23 मार्च 2024

Sardar Bhagat Singh | क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह | Sardar Kultar Singh | क्रांतिकारी सरदार कुलतार सिंह

 



वर्ष 1975 में अपने विद्यालय #गीता_विद्या_मंदिर, #सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) के #वार्षिकोत्सव में मुझे शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह के अनुज #सरदार_कुलतार_सिंह (जो समारोह के मुख्य अतिथि थे) का स्वागत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था !

~ चन्द्र कांत 

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

अपने छोटे भाई कुलतार के नाम सरदार भगत सिंह का अन्तिम पत्र :

सेंट्रल जेल, लाहौर,

3 मार्च, 1931

अजीज कुलतार,

आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दुख हुआ। आज तुम्हारी बातों में बहुत दर्द था, तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते।

बरखुर्दार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का ख्याल रखना। हौसला रखना और क्या कहूँ!

उसे यह फ़िक्र है हरदम नया तर्ज़े-ज़फा क्या है,

हमे यह शौक़ है देखें सितम की इन्तहा क्या है।

दहर से क्यों खफ़ा रहें, चर्ख़ का क्यों गिला करें,

सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें।

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहले-महफ़िल,

चराग़े-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ।

हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली,

ये मुश्ते-ख़ाक है फानी, रहे रहे न रहे।

अच्छा रुख़सत। खुश रहो अहले-वतन; हम तो सफ़र करते हैं। हिम्मत से रहना। नमस्ते।

तुम्हारा भाई,

भगतसिंह

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

🇮🇳 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर क्रांतिकारी #सरदार_भगत_सिंह जी और उनके अनुज क्रांतिकारी #सरदार_कुलतार_सिंह जी को भावभीनी श्रद्धांजलि !

#Sardar_Bhagat_Singh ji and his younger brothers revolutionary #Sardar_Kultar_Singh ji

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

22 मार्च 2024

ED vs Kejriwal | ये हालत होगी, पता था लेकिन इसके लिए जिम्मेदार केजरीवाल खुद और सिंघवी है - लेखक : सुभाष चन्द्र




ये हालत होगी, पता था लेकिन इसके लिए जिम्मेदार केजरीवाल खुद है 

और सिंघवी है -खूब गुजरेगी जब जेल में मिल बैठेंगे “4 यार”- #ED ने #केजरीवाल को - चारों खाने चित कर दिया,

केजरीवाल को आज #Rouse_Avenue_Court की #special_judge #कावेरी #बजाज ने #ED द्वारा मांगी हुई 10 दिन की #Custody की जगह 7 दिन की custody दे दी -

अपने पिछले 2 videos में मैंने कहा था कि केजरीवाल ने #सिंघवी से #संजय_सिंह की जमानत अर्जी पर बेकार दलील दिलवा कर अपना पैर ही कुल्हाड़ी पर मार लिया जब सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि संजय को ED ने बिना “#summon” जारी किए गिरफ्तार कर लिया और यह तथ्य केजरीवाल के खिलाफ जाता है क्योंकि उसे तो #9summon दिए ED ने -

दूसरी बात मैंने कही थी कि “कल हाई कोर्ट में सुनवाई जरूरी नहीं थी क्योंकि सब बातों पर परसों 20 मार्च को ही फैसला हो गया था - अब केजरीवाल अगले दिन #सुप्रीम_कोर्ट भागेगा हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ और इसलिए ED को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए” 

ऐसा ही हुआ, ED ने शाम को ही केजरीवाल के घर पर रेड कर दी और 2 घंटे सवाल जवाब करने के बाद लपेट लिया जिसके खिलाफ केजरीवाल रात को सुप्रीम कोर्ट चला गया - लेकिन आज  Rouse Avenue Court  में पेशी से पहले याचिका वापस ले ली यह कहते हुए  कि हम #lower_court में पहले अपनी बात करेंगे - फिर सिंघवी ने इसे सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह ही क्यों दी -

केजरीवाल की आज की स्थिति के लिए वह खुद भी जिम्मेदार है और सिंघवी समेत इसके सारे वकील जिम्मेदार हैं जो उन्होंने केजरीवाल को हाई कोर्ट में 9 summons को चुनौती देने की सलाह दी और अगले दिन यानी कल Arrest से Protection मांगने के लिए सलाह दी - जब इस केस में 15 लोग पहले गिरफ्तार हो चुके हैं तो केजरीवाल में क्या सुर्खाब के पर लगे हैं जो उसकी गिरफ़्तारी पर कोर्ट रोक लगाता -

केजरीवाल जब 8 summons पर पेश नहीं हुआ तो 9वें पर भी न जाता जिसमें उसे कल 21 मार्च को बुलाया था - लेकिन वह चला गया हाई कोर्ट राहत की कोई उम्मीद में जो मिलना संभव नहीं थी क्योंकि कोई कोर्ट summons पर पेश न होने की छूट नहीं देता - जब 20 मार्च को राहत नहीं मिली तो 21 को गिरफ़्तारी रोकने की शर्त पूरी कराने पहुंच गया हाई कोर्ट और अगर दोनों दिन हाई कोर्ट न जाता तो शायद आज की स्तिथि पैदा न होती -

अब “#आप” के नेताओं और केजरीवाल उसकी पत्नी की झल्लाहट देखिए क्या क्या बोल रहे हैं -

कह रहे है केजरीवाल एक “सोच है, प्रेरणा है” - केजरीवाल कह रहा है मैं देश के लिए काम करता रहूंगा और सुनीता केजरीवाल कह रही है कि “मोदी के अहंकार ने केजरीवाल को गिरफ्तार कराया है” - 

ऐसी सोच और प्रेरणा है केजरीवाल जो देश के लोगों को शराब के नशे में झोंक देना चाहता है और भ्रष्टाचार की शिक्षा देना चाहता है - उसे याद रखना चाहिए कि उसके सभी मंत्री अभी जेल में ही हैं और इसका भी बाहर आना संभव नहीं होगा - 

अभी भी मोदी को अपमानित करते शर्म नहीं आती - अब तो समझना चाहिए कि #मोदी को अनपढ़, गंवार और डरपोक और चौथी पास राजा कह कर अपमान करने का ही आज नतीजा मिला है-

मजे की बात तो यह है कि #कांग्रेस के नेता, #अजय_माकन, #अलका लांबा, #सुप्रिया श्रीनेत, #संदीप दीक्षित और# रागिनी नायक ने केजरीवाल का त्यागपत्र मांगा था तो #प्रियंका_वाड्रा और #राहुल #गांधी #केजरीवाल के साथ खड़े हैं -

जेल में बहुत समय मिलेगा “सोच” को “सोचने” का कि क्या ऐसे कर्म किए जिनका फल मिला है  

वैसे जेल में #सत्येंद्र जैन, #सिसोदिया, #संजय सिंह के साथ# केजरीवाल के मिलने से “चांडाल चौकड़ी” पूरी हो गई - पांचवा विजय नायर सेवा करेगा -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 22/03/2024 

#Kejriwal  #judiciary #ed #cbi #delhi #sharabghotala #Rouse_Avenue_court #liquor_scam #aap  #Muslims,#implemented_CAA,#Mamata, #Stalin, #Vijayan, #threatening , #impose_CAA ,#respective_states,#Opposition_Against_CAA, #persecuted_Hindus #minorities, #except_Muslims #Congress_Party,  #political_party,  #indi #gathbandhan  #Prime_Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court #Arvind_Kejriwal, #DMK  #A_Raja  #top_stories

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,

Suryasen | सूर्यसेन | Revolutionary | द हीरो ऑफ चटगांव क्रांति | 22 मार्च, 1894 -12 जनवरी, 1934

 


फाँसी के ऐन वक्त पहले उनके हाथों के नाखून उखाड़ लिए गए। उनके दाँतों को तोड़ दिया गया, ताकि अपनी अंतिम साँस तक वे वंदेमातरम् का उद्घोष न कर सकें। 🇮🇳

🇮🇳 ब्रितानी हुकूमत की क्रूरता और अपमान की पराकाष्ठा यह थी कि उनकी मृत देह को भी धातु के बक्से में बंद करके बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया। 🇮🇳

🇮🇳 मेरे लिए यह वह पल है, जब मैं मृत्यु को अपने परम मित्र के रूप में अंगीकार करूँ। इस सौभाग्यशील, पवित्र और निर्णायक पल में, मैं तुम सबके लिए क्या छोड़ कर जा रहा हूँ? सिर्फ एक चीज - मेरा स्वप्न, मेरा सुनहरा स्वप्न, #स्वतंत्र #भारत का स्वप्न। 🇮🇳

🇮🇳 हमारे देश को आजादी यों ही नसीब नहीं हुई है। भारत की स्वाधीनता की पृष्ठभूमि में कई महान क्रांतिकारियों ने अपने देश की आजादी की खातिर खून के कड़वे घूँट पीये हैं। ऐसे ही एक महान देशभक्त क्रांतिकारी थे सूर्यसेन। जिन्हें अंग्रेजों ने #मरते दम तक असहनीय यातनाएं दी थीं। अविभाजित बंगाल के #चटगॉंव (चिट्टागोंग, अब बांग्लादेश में) में स्वाधीनता आंदोलन के अमर नायक बने सूर्यसेन उर्फ सुरज्या सेन का जन्म 22 मार्च, 1894 को हुआ था। क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी सूर्यसेन को द हीरो ऑफ चिट्टागोंग के नाम से भी जाना जाता है। 

🇮🇳 अंग्रेजी हुकूमत क्रांतिकारी सूर्य सेन से इतना खौफ खाती थी कि उन्हें बेहोशी की हालत में फाँसी पर चढ़ाया गया था। अंग्रेजों के जुल्म ही दास्तां सिर्फ इतनी ही नहीं है। ब्रितानी तानाशाही की अमानवीय बर्बरता और क्रूरता की हद तब देखी गई जब सूर्यसेन को फाँसी के फंदे पर लटकाया जा रहा था। फाँसी के ऐन वक्त पहले उनके हाथों के नाखून उखाड़ लिए गए। उनके दाँतों को तोड़ दिया गया, ताकि अपनी अंतिम साँस तक वे वंदेमातरम का उदघोष न कर सकें। सूर्यसेन के संघर्ष की बानगी पढ़कर ही रूह काँप उठती है। लेकिन उन्होंने यह सब #मातृभूमि के लिए हँसते हुए झेला था। 

🇮🇳 पेशे से शिक्षक रहे बंगाल के इस नायक को लोग सूर्यसेन कम मास्टर दा कहकर ज्यादा पुकारते थे। 1930 की चटगाँव आर्मरी रेड के नायक मास्टर सूर्यसेन ने अंग्रेज सरकार को सीधी चुनौती दी थी। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर चटगॉंव को अंग्रेजी हुकूमत के शासन के दायरे से बाहर कर लिया था और भारतीय ध्वज को फहराया था। उन्होंने न केवल क्षेत्र में ब्रिटिश हुकूमत की संचार सुविधा ठप कीं बल्कि रेलवे, डाक और टेलीग्राफ सब संचार एवं सूचना माध्यमों को ध्वस्त करते हुए चटगाँव से अंग्रेज सरकार के संपर्क तंत्र को ही खत्म कर दिया था। 

🇮🇳 सूर्यसेन की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा चटगांव में ही हुई। उनके पिता #रामनिरंजन भी चटगाँव के ही #नोआपारा इलाके में एक शिक्षक थे। 22 वर्षीय सूर्यसेन जब इंटरमीडिएट के विद्यार्थी थे, तभी अपने एक शिक्षक की प्रेरणा से वह बंगाल की प्रमुख क्रांतिकारी संस्था #अनुशीलन_समिति के सदस्य बन गए। इसके बाद उन्होंने बहरामपुर कॉलेज में बीए कोर्स में दाखिला ले लिया। यहीं वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी संगठन #युगांतर से जुड़े। वर्ष 1918 में चटगाँव वापस आकर उन्होंने स्थानीय युवाओं को संगठित करने के लिए युगांतर पार्टी की स्थापना की। 

🇮🇳 शिक्षक बनने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की चटगाँव जिला शाखा के अध्यक्ष भी चुने गए थे। उन्होंने धन और हथियारों की कमी को देखते हुए अंग्रेज सरकार से #गुरिल्ला_युद्ध करने का निश्चय किया। उन्होंने दिन-दहाड़े 23 दिसंबर, 1923 को चटगाँव में असम-बंगाल रेलवे के ट्रेजरी ऑफिस को लूटा। किंतु उन्हें सबसे बड़ी सफलता चटगाँव आर्मरी रेड के रूप में मिली, जिसने अंग्रेजी सरकार को झकझोर दिया था।  

विज्ञापन

मास्टरा दा ने युवाओं को संगठित कर #भारतीय_प्रजातांत्रिक_सेना नामक संगठन खड़ा किया। 18 अप्रैल, 1930 को सैनिक वस्त्रों में इन युवाओं ने  के नेतृत्व में दो दल बनाए। इन्होंने चटगाँव के सहायक सैनिक शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया। किन्तु दुर्भाग्यवश उन्हें बंदूकें तो मिलीं, किंतु उनकी गोलियां नहीं मिल सकीं। क्रांतिकारियों ने टेलीफोन और टेलीग्राफ के तार काट दिए और रेलमार्गों को अवरुद्ध कर दिया। 

🇮🇳 अपनी साहसिक घटनाओं द्वारा अंग्रेजी सरकार को छकाते रहे। ऐसी अनेक घटनाओं में 1930 से 1932 के बीच 22 अंग्रेज अधिकारी और उनके लगभग 220 सहायकों की हत्याएं की गईं। इस दौरान मास्टर सूर्यसेन ने अनेक संकट झेले। 

🇮🇳 अंग्रेज सरकार ने सूर्यसेन पर 10 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया था। इसके लालच में एक धोखेबाज साथी नेत्रसेन की मुखबिरी पर 16 फरवरी, 1933 को अंग्रेज पुलिस ने सूर्यसेन को गिरफ्तार कर लिया। 

🇮🇳 12 जनवरी, 1934 को चटगाँव सेंट्रल जेल में सूर्यसेन को साथी #तारकेश्वर के साथ फाँसी की सजा दी गई, लेकिन फाँसी से पूर्व उन्हें कईं अमानवीय यातनाएं दी गईं। ब्रितानी हुकूमत की क्रूरता और अपमान की पराकाष्ठा यह थी कि उनकी मृत देह को भी धातु के बक्से में बंद करके बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया। आजादी के बाद चटगाँव सेंट्रल जेल के उस फाँसी के तख्त को बांग्लादेश सरकार ने मास्टर सूर्यसेन स्मारक घोषित किया था। 

🇮🇳 भारत डिस्कवरी डॉट ओरआरजी के अनुसार, मास्टर सूर्यसेन ने फॉसी के एक दिन पूर्व 11 जनवरी, 1934 को अपने एक मित्र को अंतिम पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा, "मृत्यु मेरा द्वार खटखटा रही है। मेरा मन अनंत की और बह रहा है। मेरे लिए यह वह पल है, जब मैं मृत्यु को अपने परम मित्र के रूप में अंगीकार करूँ। इस सौभाग्यशील, पवित्र और निर्णायक पल में, मैं तुम सबके लिए क्या छोड़ कर जा रहा हूँ? सिर्फ एक चीज - मेरा स्वप्न, मेरा सुनहरा स्वप्न, स्वतंत्र भारत का स्वप्न। प्रिय मित्रों, आगे बढ़ो और कभी अपने कदम पीछे मत खींचना। उठो और कभी निराश मत होना। सफलता अवश्य मिलेगी।"

साभार: amarujala.com

🇮🇳 भारतीय #स्वतंत्रता संग्राम के स्वर्णिम अध्याय के निर्माता वीर #क्रांतिकारी #मास्टर_दा #सूर्यसेन जी की जयंती पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

#Revolutionary #Master_Da #Suryasenji

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


Hanuman Prasad Poddar | हनुमान प्रसाद पोद्दार | जन्म:1892 - मृत्यु- 22 मार्च 1971

 



#अलौकिक_संत

हनुमान प्रसाद पोद्दार (जन्म:1892 - मृत्यु- 22 मार्च 1971) का नाम #गीता_प्रेस #Geeta_Press स्थापित करने के लिये भारत व विश्व में प्रसिद्ध है। भारतीय अध्यात्मिक जगत पर हनुमान पसाद पोद्दार नाम का एक ऐसा सूरज उदय हुआ, जिसकी वजह से देश के घर-घर में गीता, #रामायण, #वेद और #पुराण जैसे ग्रंथ पहुँचे सके। आज #गीता_प्रेस_गोरखपुर का नाम किसी भी भारतीय के लिए अनजाना नहीं है। सनातन हिंदू संस्कृति में आस्था रखने वाला दुनिया में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा, जो गीता प्रेस गोरखपुर के नाम से परिचित नहीं होगा। इस देश में और दुनिया के हर कोने में रामायण, #गीता, वेद, पुराण और #उपनिषद से लेकर प्राचीन भारत के ऋषियों -मुनियों की कथाओं को पहुँचाने का एक मात्र श्रेय गीता प्रेस गोरखपुर के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार को है। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर एक अकिंचन सेवक और निष्काम कर्मयोगी की तरह पोद्दार जी ने हिंदू संस्कृति की मान्यताओं को घर-घर तक पहुँचाने में जो योगदान दिया है, इतिहास में उसकी मिसाल मिलना ही मुश्किल है।

🇮🇳🔶 भारतीय पंचांग के अनुसार विक्रम संवत के वर्ष 1949 में अश्विन कृष्ण की प्रदोष के दिन उनका जन्म हुआ। #राजस्थान के #रतनगढ़ में #लाला_भीमराज_अग्रवाल और उनकी पत्नी #रिखीबाई हनुमान के भक्त थे, तो उन्होंने अपने पुत्र का नाम 'हनुमान प्रसाद' रख दिया। दो वर्ष की आयु में ही इनकी माता का स्वर्गवास हो जाने पर इनका पालन-पोषण इनकी दादी ने किया। #दादी के धार्मिक संस्कारों के बीच बालक हनुमान को बचपन से ही गीता, रामायण वेद, उपनिषद और पुराणों की कहानियाँ पढ़ने - सुनने को मिली। इन संस्कारों का बालक पर गहरा असर पड़ा। बचपन में ही इन्हें हनुमान कवच का पाठ सिखाया गया। निंबार्क संप्रदाय के #संत_ब्रजदास जी ने बालक को दीक्षा दी।

🇮🇳🔶 उस समय देश ग़ुलामी की जंज़ीरों मे जकड़ा हुआ था। इनके पिता अपने कारोबार का वजह से #कलकत्ता में थे और ये अपने दादा जी के साथ #असम में। कलकत्ता में ये स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों #अरविंद_घोष, #देशबंधु_चितरंजन_दास, #पंडित_झाबरमल_शर्मा के संपर्क में आए और आज़ादी आंदोलन में कूद पड़े। इसके बाद #लोकमान्य_तिलक और #गोपालकृष्ण_गोखले जब कलकत्ता आए तो पोद्दार जी उनके संपर्क में आए इसके बाद उनकी मुलाकात #गाँधीजी से हुई। 

🇮🇳🔶 #वीर_सावरकर द्वारा लिखे गए '1857 का स्वातंत्र्य समर ग्रंथ' से पोद्दार जी बहुत प्रभावित हुए और 1938 में वे वीर सावरकर से मिलने के लिए मुंबई चले आए। 1906 में उन्होंने कपड़ों में गाय की चर्बी के प्रयोग किए जाने के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया और विदेशी वस्तुओं और विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के लिए संघर्ष छेड़ दिया। युवावस्था में ही उन्होंने खादी और स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करना शुरू कर दिया। विक्रम संवत 1971 में जब #महामना #पंडित_मदन_मोहन_मालवीय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए धन संग्रह करने के उद्देश्य से कलकत्ता आए तो पोद्दार जी ने कई लोगों से मिलकर इस कार्य के लिए दान-राशि दिलवाई।

🇮🇳🔶 कलकत्ता में आज़ादी आंदोलन और क्रांतिकारियों के साथ काम करने के एक मामले में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने हनुमान प्रसाद पोद्दार सहित कई प्रमुख व्यापारियों को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इन लोगों ने ब्रिटिश सरकार के हथियारों के एक जख़ीरे को लूटकर उसे छिपाने में मदद की थी। जेल में पोद्दार जी ने हनुमान जी की आराधना करना शुरू कर दी। बाद में उन्हें #अलीपुर जेल में नज़रबंद कर दिया गया। नज़रबंदी के दौरान पोद्दार जी ने समय का भरपूर सदुपयोग किया। वहाँ वे अपनी दिनचर्या सुबह तीन बजे शुरू करते थे और पूरा समय परमात्मा का ध्यान करने में ही बिताते थे। बाद में उन्हें नजरबंद रखते हुए पंजाब की #शिमलपाल जेल में भेज दिया गया। वहाँ कैदी मरीज़ों के स्वास्थ्य की जाँच के लिए एक होम्योपैथिक चिकित्सक जेल में आते थे, पोद्दार जी ने इस चिकित्सक से #होम्योपैथी की बारीकियाँ सीख ली और होम्योपैथी की किताबों का अध्ययन करने के बाद ख़ुद ही मरीज़ों का इलाज करने लगे। बाद में वे #जमनालाल_बजाज की प्रेरणा से मुंबई चले आए। यहाँ वे वीर सावरकर, #नेताजी_सुभाष_चंद्र_बोस, #महादेव_देसाई और #कृष्णदास_जाजू जैसी विभूतियों के निकट संपर्क में आए।

मुंबई में उन्होंने अग्रवाल नवयुवकों को संगठित कर मारवाड़ी खादी प्रचार मंडल की स्थापना की। इसके बाद वे प्रसिद्ध संगीताचार्य #विष्णु_दिगंबर के सत्संग में आए और उनके हृदय में संगीत का झरना बह निकला। फिर उन्होंने भक्ति गीत लिखे जो 'पत्र-पुष्प' के नाम से प्रकाशित हुए। मुंबई में वे अपने मौसेरे भाई #जयदयाल_गोयन्का जी के गीता पाठ से बहुत प्रभावित थे। उनके गीता के प्रति प्रेम और लोगों की गीता को लेकर जिज्ञासा को देखते हुए भाई जी ने इस बात का प्रण किया कि वे श्रीमद् भागवद्गीता को कम से कम मूल्य पर लोगों को उपलब्ध कराएँगे।

🇮🇳🔶 उन्होंने गीता पर एक टीका लिखी और उसे कलकत्ता के 'वाणिक प्रेस' में छपवाई। पहले ही संस्करण की पाँच हज़ार प्रतियाँ बिक गई। लेकिन पोद्दार जी को इस बात का दु:ख था कि इस पुस्तक में ढेरों ग़लतियाँ थी। इसके बाद उन्होंने इसका संशोधित संस्करण निकाला मगर इसमें भी ग़लतियाँ दोहरा गई थी। इस बात से भाई जी के मन को गहरी ठेस लगी और उन्होंने तय किया कि जब तक अपना खुद का प्रेस नहीं होगा, यह कार्य आगे नहीं बढ़ेगा। बस यही एक छोटा सा संकल्प गीता प्रेस गोरखपुर की स्थापना का आधार बना। उनके भाई गोयनका जी का व्यापार तब बांकुड़ा, बंगाल में था और वे गीता पर प्रवचन के सिलसिले में प्राय: बाहर ही रहा करते थे। तब समस्या यह थी कि प्रेस कहाँ लगाई जाए। उनके मित्र #घनश्याम_दास_जालान गोरखपुर में ही व्यापार करते थे। उन्होंने प्रेस गोरखपुर में ही लगाए जाने और इस कार्य में भरपूर सहयोग देने का आश्वासन दिया। इसके बाद मई 1922 में गीता प्रेस का स्थापना की गई।

🇮🇳🔶 1926 में मारवाड़ी अग्रवाल महासभा का अधिवेशन दिल्ली में था सेठ जमनालाल बजाज अधिवेशन के सभापति थे। इस अवसर पर #सेठ_घनश्यामदास_बिड़ला भी मौजूद थे। बिड़ला जी ने भाई जी द्वारा गीता के प्रचार-प्रसार के लिए किए जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए उनसे आग्रह किया कि सनातन धर्म के प्रचार और सद विचारों को लोगों तक पहुँचाने के लिए एक संपूर्ण पत्रिका का प्रकाशन होना चाहिए। बिड़ला जी के इन्हीं वाक्यों ने भाई जी को #कल्याण नाम की पत्रिका के प्रकाशन के लिए प्रेरित किया। अगस्त 1955 में कल्याण का पहला प्रवेशांक निकला। इसके बाद 'कल्याण' भारतीय परिवारों के बीच एक लोकप्रिय संपूर्ण पत्रिका के रुप में स्थापित हो गई और आज भी धार्मिक जागरण में कल्याण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 'कल्याण' तेरह माह तक मुंबई से प्रकाशित होती रही। इसके बाद अगस्त 1926 से गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित होने लगा।

🇮🇳🔶 पोद्दार जी ने कल्याण को एक आदर्श और रुचिकर पत्रिका का रुप देने के लिए देश भर के महात्माओं, लेखकों और संतों आदि को पत्र लिखकर इसके लिए विविध विषयों पर लेख आमंत्रित किए। साथ ही उन्होंने श्रेष्ठतम कलाकारों से देवी-देवताओं के आकर्षक चित्र बनवाए और उनको कल्याण में प्रकाशित किया। कल्याण की सामग्री के संपादन से लेकर उसके रंग-रुप को अंतिम रूप देने का कार्य भी पोद्दार जी ही देखते थे। वह प्रतिदिन अठारह घंटे कार्य करते थे। कल्याण को उन्होंने मात्र हिंदू धर्म की ही पत्रिका के रुप में पहचान देने की बजाय उसमे सभी धर्मों के आचार्यों, जैन मुनियों, रामानुज, निंबार्क, माध्व आदि संप्रदायों के विद्वानों के लेखों का प्रकाशन किया।

🇮🇳🔶 1936 में गोरखपुर में भयंकर बाढ़ आ गई थी। बाढ़ पीड़ित क्षेत्र के निरीक्षण के लिए पं. जवाहरलाल नेहरू जब गोरखपुर आए तो तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार के दबाव में उन्हें वहाँ किसी भी व्यक्ति ने कार उपलब्ध नहीं कराई, क्योंकि अंग्रेज़ कलेक्टर ने सभी लोगों को धौंस दे रखी थी कि जो भी नेहरू जी को कार देगा उसका नाम विद्रोहियों की सूची में लिख दिया जाएगा। लेकिन भाई जी ने अपनी कार नेहरू जी को दे दी।

🇮🇳🔶 1938 में जब राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा तो पोद्दार जी अकाल पीड़ित क्षेत्र में पहुँचे और उन्होंने अकाल पीड़ितों के साथ ही मवेशियों के लिए भी चारे की व्यवस्था करवाई। बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, द्वारका, कालड़ी श्रीरंगम आदि स्थानों पर वेद - भवन तथा विद्यालयों की स्थापना में पोद्दार जी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपने जीवन-काल में पोद्दार जी ने 25 हज़ार से ज़्यादा पृष्ठों का साहित्य-सृजन किया।

🇮🇳🔶 अंग्रेज़ों के समय में गोरखपुर में उनकी धर्म व साहित्य सेवा तथा उनकी लोकप्रियता को देखते हुए तत्कालीन अंग्रेज़ कलेक्टर पेडले ने उन्हें 'राय साहब' की उपाधि से अलंकृत करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन पोद्दार जी ने विनम्रतापूर्वक इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद अंग्रेज़ कमिश्नर होबर्ट ने 'राय बहादुर' की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा लेकिन पोद्दार जी ने इस प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं किया। देश की स्वाधीनता के बाद डॉ. संपूर्णानंद, कन्हैयालाल मुंशी और अन्य लोगों के परामर्श से तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने पोद्दार जी को 'भारत रत्न' की उपाधि से अलंकृत करने का प्रस्ताव रखा लेकिन उन्होंने इसमें भी कोई रुचि नहीं दिखाई।

🇮🇳🔶 22 मार्च 1971 को पोद्दार जी ने इस नश्वर शरीर का त्याग कर दिया और अपने पीछे वे `गीता प्रेस गोरखपुर' के नाम से एक ऐसा केंद्र छोड़ गए, जो भारतीय संस्कृति को पूरे विश्व में फैलाने में एक अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

साभार : bharatdiscovery.com

🇮🇳 त्याग और सेवा की प्रतिमूर्ति, माँ भारती के सच्चे सपूत, अलौकिक संत एवं प्रसिद्ध  #स्वतंत्रता सेनानी #हनुमान_प्रसाद_पोद्दार जी की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

Death anniversary of #freedomfighter #Hanuman_Prasad_Poddar ji

🇮🇳🕉️🚩🔱💐🙏 पर उन्हें कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳🕉️🚩🔱💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व


#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Ramchandra Chatterjee | राम चंद्र चटर्जी | गुब्बारे की सवारी

 



#राम_चंद्र_चटर्जी और उनकी बैलोन सवारी जिसने भारत का इतिहास बदल दिया।

🇮🇳 एक समय की बात है, आश्चर्य और साहसी कारनामे से भरी दुनिया में, एक ट्रैपेज़ कलाकार रहता था जो सितारों तक पहुँचने का सपना देखता था। अपने कलाबाजी कौशल और महत्वाकांक्षा से भरे दिल के साथ, उन्होंने ऊँची उड़ान भरने की एक साहसी योजना तैयार की।

🇮🇳 यह 19वीं सदी का उत्तरार्ध था और वह व्यक्ति राम चंद्र चटर्जी थे; #कलकत्ता का रहने वाला एक ट्रैपेज़ खिलाड़ी, जो नेशनल सर्कस कंपनी के लिए काम करता था। वह भारत के शुरुआती जिमनास्ट और ट्रैपेज़ कलाकारों में से एक थे। लेकिन उन्हें अचानक एक नई घटना का पता चला।

🇮🇳 18वीं सदी के यूरोप में हॉट-एयर बैलूनिंग का चलन था, लेकिन भारत को डी. रॉबर्टसन की पहली उड़ान देखने में 1836 तक का समय लग गया। लेकिन असली गुब्बारा बुखार तब भड़का जब 1880 के दशक के अंत में प्रसिद्ध गुब्बारा वादक पर्सिवल स्पेंसर भारत पहुँचे।

🇮🇳 19 मार्च, 1889 को, स्पेंसर ने कलकत्ता रेस कोर्स से उड़ान भरी और एक महीने बाद, 10 अप्रैल, 1889 को, निडर राम चंद्र चटर्जी उनके साथ शामिल हो गए।

🇮🇳 स्पेंसर के साथ अपनी संयुक्त चढ़ाई से प्रेरित होकर, चटर्जी ने एकल उड़ान पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने स्पेंसर का गुब्बारा, "द वायसराय" हासिल कर लिया, जिसका नाम बदलकर "कलकत्ता शहर" रखा गया। #पथुरियाघाट के टैगोरों के समर्थन से, चटर्जी ने अपनी एकल, महत्वाकांक्षी यात्रा शुरू की।

🇮🇳 27 अप्रैल, 1889 को पहले 'मूल' बंगाली व्यक्ति के लिए गुब्बारे की सवारी करने के लिए एक भव्य दिन की योजना बनाई गई थी। हजारों की संख्या में दर्शक गैस कंपनी मैदान में इंतजार में जमा थे। हालाँकि, प्रकृति की कुछ और ही योजनाएँ थीं।

🇮🇳 निराशा के बावजूद, राम चंद्र चटर्जी दृढ़ संकल्पित रहे। उन्होंने 4 मई को चढ़ाई की नई तारीख तय की और टिकट पाने वालों को आश्वासन दिया कि उन्हें अभी भी सम्मानित किया जाएगा। उनके दृढ़ संकल्प ने उनके असाधारण पराक्रम को देखने के लिए उत्सुक लोगों की आशाओं को जीवित रखा।

🇮🇳 बड़े दिन पर, एक म्यूजिकल बैंड बजने के साथ, हिंदू अनुष्ठान पूरे हुए और 8,000 दर्शक उत्सुकता से देख रहे थे, राम चंद्र चटर्जी ने अपने हल्के सूट और टोपी में "द सिटी ऑफ कलकत्ता" में उड़ान भरी। ऊपर और दूर ऊपर।

🇮🇳 कलकत्ता के आसमान में एक ऐतिहासिक क्षण सामने आया। गुब्बारा लगभग 40 मिनट तक तैरता रहा और सोडेपोर के पास धीरे से उतरने से पहले 4,000 फीट की ऊँचाई तक पहुँच गया। यह तारीख, 4 मई, 1889 को भारत के अंतरिक्ष साहसिक कार्य में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में चिह्नित किया जाना चाहिए।

#Ram_Chandra_Chatterjee

साभार: pixstory.com

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


Ragini Trivedi | रागिनी त्रिवेदी | विचित्र वीणा, सितार और जल तरंग | 22 मार्च, 1960

 



रागिनी त्रिवेदी (जन्म- 22 मार्च, 1960) भारतीय शास्त्रीय संगीतकार हैं। वह विचित्रवीणा, सितार और जल तरंग पर प्रस्तुति देती हैं।

🇮🇳 रागिनी त्रिवेदी विचित्र वीणा वादक और संगीतज्ञ #लालमणि_मिश्र की पुत्री हैं।

🇮🇳 वह डिजिटल संगीत संकेतन प्रणाली की निर्माता हैं, जिसे 'ओमे स्वारलिपि' कहा जाता है।

🇮🇳 उनके पिता प्रसिद्ध संगीतकार लालमणि मिश्र, माता #पद्मा ने रागिनी और भाई #गोपाल_शंकर में संगीत के प्रति प्रेम पैदा किया।

🇮🇳 #वाराणसी में परिवार रीवा कोठी में दूसरी मंजिल पर रहता था। वहीं गायक #ओंकारनाथ_ठाकुर भूतल पर रहते थे।

🇮🇳 रागिनी त्रिवेदी ने 9 अप्रैल, 1977 को अपनी माँ को खो दिया और 17 जुलाई, 1979 को उनके पिता भी चल बसे। उन्होंने और उनके भाई गोपाल ने संगीत का अभ्यास जारी रखा।

🇮🇳 कुछ समय के लिए उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाया और बाद में #होशंगाबाद, #रीवा और #इंदौर के सरकारी कॉलेजों में सितार पढ़ाया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #विचित्रवीणा, #सितार और #जलतरंग पर प्रस्तुति देने वाली भारतीय #शास्त्रीय  #संगीतकार #रागिनी_त्रिवेदी जी को जन्मदिवस की ढेरों बधाई एवं अनंत शुभकामनाएँ!

#Ragini_Trivedi

#Vichitra_Veena, #Sitar and #Jaltarang

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


World Water Day | विश्व जल दिवस | 22 मार्च

 




#विश्व_जल_दिवस  #world_Water_Day

हमारी पृथ्वी का ​एक तिहाई हिस्सा जल से घिरा हुआ है। इसके बावजूद भी जगह जगह पर लोग पानी की समस्या से परेशान हैं। कई जगह पानी की सप्लाई इतनी ज्यादा है कि लोग उसे आँख मूँदकर बर्बाद करते हैं तो कई जगह प्यास बुझाने के लिए ही पानी नसीब नहीं है। यहीं कारण है कि दुनिया के अ​धिकांश लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ता है। लोगों में पानी के प्रति अवेयरनेस बढ़ाने के लिए ही #22_मार्च का दिन विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है। ताकि लोग पानी की कीमत को समझ सकें। #विश्व के हर नागरिक को इसके महत्व से अवगत कराने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने विश्व जल दिवस मनाने की शुरुआत की थी। 

🇮🇳🌏 #पानी ही जीवन का आधार है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता है। जिस तरह से अब प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है उससे साफ है कि भविष्य में संकट और गहरा सकता है।  क्लाइमेट चेंज और बढ़ती जनसंख्या तथा जल स्त्रोतों के अत्यधिक दोहन की वजह से भूजल का स्तर लगातार कम होता जा रहा है। ऐसे में जरूरी है कि हम पानी की वैल्यू को समझे और इसे बरबाद होने से बचाए।

🇮🇳🌏 पूरे विश्व में साफ पानी का धनी देश ब्राजील को माना जाता है। #ब्राजील में 8647 अरब क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध है। विश्व में पानी की उपलब्धता को लेकर भारत का आठवां स्थान है।  एक रिपोर्ट के मुताबिक #भारत विश्व के कुल भूजल का 24 फीसदी इस्तेमाल करता है। कई महानगरों में जिस तरह से जल स्तर कम हो रहा है उससे भविष्य में संकट और गहरा हो सकता है।  गौर करने वाली बात ये है कि धरती का करीब तीन चौथाई हिस्सा पानी पानी से भरा हुआ है, लेकिन इसमें से सिर्फ तीन फीसदी हिस्सा ही पीने योग्य है।

🇮🇳🌏 विश्व जल दिवस हर साल 22 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व के सभी विकसित देशों में स्वच्छ, सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है। साथ ही जल संरक्षण के महत्व पर ध्यान केंद्रित करना है। विश्व जल दिवस मनाने की पहल रियो डी जेनेरियो में 1992 में आयोजित पर्यावरण तथा विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में की गई थी। 1993 में संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को वार्षिक कार्यक्रम के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य लोगों के बीच में जल संरक्षण का महत्व, साफ पीने योग्य जल का महत्व जैसे कई पानी से जुड़े मुद्दों के प्रति जागरुकता जाना है।

🇮🇳🌏 #पृथ्वी का 71 प्रतिशत भाग जल से घिरा हुआ है, 29 फीसदी भाग पर स्थल है। इस 29 प्रतिशत क्षेत्र पर ही इंसान और दूसरे प्राणी रहते हैं। कुल पानी का लगभग 97 फीसदी पानी #समुद्र में पाया जाता है, लेकिन खारा होने के कारण इस पानी को पीने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। सिर्फ ​तीन प्रतिशत पानी ही पीने लायक है, जो #ग्लेशियर, नदी, तालाबों में पाया जाता है। इस तीन फीसदी #पानी में भी 2.4 फीसदी हिस्सा ग्लेशियरों, दक्षिणी ध्रुवों पर जमा है, जबकि बचा हुआ 0.6 फीसदी पानी #नदी, तालाबों, झीलों और कुँओं में मौजूद है। जिसका हम उपयोग कर सकते हैं, इसलिए हमें जल को बचाना चाहिए। इसकी एक बूँद बूँद बहुत कीमती है, इसे व्यर्थ नहीं गवाना चाहिए।

साभार: bhaskarhindi.com

★ जल व्यर्थ न होने दें।

★ #जल #संरक्षण पर लोगों को जागरूक करें।

🇮🇳🌹🙏

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


Dark Oxygen | Deep Sea Ecosystems | Polymetallic Nodules

  Dark Oxygen | Deep Sea Ecosystems | Polymetallic Nodules वैज्ञानिकों ने उस बहुधात्विक पिंड की खोज की है गहरे समुद्र का तल पूर्ण रूप से ऑक्...