40 बच्चों को पीएचडी और 60 को एमफिल कराने एवं पंजाबी-हिंदी को जोड़कर नई पहचान दिलाने वाले डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी को भारत सरकार ने पद्म श्री (2022) से सम्मानित किया है। 🇮🇳
🇮🇳 हिंदी लेखक और शिक्षाविद हरमोहिंदर सिंह बेदी का जन्म 12 मार्च, 1950 को हुआ था। हरमोहिंदर सिंह बेदी का प्रेम हिंदी के प्रति उनके पिता #प्रीतम_सिंह_बेदी के कारण जागा। पिता रेलवे में स्टेशन मास्टर थे तो उन्हें कभी हिमाचल तो कभी पंजाब में पढ़ने का मौका मिला। ग्रेजुएशन करते समय हरमोहिंदर सिंह बेदी होशियारपुर में थे। तब उनके लेख व कविताएं छपनी शुरू हो चुकी थीं। इसके बाद उन्होंने गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी से एमए हिंदी की, जहां उनके गुरु बने हिंदी के क्रिटिक्स #डॉ_रमेश_कुंतल। डॉ. रमेश के साथ उन्हें पंजाब में हिन्दी साहित्य पर काम करने का मौका मिला। यह वह पंजाब था, जब हिमाचल का एक बड़ा हिस्सा हरियाणा पंजाब में ही था।
🇮🇳 डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने पंजाबी और हिंदी के बीच पुल बनाने का काम किया। इसके लिए उन्होंने एमए हिंदी करने के साथ-साथ भागलपुर यूनिवर्सिटी से डी लिट और पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से एमए पंजाबी भी की। एमए पंजाबी करने का मकसद हिंदी और पंजाबी के बीच के पुल को जानना था। अपने जीवन काल में 'हिंदी सेवी पुरस्कार' प्राप्त करने के अलावा उन्हें 'शिरोमणि हिंदी पुरस्कार', 'राज भाषा पुरस्कार' भी प्राप्त किया। हिंदी साहित्य में 150 सालों से काम कर रही संस्था 'हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग' की तरफ से उन्हें 'साहित्य महामहोपाध्याय' की डिग्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।
🇮🇳 डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी का ज्ञान मात्र भारत ही नहीं, विदेशों को भी प्राप्त हुआ। उनके 16 शोधपत्र विदेशी जरनलों में भी छप चुके हैं। इसके अलावा भारत में छपने वाला कोई भी ऐसा जरनल नहीं बचा, जिसमें उनके शोध पत्र को जगह न मिली हो। अपने जीवन काल में उन्होंने कनाडा, डेनमार्क, नार्वे, पाकिस्तान, भूटान और सिंगापुर में भी अपने शोधपत्र पढ़े। भारत में 200 से अधिक शोधपत्र वह पढ़ चुके हैं। इसके अलावा अभी तक वह 40 बच्चों को पीएचडी और 60 स्टूडेंट्स को एमफिल के शोध करवा चुके हैं।
🇮🇳 डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी एक सर्वोत्कृष्ट शिक्षाविद हैं तथा हिंदी साहित्य में पंजाब का सांस्कृतिक एवं धार्मिक योगदान के बारे में शोध ने आपको शैक्षणिक क्षेत्र में विशेष प्रसिद्धि दिलाई है। #पंडित_श्रद्धाराम_फिल्लौरी पर उनकी तीन खंडों में शोध कार्य ने हिंदी साहित्य के इतिहास को नई दिशा प्रदान की है। उन्होंने हिंदी को बढ़ावा देने और विकास के लिए भारत के कोने-कोने की यात्रा की है। विगत दशक से वे सार्क देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए समान सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासत के माध्यम से इनमें सांस्कृतिक संबंध विकसित करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
🇮🇳 उन्होंने तीस से भी अधिक पुस्तकों की रचना एवं संपादन कार्य किया है और हिंदी के सभी प्रमुख पत्रिकाओं में उनके लेखों को स्थान प्राप्त हुआ है। वे अनेक हिंदी समाचार पत्रों में नियमित स्तंभकार हैं । उनके कवि हृदय व्यक्तित्व (पांच से अधिक कविता संग्रह) और प्रभावी वक्ता गुण से सभी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
🇮🇳 अनेक क्षेत्रीय पुरस्कारों एवं सम्मानों के साथ-साथ उन्हें हिंदी भाषा के क्षेत्र में योगदान के लिए महामहिम भारत के राष्ट्रपति महोदय द्वारा 'हिंदी सेवी पुरस्कार (2017)' तथा पंजाब सरकार द्वारा 'शिरोमणि हिंदी साहित्यकार (2004)' से भी सम्मानित किया गया है। उन्होंने श्रम एवं नियोजन मंत्रालय तथा उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं जन वितरण मंत्रालय में हिंदी सलाहकार के रूप में भी अपनी सेवाएं दी हैं। उन्हें नवीन शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को तैयार करने के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय भाषा परिषद के पैनल में भी शामिल किया गया।
साभार: bharatdiscovery.org
🇮🇳 #पद्मश्री, 'हिंदी सेवी पुरस्कार', 'शिरोमणि हिंदी साहित्यकार सम्मान' 'राज भाषा पुरस्कार' और 'साहित्य महामहोपाध्याय' की उपाधि से विभूषित; विश्वविख्यात हिंदी #लेखक #Author और #शिक्षाविद #academician #डॉ_हरमोहिंदर_सिंह_बेदी #Dr_Harmohinder_Singh_Bedi जी को जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ढेरों बधाई एवं शुभकामनाऍं !
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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व
#आजादी_का_अमृतकाल
साभार: चन्द्र कांत (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था
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