19 मार्च 2024

Freedom Fighter Charuchandra Bose | दिव्यांग क्रन्तिकारी चारुचंद्र बोस | 26 फरवरी 1890 - 19 मार्च 1909



🇮🇳 चारुचंद्र बोस - जिन्हें अपने प्राणों से अधिक प्यारी थी स्वतंत्रता; 19 साल की उम्र में फाँसी पर चढ़े 🇮🇳

🇮🇳 वह दिव्यांग थे और उनके हाथ में अंगुलियाँ नहीं थी। इसलिए वह दाहिने हाथ में पिस्तौल बाँधकर बाँये हाथ की अंगुली से ट्रिगर दबाकर पिस्तौल चलाने का अभ्यास करते। 🇮🇳

🇮🇳 भारत की स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी आंदोलन में अपना योगदान देने वाले क्रांतिवीर चारुचंद्र बोस का जन्म 26 फरवरी 1890 को #खुलना में हुआ था जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है। उनके पिता का नाम #केशवचंद्र_बोस था। उनके परिवार में #देशभक्ति का माहौल था। जिनका चारुचंद्र बोस पर व्यापक प्रभाव पड़ा। 

🇮🇳 वह बाल्यकाल से ही बहादुर और निर्भीक थे। वह दिव्यांग थे और उनके हाथ में अंगुलियाँ नहीं थी। इसलिए वह दाहिने हाथ में पिस्तौल बाँधकर बाँये हाथ की अंगुली से ट्रिगर दबाकर पिस्तौल चलाने का अभ्यास करते। सामान्य कद-काठी के चारुचंद्र बोस #देशभक्ति की भावना और जज्बे से ओतप्रोत थे। उन्हें देश की स्वतंत्रता अपने प्राण से भी अधिक प्यारी थी। 

🇮🇳 उन्होंने #कोलकाता और #हावड़ा में विभिन्न प्रेस और समाचार-पत्रों में भी काम किया। क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए वह #युगांतर_संगठन से जुड़ गए। वह #अनुशीलन_समिति से भी जुड़े रहे। इसी दौरान, आशु बिस्वास नाम का एक सरकारी वकील चारुचंद्र बोस की आँखों में खटकने लगा जो देशभक्त क्रांतिकारियों को हमेशा सजा दिलाने की ताक में लगा रहता था। ऐसे में उन्होंने मन ही मन उस वकील को सबक सिखाने की ठान ली और इसके लिए योजना बनाने लगे। 

🇮🇳 चारुचंद्र बोस, उस वकील पर नजर रखने लगे। एक दिन मौका पाकर उन्होंने फरवरी 1909 को #अलीपुर_बम_मामले में सरकारी वकील आशु बिस्वास की गोली मार कर हत्या कर दी। इस घटना के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया। अदालत में सुनवाई के समय चारुचंद्र ने कहा कि आशु विश्वास एक देशद्रोही था। मैंने उसे मारने का निश्चय कर लिया था। माना जाता है कि मुकदमे की सुनवाई के दौरान उन्होंने बचने का कोई प्रयास नहीं किया। अपने बचाव के लिए किसी वकील को रखने से भी इंकार कर दिया। अदालत ने उन्हें मृत्युदंड की सजा सुना दी। 

🇮🇳 19 मार्च, 1909 को #अलीपुर केंद्रीय कारागार में उन्हें फाँसी की सजा दी गई। कहा जाता है कि फाँसी दिए जाने के समय उन्होंने विजयी भाव से स्वयं अपने गले में फंदा डाल लिया। इस दौरान उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी बल्कि मुस्कान तैर रही थी। l

साभार: newindiasamachar.pib.gov.in

🇮🇳 बाल्यकाल से दिव्यांगता के कारण दाहिने हाथ में पिस्तौल बाँधकर बाँये हाथ की अंगुली से ट्रिगर दबाकर पिस्तौल चलाने का हुनर सीखकर, #भारत की #स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी आंदोलन में अपना योगदान देने वाले #क्रांतिवीर #चारुचंद्र_बोस जी को उनके #बलिदान_दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 

#आजादी_का_अमृतकाल

#Charuchandra_Bose #revolutionary_movement  #India #independence #sacrifice_day 

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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