09 मार्च 2024

Mewar ki Rani Karnavati | मेवाड़ की रानी वीरांगना कर्णावती

 



रानी कर्णावती  ने  8 मार्च 1535 को जौहर कर लिया था।  यह मेवाड़ का दूसरा जौहर माना जाता है। 

#रानी_कर्णावती #Mewar ki #Rani_Karnavati  को रानी #कर्मावती के नाम से भी जाना जाता है (मृत्यु 8 मार्च 1534), #भारत के #बूंदी की एक राजकुमारी और अस्थायी शासक थीं । उनका विवाह #मेवाड़ के #राणा_सांगा (लगभग 1508-1528) से हुआ था । वह अगले दो राणाओं, राणा विक्रमादित्य और राणा उदय सिंह की माँ और महाराणा प्रताप की दादी थीं । उन्होंने 1527 से 1533 तक अपने बेटे के अल्पवयस्क होने के दौरान संरक्षिका के रूप में कार्य किया। वह अपने पति की तरह ही उग्र थीं और उन्होंने सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी के साथ चित्तौड़ की रक्षा की जब तक कि वह गुजरात  की सेना जिसका नेतृत्व गुजरात के बहादुर शाह ने किया था के हाथों नहीं घिर गई, रानी कर्णावती ने  भागने से इनकार कर दिया और अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर कर लिया।

🇮🇳 #रानी कर्णावती #Rani Karnavati अपने बलिदान के लिए जानी जाने वाली उन बहादुर रानियों में से एक है। जो अपनी जान तो दे दी लेकिन दुश्मन के सामने अपने घुटने नहीं टेके। कर्णावती चित्तौड़ के राजा राणा सांगा की पत्नी थी। आपको बता दें कि 1526 में मुगल बादशाह बाबर ने दिल्ली पर अपना कब्जा कर लिया था। जिसके चलते मेवाड़ के राजा राणा सांगा ने बाबर के खिलाफ राजपूत शासकों का एक दल चलाया था। जिसके बाद खानुआ की लड़ाई में राणा सांगा की पराजय हो गई थी इस युद्ध में इन्हें काफी गहरे घाव लगे थे जिसकी वजह से इनकी कुछ दिनों में मृत्यु हो गई थी।

🇮🇳 रानी कर्णावती के दो बेटे थे जिनका नाम राणा उदय सिंह और राणा विक्रमादित्य था। राजा राणा सांगा की मृत्यु के बाद रानी ने अपने बड़े विक्रमादित्य को राज गद्दी पर बैठाया लेकिन पूरा राज्यभार संभालने के लिए इस राजा की उम्र काफी छोटी थी। इसी बीच गुजरात के बहादुरशाह ने दूसरी बार मेवाड़ पर हमला कर दिया। इस युद्ध में राजा विक्रमादित्य की हार देखने को मिली। जिसके बाद रानी कर्णावती ने राज्य के सम्मान की रक्षा करने के लिए अन्य राजपूत राजाओं से अपील की।

🇮🇳 रानी कर्णावती से राजपूत शासकों ने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि विक्रमादित्य और उदय सिंह को युद्ध के दौरान बूंदी जाने की अपील की। रानी ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया। जिसके बाद उन्होंने अपनी भरोसेमंद दासी पन्ना के साथ अपने दोनों बेटों को बूंदी भेज दिया। आपको बता दें कि पन्ना ने इस जवाबदेही को ईमानदारी से स्वीकार भी किया।

🇮🇳 हर #रक्षाबंधन पर रानी कर्णावती को याद किया जाता है। इस रानी ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए 1534 में हुमायूं को राखी भेजी थी। बताया जाता है कि रानी कर्णावती की राखी को स्वीकार कर हुमायूं ने इस राखी की लाज बचाई थी। #हुमायूं ने रानी कर्णावती को अपनी बहन का दर्जा दिया था उम्रभर रक्षा करने का वचन दिया था। इस भाई - बहन के प्यार को आज भी याद किया जाता है। कहा जाता है कि राखी मिलते ही राजा ने ढेरों उपहार भेजे और मेवाड़ की सुरक्षा के लिए आगे आए।

🇮🇳 हुमायूं राखी मिलने के बाद चित्तौड़ के लिए रवाना हुआ लेकिन वह समय से पहुंचने पर नाकाम साबित हुआ। जिसके चलते बहादुरशाह ने चितौड़ पर प्रवेश कर लिया। यह देखते हुए रानी कर्णावती को अपनी हार दिखने लगी जिसके बाद 8 मार्च के दिन अन्य महिलाओं के साथ रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया। कहा जाता है यह #मेवाड़ का दूसरा दिल दहलाने वाला जौहर माना जाता है। हुमायूं ने #बहादुरशाह को युद्ध में पराजित किया। #कर्णावती के बड़े बेटे को राजगद्दी से बहाल कर दिया था।

साभार: newstrack.com

🇮🇳 अपने राज्य की मान मर्यादा के लिए आजीवन संघर्ष करने वाली, अपनी अस्मत की रक्षा के लिए जौहर करने वाली, मेवाड़ की #वीरांगना #रानी_कर्णावती जी को उनके #आत्मबलिदान_दिवस पर कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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