23 मार्च 2024

Lala Ram Thakur | VICTORIA CROSS WINNER | लांस नायक लाला राम | जन्म- 20 अप्रैल, 1876, हिमाचल प्रदेश; मृत्यु- 23 मार्च, 1927

 



#भारतीयता_की_पहचान_को_कायम_रखने_वाले_नायक

लांस नायक लाला राम (जन्म- 20 अप्रैल, 1876, हिमाचल प्रदेश; मृत्यु- 23 मार्च, 1927) भारतीय थल सेना के 41वें डोगरा में लांस नाईक थे। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने मेसोपोटामिया (मौजूदा इराक) में हन्ना के युद्ध में 21 जनवरी, 1916 को बहादुरी की मिसाल कायम की, जिसके लिए उनको "विक्टोरिया क्रॉस" से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 लांस नायक लाला राम ने एक ब्रिटिश ऑफिसर को दुश्मन के करीब जमीन पर बेसुध पाया। वह ऑफिसर दूसरी रेजिमेंट का था।

लाला राम उस ऑफिसर को एक अस्थायी शरण में ले आए, जिसे उन्होंने खुद बनाया था। उसमें वह पहले भी चार लोगों की मरहम-पट्टी कर चुके थे।

🇮🇳 जब उस अधिकारी के जख्म की मरहम-पट्टी कर दी तो उनको अपनी रेजिमेंट के एजुटेंट की आवाज सुनाई दी। एजुटेंट बुरी तरह जख्मी थे और जमीन पर पड़े थे।

लाला राम ने एजुटेंट को अकेले नहीं छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने अपने पीठ पर लादकर एजुटेंट को ले जाना चाहा, लेकिन एजुटेंट ने मना कर दिया।

🇮🇳 उसके बाद वह शेल्टर में आ गए और अपने कपड़े उतारकर जख्मी अधिकारी को गर्म रखने की कोशिश की और अंधेरा होने तक उसके साथ रहे।

🇮🇳 जब वह अधिकारी अपने शेल्टर में चला गया तो उन्होंने पहले वाले जख्मी अधिकारी को मुख्य खंदक में पहुँचाया। इसके बाद वह एक स्ट्रेचर लेकर गए और अपने एजुटेंट को वापस लाए।

🇮🇳 उन्होंने अपने अधिकारियों के लिए साहस और समर्पण की अनोखी मिसाल कायम की।

🇮🇳 लाला राम का 23 मार्च, 1927 में निधन हो गया और उनके अंतिम शब्द थे- "हमने सच्चे दिल से लड़ा।"

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित; प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मेसोपोटामिया (मौजूदा इराक) में हन्ना के युद्ध में 21 जनवरी, 1916 को बहादुरी की मिसाल कायम करने वाले भारतीय थल सेना के 41वें डोगरा के सैनिक #लांस_नायक_लाला_राम जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

#Lance_Nayak_Lala_Ram ji

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 



Brigadier Rai Singh Yadav | ब्रिगेडियर राय सिंह यादव | टाइगर ऑफ नाथू ला | 17 मार्च 1925 -23 मार्च, 2017

 


#नाथू_ला_का_बाघ

लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह यादव को भारतीय सेना में 'टाइगर ऑफ नाथू ला' के नाम से याद किया जाता है। उन्होंने संगीनों और राइफल बटों के साथ आमने-सामने की लड़ाई में आगे रहकर अपने लोगों का नेतृत्व किया। 🇮🇳

🇮🇳 राय सिंह यादव का जन्म 17 मार्च 1925 को पंजाब प्रांत (अब हरियाणा के रेवाड़ी जिले) के #गुड़गाँव जिले के #कोसली गाँव में हुआ था। उनके पिता #रायसाहब_गणपत_सिंह थे जिन्होंने 1920 के दशक में ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा की थी। राय सिंह ने अपनी सीनियर कैम्ब्रिज किंग जॉर्ज मिलिट्री स्कूल, जुलुंदुर से उत्तीर्ण की। वह 1944 में एक सिपाही के रूप में सेना में शामिल हुए। उन्हें 10 दिसंबर 1950 को 2 ग्रेनेडियर्स में नियुक्त किया गया था। उनका दिमाग विश्लेषणात्मक था और सेवा के आरंभ में ही वे सैन्य रणनीति और रणनीति में निपुण हो गए थे। उन्हें यूके के कैम्बरली में प्रतिष्ठित डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज में भाग लेने के लिए नामांकित किया गया था।   

🇮🇳 1962 में झटके के बाद, किसी भी चीनी हमले के खिलाफ भारत की उत्तरी सीमाओं की रक्षा के लिए सात पर्वतीय डिवीजनों को खड़ा किया गया था। नाथू ला डोंगक्या रेंज पर एक पहाड़ी दर्रा है जो 14,250 फीट (4,340 मीटर) की ऊंचाई पर सिक्किम और तिब्बत की चुम्बी घाटी को अलग करता है। सिक्किम के नाथू ला दर्रे पर, तैनात चीनी और भारतीय सेनाएँ लगभग 20-30 मीटर की दूरी पर तैनात थीं। क्षेत्र में छोटे पैमाने पर झड़पें अक्सर होती रहीं। लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह ने नाथू ला सीमा चौकी की सुरक्षा करने वाले 2 ग्रेनेडियर्स की कमान संभाली। 

🇮🇳 20 अगस्त 1967 को, लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह यादव को उत्तरी कंधे पर पहली चीनी घुसपैठ के बाद नाथू ला में जल शेड के साथ तार की बाड़ बनाने का आदेश दिया गया था। चीनी राजनीतिक कमिश्नर रेन रोंग, पैदल सेना की एक टुकड़ी के साथ, दर्रे के केंद्र में आये जहाँ लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह यादव अपनी कमांडो पलटन के साथ खड़े थे। रोंग ने यादव से तार बिछाना बंद करने को कहा। भारतीय सैनिकों ने रुकने से इनकार कर दिया. चीनियों ने भारतीय सैनिकों पर मशीनगनों से गोलीबारी कर जवाब दिया। दर्रे में कवर की कमी के कारण शुरुआत में भारतीय सैनिकों को भारी क्षति उठानी पड़ी। बाद में चीनियों ने भी भारतीयों पर तोपखाने से गोलियाँ चलायीं। 

🇮🇳 भारतीय सैनिकों ने अपनी ओर से तोपखाने से जवाब दिया। झड़प दिन-रात चलती रही, अगले तीन दिनों तक दोनों पक्षों ने तोपखाने से गोलाबारी की। भारतीय सैनिक चीनी सेना को 'पीटने' में कामयाब रहे। दुश्मन के गंभीर प्रतिरोध के बावजूद, यादव बाड़ लगाने का काम सफलतापूर्वक पूरा करने में कामयाब रहे। 

🇮🇳 7 सितंबर 1967 को, उन्हें उत्तरी कंधे से दक्षिण कंधे तक बाड़ का विस्तार करने का आदेश दिया गया था। चीनियों ने गोलीबारी शुरू कर दी, संगीनों और राइफल बटों का भी इस्तेमाल किया। 11 सितंबर को बाड़ को मजबूत करने का काम करते समय चीनियों ने मोर्टार और रिकॉइललेस गन से हमला कर दिया। उन्होंने अपनी यूनिट को सभी उपलब्ध हथियारों के साथ जवाबी गोलीबारी करने का आदेश दिया, और अपने लोगों को सुरक्षा में वापस लाने के लिए कवर फायर देने के लिए व्यक्तिगत रूप से एक लाइट मशीन गन (एलएमजी) से गोलीबारी की। 

🇮🇳 जब उनका खुद का बंकर क्षतिग्रस्त हो गया, तो वह खुले में आये, एक घायल सैनिक का हथियार उठाया और चीनियों पर गोलीबारी करते रहे। बाद में उन्होंने ब्राउनिंग मशीन गन का संचालन किया जब इसके ऑपरेटर की मौत हो गई। लेकिन बाद में उनके पेट में गोली लगी और वह मौके पर ही गिर पड़े. उसके सिर पर भी छर्रे से वार किया गया। कुछ समय बाद, जब उन्हें होश आया, तो उन्होंने हिलने से इनकार कर दिया और अपने गंभीर घावों की परवाह किए बिना, उन्होंने निर्देश देना जारी रखा और अपने सैनिकों को लड़ते रहने के लिए प्रोत्साहित किया। 

🇮🇳 लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह यादव को भारतीय सेना में 'टाइगर ऑफ नाथू ला' के नाम से याद किया जाता है। उन्होंने संगीनों और राइफल बटों के साथ आमने-सामने की लड़ाई में सामने से अपने लोगों का नेतृत्व किया और इस प्रकार दुश्मन के सामने विशिष्ट बहादुरी और असाधारण नेतृत्व का प्रदर्शन किया। इसके लिए उन्हें महावीर चक्र (एमवीसी) से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह (एमवीसी), सेना मुख्यालय, नई दिल्ली में सैन्य संचालन निदेशालय में जनरल स्टाफ ऑफिसर ग्रेड 1 के रूप में तैनात थे। बाद में, उन्हें ब्रिगेडियर के पद पर पदोन्नत किया गया और एक इन्फैंट्री ब्रिगेड की कमान सौंपी गई। उन्होंने प्रतिनियुक्ति पर सीमा सुरक्षा बल में महानिरीक्षक (संचालन) के रूप में भी कार्य किया। 23 मार्च, 2017 को उन्होंने अंतिम साँस ली।

साभार: oneindiaonepeople.com

🇮🇳 युद्ध क्षेत्र में विशिष्ट बहादुरी और असाधारण नेतृत्व के लिए महावीर चक्र (एमवीसी) से सम्मानित; #ब्रिगेडियर_राय_सिंह_यादव जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

#Brigadier_Rai_Singh_Yadav

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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Sardar Bhagat Singh | स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी | सरदार भगत सिंह | जन्म: 28 सितम्बर 1907 , वीरगति: 23 मार्च 1931



#क्रांतिकारी_बलिदानियों_का_देश_के_लिए_स्वप्न_कब_पूरा_होगा ???

भगत सिंह (जन्म: 28 सितम्बर 1907 , वीरगति: 23 मार्च 1931) भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे।

28 सितंबर 1907 को लायलपुर, पश्चिमी पंजाब, भारत (वर्तमान पाकिस्तान) में एक सिख परिवार में जन्मे भगत सिंह, किशन सिंह संधू और विद्या वती के बेटे थे। सात भाई-बहनों में भगत सिंह दूसरे नंबर पर थे उनके दादा अर्जन सिंह, पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे।

भगत सिंह ने अपनी 5वीं तक की पढाई गांव में की और उसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर में उनका दाखिला करवाया। बहुत ही छोटी उम्र में भगत सिंह, #महात्मा गांधी जी के असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए और बहुत ही बहादुरी से उन्होंने ब्रिटिश सेना को ललकारा।

महज़ 24 साल की उम्र में #ब्रिटिश सरकार ने सरदार भगत सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया था. उन पर #लाहौर षडयंत्र केस में शामिल होने का आरोप था. #भगत सिंह के साथ #राजगुरु और #सुखदेव #Bhagat_Singh, #Rajguru and #Sukhdev को भी सज़ा-ए-मौत दी गई थी

भगत सिंह जिस तस्वीर को अपनी जेब में रखते थे वह किसी बाबा की फोटो नहीं थी वो एक 19 साल के नौजवान #करतार सिंह सराभा की फोटो थी जिसे भगत सिंह अपना आदर्श, अपना गुरु मानते थे. #पंजाब के लुधियाना जिले के सराभा गांव में 24 मई, 1896 को जन्म करतार सिंह सराभा को अंग्रेजों ने महज 19 साल की उम्र में ही #फांसी दे दी थी.

सामाजिक प्रगति कुछ लोगों के अभिजात-वर्ग बनने पर नहीं बल्कि लोकतंत्र के संवर्धन पर निर्भर करती है; सार्वभौमिक भाईचारा केवल तब प्राप्त किया जा सकता है जब सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में अवसर की एक समानता होती है। 🔴🇮🇳

जय भारत !

~ सरदार भगत सिंह की डायरी से

मानवता को समर्पित दूरदृष्टा चिंतक, देशभक्ति से ओतप्रोत माँ भारती के सच्चे सपूत अमर बलिदानी #सरदार_भगत_सिंह जी को शत् शत् नमन !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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Balidan diwas | बलिदान-दिवस | भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू | 23 मार्च, 1931



#बलिदान_दिवस

सरदार भगत सिंह 🇮🇳

🇮🇳 अमर हुतात्मा #सरदार_भगतसिंह का जन्म- 27 सितंबर, 1907 को बंगा, लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में) हुआ था व 23 मार्च, 1931 को इन्हें दो अन्य साथियों सुखदेव व राजगुरू के साथ फाँसी दे दी गई। भगतसिंह का नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय है। भगतसिंह देश के लिये जीये और देश ही के लिए बलिदान भी हो गए।

🇮🇳 राजगुरु 🇮🇳

🇮🇳 24 अगस्त, 1908 को पुणे ज़िले के खेड़ा गाँव (जिसका नाम अब 'राजगुरु नगर' हो गया है) में पैदा हुए अमर हुतात्मा #राजगुरु का पूरा नाम 'शिवराम हरि राजगुरु' था। आपके पिता का नाम 'श्री हरि नारायण' और माता का नाम 'पार्वती बाई' था। भगत सिंह और सुखदेव के साथ ही राजगुरु को भी 23 मार्च 1931 को फाँसी दी गई थी।

राजगुरु 'स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे हासिल करके रहूँगा' का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे।

🇮🇳 सुखदेव 🇮🇳

🇮🇳 अमर हुतात्मा #सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907, पंजाब में हुआ था। 23 मार्च, 1931 को सेंट्रल जेल, लाहौर में भगतसिंह व राजगुरू के साथ इन्हें भी फाँसी दे दी गई। सुखदेव का नाम भारत के अमर क्रांतिकारियों और बलिदानियों में गिना जाता है। आपने अल्पायु में ही देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। सुखदेव का पूरा नाम 'सुखदेव थापर' था। इनका नाम भगत सिंह और राजगुरु के साथ जोड़ा जाता है।   

🇮🇳 इन तीनों अमर बलिदानियों की तिकड़ी भारत के इतिहास में सदैव याद रखी जाएगी। तीनों देशभक्त क्रांतिकारी आपस में अच्छे मित्र थे और देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वत्र न्यौछावर कर देने वालों में से थे। 23 मार्च, 1931 को भारत के इन तीनों वीर नौजवानों को एक साथ फ़ाँसी दी गई और 23 मार्च को बलिदान-दिवस के रूप में याद किया जाता है।

सभी राष्ट्रभक्तों की ओर से अमर हुतात्माओं को कोटि-कोटि नमन !

#Sukhdev #Rajgurusardar #BhagatSingh

🇮🇳💐🙏

भारत माता की जय 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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Sardar Bhagat Singh | क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह | Sardar Kultar Singh | क्रांतिकारी सरदार कुलतार सिंह

 



वर्ष 1975 में अपने विद्यालय #गीता_विद्या_मंदिर, #सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) के #वार्षिकोत्सव में मुझे शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह के अनुज #सरदार_कुलतार_सिंह (जो समारोह के मुख्य अतिथि थे) का स्वागत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था !

~ चन्द्र कांत 

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

अपने छोटे भाई कुलतार के नाम सरदार भगत सिंह का अन्तिम पत्र :

सेंट्रल जेल, लाहौर,

3 मार्च, 1931

अजीज कुलतार,

आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दुख हुआ। आज तुम्हारी बातों में बहुत दर्द था, तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते।

बरखुर्दार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का ख्याल रखना। हौसला रखना और क्या कहूँ!

उसे यह फ़िक्र है हरदम नया तर्ज़े-ज़फा क्या है,

हमे यह शौक़ है देखें सितम की इन्तहा क्या है।

दहर से क्यों खफ़ा रहें, चर्ख़ का क्यों गिला करें,

सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें।

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहले-महफ़िल,

चराग़े-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ।

हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली,

ये मुश्ते-ख़ाक है फानी, रहे रहे न रहे।

अच्छा रुख़सत। खुश रहो अहले-वतन; हम तो सफ़र करते हैं। हिम्मत से रहना। नमस्ते।

तुम्हारा भाई,

भगतसिंह

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🇮🇳 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर क्रांतिकारी #सरदार_भगत_सिंह जी और उनके अनुज क्रांतिकारी #सरदार_कुलतार_सिंह जी को भावभीनी श्रद्धांजलि !

#Sardar_Bhagat_Singh ji and his younger brothers revolutionary #Sardar_Kultar_Singh ji

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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22 मार्च 2024

ED vs Kejriwal | ये हालत होगी, पता था लेकिन इसके लिए जिम्मेदार केजरीवाल खुद और सिंघवी है - लेखक : सुभाष चन्द्र




ये हालत होगी, पता था लेकिन इसके लिए जिम्मेदार केजरीवाल खुद है 

और सिंघवी है -खूब गुजरेगी जब जेल में मिल बैठेंगे “4 यार”- #ED ने #केजरीवाल को - चारों खाने चित कर दिया,

केजरीवाल को आज #Rouse_Avenue_Court की #special_judge #कावेरी #बजाज ने #ED द्वारा मांगी हुई 10 दिन की #Custody की जगह 7 दिन की custody दे दी -

अपने पिछले 2 videos में मैंने कहा था कि केजरीवाल ने #सिंघवी से #संजय_सिंह की जमानत अर्जी पर बेकार दलील दिलवा कर अपना पैर ही कुल्हाड़ी पर मार लिया जब सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि संजय को ED ने बिना “#summon” जारी किए गिरफ्तार कर लिया और यह तथ्य केजरीवाल के खिलाफ जाता है क्योंकि उसे तो #9summon दिए ED ने -

दूसरी बात मैंने कही थी कि “कल हाई कोर्ट में सुनवाई जरूरी नहीं थी क्योंकि सब बातों पर परसों 20 मार्च को ही फैसला हो गया था - अब केजरीवाल अगले दिन #सुप्रीम_कोर्ट भागेगा हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ और इसलिए ED को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए” 

ऐसा ही हुआ, ED ने शाम को ही केजरीवाल के घर पर रेड कर दी और 2 घंटे सवाल जवाब करने के बाद लपेट लिया जिसके खिलाफ केजरीवाल रात को सुप्रीम कोर्ट चला गया - लेकिन आज  Rouse Avenue Court  में पेशी से पहले याचिका वापस ले ली यह कहते हुए  कि हम #lower_court में पहले अपनी बात करेंगे - फिर सिंघवी ने इसे सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह ही क्यों दी -

केजरीवाल की आज की स्थिति के लिए वह खुद भी जिम्मेदार है और सिंघवी समेत इसके सारे वकील जिम्मेदार हैं जो उन्होंने केजरीवाल को हाई कोर्ट में 9 summons को चुनौती देने की सलाह दी और अगले दिन यानी कल Arrest से Protection मांगने के लिए सलाह दी - जब इस केस में 15 लोग पहले गिरफ्तार हो चुके हैं तो केजरीवाल में क्या सुर्खाब के पर लगे हैं जो उसकी गिरफ़्तारी पर कोर्ट रोक लगाता -

केजरीवाल जब 8 summons पर पेश नहीं हुआ तो 9वें पर भी न जाता जिसमें उसे कल 21 मार्च को बुलाया था - लेकिन वह चला गया हाई कोर्ट राहत की कोई उम्मीद में जो मिलना संभव नहीं थी क्योंकि कोई कोर्ट summons पर पेश न होने की छूट नहीं देता - जब 20 मार्च को राहत नहीं मिली तो 21 को गिरफ़्तारी रोकने की शर्त पूरी कराने पहुंच गया हाई कोर्ट और अगर दोनों दिन हाई कोर्ट न जाता तो शायद आज की स्तिथि पैदा न होती -

अब “#आप” के नेताओं और केजरीवाल उसकी पत्नी की झल्लाहट देखिए क्या क्या बोल रहे हैं -

कह रहे है केजरीवाल एक “सोच है, प्रेरणा है” - केजरीवाल कह रहा है मैं देश के लिए काम करता रहूंगा और सुनीता केजरीवाल कह रही है कि “मोदी के अहंकार ने केजरीवाल को गिरफ्तार कराया है” - 

ऐसी सोच और प्रेरणा है केजरीवाल जो देश के लोगों को शराब के नशे में झोंक देना चाहता है और भ्रष्टाचार की शिक्षा देना चाहता है - उसे याद रखना चाहिए कि उसके सभी मंत्री अभी जेल में ही हैं और इसका भी बाहर आना संभव नहीं होगा - 

अभी भी मोदी को अपमानित करते शर्म नहीं आती - अब तो समझना चाहिए कि #मोदी को अनपढ़, गंवार और डरपोक और चौथी पास राजा कह कर अपमान करने का ही आज नतीजा मिला है-

मजे की बात तो यह है कि #कांग्रेस के नेता, #अजय_माकन, #अलका लांबा, #सुप्रिया श्रीनेत, #संदीप दीक्षित और# रागिनी नायक ने केजरीवाल का त्यागपत्र मांगा था तो #प्रियंका_वाड्रा और #राहुल #गांधी #केजरीवाल के साथ खड़े हैं -

जेल में बहुत समय मिलेगा “सोच” को “सोचने” का कि क्या ऐसे कर्म किए जिनका फल मिला है  

वैसे जेल में #सत्येंद्र जैन, #सिसोदिया, #संजय सिंह के साथ# केजरीवाल के मिलने से “चांडाल चौकड़ी” पूरी हो गई - पांचवा विजय नायर सेवा करेगा -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 22/03/2024 

#Kejriwal  #judiciary #ed #cbi #delhi #sharabghotala #Rouse_Avenue_court #liquor_scam #aap  #Muslims,#implemented_CAA,#Mamata, #Stalin, #Vijayan, #threatening , #impose_CAA ,#respective_states,#Opposition_Against_CAA, #persecuted_Hindus #minorities, #except_Muslims #Congress_Party,  #political_party,  #indi #gathbandhan  #Prime_Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court #Arvind_Kejriwal, #DMK  #A_Raja  #top_stories

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Suryasen | सूर्यसेन | Revolutionary | द हीरो ऑफ चटगांव क्रांति | 22 मार्च, 1894 -12 जनवरी, 1934

 


फाँसी के ऐन वक्त पहले उनके हाथों के नाखून उखाड़ लिए गए। उनके दाँतों को तोड़ दिया गया, ताकि अपनी अंतिम साँस तक वे वंदेमातरम् का उद्घोष न कर सकें। 🇮🇳

🇮🇳 ब्रितानी हुकूमत की क्रूरता और अपमान की पराकाष्ठा यह थी कि उनकी मृत देह को भी धातु के बक्से में बंद करके बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया। 🇮🇳

🇮🇳 मेरे लिए यह वह पल है, जब मैं मृत्यु को अपने परम मित्र के रूप में अंगीकार करूँ। इस सौभाग्यशील, पवित्र और निर्णायक पल में, मैं तुम सबके लिए क्या छोड़ कर जा रहा हूँ? सिर्फ एक चीज - मेरा स्वप्न, मेरा सुनहरा स्वप्न, #स्वतंत्र #भारत का स्वप्न। 🇮🇳

🇮🇳 हमारे देश को आजादी यों ही नसीब नहीं हुई है। भारत की स्वाधीनता की पृष्ठभूमि में कई महान क्रांतिकारियों ने अपने देश की आजादी की खातिर खून के कड़वे घूँट पीये हैं। ऐसे ही एक महान देशभक्त क्रांतिकारी थे सूर्यसेन। जिन्हें अंग्रेजों ने #मरते दम तक असहनीय यातनाएं दी थीं। अविभाजित बंगाल के #चटगॉंव (चिट्टागोंग, अब बांग्लादेश में) में स्वाधीनता आंदोलन के अमर नायक बने सूर्यसेन उर्फ सुरज्या सेन का जन्म 22 मार्च, 1894 को हुआ था। क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी सूर्यसेन को द हीरो ऑफ चिट्टागोंग के नाम से भी जाना जाता है। 

🇮🇳 अंग्रेजी हुकूमत क्रांतिकारी सूर्य सेन से इतना खौफ खाती थी कि उन्हें बेहोशी की हालत में फाँसी पर चढ़ाया गया था। अंग्रेजों के जुल्म ही दास्तां सिर्फ इतनी ही नहीं है। ब्रितानी तानाशाही की अमानवीय बर्बरता और क्रूरता की हद तब देखी गई जब सूर्यसेन को फाँसी के फंदे पर लटकाया जा रहा था। फाँसी के ऐन वक्त पहले उनके हाथों के नाखून उखाड़ लिए गए। उनके दाँतों को तोड़ दिया गया, ताकि अपनी अंतिम साँस तक वे वंदेमातरम का उदघोष न कर सकें। सूर्यसेन के संघर्ष की बानगी पढ़कर ही रूह काँप उठती है। लेकिन उन्होंने यह सब #मातृभूमि के लिए हँसते हुए झेला था। 

🇮🇳 पेशे से शिक्षक रहे बंगाल के इस नायक को लोग सूर्यसेन कम मास्टर दा कहकर ज्यादा पुकारते थे। 1930 की चटगाँव आर्मरी रेड के नायक मास्टर सूर्यसेन ने अंग्रेज सरकार को सीधी चुनौती दी थी। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर चटगॉंव को अंग्रेजी हुकूमत के शासन के दायरे से बाहर कर लिया था और भारतीय ध्वज को फहराया था। उन्होंने न केवल क्षेत्र में ब्रिटिश हुकूमत की संचार सुविधा ठप कीं बल्कि रेलवे, डाक और टेलीग्राफ सब संचार एवं सूचना माध्यमों को ध्वस्त करते हुए चटगाँव से अंग्रेज सरकार के संपर्क तंत्र को ही खत्म कर दिया था। 

🇮🇳 सूर्यसेन की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा चटगांव में ही हुई। उनके पिता #रामनिरंजन भी चटगाँव के ही #नोआपारा इलाके में एक शिक्षक थे। 22 वर्षीय सूर्यसेन जब इंटरमीडिएट के विद्यार्थी थे, तभी अपने एक शिक्षक की प्रेरणा से वह बंगाल की प्रमुख क्रांतिकारी संस्था #अनुशीलन_समिति के सदस्य बन गए। इसके बाद उन्होंने बहरामपुर कॉलेज में बीए कोर्स में दाखिला ले लिया। यहीं वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी संगठन #युगांतर से जुड़े। वर्ष 1918 में चटगाँव वापस आकर उन्होंने स्थानीय युवाओं को संगठित करने के लिए युगांतर पार्टी की स्थापना की। 

🇮🇳 शिक्षक बनने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की चटगाँव जिला शाखा के अध्यक्ष भी चुने गए थे। उन्होंने धन और हथियारों की कमी को देखते हुए अंग्रेज सरकार से #गुरिल्ला_युद्ध करने का निश्चय किया। उन्होंने दिन-दहाड़े 23 दिसंबर, 1923 को चटगाँव में असम-बंगाल रेलवे के ट्रेजरी ऑफिस को लूटा। किंतु उन्हें सबसे बड़ी सफलता चटगाँव आर्मरी रेड के रूप में मिली, जिसने अंग्रेजी सरकार को झकझोर दिया था।  

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मास्टरा दा ने युवाओं को संगठित कर #भारतीय_प्रजातांत्रिक_सेना नामक संगठन खड़ा किया। 18 अप्रैल, 1930 को सैनिक वस्त्रों में इन युवाओं ने  के नेतृत्व में दो दल बनाए। इन्होंने चटगाँव के सहायक सैनिक शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया। किन्तु दुर्भाग्यवश उन्हें बंदूकें तो मिलीं, किंतु उनकी गोलियां नहीं मिल सकीं। क्रांतिकारियों ने टेलीफोन और टेलीग्राफ के तार काट दिए और रेलमार्गों को अवरुद्ध कर दिया। 

🇮🇳 अपनी साहसिक घटनाओं द्वारा अंग्रेजी सरकार को छकाते रहे। ऐसी अनेक घटनाओं में 1930 से 1932 के बीच 22 अंग्रेज अधिकारी और उनके लगभग 220 सहायकों की हत्याएं की गईं। इस दौरान मास्टर सूर्यसेन ने अनेक संकट झेले। 

🇮🇳 अंग्रेज सरकार ने सूर्यसेन पर 10 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया था। इसके लालच में एक धोखेबाज साथी नेत्रसेन की मुखबिरी पर 16 फरवरी, 1933 को अंग्रेज पुलिस ने सूर्यसेन को गिरफ्तार कर लिया। 

🇮🇳 12 जनवरी, 1934 को चटगाँव सेंट्रल जेल में सूर्यसेन को साथी #तारकेश्वर के साथ फाँसी की सजा दी गई, लेकिन फाँसी से पूर्व उन्हें कईं अमानवीय यातनाएं दी गईं। ब्रितानी हुकूमत की क्रूरता और अपमान की पराकाष्ठा यह थी कि उनकी मृत देह को भी धातु के बक्से में बंद करके बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया। आजादी के बाद चटगाँव सेंट्रल जेल के उस फाँसी के तख्त को बांग्लादेश सरकार ने मास्टर सूर्यसेन स्मारक घोषित किया था। 

🇮🇳 भारत डिस्कवरी डॉट ओरआरजी के अनुसार, मास्टर सूर्यसेन ने फॉसी के एक दिन पूर्व 11 जनवरी, 1934 को अपने एक मित्र को अंतिम पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा, "मृत्यु मेरा द्वार खटखटा रही है। मेरा मन अनंत की और बह रहा है। मेरे लिए यह वह पल है, जब मैं मृत्यु को अपने परम मित्र के रूप में अंगीकार करूँ। इस सौभाग्यशील, पवित्र और निर्णायक पल में, मैं तुम सबके लिए क्या छोड़ कर जा रहा हूँ? सिर्फ एक चीज - मेरा स्वप्न, मेरा सुनहरा स्वप्न, स्वतंत्र भारत का स्वप्न। प्रिय मित्रों, आगे बढ़ो और कभी अपने कदम पीछे मत खींचना। उठो और कभी निराश मत होना। सफलता अवश्य मिलेगी।"

साभार: amarujala.com

🇮🇳 भारतीय #स्वतंत्रता संग्राम के स्वर्णिम अध्याय के निर्माता वीर #क्रांतिकारी #मास्टर_दा #सूर्यसेन जी की जयंती पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

#Revolutionary #Master_Da #Suryasenji

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल


साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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