30 मई 2024

हिंदी पत्रकारिता दिवस | 30 मई, 1826 | Hindi Patrakarita Divas

 



🇮🇳✍️ #हिंदी_पत्रकारिता_दिवस  #Hindi_Journalism_Day है. आज से 198 साल पहले 30 मई, 1826 को कलकत्ता(कोलकाता) में #उदंत_मार्तण्ड नामक साप्ताहिक अखबार की शुरुआत हुई. #कानपुर से कलकत्ता में सक्रिय वकील #पंडित_जुगल_किशोर_शुक्ल ने इस अखबार की नींव रखी. वो हिंदुस्तानियों के हित में उनकी भाषा में अखबार निकालना चाहते थे.

🇮🇳✍️ उदंत मार्तण्ड का अर्थ होता है उगता सूरज. हिंदी पत्रकारिता का सूरज पहली बार #कलकत्ता के बड़ा बाजार के करीब 37, अमर तल्ला लेन, #कोलूटोला में उदित हुआ था. यह अखबार पाठकों तक हर मंगलवार पहुँचता था. इसकी शुरुआत 500 प्रतियों के साथ हुई थी.

🇮🇳✍️ उदंत मार्तण्ड खड़ी बोली और ब्रज भाषा के मिले-जुले रूप में छपता था और इसकी लिपि देवनागरी थी. लेकिन इसकी उम्र ज्यादा लंबी नहीं हो सकी. इसके केवल 79 अंक ही प्रकाशित हो सके.

🇮🇳✍️ प्रकाशन की शुरुआत के लगभग एक साल बाद ही हिंदी पत्रकारिता का पहला सूरज आर्थिक तंगी का शिकार होकर ओझल हो गया. 19 दिसंबर 1827 को उदन्त मार्तण्ड का आखिरी अंक प्रकाशित हुआ था.

🇮🇳✍️ अखबार के आखिरी अंक में संपादक और प्रकाशक जुगल किशोर शुक्ल ने अखबार के बंद होने की सूचना पाठकों बेहद मार्मिक अपील के साथ दी थी.

◆ उन्होंने लिखा, 'आज दिवस लौ उग चुक्यों मार्तण्ड उदंत. अस्ताचल को जाता है दिनकर दिन अब अंत.(अर्थात-यह सूर्य आज तक निकल चुका है. अब इसका अंत आ गया है और यह सूर्यास्त की ओर बढ़ चला है.) ◆

🇮🇳✍️ उदन्त मार्तण्ड से पहले भारत में अंग्रेजी, उर्दू, फारसी और बांग्ला आदि भाषाओं के अखबार प्रकाशित होने लगे थे. अखबार के पहले अंक में ही संपादक शुक्ल ने अखबार का उद्देश्य स्पष्ट कर दिया था कि यह हिंदुस्तानियों के लिए उनकी भाषा में उनके हित का अखबार है.

🇮🇳✍️ उन्होंने लिखा, "यह उदन्त मार्तण्ड अब पहले पहल हिंदुस्तानियों के हेत जो, आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेजी ओ पारसी और बंगाल में जो समाचार का कागज छपता है उनका उन बोलियों को जानने और समझने वालों को ही होता है.

और सब लोग पराए सुख सुखी होती हैं. जैसे पराए धन धनी होना और अपनी रहते पराई ऑंख देखना वैसे ही जिस गुण में उसकी पैठ न हो उसको उसके रस का मिलना कठिन ही है और हिंदुस्तानियों में बहुतेरे ऐसे हैं."

🇮🇳✍️ उदंत मार्तण्ड ने अपने छोटे से प्रकाशन काल में हमेशा ही समाज के विरोधाभाषों पर तीखे हमले किये और गंभीर सवाल उठाये. इसके साथ ही आम जन की आवाज को बुलंद करने का भी काम भी इस अखबार ने बखूबी किया. 19 दिसंबर,1827 को कुछ कानूनी कारणों और ग्राहकों का सहयोग न मिल पाने के कारण इसे बंद करना पड़ा.

🇮🇳✍️ हिंदी भाषी पट्टी से दूर रहने और मौजूदा सरकार द्वारा इसे उत्तर भारत के शहरों में भेजने के लिए डाक टिकट में छूट नहीं देना इसके बंद होने की अहम वजह रहा. बंगाल से प्रकाशित होने के कारण उसके लिए स्थानीय स्तर पर ग्राहक या पाठक मिलना अंग्रेजी, उर्दू, फारसी और बांग्ला अखबारों की तुलना में मुश्किल था. अगर पाठक मिल भी जाता तो उसतक अखबार को पहुंचा पाना बेहद कठिन काम था. सरकार के किसी भी विभाग को उदंत मार्तण्ड की एक भी प्रति खरीदना मंजूर नहीं था.

साभार: zeenews.india.com

🇮🇳 सभी राष्ट्रवादी पत्रकार बंधुओं को #हिंदी_पत्रकारिता_दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !

🇮🇳🌹🙏

#Hindi_speaking, #governmen, #Hindi_Paper, #Udant_Martand, #publication


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

27 मई 2024

What right did Israel do by breaking relations with Norway, Spain and Ireland? इजराइल ने नॉर्वे, स्पेन, आयरलैंड से रिश्ता तोड़ कर क्या सही किया ?

 



नॉर्वे, स्पेन, आयरलैंड से  इजराइल ने कूटनीतिक रिश्ता तोड़ कर क्या सही किया ?

और क्या इन तीन देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता देकर क्या गलत किया?

21 मई को #नॉर्वे #स्पेन और #आयरलैंड ने #फिलिस्तीन को मान्यता देने का फैसला किया जिसके विरोध में #इज़रायल ने तीनों देशों से अपने #राजदूत वापस बुलाकर कूटनीतिक रिश्ते समाप्त कर दिए - इन देशों को मान्यता देने के फैसले का हमास और #OIC ने #स्वागत किया, फिलिस्तीन 57 देशों के समूह #OIC सदस्य है जो #UN का सदस्य नहीं है बल्कि उसके पास 2012 से केवल #Non - #Member #Observer का #status है -

मेरे विचार से इज़रायल ने अपने राजदूतों को बुला कर सही कदम नहीं उठाया क्योंकि 50 देशों की यूरोपियन यूनियन के एक तिहाई सदस्य फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके है और विश्व के 193 में से अब इन तीनो को मिला कर 146 देश मान्यता दे चुके हैं - भारत तो मान्यता देने वाला पहला देश था - अब इतने मान्यता देने वाले देशों में बहुत के साथ इज़रायल के कूटनीतिक रिश्ते होंगे, फिर इन तीन से संबंध तोड़ने का क्या औचित्य है - 


अभी #Belgium, #Malta and #Slovenia भी #फिलिस्तीन को मान्यता देने पर विचार कर रहे हैं, इस बीच 11 मई को UN की जनरल असेंबली में प्रस्ताव पारित कर #UNSC से कहा गया था कि फिलिस्तीन को सदस्य देश के रूप में #UN में शामिल किया जाए - इस प्रस्ताव के विरोध में केवल 9 वोट पड़े जबकि बाकी सभी 184 देशों ने समर्थन किया - विरोध करने वाले 9 देश थे,  #US, #Argentina, the #Czech_Republic, #Hungary, #Israel, #Micronesia, #Nauru, #Palau and #Papua_New_Guinea. 


#UNSC को इसलिए अनुमोदन किया गया क्योंकि वह ही किसी राष्ट्र को सदस्य का दर्जा देने के लिए सक्षम है - हालांकि UN ने स्वयं अभी तक फिलिस्तीन को सदस्य नहीं बनाया है और 1974 से केवल #PLO को #Observer का #Status दिया था - 

मुझे आशा नहीं है कि #फिलिस्तीन को #UNSC भी सदस्य बनाएगा क्योंकि वहां #अमेरिका का #VETO हो सकता है -


फिलिस्तीन 2007 में #गाज़ा से अपना कंट्रोल #हमास के हाथों गवां चुका था लेकिन आज भी विश्व भर में फिलिस्तीन और हमास को एक ही माना जाता है - आतंकी संगठन होने की वजह से कोई “हमास” का खुलकर समर्थन नहीं कर सकता और उसकी आड़ में फिलिस्तीन को समर्थन दिया जाता है - 


#नॉर्वे, #स्पेन और #आयरलैंड में #मुस्लिम विरोधी #आंदोलन चरम पर रहते हैं - नॉर्वे में  55 लाख की आबादी में 3.3% मुस्लिम हैं; स्पेन में 4.7 करोड़ में 5.32% हैं और आयरलैंड में 5 करोड़ में 1.62% हैं - मान्यता देने के बाद और बढ़ सकते है - आयरलैंड के करीब ब्रिटेन पहले ही इस्लामोफोबिया से जूझ रहा है - इतना ही नहीं #यूरोप के कई देश #इस्लामिक ताकतों से परेशान है जिनमे #फ्रांस, #जर्मनी, #बुल्गारिया, #स्वीडन, #डेनमार्क, #थाईलैंड के अलावा नॉर्वे और जर्मनी भी शामिल हैं -


जो वातावरण #ईरान, #हमास, #हूती और #हिज़्बुल्लाह के बीच चल रहा है, उसे देख कर लगता है ये युद्ध #इस्लाम और #ईसाई / #यहूदी #गठजोड़ के बीच बड़े स्तर का #युद्ध होकर रहेगा - सभी #इस्लामिक देशों के निशाने पर #इज़रायल रहेगा - 


 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 27/05/2024 

#Europe, #Islamic #forces, #France, #Germany, #Bulgaria, #Sweden, #Denmark, #Thailand,#Norway, #Germany, #Iran, #Hamas, #Houthi, #Hezbollah, #war #Islam,#Christian,#Jewish #alliance,#israel, #target,#Islamic_countries #MODI, #election2024,  #ED,  #cbi #CAA #NRC #India_Vs_West, #US_responds_CAA, #religious, #freedom, #India, #Kejriwal,  #judiciary, #aap,  #Muslims, #implemented_CAA,


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

05 मई 2024

मोहंती का नाम वापस, पात्रा को फैदा

ओडिशा के पुरी से कांग्रेस उम्मीदवार ने कांग्रेस पार्टी से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलने का हवाला देते हुए खुद को चुनाव से हटा लिया है।

पुरी, ओडिशा के अपने राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण विकास तब सामने आया जब कांग्रेस उम्मीदवार सुचरिता मोहंती ने आगामी चुनाव से उम्मीदवार वापसी का साहसिक निर्णय लिया। देखने में आया कि सुचरिता मोहंती को दौड़ में एक मजबूत दावेदार माना जा रहा था, नाम वापस लेने के लिए कई लोग आश्चर्य की बात कर रहे थे। हालाँकि, दिनांक को आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, सुचरिता मोहंती ने अपने फैसले के पीछे ठोस कारण का खुलासा किया- कांग्रेस पार्टी से समर्थन की कमी।

सुचरिता मोहंती ने पार्टी की विफलता पर असंतोषजनक स्थिति में अपना अभियान अभियान जारी रखा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लचीलेपन के लिए यात्रा, प्रचार और जनशक्ति सहित साम्य व्यय की आवश्यकता है, और वित्तीय सहायता की आवश्यकता के बिना, उनके लिए एक प्रभावी अभियान अप्रभावी होगा।

ओडिशा के पुरी संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार ओडिशा के पुरी से कांग्रेस उम्मीदवार ने कांग्रेस पार्टी से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलने का हवाला देते हुए खुद को चुनाव से हटा लिया है।

पुरी, ओडिशा के अपने राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण विकास तब सामने आया जब कांग्रेस उम्मीदवार सुचरिता मोहंती ने आगामी चुनाव से उम्मीदवार वापसी का साहसिक निर्णय लिया। देखने में आया कि सुचरिता मोहंती को दौड़ में एक मजबूत दावेदार माना जा रहा था, नाम वापस लेने के लिए कई लोग आश्चर्य की बात कर रहे थे। हालाँकि, दिनांक को आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, सुचरिता मोहंती ने अपने फैसले के पीछे ठोस कारण का खुलासा किया- कांग्रेस पार्टी से समर्थन की कमी।

सुचरिता मोहंती ने पार्टी की विफलता पर असंतोषजनक स्थिति में अपना अभियान अभियान जारी रखा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लचीलेपन के लिए यात्रा, प्रचार और जनशक्ति सहित साम्य व्यय की आवश्यकता है, और वित्तीय सहायता की आवश्यकता के बिना, उनके लिए एक प्रभावी अभियान अप्रभावी होगा।

ओडिशा के पुरी संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार सुचरिता मोहंती की वापसी ने राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में एक बड़ी हलचल पैदा कर दी है। इस घटना से ओडिशा में कांग्रेस पार्टी के वित्तीय सलाहकारों और वित्तीय स्तर को लेकर गंभीर चिंताएं बढ़ गई हैं।

मोहंती का नाम वापस लेने के पहले एक अन्य कांग्रेस उम्मीदवार ने भी नामांकन के बाद अपना नाम वापस ले लिया था। एक के बाद एक ऐसी घटना  ने कांग्रेस पार्टी के कलह और आंतरिक सलाहकार की नाकामयाबी और बेकार नेतृत्व को उजागर किया है. 

कुछ का अनुमान है कि पार्टी के अंदर एकता और दिशा की कमी है। उनका तर्क है कि एक ठोस रणनीति और मजबूत नेतृत्व की कमी के कारण पार्टी  पिछड़ रहा है। कुछ का  दावा है कि पार्टी अब लुप्त होने की कगार पे है ।

कारण जो भी हो, कांग्रेस गठबंधन का नाम वापस लेने से ओडिशा में पार्टी का असर पड़ना तय है। राज्य में पारंपरिक रूप से कांग्रेस पार्टी का स्थान रहा है और हाल की घटनाओं में इसके समर्थन आधार को बनाए रखने की क्षमता पर सवाल उठाए गए हैं।

कांग्रेस  को ओडिशा में कड़ी लड़ाई का सामना करना पड़ रहा है और पुरी सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई है। यह देखना बाकी है कि पार्टी क्या करेगी और वह इस तरह के हालात को देखते  हुए यह सवाल उठता है क्या वह कभी भी कोई भी चुनाव लड़ भी सकती है, जीतना तो दूर की बात ।

सुचरिता मोहंती के कदम  से राजनीति में उनकी भूमिका पर बहस छूट गई। आलोचकों का तर्क है कि चुनाव में धन के बढ़ते प्रभाव से जनता प्रभावित होती है, जहां मजबूत पैसे वाले को अक्सर अनुचित लाभ मिलता है। वे समान स्तर पर साक्ष्यों का उपयोग करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी को सफलता का अवसर मिले।

यह एक अज्ञात रूप से सामने आने वाली झलक की याद दिलाती है जिसमें वित्तीय सहायता की कमी के लिए प्रभावशाली अभियान चलाया गया है। यह राजनीति में पैसे के व्यापक निहितार्थ और अधिक न्यायसंगत और लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली में सुधार की आवश्यकता के बारे में भी प्रश्न उठाता है।

अब फैदा प्रतिस्पर्धी पात्रा को देखने को मिल रहा है, जो पिछले चुनाव में महज़ पांच हजार के मामूली अंतर से हार गए थे। मोहंती की वापसी, इसी तरह से कांग्रेस उमीदवारो का पीछे हटना, उनका ये मान लेना कि हारना तय है , पैसा, समय और मेहनत न जाया किया जाये, और साथ में भ ज प के बढ़ते कदम को देखते हुए, ४०० पार का उसका नारा आसान दिखने लगा है। 

Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...