🇮🇳✍️ #हिंदी_पत्रकारिता_दिवस #Hindi_Journalism_Day है. आज से 198 साल पहले 30 मई, 1826 को कलकत्ता(कोलकाता) में #उदंत_मार्तण्ड नामक साप्ताहिक अखबार की शुरुआत हुई. #कानपुर से कलकत्ता में सक्रिय वकील #पंडित_जुगल_किशोर_शुक्ल ने इस अखबार की नींव रखी. वो हिंदुस्तानियों के हित में उनकी भाषा में अखबार निकालना चाहते थे.
🇮🇳✍️ उदंत मार्तण्ड का अर्थ होता है उगता सूरज. हिंदी पत्रकारिता का सूरज पहली बार #कलकत्ता के बड़ा बाजार के करीब 37, अमर तल्ला लेन, #कोलूटोला में उदित हुआ था. यह अखबार पाठकों तक हर मंगलवार पहुँचता था. इसकी शुरुआत 500 प्रतियों के साथ हुई थी.
🇮🇳✍️ उदंत मार्तण्ड खड़ी बोली और ब्रज भाषा के मिले-जुले रूप में छपता था और इसकी लिपि देवनागरी थी. लेकिन इसकी उम्र ज्यादा लंबी नहीं हो सकी. इसके केवल 79 अंक ही प्रकाशित हो सके.
🇮🇳✍️ प्रकाशन की शुरुआत के लगभग एक साल बाद ही हिंदी पत्रकारिता का पहला सूरज आर्थिक तंगी का शिकार होकर ओझल हो गया. 19 दिसंबर 1827 को उदन्त मार्तण्ड का आखिरी अंक प्रकाशित हुआ था.
🇮🇳✍️ अखबार के आखिरी अंक में संपादक और प्रकाशक जुगल किशोर शुक्ल ने अखबार के बंद होने की सूचना पाठकों बेहद मार्मिक अपील के साथ दी थी.
◆ उन्होंने लिखा, 'आज दिवस लौ उग चुक्यों मार्तण्ड उदंत. अस्ताचल को जाता है दिनकर दिन अब अंत.(अर्थात-यह सूर्य आज तक निकल चुका है. अब इसका अंत आ गया है और यह सूर्यास्त की ओर बढ़ चला है.) ◆
🇮🇳✍️ उदन्त मार्तण्ड से पहले भारत में अंग्रेजी, उर्दू, फारसी और बांग्ला आदि भाषाओं के अखबार प्रकाशित होने लगे थे. अखबार के पहले अंक में ही संपादक शुक्ल ने अखबार का उद्देश्य स्पष्ट कर दिया था कि यह हिंदुस्तानियों के लिए उनकी भाषा में उनके हित का अखबार है.
🇮🇳✍️ उन्होंने लिखा, "यह उदन्त मार्तण्ड अब पहले पहल हिंदुस्तानियों के हेत जो, आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेजी ओ पारसी और बंगाल में जो समाचार का कागज छपता है उनका उन बोलियों को जानने और समझने वालों को ही होता है.
और सब लोग पराए सुख सुखी होती हैं. जैसे पराए धन धनी होना और अपनी रहते पराई ऑंख देखना वैसे ही जिस गुण में उसकी पैठ न हो उसको उसके रस का मिलना कठिन ही है और हिंदुस्तानियों में बहुतेरे ऐसे हैं."
🇮🇳✍️ उदंत मार्तण्ड ने अपने छोटे से प्रकाशन काल में हमेशा ही समाज के विरोधाभाषों पर तीखे हमले किये और गंभीर सवाल उठाये. इसके साथ ही आम जन की आवाज को बुलंद करने का भी काम भी इस अखबार ने बखूबी किया. 19 दिसंबर,1827 को कुछ कानूनी कारणों और ग्राहकों का सहयोग न मिल पाने के कारण इसे बंद करना पड़ा.
🇮🇳✍️ हिंदी भाषी पट्टी से दूर रहने और मौजूदा सरकार द्वारा इसे उत्तर भारत के शहरों में भेजने के लिए डाक टिकट में छूट नहीं देना इसके बंद होने की अहम वजह रहा. बंगाल से प्रकाशित होने के कारण उसके लिए स्थानीय स्तर पर ग्राहक या पाठक मिलना अंग्रेजी, उर्दू, फारसी और बांग्ला अखबारों की तुलना में मुश्किल था. अगर पाठक मिल भी जाता तो उसतक अखबार को पहुंचा पाना बेहद कठिन काम था. सरकार के किसी भी विभाग को उदंत मार्तण्ड की एक भी प्रति खरीदना मंजूर नहीं था.
साभार: zeenews.india.com
🇮🇳 सभी राष्ट्रवादी पत्रकार बंधुओं को #हिंदी_पत्रकारिता_दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !
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साभार: चन्द्र कांत (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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