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अक्कम्मा चेरियन का जन्म 14 फरवरी 1909 को कांजीरापल्ली, त्रावणकोर ( वर्तमान केरल) के एक छोटे से गांव में हुआ था । पेशे से शिक्षिका थीं लेकिन उनका असली सपना देश को आजाद देखना था। इसलिए उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए अपनी प्रतिष्ठित नौकरी छोड़ दी।
🇮🇳 भारत की आजादी की लड़ाई किसी एक राज्य, प्रांत या कुछ लोगों तक सीमित नहीं थी। इसकी आग पूरे देश में, हर एक युवा के दिन में फैली थी। प्रांत, धर्म, जाति और लिंग भेद से विपरीत हर कोई स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कूद गया था। इन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में एक नाम है अक्कम्मा चेरियन का। अक्कम्मा चेरियन को दक्षिण की झॉंसी की रानी भी कह सकते हैं।
🇮🇳 केरल में स्वतंत्रता की लौ जगाने वाली और आजादी के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने वाली इस बहादुर महिला का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। आजादी की जब भी बात आती है तो झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई, कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू और कुछ अन्य महिलाओं के नाम ही लिए जाते हैं। लेकिन 1938 में केरल में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करने वाली अक्कम्मा चेरियन का नाम केवल उनके राज्य तक सीमित रह गया। चलिए जानते हैं स्वतंत्रता संग्राम की इस महिला क्रांतिकारी अक्कम्मा चेरियन के बारे में।
🇮🇳 #त्रावणकोर प्रांत (वर्तमान में केरल) में आजादी का संघर्ष शुरू हुआ तो अक्कम्मा चेरियन ने त्रावणकोर आंदोलन का नेतृत्व किया। अक्कम्मा चेरियन उस दौर के आंदोलन का प्रमुख चेहरा थीं।
🇮🇳 त्रावणकोर के नसरानी परिवार में अक्कम्मा चेरियन का जन्म 14 फरवरी 1909 को हुआ था। उनके पिता का नाम #थॉमसन_चेरियन और माँ #अन्नाममा_करिपापारंबिल थीं। चेरियन की एक बड़ी बहन भी थीं। चेरियन ने #कंजिरापल्ली स्थित सरकारी गर्ल्स हाई स्कूल से पढ़ाई की और बाद में सेंट जोसेफ हाई स्कूल (#चांगनाचेरी) से अपनी शिक्षा पूरी की।
🇮🇳 चेरियन ने टेरेसा कॉलेज से इतिहास में ग्रेजुएशन किया था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बतौर शिक्षिका 1931 में मैरी अंग्रेजी माध्यमिक विद्यालय से की।बाद में वह स्कूल की प्रबंधिका नियुक्त हो गईं। नौकरी के साथ ही चेरियन ने एलटी की उपाधि भी हासिल की।
🇮🇳 1938 में #महात्मा_गाँधी से प्रभावित होकर चेरियन ने 1938 में नौकरी छोड़ दी। चेरियन त्रावणकोर महिला कांग्रेस में शामिल हुईं जो कि महात्मा गाँधी की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रांतीय इकाई थी। ब्रिटिश सरकार ने इस संगठन को अवैध घोषित कर दिया था और पार्टी के कई नेताओं को जेल में डाल दिया।
🇮🇳 पार्टी के 11वें अध्यक्ष कुट्टनाड रामकृष्ण पिल्लई की गिरफ्तारी हुई तो उन्होंने चेरियन के हाथों में पार्टी की कमान सौंप दी। चेरियन त्रावणकोर की राजनीति का दमदार चेहरा भी बन गईं। उन्होने एक बड़ी रैली का आयोजन कर लोगों को एकजुट किया।
🇮🇳 त्रावणकोर के शाही महल के बाहर 23 अक्टूबर 1938 को हजारों की संख्या में लोग एकत्र हुए। उस दौरान पुलिस चीफ ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया तो चेरियन ने उनको ललकारते हुए कहा कि मैं इन सब की नेता हूँ, पहली गोली मुझ पर चलाओ। ये प्रदर्शन तब तक चला, जब तक अंग्रेजी हुकूमत गिरफ्तार नेताओं को रिहा कराने के लिए राजी नहीं हो गईं।
🇮🇳 अक्कम्मा चेरियन की बहादुरी और निडरता के कारण महात्मा गाँधी ने उन्हें 'त्रावणकोर की झाँसी की रानी' कहकर संबोधित किया। 1939 में प्रांतीय कांग्रेस के पहले अधिवेशन में चेरियन और उनकी बहन शामिल हुई थीं, जिसमें उनके साथ ही कई अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। वह 1942 में प्रांतीय कांग्रेस की कार्यवाहक अध्यक्ष बनीं। मुंबई में भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान हुआ तो चेरियन ने भी आवाज बुलंद की। आजादी के बाद 1947 में हुए पहले चुनाव के जरिए वह विधानसभा के लिए चुनी गईं। कुछ समय तक राजनीति में सक्रिय रहने के बाद 1982 में #तिरुवनंतपुरम में चेरियन का निधन हो गया।
साभार: amarujala.com
🇮🇳 'त्रावणकोर की झाँसी की रानी' के रूप में प्रसिद्ध, #केरल में #स्वतंत्रता की लौ जगाकर आजादी के आंदोलन का नेतृत्व करने वाली वीरांगना #अक्कम्मा_चेरियन जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !
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साभार: चन्द्र कांत (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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