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देवउठनी एकादशी | Dev Uthani Ekadashi | “देव जागे, मांगलिक कार्यों का शुभारंभ”

हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है, और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी— देवउठनी एकादशी, जिसे Prabodhini Ekadashi देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है—सबसे पवित्र मानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा (चातुर्मास) के बाद जागते हैं, और फिर से संसार के पालन में सक्रिय होते हैं। देवउठनी एकादशी क्या है? आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु “शयन” करते हैं, और कार्तिक शुक्ल एकादशी को “उठते” हैं। यह दिन भगवान विष्णु के जागरण का प्रतीक है और माना जाता है कि इस दिन से सारे शुभ एवं मांगलिक कार्य जैसे—विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन, नए काम की शुरुआत—फिर से शुरू किए जा सकते हैं। शुभ मुहूर्त (Dev Uthani Ekadashi 2025) वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 1 नवंबर 2025  शनिवार को सुबह 9 बजकर 12 मिनट से प्रारंभ होकर 2 नवंबर 2025 रविवार को शाम 7 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी।देवउठनी एकादशी की कथा कथा के अनुसार, भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले गए, और इस अवधि में धरती पर विवाह, यज्ञ, गृहप्रवेश आदि शुभ कार्य रोक दिए जाते हैं। देव उठनी के दिन देवी तुलसी औ...

कल्पवृक्ष | Kalpavriksha | इच्छा पूर्ण करने वाला दिव्य वृक्ष | The Divine Wish-Fulfilling Tree

 🌿   “कल्पवृक्ष – जहाँ   ✨   इच्छाएँ पूर्ण होती हैं, मन शांत होता है”  🔱  “Kalpavriksha – Where desires are fulfilled, the mind is at peace” हम अक्सर सुनते हैं — "कल्पवृक्ष के नीचे बैठो, तुम्हारी मनोकामनाएँ पूरी होंगी।" लेकिन क्या वास्तव में कोई ऐसा वृक्ष है? हिंदू धर्म के ग्रंथों में कल्पवृक्ष या कल्पतरु को इच्छापूर्ति करने वाला दिव्य वृक्ष माना गया है। इसका उल्लेख समुद्र मंथन में मिलता है, जहाँ यह रत्नों में से एक के रूप में प्रकट हुआ था। 🌿   कल्पवृक्ष क्या है? कल्पवृक्ष एक ऐसा वृक्ष है जो केवल भौतिक वस्तुएँ ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक पूर्णता भी देता है। "कल्पतरु वह है जो मनुष्य की ‘इच्छा’ को ‘वास्तविकता’ में बदल दे।" लेकिन यहाँ "इच्छा" का अर्थ केवल भौतिक लाभ नहीं, बल्कि आंतरिक संतोष, शांति और आध्यात्मिक उन्नति है। कल्पवृक्ष समुद्र मंथन के दौरान जो 14 रत्न निकले, उनमें से एक था कल्पवृक्ष। इस वृक्ष को देवताओं   🔱 के लोक स्वर्ग में स्थापित किया गया। कल्पवृक्ष की अवधारणा जैन धर्म और बौद्ध धर्म में भी पाई जाती है।   ...

काशी – मणिकर्णिका घाट | जहाँ मृत्यु नहीं, मुक्ति मिलती है | Kashi – Manikarnika Ghat

   “मणिकर्णिका – जहाँ मृत्यु नहीं, मुक्ति मिलती है” “Manikarnika – Where there is no death, but liberation” भूमिका वाराणसी—या काशी—के नाम मात्र से ही एक दिव्यता का अनुभव होता है। यह वह भूमि है जहाँ समय थम जाता है, और जीवन अपने वास्तविक स्वरूप में दिखाई देता है। काशी में गंगा नदी के किनारे स्थित मणिकर्णिका घाट को संसार का सबसे पवित्र श्मशान माना जाता है। यहाँ मृत्यु एक अंत नहीं, बल्कि मोक्ष का द्वार है। मणिकर्णिका घाट का महत्व मणिकर्णिका घाट काशी के सबसे प्राचीन एवं प्रमुख घाटों में से एक है। मान्यता है कि यहाँ शवदाह (अंत्येष्टि) निरंतर चलता है—24 घंटे, वर्ष के 365 दिन। काशी एकमात्र स्थान है जहाँ मृत्यु का भय नहीं, बल्कि मुक्ति की आशा दिखाई देती है। हिंदू मान्यता के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति का अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर होता है, तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है—यानी जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति। शिव और देवी पार्वती की कथा किवदंती के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव के साथ स्नान करते समय अपनी मणि (कर्ण की बाली) यहाँ खो दी। तभी से इसका नाम मणिकर्णिका पड़ा। एक अन्य मान्यता के अनुस...

समुद्र मंथन Samudra Manthan

  समुद्र मंथन  Samudra Manthan समुद्र मंथन हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और प्रतीकात्मक प्रसंगों में से एक है, जिसका वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण, विष्णु पुराण और महाभारत आदि ग्रंथों में मिलता है। यह प्रसंग देवताओं (सुरों) और दानवों (असुरों) के बीच हुए सहयोग, संघर्ष और दिव्य वरदानों की प्राप्ति की कथा है। कथा संक्षेप में इंद्र के अभिमान के कारण देवताओं को राजा बलि से हार का सामना करना पड़ा और उनकी शक्तियाँ कमज़ोर हो गईं। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी कि— “असुरों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन करो। उसमें छुपे अमृत को प्राप्त करो।” देवताओं ने असुरों के साथ समझौता किया कि अमृत मिलने पर सबको समान भाग मिलेगा। समुद्र मंथन की प्रक्रिया मंथन-दंड (रस्सी) राजा सर्प वासुकी मंथन का धुरी (आधार) पर्वत मंदराचल आधार (कूर्म अवतार) भगवान विष्णु ने कच्छप (कूर्म) रूप धारण कर पहाड़ को अपनी पीठ पर स्थिर किया देवताओं और असुरों ने मिलकर मंथन किया मंथन से निकले 14 रत्न (Ratnas) समुद्र मंथन में कुल 14 मुख्य रत्न निकले — विष (हलाहल) — शिव ने पीकर नीलकंठ नाम पाया कामधेनु — दिव्य गाय उच्चैःश्रव...

तुलसी विवाह | Tulsi Vivah | भक्ति, समर्पण और शुभ आरंभ का प्रतीक पर्व

🌿 तुलसी विवाह: भक्ति, समर्पण और शुभ आरंभ का प्रतीक पर्व 🌿 🌿 Tulsi Vivah: A Festival Symbolizing Devotion, Dedication, and Auspicious Beginnings 🌿 तुलसी विवाह एक ऐसा पवित्र पर्व है जो देवउठनी एकादशी (प्रभोधिनी एकादशी) के बाद मनाया जाता है। यह वह क्षण होता है जब भगवान विष्णु चार महीने के योग निद्रा काल के बाद जागते हैं, और उनके जागरण के साथ ही सभी शुभ कार्यों की पुनः शुरुआत होती है। तुलसी विवाह को धरती पर भगवान विष्णु और देवी तुलसी के विवाह के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भक्ति, श्रद्धा और दिव्य प्रेम का सुंदर संगम है। 🌸 पौराणिक कथा पुराणों में वर्णन है कि तुलसी देवी (Vrinda) एक अत्यंत पतिव्रता स्त्री थीं। उनके पति जालंधर, एक असुर, भगवान शिव से युद्ध में अजेय थे, क्योंकि उन्हें अपनी पत्नी वृंदा की पतिव्रता शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त था। भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए वृंदा की परीक्षा ली, और उसके परिणामस्वरूप जालंधर का वध हुआ। जब वृंदा को यह ज्ञात हुआ, तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह पत्थर के रूप में (शालिग्राम) पूजे जाएँगे, और वह स्वयं तुलसी के पौधे के रूप में पृ...

छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ 🌞 छठ पूजा 🌞 सूर्य उपासना का दिव्य पर्व 🌞 Chhath Puja 🌞 The Divine Festival of Sun Worship 🌞

🌅 Chhath Puja: The Divine Festival of Sun Worship 🌅  छठ पूजा: सूर्य उपासना का दिव्य पर्व 🌅 भारतीय संस्कृति में सूर्य देव को जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य का स्रोत माना गया है। छठ पूजा, जिसे छठ पर्व या सूर्य षष्ठी व्रत कहा जाता है, सूर्य और छठी मैया की आराधना का सबसे पवित्र और प्राचीन पर्व है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है, परंतु आज यह पूरे भारत और विश्वभर में भक्ति और आस्था का प्रतीक बन चुका है। In Indian culture, the Sun God is considered the source of life, energy, and health. Chhath Puja, also known as Chhath Parva or Surya Shashthi Vrat, is the most sacred and ancient festival dedicated to the worship of the Sun and Chhathi Maiya. This festival is primarily celebrated in Bihar, Jharkhand, eastern Uttar Pradesh, and the Terai region of Nepal, but today it has become a symbol of devotion and faith throughout India and the world. 🌞 पौराणिक कथा और महत्व छठ पूजा का उल्लेख महाभारत और रामायण दोनों में मिलता है। कथा ...

अभिनेता असरानी को श्रद्धांजलि 🎬 Tributes to veteran actor Asrani 🎬

  अनुभवी अभिनेता असरानी को श्रद्धांजलि  | Tributes to veteran actor Asrani 🎬 परिचय असरानी का असली नाम गोवर्धन असरानी है।  उनका जन्म 1 जनवरी 1941 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था।  हिंदी सिनेमा में उन्होंने हास्य, चरित्र और समर्थ कलात्मक अभिनय से 50+ वर्षों तक हमें हँसाया, भावुक किया और यादों में बसे रहे। Asrani's real name is Govardhan Asrani. He was born on January 1, 1941, in Jaipur, Rajasthan. For over 50 years, he has made us laugh, moved us, and remained in our memories with his comedic, character, and powerful performances in Hindi cinema. 🎭 शुरुआती जीवन और संघर्ष उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल जयपुर से ली तथा स्नातक की पढ़ाई राजस्थान कॉलेज से की।  एक्टिंग में रुचि के चलते उन्होंने Film and Television Institute of India (FTII), पुणे से प्रशिक्षण लिया।  शुरुआती दौर में उन्हें काम मिलना आसान नहीं था। उन्होंने रेडियो आर्टिस्ट के रूप में काम भी किया था।  🎭 Early Life and Struggles He received his primary education from St. Xavier's ...