20 मार्च 2024

Nisha millet | निशा मिलेट | Swimmer

 



निशा मिलेट (जन्म- 20 मार्च, 1982) भारत की जानी-मानी महिला #तैराक #swimmer हैं। वह भारत के लिए 2000 सिडनी ओलंपिक तैराकी टीम में अर्जुन पुरस्कार जीतने वाली एकमात्र महिला थीं। राष्ट्रीय खेलों की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के लिए प्रधानमंत्री का पुरस्कार उन्होंने 1997 और 1999 में प्राप्त किया।

🇮🇳 निशा मिलेट को पाँच साल की उम्र में डूबने का अनुभव था, जिसके बाद उनके पिता ने उन्हें अपने डर से उबरने के लिए तैराकी सीखने के लिए मनाया।

🇮🇳 1991 में निशा ने अपने पिता के मार्गदर्शन में, ऑबरे शेनयायनगर क्लब, चेन्नई से तैरने का तरीका सीखा और 1992 में चेन्नई में 50 मीटर फ्री स्टाइल में अपना पहला राज्य स्तर का पदक जीता।

🇮🇳 1994 में निशा मिलेट ने हांगकांग के एशियाई आयु समूह चैंपियनशिप में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पदक जीता। यह उनके शासन काल की शुरुआत थी।

🇮🇳 वह 1999 में राष्ट्रीय खेलों में 14 स्वर्ण पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय एथलीट थीं।

🇮🇳 निशा मिलेट ने अपने कॅरियर की ऊँचाई पर 200 सी फ्री स्टाइल में 2000 सिडनी ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था, जहाँ उन्होंने शुरुआत में अच्छा किया; परन्तु सेमी फाइनल तक ना पहुँच पाई।

🇮🇳 निशा ने 100 मीटर फ्री स्टाइल में एक मिनट के बाधा को तोड़ने वाला पहला भारतीय तैराक होने का गौरव भी हासिल किया था।

🇮🇳 उन्होंने बहुत-से सम्मान भी हासिल किए-

★ 2003 में एफ्रो-एशियन गेम्स, महिला बैकस्ट्रोक रजत पदक भी प्राप्त किया।

★ 2002 में कर्नाटक राज्य एकलव्य पुरस्कार प्राप्त किया।

★ 1999 में मणिपुर राष्ट्रीय खेलों में खेल में सर्वोच्च स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

★ राष्ट्रीय खेलों की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के लिए प्रधानमंत्री का पुरस्कार 1997 और 1999 में प्राप्त किया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #अर्जुन_पुरस्कार जीतने वाली एकमात्र महिला; भारत की जानी-मानी तैराक #निशा_मिलेट जी को जन्मदिन की ढेरों बधाई एवं अनंत शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Brave Queen Avanti Bai | वीरांगना रानी अवंती बाई

 



.लेकिन वो कुछ करते इसके पहले ही वीरांगना रानी अवंती बाई ने अपने अंगरक्षक की तलवार छीनकर स्वयं की जीवन लीला समाप्त कर ली. 🇮🇳

🇮🇳 `देश, धर्म के लिए लड़ो या चूड़ियाँ पहन लो`, जानिए वीरांगना रानी अवंती बाई की शौर्य गाथा 🇮🇳

🇮🇳 आज एक ऐसी वीरांगना रानी अवंती बाई का बलिदान दिवस है, जिनके जीवन के कमसुने पहलुओं से आपको रुबरु करा रहे हैं.

🇮🇳 देश की स्वाधीनता के मार्ग को कई वीर-वीरांगनाओं ने अपने रक्त की अंतिम बूँद तक समर्पित करके सींचा है. लेकिन इन बलिदानों में वो नाम चुनिंदा ही रहे है जिनके साथ इतिहासकारों ने न्याय किया और उन्हें यथोचित सम्मान दिया है. इसके बावजूद इतिहास के पन्नों में कई नाम ऐसे दिखाई पड़ते है, जिन्हें लेकर जनमानस में दूर-दूर तक कोई जानकारी नहीं है, उन्हें लेकर सम्मान तो दूर कोई उनके नाम और कार्यों से भी परिचित नहीं है. भारत के स्वर्णिम इतिहास को इस दरिद्रता से उभारकर इन गुमनाम वीर क्रांतिकारियों को उनके संघर्षों और सर्वोच्च बलिदान के सर्वोच्च सम्मान दिलाना हम सबकी जिम्मेदारी है.

🇮🇳 आज एक ऐसी वीरांगना रानी अवंती बाई का बलिदान दिवस है, जिनके जीवन के कमसुने पहलुओं से आपको रुबरु करा रहे हैं. यह बात उन दिनों की है जब देश के कुछ क्षेत्रों में क्रांति का शुभारम्भ हो चुका था और पूरे #महाकौशल क्षेत्र में #स्वाधीनता को लेकर क्रांतिकारियों की हलचलें बढ़ गईं थी.

🇮🇳 इस बीच #मध्यप्रदेश के #रेवांचल क्षेत्र में रामगढ़ की रानी अवंती बाई, #गढ़_पुरवा के #राजा_शंकरशाह और #राजकुमार_रघुनाथ_शाह के नेतृत्व में क्रांति को लेकर कई गुप्त सभाएं आयोजित की जा रही थी, जिसकी रणनीतिक रुप से सारी जिम्मेदारी रानी अवंती बाई पर थी. इन गुप्त सभाओं में एक पत्र के साथ चूड़ियों को अलग-अलग रियासतों के राजाओं जागीरदारों तक भेजा जाता था. पत्र पर संदेश होता था कि -  "अंग्रेजों से संघर्ष के लिए तैयार रहो या चूड़ियाँ पहनकर घर में बैठो." आत्म स्वाभिमान को झकझोर देने वाले इस प्रयास में पत्र जहाँ एकता के लिए प्रेरित करता प्रतीत होता तो वहीं चूड़ियाँ पुरुषार्थ जागृत करने का सशक्त माध्यम बनी. नतीजन पूरे रेवांचल में सन् 1857 की क्रांति की ज्वाला धधक उठी .

🇮🇳 रानी अवंती बाई की जीवन यात्रा के बारे में आपको बताएं तो मध्यप्रदेश  में 16 अगस्त 1831 को #मनकेहणी, जिला #सिवनी के जमींदार #राव_जुझार_सिंह के यहाँ इस वीर बालिका का जन्म हुआ, जुझार सिंह लोधी राजपूत समुदाय के शासक थे. रानी अवंती बाई ने अपने बचपन से ही तलवारबाजी, घुड़सवारी इत्यादि कलाएं सीख  ली थी. बाल्यकाल से ही वीर व साहसी इस वीरांगना की जैसे-जैसे आयु बढ़ती गई उनकी वीरता और शौर्य की चर्चाएं भी बढ़ने लगी. 

🇮🇳 इसी बीच पिता जुझार सिंह ने रानी अवंती बाई के विवाह का प्रस्ताव अपने सजातीय रामगढ़, मण्डला के राजपूत #राजा_लक्ष्मण_सिंह के पुत्र #राजकुमार_विक्रमादित्य_सिंह के लिए भेजा जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकारा. विवाह के बाद रानी अवंती बाई सिवनी छोड़ #रामगढ़, #मंडला की कुलवधु हो गई. लेकिन विवाह के कुछ वर्षों के भीतर ही सन् 1850 में राजा लक्ष्मण सिंह का स्वर्गवास हो गया.

जिसके बाद राजकुमार विक्रमादित्य सिंह ने राजकाज सँभाला. साथ में रानी अवंती बाई रामगढ़ के दुर्ग  में अपने दो पुत्रों #अमान_सिंह और #शेर_सिंह के साथ सुखी जीवन व्यापन कर रहे थे. लेकिन यकायक थोड़े समयावधि के बाद ही विक्रमादित्य सिंह का स्वास्थ्य भी क्षीण होने लगा और कुछ वर्षों के भीतर ही उनकी भी मौत हो गई. अब दोनों छोटे राजकुमारों के साथ प्रजा के संरक्षण की जिम्मेदारी रानी अवंती बाई के ऊपर आ गई.

🇮🇳 एक ओर रामगढ़ और रानी अवंती बाई इस समय एक ओर इन विषम परिस्थितियों से दो-दो हाथ कर रहे थे, तो वहीं पूरे देश में लार्ड डलहौजी हड़प नीति के जरिये तेजी से साम्राज्य विस्तार कर रहा था. उसकी कुदृष्टि अब रानी के रामगढ़ पर थी लेकिन रानी किसी भी कीमत पर अपनी स्वाधीनता का सौदा नहीं करना चाहती थी लेकिन अपनी हड़प नीति से कानपुर, झाँसी, नागपुर, सतारा समेत कई अन्य रियासतों को हड़प चुके डलहौजी ने अब रामगढ़ को अपना निशाना बनाया और पूरी रियासत को "कोर्ट ऑफ वार्ड्स" के अधीन कर लिया. अब रामगढ़ का राजपरिवार अंग्रेजी सरकार की पेंशन पर आश्रित हो गया था. लेकिन बेबस रानी महज अपमान का घूँट पीकर सही समय की प्रतीक्षा करने लगी और यह मौका हाथ आया 1857 की क्रांति में, जब पूरा देश अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का बिगुल फूँक चुका था.

🇮🇳 अंग्रेजों ने तब तक भारत के अनेक भागों में अपने पैर जमा लिए थे, जिनको उखाड़ने के लिए रानी अवंती बाई ने रेवांचल में क्रांति की शुरुआत की और बतौर भारत की पहली महिला क्रांतिकारी अंग्रेजों के विरुद्ध ऐतिहासिक निर्णायक युद्धों में भाग लिया. इस बीच रानी के सहयोगी राजा शंकरशाह और राजकुमार रघुनाथ शाह को दिए गए मृत्युदण्ड ने क्रांति की इस ज्वाला को ओर भड़का दिया. कई देशभक्त राजाओं और जागीरदारों का समर्थन रानी को मिल चुका था, लिहाजा उन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ बगावत करके अपने राज्य से गोरे अधिकारियों को निकाल भगाया और राज्य की बागडोर फिर अपने हाथ में ले ली. 

🇮🇳 इसकी खबर जब बड़े गोरे अधिकारियों को लगी तो उनके पाँव तले जमीन खिसक गई. रानी ने एक-एक करके मंडला, #घुघरी, #रामनगर, #बिछिया समेत कई रियासतों से अंग्रेजों को निकाल भगाया. लगातार युद्धों के बाद थकी हुई सेना और सशस्त्रो व संसाधनों के अभाव के बीच अंग्रेजों ने फिर दुगनी ताकत से रानी पर हमला किया. रानी इस समय मंडला पर शासन कर रही थी जहाँ से उन्हें  बाहर निकलकर #देवहारगढ़ की पहाड़ियों में ढेरा डालना पड़ा.

🇮🇳 रानी के जीते दुर्गों में लूटपाट के बाद अंग्रेजी सेना ने रानी के पास आत्मसमर्पण का प्रस्ताव भेजा जिस पर माँ भारती की इस वीर बेटी की प्रतिक्रिया दी कि - "लड़ते-लड़ते बेशक मरना पड़े लेकिन अंग्रेजों के भार से दबूँगी नहीं" इसके बाद अंग्रेजी सेना ने पूरी पहाड़ी को घेर कर रानी की सेना पर हमला बोल दिया. कई दिनों तक चले इस युद्ध में कई राजा गोरी सरकार की शरण में चले गए और उनकी सेना का साथ देने लगे. #रीवा का नरेश तो पहले ही उनके साथ हो गया था.

🇮🇳 आखिरकार वो दिन आ गया जो इतिहास में रानी के शौर्य को अमर करने वाला था,  20 मार्च, 1858 का दिन था. युद्ध में कहने को रानी अवंती बाई की सेना मुट्ठी भर थी लेकिन इन वीरों ने अंग्रेजी सेना को पानी पिला दिया. इस शेरनी की सेना के कई जाबाज सैनिक घायल हो चुके थे, गोली लगने स्वयं यह भी बुरी तरह घायल हो चुकी थी. इस मौके का कायर अंग्रेजी सेना ने फायदा उठाना चाहा लेकिन वो कुछ करते इसके पहले ही वीरांगना रानी अवंती बाई ने अपने अंगरक्षक की तलवार छीनकर स्वयं की जीवन लीला समाप्त कर ली.

~ कुलदीप नागेश्वर पवार

साभार: zeenews.india.com

🇮🇳 युद्धभूमि में अपने रणकौशल से अंग्रेजी सेनाओं को कई बार परास्त करने के बाद, अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए 1858 में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाली स्वाभिमानी, आत्मबलिदानी #वीरांगना #रानी_अवंती_बाई जी को उनके #बलिदान_दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

जय मातृभूमि 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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World Sparrow Day is celebrated every year on March 20 | विश्व गौरैया दिवस




#World_Sparrow_Day is celebrated every year on March 20th. #Sparrows are lovely birds with round heads and wings. They have sweet voices, and you can hear their chirping and singing everywhere. This day is all about appreciating these #beautiful_birds.



#विश्व_गौरैया_दिवस हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है। गौरैया गोल सिर और पंखों वाली प्यारी पक्षी हैं। उनकी आवाज़ मधुर है, और आप हर जगह उनकी चहचहाहट और गायन सुन सकते हैं। यह दिन इन खूबसूरत पक्षियों की सराहना करने का दिन है।

This day is celebrated every year across the world to raise awareness about the house sparrow and other common birds affected by the environment. Nature Forever Society (NFS) in India launched an international initiative to celebrate World Sparrow Day.

#घरेलू_गौरैया और पर्यावरण से प्रभावित अन्य सामान्य पक्षियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल यह दिन दुनिया भर में मनाया जाता है। भारत में नेचर फॉरएवर सोसाइटी (एनएफएस) ने विश्व गौरैया दिवस मनाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय पहल शुरू की।


The house sparrow evolved alongside humans, being known to live only in close contact with us rather than in the wild. For years, it has lived with us peacefully in our buildings and gardens, but over the past two decades, their populations have been declining in almost every city.


घरेलू गौरैया मनुष्यों के साथ विकसित हुई है, जो जंगलों के बजाय केवल हमारे निकट संपर्क में रहने के लिए जानी जाती है। वर्षों से, यह हमारी इमारतों और बगीचों में शांतिपूर्वक हमारे साथ रहा है, लेकिन पिछले दो दशकों में, लगभग हर शहर में उनकी आबादी घट रही है।

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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19 मार्च 2024

Freedom Fighter Charuchandra Bose | दिव्यांग क्रन्तिकारी चारुचंद्र बोस | 26 फरवरी 1890 - 19 मार्च 1909



🇮🇳 चारुचंद्र बोस - जिन्हें अपने प्राणों से अधिक प्यारी थी स्वतंत्रता; 19 साल की उम्र में फाँसी पर चढ़े 🇮🇳

🇮🇳 वह दिव्यांग थे और उनके हाथ में अंगुलियाँ नहीं थी। इसलिए वह दाहिने हाथ में पिस्तौल बाँधकर बाँये हाथ की अंगुली से ट्रिगर दबाकर पिस्तौल चलाने का अभ्यास करते। 🇮🇳

🇮🇳 भारत की स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी आंदोलन में अपना योगदान देने वाले क्रांतिवीर चारुचंद्र बोस का जन्म 26 फरवरी 1890 को #खुलना में हुआ था जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है। उनके पिता का नाम #केशवचंद्र_बोस था। उनके परिवार में #देशभक्ति का माहौल था। जिनका चारुचंद्र बोस पर व्यापक प्रभाव पड़ा। 

🇮🇳 वह बाल्यकाल से ही बहादुर और निर्भीक थे। वह दिव्यांग थे और उनके हाथ में अंगुलियाँ नहीं थी। इसलिए वह दाहिने हाथ में पिस्तौल बाँधकर बाँये हाथ की अंगुली से ट्रिगर दबाकर पिस्तौल चलाने का अभ्यास करते। सामान्य कद-काठी के चारुचंद्र बोस #देशभक्ति की भावना और जज्बे से ओतप्रोत थे। उन्हें देश की स्वतंत्रता अपने प्राण से भी अधिक प्यारी थी। 

🇮🇳 उन्होंने #कोलकाता और #हावड़ा में विभिन्न प्रेस और समाचार-पत्रों में भी काम किया। क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए वह #युगांतर_संगठन से जुड़ गए। वह #अनुशीलन_समिति से भी जुड़े रहे। इसी दौरान, आशु बिस्वास नाम का एक सरकारी वकील चारुचंद्र बोस की आँखों में खटकने लगा जो देशभक्त क्रांतिकारियों को हमेशा सजा दिलाने की ताक में लगा रहता था। ऐसे में उन्होंने मन ही मन उस वकील को सबक सिखाने की ठान ली और इसके लिए योजना बनाने लगे। 

🇮🇳 चारुचंद्र बोस, उस वकील पर नजर रखने लगे। एक दिन मौका पाकर उन्होंने फरवरी 1909 को #अलीपुर_बम_मामले में सरकारी वकील आशु बिस्वास की गोली मार कर हत्या कर दी। इस घटना के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया। अदालत में सुनवाई के समय चारुचंद्र ने कहा कि आशु विश्वास एक देशद्रोही था। मैंने उसे मारने का निश्चय कर लिया था। माना जाता है कि मुकदमे की सुनवाई के दौरान उन्होंने बचने का कोई प्रयास नहीं किया। अपने बचाव के लिए किसी वकील को रखने से भी इंकार कर दिया। अदालत ने उन्हें मृत्युदंड की सजा सुना दी। 

🇮🇳 19 मार्च, 1909 को #अलीपुर केंद्रीय कारागार में उन्हें फाँसी की सजा दी गई। कहा जाता है कि फाँसी दिए जाने के समय उन्होंने विजयी भाव से स्वयं अपने गले में फंदा डाल लिया। इस दौरान उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी बल्कि मुस्कान तैर रही थी। l

साभार: newindiasamachar.pib.gov.in

🇮🇳 बाल्यकाल से दिव्यांगता के कारण दाहिने हाथ में पिस्तौल बाँधकर बाँये हाथ की अंगुली से ट्रिगर दबाकर पिस्तौल चलाने का हुनर सीखकर, #भारत की #स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी आंदोलन में अपना योगदान देने वाले #क्रांतिवीर #चारुचंद्र_बोस जी को उनके #बलिदान_दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 

#आजादी_का_अमृतकाल

#Charuchandra_Bose #revolutionary_movement  #India #independence #sacrifice_day 

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

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Mahamantra | महामन्त्र श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ।Shri Krishna Govind Hare Murari He Nath Narayan Vasudeva

 



"महामन्त्रार्थ" Mahamantratha

Shri Krishna Govind Hare Murari He Nath Narayan Vasudeva 

श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ।

यह महामन्त्र है। अन्तर्निहित अर्थ (भावार्थ) के ज्ञान सहित इसका जप करें । 

भावार्थ :

श्रीकृष्ण – हे प्रभो ! आप सभी के मनको आकर्षित करनेवाले है। अतः आप मेरा मन भी अपनी

ओर आकर्षित कर अपनी भक्ति-सेवाकी दिशामें सुदृढ़ कीजिये ।

गोविन्द – गौओंतथा इन्द्रियोंकी रक्षा करनेवाले भगवन् ! आप मेरी इन्द्रियोंको स्वयंमें लीन करें ।

हरे - हे दोखहर्ता ! मेरे दुःखोंका भी हरण करें ।

मुरारे - हे मुर राक्षसके शत्रु ! मुझमें बसे हुए काम-क्रोधादिरूपी राक्षसोंका नाश कीजिये ।

हे नाथ - आप नाथ है। और मैं अनाथ हूँ । (मुझ अनाथका भाव आप नाथके साथ जुड़ा रहे ।)

नरायण - मैं नर हूँ और आप नारायण हैं । (आपको प्राप्त करनेके लिये आपके आदर्शपर मैं तपस्यामें रत रहूँ ।)

वासुदेव – वसुका अर्थ है

प्राण । मेरे प्राणोंकी रक्षा करें । मैंने अपना मन आपके चरणोंमें अर्पित कर दिया है ।

साभार : #गीताप्रेस, #गोरखपुर द्वारा प्रकाशित "#कल्याण - संकीर्तानांक"

#जय_श्री_कृष्णा, #हरे_राम, #भक्ति, #Jai_Shri_Krishna, #Hare_Ram, #Bhakti, #Geeta_Press, #Gorakhpur, #Kalyan

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18 मार्च 2024

Gurbaksh Singh Dhillon, the warrior of Azad Hind Fauj | गुरबख्श सिंह ढिल्लों, आज़ाद हिन्द फ़ौज का योद्धा | 18 मार्च 1914 - 6 फ़रवरी 2006

 



🇮🇳 आओ बनाएँ उन क्रांतिकारियों के #सपनों_का_भारत, जिनके #संघर्ष और #बलिदान का ऋण आज तक हम पर है 🇮🇳

🇮🇳 गुरबख्श सिंह ढिल्लों, आज़ाद हिन्द फ़ौज का वो योद्धा, जिसने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए 🇮🇳

🇮🇳 आज़ाद हिन्द फ़ौज. जिसकी कमान भारत की आज़ादी के नायक रहे सुभाषचंद्र बोस के हाथों में थी. शुरुआत में इस फौज़ में उन भारतीय सैनिकों को भर्ती किया गया था, जो जापान द्वारा युद्धबन्दी बनाए गए थे. बाद में इसका विस्तार हुआ. भारत की स्वतंत्रता में INA की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी.

🇮🇳 यूँ तो इस फ़ौज का हर एक सैनिक अपने आप में ख़ास था. मगर एक नाम ऐसा भी था, जिसने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए. ब्रिटिश सम्राट के खिलाफ युद्ध करने को लेकर इस योद्धा पर ना सिर्फ़ 'लाल किला ट्रायल' नामक ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया, बल्कि प्रताड़ित भी किया गया. मगर वह टूटा नहीं और आजादी के लाखों परवानों को एकता के एक सूत्र में बाँध दिया.

🇮🇳 यह कहानी है आज़ाद हिन्द फ़ौज में अधिकारी रहे कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों की, जिन्हें साल 1998 में भारत सरकार ने उनकी देशभक्ति के लिए 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था.

🇮🇳 18 मार्च 1914. यह वह तारीख है, जब गुरबक्श सिंह ढिल्लों ने अपनी ऑंखें खोलीं. आम बच्चों की तरह वह बड़े हुए और शुरुआती पढ़ाई के लिए पास के सरकारी प्राथमिक विद्यालय गए. वहाँ से निकलने के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई का सफ़र जारी रखा और ग्रेजुएशन की डिग्री ली. शिक्षा  ग्रहण करने की इस राह में सबसे खास रहा उनका अलग-अलग धर्मों के संस्थानों में दाखिला लेना. इसका असर उनके व्यक्तित्व पर भी पड़ा और वो एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति बनकर उभरे. वो हिन्दी के अलावा फारसी, अंग्रेजी, उर्दू जैसी कई अन्य भाषाएं बोल लेते थे.

🇮🇳 शुरुआत में ढिल्लों को स्पष्ट नहीं था कि उन्हें आगे क्या करना है. उनका पूरा ध्यान बस ज्यादा से ज्यादा पढ़ने पर था. इसी बीच एक दिन उनसे किसी ने कहा, ढिल्लों तुम सेना में भर्ती क्यों नहीं हो जाते. तुम्हारा शरीर अच्छा हैं. तुम पढ़ने में भी तेज हो. तुम्हारा चयन आसानी से हो सकता है. 

🇮🇳 ढिल्लों के दिमाग में ये बात घर कर गई और उन्होंने सेना में भर्ती होने की तैयारी शुरू कर दी. वह अब तय कर चुके थे कि वो भारतीय सेना का हिस्सा बनेंगे. उन्हें इसमें सफलता भी मिली. साल 1936 के आसपास भारतीय सेना से उनका बुलावा आया. इस तरह अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद वो 14 वीं पंजाब रेजिमेंट की प्रथम बटालियन का हिस्सा बनाए गए.

🇮🇳 यही वो पल था, जहाँ से ढिल्लों की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई. नौकरी के दौरान अपनी कार्यशैली से ढिल्लों ने अपने सीनियर्स को प्रभावित किया. परिणाम स्वरूप वो द्वितीय विश्वयुद्ध का हिस्सा बनाए गए. इस जंग में उन्होंने विरोधियों को मुँहतोड़ जवाब दिया था.

🇮🇳 हालांकि, अंत में वो जापान द्वारा युद्धबन्दी बना लिये गये थे. बाद में 1942 में भारत को स्वतन्त्र कराने के लिए आजाद हिन्द फौज का संगठन हुआ तो ढिल्लों, #कर्नल_प्रेम_सहगल, और #मेजर_जनरल_शाह_नवाज_ख़ान समेत अन्य योद्धाओं के साथ इसके अभिन्न अंग बन गए और अंग्रेजों को खूब छकाया. 

🇮🇳 परिणाम स्वरूप युद्ध समाप्त होने के बाद अंग्रेज सरकार ने मुकद्दमा चलाया. साथ ही उन्हें दोषी ठहराते हुए कोर्ट-मार्शल के बाद सजा भी सुनाई. 'लाल किला ट्रायल' के नाम से ढिल्लों पर चलाया गया यह मुकदमा भारत की आजादी की राह आसान करने में मील का एक पत्थर बना.

🇮🇳 इस ऐतिहासिक मुकदमे के दौरान लोगों के बीच एक नारा गूँजा 'लाल किले से आई आवाज-सहगल, ढिल्लों, शहनवाज'. जिसने भारत की आजादी के लिए लड़ रहे नौजवानों के बीच ऊर्चा का संचार किया और उन्हें एकता के एक सूत्र में बाँधा. लोगों ने ढिल्लों की सजा के विरोध में जगह-जगह गिरफ्तारी दी और अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया.

🇮🇳 कुल मिलाकर यह मुकदमा हर मोर्चों पर हिन्दुस्तानी एकता को मजबूत करने वाला साबित हुआ. अब तक अंग्रेज समझ चुके थे कि अगर इनको सजा दी गई तो भारतीय फौज में बगावत हो जाएगी. यही कारण रहा कि उन्हें सहगल, ढिल्लों और शाहनवाज समेत आजाद हिन्द फौज के सैकड़ों सैनिकों को ना सिर्फ़ रिहा करना पड़ा, बल्कि उनके मुकदमे भी खत्म करने पड़े.  

🇮🇳 आगे अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय जलसेना ने भी विद्रोह कर दिया, जिसका खामियाजा अंग्रेजों को भुगतना पड़ा. इन छोटी-छोटी कड़ियों से अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया और अंतत: उन्हें भारत छोड़कर जाना पड़ा. आजादी के सालों बाद तक ढिल्लों जीवित रहे. 6 फ़रवरी 2006 को अंतत: आज़ाद हिन्द फौज के इस योद्धा ने मृत्यु को गले लगा लिया था. उनकी जीवन पर एक फ़िल्म भी बनाई गई, जिसे 'रागदेश' के नाम से जाना जाता है.

साभार: indiatimes.com

🇮🇳 भारत सरकार द्वारा #पद्मभूषण से सम्मानित; गोरिल्ला युद्ध में निपुण महान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और ब्रिटिश शासन की जड़ें हिलाने वाली #आज़ाद_हिन्द_फ़ौज के अधिकारी #कर्नल_गुरबख्श_सिंह_ढिल्लों जी की जयंती पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

🇮🇳 जय हिन्द 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Why Court kind to Kejriwal ? क्यों मेहरबान है कोर्ट केजरीवाल पर ? लेखक : सुभाष चन्द्र

 



किसलिए मेहरबान है कोर्ट केजरीवाल पर -

Rouse Avenue कोर्ट के फैसले के खिलाफ ED हाई कोर्ट जाए -


16 मार्च को  Rouse Avenue कोर्ट की Additional Chief Metropolitan Magistrate दिव्या मल्होत्रा का केजरीवाल पर मेहरबानी करने वाला आदेश समझ से परे है - आज दिव्या मल्होत्रा की कोर्ट में पेश होने के आदेश को केजरीवाल से सेशन कोर्ट में चुनौती दी थी जिसे कल सेशन कोर्ट ने ख़ारिज कर आज मजिस्ट्रेट कोर्ट में पेश होने के लिए कहा था -


ED ने केजरीवाल के खिलाफ IPC के सेक्शन 174 में दो शिकायत दर्ज की थी - पहली 3 summons पर केजरीवाल के गैरहाजिर रहने के लिए और दूसरी 5 मार्च को की थी जब वह 8 summons पर गैरहाजिर रहा - पहले मजिस्ट्रेट ने 17 फरवरी को तलब किया था केजरीवाल को जब वह कोर्ट को बहाना बना कर 16 मार्च की डेट ले गया -


आज जब कोर्ट में पेश हुआ तो दिव्या मल्होत्रा ने ED की दोनों शिकायतों पर केजरीवाल को 15  - 15 हजार के निजी मुचलके और एक एक लाख रुपए की surety पर जमानत दे दी और अगली सुनवाई 1 अप्रैल की तय कर दी - इतना ही नहीं केजरीवाल पर दिव्या मल्होत्रा इस कदर मेहरबान थी कि उसे Personal Appearance से भी अगली सुनवाई से छूट दे दी - यानी जिस अदालत ने उस व्यक्ति के कोर्ट में पेश न होने की भी जरूरत नहीं समझी जिसके ED के summon पर पेश न होने को “अपराध” माना था -


कल दिल्ली शराब घोटाले में ही के कविता को ED ने गिरफ्तार किया और आज उसी केस में ACMM दिव्या मल्होत्रा ने केजरीवाल को अभयदान दे दिया - 


सवाल यह पैदा होता है कि क्या दिव्या मल्होत्रा, ACMM समझती हैं कि केजरीवाल को ED के summon पर पेश होने की जरूरत ही नहीं है या उसे ED के सामने पेश होने के निर्देश देने के लिए कोई “शुभ मुहूर्त” निकाल रही हैं - Section 174 की शिकायतों पर जमानत देते हुए तो ACMM दिव्या मल्होत्रा को केजरीवाल को आज ही निर्देश दे देने चाहिए थे कि कल ही ED के summons को honour करते हुए पेश हो जाओ - यह आदेश तो उसको 17 फरवरी को ही दे देने चाहिए थे - 


ED के सामने पेश होने के लिए कहने में अड़चन क्या है ACMM को जो केजरीवाल को पहले 17 फरवरी, फिर 16 मार्च और अब 1 अप्रैल को बुलाया है - दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जब कह चुके हैं कि ED के summons को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता और जिसे ED summon करती है, उसे पेश होना ही होता है - 


ऐसे में क्या ACMM दिव्या मल्होत्रा सुप्रीम कोर्ट से भी कोई बड़े आदेश देना चाहती हैं जो केजरीवाल द्वारा summons की अवहेलना को देखते हुए भी उस पर सुनवाई करना चाहती हैं, क्या वो समझती हैं ED झूठ बोल रही है और केजरीवाल ने summons की अवहेलना नहीं की 


कोर्ट और जज को निष्पक्ष होना ही नहीं चाहिए बल्कि साफ़ दिखाई भी देना चाहिए - दिव्या मल्होत्रा के आचरण में स्पष्ट खोट दिखाई देता है और उसके लिए उन पर कोई भी आरोप लग सकता है - ऐसी स्तिथि से उनको बचना चाहिए था - lower courts के judges का आचरण ऊपरी अदालतों की नज़र में रहता है -


ED को ACMM दिव्या मल्होत्रा द्वारा 3 तारीखों पर भी केजरीवाल को ED के summons पर पेश होने के लिए न कहने के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील करनी चाहिए और हाई कोर्ट से केजरीवाल को निर्देश देने का आग्रह करना चाहिए - याद रहे केजरीवाल को जमानत ED की शिकायतों पर मिली है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जब वह पेश होगा तो गिरफ्तार नहीं हो सकता - ED के summons पर कोर्ट की कोई रोक नहीं है और इसलिए ED सीधा जाकर शीश महल पर रेड करे और उठा लाए दिल्ली के ठग को -


"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 18/03/2024 

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Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...