्री मोदी के आवास को घेरने का है - 

इस आंदोलन में छिपे किसानों पर पिछले अक्टूबर - नवंबर, 2023 में #पंजाब की भगवंत मान सरकार ने लाठियां बरसाई थी और उनका आंदोलन कुचलने के प्रयास किए थे - आज उसी “आप” का मंत्री गोपाल राय इन कथित किसानों के हक़ में खड़ा हुआ कह रहा है  - “ ब्रिटिश हुकूमत की तरह केंद्र की #भाजपा सरकार ने सड़कों पर कीलें बिछा दी हैं, दीवारें खड़ी कर दी हैं जिससे किसान दिल्ली में न आ सकें - भाजपा गुलामी का कालखंड याद करा रही है” - यानी गोपाल राय चाहता है कथित किसान दिल्ली सरकार के खिलाफ बगावत करने में सफल हो जाएं और उन्हें रोका न जाए -


इन कथित किसानों की अबकी बार की मांग लगता है केवल दिखावा है जिसका मकसद केवल अराजकता फैलाना है - ये लोग मांग रहे हैं ➖

-58 साल की उम्र से ज्यादा के किसानों के लिए 10 हजार रुपए महीने की पेंशन दी जाए;

-किसानों को फसल बीमा दिया जाए;

-भारत WTO से बाहर आ जाए; और 

-मनरेगा में 200 Employment Days सुनिश्चित किए जाएं -


इस तरह की मांगे, या तो कोई विदेशी ताकतें बना सकती है या कांग्रेस बना सकती है किसान तो कभी नहीं बना सकते अगर वे किसान हैं -


चुनाव से ठीक पहले माहौल बिगाड़ने के लिए विपक्ष ने कुछ दिन पूर्व हल्द्वानी में शाहीन बाग़ खड़ा करने की कोशिश की और अब फर्जी किसान आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की गई है - लेकिन जैसे हल्द्वानी में सख्ती से काम लिया गया, दिल्ली में इन कथित किसानों को भी पूरी ताकत से कुचल देना चाहिए - 


यह याद रखना चाहिए कि पिछले किसान आंदोलनकारी नेताओं के साथ किसी तरह का जनमत नहीं था क्योंकि वे सभी लोग किसी चुनाव में अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे - इसलिए बिना किसी हिचक, सरकार को इस बार कथित किसानों के आंदोलन को कुचल देना चाहिए, जो उनके पीछे खड़े हैं, उन्हें अंदर कर देना चाहिए - शांति बनाए रखने के लिए यदि पुलिस को गोली भी चलानी पड़े, तो उसमे भी पीछे नहीं रहना चाहिए - 

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का”13/02/2024 

#Congress_Party  #political_party #India #movement #indi #gathbandhan #Farmers_Protest  #kishan #Prime Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #Qatar_King  #Qatar_Amir #Samantha_Pawar #George_Soros



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,


12 फ़रवरी 2024

भारतीय नौसेना के 8 पूर्व अधिकारी को मौत के मुंह से निकाल लिया मोदी ने | षड़यंत्र हो गया विफल ! लेखक : सुभाष चन्द्र

 


#Modi saved 8 former #Indian #Navy_officers from the clutches of death

भारतीय नौसेना के 8 पूर्व अधिकारी को  मौत के मुंह से निकाल लिया मोदी ने  #षड़यंत्र विफल हो गया - यही दर्द है -


#भारतीय_नौसेना के 8 पूर्व अधिकारी 18 महीने से क़तर की कैद में मौत की सजा पाए आज आज़ाद करा लिए #प्रधानमंत्री_नरेंद्र_मोदी की कूटनीति ने और बड़े बड़े नापाक लोगों के मंसूबों पर पानी फिर गया - लेफ्ट लिबरल कबाड़ गिरोह के कुछ मक्कार विलाप कर रहे थे जब 8 भारतीयों को फांसी की सजा दी गई कि क़तर ने मोदी के पर क़तर दिए, विश्व गुरु को जमीन पर पटक दिया - लेकिन आज वे सभी झाग की तरह बैठ गए -


क़तर में जो हुआ उसे एक बड़ा षड़यंत्र कहना गलत नहीं होगा - बहुत से सच सामने नहीं आते हैं लेकिन ऐसे विषयों में एक दूसरे से जुड़े तार देखे जा सकते हैं - 8 भारतीयों को 26 अक्टूबर, 2023 को क़तर की अदालत ने जासूसी के आरोप में फांसी की सजा सुनाई थी और उसी दिन राहुल “कालनेमि” उज्बेकिस्तान में जॉर्ज सोरोस की खास सामंता पावार के साथ गुप्त मंत्रणा कर रहा था - राहुल अगले दिन 27 अक्टूबर, 2023 को भारत लौट कर आया था - 


अब यह उज्बेकिस्तान की गुप्त यात्रा का मकसद भारतीय पूर्व सैनिकों की फांसी से जोड़ कर देखना गलत भी नहीं कहा जा सकता - एक तो राहुल और फिर साथ में जॉर्ज सोरोस की साथी से मुलाकात बहुत कुछ कहती है - मतलब नरेंद्र मोदी और भारत सरकार को बदनाम करने की गहरी साजिश कही जा सकती है और उस पर जिस तरह कांग्रेस ने मोदी सरकार को संसद और संसद के बाहर घेरने की कोशिश की और जिस तरह लेफ्ट लिबरल Echo System मोदी पर बरस पड़ा था,  उससे साफ़ जाहिर होता है कि यह कांग्रेस का ही रचा हुआ षड़यंत्र था जो आज विफल हो गया -


दुबई में 3 दिसंबर, 2023 को प्रधानमंत्री मोदी और क़तर के राजा  #Amir_Sheikh_Tamim_Bin_Hamad_Al_Thani के साथ #COP28 #summit के दौरान मुलाकात हुई थी जिसमे भारतीय समुदाय के कल्याण के लिए विस्तृत चर्चा हुई थी - इसके बाद 28 दिसंबर को #क़तर ने फांसी की सजा ख़त्म करने का ऐलान किया था - हो सकता है क़तर को भी अहसास हुआ कि कोई खेल खेला गया था -


#भारत_सरकार, #विदेश_मंत्री #डॉ._एस._जयशंकर, #विदेश_मंत्रालय, लीगल डिपार्टमेंट और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्या कुछ किया, यह उनकी सरकार ही जानती है - इन सबके अथक प्रयासों से पहले तो फांसी की सजा पर क़तर ने रोक लगाई और ऐसा कहा गया कि वे सभी 8 अधिकारी आजीवन कारावास की सजा पाएंगे लेकिन आज सभी की सजा माफ़ कर दी गई - अभी कुछ दिन पहले ही भारत और क़तर के बीच 78 बिलियन डॉलर की 20 वर्ष के लिए गैस आपूर्ति की डील हुई है जिसमें भारत के 6 बिलियन डॉलर बचेंगे -


आज 8 भारतीय अधिकारियों की मुक्ति प्रधानमंत्री मोदी की UAE यात्रा शुरू होने के एक दिन पहले हुई है और ऐसा भी माना जाता है कि #UAE का क़तर पर खासा प्रभाव है - कल प्रधानमंत्री #अबुधाबी में पहले #हिन्दू_मंदिर का उद्घाटन करने जा रहे हैं और किसी #इस्लामिक_देश में हिन्दू मंदिर #कांग्रेस, #पाकिस्तान और हमारे सेकुलर विपक्ष को हजम होना कठिन है -


कांग्रेस का षड़यंत्र किस हद तक हो सकता है इसकी कल्पना भीं नहीं कर सकते - चलते चलते आज का कांग्रेस नेता मणिशंकर ऐय्यर का भी बयान सुनना चाहिए - अय्यर के हवाले से डान अख़बार ने लिखा है कि “वह कभी किसी ऐसे देश में नहीं गए, जहां उनका पाकिस्तान की तरह खुले दिल से स्वागत किया गया हो” - इतना पाकिस्तान के लिए प्रेम है तो फिर पाकिस्तान के साथ मिलकर कांग्रेस भारत में कुछ भी अनिष्ट कर सकती है - पाकिस्तान के ऐसे दलालों को धक्के मार कर बाहर कर देना चाहिए -


किसी कांग्रेस के नेता या विपक्षी #इंडी - #भिंडी #ठगबंधन के नेता ने 8 भारतीयों की रिहाई पर कोई ख़ुशी जाहिर नहीं की है और यह साबित करता है कि दर्द बहुत गहरा पहुंचा है - दूसरी तरफ भारत वापस आने वाले अधिकारी कह रहे हैं कि प्रंधानमंत्री #मोदी की वजह से ही वे आज जीवित आए हैं - 

"लेखक के निजी विचार हैं "

लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 12/02/2024 

#Modi_saved_8_former_Indian_Navy_officers #death #Prime Minister  #Uzbekistan #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #Modi_diplomacy #Qatar_King  #Qatar_Amir #Samantha_Pawar #George_Soros



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,


महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती | Dayanand Saraswati | (1824-1883)




महान समाज सुधारक, राष्ट्र-निर्माता, प्रकाण्ड विद्वान, सच्चे संन्यासी, ओजस्वी सन्त और स्वराज के संस्थापक #महर्षि_स्वामी_दयानंद_सरस्वती जी की को उनकी जयंती  (12 फरवरी, 1824)  पर विनम्र श्रद्धांजलि !

स्वामी दयानंद सरस्वती (1824-1883) भारत के महान चिंतक, समाज-सुधारक व देशभक्त थे। उन्होंने 1875 में एक महान आर्य सुधारक संगठन 'आर्य समाज' की स्थापना की। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। स्वामी जी ने अपने महान ग्रंथ 'सत्यार्थ प्रकाश' में सभी मतों में व्याप्त बुराइयों का खंडन किया है।


🇮🇳🔶 #महर्षि_दयानंद_सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक थे। उनकी पहचान महान समाज सुधारक, राष्ट्र-निर्माता, प्रकाण्ड विद्वान, सच्चे संन्यासी, ओजस्वी सन्त और स्वराज के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं। बाल्यावस्था के दौरान कुछ ऐसी घटनाएं घटीं, जिन्होंने उन्हें सच्चे भगवान, मौत और मोक्ष का रहस्य जानने के लिए संन्यासी जीवन जीने को विवश कर दिया। उन्होंने इन रहस्यों को जानने के लिए पूरा जीवन लगा दिया और फिर जो ज्ञान हासिल हुआ, उसे पूरे विश्व को अनेक सूत्रों के रूप में बताया। इन सूत्रों को जानने से पहले स्वामी दयानंद सरस्वती जी के बारे में जानना जरूरी है|


🇮🇳🔶 मूलशंकर से शुरू की सांसारिक यात्रा!

🔶 स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म #गुजरात के #राजकोट जिले के #काठियावाड़ क्षेत्र में #टंकारा गाँव के निकट #मौरवी नामक स्थान पर भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, नवमी, गुरूवार, विक्रमी संवत् 1881 (12 फरवरी, 1824) को साधन संपन्न एवं श्रेष्ठ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कुछ विद्वानों के अनुसार उनके पिता का नाम #अंबाशंकर और माता का नाम #यशोदा_बाई था। उनके बचपन का नाम मूलशंकर था। वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। वे तीन भाईयों और दो बहनों में सबसे बड़े थे। उन्होंने #मात्र पाँच वर्ष की आयु में ‘देवनागरी लिपि’ का ज्ञान हासिल कर लिया था और संपूर्ण यजुर्वेद कंठस्थ कर लिया था। बचपन में घटी कुछ घटनाओं नेे उन्हें मूलशंकर से स्वामी दयानंद बनने की राह पर अग्रसित कर दिया। 

🇮🇳🔶 वे मुख्य घटनाएँ, जिन्होंने मूलशंकर से स्वामी दयानंद बनने की राह पर अग्रसित किया!

🔶 पहली घटना: मूल शंकर के पिता शिव के परम भक्त थे। वर्ष 1837 के माघ माह में पिता के कहने पर बालक मूलशंकर ने भगवान शिव का व्रत रखा। तब उनकीं उम्र मात्र 14 वर्ष की थी। जागरण के दौरान अर्द्धरात्रि में उनकी नजर मन्दिर में स्थित शिवलिंग पर पड़ी, जिस पर चुहे उछल कूद मचा रहे थे। एकाएक बालक मूलशंकर के मन में विचार आया कि यदि जिसे हम भगवान मान रहे हैं, वह इन चूहों को भगाने की शक्ति भी नहीं रखता तो वह कैसा भगवान? 

🔶 दूसरी घटना: जब मूलशंकर 16 वर्ष के थे तो उनकीं चौदह वर्षीय छोटी बहन की मौत हो गई। वे अपनी बहन से बेहद प्यार करते थे। पूरा परिवार व सगे-संबंधी विलाप कर रहे थे और मूलशंकर भी गहरे सदमे व शोक में भाव-विहल थे। तभी उनके मनोमस्तिष्क में कई तरह के विचार पैदा हुए। इस संसार में जो भी आया है, उसे एक न एक दिन यहां से जाना ही पड़ेगा, अर्थात् सबकी मृत्यु होनी ही है और मौत जीवन का शाश्वत सत्य है। अगर ऐसा है तो फिर शोक किस बात का? क्या इस शोक और विलाप की समाप्ति का कोई उपाय हो सकता है? 

🔶 तीसरी घटना: जब विक्रमी संवत 1899 में उनके प्रिय चाचा ने उनके सामने बेहद व्यथा एवं पीड़ा के बीच दम तोड़ा। युवा मूलशंकर के मनोमस्तिष्क में अब सिर्फ एक ही विचार बार-बार कौंध रहा था कि जब जीवन मिथ्या है और मृत्यु एकमात्र सत्य है। ऐसे में क्या मृत्यु पर विजय नहीं पाई जा सकती? क्या मृत्यु समय के समस्त दुःखों से बचा नहीं जा सकता? क्या मृत्यु पर विजय पाई जा सकती है? यदि हाँ तो कैसे? इस सवाल का जवाब पाने के लिए युवा मूलशंकर खोजबीन में लग गया।

🇮🇳🔶 यह मिला मृत्यु पर विजय पाने का रहस्य!

🔶 काफी मशक्कत के बाद उन्हें एक आचार्य ने सुझाया कि मृत्यु पर विजय #योग से पाई जा सकती है और ‘योगाभ्यास’ के जरिए ही अमरता को हासिल किया जा सकता है। आचार्य के इस जवाब ने युवा मूलशंकर को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने ‘योगाभ्यास’ के लिए घर छोड़ने का फैसला कर लिया। जब पिता को उनकी इस मंशा का पता चला तो उन्होंने मूलशंकर को मालगुजारी के काम में लगा दिया और इसके साथ उन्हें विवाह-बन्धन में बांधने का फैसला कर लिया ताकि वह विरक्ति से निकलकर मोह-माया में बंध सके। जब उनके विवाह की तैयारियाँ जोरों पर थीं तो मूलशंकर ने घर को त्यागकर सच्चे भगवान, मौत और मोक्ष का रहस्य जानने का दृढ़संकल्प ले लिया। ज्येष्ठ माह, विक्रमी संवत् 1903, तदनुसार मई, 1846 की सांय को उन्होंने घर त्याग दिया। इसके बाद वे अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए दर-दर भटकते रहे। इस दौरान उन्हें समाज में व्याप्त कर्मकाण्डों, अंधविश्वासों, कुरीतियों, पाखण्डों और आडम्बरों से रूबरू होने का पूरा मौका मिला। वे व्यथित हो उठे। 

🇮🇳🔶 मूलशंकर से दयानंद सरस्वती!

🔶 मूलशंकर ने संन्यासी बनने की राह पकड़ ली और अपना नाम बदलकर ‘शुद्ध चौतन्य ब्रह्माचारी’ रख लिया। वे सन् 1847 में घूमते-घूमते नर्मदा तट पर स्थित स्वामी पूर्णानंद सरस्वती के आश्रम में जा पहुँचे और उनसे 24 वर्ष, 2 माह की आयु में ‘संन्यास-व्रत’ की दीक्षा ले ली। ‘संन्यास-दीक्षा’ लेने के उपरांत उन्हें एक नया नाम दिया गया, ‘दयानंद सरस्वती’। अब दयानंद सरस्वती को आश्रम में रहते हुए बड़े-बड़े साधु-सन्तों से अलौकिक ज्ञान प्राप्त करने, वेदों, पुराणों, उपनिषदों और अन्य धार्मिक साहित्यों के गहन अध्ययन करने, अटूट योगाभ्यास करने और योग के महात्म्य को साक्षात जानने का भरपूर मौका मिला। उन्होंने अपनी योग-साधना के दृष्टिगत विंध्याचल, हरिद्वार, गुजरात, राजस्थान, मथुरा आदि देशभर के अनेक महत्वपूर्ण पवित्र स्थानों की यात्राएं कीं। इसी दौरान जब वे कार्तिक शुदी द्वितीया, संवत् 1917, तदनुसार, बुधवार, 4 नवम्बर, सन् 1860 को यम द्वितीया के दिन मथुरा पहुंचे तो उन्हें परम तपस्वी दंडी स्वामी विरजानंद के दर्शन हुए। वे एक परम सिद्ध संन्यासी थे। पूर्ण विद्या का अध्ययन करने के लिए उन्होंने स्वामी जी को अपना गुरू बना लिया। सन् 1860-63 की तीन वर्षीय कालावधि के दौरान दयानंद सरस्वती ने अपने गुरु की छत्रछाया में संस्कृत, वेद, पाणिनीकृत अष्टाध्यायी आदि का गहन अध्ययन पूर्ण किया।

🇮🇳🔶 गुरु-दक्षिणा !

🔶 पूर्ण विद्याध्ययन के बाद दयानंद सरस्वती ने अपने गुरु की पसन्द को देखते हुए ‘गुरु-दक्षिणा’ में आधा सेर लौंग भेंट करनी चाहीं। इस पर स्वामी विरजानंद ने दयानंद सरस्वती से बतौर गुरु-दक्षिणा, कुछ वचन मांगते हुए कहा कि देश का उपकार करों, सत्य शास्त्रों का उद्धार करो, मतमतान्तरों की अविद्या को मिटाओ और वैदिक धर्म का प्रचार करो। तब स्वामी दयानंद ने अपने गुरु के वचनों की आज्ञापालन का संकल्प लिया और गुरु का आशीर्वाद लेकर आश्रम से निकल पड़े। उन्होंने देशभर का भ्रमण और वेदों के ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना शुरू कर दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने वेद-शास्त्रों के आधार पर आध्यात्मिक ज्ञान, योग, हवन, तप और ब्रह्मचर्य की शिक्षा प्रदान की। उन्होंने अलौकिक ज्ञान, समृद्धि और मोक्ष का अचूक मंत्र दिया, ‘वेदों की ओर लौटो’। उन्होंने बताया कि ईश्वर सर्वत्र विद्यमान है। जिस प्रकार तिलों में तेल समाया रहता है, उसी प्रकार भगवान सर्वत्र समाए रहते हैं। आत्मा में ही परमात्मा का निवास है। परमेश्वर ने ही इस संसार (प्रकृति) को बनाया है। उन्होंने ‘मुक्ति’ के रहस्य बताते हुए कहा कि जितने दुःख हैं, उन सबसे छूटकर एक सच्चिदानंदस्वरूप परमेश्वर को प्राप्त होकर सदा आनंद में रहना और फिर जन्म-मरण आदि दुःखसागर में न गिरना, ‘मुक्ति’ है। ‘मुक्ति’ पाने का मुख्य साधन सत्य का आचरण है।

🇮🇳🔶 कालजयी रचना है ‘सत्यार्थ-प्रकाश’!

🔶 स्वामी दयानंद ने देश में रूढ़ियों, कुरीतियों, आडम्बरों, पाखण्डों आदि से मुक्त एक नए स्वर्णिम समाज की स्थापना के उद्देश्य से 10 अप्रैल, सन 1875 (चौत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत 1932) को गिरगांव मुम्बई व पूना में ‘आर्य समाज’ नामक सुधार आन्दोलन की स्थापना की। 24 जून, 1877 (जेष्ठ सुदी 13 संवत् 1934 व आषाढ़ 12) को संक्राति के दिन लाहौर में ‘आर्य समाज’ की स्थापना हुई, जिसमें आर्य समाज के दस प्रमुख सिद्धान्तों को सूत्रबद्ध किया गया। ये सिद्धांत आर्य समाज की शिक्षाओं का मूल निष्कर्ष हैं। उन्होंने सन् 1874 में अपने कालजयी ग्रन्थ ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ की रचना की। वर्ष 1908 में इस ग्रन्थ का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया। इसके अलावा उन्होंने हिन्दी में ‘ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका’, ‘संस्कार-विधि’, ‘आर्याभिविनय’ आदि अनेक विशिष्ट ग्रन्थों की रचना की। स्वामी दयानंद सरस्वती ने ‘आर्योद्देश्यरत्नमाला’, ‘गोकरूणानिधि’, ‘व्यवाहरभानू’ ‘पंचमहायज्ञविधि’, ‘भ्रमोच्छेदल’, ‘भ्रान्तिनिवारण’ आदि अनेक महान ग्रन्थों की रचना की। विद्वानों के अनुसार, कुल मिलाकर उन्होंने 60 पुस्तकें, 14 संग्रह, 6 वेदांग, अष्टाध्यायी टीका, अनके लेख लिखे। स्वामी दयानंद सरस्वती के तप, योग, साधना, वैदिक प्रचार, समाजोद्धार और ज्ञान का लोहा बड़े-बड़े विद्वानों और समाजसेवियों ने माना।

--(राजेश कश्यप) | स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक)

Source: prabhasakshi.com

महान समाज सुधारक, राष्ट्र-निर्माता, प्रकाण्ड विद्वान, सच्चे संन्यासी, ओजस्वी सन्त और स्वराज के संस्थापक #महर्षि_स्वामी_दयानंद_सरस्वती जी की को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !





साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व  #आजादी_का_अमृतकाल #Maharishi_Swami_Dayanand_Saraswati #Arya_Samaj #social_reformer #Satyarth_Prakash 

11 फ़रवरी 2024

Scam of Rs 3250 crore | 3250 रु. करोड़ का घोटाला होगा और “गिरफ़्तारी” भी नहीं हो सकती ?

 



3250 करोड़ का घोटाला होगा  और “गिरफ़्तारी” भी नहीं हो सकती,

क्यों न माना जाए अदालत में “न्यौछावर” चल रही है -

“बरी ही कर दीजिए कोचरों को फिर” #चंदा कोचर 


#ICICI बैंक की पूर्व #CEO और #MD #चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर के 3250 करोड़ के #Videocon_Loan #Fraud #Case में बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस रेवती मोहिते खेरे और जस्टिस पीके चह्वाण ने पहले 9 जनवरी, 2023 को दोनों अंतरिम जमानत देते हुए #CBI को फटकार लगाईं कि उनकी गिरफ़्तारी कानून के प्रावधानों के अनुरूप नहीं की गई - गिरफतारी का आधार केवल जांच में “असहयोग एवं पूरी तरह जानकारी न देना बताया गया” जबकि यह गिरफ़्तारी का पर्याप्त कारण नहीं माना जा सकता -


अब परसों 6 फरवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और जस्टिस NR Borkar की पीठ ने जनवरी, 2023 के अंतरिम जमानत के आदेश की पुष्टि कर दी और कहा कि कोचर दंपति की गिरफ़्तारी CRPC के section 41 A और section 46 के अनुपालन न करने की वजह से गैर कानूनी थी -


CRPC का section 41 पुलिस के सामने पेश होने के नोटिस देने की बात करता है और section 46 वर्णन करता है गिरफ़्तारी किस तरह की जाए - यानी इन दो छोटे छोटे तकनीकी मुद्दों पर पहले हाई कोर्ट के 2 जजों ने जमानत दे दी और अब अन्य 2 जजों ने सवा साल लगा दिया उस आदेश की पुष्टि करने के लिए जिसकी मेरे विचार में कोई आवश्यकता थी ही नहीं -


पहले 9 जनवरी को कोचर दंपति को जमानत दी गई थी हाई कोर्ट से और उसके बाद 21 जनवरी, 2023 को Videocon के मालिक वेणुगोपाल धूत को भी जमानत दे दी गई थी - 


लेकिन अचरज की बात है कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला त्रिवेदी की पीठ ने CBI से 11 अक्टूबर, 2023 को इस बात के लिए नाराज़गी जताई थी कि वह (CBI) कोचर दंपति की अंतरिम जमानत को बार बार बढ़ाने का विरोध क्यों नहीं कर रही जबकि CBI ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की हुई थी - इसका मतलब यह भी निकलता है कि सुप्रीम कोर्ट की नज़र में एक तरह कोचर दंपति को अंतरिम जमानत देना गलत था जबकि हाई कोर्ट एक के बाद एक फैसले में कोचर दंपति को राहत दे रहा है -


इतने बड़े घोटाले को भी लगता है बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक तरह दबाने की कोशिश की है - 3250 करोड़ रुपए की रकम कोई छोटी रकम नहीं होती जो Technical Issues पर हाई कोर्ट के जज आरोपियों की गिरफ़्तारी भी रोकने के लिए आमादा हो गए - Technicalities में कमी रह गई, तो उन्हें पूरा करने के लिए कहा जा सकता है न कि गिरफ़्तारी को ही अवैध बता दिया जाये -


Any person of prudent mind can reach at a conclusion that some corrupt practices are going on in the high court to protect the culprits - यदि कोई समझे कि बड़े पैमाने पर हाई कोर्ट में “न्यौछावर” चल रही है तो कुछ गलत नहीं होगा - 3250 करोड़ के मामले में कुछ भी हो सकता है -


कोचर दंपति के वकील ने अपनी दलील में कहा कि वह FIR रद्द करने की मांग नहीं कर रहे, अभी वह केवल गिरफ्तारी को अवैध कह रहे हैं - कल को हाई कोर्ट के जज कोई नया Technical Ground तलाश कर सारा केस ही ख़त्म करने के आदेश दे सकते हैं - 


जिस तरह कोचर दंपति का यह “fraud case” बॉम्बे हाई कोर्ट डील कर रहा है, वह निंदनीय है - सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि वह तुरंत संज्ञान ले कर उन सभी आरोपियों की जमानत खारिज करे जिन्होंने जनता के पैसे को लूटा है - अदालत इस तरह प्रधानमंत्री मोदी के भ्रष्टाचार पर उठाए जा रहे क़दमों में रोड़े बिछाने का काम न करे -

"लेखक के निजी विचार हैं "



लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 11/02/2024 

#scam #ICICI_Bank #बैंक_घोटाला #scam_3250_crore #arrest #prime_ministers   #dispute  #pm_modi #cbi #fraud #CJI #court #videocon


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,




Haldwani - हल्द्वानी : गांधी नेहरू के सपनों का भारत दिखाई दे रहा आज


 

गांधी नेहरू के सपनों का भारत  दिखाई दे रहा आज -हल्द्वानी के असली अपराधी तो 

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश हैं -एक बार फिर चंद्रचूड़ & Co खड़ी हुई  दंगाइयों के साथ -

जो हल्द्वानी में हुआ वह गांधी नेहरू के सपने थे क्योंकि ऐसे ही दिन भारत में लाने के लिए दोनों ने पाकिस्तान बनने के बाद भी मुसलमानों को जबरन भारत में रखा था - जो मुस्लिमों ने हल्द्वानी में दिखाया वह कोई नई बात नहीं है और ऐसा कुछ दिन पहले हरियाणा के मेवात में भी हुआ, उसके कुछ दिन पहले लखनऊ और दिल्ली में किया गया जब CAA के विरोध में आग लगाई गई - 

यह सब कांग्रेस की मोहब्बत की दुकान के व्यापार का हिस्सा है जब देश के किसी भी भाग में देश के खिलाफ युद्ध छेड़ा जा रहा है - कुछ दिन पहले मणिपुर को भी कांग्रेस ने आग लगाईं थी - 

गांधी नेहरू दोनों की खुराफाती खोपड़ी ने देश के आज़ाद होते ही दूसरे विभाजन की तैयारी की भूमिका बना दी थी और इसलिए मुसलमानों को पाकिस्तान जाने से रोक दिया - आज वे ही देश की सत्ता को चुनौती दे रहे हैं 

लेकिन ऐसे आतताइयों को हिम्मत देने वाला तो सुप्रीम कोर्ट है जिसके न्यायाधीश उनके साथ खड़े रहते हैं - सिब्बल, प्रशांत भूषण और अन्य फर्जी सेकुलर वकील सुप्रीम कोर्ट के जजों के हैंडल चलाते हैं जिसकी वजह से आज देश में हर जगह सरकारी जमीन पर कब्जे हो रखे हैं - लखनऊ के CAA दंगों के 274 आरोपियों से नुक़सान की भरपाई के नोटिस चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश चुनाव के दूसरे चरण के दिन वापस करने के आदेश दिए थे और एक तरह से दंगाइयों के सरकारी संपत्ति को आग लगाने को सही बता दिया था -

पिछले वर्ष हल्द्वानी के बनफूलपुरा में दिसंबर, 2022 के अवैध कब्जे को हटाने के आदेश पर प्रशांत भूषण के Mention करने पर CJI चंद्रचूड़, जस्टिस SA Nazeer और जस्टिस PS Narsimha की बेंच ने 5 जनवरी, 2023 को स्टे कर दिया और 7 फरवरी, 2023  की तारीख लगा दी - 

उसी दिन की खबर में बताया गया था कि जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जे को हटाने के नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा है कि हाई कोर्ट का आदेश पर जिस तरह लोगों को प्रशासन हटाने की कोशिश कर रहा है, वह गलत है, उनके पुनर्वास की व्यवस्था होनी चाहिए - मानवता के आधार पर यह जरूरी है क्योंकि दावा किया गया है कि वे लोग वहां 60 - 70 वर्ष से रह रहे हैं –

अब अंजाम देख लीजिए मीलार्ड के लचर आदेशों का - इन आदेशों ने क्षेत्र के मुसलमानों को एक वर्ष में इतना सशक्त होने का मौका दे दिया कि ठीक एक साल बाद 8 फरवरी, 2024 को पूरे क्षेत्र को आग के हवाले कर दिया - जजों के केवल यह देखा कि जो लोग हटाए जाने हैं वे अधिकांश मुस्लिम हैं मगर उन नेत्रहीन जजों ने यह नहीं देखा कि वे लोग कहां से आए हैं  क्योंकि इनमें अधिकांश बांग्लादेशी और रोहिंग्या थे -

पुलिस बल पर इतना भयंकर हमला करने वाले देश के खिलाफ युद्ध छेड़ रहे हैं  लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट के बेशर्म जज तुरंत स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई की जरूरत नहीं समझ रहे और हाई कोर्ट भी 14 फरवरी तय किए बैठा है तो उसके पहले सोता ही रहेगा -

मीलॉर्ड कभी अपराध के शिकार नहीं होते, कभी उनके रिश्तेदार आतंकी हमले में नहीं मारे गए और इसलिए आतंकियों की फांसी की सजा रोक देते हैं, कभी इनकी बच्चियों का बलात्कार नहीं होता और इसलिए every sinner has a future कह कर अपराधी की सजा कम कर देते हैं - देश भर में जमीनों पर बलात कब्जे होते हैं लेकिन मीलॉर्ड अपने महलों में मस्त रहते हैं और इसलिए वे उन्हें हटाने के लिए “मानवीय दृष्टिकोण” देखते हैं 

दर्द के अहसास के लिए एक दिन मीलॉर्ड और उनके परिवार को  भी कुदरत की आग में झुलसना जरूरी है | 

"लेखक के निजी विचार हैं "



लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 11/02/2024 

#haldwani_violence  #prime_ministers  #Nazool_land #dispute  #demolition #gandhi  #nehru #pm_modi #caa #nrc #CJI #court 


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,



प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर क्रांतिकारी तिलका मांझी | First Freedom Fighter Veer Tilka Manjhi


 


🇮🇳#तिलका_माँझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को गुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी,  वीर क्रांतिकारी तिलका माँझी_की_शौर्यगाथा

🇮🇳अंग्रेजों और वनवासियों के बीच लगातार हो रहे संघर्ष ने तिलका माँझी को क्रांतिकारी बनाया| 

🇮🇳 जन्म: 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में #तिलकपुर नामक गाँव में एक #संथाल परिवार में

🇮🇳बलिदान: 13 जनवरी, 1785 को उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी गई थी। 🇮🇳

🇮🇳 राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए भागलपुर में स्थानीय लोगों को  जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोगों को देश के लिए एकजुट होने के लिए प्रेरित करते थे तिलका माँझी । 🇮🇳

🇮🇳 साल 1857 में मंगल पांडे की बन्दूक से निकली गोली ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ विद्रोह का आगाज़ किया। इस विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला विद्रोह माना जाता है और #मंगल_पांडे को प्रथम क्रांतिकारी।

🇮🇳 हालांकि, 1857 की क्रांति से लगभग 80 साल पहले बिहार के जंगलों से अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ़ जंग छिड़ चुकी थी। इस जंग की चिंगारी फूँकी थी एक आदिवासी नायक, #तिलका_माँझी ने, जो असल मायनों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले क्रांतिकारी थे।

🇮🇳 भले ही आपको हमारे इतिहास में तिलका माँझी के योगदान का कोई ख़ास उल्लेख न मिले, पर समय-समय पर कई लेखकों और इतिहासकारों ने उन्हें ‘प्रथम स्वतंत्रता सेनानी’ होने का सम्मान दिया है। महान लेखिका #महाश्वेता_देवी ने तिलका माँझी के जीवन और विद्रोह पर बांग्ला भाषा में एक उपन्यास ‘शालगिरर डाके’ की रचना की। एक और हिंदी उपन्यासकार #राकेश_कुमार_सिंह ने अपने उपन्यास ‘हुल पहाड़िया’ में तिलका माँझी के संघर्ष को बताया है।

🇮🇳 आज द बेटर इंडिया के साथ पढ़िये तिलका माँझी उर्फ़ #जबरा_पहाड़िया के विद्रोह और बलिदान की अनसुनी कहानी!

🇮🇳 तिलका माँझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में #तिलकपुर नामक गाँव में एक #संथाल परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम #सुंदरा_मुर्मू था। वैसे उनका वास्तविक नाम #जबरा_पहाड़िया ही था। तिलका माँझी नाम तो उन्हें ब्रिटिश सरकार ने दिया था।

🇮🇳 पहाड़िया भाषा में ‘तिलका’ का अर्थ है गुस्सैल और लाल-लाल आँखों वाला व्यक्ति। साथ ही वे ग्राम प्रधान थे और पहाड़िया समुदाय में ग्राम प्रधान को माँझी कहकर पुकारने की प्रथा है। तिलका नाम उन्हें अंग्रेज़ों ने दिया। अंग्रेज़ों ने जबरा पहाड़िया को खूंखार डाकू और गुस्सैल (तिलका) माँझी (समुदाय प्रमुख) कहा। ब्रिटिशकालीन दस्तावेज़ों में भी ‘जबरा पहाड़िया’ का नाम मौजूद है पर ‘तिलका’ का कहीं उल्लेख नहीं है।

🇮🇳 तिलका ने हमेशा से ही अपने जंगलों को लुटते और अपने लोगों पर अत्याचार होते हुए देखा था। गरीब आदिवासियों की भूमि, खेती, जंगली वृक्षों पर अंग्रेज़ी शासकों ने कब्ज़ा कर रखा था। आदिवासियों और पर्वतीय सरदारों की लड़ाई अक्सर अंग्रेज़ी सत्ता से रहती थी, लेकिन पर्वतीय जमींदार वर्ग अंग्रेज़ी सत्ता का साथ देता था।

🇮🇳 धीरे-धीरे इसके विरुद्ध तिलका आवाज़ उठाने लगे। उन्होंने अन्याय और गुलामी के खिलाफ़ जंग छेड़ी। तिलका माँझी #राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए भागलपुर में स्थानीय लोगों को सभाओं में संबोधित करते थे। #जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोगों को देश के लिए एकजुट होने के लिए प्रेरित करते थे।

🇮🇳 साल 1770 में जब भीषण अकाल पड़ा, तो तिलका ने अंग्रेज़ी शासन का खज़ाना लूटकर आम गरीब लोगों में बाँट दिया। उनके इन नेक कार्यों और विद्रोह की ज्वाला से और भी आदिवासी उनसे जुड़ गये। इसी के साथ शुरू हुआ उनका #संथाल_हुल यानी कि आदिवासियों का विद्रोह। उन्होंने अंग्रेज़ों और उनके चापलूस सामंतों पर लगातार हमले किए और हर बार तिलका माँझी की जीत हुई।

🇮🇳 साल 1784 में उन्होंने भागलपुर पर हमला किया और 13 जनवरी 1784 में ताड़ के पेड़ पर चढ़कर घोड़े पर सवार अंग्रेज़ कलेक्टर ‘अगस्टस क्लीवलैंड’ को अपने जहरीले तीर का निशाना बनाया और मार गिराया। कलेक्टर की मौत से पूरी ब्रिटिश सरकार सदमे में थी। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जंगलों में रहने वाला कोई आम-सा आदिवासी ऐसी हिमाकत कर सकता है।

🇮🇳 साल 1771 से 1784 तक जंगल के इस बेटे ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबा संघर्ष किया। उन्होंने कभी भी समर्पण नहीं किया, न कभी झुके और न ही डरे।

🇮🇳 अंग्रेज़ी सेना ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया, लेकिन वे तिलका को नहीं पकड़ पाए। ऐसे में, उन्होंने अपनी सबसे पुरानी नीति, ‘फूट डालो और राज करो’ से काम लिया। ब्रिटिश हुक्मरानों ने उनके अपने समुदाय के लोगों को भड़काना और ललचाना शुरू कर दिया। उनका यह फ़रेब रंग लाया और तिलका के समुदाय से ही एक गद्दार ने उनके बारे में सूचना अंग्रेज़ों तक पहुंचाई।

🇮🇳 सूचना मिलते ही, रात के अँधेरे में अंग्रेज़ सेनापति आयरकूट ने तिलका के ठिकाने पर हमला कर दिया। लेकिन किसी तरह वे बच निकले और उन्होंने पहाड़ियों में शरण लेकर अंग्रेज़ों के खिलाफ़ छापेमारी जारी रखी। ऐसे में अंग्रेज़ों ने पहाड़ों की घेराबंदी करके उन तक पहुँचने वाली तमाम सहायता रोक दी।

🇮🇳 इसकी वजह से तिलका माँझी को अन्न और पानी के अभाव में पहाड़ों से निकल कर लड़ना पड़ा और एक दिन वह पकड़े गए। कहा जाता है कि तिलका माँझी को चार घोड़ों से घसीट कर भागलपुर ले जाया गया। 13 जनवरी 1785 को उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी गई थी।

🇮🇳 जिस समय तिलका माँझी ने अपने प्राणों की आहुति दी, उस समय मंगल पांडे का जन्म भी नहीं हुआ था। ब्रिटिश सरकार को लगा कि तिलका का ऐसा हाल देखकर कोई भी भारतीय फिर से उनके खिलाफ़ आवाज़ उठाने की कोशिश भी नहीं करेगा। पर उन्हें यह कहाँ पता था कि बिहार-झारखंड के पहाड़ों और जंगलों से शुरू हुआ यह संग्राम, ब्रिटिश राज को देश से उखाड़ कर ही थमेगा।

🇮🇳 तिलका के बाद भी न जाने कितने आज़ादी के दीवाने हँसते-हँसते अपनी भारत माँ के लिए अपनी जान न्योछावर कर गये। आज़ादी की इस लड़ाई में अनगिनत शहीद हुए, पर इन सब शहीदों की गिनती जबरा पहाड़िया उर्फ़ तिलका माँझी से ही शुरू होती है।

🇮🇳 तिलका माँझी आदिवासियों की स्मृतियों और उनके गीतों में हमेशा ज़िंदा रहे। न जाने कितने ही आदिवासी लड़ाके तिलका के गीत गाते हुए फाँसी के फंदे पर चढ़ गए। अनेक गीतों तथा कविताओं में तिलका माँझी को विभिन्न रूपों में याद किया जाता है-

तुम पर कोडों की बरसात हुई, तुम घोड़ों में बाँधकर घसीटे गए

फिर भी तुम्हें मारा नहीं जा सका, तुम भागलपुर में सरेआम

फाँसी पर लटका दिए गए, फिर भी डरते रहे ज़मींदार और अंग्रेज़

तुम्हारी तिलका (गुस्सैल) आँखों से, मर कर भी तुम मारे नहीं जा सके

तिलका माँझी, मंगल पांडेय नहीं,

तुम आधुनिक भारत के पहले विद्रोही थे

भारत माँ के इस सपूत को सादर नमन!

🇮🇳 भारतीय स्वाधीनता संग्राम के पहले बलिदानी आदिविद्रोही #बाबा_तिलका_माँझी (जबरा पहाड़िया) जी की जयंती पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं हार्दिक श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏 🇮🇳 जय_मातृभूमि 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व #आजादी_का_अमृतकाल #वन्दे_मातरम् 🇮🇳

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

Source: thebetterindia

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व  #आजादी_का_अमृतकाल #स्वतंत्रता सेनानी #क्रांतिकारी #Freedom_Fighter #tilkamanjhi

Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...