24 मार्च 2024

World Tuberculosis Day | विश्व क्षय रोग दिवस | World TB Day | विश्व तपेदिक दिवस



 #विश्व_तपेदिक_दिवस 

#विश्व_क्षय_रोग दिवस, प्रत्येक वर्ष #24_मार्च को मनाया जाता है, जिसे #तपेदिक की वैश्विक #महामारी और #बीमारी को खत्म करने के प्रयासों के बारे में जन जागरूकता पैदा करने के लिए बनाया गया है। 2018 में, 10 मिलियन लोग #टीबी से बीमार हुए, और 1.5 मिलियन लोग इस बीमारी से मर गए, ज्यादातर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में | 

#World #Tuberculosis #Day, observed on #24_March each year, is designed to build #public #awareness about the global #epidemic of tuberculosis and efforts to eliminate the disease. In 2018, 10 million people fell ill with #TB, and 1.5 million died from the #disease, mostly in low and middle-income countries. 



टीबी के विनाशकारी स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक परिणामों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और वैश्विक टीबी महामारी को समाप्त करने के प्रयासों को बढ़ाने के लिए 24 मार्च को विश्व क्षय रोग (टीबी) दिवस मनाते हैं। यह तारीख 1882 के उस दिन को चिह्नित करती है जब डॉ. रॉबर्ट कोच ने घोषणा की थी कि उन्होंने टीबी का कारण बनने वाले जीवाणु की खोज कर ली है, जिसने इस बीमारी के निदान और इलाज का रास्ता खोल दिया।



World Tuberculosis (TB) Day is celebrated on 24 March to raise public awareness about the devastating health, social and economic consequences of TB and to step up efforts to end the global TB epidemic. This date marks the day in 1882 when Dr. Robert Koch announced that he had discovered the bacterium that causes TB, opening the way for the diagnosis and treatment of the disease.


#विश्व_तपेदिक_दिवस 

🇮🇳 डब्लूएचओ की ओर से 2030 तक दुनिया को और भारत की ओर से 2025 तक देशवासियों को टीबी की बीमारी से पूरी तरह से छुटकारा दिलाने का लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है. 🇮🇳

सावधानी रखें।

#World_Tuberculosis_Day 


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


23 मार्च 2024

Why should Hindus pray for Kejriwal in temples? | मंदिरों में हिंदू केजरीवाल के लिए प्रार्थना क्यों करें - लेखक : सुभाष चन्द्र




घिसे पिटे बयान देने से क्या होगा - गुरु #अन्ना ने ही “कुकर्मी” कह दिया,

मंदिरों में #हिंदू #केजरीवाल के लिए प्रार्थना क्यों करें -

देश को सावधान रहना होगा, “अराजक” व्यक्ति कुछ भी कर सकता है -

केजरीवाल के “शीश महल” पर रेड में जो #ED अधिकारियों और अन्य लोगों की जासूसी के सबूत मिले वो उसे देशद्रोह के केस में दोषी करार दे सकते हैं बशर्ते मीलॉर्ड मेहरबान न हों 

केजरीवाल की गिरफ़्तारी के समय उसका माता पिता के चरण छू कर आशीर्वाद लेना नहीं दिखाया गया और भागता रहा अदालतों में लेकिन गांधी समाधि पर “अनशन” करने नहीं गया -अब अन्ना हज़ारे, कल तक के गुरु ने भी कह दिया कि केजरीवाल को अपने “कर्मों” का फल मिला है और यह होना ही था, उसने मेरी बात नहीं मानी कि शराब का विरोध होना चाहिए -

दरअसल #केजरीवाल ने सत्ता के नशे में हर किसी को भुला दिया - उसे यह भान ही नहीं रहा कि नरेंद्र मोदी जैसे भगवान के भक्त पर राजनीति के चलते भी मर्यादा में रहना चाहिए - आज भी उसे मोदी का अहंकार दिखाई दे रहा है, अपने अहंकार को चरम पर पहुंचा हुआ नहीं देख रहा - #मोदी ने कभी केजरीवाल की बेबुनियाद और असभय भाषा और अनर्गल आरोपों पर कोई जवाब नहीं दिया लेकिन यह तो निश्चित है मोदी का दिल  केजरीवाल को श्राप जरूर देता होगा -

श्राप, आशीर्वाद और कसम के फलीभूत होने का समय इनके लेने से ही नियत हो जाता है - ईश्वर करे केजरीवाल की कसम कभी फलीभूत न हो, मोदी के श्राप का फल तो सामने आ गया - यह बात #राहुल_गांधी भी समझ ले तो अच्छा है -

सुबह से “आप” के नेता ढोल पीट रहे हैं कि केजरीवाल के घर पर रेड में एक रुपया भी नहीं मिला और अगर घोटाला हुआ तो पैसा कहां गया - ऐसी घिसी पिटी बातें #सत्येंद्र_जैन, #सिसोदिया और #संजय सिंह के घरों पर रेड के बाद खुद केजरीवाल ने की थी - लेकिन यह भी सत्य है कि इन तीनों को कहीं #जमानत नहीं मिल रही और #सुप्रीम_कोर्ट ने तो 338 करोड़ की गड़बड़ी मिलने की बात साफ़ साफ़ कही थी -

इन 3 नेताओं की जमानत ख़ारिज करते हुए अदालतों ने यही माना है कि ये प्रभावशाली लोग सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं, उन्हें नष्ट कर सकते हैं - केजरीवाल तो #मुख्यमंत्री है उसके पास तो इन सबसे ज्यादा शक्ति है सबूतों को ख़त्म करने की - मतलब साफ़ है जब ये तीनों बाहर नहीं आ पा रहे तो केजरीवाल कैसे आएगा -

आज केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने उसका एक बयान मीडिया में पढ़ा - #News_Portals पर #heading में लिखा गया कि केजरीवाल ने कहा है - “Go to #temple, seek blessings for me” - मगर ये शब्द जो #मीडिया में उसका पढ़ा हुआ बयान आया है, उसमे नहीं हैं -

सवाल यह है मंदिरों में कौन जाएगा - हिंदू ही जाएंगे न - परंतु हिंदू केजरीवाल के लिए मंदिरों में जाकर क्यों प्रार्थना करें जब वह सब कुछ लुटाता है मस्जिदों के इमामों पर और वक्फ बोर्ड पर  - इतना ही नहीं #पाकिस्तान #बांग्लादेश और #अफगानिस्तान के शरणार्थियों को नागरिकता देने का विरोध करते हुए उन्हें चोर, डकैत और बलात्कारी कहता है - फिर हिंदू कौम उसके लिए क्यों कष्ट उठाए क्योंकि केजरीवाल ने वोटों के लिए तो मुस्लिम समुदाय के सामने ही नाक रगड़नी है -

परसों #दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद गिरफ्तार हुआ और आज फिर उसी कोर्ट में गिरफ़्तारी को चुनौती देने पहुंच गया - जिस कोर्ट ने गिरफ़्तारी पर रोक नहीं लगाईं, वह गिरफ़्तारी के खिलाफ कैसे फैसला देगा - कोर्ट से कह रहा था कि कल रविवार को ही सुनवाई कीजिए लेकिन कोर्ट ने टरका दिया और बुधवार 27 मार्च को सुनवाई तय कर दी 

देश को सावधान रहना होगा, जो व्यक्ति खुद को “अराजक” तत्व मानता है, वह गिरफ़्तारी के खिलाफ कोई भी..... कार्य कर सकता है चाहे कुछ क्यों न हो - राघव चड्ढा तो गया ही है लंदन कुछ जुगाड़ करने.....

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 22/03/2024 

#Kejriwal  #judiciary #ed #cbi #delhi #sharabghotala #Rouse_Avenue_court #liquor_scam #aap  #Muslims,#implemented_CAA,#Mamata, #Stalin, #Vijayan, #threatening , #impose_CAA ,#respective_states,#Opposition_Against_CAA, #persecuted_Hindus #minorities, #except_Muslims #Congress_Party,  #political_party,  #indi #gathbandhan  #Prime_Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court #Arvind_Kejriwal, #DMK  #A_Raja  #top_stories

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Mr. Praveen H. Parekh | श्री प्रवीण एच. पारेख | सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता

 



पद्मश्री प्रवीण एच. पारेख भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अभ्यास करने वाले एक वरिष्ठ वकील हैं। वह 2004 से 2014 के बीच छह बार सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं। वह 2004 तक दस वर्षों तक सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे हैं।

🇮🇳 एलएलबी उत्तीर्ण. 1965 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, बॉम्बे से प्रथम श्रेणी में स्नातक किया और बॉम्बे यूनिवर्सिटी द्वारा सर चार्ल्स सार्जेंट मेमोरियल स्कॉलरशिप से सम्मानित किया गया। उन्हें रोटरी क्लब ऑफ बॉम्बे द्वारा "वर्ष के सर्वश्रेष्ठ छात्र" के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

🇮🇳 हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, यूएसए से पीआईएल उत्तीर्ण की।

🇮🇳 पद्मश्री प्रवीण एच. पारेख पिछले 58 वर्षों से कानूनी पेशे में पहले बॉम्बे हाई कोर्ट में और बाद में भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक वरिष्ठ वकील के रूप में प्रैक्टिस कर रहे हैं।

🇮🇳 उन्हें चुनाव याचिकाओं में भारत के राष्ट्रपतियों और उपराष्ट्रपतियों का प्रतिनिधित्व करने का गौरव प्राप्त है। कानूनी प्रैक्टिस में उनके क्लाइंट्स की सूची में यूएसए सरकार, कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रतिष्ठित सार्वजनिक उपक्रम, बैंक और भारत के बड़े औद्योगिक घराने शामिल हैं।

🇮🇳 पद्मश्री प्रवीण एच. पारेख इंटरनेशनल लॉ एसोसिएशन, इंटरनेशनल बार एसोसिएशन, अमेरिकन बार एसोसिएशन के साथ-साथ कई भारतीय संगठनों सहित बड़ी संख्या में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से जुड़े रहे हैं। 

🇮🇳 वह महिलाओं, बच्चों और समाज के वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए लड़ने में सक्रिय रहे हैं। वह उपभोक्ताओं के अधिकारों के लिए भी लड़ते रहे हैं और तीन दशकों तक उपभोक्ता शिक्षा और अनुसंधान केंद्र (सीईआरसी), अहमदाबाद के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं और उसके बाद सीईआरसी के अध्यक्ष के ट्रस्टी रहे हैं।

साभार: bgu.ac.in

🇮🇳 वर्ष 2012 में आज ही के दिन सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री #प्रवीण_एच_पारेख जी को उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए #पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया था। इस अवसर पर महिलाओं, बच्चों और समाज के वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए लड़ने में सक्रिय आदरणीय प्रवीण एच. पारेख जी को हार्दिक बधाई !

#Praveen_H_Parekh

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

Pravin H Parekh

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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Basanti Devi | स्वतंत्रता आंदोलन की अमर सेनानी बसंती देवी | 23 मार्च 1880 - 7 मई 1974

 





1925 में अपने पति #देशबंधु_चित्तरंजन_दास के देहांत के बाद भी #बसंती_देवी बराबर राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेती रहीं। 🇮🇳

🇮🇳 बसंती देवी (जन्म: 23 मार्च, 1880, कोलकाता; मृत्यु: 7 मई 1974) भारत की स्वतंत्रता सेनानी और बंगाल के प्रसिद्ध नेता #चित्तरंजन_दास की पत्नी थीं। राष्ट्रपिता #महात्मा_गाँधी द्वारा आरंभ किए गये #असहयोग_आंदोलन में भी ये सम्मिलित हुईं। लोगों में #खादी का प्रचार करने के अभियोग में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

🇮🇳 बंगाल के प्रसिद्ध नेता चित्तरंजन दास की पत्नी बसंती देवी का जन्म 23 मार्च, 1880 ई. को #कोलकाता (पूर्व नाम कलकत्ता) में हुआ। बचपन में ये अपने पिता के साथ #असम में रहती थीं तथा आगे की शिक्षा के लिए कोलकाता आ गईं। यहीं 1897 में इनका बैरिस्टर चित्तरंजन दास के साथ विवाह हुआ।

🇮🇳 बसंती देवी भी स्वतंत्रता सेनानी थीं, जब 1917 में चित्तरंजन दास राजनीति में कूद पड़े तो बसंती देवी ने भी पूरी तरह से उनका साथ दिया। गाँधी जी द्वारा आरंभ किए गये 'असहयोग आंदोलन' में ये सम्मिलित हुईं। इनके द्वारा लोगों में खादी का प्रचार करने के अभियोग में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और इसके बाद ही 1921 में इनके पति और पुत्र भी पकड़ लिये गये। लोगों में खादी के प्रचार के अभियोग में बसंती देवी की गिरफ्तारी का लोगों ने बहुत विरोध किया। देश के अनेक प्रमुख बैरिस्टरों ने भी इसके विरोध में आवाज़ उठाई औ #बसंती_देवी जी र मामला वाइसराय तक ले गए। जहाँ इसके बाद सरकार ने इन्हें रिहा कर दिया।

🇮🇳 जेल से बाहर आने पर भी बसंती देवी ने विदेशी शासन का विरोध जारी रखा। ये देश के विभिन्न स्थानों में गईं और लोगों को चित्तरंजन दास के राजनीतिक विचारों से परिचित कराया। 1922 में चित्तरंजन दास, #मौलाना_अबुल_कलाम_आज़ाद, #सुभाष_चंद्र_बोस आदि गिरफ्तार कर लिए गए। चित्तरंजन दास को चटगाँव राजनीतिक सम्मेलन की अध्यक्षता करनी थीं। परंतु उनकी गिरफ्तारी पर बसंती देवी ने स्वयं इस सम्मेलन की अध्यक्षता की।

🇮🇳 1925 में देशबंधु चित्तरंजन दास का देहांत हो गया। इसके बाद भी बसंती देवी बराबर राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेती रहीं और 1974 में इनका देहांत हो गया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #पद्मविभूषण से सम्मानित; भारत के #स्वतंत्रता आंदोलन की अमर सेनानी #बसंती_देवी जी को उनकी जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि !

#Basanti_devi ji

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 



Dr. Ram Manohar Lohia | डॉ. राम मनोहर लोहिया | 23 March 1910 – 12 October 1967

 




किसी देश का उत्थान जनता की चेतना और राजनीतिक जागरूकता पर निर्भर करता है। 🇮🇳 

🇮🇳 आज देश के महानायक भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और डॉ. राम मनोहर लोहिया को एक साथ याद करने का दिन है। 23 मार्च को जहाँ भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के बलिदान का दिन है तो वहीं महान समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया की जयंती भी है।

🇮🇳 डॉ. लोहिया एक ऐसे चिंतक और नेता थे, जिन्होंने अपने जन्मदिन को बलिदान दिवस (शहीदी दिवस) को समर्पित कर दिया। वे कहते थे कि यह जन्मदिन से अधिक अपने महानायकों को याद करने का दिन है, जो बहुत कम उम्र में बलिदान देकर समाज को एक बड़ा सपना दे गया। ऐसे बलिदान समाज में एक नई सोच और सपने देखने के नजरिए को प्रतिफलित करती हैं, उस सपने को आगे बढ़ाने का दिन है।

🇮🇳 उन्होंने भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदानों के बाद खुद का जन्मदिन मनाने से इनकार कर दिया और अपने समाजवादी साथियों से यह अपील की कि वह भी उसे न मनाएं । अगर कोई उनसे जन्मदिन मनाने का आग्रह करता तो वह स्पष्ट रूप से कहते थे कि भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदानों को याद करना चाहिए और इस दिन को हमें बलिदान दिवस के रूप में मनाना चाहिए।

🇮🇳 इतने कम उम्र में भगत सिंह जितना लिख गए और पढ़ गए वह अद्भुत है। उनकी लेखनी में समाज के हाशिए पर खड़े लोगों की झलक दिखती है। आज हमारे समाज को भगत सिंह और डॉ. राम मनोहर लोहिया के त्याग, विचार और संदेश को आत्मसात करने की जरूरत है।

डॉ. लोहिया और भगत सिंह की कार्य प्रणाली, व्यक्तित्व, सोच एवं जीवन दर्शन में कई समानताएं देखने को मिलती हैं। दोनों का लक्ष्य था कि एक ऐसे समाज की स्थापना की जाए, जिसमें शोषण न हो, भेदभाव न हो, असमानता न हो, किसी प्रकार का अप्राकृतिक अथवा अमानवीय विभेद न हो। अर्थात समतामूलक समाजवादी समाज की स्थापना की जाए।

🇮🇳 दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि समाज में व्यक्ति-व्यक्ति के बीच कोई भेद एवं कोई दीवार न हो, न ही जाति का बंधन हो और न ही धर्म की बंदिशें हो, सभी जन एक समान हों और सब जन का मंगल हो।

🇮🇳 वहीं मौजूदा हालात ऐसे हैं, जिसमें सभी का मंगल बाधित होता दिख रहा है। देश में बढ़ती बेरोजगारी, महँगाई, छात्र-छात्राओं में हताशा की किरणें और आए दिन राजनीतिक परिदृश्य में परिवर्तन इस ओर इशारा करती हैं कि राम मनोहर लोहिया की समाजवादी विचारधारा आज भी प्रासंगिक है।

उन्होंने कहा था कि-

जो लोग ये कहते हैं कि राजनीति को रोजी-रोटी की समस्या से अलग रखो तो यह कहना उनकी अज्ञानता है या बेईमानी है। राजनीति का अर्थ और प्रमुख उद्देश्य लोगों का पेट भरना है। जिस राजनीति से लोगों को रोटी नहीं मिलती, उनका पेट नहीं भरता वह राजनीति भ्रष्ट, पापी और नीच राजनीति है।’ अर्थात राजनीति को हम दरकिनार करके समाज के विकास या समतामूलक समाज की स्थापना की बात नहीं कर सकते हैं। क्योंकि राजनीति भी हमारे समाज का ही हिस्सा है।

🇮🇳 राजनीति में शुचिता और पारदर्शिता डॉ. लोहिया की पहली शर्त थी, लेकिन राजनीति का बदलता स्वरूप समाज की प्राथमिकता को कम कर रहा है। समाज से सीधा संवाद नहीं हो रहा है। यहाँ पर संवाद की प्रक्रिया में ओपिनियन लीडर की भूमिका अहम हो गई है, जो राजनीतिक पार्टियों के द्वारा तय किए गए मुद्दों पर केंद्रित होता दिख रहा है।

🇮🇳 जहाँ समाज की भूमिका कम हो जाती है और राजनीति धीरे-धीरे रोजी-रोटी की समस्या से दूर होने लगती है। वहीं वोट की राजनीति पर अधिक केंद्रित हो जाती है। जबकि किसी देश का उत्थान जनता की चेतना और राजनीतिक जागरूकता पर निर्भर करता है।

🇮🇳 डॉ. लोहिया समाज के अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के लोकतांत्रिक अधिकारों की बात करते थे। उन्होंने कहा कि आर्थिक गैर बराबरी जाति-पाति राक्षस हैं और अगर एक से लड़ना है तो दूसरे से भी लड़ना जरूरी है। जाति समाज में असमानता को उत्पन्न करती है। जाति प्रथा के कारण ही समाज के निम्न वर्ग के लोग शोषण का शिकार होते हैं और उन्हें उन्नति के अवसरों से दूर कर देती है।

🇮🇳 यही असमानता मानव विकास की यात्रा में बढ़ती दिख रही है। इसके लिए जाति भेदभाव को खत्म करने की आवश्यकता है और यह आर्थिक बराबरी होने पर ही खत्म हो सकती है। इसलिए समाज को बराबरी और समतामूलक बनाने के लिए इनसे छुटकारा पाना होगा। वे आजीवन समाजवादी विचारों के समरूप समानता स्थापित करने लिए संघर्षरत रहे।

🇮🇳 वह देश के उन तमाम लोगों की आवाज थे, जिनकी आवाज संसद तक नहीं पहुँचती थी। उन सभी की आवाज को उन्होंने संसद तक पहुंचाया। आज भी हमें याद है कि कैसे राम मनोहर लोहिया ने संसद में एक आम आदमी के रोज के खर्चे से हजारों गुना अधिक बताते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पर तीखा हमला किया था।

🇮🇳 उन्होंने एक आम आदमी की आमदनी की पीड़ा को प्रधानमंत्री के समक्ष रखा। उन्होंने कहा था-

जो आबादी का 27 करोड़ है, वह तीन आना प्रतिदिन पर जीवनयापन कर रहे हैं। वहीं प्रधानमंत्री के कुत्ते पर प्रतिदिन तीन रुपये का खर्च किया जाता है। जबकि प्रधानमंत्री पर प्रतिदिन 25 से 30 हजार रुपये खर्च होता है। उन्होंने संसद में जनता की समस्याओं को तर्कों के साथ रखने की एक अलग पहचान को साबित किया। 

🇮🇳 आज भी डॉ. लोहिया के विचारों से सीखने की जरूरत है कि कैसे विपक्ष की भूमिका में रहकर जनता के सवालों को पूरे जोरदार तरीके से रखा जाए। यह बातें सिर्फ लोहिया के भाषण के रूप में नहीं है, बल्कि वर्तमान राजनीतिक पार्टियों के लिए सीखने और आत्मसात करने की जरूरत है। उनके कालखंड में जितने भी विपक्षी नेता हुए, उन सब में एक नैतिक बल की दृष्टि थी, जिसका आज के विपक्षी नेताओं में अभाव दिख रहा है।

🇮🇳 वे जीवन के अंतिम वर्षों में राजनीति के अलावा साहित्य एवं कला पर युवाओं से संवाद करते रहे। उन्होंने कहा था कि ‘जिंदा कौमें पाँच साल इंतजार नहीं करतीं।’ डॉ. लोहिया जीवन के अंतिम क्षण तक कौम के बारे में सोचते रहते थे, लेकिन अब यह दिखाई नहीं देता।

🇮🇳 आज के नेता सिर्फ व सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, जिससे परिवारवाद का भी आरोप लगता रहा है। भारतीय राजनीति में डॉ. लोहिया की आज भी जरूरत है। उनका विचार और समतामूलक समाज की अवधारणा भारतीय संदर्भों में देश का भविष्य सुनिश्चित कर सकता है।

साभार : amarujala.com

🇮🇳 समतामूलक समाज की अवधारणा को आगे बढ़ाने वाले, समाजवाद के जनक, भारतीय #स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी #राममनोहर_लोहिया जी को उनकी जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि !

#RamManohar_Lohia ji

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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| स्वतंत्रता सेनानी सुहासिनी गांगुली | जन्म- 3 फ़रवरी, 1909; मृत्यु- 23 मार्च, 1965





 #क्रांतिकारी_वीरांगना भारत की लड़ाई में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी कंधे से कंधा मिलाकर अपना योगदान दिया। इसमें से कई महिलाओं ने जहाँ #महात्मा_गाँधी के अहिंसा का मार्ग अपनाया तो वहीं कई महिलाओं ने #चंद्रशेखर_आजाद और #भगत_सिंह जैसे क्रांतिकारियों के मार्ग को अपनाया। ऐसे ही महान महिला स्वतंत्रता सेनानियों में #सुहासिनी गांगुली का नाम प्रमुख है जिन्होंने बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियों में अपना सक्रिय योगदान दिया ।

🇮🇳 सुहासिनी गांगुली का जन्म 3 फरवरी 1909 को तत्कालीन बंगाल के #खुलना में हुआ था।

🇮🇳 अपनी शिक्षा पूरी करने के उपरांत उन्होंने #कोलकाता में एक मूक बधिर बच्चों के स्कूल में नौकरी करना शुरू किया जहाँ पर वह क्रांतिकारियों के संपर्क में आई।

🇮🇳 उल्लेखनीय है कि उन दिनों बंगाल में ‘छात्री संघा’ नाम का एक महिला क्रांतिकारी संगठन कार्यरत था जिसकी कमान #कमला_दासगुप्ता के हाथों में थी। उल्लेखनीय है कि इसी संगठन से #प्रीति_लता_वादेदार और #बीना_दास जैसी वीरांगनायें जुड़ी हुई थी।

🇮🇳 खुलना के क्रांतिकारी #रसिक_लाल_दास और क्रांतिकारी #हेमंत_तरफदार के संपर्क में आने से सुहासिनी गांगुली क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर प्रेरित हुई और जल्द ही #युगांतर_पार्टी से जुड़ गई।

🇮🇳 सन 1930 के #चटगाँव_शस्त्रागार_कांड के उपरांत #छात्री_संघा के साथ-साथ अन्य क्रांतिकारी साथियों समेत सुहासिनी गांगुली पर भी निगरानी बढ़ गई। इसके उपरांत वह चंद्रनगर आ गई एवं क्रांतिकारी #शशिधर_आचार्य की छद्म धर्मपत्नी के तौर पर रहने लगीं।

🇮🇳 चंद्रनगर में रहते हुए सुहासिनी गांगुली ने क्रांतिकारियों को मदद करने में वही किरदार निभाया जैसा #दुर्गा_भाभी ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू समेत अन्य क्रांतिकारियों की मदद करने के लिए निभाया था।

🇮🇳 इन्होंने पर्दे के पीछे से क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन हेतु अपने घर को ना केवल प्रमुख स्थल बनाया बल्कि उस दौर के सभी क्रांतिकारियों को जरूरत पड़ने पर आश्रय भी प्रदान किया।

🇮🇳 वर्ष 1930 में एक दिन पुलिस के साथ हुई आमने-सामने की मुठभेड़ में #जीवन_घोषाल जहाँ बलिदान हो गए वहीं शशिधर आचार्य और सुहासिनी को गिरफ्तार करके उन्हें #हिजली डिटेंशन कैम्प में रखा गया। आगे चलकर यही हिजली डिटेंशन कैम्प खड़गपुर आईआईटी का कैम्पस बना।

🇮🇳 1938 में रिहा होने के उपरांत इन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी को ज्वाइन किया। यद्यपि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कम्युनिस्ट पार्टी के द्वारा इस आंदोलन का बहिष्कार किया गया फिर भी इन्होंने आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए क्रांतिकारियों की लगातार मदद की।

🇮🇳 प्रसिद्ध क्रांतिकारी #हेमंत_तरफदार की सहायता के कारण इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया एवं इन्हें पुनः 1945 में रिहा किया गया। रिहा होने के उपरांत वह हेमंत तरफदार द्वारा निवास कर रहे धनबाद के एक आश्रम में रहने लगी।

🇮🇳 अन्य तात्कालिक स्वतंत्रता सेनानियों के विपरीत इन्होंने राजनीति का त्याग करते हुए आजादी के बाद अपना सारा जीवन सामाजिक, आध्यात्मिक कार्यों हेतु समर्पित कर दिया।

🇮🇳 मार्च 1965 में यह एक सड़क दुर्घटना की शिकार हो गई एवं इलाज के दौरान चिकित्सीय लापरवाही से बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण इनकी मृत्यु 23 मार्च 1965 को हो गई।

साभार: dhyeyaias.com

🇮🇳 भारत के स्वाधीनता संघर्ष की #स्वतंत्रता सेनानी, #क्रांतिकारी #वीरांगना #सुहासिनी_गांगुली जी को उनकी पुण्यतिथि पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से शत् शत् नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

#Revolutionary  #Suhasini_Ganguly ji

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 



Krantiveer Hemu Kalani | क्रांतिवीर हेमू कालाणी | 23 मार्च 1923 - 21 जनवरी 1943

 




#Krantiveer_Hemu_Kalani

#क्रांतिवीर_हेमू_कालाणी 

हेमू कालाणी जब मात्र 7 वर्ष के थे तब वह #तिरंगा लेकर अंग्रेजों की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे | 🇮🇳

🇮🇳 जब फाँसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। 🇮🇳

🇮🇳 स्वतंत्रता संग्राम में भारत माता के अनगिनत सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराया | आजादी की लड़ाई में भारत के सभी प्रदेशों का योगदान रहा | अंग्रेजों को भारत से भगा कर देश को जिन वन्दनीय वीरों ने आजाद कराया उनमे सबसे कम उम्र के बालक क्रांतिकारी अमर बलिदानी हेमू कालाणी को भारत देश कभी नही भुला पायेगा |

🇮🇳 हेमू कालाणी #सिन्ध के #सख्खर में 23 मार्च सन् 1923 को जन्मे थे। उनके पिताजी का नाम #पेसूमल_कालाणी एवं उनकी माँ का नाम #जेठी_बाई था।

🇮🇳 हेमू बचपन से साहसी तथा विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे | हेमू कालाणी जब मात्र 7 वर्ष के थे तब वह तिरंगा लेकर अंग्रेजों की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे |

🇮🇳 1942 में 19 वर्षीय किशोर क्रांतिकारी ने “अंग्रेजों भारत छोड़ो” नारे के साथ अपनी टोली के साथ सिंध प्रदेश में तहलका मचा दिया था और उसके उत्साह को देखकर प्रत्येक सिंधवासी में जोश आ गया था | हेमू समस्त विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए लोगों से अनुरोध किया करते थे | शीघ्र ही सक्रिय क्रान्तिकारी गतिविधियों में शामिल होकर उन्होंने हुकुमत को उखाड़ फेंकने के संकल्प के साथ राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रियाकलापों में भाग लेना शुरू कर दिया | अत्याचारी फिरंगी सरकार के खिलाफ छापामार गतिविधियों एवं उनके वाहनों को जलाने में हेमू सदा अपने साथियों का नेतृत्व करते थे |

🇮🇳 हेमू ने अंग्रेजों की एक ट्रेन, जिसमे क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए हथियार एवं अंग्रेजी अफसरों का खूंखार दस्ता था, उसे सक्खर पुल में पटरी की फिश प्लेट खोलकर गिराने का कार्य किया था जिसे अंग्रेजों ने देख लिया था | 

🇮🇳 1942 में क्रांतिकारी हौसले से भयभीत अंग्रजी हुकुमत ने हेमू की उम्र कैद को फाँसी की सजा में तब्दील कर दिया | पूरे भारत में सिंध प्रदेश में सभी लोग एवं क्रांतिकारी संगठन हैरान रह गये और अंग्रेज सरकार के खिलाफ विरोध प्रकट किया | हेमू को जेल में अपने साथियों का नाम बताने के लिए काफी प्रलोभन और यातनायें दी गयी लेकिन उसने मुँह नही खोला और फाँसी पर झूलना ही बेहतर समझा |

🇮🇳 8 अगस्त 1942 को गॉंधी जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध 'भारत छोडो आन्दोलन' तथा 'करो या मरो' का नारा दिया। इससे पूरे देश का वातावरण एकदम गर्म हो गया। गाँधी जी का कहना था कि या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या इसके लिए जान दे देंगे। अंग्रेजों को भारत छोड कर जाना ही होगा। जनता तथा ब्रिटिश सरकार के बीच लडाई तेज हो गई। अधिकांश कांग्रेसी नेता पकड-पकड कर जेल में डाल दिए गए। इससे छात्रों, किसानों, मजदूरों, आदमी, औरतों व अनेक कर्मचारियों ने आन्दोलन की कमान स्वयं सम्हाल ली। पुलिस स्टेशन,पोस्ट ऑफिस,रेलवे स्टेशन आदि पर आक्रमण प्रारंभ हो गए। जगह जगह आगजनी की घटनाएं होने लगी। गोली और गिरफ्तारी के दम पर आंदोलन को काबू में लाने की कोशिश होने लगी। 

हेमू कालाणी सर्वगुण संपन्न व होनहार बालक था, जो जीवन के प्रारंभ से ही पढाई लिखाई के अलावा अच्छा तैराक, तीव्र साईकिल चालक तथा अच्छा धावक भी था। वह तैराकी में कई बार पुरस्कृत हुआ था। सिंध प्रान्त में भी तीव्र आन्दोलन उठ खडा हुआ तो इस वीर युवा ने आंदोलन में बढ चढकर हिस्सा लिया।

🇮🇳 अक्टूबर 1942 में हेमू को पता चला कि अंग्रेज सेना की एक टुकडी तथा हथियारों से भरी ट्रेन उसके नगर से गुजरेगी तो उसने अपने साथियों के साथ इस ट्रेन को गिराने की सोची। उसने रेल की पटरियों की फिशप्लेट निकालकर पटरी उखाडने तथा ट्रेन को डिरेल करने का प्लान तैयार किया। हेमू और उनके दोस्तों के पास पटरियों के नट बोल्ट खोलने के लिए कोई औजार नहीं थे अत: लोहे की छडों से पटरियों को हटाने लगे, जिससे बहुत आवाज होने लगी। जिससे हेमू और उनके दोस्तों को पकडने के लिए एक दस्ता तेजी से दौडा। हेमू ने सब दोस्तों को भगा दिया किन्तु खुद पकडा गया और जेल में डाल दिया गया।

🇮🇳 जब वे किशोर वयस्‍क अवस्‍था के थे तब उन्होंने अपने साथियों के साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का आग्रह किया। सन् 1942 में जब महात्मा गाँधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो हेमू इसमें कूद पड़े। 1942 में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी. हेमू कालाणी अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई। वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए। 

🇮🇳 हेमू कालाणी को कोर्ट ने फाँसी की सजा सुनाई. उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की। वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कालाणी अपने साथियों का नाम और पता बताये पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी।

🇮🇳 21 जनवरी 1943 को उन्हें फाँसी की सजा दी गई। जब फाँसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय की घोषणा के साथ उन्होंने फाँसी को स्वीकार किया ।

साभार: jivani.org

🇮🇳 माँ भारती को दासता की बेड़ियों से मुक्ति दिलाने के लिए मात्र 19 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति देने वाले, युवा #क्रांतिकारी अमर बलिदानी #हेमू_कालाणी जी की जयंती पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

#Hemu_Kalani ji

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...