15 मार्च 2024

Pooja Gehlot | पूजा गहलोत | wrestler | पहलवान

 


राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अनेक पदक अपने नाम करने वाली, सोनीपत (हरियाणा) में जन्मी भारतीय महिला फ्रीस्टाइल #पहलवान #पूजा_गहलोत #wrestler #pooja_gehlot जी को #जन्मोत्सव #birthday celebration के शुभ अवसर पर मेरी ओर से भी ढेरों बधाई एवं सफल जीवन की अनंत शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


14 मार्च 2024

Kejriwal | 16 मार्च को कोर्ट में हाजिर होंगे.....केजरीवाल ? लेखक : सुभाष चन्द्र



केजरीवाल से उम्मीद थी, वो Rouse Avenue कोर्ट नहीं जाएगा,

और आज भूमिका तैयार कर दी - लेकिन अपनी कब्र खुद खोद रहा है मूर्ख -

मैंने एक बार पहले भी लिखा था कि Rouse Avenue Court ने ED की 2nd शिकायत पर केजरीवाल Kejriwal को फिर से पिछली नियत तिथि 16 मार्च को कोर्ट में हाजिर होने के लिए कह कर गलती की थी क्योंकि जब उसके ED के 3 summons की अवहेलना को कोर्ट ने अपराध माना था तो 8 summons पर हाजिर न होने पर तो सीधा उसे निर्देश देने चाहिए थे ED के सामने पेश होने के लिए - 


ऐसी पूरी संभावना थी कि केजरीवाल 16 मार्च को भी कोर्ट को गच्चा दे देगा और उसके लिए उसने विधानसभा का सत्र फिर से 15 मार्च से बुला लिया जिससे एक बार फिर बहाना बना सके कोर्ट में न जाने का -


आज केजरीवाल ने दूसरा खेल खेला है - उसने सेशन कोर्ट में Rouse Avenue Court के summons को चुनौती दे दी जिस पर आज सुनवाई पूरी नहीं हुई जो कल होगी - कल यदि सेशन कोर्ट इसकी अर्जी ख़ारिज करता है (जैसी पूरी संभावना है) तो ये कल ही हाई कोर्ट चला जाएगा और वहां भी बात नहीं बनी तो ये फिर सुप्रीम कोर्ट में जाकर माथा फोड़ेगा -


हाई कोर्ट उसके वक्फ मंत्री अमानतुल्लाह को पहले ही कह चुका है कि उसे ED के सामने पेश होने से कोई छूट नहीं मिल सकती और सुप्रीम कोर्ट तमिलनाडु के 5 DMs को कह चुका है कि उन्हें ED के summons पर पेश होना ही होगा - ऐसे में केजरीवाल को कहीं से कोई राहत मिलने की उम्मीद न के बराबर है लेकिन फिर भी हाथ पांव मार कर केवल Time Gain करना चाहता है -


परंतु ED के summons पर उसे हाजिर होना ही पड़ेगा और जितना यह न जाने के लिए पापड़ बेलता फिरेगा, उतना ये अपने को खुद ही दोषी साबित करता जाएगा -


केजरीवाल ने दिमाग में फितूर है कि चुनाव घोषित होने के बाद आचार संहिता लगने के कारण उसकी गिरफ़्तारी नहीं हो सकेगी परंतु उसे ऐसी सलाह देने वाले केजरीवाल को चौड़े में फसवा देना चाहते है क्योंकि जांच एजेंसियों के काम का आचार संहिता से कोई संबंध नहीं होता और यदि यह सोचता है कि फिर भी गिरफ्तार होने के बाद वो victim card खेल लेगा तो ये उसकी भूल है क्योंकि दोष तो अपने खिलाफ यह खुद सिद्ध कर रहा है बार बार ED के summons की अवहेलना करके और अदालतों में मामले को उलझा कर - अगर कुछ गलत नहीं किया तो उसको ED के सामने पेश होने में कोई डर नहीं होना चाहिए लेकिन उसे पता है जब उसके चेले चपाटे सिसोदिया और संजय सिंह को जमानत नहीं मिल पा रही तो केजरीवाल की भी लंबी जेल यात्रा निश्चित है -


फिर जेल जाते हुए केजरीवाल की पार्टी के लोग ही गीत गाएंगे - “चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देस हुआ बेगाना”


ध्रुव राठी के केस में शिकायतकर्ता एक बार फिर वही गलती कर रहा है जो केजरीवाल को माफ़ी देने को तैयार है - ये पूरी तरह उस केस में फंसा हुआ है और जैसे ही 2 साल की सजा होती है, केजरीवाल की राजनीति का the end हो लेगा - शिकायतकर्ता को पुनर्विचार करना चाहिए और इस जैसे मक्कार को माफ़ी नहीं देनी चाहिए -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 14/03/2024 

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Albert Einstein | अल्बर्ट आइंस्टीन | Scientist | वैज्ञानिक

 



अल्बर्ट आइंस्टीन (जर्मन उच्चारण आइनश्टाइन) का जन्म, 14 मार्च 1879 को तत्कालीन जर्मन साम्राज्य के उल्म शहर में रहने वाले एक यहूदी परिवार में हुआ था. उल्म आज जर्मनी के जिस बाडेन-व्यूर्टेमबेर्ग राज्य में पड़ता है, वह उस समय जर्मन साम्राज्य की व्यूर्टेमबेर्ग राजशाही का शहर हुआ करता था. लेकिन अल्बर्ट आइंस्टीन का बचपन उल्म के बदले बवेरिया की राजधानी म्यूनिख में बीता. परिवार उनके जन्म के एक ही वर्ष बाद म्यूनिख में रहने लगा था.

🇮🇳 अल्बर्ट आइंस्टीन ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ वाली कहावत चरितार्थ करते थे. भाषाएं छोड़ कर हर विषय में, विशेषकर विज्ञान में वे बचपन से ही बहुत तेज़ थे. विज्ञान की किताबें पढ़-पढ़ कर स्कूली दिनों में ही अल्बर्ट आइंस्टीन सामान्य विज्ञान के अच्छे-ख़ासे ज्ञाता बन गए थे. जर्मनी के अलावा वे उसके पड़ोसी देशों स्विट्ज़रलैंड और ऑस्ट्रिया में भी वहां के नागरिक बन कर रहे. 1914 से 1932 तक बर्लिन में रहने के दौरान हिटलर की यहूदियों के प्रति घृणा को समय रहते भाँप कर अल्बर्ट आइंस्टीन अमेरिका चले गये. वहीं, 18 अप्रैल 1955 के दिन उन्होंने प्रिन्स्टन के एक अस्पताल में अंतिम साँस ली.

🇮🇳 अल्बर्ट आइंस्टीन को 20वीं सदी का ही नहीं, बल्कि अब तक के सारे इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है. 1905 एक साथ उनकी कई उपलब्धियों का स्वर्णिम वर्ष था. उसी वर्ष उनके सर्वप्रसिद्ध सूत्र E= mc² ऊर्जा= द्रव्यमान X प्रकाशगति घाते2) का जन्म हुआ था. ‘सैद्धांतिक भौतिकी, विशेषकर प्रकाश के वैद्युतिक (इलेक्ट्रिकल) प्रभाव के नियमों’ संबंधी उनकी खोज के लिए उन्हें 1921 का नोबेल पुरस्कार मिला. 17 मार्च 1905 को प्रकाशित यह खोज अल्बर्ट आइंस्टीन ने स्विट्ज़रलैंड की राजधानी बेर्न के पेटेंट कार्यालय में एक प्रौद्योगिक-सहायक के तौर पर 1905 में ही की थी.

🇮🇳 उसी वर्ष आइंस्टीन ने 30 जून को ‘गतिशील पिंडों की वैद्युतिक गत्यात्मकता’ के बारे में भी एक अध्ययन प्रकाशित किया था. डॉक्टर की उपाधि पाने के लिए उसी वर्ष 20 जुलाई के दिन ‘आणविक आयाम का एक नया निर्धारण’ नाम से अपना शोधप्रबंध (थीसिस) उन्होंने ज्यूरिच विश्वविद्यालय को समर्पित किया था. उस समय उनकी उम्र 26 वर्ष थी. 15 जनवरी 1906 को उन्हें डॉक्टर की उपाधि मिल भी गयी.

🇮🇳 अल्बर्ट आइंस्टीन के नाम को जिस चीज़ ने अमर बना दिया, वह था उनका सापेक्षता सिद्धांत (थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी). उन्होंने गति के स्वरूप का अध्ययन किया और कहा कि गति एक सापेक्ष अवस्था है. आइंस्टीन के मुताबिक ब्रह्मांड में ऐसा कोई स्थिर प्रमाण नहीं है, जिसके द्वारा मनुष्य पृथ्वी की ‘निरपेक्ष गति’ या किसी प्रणाली का निश्चय कर सके. गति का अनुमान हमेशा किसी दूसरी वस्तु को संदर्भ बना कर उसकी अपेक्षा स्थिति-परिवर्तन की मात्रा के आधार पर ही लगाया जा सकता है. 1907 में प्रतिपादित उनके इस सिद्धांत को ‘सापेक्षता का विशिष्ट सिद्धांत’ कहा जाने लगा.

🇮🇳 आइंस्टीन का कहना था कि सापेक्षता के इस विशिष्ट सिद्धांत को प्रकाशित करने के बाद एक दिन उनके दिमाग़ में एक नया ज्ञानप्रकाश चमका. उनके शब्दों में ‘मैं बेर्न के पेटेंट कार्यालय में आरामकुर्सी पर बैठा हुआ था. तभी मेरे दिमाग़ में एक विचार कौंधा, यदि कोई व्यक्ति बिना किसी अवरोध के ऊपर से नीचे गिर रहा हो तो वह अपने आप को भारहीन अनुभव करेगा. मैं भौचक्का रह गया. इस साधारण-से विचार ने मुझे झकझोर दिया. वह मुझे उसी समय से गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की ओर धकेलने लगा.’

🇮🇳 इस छोटे-से विचार पर कई वर्षों के चिंतन-मनन और गणीतीय समीकरणों के आधार पर 1916 में आइंस्टीन ने एक नई थ्योरी दी. उन्होंने कहा कि ब्रहमांड में किसी वस्तु को खी़ंचने वाला जो गुरुत्वाकर्षण प्रभाव देखा जाता है, उसका असली कारण यह है कि हर वस्तु अपने द्रव्यमान (सरल भाषा में भार) और आकार के अनुसार अपने आस-पास के दिक्-काल (स्पेस-टाइम) में मरोड़ पैदा कर देती है. वैसे तो हर वस्तु और हर वस्तु की गति दिक्-काल में यह बदलाव लाती है, लेकिन बड़ी और भारी वस्तुएं तथा प्रकाश की गति के निकट पहुँचती गतियां कहीं बड़े बदलाव पैदा करती हैं.

🇮🇳 आइंस्टीन ने सामान्य सापेक्षता के अपने इस क्रांतिकारी सिद्धांत में दिखाया कि वास्तव में दिक् के तीन और काल का एक मिलाकर ब्रह्माण्ड में चार आयामों वाला दिक्-काल है, जिसमें सारी वस्तुएं और सारी ऊर्जाएं अवस्थित हैं. उनके मुताबिक समय का प्रवाह हर वस्तु के लिए एक जैसा हो, यह जरूरी नहीं है. आइंस्टीन का मानना था कि दिक्-काल को प्रभावित कर के उसे मरोड़ा, खींचा और सिकोड़ा भी जा सकता है. ब्रह्मांड में ऐसा निरंतर होता रहता है.

1932 में आइंस्टीन के अमेरिका चले जाने के बाद 1933 में जर्मनी पर हिटलर की तानाशाही शुरू हो गयी. 10 मई 1933 को उसके प्रचारमंत्री योज़ेफ़ गोएबेल्स ने हर प्रकार के यहूदी साहित्य की सार्वजनिक होली जलाने का अभियान छेड़ दिया. आइंस्टीन की लिखी पुस्तकों की भी होली जली. ‘जर्मन राष्ट्र के शत्रुओं’ की एक सूची बनी, जिसमें उस व्यक्ति को पाँच हज़ार डॉलर का पुरस्कार देने की घोषणा भी की गयी, जो आइंस्टीन की हत्या कर देगा.

🇮🇳 आइंस्टीन तब तक अमेरिका के प्रिन्स्टन शहर में बस गये थे. वहाँ वे गुरुत्वाकर्षण वाले अपने सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के नियमों तथा विद्युत-चुम्बकत्व के नियमों के बीच मेल बैठाते हुए एक ‘समग्र क्षेत्र सिद्धांत’ (यूनिफ़ाइड फ़ील्ड थ्योरी) का प्रतिपादन करने में जुट गये. इसके लिए वे किसी ‘ब्रह्मसूत्र’ जैसे एक ऐसे गणितीय समीकरण पर पहुंचना चाहते थे, जो दोनों को एक सूत्र में पिरोते हुए ब्रहमांड की सभी शक्तियों और अवस्थाओं की व्याख्या करने का मूलाधार बन सके. वे मृत्युपर्यंत इस पर काम करते रहे, पर न तो उन्हें सफलता मिल पायी और न आज तक कोई दूसरा वैज्ञानिक यह काम कर पाया है.

🇮🇳 ‘समग्र क्षेत्र सिद्धांत’ वाला ‘ब्रह्मसूत्र’ ख़ोजने का काम अल्बर्ट आइंस्टीन ने वास्तव में 1930 में बर्लिन में ही शुरू कर दिया था. उस समय उन्होंने इस बारे में आठ पृष्ठों का एक लेख भी लिखा था, जिसे उन्होंने कभी प्रकाशित नहीं किया. इस लेख के अब तक सात पृष्ठ मिल चुके थे, एक पृष्ठ नहीं मिल रहा था. आज उनके जन्म की 140वीं वर्षगांठ से कुछ ही दिन पहले यह खोया हुआ पृष्ठ भी मिल गया है.

🇮🇳 इसराइल में जेरूसलम के हिब्रू विश्वविद्यालय ने 13 मार्च को बताया कि उसने आइंस्टीन से संबंधित दस्तावेज़ों का एक संग्रह हाल ही में ख़रीदा है. ‘समग्र क्षेत्र सिद्धांत’ वाले उनके लेख का खोया हुआ पृष्ठ, दो ही सप्ताह पहले प्रप्त हुए इसी संग्रह में मिला है. अपने लेख में आइंस्टीन ने हस्तलिखित समीकरणों ओर रेखाचित्रों का खूब प्रयोग किया है. इस संग्रह में 110 पृष्ठों के बराबर सामग्री है. 1935 में उनके पुत्र हांस अल्बर्ट के नाम लिखा एक पत्र भी है. इस पत्र में उन्होंने जर्मनी में हिटलर की नाज़ी पार्टी के शासन को लेकर अपनी चिंताएं भी व्यक्त की हैं. एक दूसरा पत्र भी है, जो आइंस्टीन ने स्विट्ज़रलैंड में रहने वाले अपने एक इतालवी इंजीनियर-मित्र को लिखा था.

🇮🇳 आइंस्टीन की पहली पत्नी मिलेवा मारिच सर्बिया की थीं. दोनों बेर्न में अपनी पढ़ाई के दिनों में एक-दूसरे से परिचित हुए थे. उनसे उनके दो पुत्र थे हांस अल्बर्ट और एदुआर्द. शादी से पहले की दोनों की एक बेटी भी थी लीज़रिल. लेकिन उसके बारे में दोनों ने चुप्पी साध रखी थी, इसलिए इससे अधिक कुछ पता नहीं है.

🇮🇳 पुत्र हांस अल्बर्ट के नाम पत्र में जर्मन भाषा में आइंस्टीन ने लिखा था, ‘प्रिन्स्टन, 11 जनवरी 1935. मैं गणित रूपी राक्षस के पंजे में इस बुरी तरह जकड़ा हुआ हूँ कि किसी को निजी चिट्ठी लिख ही नहीं पाता. मैं ठीक हूं, दीन-दुनिया से विमुख हो कर काम में व्यस्त रहता हूँ. निकट भविष्य में मैं यूरोप जाने की नहीं सोच रहा, क्योंकि मैं वहाँ हो सकने वाली परेशानियों को झेलने के सक्षम नहीं हूँ. वैसे भी, एक बूढ़ा बालक होने के नाते मुझे सबसे परे रहने का अधिकार भी तो है ही.’

🇮🇳 जेरूसलेम के हिब्रू विश्वविद्यालय में आइनश्टइन से संबंधित लेखागार के परामर्शदाता हानोख़ गूटफ्रौएन्ड ने मीडिया को बताया कि इस संग्रह के अधिकांश दस्तावेज़ शोधकों को फ़ोटोकॉपी या नकलों के रूप में पहले से ज्ञात रहे हैं. यह बात अलग है कि कुछ कॉपियां अच्छी थीं और कुछ ख़राब थीं. नया प्राप्त संग्रह अब तक एक अमेरिकी संग्रहकर्ता के पास था. ‘समग्र क्षेत्र सिद्धांत’ वाले उनके लेख में शब्द बहुत कम हैं, गणित के सूत्रों और समीकरणों की भरमार है. यह नहीं बताया गया कि इस संग्रह को पाने के लिए कितना पैसा देना पड़ा है.

अल्बर्ट आइंस्टीन अपने समय में संसार के सबसे प्रतिष्ठित और प्रशंसित यहूदी थे, पर वे किसी ऊंचे पद के भूखे कभी नहीं थे. 1948 में जब इजरायल की एक यहूदी देश के रूप में स्थापना हुई, तो उनके सामने इसका राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव भी रखा गया था. उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया. इसके बदले अपनी वसीयत में उन्होंने लिखा कि पत्रों, लेखों, पांडुलिपियों इत्यादि के रूप में उनकी सारी दस्तावेज़ी विरासतों की नकलें, न कि मूल प्रतियां, जेरुसलम के हिब्रू विश्वविद्यालय को मिलनी चाहिए. इन दस्तावेज़ों से पता चलता है कि अमेरिका पहुँचने के बाद जर्मनी में रह गये अपने संबंधियों और परिजनों को वे न केवल पत्र लिखा करते थे, उन्हें जर्मनी से बाहर निकलने में सहायता देने का भी प्रयास करते थे.

🇮🇳 हिटलर के सत्ता में आने से 10 साल पहले ही आइंस्टीन ने भॉंप लिया था जर्मनी अपने यहूदियों के लिए कितना बड़ा अभिशाप बन सकता है. अपनी बहन माया के नाम 1922 में लिखे उनके ऐसे ही एक पत्र की जब नीलामी हुई, तो वह 30 हज़ार यूरो में बिका. इस पत्र में एक जगह उन्होंने लिखा है, ‘यहूदियों से घृणा करने वाले अपने जर्मन सहकर्मियों के बीच मैं तो ठीक-ठाक ही हूँ. यहाँ बाहर कोई नहीं जानता कि मैं कौन हूँ.’

🇮🇳 यह पत्र संभवतः जर्मनी के ही कील नगर से लिखा गया था. उन दिनों आइंस्टीन बर्लिन के सम्राट विलहेल्म इंस्टीट्यूट में भौतिकशास्त्र के प्रोफ़ेसर थे. उनके पत्र से यही पता चलता है कि अति उच्च शिक्षा प्राप्त जर्मन भी, हिटलर के आने से पहले ही यहूदियों से कितनी घृणा करने लगे थे. उनके प्रयासों से उनकी बहन माया भी 1939 में प्रिन्स्टन पहुंच गईं, पर नाज़ियों ने उनके पति को नहीं जाने दिया. माया 1951 में अपनी मृत्यु तक उन्हीं के साथ रह रही थी.

🇮🇳 दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने से कुछ ही दिन पहले, अगस्त 1939 में, आइंस्टीन ने अमेरिका में रह रहे हंगेरियाई परमाणु वैज्ञानिक लेओ ज़िलार्द के कहने में आ कर एक पत्र पर दस्तखत कर दिए. यह पत्र अमेरिकी राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन रूज़वेल्ट के नाम लिखा गया था. इसमें रूज़वेल्ट से कहा गया था कि नाज़ी जर्मनी एक बहुत ही विनाशकारी ‘नये प्रकार का बम’ बना रहा है या संभवतः बना चुका है. अमेरिकी गुप्तचर सूचनाएं भी कुछ इसी प्रकार की थीं, इसलिए अमेरिकी परमाणु बम बनाने की ‘मैनहटन परियोजना’ को हरी झंडी दिखा दी गयी. अमेरिका के पहले दोनों बम 6 और 9 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहर पर गिरे.

🇮🇳 आइंस्टीन को इससे काफ़ी आघात पहुँचा. अपने एक पुराने मित्र लाइनस पॉलिंग को 16 नवंबर 1954 को लिखे अपने एक पत्र में खेद प्रकट करते हुए उन्होंने लिखा, ‘मैं अपने जीवन में तब एक बड़ी ग़लती कर बैठा, जब मैंने राष्ट्रपति रूज़वेल्ट को परमाणु बम बनाने की सलाह देने वाले पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर दिये, हलांकि इसके पीछे यह औचित्य भी था कि जर्मन एक न एक दिन उसे बनाते.’

🇮🇳 इसी कारण अपने अंतिम दिनों में आइंस्टीन ने 10 अन्य बहुत प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के साथ मिल कर, 11 अप्रैल 1955 को, ‘रसेल-आइंस्टीन मेनीफ़ेस्टो’ कहलाने वाले एक आह्वान पर हस्ताक्षर किए. इसमें मानवजाति को निरस्त्रीकरण के प्रति संवेदनशील बनाने का आग्रह किया गया था. दो ही दिन बाद, जब वे इसराइल के स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में एक भाषण लिख रहे थे, उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया. 15 अ़प्रैल को उन्हें प्रिन्सटन के अस्पताल में भर्ती किया गया. 18 अप्रैल को 76 वर्ष की अवस्था में वे दुनिया से चलबसे.

🇮🇳 शवपरीक्षक डॉक्टर ने आइंस्टीन की आँखों और मस्तिष्क को यह जानने के लिए अंत्येष्टि से पहले ही निकाल लिया कि उनके मस्तिष्क की बनावट में उनकी असाधारण प्रतिभा का कोई रहस्य तो नहीं छिपा है. उनके परिजनों ने मस्तिष्क के साथ इस प्रयोग की अनुमति दे दी थी. पर ऐसी कोई असाधारण संरचना उनके मस्तिष्क में नहीं मिली. मस्तिष्क का एक बड़ा हिस्सा शिकागो के ‘नेशनल म्यूज़ियम ऑफ़ हेल्थ ऐन्ड मेडिसिन’ (राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं औषधि संग्राहलय) में आज भी देखा जा सकता है.

🇮🇳 अल्बर्ट आइंस्टीन महात्मा गाँधी के बहुत बड़े प्रशंसक थे.1924 में उन्होने भारत के भौतिकशास्त्री सत्येन्द्रनाथ बोस के सहयोग से ‘बोस-आइंस्टीन कन्डेन्सेशन’ नाम की पदार्थ की एक ऐसी अवस्था होने की भी भविष्यवाणी की थी, जो परमशून्य (– 273.15 डिग्री सेल्सियस) तापमान के निकट देखी जा सकती है. यह भविष्यवाणी, जो मूलतः #सत्येन्द्रनाथ_बोस के दिमाग़ की उपज थी और उन्होंने उसके बार में अपना एक पत्र आइंस्टीन को भेजा था, 1955 में पहली बार एक प्रयोगशाला में सही सिद्ध की जा सकी. उसके बारे में 1905 मे लिखे लेख की पांडुलिपि बेल्जियम के लाइडन विश्वविद्यालय में मिली है.

साभार: satyagrah.scroll.in

🇮🇳 महान #वैज्ञानिक #Scientist #अल्बर्ट_आइंस्टीन जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Jai Narayan Vyas | जय नारायण व्यास




 भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रसिद्ध राजनेता #Famous_politicians_of_Congress जय नारायण व्यास की 14 मार्च को पुण्यतिथि है। उनका जन्म 18 फरवरी, 1899 में राजस्थान के जोधपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम #पंडित_सेवारामजी_व्यास और माता का नाम #गोपी_देवी था। जय नारायण की शादी #गौरजा_देवी से हुई थी। इनसे उन्हें 4 संतानें एक पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं। जय नारायण ​मात्र मैट्रिक तक ही पढ़े-लिखे थे। व्यास ने देश में #दासता की जंजीरों से मुक्ति और रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए कई बार आंदोलन किए। ऐसे में जय नारायण व्यास की डेथ एनिवर्सरी के मौके पर जानते हैं उनकी दिलचस्प कहानी..

🇮🇳 10वीं पढ़े व्यास बने थे ‘तरुण राजस्थान’ के संपादक---

🇮🇳 1920 के दशक की शुरुआत में जय नारायण व्यास और उनके साथी जोधपुरी राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने जोधपुर राज्य में मारवाड़ हितकारिणी सभा (मारवाड़ सुधार सोसाइटी) का गठन किया था। इस सोसायटी का उद्देश्य जोधपुर राज्य को अंग्रेजों के अधीन शासन चला रहे स्थानीय शासकों और अंग्रेजों की गुलामी से मुक़्त करना था। व्यास को सामंतशाही के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने, ‘जागीरदारी प्रथा’ की समाप्ति और रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना पर जोर देने के लिए जाना जाता है।

🇮🇳 राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही वे पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने सबसे पहले सामंत शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की थी। वर्ष 1927 में व्यास ‘तरुण राजस्थान’ पत्र के प्रधान सम्पादक बने थे। साल 1936 में उन्होंने बंबई से ‘अखण्ड भारत’ नामक दैनिक समाचार-पत्र की शुरुआत की थी।

🇮🇳 जेल यात्रा से लेकर दो बार सीएम बनने तक का सफ़र---

🇮🇳 जय नारायण व्यास के मन में शुरु से ही देशभक्ति जाग उठी थी। अंग्रेजों की गुलामी के दौर में पैदा हुए व्यास ने देश की आज़ादी की लड़ाई में कई बार जेल की यात्राएं की थीं। वे क्रांतिकारी गतिविधियों में हमेशा आगे रहते थे। महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण व्यास को गिरफ्तार कर लिया गया था।

🇮🇳 आज़ादी के बाद वर्ष 1948 में जय नारायण व्यास को जोधपुर प्रजामण्डल का प्रधानमंत्री बनाया गया था। वे साल 1956 से 1957 तक प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे थे। इसके बाद उन्हें राजस्थान के तीसरे और पांचवें मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। मुख्यमंत्री के रूप में व्यास का कार्यकाल पहली बार 26 अप्रैल 1951 से 3 मार्च 1952 तक और दूसरी बार 1 नवंबर 1952 से 12 नवंबर 1954 तक रहा।

🇮🇳 सिटिंग सीएम रहते दोनों सीटों पर हारे चुनाव---

🇮🇳 वर्ष 1952 में पूरे देश में चुनाव हो चुके थे। लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक ही हुए थे। इसके बाद चुनाव के नतीजों का समय आया। मतदान पोस्टल बैलेट के माध्यम से हुआ था, इसलिए परिणाम आने में कई दिन लग रहे थे। उस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास ही थे। चुनाव नतीजों के दौरान व्यास अपने खास राजनीतिक मित्रों #माणिक्यलाल_वर्मा, #मथुरादास_माथुर और #रामकरण_जोशी के साथ बैठकर परिणाम के हिसाब-किताब की जानकारी ले रहे थे।

🇮🇳 इस चुनाव में जय नारायण व्यास प्रदेश के सिटिंग सीएम थे और वे दो सीटों से चुनाव लड़ रहे थे। पहली सीट जालौर-ए और दूसरी सीट थी जोधपुर शहर-बी। इन दोनों ही सीटों पर व्यास अपनी जीत को लेकर पूर्व में ही निश्चिंत थे। नतीजों के दौरान व्यास के निजी सचिव वहां आए और बोले साहब दो ख़बर हैं। आपके लिए एक ख़बर अच्छी है और एक बुरी। सचिव ने कहा कि अच्छी ख़बर ये है कि पार्टी 160 में से 82 सीटों पर चुनाव जीत गई है। लेकिन बुरी ख़बर ये है कि व्यासजी दोनों ही सीटों से चुनाव हार गए हैं।

🇮🇳 इसके बाद जैसे कमरे में एकदम से सन्नाटा पसर गया। कमरे में बैठे लोगों के लिए कांग्रेस जीत की खुशी ज्यादा मायने नहीं रख रही थी। उनसे व्यास की हार का बड़ा दुख हो रहा था। इसके पीछे का कारण यह भी था कि सालभर पहले ही इस खेमे ने मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री को कुर्सी से हटवाकर जयनारायण व्यास को राजस्थान का सीएम बनवाया था। अब व्यास के साथ उनकी भी आगे की राजनीति ख़तरे में पड़ गई थी।

🇮🇳 व्यास के नाम पर है जोधपुर की प्रमुख यूनिवर्सिटी---

🇮🇳 राजस्थान के दो बार सीएम रहे जय नारायण व्यास एक बार राज्यसभा सांसद भी बने थे। इसके अलावा वे दो साल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। व्यास का निधन 14 मार्च, 1963 को राजधानी दिल्ली में हुआ। उनके सम्मान में जन्म स्थली जोधपुर में ‘जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय’ नाम से एक यूनिवर्सिटी भी संचालित है।

साभार: chaltapurza.com

🇮🇳 भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री #former_chief_minister #जय_नारायण_व्यास  #Jai_Narayan_Vyas जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏 

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

13 मार्च 2024

Opposition Against CAA | CAA के खिलाफ विपक्ष | लेखक : सुभाष चन्द्र

 




भारत के “पीड़ित मुसलमानों” को #पाकिस्तान, #अफगानिस्तान और #बांग्लादेश CAA बना कर शरण दें - 


बात न चीत कोरी में लठ्ठम लट्ठा - #विपक्ष ने मुसलमानों को लागू किए गए #CAA के खिलाफ भड़का कर देश को दंगों की आग में झोंकने की योजना बना ली लगती है - #ममता, #स्टालिन, #विजयन धमकी दे रहे हैं कि वे अपने अपने राज्य में CAA लागू नहीं होने देंगे - 


कांग्रेस और केजरीवाल इसे वोट बैंक की राजनीति कह रहे हैं और मुस्लिम लीग ने सुप्रीम कोर्ट में इसे रोकने के लिए PIL दायर कर दी है जैसे मुसलमानों पर कोई बड़ी आफत आन पड़ी है CAA से -


भारत तीनों मुल्कों में प्रताड़ित हिन्दू और अन्य अल्पसंख्यकों (मुस्लिमों को छोड़ कर) नागरिकता दे रहा है - इसलिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान को भारत के “पीड़ित” मुसलमानों को अपने अपने देश में शरण दे कर नागरिकता देने के लिए अपना CAA बनाना चाहिए -


इस्लाम को मानने वाले भारत के मुस्लिम इस्लामिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में शरण पा कर बहुत खुश हो सकते हैं -


ओवैसी, फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती, तौकीर रजा, सारे #banned #PFI के बाशिंदे, अरफ़ा खानुम शेरवानी और सबा नक़वी, राणा अय्यूब सबको ले सकते हो, ये लोग बहुत परेशान हैं, अरफ़ा खानम को तो अफगानिस्तान शरण दे और तुरंत शरिया में हुकुम दे कि नौकरी करने के लिए बुरका पहनो जो शक्ल न दिखे और शादी करो वरना जेल में रहना होगा -


मुसलमानों के अलावा ये तीनों देश भारत के कुछ “सेकुलर” हिन्दुओं को भी शरण दे सकते हैं - ये हिन्दू दिन रात भारत को गाली बकते हैं और पाकिस्तान के लिए टसुए बहाते है - खुला निमंत्रण दे दो तो लाइन लग जाएगी - वैसे प्याज टमाटर के दामों को रोने वाले भी बहुत मिलेंगे, उन्हें भी ले जाओ और ये सब इस्लाम में convert करने के काम आएंगे -


अब हमारे नेताओं की सुनों, उन्हें इस CAA में केवल धर्म का आधार नज़र आ रहा है - वो चाहते है कि जो मुसलमान उन देशों में पीड़ित हैं उन्हें भी नागरिकता दे भारत - 


समस्या यह है कि विपक्ष इन तीन मुल्कों से आये हिन्दुओं को भारत में रखना ही नहीं चाहता और इसलिए कह रहे हैं कि यह CAA “ वोटों के ध्रुवीकरण” करने के लिए उठाया कदम है - ये उद्गार जयराम रमेश के हैं और ओवैसी मुसलमानों को सड़कों पर आने के लिए कह रहा है - क्या प्रॉब्लम हैं ओवैसी के मुसलमानों को CAA से -


ध्रुवीकरण तो कांग्रेस और सारा #विपक्ष करता है - वो सेकुलर दल अनेक योजनाएं केवल मुसलमानों के लिए बनाते है जबकि मोदी ने कोई योजना केवल हिन्दुओं के लिए नहीं बनाई, उसकी योजनाएं सभी के लिए होती है 


कर्नाटक सरकार को #हिन्दू मंदिरों से मिला 445 करोड़ जिसमे से 330 करोड़ कांग्रेस सरकार ने ईसाई और मुस्लिम संगठनों को लुटा दिया - ये होता है ध्रुवीकरण - 


#कांग्रेस और विपक्षी दल तो मुसलमानों की वोटों के ध्रुवीकरण के लिए राम मंदिर का वर्षो से विरोध करते रहे हैं और अब उद्घाटन में भी नहीं गए, वो तो सब मिल कर सनातन धर्म को समाप्त करना चाहते हैं - चुनाव में केवल #मुस्लिम #वोटों के भरोसे बैठे हैं -


सिब्बल ने कभी कहा था कि संसद के पास किए कानून को #implement करना हर राज्य का फर्ज है इसलिए जो implement करने को मना कर रहे हैं, वे सरकार बर्खास्त हो सकती हैं -


#केरल और #राजस्थान #सरकार ने CAA के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की हुई है जिस पर 4 साल से फैसला नहीं हुआ - कब नींद खुलेगी मीलॉर्ड की -


#सुप्रीम कोर्ट यदि #CAA पर रोक लगाना चाहता है तो लगा दे लेकिन शर्त केवल एक हो कि एक हफ्ते में सभी बांग्लादेशी और रोहिंग्या भारत छोड़ कर चले जाएं और जब तक नहीं जाते तब तक किसी को वोट देने का अधिकार न हो -


"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 13/03/2024 

#CAA,#giving_citizenship, #Pakistan, #Afghanistan,#Bangladesh, #Muslims,#implemented_CAA,#Mamata, #Stalin, #Vijayan, #threatening , #impose_CAA ,#respective_states,#Opposition_Against_CAA, #persecuted_Hindus #minorities, #except_Muslims #Congress_Party,  #political_party,  #indi #gathbandhan  #Prime_Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court #Arvind_Kejriwal, #DMK  #A_Raja  #top_stories

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Sela Tunnel and Divyastra | सेला सुरंग और दिव्यास्त्र का साफ़ संदेश समझो - “पंगा मत लो” | सामने अब नेहरू नहीं मोदी है | लेखक : सुभाष चन्द्र





तड़पते चीन को पता होना चाहिए  सामने अब नेहरू नहीं मोदी है,

सेला सुरंग और दिव्यास्त्र का  साफ़ संदेश समझो - “पंगा मत लो”


समाचार था कि शनिवार 9 मार्च को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अरुणाचल प्रदेश के दौरे से जिनपिंग का चीन भड़क रहा है और विरोध जताते हुए चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा है कि “जेंगनान (अरुणाचल प्रदेश) चीन का क्षेत्र है, भारत वहां की स्तिथि में बदलाव न करे, इससे सीमा का मसला और ज्यादा जटिल हो जाएगा” 


जिनपिंग अपने साथ MOU साइन की हुई कांग्रेस के साथ मिलकर जितना मर्जी षड़यंत्र रच ले लेकिन उसे एक बात समझ लेनी चाहिए कि सामने अब न नेहरू है और न तुमसे खौफ खाने वाली मनमोहन सिंह की सरकार है बल्कि तुमसे आंख में आंख डाल कर बात करने वाला मोदी है - अरुणाचल प्रदेश किसी के बाप की जागीर नहीं है जो हलवा समझ कर खा लोगे -


कांग्रेस समय के रक्षा मंत्री ए के अंटोनी ने संसद में कहा था कि हम चीन की सीमा पर सड़कें जानबूझकर नहीं बनाते क्योंकि उससे डर है कि चीनी सेना उन सड़कों से ही भारत में घुस सकती है, यह बेवजह का खौफ नहीं था बल्कि लगता है CPC - Congress के बीच 2008 में साइन हुए MOU की शर्त रही होगी कि चीन की सीमा पर भारत कोई Infrastructure का निर्माण  नहीं करेगा -


लेकिन पिछले 10 वर्षों में मोदी सरकार ने चीन की सीमा पर सड़कों का जाल बिछा दिया और हर क्षेत्र को भारतीय सेना की पहुंच में खड़ा कर दिया गया, किसी भी क्षेत्र में सेना की रसद भेजी जा सकती है, संवेदनशील क्षेत्रों में जिनमे गलवान भी शामिल है हर तरह सेना को मजबूत किया गया है जिसकी वजह से चीन आज आंख उठाने की हिम्मत नहीं करता 


जिस अरुणाचल प्रदेश को जेंगनान कह कर चीन अपना क्षेत्र बताता है, उसी अरुणाचल में शनिवार को भारत द्वारा चीन की सीमा से लगते हुए इलाके में13000 फ़ीट ऊंचाई पर 825 करोड़ की लागत से बनाई गई “सेला सुरंग” को प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किया है जबकि कांग्रेस सरकार एक सड़क भी नहीं बनाती थी - 





यह सेला टनल असम के तेजपुर जिले को अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी कामेंग जिले से जोड़ती है जिससे पूरे वर्ष आवागमन जारी रहेगा और सेना की वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) तक पहुंच कायम रहेगी - यह चीन के लिए एक बड़ी चेतावनी है और शायद इसलिए कांग्रेस ने इस टनल बनने पर सरकार को बधाई नहीं दी है -


अभी 3 दिन पहले भारत ने चीन की छाती पर टनल बना कर शंखनाद किया था और कल DRDO ने अग्नि - 5 का सफल परीक्षण कर चीन समेत दुनिया के सभी शक्तिशाली देशों को अपनी क्षमताओं का परिचय दे दिया - इस मिसाइल का नाम ही “दिव्यास्त्र” रखा गया है जिसका मतलब समझ आने से ही चीन को चेतावनी मिल जाएगी - 



इस मिसाइल के सफल परीक्षण से भारत अब अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस जैसे देशों के बाद छठा देश बन गया जिसके पास एमआईआरवी तकनीक (मल्टीपल इंडेपेंडेंटली टार्गेटेबल री-एंट्री व्हीकल) पर आधारित मिसाइल सिस्टम है - इस मिसाइल से दुश्मन के कई ठिकानों को एक साथ निशाना बनाया जा सकता है - यूरोप के कुछ देशों समेत पूरा एशिया अग्नि-5 की जद में होगा यानी पूरा चीन भी - यह मिसाइल बड़ी बड़ी एंटी बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम को भी चकमा दे सकती है -


ये मोदी के 10 वर्षों की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है जो चीन और पाकिस्तान जैसे शत्रु देशों के लिए खतरे की घंटी है और कांग्रेस इन दोनों देशों की “मित्र पार्टी” है यानी भारत की शत्रु कांग्रेस भी है क्योंकि शत्रु का मित्र शत्रु ही होता है -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 12/03/2024 

#Sela_Tunnel, #Divyastra,  #Political, #China #india #indo_china,  #Congress_Party,  #political_party,  #indi #gathbandhan  #Prime_Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court #Arvind_Kejriwal, #DMK  #A_Raja  #top_stories

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Pahadi Baba Kanshi Ram | पहाडी बाबा कांशी राम

 


महात्मा गाँधी या भगत सिंह तभी नेशनल हीरो बन पाए, जब उन्हें जमीनी स्तर पर बाबा कांशी राम जैसे आजादी के दीवाने मिले. 🇮🇳

🇮🇳 हिमाचल प्रदेश का जिला #कांगड़ा. तहसील #ज्वालामुखी. साल 1983. 20 जून की दोपहरी को 10 साल का एक लड़का कपिल देव को भारत का पहला क्रिकेट वर्ल्ड कप उठाते देखना चाहता था. दूर-दूर तक टीवी नहीं थे. पता चला कि पास के एक गाँव में एक टीवी है. वो घर पर बिना बताए मैच देखने चला गया. लौटते हुए ऐसा महसूस हुआ मानो वो ही वर्ल्ड कप जीतकर लौट रहा हो. मगर यहाँ पिता की बेंत इंतजार कर रही थी. उन्होंने मैच देखने जाने के जुर्म में लड़के को बरामदे में उल्टा करके लटका दिया. नीचे लाल मिर्च का धुँआ लगाकर खूब पीटा. इससे ज्यादा बड़ी सज़ा और क्या हो सकती थी. मगर इस लड़के को उसमें भी एक तरह की खुशी मिल रही थी. खुशी इसलिए क्योंकि उसके दिमाग में उस वक्त एक किस्सा दौड़ रहा था.

🇮🇳 किस्सा जो उसने अपनी तीसरी क्लास की किताब में पढ़ा था. उसमें लिखा था कि अंग्रेज #स्वतंत्रता सेनानियों को कोड़े मारकर पीटते थे. इस तरह की #यातनाएं अंग्रेजों ने हिमाचल के एक स्वतंत्रता सेनानी को दी थीं. अंग्रेजों ने उन्हें उल्टा लटकाकर मिर्ची का धुँआ दिया था. और तो और बर्फ की सिल्लियों पर लिटाकर लात-घूँसे मारे थे. पिता की ये मार 10 साल के वीरेंद्र के आगे कुछ नहीं थी. वो सेनानी और कोई नहीं, हिमाचल का #पहाड़ी_गाँधी था. वो पहाड़ी गाँधी जिसने अपनी आखिरी साँस तक घूम-घूम कर लोगों में आजादी के लिए दीवानगी पैदा की.

🇮🇳 10 साल के वीरेंद्र, अब 45 साल के वीरेंद्र शर्मा ‘वीर’ हो चुके हैं और हिमाचल में बाबा कांशीराम की भूली-बिसरी विरासत को सँभालने और संजोने में लगे हैं. 11 जुलाई को कांशी राम के जन्मदिन पर दी लल्लनटॉप भी एक कोशिश कर रहा है इस स्वतंत्रता सेनानी की जिंदगी की एक झलकी आप तक लाने की.

🇮🇳 "भारत मां जो आजाद कराणे तायीं

मावां दे पुत्र चढ़े फाँसियां

हंसदे-हंसदे आजादी दे नारे लाई..

मैं कुण, कुण घराना मेरा, सारा हिन्दुस्तान ए मेरा

भारत मां है मेरी माता, ओ जंजीरां जकड़ी ए.

ओ अंग्रेजां पकड़ी ए, उस नू आजाद कराणा ए..

कांशीराम जिन्द जवाणी, जिन्दबाज नी लाणी

इक्को बार जमणा, देश बड़ा है कौम बड़ी है.

जिन्द अमानत उस देस दी"

🇮🇳 जब हिंदुस्तान में आजादी के लिए नारे लग रहे थे, मुल्क इंकलाब जिंदाबाद बोल रहा था, दूर पहाड़ों में एक मामूली सा इंसान अपनी पहाड़ी भाषा और पहाड़ी लहजे में #देशभक्ति की धुन जमा रहा था. वो गांव-गांव घूमकर अपने लिखे लोकगीतों, कविताओं और कहानियों से अलख जगा रहा था. वो हिमाचल के एक एक इंसान तक पहुंच कर उसे आजादी के आंदोलन से जोड़ रहा था. नाम #कांशी_राम. #कांगड़ा जिले में देहरा तहसील के #डाडासिबा गाँव से निकले कांशी ने पहली बार पहाड़ी बोली को लिखा और गा-गाकर लोगों को नेशनल मूवमेंट से जोड़ा.

11 जुलाई 1882 को #लखनू_राम और #रेवती_देवी के घर पैदा हुए कांशी की शादी 7 साल की उम्र में हो गई थी. उस वक्त पत्नी #सरस्वती की उम्र महज 5 साल थी. अभी 11 साल के ही हुए तो पिता की मौत हो गई. परिवार की पूरी जिम्मेदारी सिर पर थी. काम की तलाश में वो लाहौर चले गए. यहां गए तो कुछ काम धंधा तलाशने थे, मगर उस वक्त #आजादी का आंदोलन तेज हो चुका था और कांशी के दिल दिमाग में आजादी के नारे रह-रह कर गूंजने लगे थे. आज़ादी की तलब ने यहां मिलवाया दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों से. इनमें #लाला_हरदयाल, भगत सिंह के चाचा #सरदार_अजीत_सिंह और #मौलवी_बरक़त_अली शामिल थे. संगीत और साहित्य के शौकीन कांशी की मुलाकात यहां उस वक्त के मशहूर देश भक्ति गीत ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ लिखने वाले सूफी #अंबा_प्रसाद और #लाल_चंद_फलक से भी हुई जिसके बाद कांशीराम का पूरा ध्यान आजादी का लड़ाई में रम गया.

🇮🇳 सालों से बाबा कांशी राम के जीवन के पहलुओं पर नजर रखने वाले वीरेंद्र शर्मा कहते हैं कि कांशी राम बहुत पहले ये बात भाँप गए थे कि #संगीत सबको बाँधता है. संगीत के जरिए अनपढ़ से अनपढ़ इंसान तक पहुंचा जा सकता है. इसके लिए उन्होंने लाहौर की धोबी घाट मंडी में रहते हुए गाना सीखा अपनी बातों को लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए गाना शुरू किया. वो पहाड़ी भाषा में लिखते और गाते थे. वो कभी ढोलक तो कभी मंजीरा लेकर गाँव-गॉंव जाते और अपने देशभक्ति के गाने और कविताएं गाते थे.”

🇮🇳 साल 1905 में कांगड़ा घाटी भूकंप से तबाह हो गई. 7.8 की तीव्रता वाले उस ज़लज़ले में करीब 20 हजार लोगों की जान गई, 50,000 मवेशी मारे गए. उस वक्त #लाला_लाजपत_राय की कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक टीम लाहौर से कांगड़ा पहुँची जिसमें बाबा कांशी राम भी शामिल थे. कांशी ने गाँव-गाँव जाकर भूकंप से प्रभावित लोगों की मदद की. यहां से उनकी लाजपत राय से नजदीकियां बढ़ीं. वो आजादी की लड़ाई में और सक्रिय हो गए. मगर 1911 में वो जब दिल्ली दरबार के उस आयोजन को देखने पहुंचे जहां किंग जॉर्ज पंचम को भारत का राजा घोषित किया गया था, कांशी राम ने ब्रिटिश राज के खिलाफ अपनी लेखनी को और धारदार बना लिया.

🇮🇳 1919 में जब जालियांवाला बाग हत्याकांड हुआ, कांशीराम उस वक्त अमृतसर में थे. यहां ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज बुलंद करने की कसम खाने वाले कांशीराम को 5 मई 1920 को #लाला_लाजपत_राय के साथ दो साल के लिए धर्मशाला जेल में डाल दिया गया. इस दौरान उन्होंने कई कविताएं और कहानियां लिखीं. खास बात ये कि उनकी सारी रचनाएं पहाड़ी भाषा में थीं. सजा खत्म होते ही कांगड़ा में अपने गांव पहुंचे और यहां से उन्होंने घूम-घूम कर अपनी देशभक्ति की कविताओं से लोगों में जागृति लानी शुरू कर दी. बाबा कांशीराम के बारे में पालमपुर से लेखक सुशील कुमार फुल्ल बताते हैं, “पालमपुर में एक जनसभा हुई थी और उस वक्त तक कांशीराम को भाषायी जादू और प्रभाव इतना बढ़ चुका था कि उन्हें सुनने हजारों लोग इकट्ठा हो गए. ये देख अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें फिर से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. इस तरह वो 11 बार जेल गए और अपने जीवन के 9 साल सलाखों के पीछे काटे. जेल के दौरान उन्होंने लिखना जारी रखा. 1 उपन्यास, 508 कविताएं और 8 कहानियां लिखीं.”

🇮🇳 508 में से 64 कविताएं छपी हैं, बाकी संदूकों में पड़ी धूल खा रही हैं.

आज़ादी के दीवाने और पहाड़ी भाषा की उन्नति के प्रति अनुराग रखने के कारण कांशी राम अपनी #मातृभाषा में लगातार लिखते रहे. उनकी प्रसिद्ध कविता है- ‘अंग्रेज सरकार दा टिघा पर ध्याड़ा’ (अंग्रेज सरकार का सूर्यास्त होने वाला है). इसके लिए अंग्रेज सरकार ने उन्हें एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया था मगर राजद्रोह का मामला जब साबित नहीं हुआ तो रिहा कर दिया गया. अपनी क्रांतिकारी कविताओं के चलते उन्हें 1930 से 1942 के बीच 9 बार जेल जाना पड़ा.

दौलतपुर जो अब ऊना जिले में आता है, एक जनसभा चल रही थी. यहां उस वक्त #सरोजनी_नायडू भी आयी थीं. यहां कांशीराम की कविताएं और गीत सुनकर सरोजनी ने उन्हें बुलबुल-ए-पहाड़ कहकर बुलाया था. जेल के दिनों में लिखी हर रचना उस वक्त लोगों में जोश भरने वाली थी. ‘समाज नी रोया’, ‘निक्के निक्के माहणुआं जो दुख बड़ा भारा’, ‘उजड़ी कांगड़े देश जाना’ और ‘कांशी रा सनेहा’ जैसी कई कविताएं मानवीय संवेदनाओं और संदेशों से भरी थीं.

🇮🇳 साल 1937 में जवाहर लाल नेहरू होशियारपुर में गद्दीवाला में एक सभा को संबोधित करने आए थे. यहां मंच से नेहरू ने बाबा कांशीराम को पहाड़ी गांधी कहकर संबोधित किया था. उसके बाद से कांशी राम को पहाड़ी गांधी के नाम से ही जाना गया. जीवन में अनेक मुश्किलों से जूझते हुए बाबा कांशी राम ने देश, धर्म और समाज पर अपनी चुटीली रचनाओं से गहन टिप्पणियां कीं.

🇮🇳 हिमाचल से निकलने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान लोकसभा सांसद शांता कुमार ने दी लल्लनटॉप को बताया कि कांशी राम खुद को देश के लिए समर्पित कर चुके थे. वो कहते हैं,” स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ाव इतना गहरा हो चुका था कि 1931 में जब #भगत_सिंह, #सुखदेव और #राजगुरू को फांसी की सजा की खबर बाबा कांशी राम तक पहुंची तो उन्होंने प्रण लिया कि वो ब्रिटिश राज के खिलाफ अपनी लड़ाई को और धार देंगे. साथ ही ये भी कसम खाई कि जब तक मुल्क आज़ाद नहीं हो जाता, तब तक वो #काले कपड़े पहनेंगे. इसके लिए उन्हें ‘स्याहपोश जरनैल’ (काले कपड़ों वाला जनरल) भी कहा गया. कांशीराम ने अपनी ये कसम मरते दम तक नहीं तोड़ी. 15 अक्टूबर 1943 को अपनी आखिरी सांसें लेते हुए भी कांशीराम के बदन पर काले कपड़े थे. कफ़न भी काले कपड़े का ही था.”

🇮🇳 पहाड़ी गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान के चलते 23 अप्रैल 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने काँगड़ा के ज्वालामुखी में बाबा कांशी राम पर एक डाक टिकट जारी की थी. उस वक्त कांशी राम के नाम पर हिमाचल प्रदेश से आने वाले कवियों और लेखकों को अवॉर्ड देने की भी शुरुआत हुई थी जो पिछले कुछ सालों से नहीं दिया जा रहा है.

🇮🇳 अपने जीवन को देशहित में लगाने वाले इस पहाड़ी गाँधी की समय के साथ वो अनदेखी हुई है कि उनका पुश्तैनी मकान भी पूरी तरह ढहने की कगार पर है. 2017 में चुनावों से पहले डाडासिबा में इस घर को कांशीराम संग्रहालय बनाने के सरकारी वादे को पूरा करने कोई सरकार नहीं आई है. बाकी कांशीराम के नाम यहाँ एक सरकारी स्कूल है, वो भी हिमाचल बनने से पहले पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने बनवाया था, उसके अलावा कोई इमारत, चौक, स्कूल, कॉलेज बाबा कांशीराम के नाम पर नहीं है.

🇮🇳 डाडा सीवा में ये इकलौता स्कूल बाबा कांशी राम के नाम पर है.

वीरेंद्र बताते हैं कि उन्होंने 2016 में कांशी राम के इस जर्जर घर की एक तस्वीर फेसबुक पर डाली थी और लिखा था कि क्या कोई बता सकता है कि ये घर हमारे किस स्वतंत्रता सेनानी का है. लोग बता ही नहीं पाए. तभी से हमने ये मुहिम चलाई है कि कांशी राम से जुड़ी हर चीज को संरक्षित किया जाए. इनके घर को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए. आज भी इनकी कुछ दुर्लभ चीजें लावारिस पड़ी हैं जिसकी कीमत करोड़ों में हो सकती है. इसमें जेलों से लिखे कुछ पत्र, तस्वीरें, संस्मरण, कविताएं और कुछ निजी इस्तेमाल वाली चीजें हैं. जुलाई 2017 में चुनावों से ऐन पहले वीरभद्र सरकार ने इनके जर्जर घर को स्मारक बनाने की घोषणा की थी. मगर सरकार बदलने तक ये फाइल सरकारी दफ्तरों के ही चक्कर काट रही है. यहाँ मकान के नाम पर दो दीवारें गिर चुकी हैं और बाकी बची दो एक तेज बारिश का इंतजार कर रही हैं.

🇮🇳 कांशी राम की विरासत को बचाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि महात्मा गांधी या भगत सिंह तभी नेशनल हीरो बन पाए, जब उन्हें जमीनी स्तर पर बाबा कांशी राम जैसे आजादी के दीवाने मिले.

~ प्रवीण

साभार: thelallantop.com

🇮🇳 माँ भारती को दासता की बेडियों से मुक्त कराने के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले #पहाडी_बाबा_कांशी_राम #Pahadi_Baba_Kanshi_Ram जी को कोटि-कोटि नमन !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 

#जय_मातृभूमि🇮🇳

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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