जब वक्त्त गुजर जाता है तो याद बनती है. किसी बाग की खुशबू निकल जाए तो फूल खिलने की फरियाद आती है. इसी तरह आज साहित्य नगरी #सूर्यपुरा का स्वर्णिम अतीत सिर्फ यादों में सिमटकर रह गया है. साहित्याकाश के दीप्तिमान नक्षत्र राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह का किला आज भले ही रख रखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील होने लगा हो परंतु लाहौरी ईट से बना यह किला आज भी राजा साहब की याद को ताजा करता है.
🇮🇳🔰 राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह का जन्म 10 सितम्बर 1890 को तत्कालीन #शाहाबाद जिला के #बिक्रमगंज के #सूर्यपुरा ग्राम के एक कायस्थ परिवार में हुआ था. बड़े जमींदार होने की वजह से अपने नाम के साथ सिंह लगाते थे. इनके पिता #राज_राजेश्वरी_प्रसाद_सिंह हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, बंग्ला, फ़ारसी तथा पश्तो के विद्वान होने के साथ ब्रज भाषा के एक बड़े कवि भी थे. राधिका रमण प्रसाद के पितामह #दीवान_राम_कुमार_सिंह साहित्यक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और कुमार उपनाम से ब्रज भाषा मे कविताएं लिखा करते थे. ये कहना गलत नही होगा कि राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह को साहित्य विरासत में मिला था.
🇮🇳🔰 उनकी प्राम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई. घर पर ही उन्होंने संस्कृत हिन्दी और अंग्रेजी की प्राम्भिक शिक्षा पूर्ण की. 1903 ई. में पिता के अचानक स्वर्गवास होने पर इनकी रियासत कोर्ट ऑफ वांडर्स के अधीन हो गई. शाहाबाद के कलक्टर के अभिभाकत्व में उन्होंने आरा जिला स्कूल में दाखिला लिया. कुछ ही दिन बाद जिलाधिकारी ने उन्हे कलकत्ता भेज दिया. वही से उन्होने दसवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की. उस समय तक उन्होंने ब्रजभाषा में कविता लिखना शुरू कर दिया था. #बंगभंग_आंदोलन से प्रभावित होने के कारण जिलाधिकारी ने आगरा कॉलेज, आगरा में उनका नाम लिखवा दिया. वहाँ से उन्होने एफ.ए. (इंटरमीडिएट)किया. 1912 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय से बीए का परीक्षा पास किए. उसी समय उनकी प्रथम कहानी कानों में कंगना इन्दु में प्रकाशित हुई. 1914 ई. में कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम.ए. (इतिहास) की परीक्षाएं पास कीं.
🇮🇳🔰 1917 ई. में जब वे बालिग हुए, तब रियासत ‘कोर्ट ऑव वार्ड्स’ के बंधन से मुक्त हुए और वे उसके स्वामी हो गए. सन् 1920 ई. के आसपास अंग्रेजी सरकार ने राधिकारमण प्रसाद सिंह को ‘राजा’ की उपाधि से विभूषित किया. इसी बीच उन्हें बिहार प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया. 1921 ई. में उन्हें शाहाबाद जिला परिषद के डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के प्रथम भारतीय चेयरमैन के रूप में निर्वाचित किया. 28 फरवरी 1927 को उन्होंने जिला बोर्ड के तत्वावधान में #महात्मा_गाँधी का अभिनन्दन किया. 1932 ई. में बिहार हरिजन सेवा संघ के अध्यक्ष बनाए गए. 1941 ई. में उन्हें अग्रेजी सरकार ने सी.आई.ई. की पदवी से विभूषित किया.
🇮🇳🔰 1947 ई. भारतीय स्वंतत्रता के बाद राजा साहब पटना में रहने लगे और साहित्य साधना में लग गए. हिन्दी साहित्य की उल्लेखनीय उपाधि और 1962 ई. में भारत सरकार ने पद्म भूषण की उपाधि और 1969 ई. में मगध विश्वविद्यालय, बोध गया ने डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (डी.लिट्) की मानक उपाधि से सम्मानित किया. 1970 ई में प्रयाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन में साहित्यवाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया गया. 24 मार्च 1971 ई. को वो हिन्दी साहित्य की गोद में सदैव के लिए ध्यान मग्न हो गए.
🇮🇳🔰 उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं:-
🔰 नाटक:- (1) ‘नये रिफारमर’ या ‘नवीन सुधारक’ (सन् 1911 ई.), (2) ‘धर्म की धुरी’ (सन् 1952 ई.), (3) ‘अपना पराया’ (सन् 1953 ई.) और (4) ‘नजर बदली बदल गये नजारे’ (सन् 1961 ई.)।
🔰 कहानी संग्रह:- ‘कुसुमांजली’ (सन् 1912 ई.)। लघु उपन्यास:- (1) ‘नवजीवन’ (सन् 1912 ई), (2) ‘तरंग’ (सन् 1920 ई.), (3) ‘माया मिली न राम’ (सन् 1936 ई.), (4) ‘मॉडर्न कौन, सुंदर कौन’ (सन् 1964 ई.), और (5) ‘अपनी-अपनी नजर’, ‘अपनी-अपनी डगर’ (सन् 1966 ई.)।
🔰 उपन्यास:- (1) ‘राम-रहीम’ (सन् 1936 ई.), (2) ‘पुरुष और नारी’ (सन् 1939 ई.), (3) ‘सूरदास’ (सन् 1942 ई.), (4) ‘संस्कार’ (सन् 1944 ई.), (5) ‘पूरब और पश्चिम’ (सन् 1951 ई.), (6) ‘चुंबन और चाँटा’ (सन् 1957 ई.)
🔰 कहानियाँ:- (1) ‘गाँधी टोपी’ (सन् 1938 ई.), (2) ‘सावनी समाँ’ (सन् 1938 ई.), (3) ‘नारी क्या एक पहेली? (सन् 1951 ई.), (4) ‘हवेली और झोपड़ी’ (सन् 1951 ई.), (5) ‘देव और दानव’ (सन् 1951 ई.), (6) ‘वे और हम’ (सन् 1956 ई.), (7) ‘धर्म और मर्म’ (सन् 1959 ई.) (😎 ‘तब और अब’ (सन् 1958 ई.), (9) ‘अबला क्या ऐसी सबला?’ (सन् 1962 ई.), (10) ‘बिखरे मोती’ (भाग-1) (सन् 1965 ई.)।
🔰 संस्मरण:- (1) ‘टूटा तारा’ (1941), (2) ‘बिखरे मोती’ (भाग-2, 3) (1966)।
रिपोर्ट- जयराम
साभार : rohtasdistrict.com
🇮🇳 #पद्मभूषण तथा साहित्य वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत; हिंदी के सुप्रसिद्ध #साहित्यकार #राजा_राधिकारमण_प्रसाद_सिंह जी को उनकी पुण्यतिथि पर हार्दिक श्रद्धांजलि !
#Raja_Radhikaman_Prasad_Singh ji
#literateur
#padmabhushan
🇮🇳💐🙏
#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व
#आजादी_का_अमृतकाल
साभार: चन्द्र कांत (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
सूचना: यंहा दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की कोई गारंटी नहीं है। सूचना के लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ...
Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें